रोज़ सुर्ख़ियो में रहने वाले ब्लॉगर्स पता नही कहा चले गये है.. ना कोई कमेंट में नज़र आ रहा है ना कोई पोस्ट में.. जो आ रहे है.. वो कविताए ला रहे है.. क़िस्से ला रहे है..
उन्मुक्तजी सुर्खियों में रहने वाले ब्लागर तो नहीं हैं लेकिन ब्लाग जगत पर उनकी निगाह रहती है। उन्होंने सारे राम सेना द्वारा पब जाने पर लड़कियों की पिटाई , एक महिला पत्रकार द्वारा उनका विरोध करने के तरीके और अन्य मसलों पर विचार किया। इस तरह की घटनाओं पर चुप रहने का कारण वे बताते हैं:
बहुत से चिट्ठाकार, कुछ व्यक्तिगत विवशता के कारण, ऐसे विषय पर लिखना वा टिप्पणी करना नहीं पसन्द करते हैं। कई विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि इस पर विवाद बेकार में तूल पकड़ेगा, बढ़ेगा। चुप रहने पर जल्द ही समाप्त हो जायगा और चिट्ठाकार पुनः उन विषयों पर लिखने लगेंगे जिसकी हिन्दी चिट्ठाजगत को आवश्यकता है। लेकिन इस घटना पर लिखने और टिप्पणी न करने का यह अर्थ बिलकुल न लगाया जाय कि सब मैंगलोर पर महिलाओं के साथ हुऐ बर्ताव को उचित मानते हैं या फिर महिलाओं के द्वारा शुरू किये गुलाबी.. भेजने के विरोद्ध में लिखी गयी बातों से सहमत हैं।
विरोध के तरीके पर उनकी सोच है
शराब का सेवन न केवल महिलाओं के लिये पर पुरुषों के लिये भी अनुचित है। इसे रोकने यह तरीका नहीं है जो कि मैंगलोर पब में अपनाया गया। मेरे विचार से एक अच्छे अन्त पाने के लिये यह गलत साधन है। यह न केवल दर्शन, पर कानून की दृष्टि में भी गलत है।
उन्मुक्तजी को बांदा की गुलाबी महिलायें और उनका मकसद, उनका ऐतराज पसन्द आता है।
अंकित ने हिमांशु का साक्षात्कार पेश किया। ब्लागिंग से संबंधित विविध विषयों पर उनके विचार पेश किये। इंटरव्यू पढ़कर मुझे काफ़ी विद कुश याद आये। अरविन्द मिश्र, जिनकी लेखन शैली के हिमांशु मुरीद हैं, ने भी हिमांशु के इंटरव्यू को पढ़ने की सिफ़ारिश की है।
जब सारा देश वेलेंटाईन दिवस मना रहा था तब कुश भेलपुरी पोस्ट कर रहे थे, पहेलियां बुझा रहे थे। अपनी पोस्ट पर उन्होंने कमेंट का आप्शन नहीं रखा। कारण जानने के लिये आप कुश की पोस्ट देखें।
ताऊ की शनीचरी पहेली के जबाब आज बताये गये। ताऊ की पत्रिका की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। शनीचरी पहेली पर आज तक कुछ 119 लोगों के कमेंट आये हैं। आशीष खण्डेलवाल, कल्पना जी और सीमाजी के जुड़ने से इसकी प्रस्तुति में और विविधता आई है। आज किले के बारे में जानकारी दी है अल्पनाजी ने, खासबात बताई है आशीष खण्डेलवाल ने और प्रबंधन कथा सीमाजी ने पेश की है।
सुरेखा यादव एशिया की पहली महिला ट्रेन डाईवर बनीं। सुरेखा यादव और भारतीय रेलवे को बधाई!
एक व्यक्ति, छ: महीने और साठ हजार रुपल्ली में क्या-क्या मिल सकता है? यह सवाल है रविरतलामी का। जबाब भी उन्हीं से सुनते चलिये-
साठ हजार रुपए और छः महीने में एक पूरी दुनिया मिल सकती है – अपनी मातृ-भाषाई के संपूर्ण वातावरण में एक पूरी की पूरी कम्प्यूटिंग दुनिया. आपकी भाषा चाहे कोई भी, कितनी भी अजनबी हो...
