तरुण कहते हैं:
मैं बिल्कुल देसीपंडित स्टाईल की बात नही कर रहा, उस फार्मेट की बात कर रहा हूँ यानि कि कोई भी चर्चा के लायक लगी पोस्ट पकड़ उस पर इसी तरह अपनी बात कहके ठेल दो। इससे नियमित एक वक्त पर होने के बजाय ज्यादा चर्चायें हो सकती हैं और ज्यादा और अच्छा लिखा चिट्ठों पर चर्चा हो पायेगी वरना मैने नोट किया है ज्यादातर वो ही पोस्ट का जिक्र होता है जो या तो अलसुबह लिखी गयी हों और या बहुत शाम में।
जिस तरह से चिट्ठे बढ़ रहे हैं उनको देखकर मुझे लगता है, वर्तमान फार्मेट को बदलने का सोचना होगा क्योंकि इस तरह के चर्चा फार्मेट में सभी को एक समान आंख से देखा नामुमकिन होता जायेगा, थोड़ा दूरदर्शी होने के जरूरत लग रही है। बकिया ये बहस का विषय है लेकिन कह नही सकता इसमें बहस होगी क्योंकि कोई सनसनी टाईप टॉपिक नही ना है जी ;)।
आप बजा फ़र्माते हैं भाई कि देशी पण्डित वाले फ़ार्मेट में जब मन आये तब चर्चा ठेलने का जुगाड़ है। देशी पण्डित के शुरुआती दिनों के हम भी ठेलक रहे हैं। विनय जी बहुत दिन तक रहे।
यह भी सही बात है कि जब चर्चा होती है तो सुबह की पोस्ट और बहुत ज्यादा पापुलर पोस्ट की चर्चा होने की प्रायिकता बोले तो संभावना ज्यादा रहती है।
अव्वल तो चिट्ठाचर्चा का कोई फ़ार्मेट नहीं है। जिस चर्चाकार का जैसे मन आता है वैसी चर्चा करता है। किसी पर न कोई पाबंदी है न कोई दिशानिर्देश कि ऐसे करो वैसे करो। चर्चाकार अपनी मर्जी के अनुसार चर्चा करता है। इसी के चलते कई नये-नये अंदाज दिखे चर्चा में। देशी पंडित में मैंने अभी फ़िर देखा! आज की चर्चा में देशी पंडित में केवल दो लिंक दिये गये हैं। मतलब दो पोस्टों का जिक्र। यह काम अपने एग्रीगेटर बखूबी कर देते हैं।
रही बात जब मन आये तब चर्चा करने की तो उसके लिये भी किसी भी चर्चाकार पर कोई बंदिश नहीं है। जिसको जित्ती मन आये उत्ती चर्चा करे। ऐसा हुआ भी एकाधिक बार कि एक-एक दिन में तीन-तीन चर्चा हुईं।
मेरे ख्याल में चर्चा का फ़ार्मेट चाहे जो रहे लेकिन चर्चा हर दिन होनी चाहिये। इसीलिये हर दिन के लिये एक चर्चाकार नियत रहे तो बेहतर। लेकिन हरेक को यह भी कभी भी चर्चा करने की सुविधा तो है ही।
तरुण भाई से अनुरोध है कि वे नियमित-अनियमित जैसी भी चाहें वैसी चाहे जिस फ़ार्मेट में चर्चा करते रहें। वर्ना कल को लोग पूछेंगे कौन तरुण, कौन निठल्ला?
डा.अनुराग का कहना है:
क्यों नही अतिथि संपादक की तरह अतिथि चर्चा का दौर शुरू किया जाये .....बस निष्पक्षता की डोर हाथ में बंधी हो......
डा.साहब हम तो चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग चर्चा दल से जुड़ें। अतिथि चर्चाकार के लिये नाम सुझायें। हम उनको निमंत्रण भेज देते हैं। क्या ही अच्छा हो कि हर एक दिन की चर्चा के लिये दो चर्चाकार रहें और वे आपस में तय करके अपनी सुविधानुसार चर्चा कर डालें। जैसे कल मसिजीवी ने चैटिंग करते हुये कल की चर्चा करके डाल दी।
धीरू सिंह कहते हैं:
तरुण भाई की बात मे दम है!
हां भाई दमदार बात कह डाली तरुण ने। दमदार आदमी ही तो दम की बात करेगा!
