रविवार की इस नौ नवंबरी प्रभात की वेला में हल्की शीत की उत्तरभारतीय सिहरन के बीच घरों के दुशाले, कम्बल, शाल, निकालते-ओढ़ते-पहनते भारतवासियों का देश अपनी आग में निरंतर दहक रहा है; जबकि पूरे देश को एक करने वाली शीत लहर (बकौल शरद जोशी ) के दिन अब अधिक दूर नहीं हैं। हम अपनी अपनी शीतकालीन तन्द्रा में डूबे अलसाए पड़े सो रहे हैं। वैसे सोते तो हम ग्रीष्म का नाम लेकर तपती दुपहरी में भी हैं।
बचपन में एक कविता सुनी- गाई थी
बहुत कौमी नगमे सुनाए गए हैं
जगाए गए हैं - मनाए गए हैं
हँसाए गए हैं - रुलाए गए हैं
गुजर ली हैं सदियाँ इन्हें सोते सोते
अनेकों तरह से जगाए गए हैं ,
नहीं जागते ये मेरे देश वाले
ये क्या शय पिलाकर सुलाए गए हैं ?
जिस देश का तंत्र आज तक संसद से लेकर सड़क तक हुए अनगिन आतंकी हमलों की एक डोर न पकड़ कर काट सका वह हिंदू आतंकवाद की जड़ तक कैसे झटपट पहुँच गया, आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के कश्मीर में चलते शिविरों के रेकोर्ड और वीडियो सुलभ होने के बावजूद सुस्ताने में लगा तंत्र सच में यकायक कैसा सुधर गया, चुस्त हो गया, अहा, कमाल का देश है जनाब, आप किस मुगालते में हैं ?... हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है
भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके को मुख्य भूमि से जोड़ने वाली छोटी सी भूमि जिसे “चिकन नेक” या “सिलीगुड़ी कॉरीडोर” कहा जाता है, इनके मुख्य निशाने पर है और इस ऑपरेशन का नाम “ऑपरेशन पिनकोड” रखा गया है, जिसके मुताबिक बांग्लादेश की सीमा के भीतर स्थित 950 मस्जिदों और 439 मदरसों से लगभग 3000 जेहादियों को इस विशेष इलाके में प्रविष्ट करवाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि यह “चिकन नेक” या सिलिगुड़ी कॉरीडोर 22 से 40 किमी चौड़ा और 200 किमी लम्बा भूमि का टुकड़ा है जो कि समूचे उत्तर-पूर्व को भारत से जोड़ता है, यदि इस टुकड़े पर नेपाल, बांग्लादेश या कहीं और से कब्जा कर लिया जाये तो भारतीय सेना को उत्तर-पूर्व के राज्यों में मदद पहुँचाने के लिये सिर्फ़ वायु मार्ग ही बचेगा और वह भी इसी जगह से ऊपर से गुजरेगा। इतनी महत्वपूर्ण सामरिक जगह से लगी हुई सीमा और प्रदेशों में कांग्रेस इस प्रकार की घिनौनी “वोट बैंक” राजनीति खेल रही है।
एक प्रयास यह भी
"आतंकवाद को न तो इस्लाम से जोड़ा जाना चाहिए और न ही हिंदू धर्म से. ये कुछ पागल लोगों का जुनून है और ऐसे लोगों से देश के हिंदुओं और मुसलमानों को मिलकर लड़ना होगा तभी हमारा देश तरक्की करेगा, यही हमारा मिशन है."
