आज शनिवार का दिन है। तरुण निठल्ले भाई की चर्चा का दिन। वे गायब हैं, कहते हैं अब चर्चा अगले साल। कुश भी कुछ दिन के लिये छुट्टी पर हैं। समीरलाल पहले ही गोल-मटोल हो गये। विवेक सिंह भी इधर-उधर हो गये। सब लोग एक-एक कर व्यस्त होते जा रहे हैं। आपको कभी लगा कि किधर लग लिये सब लोग?
मुझे अंदाज नहीं था लेकिन कल रात जब ताऊ की पोस्ट बांची तब माजरा खुला। असल में ताऊ ने तमाम लोगों से कर्ज ले रखा था। एक से लेकर दूसरे का चुका रहे थे। इसके बाद क्या हुआ सुनिये
अब इतने समय बाद ताऊ का भी दिमाग ख़राब हो गया ! रोज इससे लो और उसको दो ! अच्छी आफत खडी हो गई ! ताऊ हो गया त्रस्त ! आख़िर जब काबू से बाहर काम हो गया तो उसने एक दिन सारे ऋण दाताओं को सुचना भेज दी की आप आपस में ही मेरे बिहाफ पर एक दुसरे को रुपये देते लेते रहो ! जब जिसका नंबर हो दे दो और तुम्हारी कमाई और मेरा कर्ज चुकता होता रहेगा ! अब मैं कहाँ रोज रोज झंझट में पडू ?
तो ये सब लोग आपस में कर्ज चुका रहे हैं। जैसे ही ताऊ का कर्ज का मामला चुका ये सब हाजिर होंगे। चलिये तब तक हम कुछ बतिया लें। वैसे ताऊ की पोस्ट पढ़कर लगता है प्राण साहब यह उनके जैसे मस्त टाइप के जीव को देखकर लिखे होंगे:
परखचे अपने उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
आपबीती को सुनाना दोस्तो आसां नहीं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
कल मास्टर साहब ने बड़ी धांसू सी चर्चा कर डाली। नये अंदाज में। दोपहर के बाद किये सो कम लोग देख पाये। टिपियाये भी कम लोग। असल में मसिजीवी आडियो-वीडियो के चक्कर में इत्ता बिजी हो गये कि कोई और हुत्थल सूझी नहीं उनको।
स्मार्ट इंडियन अमेरिकी समाज के विरोधाभासी रंग दिखा रहे हैं:
समाज सेवी संस्थायें भी काम पर निकल पडी हैं ताकि बालगृह और अनाथालय आदि में रह रहे बच्चों तक उपहार और बेघरबार लोगों तक ऊनी कपड़े आदि पहुंचाए जा सकें. कुल मिलाकर यह समय विरोधाभास का भी है और संतुष्टि का भी. कोई उपहार पाकर संतुष्ट है और कोई उपहार देकर!
मनीश आपको आज सैर करा रहे हैं भुवनेश्वर की जैन गुफ़ाओं और मंदिरों की।
पूजा लिखती हैं:
फ़िर से एक पुरानी नज़्म, फ़िर से पीले जर्द पन्ने...और लबों पर वो हँसी कि क्या लिखती थी मैं उस समय...ये लिखा है ३१/०८/०२ को। अब सोचती हूँ तो लगता है कितने साल बीत गए...
