ज्यों उतरे एयरपोर्ट पर,थी गाड़ी भी तैयार,
शहर की बुराई के लिये लोग मुंबई भागे चले जाते हैं।
घूस कराती काम को,घूंसा होश उड़ाया,
वेलेंटाईन का नाम सुनते ही होश उड़ जाते हैं।
साये को अपने खटकती दिखती हूँ मैं,
पहले का लिखा देखने पर, उलझन सी होती है
अमित दिखे और चुप रहे ऐसा हो नहीं सकता
गुप्तगू में समय गुजरता गया पता ही न चला।
हड्डी का गठबंधन हटे, पोर-पोर दुखि जाये।
चुभने वाली चीज जोड़ने का सबसे आसान उपाय है।
हंसी जो नायिका तो बसंत मुस्का के दिल से बैठा
कच्ची नींद वाला मौसम जब देखो अंगड़ाई लेने लगता है।
एक लाइना
- हम खोपोली घूम आए: अपने शहर को गरियाने के लिये
- वेलेंटाईन डे से पहले ही दो घूसे : बस दो? बहुत कम एडवांस मिला
- डोंट फाल इन लव :जहां रहो चढ़े रहो, चिढे रहो
- वासना का दास :आपके आसपास
- बदला रंग मौसम का : बड़ा कच्चा रंग निकला ,चलो कन्ज्यूमर फ़ोरम में शिकायत करें।
- हिंदी में साहित्यकार बनते नहीं, बनाए जाते हैं :अरे फ़ैक्टियां खुली हैं जी विश्वविद्यालयों में
- ताऊ और गोटू सुनार की सुलह :फ़िर कोई गुल खिलायेगी
- जब वे प्रेम करते थे :तब मुस्कुरातीं थी मछलियाँ
- वैलेंटाईनहा बाबा के लिये पूडी-कढाही के चढावे पर रोचक चर्चा ( बतफोडवा पोस्ट) :बाबा हाजमोला भी लाये हैं कि नहीं?
- नंदिता दास की फिराक ... :किसके फ़िराक में है
- बस में बैठी एक युवती :अवगुंठित, संकुचित और अनिवर्चनीय ।
- अबे चांद परमानेंट गायब हो ना :तो लेटेस्ट माडल का नया चांद खरीदें
- शब्दों का टोटा:हलचल मचाये पड़ा है
- कृपया ध्यान दीजिए… :हम काम की चीज बता रहे हैं
- डा. अनुराग के बचपन पर कराह उठा यह पचपन :मन तो किया कर डालें अब तक छप्पन
और अंत में
कल की चर्चा में कई प्रतिक्रियायें आयीं। हम सभी के प्रति आभारी हैं। तारीफ़ वाली प्रतिक्रियाओं के लिये भी और इन दोनो की पूँछ कभी सीधी नहीं होगी/इनकी पूँछ पुगारिया में डालो वह फ़िर टेढी की टेढी हो जायेगी के लिये भी।
इनकी प्रतिक्रिया में मैं सिर्फ़ परसाई जी की बात दोहराना चाहता हूं जो उन्होंने अपने मित्र मायाराम सुरजन को लिखी थी:
मैं जानता हूँ तुम अत्यन्त भावुक हो। मैंने तुम्हारी आँखों में आँसू देखे हैं। बन पड़ा तो पोंछे भी हैं। तुमने भी मेरे आँसू पोंछे हैं। पर हम लोग सब विभाजित व्यक्तित्व (स्पिलिट पर्सनालिटी) के हैं। हम कहीं करुण होते हैं और कहीं क्रूर होते हैं। इस तथ्य को स्वीकारना चाहिये।
परसाईजी का यह कथन मेरे लिये अक्सर दूसरों, और खासतौर से उनके लिये जिनसे मैं जुड़ा रहा हूं, के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कुतुबनुमा रहा है। इसलिये मैं करमचंद जासूस जैसी सप्रमाण प्रतिक्रियायें देकर अपने किसी बेहद अजीज को छोटा बनाने का प्रयास करके अपनी निगाह में नहीं गिरना चाहता।
कल की चर्चा मुंबई/पूना पलट शिवकुमार जी मिश्र करेंगे।
ओह ये बताना तो भूले ही जा रहे थे कि आज की चर्चा का दिन कुश का था। उनके हामी न भरने के कारण इसे हम करे दे रहे हैं। वैसे बड़ी बात नहीं कि वे भी कर डालें!