मेरे हाथ काँप रहे हैं : माँ से प्यार करने वाले कहते हुए सुने गए कि
'भारत', अब मेरे हाथ यह शब्द 'भारत' लिखते काँप जाते हैं, लगता है कि मैं झूठ लिख रहा हूँ ।
अभी देवताले जी की एक कविता पढी थी " माँ पर नहीं लिख सकता कविता " किंतु माँ पर लिखने की इसविवशता के आगे कोई क्या करे कि लिखने को है तो इतना-भर -
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
इसके साथ ही कल मध्य रात्रि को मिजोरम से आए एक पत्र का उल्लेख करना आवश्यक है क्योंकि वह पत्र भेजा ही इसलिए गया था कि उसे चिट्ठाचर्चा में सम्मिलित करके सभी को सूचना दी जा सके,यह है तो
दिल दुखाने वाला एक और प्रकरण : ब्लॉग जगत में :
मुझे ई-डाक से प्राप्त ये दो संदेश स्वयं पूरी बात कहने में सक्षम है, इसलिए ज्यों का त्यों उन्हें यथावत् प्रस्तुत करते हुए किसी भी संलग्न व्यक्ति से इस प्रकरण का समाधान या निराकरण की प्रबल आकांक्षा है | अपने फॉरवर्ड होने का दंभ भरते हम बातें तो करते समय सारे संसार की स्त्री की बदली आधुनिक तस्वीर के लिए ऐसे लड़ते हैं जैसे स्त्री ने मातृसत्तात्मक सामानांतर सामाजिक व्यवस्था खड़ी कर ली हो , एक दो उदहारण दिखा गिना कर इतराए घूमते हैं, पर ऐसी घटनाएं सारे नकाबपोशों के चेहरे पर कालिख पोतती देखी जा सकती हैं, ऐसी घटनाएँ कोई बहुत असाधारण नहीं हैं, बिल्कुल सामान्य हैं इस समाज में, बस दबी घुटी रहती हैं।
--- On Fri, 11/7/08, AMAR KUMARwrote: From: AMAR KUMARSubject: अत्यावश्यक !! To: "Dr.Kavita Vachaknavee" Date: Friday, November 7, 2008, 9:25 PM
कविता जी, सादर अभिवादन ! क्षमा करें, इस समय रात्रि के ढाई बज रहे हैं, और मैं आ्पके मेलबाक्स में प्रविष्ट हो रहा हूँ । इस समय मैं मिज़ोरम में हूँ, नेट संसाधन सीमित हैं । रात्रि के ग्यारह के आसपास यह मेल देखा, मन उदिघ्न है ! क्या किया जा सकता है, यह लौट कर देखूँगा, कैसे अभिव्यक्ति का दम घोंटें जाने से रोकूँ.. यह सब सोच ही रहा था, कि सहसा याद आया कि शनिवारीय चिट्ठाचर्चा किंवा आप ही करें, सो यह मेल आपको प्रेषित कर रहा हूँ ! यदि आप ठीक समझें, तो इस मसले को वहाँ उठा सकती हैं, व मुझे विश्वास है, कि आपकी आभा के अनुरूप कोई भी इसे हल्के रूप में न उड़ायेगा ! बड़ी विषम स्थिति है, कि दो लड़कियाँ एवं ब्लागरीय सरोकार से जुड़े अन्य जन भी, जिनको मैंने कभी देखा तक नहीं, आवाज़ भी न सुनी, गाहे बगाहे मुझमें आशा कि किरण तलाशते हैं, तो मैं प्रतिबद्ध महसूस करता हूँ, कि उनकी अपेक्षाओं को पूरा कर सकूँ ! बिजली की आवाजाही में यह मेल किसी तरह पूरा करके आप तक पहुँचा रहा हूँ ! जरा देखियेगा ! ईश्वर आपको सफलता दें.. शुभेच्छु - अमर
---------- Forwarded message ---------- From: lovely kumariDate: 2008/11/7 Subject: To: c4blog@gmail.com
लवली कुमारी के एतराज और अनुरोध पर उनकी मेल कविता जी की अनुमति से हटा दी गयी।- अनूप शुक्ल
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अमर
कर्मनाशा से ( आखिर कोई भी नदी कैसे हो सकती है अपवित्र ?)
रुको मत समय
तुम बहो पानी की तरह
जैसे बह रही है नदी की धार !
प्रेम में पगी हुई यह जीभ
चखना चाहती है रुके हुए समय का स्वाद
आज का यह क्षण
मन महसूस करना चहता है कई शताब्दियों बाद
जी करता है बीज की तरह धंस जाए यह क्षण
भुरभुरी मिट्टी की तह में
और कभी, किसी कालखंड में उगे जब
तो बन जाए एक वृक्ष छतनार
जिसकी छाँह में जुड़ाए
आज का यह संचित प्यार !
कोई दिन आपके लिए दिल डुबाने वाला संदेश लेकर आता है.