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
तुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
येल्लो हमे पता ही नहीं चला कि युनुस अचानक अप्रत्याशित रूप से हम अजमेर हो आए । लौट के आये तो सब कहानी सुना रहे हैं कि ये अजमेर है, ये चिश्ती साहब हैं। बताओ कहीं ऐसा होता है भला। जाने से पहले बताना चाहिये था। पूछना चाहिये था कि चलोगे साथ में।
वेबदुनिया पर कभी मनीषा पाण्डेय ब्लाग परिचय लिखती थीं। अब यह काम रवींद्र व्यास ने कर रहे हैं। इस बार की ब्लॉग चर्चा में अफ़लातून के ब्लाग समाजवादी जनपरिषद पर चर्चा हुई है। रवींद्र व्यासकहते हैं
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ब्लॉग हमारे देश के हाहाकारी समय में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करता-कराता है। इसे पढ़ा जाना चाहिए।
पाडकास्टिंग से अब सब परिचित हैं। उन्मुक्तजी शुरू से ही अपनी पोस्टें लिखत-बोलत में पेश करते रहे हैं। अब एक और हिन्दी का पहला बोलता चिट्ठा लॉन्च हुआ। आदर्श राठौर अपनी खूबसूरत आवाज में इसे करेंगे। वैसे ब्लागिंग में ये अच्छी बात है कि जो भी करो वह पहला हो जाता है।
अब ये देखो पारुल ने भी संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। उधर साहित्य शिल्पी अमर उजाला पहुंच गया।
अनुपम अग्रवाल जी के साथ आईना कुछ मौज ले रहा है। पार्टी बदल गया चुनाव के मौसम में! देखिये जरा:
आईने के सामने बैठाया उन्हें ,
मेरा आईना उनका दीवाना हो गया ।
लम्हा लम्हा समेटा था मैने कभी ,
जो बिख्ररा था, वो, अफ़साना हो गया।
खड़ी बोली के पहले कवि के बारे में जानकारी दे रहे हैं अशोक पाण्डेय खेती बारी डाट काम वाले भैया:
खुसरो के पिता ने इनका नाम ‘अबुल हसन’ रखा था। ‘ख़ुसरो’ इनका उपनाम था। किन्तु आगे चलकर उपनाम ही इतना प्रसिद्ध हुआ कि लोग इनका यथार्थ नाम भूल गए। ‘अमीर खुसरो’ में ‘अमीर’ शब्द का भी अपना अलग इतिहास है। यह भी इनके नाम का मूल अंश नहीं है। जलालुद्दीन फीरोज ख़िलजी ने इनकी कविता से प्रसन्न हो इन्हें ‘अमीर’ का ख़िताब दिया और तब से ये ‘मलिक्कुशोअरा अमीर ख़ुसरो ’ कहे जाने लगे।
यह परिचय पाते ही राकेश जी की चांदनी मुस्कराने/जगमगाने लगी:
और उजरी जरा चांदनी हो गयी
चन्द्रमा से सुधायें बासने लगीं
ओस घुलने लगी जैसे निशिगंध में
भोर प्राची को दुल्हन बनाने लगी
और अब डा.कविता वाचक्नवी की आवाज में ये कविता सुनिये।
ब्लागर उवाव
एक लाइना
- हवा के संग उड़ सकती हो... काहे नहीं दुनिया उड़ रही है हवा में
- लिखने को बहुत कुछ है अब भी कुछ बचा है क्या?
- क्यों तुम मुझसे रुठे हो। हम बतायेंगे नहीं!
- पॉडकास्टर; क्या आप प्लेयर बदल बदल कर थक चुके हैं? तो तनिक आराम कर लीजिये ये पोस्ट बांचते हुये
- परिवर्तन आएगा ' लेकिन आराम के साथ इठलाते हुये
- तुम्हें प्यार है मुझसे खबरदार जो इससे इंकार किया
- वो बचपन अभी तक पीछा कर रहा है
- जबाब कोई जरूरी तो नहीं ,फ़िर भी सवाल तो जबरिया पूछेंगे ही
- संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दिये जाड़े में
- कह गया थामगर आया क्यों नहीं!
- फुरसतियाजी, कृपया भूल सुधारें! एडवांस में? पहले भूल करने तो दो!