भाईजी आपसे अच्छा तो आपका ब्लाग है जाने किसने यह बात अजित वडनेरकर से कही और उन्होंने सच मान ली। अरे भाई आप अच्छे होंगे तभी तो ब्लाग अच्छा बनेगा।
22 फ़रवरी को रांची में हिंदी चिट्ठाकार सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। आप भी शामिल होइये न!
टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी:
टिप्पणी: हिन्दी चिट्ठाजगत में एक मजेदार बात यह है कि एक दो नारियां हैं जो किसी पुरुष चिट्ठाकार का विरोध करते हैं तो बचे कई पुरुषों को एकदम मूत्रशंका होने लगती है और वे तुरंत इन नारियों के चिट्ठों पर जाकर मथ्था टेक आते हैं कि “देवी, हम ने गलती नही की, अत: हमारे विरुद्ध कुछ न लिखना”. यही चड्डी-कांड में आज हो रहा है..
शास्त्री जे सी फिलिप
प्रतिटिप्पणी:एक समझदार आदमी जब इस तरह की बात करे तो क्षोभ होता है... उन्हे ये बात लिखने की क्या ज़रूरत थी.. उनकी इस टिप्पणी पर मैं भी उन्हे ऐसा जवाब दे सकता हू... जिसे पढ़कर उनकी साँसे फूल जाएगी.. मगर मेरे नैतिक मूल्य मुझे इसकी इजाज़त नही देते..
कुश
कुश की भेलपुरी पोस्ट से
एक लाईना
- “ भाईजी, आपसे अच्छा तो आपका ब्लाग है...” : कौन कहता है यह? हमसे बात कराओ
- "ताऊ" साप्ताहिक पत्रिका अंक - ९: ठीक चार बज के चवालिस मिनट पर निकला
- अगर मेरा भाई होता तो भी नही बुलाती उसको :ये सुनना पड़ा अनिल पुसदकर को
- अवनीन्द्र को सरप्राइज और रेस्टोरेंट केवल परिवार के लिए : ज्ञानजी के लिये भी कुछ छोड़िये भाई!
- लईका के शहर के लागल बा हवा: ऊ बिना दहेज के शादी की बात करत है
- रिक्शेवाले का किराया:देने में लोग हमेशा आनाकानी करते हैं
- वैलेंटाईन डे नेशनल फ़ेस्टीवल बने :संसद में विचार रख दिया जाये!
- देश को अरुंधती की क्या जरुरत ?? : बनी रहन दो भाई न जाने कब जरूरत निकल आये
- हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू :कौन चश्मा है जी जिससे खुशबू दिख जाती है?
- लुक ऐ बिट हायर : तब असल बात समझ में आयेगी
- चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन पर मुकदमे की फाइल फाड़कर फेंक दी :बताओ कित्ते रुपये का कागज का नुकसान हो गया होगा
- प्रेम पर्व और प्रिये तुम : दोनों में लफ़ड़ा है
- किर्र ..किर्र.....किर्र..किर्र : ये समय का घुन है जी
- ये ‘‘डीसैक्सुअलाइजेशन’’ क्या बला है ? : पता होता तो आपसे क्यों पूछते ?
- डिकी आज रात बाहर रहेगा, तुम दस बजे के बाद आना : और अपना रूमाल वापस ले जाना
- ओल्डीज के लिये ब्लॉगिंग स्पेस : अभी तो हम जवान हैं
- किसी से ना कहना..: बस मेरे वेलेन्टाईन बने रहना
- कहना बहुत कुछ चाहता हूं.... :अरे कुछ तो कहते जी
- दूसरी प्रति- बेबात का बैकअप:आदतन है जी यह तो
- तेज तर्रार लोग क्या करते है??: बात-बात पर शास्त्रार्थ
- माटी के बेटों की खामोशी टूटी:सूखे खेतों ने थोड़ा सा पानी माँगा
और अंत में
आज की चर्चा कविताजी को करनी थी लेकिन उनके अस्वस्थ होने के कारण हमें करनी पड़ी। आशा है वे शीघ्र स्वस्थ होंगी।
आशा है कि आपके लिये सप्ताह की शुरुआत शानदार होगी। फ़िलहाल इतना ही।
आपकी नजर से कोई बच नही सकता -नजर न लगे!
जवाब देंहटाएंबात-बात पर शास्त्रार्थ !!!
जवाब देंहटाएंसच है ..... जनाब!!!