कल दो संदेश रवि रतलामी जी के इनबॉक्स में मिलेनई पीढी की भारतीय बेटियाँ विवाह से बहुधा बिदकती हैं, और यह पश्न बार बार माता-पिता, सम्बन्धियों व मित्रों से पूछती हैं कि अपने आसपास कोई ऐसा जोड़ा दिखाओ , जो सुखी हो और जिनका प्रेम यथावत् हो (आदि आदि)। एक बच्ची ने तो साफ़ साफ़ मुझे कहा कि -
जो लोग (स्त्रियाँ या पुरुष) बच्चियों को उनके विवाह के प्रति अनास्थावान होने के लिए गरियाते हैं, वे आसपास समाज में ऐसे अनुपात को हटाकर देखने का काम करें तो मरते संबंधों की पीड़ा से समाज को बचाया जा सकता है"भारतीय पुरुष विवाह के बाद न मित्र रहते हैं, न पुरुष, वे केवल मालिक हो जाते हैं और स्त्री केवल उपभोग की उपादेय सामग्री ."
सिंगापुर के सबसे युवा करोड़पति ने अपने करोड़पति होने व दूसरों को करोड़पति बनने के कुछ गुर बताए हैं
यदि आप नहीं जानते कि यह कौन है तो उसका प्रबंध भी Who is Adam Khoo पर है -
If you haven’t heard of Adam Khoo, he’s one of the youngest self-made millionaires in Singapore at the age of 26. Even when he was doing his undergraduate studies at the NUS Business School, he ran his own motivational speaking business and was earning up to $2000 a day. Today at age 32, Adam owns and runs three businesses, with a combined annual turnover of $20 million. Quite impressive if you were to ask me.
ओबामा की सचित्र जीवनी के लगभग ३ हजार पन्ने यहाँ देख सकते हैं
थोड़ी चीरफाड़ - अपने राजतंत्र की ( आलोक तोमर )
कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा ने पूरी कांग्रेस को वंशवाद और पैसा खा कर टिकट देने वाली पार्टी करार दे दिया और इस पर कम से कम कांग्रेस में शिखर पर बैठे कई नेताओं को आश्चर्य नहीं हुआ होगा।......
श्रीमती अल्वा से मिलने सोनिया गांधी के दूत ऑस्कर फर्नाडींज और अहमद पटेल दोनों पहुंचे और उन्होंने श्रीमती अल्वा से इस संवेदनशील मौके पर चुप रहने की सलाह दी। श्रीमती अल्वा ने उन्हें कर्नाटक के 24 ऐसे कांग्रेसी उम्मीदवारों के नाम थमा दिए जिनके बारे में उनका दावा था कि उन्हें 2 से 5 करोड़ रुपए तक वसूल कर टिकट दिए गए और उनमें से ज्यादातर हार गए। ....
सोनिया गांधी ने श्रीमती अल्वा तक यह संदेश पहुंचा दिया है कि वे जल्दी ही उनसे बात करेंगी और संदेश में यह भी शामिल है कि इतनी प्रकट बगावत के बावजूद श्रीमती अल्वा के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी। श्रीमती अल्वा ने अपनी नाराजगी में अर्जुन सिंह और मोती लाल वोरा जैसे नेताओं को भी शामिल कर लिया है जिनके बेटों को विधानसभा टिकट दिए गए हैं।
एक लाईना
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- मीडिया हाउस के रिसेप्शन के उस पार : कौन था या थी ?
- अजदकायमान जिंदगी
अब यहाँ से सवालों के जवाब पाना आसान : सलामत रहे आशियाना हमारा
व्यथा-कथा : 'कच्ची उमर के पत्रकारों की व्यथा-कथा’
उठो
पाँव रक्खो रकाब पर
जंगल-जंगल, नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो
जैसे भादों की रातों में
बिजली कौंधे
ऐसे कौंधो...
-भवानीप्रसाद मिश्र
( चित्र व यह काव्य पंक्ति)
बहुत पाण्डित्यपूर्ण चर्चा रहती है आपकी . कुछ हम जैसे गँवारों के लिए भी लाया कीजिए .
जवाब देंहटाएंdr amar ki tippani padh kar afsos hua rakshanda ki pratibha kae dabayae jaane sae . mae rakshanda ko nahin jaantee hun par itna jarur kahugi ki jo uskae sath ho rahaa haen wo galat haen
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! कल शिव कुमार मिश्र जी तो हाइपर लिंक और हैंग करते इण्टरनेट पर झुलाते रहे चिठ्ठाचर्चा। आपने उसकी सार्थक भरपाई कर दी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबाकी, अजदकायमान समझ नहीं आया तो कोई खास बात नहीं है। समझ तो मुझे भी नहीं आता! :)
करो घुड़सवारी मगर तस्वीर में नहीं, बढ़िया!