- धन, स्वास्थ्य और सदाचार में सबसे बड़ा कौन? ये तो नजर-नजर का फ़ेर है
- बिना शीर्षक ..क्या करे शीर्षक लिख कर शीर्षक लिखकर फ़िर पोस्ट लिखें
- गंगा तू बहती क्यूं है आदत से लाचार हूं बेटा
- तुम्हारी कसम मैं नहीं जानती कसम मत खाइये हम मान गये
- नहीं, ये सरासर झूठ है हर झूठ बोलने वाला यही कहता है
- तुम आ जाओ एक बार फ़िर चाहे दो बार चली जाना
- कृपया अखबार न पढें !! बोर करने के लिये हम बहुत हैं
- का करूं सजनी!! अभी तक टिप्पणियां नहीं आईं
पाठक उवाच
तरुण उवाच
1.देश की चिंता किसे है…देश कटघरे मैं खङा हो…खड्डे मैं खङा हो…क्या फर्क पङता हैं…इनका वोट बैक सुरक्षित है ना….दरअसल सारी समस्या है कि जिन लोगों के नेतृत्व मैं कांग्रेस चल रही है उन्होंने देश की अस्मिता से नाता तोङ लिया है …कैसे भी करके बस सत्ता हाथ लग जाये देश की नाक कटे तो कटे
मिहिरभोज
2.चार्वाक दर्शन में और भी बहुत सी बातें हैं। उस बेचारे को फोकट बदनाम कर रखा है। असली ऋण ले कर च्यवनप्राश खाने वाले तो अब पैदा हुए हैं। घी तो डाक्टर ने बंद कर रखा है।
चाहे कुछ भी कह लो जी पूंजीवाद की यह उपभोक्तावादी आजादी छीने बिना काम नहीं चलने का। यह उपभोक्तावाद धरती के सब साधनस्रोतों को छीन कर उसे खोखला करता जा रहा है। अब भी न चेते तो फिर खुदा भी दुनिया का मालिक होने से इन्कार करने वाला है। दिनेशराय द्विवेदी
3.क्या सर, रात भर जागने के बाद जब सोने जा रहा हूँ तो नींद ही भाग खड़ी हुयी है आपकी पोस्ट को डिकोड करते हुए।
ठहाका लगाने का मन कर रहा है, पर डर रहा हूँ कि दिन में पड़ोसी, मेरी ओर देखते हुए, अपनी तर्जनी, अपने ही सिर के पास ले जाकर क्लॉकवाइस घुमाना न शुरू कर दें:-) बी एस पाबला
4.बड़े जमाने से चुनाव जुलूस का जनरल कालेज अपडेट नहीं हुआ हमारा। हम सोच रहे थे कि अबतक तो चीयरलीडरनियां संभालती होंगी चुनाव जुलूस परिदृष्य? आपने तो निराश कर दिया। वही पुराना इश्टाइल चले जा रहा है! :-( Gyandutt Pandey
5.ओहो तो ये बात है... चाँद ने चकोर छोड़ चूहे से यारी कर ली ! अभिषेक ओझा
6.कमीनीस्टों की यही पहचान है जब मजबूत होंगे मार-काट मचायेंगे जब कमजोर होंगे गाली-गलौज करेंगे। सकारात्मक बहस से दूर भागेंगे। खासकर, इन दिनों तो वो पगला गये हैं। देश भर में भाजपा के पक्ष में लहर जो चल रहा हैं। जब बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ तो बहुत से कम्युनिस्टों ने आत्महत्या कर लिया। अब चारों में भाजपा की वापसी सुनिश्चित हैं यह देखकर तो कमीनीस्टों के होश उडने स्वाभाविक ही हैं। संजीव कुमार सिन्हा
7.जब स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि कितने भी अच्छे विदेशी राज से स्वराज हमेशा बेहतर है, तो उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि हमारे राजनेताओं के समान निकृष्ट व्यक्ति सत्ता में होंगे!दिवाकर प्रताप सिंह
8.
गलत बात गरीब नवाज से पहले निजामुद्दीन औलिया को सिजदा करना होता है , और आप बिना निजामुद्दीन औलिया तथा बाबा फ़रीदी को सजदा किये बिना निकल लिये , अगली बार दौरा दुरुस्त करे , गरीब नवाज अपने चेले का खास ख्याल रखते थे जनाब :)
पंगेबाज
9.
ha ha ha ha ha ha ha chand ko aap he pilaa sktyn hain, or kise ke bus ka ye kaam to hai nahee…….wonderful writing..enjoyed each word..
Naam dene ki jaroorat hai kya ;) सीमा गुप्ता
10.वाह, आनन्दम आनन्दम.. बड़ि मौज़दार पोस्ट है, अनूप भाई !
यह अपने दिमाग के सोचे ( शौचे ) वाला डब्बा साफसुथरा रक्खे वालों के लिये नहीं, बल्कि हम जैसे ज़बरद्स्ती के लेखक विचारक चिंतक ठेलक-पेलक घोंचू मानुष के लिये नसीहत पोस्ट है !
वाह, आनन्दम आनन्दम, उल्टे पंडिताइन इस पोस्ट की तुक भिड़ा रहीं हैं, " तारीफ़ करूँ क्या उसकी.. जिसने इन्हें बनाया ! " सच्ची फ़ुरसत में बनाये गये होगे, तभी फ़ुरसतिया मार्का ब्लाग ढालना मुश्किल है ! वाह, आनन्दम आनन्दम.. वैसे मुझे तो इसके पीछे छिपा दर्द भी दिख रहा है सो, साधुवाद !
