आलोक पुराणिक के पास ओबामा का फ़ोन आया। वे व्यस्त थे सस्ते आलू खरीदने में। बात नहीं हो पाई। जब आलोक पुराणिक से पूछा गया कि अगर बात हुई तो क्या बोलोगे? उनका जबाब था-
अच्छा अब अगर ओबामा दोबारा तुमसे बात करें, तो क्या बात करोगे उनसे-पत्नी ने पूछा।
यही कि अगर वाशिंगटन में आलू आजादपुर सब्जी मंडी से सस्ते हों, इंडिया आते समय डाल लाना पांच किलो-मैंने बताया।
बताइए, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात और क्या हो सकती है।
अनामदास आवाहन करते हैं:
समझदार होना सहज है और कठिन भी, जैसी फ़ितरत वैसी समझदारी. मैं समझता हूँ कि समझदार हूँ, आप भी होंगे, किसी से ज्यादा, किसी से कम. समझदारी इसी में है कि नासमझी को भी समझा जाए.
ज्ञानजी आजकल मिडलाइफ़ क्राइसिस में फ़ंसे हैं। कभी लाइफ़ की तो कभी ब्लाग की। हमने तो आजतक मिड के साथ हमेशा वाइफ़ ही सुना था। मिडवाइफ़ क्राइसिस के बजाय मिडलाइफ़ क्राइसिस की चर्चा क्या केवल जनता से अपने को अलग दिखाने के लिये करी जा रही है? वे चिंतित होंते हैं:
हिन्दी में तो यह मारपीट नजर नहीं आती – सिवाय इसके कि फलाने हीरो, ढ़िमाकी हीरोइन के ब्लॉग की सनसनी होती है यदा कदा। पर चिठ्ठाजगत का एक्टिव ब्लॉग्स/पोस्ट्स के आंकड़े का बार चार्ट बहुत उत्साहित नहीं करता।
चिंता पर ज्ञानजी का सर्वाधिकार सुरक्षित है इसलिये उनको चुनौती देना अच्छी बात नहीं होगी लेकिन अगर कुल जमा साढ़े बारह हजार सक्रिय ब्लाग में से हजार के ऊपर पोस्ट का आंकड़ा है तो कम नहीं है। अभिव्यक्ति के जिन माध्यमों से पैसा नहीं जुड़ा है, शौकिया तौर पर जो लोग लिख रहे हैं उनमें यह आंकड़ा शायद सर्वाधिक होगा।
सक्रिय से सक्रिय कहानी लेखक महीने में चार-छह कहानी लिख पाता है। पत्रकार भी अगर नौकरी नहीं कर रहा है अखबार में नियमित तो रोज नहीं छपता। फ़िर ब्लाग लेखन जो अभी एकदम बच्चा विधा है अभिव्यक्ति की उसे मिडालाइफ़/ मिडवाइफ़ क्राइसिस की गोद में खिलाना अच्छी बात नहीं है। मुझे लगता है कि कम से कम हिंदी में जो भी ब्लागर नियमित लिखता है उसका नियमित पढ़ना/लिखना निश्चित तौर पर पहले के मुकाबले बढ़ा होगा। इसका कोई आंकड़ा टेक्नोराती में नहीं मिलेगा।
समीरलाल हवाई अड्डे पहुंचे तब भी उनको चैन नहीं है। ठेल दिये वहीं से एक पोस्ट! बताओ इत्ते ठेलू ब्लागर के रहते कोई क्राइसिस की बात करे तो कैसे उचित है?
कोई भी बेवकूफ़ चिट्ठाकारी कर सकता है- अपनी इस बात की पुष्टि करने के लिये शास्त्री जी ने आगे चिट्ठाकारी जारी रखी और कहा:
जनप्रिय होने के लिये यह भी जरूरी है कि आप जनप्रिय विषयों पर लिखें व कम जनरुचि के विषयों को जनप्रिय अंदाज में प्रस्तुत करें. यदि आप अपने दूध में गिरी मक्खी पर एक दीर्घ आलेख लिखना चाहें तो शायद ही किसी को पढने में कोई रुचि होगी, लेकिन यदि उसी आलेख को "एक बेवकूफ मक्खी जिसने एक विवाह-विच्छेद करवा दिया होता" स्टाईल में लिखें तो जनता उस आलेख पर टूट पडेगी.