बहुत सुंदर!! लेकिन क्या बात है आज आप बडे थके नजर आ रहे है!! दोचार पेराग्राफ में ही निपटा दी चर्चा !! किसी दिन आप से भी शास्त्रार्थ का दो हाथ करना पडेगा कि चर्चा की कम से कम लम्बाई कितनी हो!!
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
चर्चा रोचक है......छोटी है मगर दमदार है....
जवाब देंहटाएं@ कविताजी को शीघ्र स्वस्थ लाभ के लिए शुभकामनाये . "
Regards
सबसे पहले आज चिटठा चरचा ही पढ़ी और पूरे ब्लॉग जगत का हाल पता चल गया । :)
जवाब देंहटाएंऔर एक लाईना तो हमेशा ही अच्छी होती है पर मे हमने देखी ...... पढ़कर हँसी नही रोक पाये ।
देश को अरुंधती की क्या जरुरत ?? : बनी रहन दो भाई न जाने कब जरूरत निकल आये
जवाब देंहटाएंthis is too good mr anup
बात-बात पर शास्त्रार्थ ???
जवाब देंहटाएंअब ज्यादा उचित रहेगा?
सत्य वचन महाराज जी,हम भी तूफ़ान के थम जाने का इंतज़ार कर रहे है,वैसे हमने फ़टी लंगोटी वालो यानी देश के समस्याग्रस्त लोगो का पक्ष रखा था मगर वो शायद कांव-कांव मे कहीं दब गया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा शुक्रिया
जवाब देंहटाएं"हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू :कौन चश्मा है जी जिससे खुशबू दिख जाती है?"
जवाब देंहटाएंमोटे फ्रेम वाला चौडा सा चश्मा चाहिए इसके लिए. साथ में सफ़ेद कुरता-पायजामा पहने हों तो खुशबू और साफ़ दिखती है.
एक लाइना शानदार हैं.
"तेज तर्रार लोग बात-बेबात शास्त्रार्थ करने लगते हैं ."
जवाब देंहटाएंआप्पडिया ?
फिर तो इसका उल्टा भी सत्य होगा :
" जो लोग बात-बेबात शास्त्रार्थ करने लगते हैं उन्हें तेज तर्रार समझा जाता है ."
कविता जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ !
टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी अच्छी लगी. यदि मेरा एक "जनरल" प्रस्ताव कुश को व्यक्तिगत रूप से दर्द पहुंचाता है तो सवाल यह है कि ऐसा क्यों!
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
चर्चा बढ़िया है हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंकविताजी को शीघ्र स्वास्थय लाभ के लिए मंगलकामनाऐं.
चर्चा छोटी जरुर लग रही है पर लगता है होली का असर इस पर छाने लगा है जो अगली एक दो पोस्ट मे निखर जायेगा.
जवाब देंहटाएंअच्छा है अब इन प्रकरणों से होली की तरफ़ बढा जाये.
एक लाईना बदी चकाचक है जी.
कविता जी के स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं.
रामराम.
तेज तर्रार लोग शास्त्रार्थ करते हैं। --- यही तो जिन्दगी का शिलाजीत है! :-)
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंप्रकट कृपाला..
चुनि देंत हवाला
निजभाखा हितकारी
बड़े दिनों से कनपुरिया चर्चा को मिस कर कर रहा था..
आज मन मुदित च किलकित होता भया
तरंग में मत बह
रे मूरख टिप्पणीकर्ता
जाकर शास्त्रार्थ.. तेज-तर्रार.. निष्पक्ष.. वगैरह वगैरह के संदर्भ लेकर आ
फिर इस ठौर पर अपनी तुकबन्दी भिड़ा
सो, संप्रति.. " स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें,छोटन के उत्पात को सहते रहें, लिखते रहें, यदा कदा मार्गदर्शन देते रहें । "
विवेक जी, नमस्कार
लौट आईये न !