डा. अमर कुमार
11.
बसंत में बहार आती है. बहार नाम का कोई मौसम नहीं होता |
बिल्कुल होता है बहार नाम का मौसम । कभी कभी ये जेठ और असाढ के समय भी आ जाता है, मसलन जब हमने अपने स्कूल के समर टर्म में बायो-ई डिपार्टेमेंट में एक वर्कशाप की थी तो जाना था बहार क्या होती है । १० सालों के कैमिकल इंजीनियरिंग में बिना किसी लडकी के साथ पढाई करने के बाद जब अचानक ३ लडकों के साथ १४ लडकियाँ (और वो भी बला की खूबसूरत) देखी तो जेठ में ही बहार आ गयी थी ।
शादीशुदा लोगों की बहार तब आती है जब पत्नी मायके जाती है :-)
अगर तकनीकि तौर पर देखें तो भी विभिन्न भिगोलिक स्थितियों में फ़ूलों पे बहार का कोई फ़िक्स टैम नई है ।
वैसे चौकस लिखा है, फ़िल्मों पे जरा ज्यादा लिखा करो ।
- नीरज रोहिल्ला
और अंत में
आज की चर्चा सबेरे साढे पांच बजे शुरू किये अब सलटाते-सलटाते साढे आठ बज गये। इस बीच चाय पान करते, दोस्तों से बतियाते रहे। तरुण आनलाइन मिल गये तो उनको उनके निठल्लेपन का हवाला दिया तो बेचारे शर्मा-शर्मी में कुछ दस ठो पाठक टिप्पणियां थमा गये। इससे यह साबित होता है कि निठल्ले भी जिम्मेदार होते हैं। अब इसका मतलब यह भी कोई लगा सकता है कि निठल्ले ही जिम्मेदार होते हैं।
लोगों का शिकायत का मौका खतम नहीं करना चाहिये इसलिये बिना जाने बूझे समय के बहाने तमाम पोस्टें छोड़ दीं। छोड़ क्या दी, छूट गयीं।
शास्त्री जी की आजकी खिंचाई स्थगित। आज वे मस्त रहें। संभव है तो शिवकुमार मिश्र की टांग लौटा दें जो उन्होंने खिंचाई के लिये पकड़ी थी।
अलग से लिखेंगे एक बात लेकिन एक बात जो लफ़ड़े वाली है वो यह है कि ज्ञानजी अपने को शरीफ़ साबित करने के प्रयास में लगे हैं। तभी वे आज पोस्ट नहीं लिखे। अब जब ज्ञानजी जैसे लोग शरीफ़ बन जायेंगे तो बेचारे शरीफ़ लोग कहां जायेंगे। शरीफ़ विरोधी इस प्रयास को नाकाम किया जाना चाहिये।
और एक बात बतायें कि अब हम दस दिन के लिये जा रहे हैं नैनीताल। वहां हमारी ट्रेनिंग का कार्यक्रम है। इसलिये आप शायद हमारी चर्चा से मुक्त रहें। कल की चर्चा मास्टर मसिजीवी करेंगे। परसों डा.कविता वाचक्नवी। इसके आगे देखा जायेगा।
बकिया मस्त रहें। कौनौ बात की फ़िकर न करें। हम कविता से ही अपनी बात खतम कर रहे हैं कोई टंकी पर थोड़ी चढ़ रहे हैं:
उस शहर में कोई बेल ऐसी नहीं
जो इस देहाती परिन्दे के पर बांध ले
जंगली आम की जानलेवा महक
जब बुलाती वापस चला आता हूं।
जी मेरा उद्देश्य तो ब्लॉगरों को अपने नव ब्लॉग की तरफ आकर्षित करना था। इसिलिए मैंने ये शीर्षके दे डाला। वैसे आपने सही कहा, ब्लॉगिंग में हर चीज़ नई हो जाती है। बहरहाल बोलता चिट्ठा को मैं अलग रंग देने की कोशिश करूंगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ताऊ की पोस्ट का लिंक गलत छप गया है शायद!
जवाब देंहटाएंअब आप भी गायब!!