अन्य टिप्पणियों की प्रतिटिप्पणी:
पूजा का कहना है:
टिप्पणी:वाह! आज की चर्चा पढ़ कर एकदम दिल खुश हो गया. ये चिठेरा शब्द कहाँ से लाये हैं? एकदम ठेठ भाषा में ठाठ से बातें कर रहे हैं चिठेरा चिठेरी. एक लाइना भी मस्त है, हमें खास तौर से १५ नम्बर ज्यादा पसंद आई.
प्रतिटिप्पणी: एक लाईना और चर्चा पसंद करने के लिये शुक्रिया! ब्लागर के लिये चिठेरा शब्द का प्रयोग ज्ञानजी ने किया था। बाद में चिठेरा-चिठेरी सीरीज की कई पोस्टें मैंने लिखी। सबसे पहली चिठेरा-चिठेरी पोस्ट 23 नवंबर, 2007 को लिखी गयी। इसका आईडिया उर्मिल कुमार थपलियालजी के नट-नटी संवाद से लिया गया। उर्मिल कुमार थपलियाल जी हर रचिवार हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान में समसामयिक घटनाऒं पर नट-नटी संवाद के रूप साप्ताहिक नौटंकी रोचक अंदाज में पेश करते हैं।
हमारे बाद नीरज रोहिल्ला ने भी चिठेरा-चिठेरी संवाद लिखा जिसे पढ़कर ज्ञानजी का भक्क से रियलाईजेश भी हो गया था। कुछ और चिठेरा-चिठेरी लिंक आप यहांऔर यहां देख सकते हैं।
महेंद्र मिश्र की टिप्पणी: वाह वाह
चिठेरी: चिठेरा
चिठ्ठाचर्चा में दोनों को पढ़कर आनंद आ गया जी
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया जी!
रचना सिंह की टिप्पणी:
"Indibloggies contest is limited to blogs written in English language only. We are considering holding Indibloggies for Indian language blogs in latter part of the year. "
प्रतिटिप्पणी:रचनाजी, अभी घोषणा हुई है। पहले एक वर्ग में केवल भारतीय भाषाओं के लिये चुनाव होता था वह अब नहीं है। आपके आयोजन का इंतजार रहेगा!
बातूनी की टिप्पणी:
अब चिट्ठा चर्चा का फार्मेट यही डाय्लोग वाला होगा क्या, मसिजीवी वाले कल के फार्मेट में। अच्छा है चलो कुछ तो नया हो रहा है ।
प्रतिटिप्पणी:चर्चा के बारे में फ़ार्मेट के चुनाव का अधिकार तो चर्चाकार के हाथ में है।
सीमा गुप्ता:
चिठेरी: चिठेरा
" ha ha ha ha ha ha "
Regards
प्रतिटिप्पणी: सीमाजी, खुल कर हंसने के लिये शुक्रिया।
Regards
बवाल की टिप्पणी:
ग़ज़ब की चिठेरी-चिठेरा कर डाली गुरूजी आपने तो हा हा हा । अब इनको ही आपकी चिट्ठा चर्चा का ब्राण्ड-एम्बेसडर बना लीजिए सर, मज़ा आया इनका संवाद सुनने में, सच।
प्रतिटिप्पणी:शुक्रिया। ब्रांड अम्बेसडर भी बन जायेंगे कभी ये भी! वैसे डर लगता है! अम्बेसडर आजकल फ़ैशन से बाहर हो गयी है!
कविताजी की
टिप्पणी:आज की चर्चा काफ़ी क्यूट है।
क्योंकि आपने शीर्षक में दो दो चिठेरी आमने सामने तैनात कर दी हैं; तिस पर भी मामला निभता जा रहा है।
वैसे पंडित देसी हो या बिदेसी फ़र्क इतना ही पड़ता है कि असल पंडित हो, नाम का या ज़ात-भर का नहीं। कर्म भी खरे हों।लिंक वाले देसी को तो देखना बचा है..सो क्लिकाते हैं।
प्रतिटिप्पणी: चर्चा को क्यूट बताने और चिठेरी-चिठेरी गलती बताने के लिये शुक्रिया। देशी पंडित क्लिक करके देख पायीं?
इष्टदेव सांकृत्यायन की टिप्पणी:
चिठेरी : और अपने ई जो अनूप सुकुल हैं, ई का कर रहे हैं आजकल. ई तो बताया ही नहीं तैंने रे चिठेरे.
चिठेरा : अरे इसमें बताना क्या है?
चिठेरी : क्यों?
चिठेरा : ऊ आजकल कुछ नया नहीं लिख पा रहे हैं. तो पुराना माल है पहले ठेल चुके हैं उसी को फिर से ठेलमठेल कर के काम चला रहे हैं.