शास्त्रीजी यह सावधान करना भूल गये कि इस तरह के ताम-झाम में कभी जनता आलेख के बजाय आलेखक पर टूट पड़ी तो क्या होगा? उसे बचाने के लिये क्या ताऊ आयेंगे?
ताऊ की बात चली तो सुनते चलिये। ताउ के साथ लफ़ड़ा हो गया वर्ना आप बच्चे अकबरनामा की जगह ताऊनामा पढ़ रहे होते। ताऊ को बीरबल ने चिंता के लफ़ड़े में फ़ंसा दिया वर्ना वो अकबर का राज्य हथिया लिये होते। पूरी साजिश का खुलासा आप ताऊ की पोस्ट पर बांचिये।
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
मीनाकुमारी की आवाज में आप मीनाकुमारी की इस गजल को मानशी के ब्लाग पर सुन सकते हैं। गजल का दर्द आवाज में सुनाई देता है। मानोशी ने कल अपनी आवाज में जो गजल पोस्ट की थी उसे अगर न सुना हो तो उसे भी सुन लें। आनन्दित हों लें।
मीनाकुमारी की ही एक और गजल आप पारुल की आवाज में सुनें अच्छा लगेगा।
अभय समझाइस देते हैं:
अपने हिन्दू समुदाय के लोगों को मेरा मशवरा हैं कि वे बौखलाए नहीं, संयम से काम लें। यदि आप को लगता है कि आरोपी निर्दोष हैं, और उन्हे महज़ फँसाया जा रहा है, तो देर-सवेर सच सामने आ ही जाएगा।
लेकिन अगर आप मानते हैं कि हिन्दू धर्म को बदनाम करने की इस तथाकथित साज़िश में कांग्रेस पार्टी, केन्द्रीय सरकार, और पुलिस के साथ-साथ न्याय-प्रणाली भी शामिल है तो इस पर गु़स्सा नहीं अफ़सोस करने की ज़रूरत है कि हमारे देश के बहु-संख्यक हिन्दू जन अपने ही धर्म को बदनाम करने की इस तथाकथित साज़िश में खुशी-खुशी सहयोग कर रहे हैं? और जिस समाज के इतने सारे पहलू इस हद तक सड़-गल गए हों उसके साधु-संत और महन्त बन कर घूमने वाले लोग क्या निष्पाप होंगे?
एक लाइना
मेरी पसन्द
कई दिनों से दिल मेरा गुमसुम रहता है
किसके सपने देख रहा, ये कब कहता है
तुम भी अपना दिल लेकर आ जाओ हमदम
पता तो चले तुझे देख ये क्या कहता है
आंसू पोछ्ते ही, हाँथ महकने लगते हैं
मेरी पलकों पे भी, शायद कोई रहता है
जैसे जिस्म उसका लिपटा हो मेरे बदन पे
आइना भी अब जरा घबराया सा रहता है
है अगर हिम्मत तो सच बता दो जानेमन
दिल लगाकर भी भला कोई गुमशुम रहता है
विनोद कुमार
और अंत में
कल हैदराबाद में देर तक बारिश हुई। कविताजी के यहां बत्ती गुल हो गयी। सो हमें एक बार फ़िर आपको झेलाने का मौका मिला।
कल चर्चा को देखने कम लोग आये लेकिन टिप्पणियां काफ़ी हुई। लोगों के ऊपर पढ़ने का कुछ दबाब सा रहता है। शायद लिंक पर कम ही लोग जा पाते हैं।
मसिजीवी मास्टर ने गलती बताई। गलती बताकर निकल लिये। कुछ गलती छोड़ देना कित्ता अच्छा रहता है सावधान पाठक के लिये। वह गलती बताकर फ़ट से टिपिया सकता है। हम सोचते हैं कि ज्ञानजी की आज की पोस्ट पर लिख डालें कि समर साल्ट के हिंदी अनुवाद में ’गुलाटी’ नहीं ’कुलाटी’ होता है शायद। वो मानें तो माने वर्ना अजित-अदालत में मामला पेश कर दिया जायेगा।