जवाब देंहटाएंखिंचाई के बाद भी खिंचाई माफ़? सरासर ना इन्साफ़ी है। अभी द्विवेदी जी के कोर्ट में पटीशन डालनी पड़ेगी।
नैनीताल की ठंड का आनन्द लीजिए और कुछ फ़ोटो- वोटो तो दिखवाएँगे ही ।
यात्रा के लिए शुभकामनाएँ
परखचे अपने उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
जवाब देंहटाएंआपबीती को सुनाना दोस्तो आसां नहीं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
" ha ha ha or kuch aasan ho ya na ho, magar aap ke liye ye sub bhut aasan hai, kahen kaa eent kaheen ka rodaa mila kr aap jo hanseen ke fhuarey bnaty hai na vo aap hee bna sktyn hain. wish you happy journey...."
Regards
Nainital ja hi rahe hain to aaspaas bhi ghum kar aaiyega, kuch information chaheye to bataiyega. Waise 1-2 blogger hain wahan per.
जवाब देंहटाएंEk to shayad Shirish Maurya baithe hain wahan, Apne Kabadkhaane ke Ashok Dajyu Haldwani me hain, Rasste me parega.....
Jaaiye ji maje lootiye Nainital ke, chand sitaare dekhne ka jugar bhi hain wahan per.
"कृपया अखबार न पढें !! बोर करने के लिये हम बहुत हैं"
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
"शास्त्री जी की आजकी खिंचाई स्थगित। आज वे मस्त रहें। संभव है तो शिवकुमार मिश्र की टांग लौटा दें जो उन्होंने खिंचाई के लिये पकड़ी थी।"
बहुत आभार प्रभु! लेकिन आपकी दयादारू में चेतावनी छिपी है (सिर्फ आज के लिये स्थगित) उसने हमे चौकन्ना बना दिया है. आज बाजार निकलते हैं, देखते हैं कि ऐसा कोई जाल मिल जाये जो आपके ऊपर फेंकी जा सके!
शिवभईया ने तो ऐसी बढिया "पकड" दी थी कि टांग वापस करने की छोडिये, मैं तो अभी भी गिद्धों के बार की तलाश में हूँ. यदा कदा ही तो इस तरह के हास्य का मौका आ पता है.
आपने आज तीन घंटे लगाये यह बात प्रगट कर दी, मेरा अनुमान सही निकला कि मेराथन चर्चा हरेक के बूते की बात नहीं है. तीन घंटे बहुत होते हैं.
पाठकों के लिये आप इतना समय देते हैं उसके लिये मेरा आभार स्वीकार करें!!
सस्नेह -- शास्त्री
अरे, आप नैनीताल जा रहे है. सावधान रहना. कही किसी यति की टांग न खीच देना. वे हिन्दी चिट्ठाजगत के प्राणी नहीं है अत: उनकी "प्रतिटिप्पणी" आप की सोच से भिन्न होगी!!
जवाब देंहटाएंसस्नेह !!
जाट विवेक सिंह का मलाल है कि
जवाब देंहटाएं" कुछ लोगों का पता नहीं चलता कि आखिर चाहते क्या हैं ?
कभी तो कहते हैं कि चार लाइन की पोस्ट लिखकर लोग छ: छ: लाइन की पचास टिप्प्णियाँ चाहते हैं
पर जब लम्बा देखते हैं तो उससे भी डरते हैं .
आपका लेख मैंने पूरा मन लगा कर याद कर लिया है :) "
तो अपुन के भेजे में भी मानसिक हलचल चल रिया यै, बाप कि पब्लिक को क्या माँगता, भरोसाइच नहीं !
सोचा कि ताऊ के तबेले चिट्ठाचर्चा पर चल कर अपुन के अनूप भाई से सवाल करें,
कि भाई बोलो, किस माफ़िक काम लगाने का है ?
अपुन टाइम हलाल पोस्ट निकालने का कि झटका पोस्ट निकालें ?
पहली ही तस्वीर दस में से सौ नंबर ले गयी... मस्त है जी.. नैनीताल से जल्दी आएगा..
जवाब देंहटाएंपूरी टंकी चढ़े भी नहीं, उतर आये!
जवाब देंहटाएंबधाई।
परफेक्ट चर्चा है यह ....बहुत बढ़िया लगी
जवाब देंहटाएंचर्चा आज तो खूब खींची .फुरसतिया ब्राण्ड चर्चा .
जवाब देंहटाएं@अमर कुमार जी ! ये आदत आपकी हम सार्वजनिक किए देते हैं कि आपको हर बात को सार्वजनिक करने का शौक है .