चर्चा-चेतावनी:
शास्त्रार्थ ब्लागिंग के लिये हानिकारक है ।
बढिया चर्चा के लिए बधाई। कविताजी शीघ्र स्वास्थलाभ कर लेखन में लौटें। कल मंगलमय चर्चा का इंतेज़ार:)
जवाब देंहटाएं>हम तो शास्त्रार्थ के काबिल नहीं हैं जी; फिर भी-
कुछ कहने पे तूफान उठा लेती है दुनिया
अपनी तो ये आदत है कि कुछ नहीं कहते...कुछ नहीं कहते..चुप नहीं रहते...:)
शास्त्रार्थ से बचने का एक तरीका ये हो सकता है कि ब्लॉग पर भी एक तख्ती टांगी जाए जिस पर बतर्ज़ ताऊ (हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! ) लिखा रहे :- यहाँ शास्त्रार्थ न करें, यहाँ सभी शास्त्री हैं. :))
जवाब देंहटाएंतेजतर्रार की परिभाषा क्या होनी चाहिये? यह आप तय करें… दो साल की ब्लॉगिंग यात्रा के दौरान मेरा अनुभव तो यह रहा है कि यदि आप "वरिष्ठ"(?) और "गम्भीर"(?) चिठ्ठाकार कहलाना चाहते हैं तो अव्वल तो आप किसी ऐरे-गैरे चिठ्ठाकार के लेखन पर कोई टिप्पणी ही न करें, यदि करें भी तो इस सलाहियत भरे अन्दाज में कि लिखने वाला आत्महत्या के बारे में सोचने लगे, और वरिष्ठ-गम्भीर बनना भी इतना आसान नहीं है, जैसे ही कोई खतरनाक किस्म का विवाद उठे, बस नरसिंहराव की तरह मुँह में चाकलेट डालकर मौनी बाबा बन जाओ, अब चॉइस आपकी है कि आप तेजतर्रार बनना चाहते हैं या गम्भीर?
जवाब देंहटाएंबढ़िया है जी ! बाकी लोग अपना विचार रख ही रहे हैं, हम बस पढ़े जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंअसहमतियों के दौर इन दिनों इस कदर बरपा है की हर शै पर असहमति है शुक्ल जी ...अब चौबे जी को टी-२० मैच से भारतीय संस्क्रति खतरे में नजर आती है .ओर दुबे जा रोना ये है की इसे २० ओवर का न होकर १० ओवर का कर दिया जाये .ससुरा टाइम ओर बचेगा .ओर रोमांच भी ज्यादा होगा.....छब्बे जी रोज मैच देखकर पे इसका मजा भी उठाते है ओर अपना बोर्ड दोनों ओर खिसका देते है ..
जवाब देंहटाएंकभी हमारे एक मित्र कहा करते थे ....."प्रशंसा से किसी को भी जीता जा सकता है ओर आलोचना से किसी को भी हारा "....लगता है वे ठीक कहते थे ....
.खैर आपको एक बोध कथा सुनाता हूँ...
जिसमे दो युवा सन्यासी नदी पार कर रहे होते है तो उन्हें रास्ते में एक युवती मिलती है जो आग्रह करती है की उसे भी नदी पार करा दी जाये .एक सन्यासी उसे अपनी पीठ पार बैठा कर नदी पार कराता है ...कुछ दूर चलने के बाद आश्रम के निकट पहुँचने पार दूसरा सन्यासी उसे कहता है "मै गुरु जी तुम्हारी शिकायत करूँगा तुम ने एक जवान स्त्री को छूआ ...तो पहला सन्यासी कहता है ...अरे तुम अभी भी उसे पीठ पार लादे घूम रहे हो मै तो उसे मीलो पीछे छोड़ आया "....
अब जिसको जो अर्थ निकालना है ,निकाल ले .....जैसा की हमारे इन्दोर वाले ताऊ जी कहते है "राम -राम "
बहुत ही बढ़िया सार्थक चिठ्ठा चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंचश्मे की बात तो आप गुलजार से पूछिए जिन्होंने ये गाना लिखा...हमने तो बस टाइटिल के लिए उडाया है :) चर्चा अच्छी लगी...हम तेज तर्रार तो हैं नहीं कि शास्त्रार्थ करने लगे...हाँ टिप्पणी कर सकते हैं, वही कर रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंमुझे सुर्खियों से घबराहट होती है।
जवाब देंहटाएंफिर से लौटा हूँ तो क्या देखता हूँ की कुश बिल्कुल तमतमाए हुए हैं और अपनी पोस्ट पर टिप्पणी सुविधा बंद कर रखा है -अरे कोई तो मनाये इस नौजवान को !
जवाब देंहटाएंजै जै..
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बढ़िया। सबकी बातें पसंद आईं पर अनुरागजी और सुरेशी जी की बात ने गंभीर कर दिया...दोनों को हम पसंद करते हैं...
तेज तर्रार लोग बात-बेबात शास्त्रार्थ करने लगते हैं
जवाब देंहटाएंऔर बाकी चिट्ठा चर्चा मेँ उलझे रहते हैँ