सुमन्तजी ने समलैंगिकता पर बात की। कुछ दिन पहले एक ब्लागर थे वे समलैंगिक थे। उन्होंने कुछ पोस्टें लिखीं। उनसे इस बात पर इंटरव्यू लेने की सोचते ही रहे गये और वे अक्रिय ब्लागर हो गये।
फ़िलहाल इत्ता ही। चर्चा’समथिंग इज बेटर दैन नथिंग’ घराने की पेशकश है। बकिया राग फ़िर कभी।
आपका सप्ताह शुभ हो।
यह तो होना ही था! ब्लॉगजगत पर किसी संकट की बात की जाये तो अनूप शुक्ल लठ्ठ ले कर उसकी रक्षार्थ सन्नध पाये जायेंगे। आखिर सीनियारिटी का सिरनामा जो निभाना है! :-)
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी रही . ज्ञान जी को इस बार बेस्ट शिगूफाकार का पुरस्कार मिलना तय है . और इनकी ट्यूब की तो खैर पूछो मत हमेशा भरी ही रहती है . :)
जवाब देंहटाएंयह तो होना ही था! ब्लॉगजगत पर किसी संकट की बात की जाये तो अनूप शुक्ल लठ्ठ ले कर उसकी रक्षार्थ सन्नध पाये जायेंगे। आखिर सीनियारिटी का सिरनामा जो निभाना है! :-)
जवाब देंहटाएंबात सीनियारिटी की नहीं है। अपनी समझ की है। ब्लागजगत में ही नहीं हर जगह मुझे सब कुछ उत्ता बुरा नहीं लगता जित्ता दूसरों को दिखता है( संभव है वे सही ही हों)। लट्ठ के लिये हमने अपने जिम्मे कुछ नहीं छोड़ा। ताऊ को मामला आउटसोर्स कर दिया। बिना दाम के चोखा काम। ऐसी आजादी और कहां?
अब तो रोजाना टिप्पणी चर्चा पढने का मन करता है . कोई पर्मानेण्ट जुगाड करिए . कोई आउटसोर्स ही हो .
जवाब देंहटाएंऔर हाँ ,अब ऐसे ही मुस्कराया करेंगे . हम भी .
चर्चा सम-सामयिक रही - खासकर मध्य-वय संकट से रक्षा!
जवाब देंहटाएं"शास्त्रीजी यह सावधान करना भूल गये कि इस तरह के ताम-झाम में कभी जनता आलेख के बजाय आलेखक पर टूट पड़ी तो क्या होगा? उसे बचाने के लिये क्या ताऊ आयेंगे?"
जवाब देंहटाएंयह तो सोचा ही न था! आज से ही ताऊ जी का हुक्का भरना शुरू कर देते है, क्या मालूम कब उन की जरूरत पड जाये!!
सस्नेह -- शास्त्री
पुनश्च: चर्चा में जो समय लगाते हो उसके लिये आभार! अधिकतर लोगों को यह अनुमान नहीं है कि चर्चा कितनी कठिन बात है. लोगों को यह लगता है कि "कोई भी बेवकूफ चर्चा चला सकता है"!! आप का क्या कहना है????
लगता है की आजकल या तो आपलोग मेरा चिटठा नहीं पढ़ रहे हैं या फिर मैं बढ़िया नहीं लिख रहा हूँ.. क्योंकि पिछले ५-६ चिटठा चर्चा में मेरा चिटठा कहीं से भी सामिल नहीं हुआ.. ना तो सन्दर्भ से और ना ही एक लाइना में.. खैर कभी ना कभी इस पर आप गौर करेंगे.. :)
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी कहते हैं - "पुनश्च: चर्चा में जो समय लगाते हो उसके लिये आभार! अधिकतर लोगों को यह अनुमान नहीं है कि चर्चा कितनी कठिन बात है. लोगों को यह लगता है कि "कोई भी बेवकूफ चर्चा चला सकता है"!! आप का क्या कहना है????"