प्रतिटिप्पणी: हमने चिठेरा-चिठेरी से पूछा क्या ये बयान तुमने जारी किया? उन्होंने बताया- हमारे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। वैसे अनूप शुक्ल तक बात पहुंचा दी गयी है। उन्होंने कहा है कि क्या करें। लिखते तो नया हैं लेकिन ससुर पोस्ट करते ही पुराना हो जाता है। वैसे काम भी कहीं बिना ठेलम-ठेल के होता है क्या जी?
ज्ञानदत्तजी की टिप्पणी:
समीर लाल के लिये ताली बजवाने से चिठेरा-चिठेरी के का परेसानी है जी!
हम तो सांकृत्यायन जी की बात का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। टटका माल लायें फुरसतिया।
प्रतिटिप्पणी: परेशानी नहीं जी सख्त ऐतराज है। बताओ जब समीरलाल १०००० कमेंट में प्रवेश कर रहे थे तब आप सूचना देकर सोने चले गये। आपको अपने हाथ का उपयोग ताली बजाने के बजाय टिपियाने में करते हुये तब सोने जा चाहिये। इष्टदेव वाली बात का जबाब ऊपर से ही ग्रहण कर लें।
अभिषेक ओझा की टिप्पणी:
वाह ! पता नहीं क्यों मन किया. लिख दें... 'जियो मेरे लाल' ! लेकिन बडो को ऐसा नहीं कहते तो फिर ये सही: 'आपका जवाब नहीं'
प्रतिटिप्पणी:ऐसा भी क्या शरमाना! हमने जियो मेरे लाल ही ग्रहण कर लिया। अब तुमको जो करना हो कर लेना।
कुश की टिप्पणी:
batao ji aajkal to baato baato mein charcha hone lagi.. ye bhi khoob hai ji... kash hame bhi koi mil jaye.. jo baat karte hue charcha kar le..
प्रतिटिप्पणी: अरे खोजोगे तब तो मिलेगी। बात करते-करते ही चर्चा होगी! चर्चा करते-करते बातें होगीं। काफ़ी-ऊफ़ी पिलाओ कभी तब बतायें।
शास्त्रीजी की टिप्पणी:
आप की हर चर्चा एकदम से तजगी लिये होती है. यह चर्चा भी इस का अपवाद नहीं है. बल्कि लगता है कि आज कुछ अधिक ताजगी दिख रही है. हास्य का पुट भी जम कर है.
"चड्डी-कंडोम कांड — आखिरी अध्याय!! : इसके बाद शास्त्रार्थ शुरू होगा, सर फ़ुड़वाने वाले आमंत्रित हैं"
फिकर न करें, अगले शास्त्रार्थ के पहले हम आपकी टांग खीचने की सोच रहे है. लेकिन समझ में नही आ रहा कि विषय क्या हो.
हां इस बार सरफुटौवल की नौबत नहीं आई. रिंग में सिर्फ वे उतरे जो कायदे के अनुसार वार कर रहे थे!!
सस्नेह -- शास्त्री
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया शास्त्रीजी, अब जो हमारे अंदर है वही तो बाहर आयेगा। विषय समझ में तब आयेगा जब सच्चे मन सोचेंगे। आप असल में सनसनी और विषय का गठबंधन तलाश रहे हैं उसमें मेहनत तो लगती है।
डा.अनुराग आर्य की टिप्पणी:
फुरसतिया कौन ?सच पूछिए तो हमें भी जानने में वक़्त लगा था की अनूप शुक्ल ओर फुरसतिया एक ही चीज है..खैर तरुण जी ने एक वाजिब सवाल उठाया है ..ओर गौर करने के लिए आपके अलावा किससे कहेगे .....क्यों नही अतिथि संपादक की तरह अतिथि चर्चा का दौर शुरू किया जाये .....बस निष्पक्षता की डोर हाथ में बंधी हो......
