चर्चा करने बैठ गये हैं, बोलो आज लिखा क्या जाय
गुंडे काबू भये विवेक के ,मुश्कें उनकी दई कसवाय
चिट्ठा आठ जुड़े ब्लागर के,बहुतै हरष हुआ है भाय,
ई-गुरू आवैं औ टिपियावैं,वर्ड वेरीफ़िकेशन देंय हटवाय!
एकलखिया भयेपांच साल में, टाप गियर फ़िर दिया लगाय,
दुई सौ दिन में दुई लखिया भे, सरपट ब्लागिंग होती जाय।
हियां की बातैं हियनै छ्वाड़ौ अब आगे का सुनौ हवाल,
जबलपुर को डबलपुर सु्नि, मचिगा भैया बड़ा बवाल,
भाई महेन्द्र सेंटी हुईगे,लै लिया बड़े-बड़ेन का नाम,
हमरे शहर की कहासुनी में, लेना मौज न तुम्हरा काम,
मौज उड़ाओ मेरे शहर, ऐसी तुम्हहिं मुनासिब नाय,
मातृशहर हित सब कुछ करिबे,ब्लागिंग करे चहै न भाय!
केरल की अब बात बतायें, मुथप्पन देवता का है धाम,
मदिरा मांगे, मौज मनावैं, पुजारी थीयम का ले नाम,
खरहा के संग शेरवा मिलिगा, लगता गठबंधन सा झाम,
शेरवे का तो पेट भरा है , वर्ना करता काम तमाम,
शास्त्रीजी थे ज्ञानी बहुतै, ज्ञानदत्त जी कम ज्ञानी नाय,
जो जो लिखिगे गांधीजी पे, मय फोटॊ उसको दिया सटाय।
घटा घिरी औ नीर बहि गवा, बिजली कहूं गिरी भन्नाय,
श्रद्धाजी ने देखा इसको, और किसी को नजर न आय,
पश्चिम का एक और चोंचला, अपने यहां धमका आय,
’वेडिंग रिंग डे’आज मनाओ,कल का कुछौ कहा न जाय,
जिंदगानी एक कितबिया है, इसकॊ हड़बड़ बांचो भाय,
छुपा-छुपौव्वल खेल-खाल के, चांद त्रिवेणी मां घुसिगा जाय!
चोरी किये नहीं थे लेकिन मिली अंगूठी जेब में आय,
माथा ठनका भाटियाजी का, रोयें सभी खड़े भये भाय,
ताऊ जी के क्या कहने हैं,छीनी शास्त्रीजी की बात,
बतछीनी पर पोस्ट धांस दी, पैसा छीनत तो भेजत हवालात,
सानिया रूठ गईं पार्टनर से, धक्का बड़ा दिया लगवाय,
मित्र संग गये पिक्चर भूपति, सानिया रह गईं मुंह लटकाय।
जंगल में जो फ़ूल खिले हैं बेजी उनको रही दिखाय,
कुत्ते थे जो भिड़े हुये सब, जाने किधर, कहां गये भाय
वर्षा बोलीं अपने मन की पी लेंगी वो चाय बनाय,
लेकिन लफ़ड़ा है विवेक को,चाय बनानी आती नाय,
इस सब में शाम हो गयी, शब्द सफ़र में चले मुस्काय
बस्ती-बस्ती होते-होते, पहुंचे अंत में बाजार में आय!
मन खाली पर थका नहीं है, ऐसा है बस लक बाई चांस
नेताजी भी होंय रिटायर, पैंसठ बाद न फ़टकें पास,
बड़े-बड़े खतरे देश के ऊपर,मीडिया उनमे अव्वल आय,
लोकतंत्र को बिसरा के सब, गढ्ढे में इसको रहे गिराय!
छोटी बातों पर दिल रोता, तुमको पता सभी है यार
लेकिन किसकी करें शिकायत,ये सब लफ़ड़ा है बेकार!
ताऊ गोटू फ़िर से भिड़िगे,आगे बढ़ी लड़ाई यार,
गोटू ने पटका है ताऊ को, आगे और बढ़ेगी रार,
यदि टिपियाते हो चिट्ठे पर, रहो फ़ोन को फ़िर तैयार,
राह कठिन और पथरीली से, तुम ऊबर गये क्या यार
जुगनू दिन में भी दिखते हैं, कैसी बात कहत हो यार,
मान लो भैया शास्त्रीजी की, इनसे कौन करे तकरार!