बाकी आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
हड़बड़ स्टाइल चर्चा !!! और वह भी फुरसतिया ताऊ के द्वारा???
जवाब देंहटाएंकुछ तो करो कुश
काव्य और गद्य की एक साथ बैठकी अच्छी लगी . या यह भी कोई त्रिवेणी है आज के चलन की.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा.
भाई, आपका लेखन (...हलचल मचाये पड़ा है) काका हाथरसी की याद दिलाता है. पढ़कर अच्छा लगता है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो इस मोर्निंग डोज यानि ब्रेकफ़ास्ट की खूबसूरत चर्चा के लिये धन्यवाद ताऊ फ़ुरसतिया को.
जवाब देंहटाएंऔर दुसरे आज मास्साब ने शायद अनायास ही असली राज खोल दिया लगता है. :)
रामराम.
एक आदत सी हो गई है ब्लोगिंग और चिट्ठाचर्चा पढना।ममेरी बहन के विवाह मे शामिल होने आया हूं।मौका मिला और ब्लोग की दुनिया मे शामिल हो गया हूं।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा 'breakfast चर्चा ' लग रही है.
जवाब देंहटाएंएक कप चाय ,दो slice ब्रेड!
'साफ़ सुथरी!.धुली धुली!'
बहुत बढ़िया!
# बदलता रंग मौसम का ले के अंगड़ाई उठ बैठा
जवाब देंहटाएंहंसी जो नायिका तो बसंत मुस्का के दिल से बैठा
कच्ची नींद वाला मौसम जब देखो अंगड़ाई लेने लगता है।
:) बढ़िया है यह अंदाज भी ..शुक्रिया
कवितामय चर्चा अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा कुश की थी......पर शायद आज वो भाई लव के साथ रामायण बांचने चले गए हैं:)
जवाब देंहटाएंशब्दों का टोटा विवाद न बढ़ने देने में सहायक है।
जवाब देंहटाएंबाकी "और अन्त में" करेरे लिखाबा!
इस रंग बदलती दुनिया में क्या तेरा है क्या मेरा है.. चर्चा का दिन में कोई अपने साथ तो लाया नही था.. ना ही ले जाऊँगा.. सब यही छोड़कर जाना है..
जवाब देंहटाएंवैसे आज की चर्चा में ये त्रिवेणी टाइप जो भी है वो शानदार है.. आशा है कल की चर्चा में मिली उपलब्धियो को आप ससम्मान स्वीकार करेंगे...
प्रवीण जी चाहते है कुछ करू मैं... लीजिए टिप्पणी कर दी..
इसलिये मैं करमचंद जासूस जैसी सप्रमाण प्रतिक्रियायें देकर अपने किसी बेहद अजीज को छोटा बनाने का प्रयास करके अपनी निगाह में नहीं गिरना चाहता।
जवाब देंहटाएं"समय की मांग और मौके की नजाकत यही कहती भी है...."
Regards
यम्मलोक से उतर पड़े, दुई दुई ठौ यमदूत
जवाब देंहटाएंब्ला॓गजगत में छोड़ गए, परसाई का भूत
परसाई का भूत, चढ़ा उनके विवेक पर
भेजा खाय पकाय के, फ़ुरसत से डेग पर
बसंत नुमा इस पोस्ट में हम दो दिन पीछे आपको लगे हाथो शादी की सालगिरह की शुभकामनाये दे रहे है ...आज का अंदाज खासा दिलचस्प है ओर ऐसी मेहनत.... की अपेक्षा आप से ही की जा सकती है.कविता जी चर्चा में नही दिखी कई रोज से ....
जवाब देंहटाएंओर हाँ बदला रंग मौसम का .....बड़ा कच्चा रंग निकला ,चलो कन्ज्यूमर फ़ोरम में शिकायत करें
जवाब देंहटाएंएक दम झकास है .....
ये नया अंदाज भी बड़ा सही है !
जवाब देंहटाएंआपका तो ई अंदाज़, ऊ अंदाज़....हर अंदाज़ मस्त है. ज़बरदस्त है. एक लाइना के तो क्या न कहने. शब्दों का टोटा पड़ गया है....प्रोडक्शन कट हो गया होगा.
जवाब देंहटाएंये भी बढ़िया रहा.