जवाब देंहटाएंमन को विचलित करने वाली चर्चा के लिए बधाई लें। काश! हमारे नेता भी पढ़ सकते! विवेक जी, हम जैसे गंवारों के लिए एक लाइना है ना।
जवाब देंहटाएंदिल दुखाने वाली बात पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा. इससे दुखद हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए और क्या हो सकता है. कोई किसी को ब्लॉग लिखने पर भी धमकी दे रहा है ? असहमत होना तो अच्छी बात है, और असहमति जताने के अपने तरीके हैं. पर ये बहुत ग़लत है.
जवाब देंहटाएंये तो दिल दहलाने वाली बात है...हे ईश्वर
जवाब देंहटाएंडॉ कविता !
जवाब देंहटाएंलवली कुमारी, डॉ अमर जी और आपके कारण यह प्रकरण ( रख्शंदा ) पता चला बहुत ख़राब लगा ! आज की व्यस्त जीवन शैली में, प्रगति पथ पर आगे बढ़तीं हजारों हिन्दुस्तानी लड़कियों के लिए, रख्शंदा के पत्र बहादुरी और हिम्मत का प्रतीक बनना शुरू ही हुए थे कि इस बच्ची के आगे रुकावटें आनी शुरू हो गयीं ! प्रतिभावान रख्शंदा के परिवार को क्या समस्या आयी है, यह जानने का प्रयत्न किया जाना चाहिए ! चूंकि लवली जी उनके संपर्क में हैं तो उन्हें ही प्रयत्न करने होंगे ! व्यक्तिगत तौर पर मैं इस लडकी को परिवार को साथ हूँ और किसी भी प्रकार की सहायता, को लिए तत्पर हूँ !
यह आवश्यक नही है कि यह धमकी कोई गंभीर धमकी ही हो, किसी साधारण और घटिया प्रवृत्ति का कोई ब्लागर भी हो सकता है , सो उसकी जांच कराई जा सकती है ! आशा है साथी ब्लागर लोग इस परिवार का साथ देंगें !
बहुत उम्दा चर्चा है.
जवाब देंहटाएंरख्शंदा के परिवार को दी गई धमकी बहुत दुखद और निन्दनीय घटना है. घर वालों द्वारा उसे रोकना एक स्वभाविक प्रक्रिया है अगर ऐसी धमकी भरे मैसेज आने लगें.
मेरी शुभकामनाऐं कि मसला हल हो और रख्शंदा फिर से अपने उम्दा लेखन में सक्रिय दिखें.
सुबह ही यह पोस्ट पढा था.. कुछ लिख ना सका..
जवाब देंहटाएंफिर बाद में लवली का एस.एम.एस. आया, जिसमें उसने लिखा कि आज का चिट्ठाचर्चा देख लिजियेगा..
मुझे लगा कि कुछ नया होगा.. मगर वही सुबह वाली पोस्ट थी.. मगर इस बार ध्यान से पढा.. उस समय से सोच रहा हूं कि ऐसा क्यों होता है, और इसका क्या इलाज हो सकता है?? अभी तक कुछ समझ में नहीं आया..
बेहतरीन चर्चा। कल कई बार पढ़कर आज तारीफ़ कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआप सभी की टिप्पणियों प्रति कृतज्ञ हूँ कि आप ने पढ़ा और प्रतिक्रिया देना मुनासिब समझा। वरना ....!!
जवाब देंहटाएंअनूप जी को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह करने की इच्छा होती है।
सही कहा आपने १९४७ के सोये हम अभी तक उठे नहीं.
जवाब देंहटाएंप्रो. देवराज का एक तेवर यहाँ द्रष्टव्य है :
"आज यदि सो जायेंगे हम तान कर चादर,
रोज ओढे जायेंगे फिर मान कर चादर"
माना कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता और कोई धर्म आतंक नहीं सिखा सकता. लेकिन धर्म की ग़लत व्याख्या करके तो आतंक और उन्माद को जगाया जा सकता है न?
धर्म रक्षा करता है. रक्षणीय है. लेकिन धर्म के घृणा उपजाने के लिए उपयोग सदा से निंदनीय रहा है-रहेगा!
भवानी प्रसाद मिश्र का कवितांश सचमुच मनोरम है.