क्षमा करें डा.मान्धाता, ये ब्लागिंग है एक मुक्ताकाश,
तरह-तरह के रंग खिले हैं,भांति-भांति के हास-परिहास,
मत बांधो इसे किसी नियम,छपने देओ दनादन ब्लाग,
अभी तो ये बस चिंगारी है, बन जायेगी सुन्दर आग,
होय खलीफ़ा चाहे नवा हो, सब ब्लागर का है प्रतिभाग,
शर्ट सफ़ेदी पर मत जाइये, देखिये कैसे बढ़ेंगे ब्लाग।
रंजू की साया पर सहजवाला ने सहज विचार किया,
नटखट बच्चे ने पब जाने से इंकार किया,
अजदक ने भी बड़े लेखकों सा, एक पतनशील विचार दिया,
क्या विवाह ऐसे ही पर, रिचा ने आज विचार किया,
इसके आगे और कहें क्या, पहले क्या कम अत्याचार किया,
चिट्ठाचर्चा करते-करते, आल्हा का बोरिंग-बेरंग वार किया।
एक लाइना
- क्या च्यूईंग चबाना ठीक है ?: हां, अगर चबाने को कोई देता रहा
- विनोद अग्रवाल का भाव-प्रवाह : हम भी बहे चले जा रहे हैं
- देवता यहाँ भी मदिरा माँगते हैं : आदत से लाचार हैं जी
- “ताऊ ने छीन ली –- मेरे मूँह की बात” : ताऊ में नैतिकता, आदर्श, अनुशासन, और चरित्र ठूस ठूस कर भर दो उसके होश ठिकाने आ जायेंगे
- नेताओं की भी रिटायरमेंट एज होनी चाहिए ..... : मरते ही रिटायर तो हो जाते हैं बेचारे
- देश की संस्कृति बचाओ यार : बचाते हैं तब तक तुम शुरू करो यार
- लोकतंत्र के गालों पर भारद्वाज का तमाचा : चटाक
- मन जब अस्थिर होता है... : तो कविता लिखना लाजिमी हो जाता है
- मुझे चांद चाहिए....!!! :कित्ते किलो?
- ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ :आना जाना बाद में होगा पहिले मामला निपटाओ
- सिर पर रखकर लाया करते थे दूध की टंकियां :टंकियों में ढक्कन भी लग होते थे
- वैलेंटाइन्स डे की खुशखबरी :प्रेमी जोड़े को पकड़ने पर होगी कार्रवाई
- गर्ल्स कांट पब साला : ई क्या बोलता लाला?
- "इस्माईल पिंकी !" : बोले तो मुस्कराओ न
- बडी खराब चीज है प्यार, जरा इससे सबक लें, :और जब करें मन लगा के करें
- प्लास्टिक पर रोक:प्रभावी तो बात बने
- क्या एनजीओ वाली लड़कियां बड़ी चालाक होती हैं? :एनजीओ वाले बतायें
- लड़की पत्रकारिता की दहलीज पर!: अब आगे भी बढ़ें दहलीज से
- मंदी में प्यार: जिगर वालों का काम है यार!
- बिन बुलाई, एक अपूर्ण कविता:पूरी होगी तो कित्त दुखेगी!
- एक-समारोह की चल-रिपोर्ट : आगे भी बहुत चल सकती है कृपया नोट करे!
और अंत में
अब और कुछ कहने को है नहीं फ़िलहाल! आपको शुभकामनायें। थोड़ा सा हंसे , ढेर सारा मुस्करायें। इसमें कोई समस्या हो तो निस्संकोच बतायें!
आप मेरे जबलपुर को बदनाम कर रहे हैं .
जवाब देंहटाएंआल्हा लिखकर मौज ले रहे हैं .
ये अच्छी बात नहीं है .
हम जबलपुर वाले यह सहन नहीं करेंगे . आखिर हम राज ठाकरे के ताऊ जो हैं !
इस तरह की चर्चा में तो ज्यादा टाईम लगता होगा, लेकिन जबरदस्त आल्हा उदल लिख डाले। चुपके से कान में ये भी बता दूँ आल्हा उदल की हमें कोई ज्यादा जानकारी भी नही है। लेकिन हम लय में चर्चा को कविता की तरह पढ़ते गये और ऐसे ही मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंलाजवाब और शानदार आल्हा. मजा आगया जी आज की चर्चा में.
जवाब देंहटाएंघणी रोचक बन पडी है. बधाई.
रामराम.
हंसे हंसे जल्दी हंसे
जवाब देंहटाएंवरना मुस्कराये
कोई समस्या हो तो
शुक्ला जी हैं न मौजूद
इनके बिना चिट्ठाचर्चा का
नहीं है कोई वजूद।
आपको आल्ह कवि की उपाधि मुबारक !
जवाब देंहटाएंmahodaya,
जवाब देंहटाएंaalha padh kar maja aa gaya... sath hi tamam yaade bhi taza hui..
agar aalha ki book ho aapke pas to ek scanned copy laga de chitthe me... abhari rahunga.
ek bar fir se thanks...
आल्हा तो बड़ा जबरदस्त रहा ....मजेदार चर्चा
जवाब देंहटाएंजैसा कि कहा जाता है हमेशा कि आज की चर्चा कुश के हिस्से की है। कुश हमेशा नये प्रयोग के पक्षधर रहे हैं सो इसे इस बार आल्हा इस्टाइल में लिखने का प्रयास किया गया। इसके पीछे विवेक सिंह का हाथ है।
जवाब देंहटाएं""वाह वाह मजेदार .....आपकी मेहनत सफल हुई साथ मे विवेक जी की भी पीठ थपथपाई जाए....सफल प्रयास..."