ऊपर की टिप्प्णी में जोडना चाहता हूँ कि अमर कुमार जी द्वारा मेरे लिए जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किए जाने पर आपत्ति है :)
जवाब देंहटाएंआज है असली रविवारीय चर्चा ! आपका नैनीताल प्रवास सुखमय हो ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसर्दी में नैनीताल का आनंद लीजिये तब तक हम इंतज़ार करते हैं.
जवाब देंहटाएं@ भाई विवेक सिंह जी,
जवाब देंहटाएं1. एक सार्वजनिक ब्लाग पर, जो मोडरेशन फ़्री है..
यदि यह टिप्पणी दिख रही है, तो इसे एक व्यापक मंच पहुँचाये जाने से , यह स्वर और अधिक मुखर हो सकता है..
नापतौल कर लिखने की माँग से मुझे भी अपना दिशानिर्धारण में बड़ी साँसत हो रही थी, और है !
आपने इसे स्वर दिया.. इसको ज़हे-किस्मत मान यहाँ तक ले आया ..कोई बेजा बात ?
मई 2004 से मैं अंग्रेज़ी ब्लाग में सक्रिय हूँ, खेद है कि वहाँ ऎसी तुनकमिज़ाज़ी या असहिष्णुता के दर्शन दुर्लभ हैं ।
मुझे अपना महत्व जताने की कोई इच्छा नहीं है । हिन्दी से मोह है अतएव आपसब के ज़ूते खाना भी कोई अपवाद नहीं होगा ।
यदि हमारे प्रतिनिधि संसद और विधानसभा में ज़ूते चला रहें हैं, तो क्या आश्चर्य, और इतना हंगामा क्यों ?
इसी ज़ूतमपैजार के चलते ..
गर्व से मूँछों पर ताव देकर, हमारी कौम ने 400 वर्ष की गुलामी का आनंद लिया,
सनद रहे.. कि यह ऎंठ बरकरार है !
2. ज्ञानदत्त जी के हलचल पर आपकी आपत्ति दर्ज़ है, मैं ठाकुर नहीं जाट हूँ..
सो मैंने यह लिखने में परम सौभाग्य माना, और आप हैं कि ?
हद है, कोई लिखने की तमीज़ बता रहा है..
कोई पोस्ट की लंबाई चौड़ाई से परेशान है..
कोई भाषा के भदेसपन पर जुगाली कर रहा है ..
प्राइवेसी इतने फ़ैशन में है, कि पिता के नाम पुत्री के पत्र हटाने की माँग धरी जाती है..
और अब.. टिप्पणी कैसे की जाती है, यह बताया जा रहा है..
और श्रीमान जी, ब्लाग पर कुछ भी व्यक्तिगत नहीं रह जाता..
एक गूगल-सर्च मारो, और आपके अन्नप्राशन का भात तक दिखने लग जाता है, हुँहः !
और यह ऎलानिया लिख रहा हूँ,
कि अपना अहं सहलाने वालों का स्वागत करना मेरे लिये असंभव है,
वह न आयें..परवाह नहीं !
मुझे.." चाह नहीं, सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ..."
किसी की टिप्पणी मैटर ही क्या करती है..
यह केवल परस्पर सद्भाव है, बस !
न कोई कालजयी लिख रहा है, न मैं !
यदि कोई जानकार हो, तो यह बताने की कृपा करे, कि..
क्या अपना ब्लाग बनाने के लिये, 3 क्लिक के आगे भी कोई स्टेप है ?
हम सब को वह स्टेप सीखने की ज़रूरत है..
मुझको तो, खैर है ही ? हे हे हे !
यह तो बतलाना भूल ही गया था, कि इटैलिक्स में लिखने पर भी आपत्तियाँ दर्ज़ हुयीं हैं, वाह !
आदरणीय अमर कुमार जी मैंने हमेशा आपको अपना शुभचिन्तक ही माना है और आपसे ऐसी आशा नहीं कर सकता कि मेरी बात पर आप जड से उखड जाएं . दर असल हमने जो भी बात कही थी सब मजाक ही था . भला जाट कहलवाने मुझे आपत्ति होती तो मैं बताता ही क्यों . जैसा आपने लिखा ही है . फिर भी मैंने अपने मजाक के बादि स्माइल दी थी सेफ रहने के लिए . लगता है आज कल यह ऊपर से ही डिसेबिल है . जहाँ भी लगा रहा हूँ वहीं लोग उखड रहे हैं . कृपया उखडिए मत जमे रहिए . मौज लेते और देते रहिए . बाकी ज्ञान तो आपने खुद ही बाँट लिया है . दुखी न हों आपको दुखी करने का मेरा कोई उद्देश्य न था . अन्यथा जो बातें आप बता रहे हैं वे एक साधारण ब्लॉगर को मालुम होती हैं .