प्रतिटिप्पणी: अनुरागजी फ़ुरसतिया और अनूप शुक्ल एक ही हैं यह बहुत से लोगों को पता लगते-लगते देर हो जाती है। सस्पेन्स का मजा आता है! तरुण की बात का जबाब दे ही दिये।
चंद्रमौली्श्वर प्रसादजी की टिप्पणी:
मास्साब-ई चोकरबाली इश्टाइल है। आप तो बढिया चर्चा चितेरे हैं ही, तो इस इश्टाइल में भी निखार आ गया। बधाई॥
>तरुण जी, ये ‘झाडा’ शब्द बडा खतरनाक है। हमारे इहां टोयलेट को कहते हैं- तो ज़रा सम्भल के:)
प्रतिटिप्पणी: चंद्रमौलिजी, आपकी तारीफ़ का शुक्रिया। बकिया झाड़े रहो कलट्टरगंज को आप भले अपने अनुसार ग्रहण कर लें आपको पूरी छूट है। लेकिन कानपुर में इसका खास मतलब है, पूरी कहानी हैं। आप पढ़ने के लिये क्लिक करें- झाड़े रहो कलट्टरगंज, मण्डी खुली बजाजा बंद
अन्य सभी साथियों ( अनिल कांत, घुघुती बासूतीजी, ताऊ रामपुरिया, आलोक सिंह ,रतनसिंह शेखावत, धीरू सिंह और समीरलाल जी का भी चर्चा पसंद करने और चिठेरा-चिठेरी संवाद जारी रखने की सलाह का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंप्रतिटिप्पणी पर भी टिप्पणी करने की होती है ?
बड़ों को ज़वाब देना बेअदबी है, न जी !
बतंगड़ बन जाये वह अलग ..
प्रतिटिप्पणी पर
जवाब देंहटाएंप्रप्रतिटिप्पणी की पोस्ट
की गुंजायश अभी बाकी है
उसमें और बेबाकी दे साकी
रात अभी बाकी है।
पहले टिपिया लें, फिर कलक्टरगंज जाएंगे।:)
जवाब देंहटाएं> टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी के बहाने सब का दिल गार्डान-गार्डन कर दिया। धन्यवाद।
> आप ने सही कहा है कि चिट्ठाकार को छूट होनी चाहिए कि वो जिस तरह चाहे, चर्चा का प्रारूप चुने। आखिर कहा ही गया है-VARIETY IS THE SPICE OF LIFE:)
बहुत बढिया चर्चा की है जी।बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकंटेंट अपना फ़ार्मेट खुद तय करता है।
जवाब देंहटाएंअब आज की टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करना. अच्छा लगता है. :)
जवाब देंहटाएंकिसी भी फॉर्मेट में चर्चा हो कोई फर्क नही पड़ता, बस चर्चा होनी चाहिय ! वैसे भी अलग-अलग चर्चाकारों द्वारा अलग-अलग अंदाज में चर्चा करना अलग अलग फॉर्मेट ही तो है, इस तरह चर्चा का अंदाज बदलने से इसमे रोचकता और नवीनता आती है जिसे पढने में वाकई मजा आता है |
जवाब देंहटाएंकभी हम जैसे लो प्रोफाइल ब्लोगरो के चिट्ठो की चर्चा भी हो जाए तो हमें भी उच्च कोटि की अनुभूति मिलेगी {अन्यथा न ले वैसे मुझे तो चिटठा चर्चा का स्नेह बहुत बार मिल चुका है लेकिन हम जैसे बहुत बाकी है }
जवाब देंहटाएंplease refer to my comment kindly note that its in inverted commas and copied from the rules of the indibloggies , since your and ravi ratlamis post said we need to nominate the blogs { which i did} but when i read the rules i was confused that if this is not for hindi then why at all are we promoting the event to hindi bloggers ??
जवाब देंहटाएंwill someone clarify if the nominations are for hindi blogs or not please
बहुत बढिया जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दो तीन दीन बाद आया हूं. इसलिये ये चिठेरा-चिठेरी - टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी पढ़ ही रहा हूं.
जवाब देंहटाएंहां, चर्चा का एक रूटीन हो, जब-तब चर्चा नहीं .
जवाब देंहटाएं@ रचना जी,
यह तो पहले ही स्पष्ट है,
नामांकन इण्डीब्लागीज़ से माँगा गया है..
हिन्दीब्लागीज़ से नहीं !
सुरक्षित कोटे में भी आप सेंध मारने चली गयीं,
लोकसभा चुनाव की प्रतीक्षा करनी चाहिये थी, न ?
@ शेष मौज़ियों से
वैसे मेरे दिमाग में बैठे श्री अ.ब.स.ऊछ्ला जी यह प्रस्ताव दे रहें हैं,
कि गूगलाश्रित ब्लागर्स के लिये भी एक सीट मनोनीत की जानी चाहिये ।
आप लोग अपनी सशक्त लेखनी से यह मुहिम क्यों नहीं पकड़ते ?
कुछ ब्लोगर्स के नाम मै सूझा रहा हूँ...आपके आदेश के मुताबिक...देखिये ये लोग अगर वक़्त निकाल पाये ...