Regards
हा हा बहुत ही मज़ेदार दिन रहा अनूपजी, ज़ोरदार आल्हा हुए विवेक जी के भी और आपके भी। कुश जी को भी बहुत बधाई। चिट्ठाचर्चा तो आपने बहुत शानदार की है। मज़ा आ गया। सराहनीय और सम्माननीय। साहित्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ब्ला॓गजगत के लिए तो उपलब्धि ही कही जावेगी।
जवाब देंहटाएंमौज हो गई, मौज ले ली गई, (डबलपुर) वालों ने ख़ुद मौज उड़वा भी ली। अब मगर राज ठाकरे का रिश्तेदार आदि न बताया जावे जैसा विवेकजी ऊपर टिप्पणी कर रहे हैं। आपकी क्या राय है, अब पटाक्षेप हो ?
कविता मय चर्चा.. क्या बात है.. ये अंदाज भी भाया..
जवाब देंहटाएंअच्छा तो ये आल्हा था!
जवाब देंहटाएंआल्हा का क्या है न कि बिना सुने समझ में नही आता
अनूप जी बैठे चर्चा लिखने,
जवाब देंहटाएंपता चला कि कलम लगी है बहकने.
कलम लगी है बहकने,
तो भी जायगी कहां,
है तो अनूप जी की ही कलम,
पहुंचेगी चर्चा के ठौर पर ही!!
आज तो आप ने कमाल कर दिया !!
सस्नेह -- शास्त्री
पुनश्च: आपके साथ संगत का असर है भईया, हमारी कलम भी आज कुछ बहकी ही बहकी चल रही है!!
हमारा लिखकर काहे खाली फोकट में हमे बवाल भाई से बधाई दिला रहे है.. और ये विवेक बाबू से ज़रा दूर रहिए.. कविताओ के कीटाणु फैल रहे है.. पहले ताऊ को शुरू कराई फिर गुरुवर अमर कुमार जि को और अब आपको भी..
जवाब देंहटाएंचर्चा बढ़िया रही जी..
दोनों कार्टून एक से एक गजब के चुने आपने!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया काव्य रूपी चर्चा .बेहद मेहनत की गई है इस में ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंपढकर चर्चा आपकी,
जवाब देंहटाएंरोम-रोम खिल जाए।
मेहनती चर्चा, एक बहुत उम्दा आल्हा. आनन्द आया.
जवाब देंहटाएंसब कुछ बहुत बढ़िया. (अगर माईनस विवेक सिंह के कमेंट के पढ़ा जाये तो.)
इस निराले अंदाज की करोड़ों बधाई फ़ुरसतिया देव....
जवाब देंहटाएंऐसी चर्चा का तो आल्हा-कैसेट बन जायेगा. हमारे इलाके में तो आजकल आल्हा के कैसेट खूब बिक रहे हैं.
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिये धन्यवाद.
कवितामय चर्चा अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंहंस तो रहे हैं जी लेकिन बगल वालों को लग रहा है की इसके दिमागी कल-कांटे ढीले तो नहीं पड़ रहे :-)
जवाब देंहटाएंयह तो छः सितारा चर्चा है और वहां पर तो केवल पांच ही है। सितारे कम पड़ गए। खैर दिन में ही तारे देख लेंगे। अच्छी, बहुत ही अच्छी चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत की चलो निकल ली आल्हमय किया संसार.......
जवाब देंहटाएंइतना लंबा आल्हा पढ़के भाया मेरा सर चकराय......
बहुत बहुत जबरदस्त चर्चा.लाजवाब...
अरे वाह आज की चिट्ठा चर्चा तो कमाल है और एक नए अंदाज मे भी ।
जवाब देंहटाएंअसभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
जवाब देंहटाएंतो फ़िर इस पोस्ट का क्या करे भाई "साला ""गाली का प्रयोग .....हे मोडरेटर तुम सुन रहे हो .....ऐ भाई.........
जवाब देंहटाएंग़ज़्ज़ब..
पहिले तो यह पृष्ठ बुकमार्क कर लूँ,
शायद शनैः शनैः हृदयंगम भी हो जाय
तो टिप्पणीकार जी उतरो अखाड़े में..
ऎसी करी ढिंचक मस्त चर्चा आजु शुकुल फ़ुरसतियाय
टिप्पणी देत झाँकै बगलि सों दाँत निपोरि खड़े हैं भाय
टूटा फाटा शब्द सहेज़ते तबहूँ फिसलत सँभरत है जाय
उतरा नवा खिलाड़ी अखाड़े मा फिरौ देय रहा टिपियाय
जीभ चिपकी जा तालू मा चरचा ऎसी किहौ है भाय
बोलो हरि गँगा :)
अनूप भैय्या बड़े लिखईया
जवाब देंहटाएंनित नित नई विधा अपनाए
चिटठा चर्चा मे आल्हा देखा
देख मन प्रफुल्लित हो जाय
आल्हामय चिच! चैता या बिदेसिया क गवाई कब होये?!
जवाब देंहटाएंवैसे टपाटप इतने ब्लॉग बन रहे हैं कि सोहर गाना चाहिये!
जवाब देंहटाएं