बिलकुल सही जी.. लोग तो दिन में ४-५ चिट्ठे पढ़ लें वही बहुत होता है.. यहाँ तो १५-२० चिट्ठो का पूरा विश्लेषण आपको मिल जाता है..
लगता है की आजकल या तो आपलोग मेरा चिटठा नहीं पढ़ रहे हैं या फिर मैं बढ़िया नहीं लिख रहा हूँ.. क्योंकि पिछले ५-६ चिटठा चर्चा में मेरा चिटठा कहीं से भी सामिल नहीं हुआ.. ना तो सन्दर्भ से और ना ही एक लाइना में.. खैर कभी ना कभी इस पर आप गौर करेंगे.. :) PD
जवाब देंहटाएंप्रशान्तजी , लगता है कि आजकल आप चिट्ठाचर्चा ध्यान से पढ़ने का समय नहीं निकाल पा रहे हैं। अगर पढ़ते कल जो लिखा था:
अनुराग की इस पोस्ट पर राजेश रोशन की एक टिप्पणी का जबाब देते हुये प्रशान्त प्रियदर्शी डा. कलाम की बात का उदाहरण देते हैं:
उसके लिये हमें साधारण मानव से ऊपर उठकर माहामानव बनने कि जरूरत नहीं है.. हम अपने आम जीवन में ही जो काम करते हैं उसी को पूरी ईमानदारी से करें..
वह भी पढ़ सकते थे।
कल की चर्चा का लिंक है:
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/2008/11/blog-post_16.html
यहाँ तो बड़ी मस्त मस्त चर्चाये चल रही हैं ! वैसे तो चर्चाकार से तमाम उम्मीदे सबको रहती हैं ! पर जो कुछ आप कर रहे हैं उसको देखकर तो आपके स्टेमिना की दाद देनी पड़ेगी ! आसान नही है इतना मेनेज करना ! यहाँ तो शाश्त्रीजी के आदेश अनुसार १० टिपनी करते हैं उसमे ही जान निकल जाती है ! बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं@शाश्त्रीजी , आपतो ताऊ को हुक्का छोड़कर चिलम ही पिलवा दीजिये ! ताऊ उसमे ही काम चला लेंगे ! पर तम्बाकू खांटी होनी चाहिए ! :)
bouth he aacha wprk keep it up
जवाब देंहटाएंvisit my site shyari,recipes,jokes and much more visit plz
http://www.discobhangra.com/recipes/
http://www.discobhangra.com/shayari/
बहुत बढ़िया रही चिट्ठाचर्चा.
जवाब देंहटाएंभारतीय वही धाकड़ जो ओबामा से आलू मंगवा ले. और इस मामले में अपने पुराणिक जी की गिनती धाकड़ भारतीयों में होनी चाहिए. पहले बुश को हड़काए रहते थे.
माने ये कि अमेरिकी राष्ट्रपति से जब चाहे जो करवा सकते हैं. सुना है ओबामा व्हाइट हाउस देखने गए थे. बुश बाबू भी बोले होंगे कि; "पुराणिक जी से बचकर रहने की जरूरत है तुम्हें."
" great work, meenakumaree ke gazlon ke barey mey jankr accha lga"
जवाब देंहटाएंRegards
आपका क्या कहना है ?
जवाब देंहटाएंभईया,मुझे तो बहुत कुछ कहना है..
लेकिन, अभी नखलऊ निकलना है,
वैसे ही देर हो गयी है, एक साँढ़ गेट रोके अड़ा था,
कई जन उसको किसी तरह काबू करके साइड में ले गये हैं ।
लट्ठ ताऊ का पेटेन्ट है, राज भाटिया छुट्टियों पर निकले हैं, और यहाँ..
बिटिया को उड़ान भरने की लेट हो रही है,
जब तक हमारे सारथी जी, फ़्लाइट का कोई अतिशुद्ध हिन्दी विकल्प नहीं निकालते,
तब तक आप अपनी बेटियों को उड़ने से कैसे रोक सकते हैं ?