जवाब देंहटाएंCMPERSHAD JI
डॉ अमर कुमार जी
अजित वडनेकर जी
ज्ञान दत पांडे जी
रचना जी
सुरेश जी
संजय बैगानी जी
अनुरागजी, पहले तो आपको धन्यवाद दे दूं कि आपने मुझे इस लायक समझा। फिर यह भी बता दूं कि मैं तो केवल कमेंट-टेटर हूं जी, बिल्ला-गर होता तो कभी न कभी चर्चा में होता ही। पुनः आभार।
जवाब देंहटाएंचर्चा के अलग अलग रूप होने से रोचकता आती है और एक तरह की उत्सुकता भी की आज कैसा प्रारूप होगा चिट्ठे का. चर्चा का मकसद है की अलग अलग चिट्ठे जो चर्चाकार को पसंद आए एक पोस्ट में डाल दिए जाएँ मगर यह काम गद्य में होता है या दोहा में या फ़िर इस तरह बातों बातों में ये तय करना तो चर्चा करने वाले का ही हक है. कई बार तो चर्चा का ढंग इतना मजेदार होता है की बिना लिंक्स के भी वो एक अच्छी पोस्ट मानी जाए...मैं कल की चर्चा को इसी श्रेणी में रखती हूँ. और आज की इस टिपण्णी प्रतितिप्पणी और उसपर भी हमारी टिपण्णी :) को भी इस अलग ढंग की चर्चा में रखा जाए. :)
जवाब देंहटाएंयदि "सुरेश जी" नामक सम्बोधन मुझसे ही है (क्योंकि एक सुरेशचन्द्र गुप्ता जी भी ब्लॉगर हैं) तो अनुराग जी का शुक्रिया कि उन्होंने मुझे इस लायक समझा, जबकि हकीकत यह है कि मैं अभी नालायक ही हूँ, इसलिये मुझे माफ़ करें, मैं "डिकी बर्ड" (निष्पक्ष अम्पायर) नहीं बन सकूंगा… कहीं ऐसा ना हो कि चिठ्ठाचर्चा करते वक्त मैं सिर्फ़ "अपने" वालों का ही उल्लेख करता रहूं…। चिठ्ठाचर्चा एक मुश्किल भरा काम है… जबकि मैं आसान काम यानी "निस्वार्थ भाव से चिठ्ठा ठेलने" में विश्वास करता हूँ… :) :) कोई अपनी चर्चा करे या ना करे…
जवाब देंहटाएंप्रतिटिप्पणी पर टिप्पणी कर तो रहा हूं - पर कहीं प्रति-प्रति टिप्पणी न कर दें जबरी महराज! :-)
जवाब देंहटाएंअनूप जी, आप भी क्या आधी रात को चर्चा रिलीज करते हैं. कल तो यह चर्चा नहीं दिखी थी.
जवाब देंहटाएंआप ने कहा: "आप असल में सनसनी और विषय का गठबंधन तलाश रहे हैं उसमें मेहनत तो लगती है। "
बहुत सुंदर!! सनसनीखेज शीर्षक और गहन विषय का गठबंधन करने के लिये बडे "फुर्सत" में सोचना पडता है. किसी दिन आपको इसका गुरुमंत्र दे देंगे -- शर्त यह कि आप भी मुझे एक अच्छा सा गुरुमंत्र दे दें!!
सस्नेह -- शास्त्री
प्रणाम
जवाब देंहटाएंमुझे चिटठा - चर्चा का इंतजार रहता है . समय कम होने पे अच्छी रचानो की जानकरी और उसपे चिट्ठाकार के विचार का पता लग जाता है .
चिट्ठे की रूप - रेखा क्या हो इससे कोई फर्क पड़ता , फर्क इससे पड़ता है की कही कोई अच्छी रचना छोड़ तो नही दी गई और रचना अच्छी होगी तो सम्मान आपने आप ही मिलेगा उस रचना को टिप्पणी के मध्यम से .
धन्यवाद
"वरना मैने नोट किया है ज्यादातर वो ही पोस्ट का जिक्र होता है जो या तो अलसुबह लिखी गयी हों और या बहुत शाम में।"
जवाब देंहटाएंतरूण भाई के इस टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ.. चर्चा कोई करे.. फार्मेट कुछ भी हो.. चर्चा किसी भी समय आये पर उस दिन शामिल होने वाले चिट्ठों के लिये समय निश्चित कर दे.. जैसे सोमवार की चर्चा के लिये रविवार (००००-२४००) में छपे चिट्ठे..