जवाब देंहटाएंआपकी ब्रेक फ़ास्ट चर्चा को ब्रेक फ़ास्ट की तरह ही सूबह पढा था. अब फ़ुरसत से पढने के बाद त्रिवेणियों ने तो मन मोह लिया.
जवाब देंहटाएंहमने एक लाईना के लिये भी आपको रेग्युलर करने पर जोर दिया था अब हम ई कह रहे हैं कि एक ठो ब्रेक फ़ास्ट स्टाईल ( इस पोस्ट जैसी ) की चर्चा भी नियमित नही तो सप्ताह मे दो या तीन दिन की जाये तो बडा आनन्द रहेगा.
रामराम.
बधाई शुक्ल जी मुझे तो यह अंदाज अधिक भाया...
जवाब देंहटाएंजे भी खूब कही.
जवाब देंहटाएं●๋• लविज़ा ●๋•
NICE, as usual !
जवाब देंहटाएंEveryday a new vista arrives in Charcha.
Please bear with this 'Angla-Bhasha Tippani',
since, my Baraha got CORRUPTED while commenting upon 'Çharcha' Last night :)
आनन्दम्-आनन्दम् :)
जवाब देंहटाएंअशिष्ट भाषा और रचनात्मकता का अविश्वसनीय साथ दिख रहा है यहाँ :-)
जवाब देंहटाएंएक दूसरे की आलोचना करते समय, दोनों तरफ़ से अशिष्ट भाषा का प्रयोग बेहद खेद जनक है ! मुझे लगता है हम लोग अपने अपने रोल निर्वाह के साथ न्याय नही कर पा रहे, ईमानदारी की जगह पर अपने अपने दोस्तों का समर्थन आँख बंद कर कर रहे हैं ! इस तरह के युद्ध का नतीजा, अपने ग्रुप्स के प्रति और अधिक प्रतिबद्धता का जन्म देगी और इसका नतीजा हिन्दी रचनात्मकता के प्रति आम लोगों में खिन्नता का भावः ही जन्म देगी !
पिछले कुछ दिनों से चल रहे शब्द युद्ध में शामिल ब्लागर, बेहद सम्मानित एवं वरिष्ठ ब्लॉगर हैं, उनसे शांत रहने का निवेदन हाथ जोड़कर है, नवजवान लेखकों से प्रार्थना है कि अगर वरिष्ठों के प्रति आदर न दे सकें तो भी कम से कम लिखते समय शब्दों के चयन में सावधानी अवश्य बरतनें की चेष्टा करें अन्यथा आपको भी आपका भविष्य सम्मान नही देगा !
परम आदरणीय सक्सेना साहब कितनी सटीक बात बतलाई आपने, अरे पहले कह दिए होते तो क्या ये लोग आपकी बात टाल सकते थे, भला ? बतलाइए एक आप है और एक वो थे सक्सेना जी जो १०.२.२००९ की चिट्ठाचर्चा में ये टिप्पणी किए रहे के--
जवाब देंहटाएं"अच्छा लगा की विवेक सिंह बापस आगये हैं ! बहुत बढ़िया ! आपकी भावनाओं का स्वागत करते हुए क्षेत्रीय वाद , शहरवाद, और संकीर्णता के खिलाफ आपका स्वागत है !इस प्रकार के लेख की बहुत आवश्यकता थी ! जबलपुर या दिल्ली को डबलपुर या गिल्ली कहना मेरे ख़याल से विशुद्ध सांकेतिक हास्य है ! उसको तोड़ मरोड़कर, पूरे शहर का अपमान बताना, सिवाय अपनी और ध्यान आकर्षित करने के अलावा और कुछ नही कहा जा सकता !
हर शहर में एक से एक महा विद्वान् और महा मूर्ख पैदा होते हैं और होते रहेंगे ! इनके नाम के कारण शहर और देश का अपमान नही हो सकता, इसी प्रकार किसी शहर या गाँव का नाम मज़ाक में बदलने पर, उस शहर के समस्त निवासिओं के अपमान की कल्पना करना मात्र मूर्खता ही हो सकती है और कुछ नहीं !
आशा है लोग बड़प्पन का परिचय देते हुए अपनी गलती महसूस करेंगे !"
हमको तो लगता है सभी बड़ों ने अपनी गलती महसूस कर ली है और आप भी तो शायद बड़े ही हैं। है ना ?
और आजकल के छोटे तो आपकी नज़र में गलतियाँ करते ही नहीं। हम भी आपसे इत्तेफ़ाक रखते हैं जी। नमस्कार।