सो, अभी चलता हूँ !
अगर बिना चर्चा पढ़े, टिप्पणी करने की होती है..
तो यह वही टिप्पणी है..
मैं तो अपनी चौपाल पर केवल सूचना देने आया था ।
सो, दे दिया.. वैसे भी मुझे लंबी टिप्पणियाँ करने की आदत तो है, नहीं ?
अरे याद आया, मिलने तो कविता जी से आया था, मिले गुरु अनूप !
कविता जी के यहाँ बिजली गुल हो गयी..
यह कोई सांकेतिक अभिव्यक्ति है, क्या ?
जनता इसका हिसाब न माँगे, फिर भी बताना आपका फ़र्ज़ बनता है न, जी ?
अरे हां.. माफी गुरूदेव माफी.. :)
जवाब देंहटाएंअनामदास की समझ पर देवानन्द का वह डाय्लाग याद आया - मैं समझता था कि कोई समझे न समझे तुम समझे तुम समझ जाओगी पर समझ को देखो कितनी नासमझ निकली..[गाइड]
जवाब देंहटाएंसमीर लाल जी उडन तश्तरी के अड्डे पर तो टी वी रिपोर्टर की तरह लगे है।
गुल ने चमन से पूछा कि बत्ती क्यों गुल है तो अब कविताजी क्या करे भला! फिर भी इंतेज़ार रहेगा...
आज तो एक समानान्तर चर्चा टिप्पणियों में हिलोरें ले रही है, जहाँ अनूप जी को जबरन बुला-बुला कर टिप्पणियाँ और और लिखवा ले रही हैं।
जवाब देंहटाएंआज तो अनूप जी आप ने सच में खूबनिश्चिन्त कर दिया। पर फिर भी अमर कुमार जी आशंकित हैं....। अब ऐसी आशंका का क्या किया जाए? वे अब से सोमवार नियत होना नहीं जानते तो ऐसे में बत्ती गुल होना की अभिधा भी उन्हें व्यंजना(?) प्रतीत होती है।
हिसाब तो वैसे अनूप जी से माँगा गया है,अभी तक उन्होंने लिखा नहीं था, सो इतना मैंने लिख डाला। यों उनके निराकरण की मुझे भी प्रतीक्षा है ताकि अर्थ का अनर्थ होने से बचे।
आज तो बस टिप्पणियो का आनंद लिया.. चर्चा बिल्कुल शुद्ध रही.. बिना मिलावट
जवाब देंहटाएंबिटिया को उड़ान भरने की लेट हो रही है,
जवाब देंहटाएंजब तक हमारे सारथी जी, फ़्लाइट का कोई अतिशुद्ध हिन्दी विकल्प नहीं निकालते,
तब तक आप अपनी बेटियों को उड़ने से कैसे रोक सकते हैं ?
shyaad hi issae behtar koi tippani ho
देर से आने के लिए मुआफी ......क्या कहूँ टिपण्णी करने से भी घबराता हूँ की कही किसी को सूगर न हो जाये ...कुश को हस्पताल छोड़ना था इसलिए देरी हो गयी .....खून देने गया था वहां......उसका ग्लूकोज़ का पैकेट मै ले आया हूँ....कोई खायेगा ?बड़ा भला लड़का है बेचारा .....कितनी नेकी करता है....?अरे ..कौन है भाई......????जरा रुकिए अभी आता हूँ...ये ग्राफ पैरो में बहुत उलझ रहे है .ज्ञान जी जरा हटायेंगे !
जवाब देंहटाएंआज कुछ नहीं कहना सब कुछ अदालत में कह आए हैं, कहने को कुछ बचा नहीं।
जवाब देंहटाएंदेर हो गई आज यहाँ आने में पर खूब फुर्सत से पढ़ी चर्चा भी और टिप टिप टिप्पणियां भी :)
जवाब देंहटाएंचर्चा तो चर्चा है आज कि टिपण्णीयाँ भी कम रोचक नहीं :-)
जवाब देंहटाएं