जवाब देंहटाएंसारे ब्लोग्स घूम आए इसी बहने.
जवाब देंहटाएंएक लाईन हमेशा की तरह बहुत ही बढ़िया.
तरुण उवाच भी जबरदस्त है.
बहुत ही फुर्सत से और पैनी निगाहों से सभी पोस्ट खंगाली गयी हैं .
और जाने कितनी बार कलम घिसी गयी होंगी ऐसी तराशी हुई पोस्ट लिखने के लिए.
पूरे सप्ताह की सब से अच्छी चर्चा लगी.
[विनम्रता से एक आग्रह है -यह टिप्पणी वाला एक ब्लॉग है जिस में ख़ास टिप्पणी छपती हैं--कौन पोस्ट करता है??कृपया उन्हें शीर्षक में 'की' और विषय परिचय में 'टिप्पणी'शब्द की वर्तनी सुधारने को कहियेगा.]
धन्यवाद.
.
@ सभी संगीसाथियों एवं परसंगी-साथिनों को
जवाब देंहटाएंलगता है, मैं अति उत्तेजित होगया था, जो कम ही होता है ।
दर-असल, अनाड़ी से एक नाई के उस्तरे से किसी तरह.. अपनी गरदन सुरक्षित लेकर लौटा था !
भाई विवेक की टिप्पणी मन में घुमड़ रही थी, कि यह दूसरी टिप्पणी यहाँ दिख गयी ..
आजकल स्वामी ब्रांड सोडावाटर दिमाग में पहले से ही दबाव बनाये हुये है,
भाई विवेक की नमक देख एकाएक झाग बन कर उफ़न पड़ा..
कोई बात नहीं, ऎसा हो जाता है कभी कभी !
मज़ाक में ही सही, भाई विवेक ने एक नयी दिशा दिखायी है,
आइंदा स्त्री-ब्लागर को छोड़ सभीको भाई कह कर ही संबोधित करूँगा ।
एक दूसरे का गला काटने के लिये भाई से अच्छा डिस्क्लेमर नहीं मिलेगा..आपका क्या कहना है ?
ये हुई ना बात .महानता का परिचय दे ही दिया . इसीलिए तो कहा गया है कि महान लोगों को गुस्सा देर से आता है और जल्दी शान्त हो जाता है .
जवाब देंहटाएंहम तो एक बात याद रखते हैं : गुरु, पण्डित, कवि, यार, बेटा, वनिता, यजमान, रसोई और वैद्य से बैर नहीं करना चाहिए .
बहुत बढ़िया चर्चा रही आज की ! प्रतिक्रियाओं में मज़ा आया !
जवाब देंहटाएंभई, कहासुना माफ करो, आने जाने का रस्ता साफ करो। अनूपजी की यात्रा मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएंफुरसतिया और निठल्ले की जुगलबंदी वाली चर्चा तो बेजोड़ होगी ही। चर्चा और टिप्पणियां दोनों मस्त हैं।
जवाब देंहटाएंदेर से पहुंचने का एक फायदा यह हुआ कि सारी टिप्पणियां पढ़ने को मिल गयीं।
फुरसतिया जी को फुर्सत से प्रणाम ,
जवाब देंहटाएंआईना तो मौज ले ही रहा है .
आजतक बहुत ही कम दर्दनाक टिप्पणी छोडे थे वो भी उजागर हो गयी .
सबको अच्छा अच्छा लिखते रहते हैं तो कोई ध्यान नहीं देता है .
ये चिटठा चर्चा तो वाकई, रविवारीय का मज़ा दे गई. पढने में थोडी देर हुयी, पर बहुत अच्छा लगा. अभी तक जितनी बार पढ़ी है ये सबसे अच्छी लगी मुझे. हर बार जब पढ़ती हूँ तो सोचती हूँ की कितना वक्त लगा होगा इतने सरे ब्लोग्स पढ़ कर छांटने में, आज आपने वक़्त का भी अंदाजा दे दिया. बहुत सही चिटठा है ये. आप सब लोगो को बधाई.
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