प्रातकाल जगि के फ़ुरसतिया। ऊंघत-स्वाचत-ट्वारत चरपईया॥
आवा सुनौ शनीचर भाई । तरुण निठल्ले नहिं परत दिखाई॥
पुनि-पुनि मेल निहारत भाई। तरुण संदेशा नहिं देत दिखाई॥
आलस त्याग बिस्तर पर बैठे। तकिया दुई ठो दाबि के ऐंठे॥
ब्लागन-ब्लागन नजर फ़िराई। सोचा चलौ अब चर्चा निपटाई॥
पोस्ट जहां पूजा मैडम का देखा। लगा कहूं क्या हो गया धोखा॥
मैडम ऐसी धांसू लिखती बानी । पढ़िके सब जनता हरसानी॥
फ़ोटुआ चौकस नई लगाई। चश्मा कहां-किधर गया भाई॥
पच्चीस सालों से धरे थे, मन के अन्दर बात।
आया मौका जब मिलन का, फ़ूट पड़े जज्बात॥
देवता कहि गये बच्चन जी ज्ञानी। अर्थ सुंदर मिसिरजी बखानी॥
रोशनी फ़िजा में पसर सी रही है। रंजना पूछती क्या तुम्ही हो,तुम्ही हो।
मैडम क्यूरी रेडियम वाली। भेंट भई पियरे से व्याह रचा ली॥
रवीश याद करे फ़िर पटना को। डाक्टर देर किया उस घटना को॥
डाक्टर इलाज को होता राजी। शायद होते हमरे बीच पिताजी॥
हम भी आ गए अखबार में | तुल जायेंगे रद्दी में अगले इतवार में॥
आजाद रहे सच में आजाद ही। नमन किया औ इंडियन ने बात कही॥
पारुल ने लिखी दर्द की एक कहानी। जिंदगी है वहां बस पानी ही पानी॥
ममता-युनुस के यहां से ,आया मंगलमय समाचार।
पुत्रवान दम्पति हुये, पुलकित-किलकित अपना घर परिवार॥
हम तो उसको बच्चा समझे भाई। लेकिन वो सब समझ गया प्रभुताई॥
पाकिस्तान के बुरे दिन आये। बादल बोरियत के सब तरफ़ छाये॥
बोरन-बोरन बोरियत फ़ैली। आदत अजीब है गायत्री जी कह लीं॥
रंजूजी द्वापर का उधरै ठहराइन। गोपाल ब्लागर का जिम्मेदारी सिखाइन॥
रायपुर में मिलि भेंटे सब भाई। लिखा विवरण और फोटुऔ सटाई॥
मुझसे तुमको प्यार क्यों नहीं जी। प्यार धंधा है इसका एतबार नहीं जी॥
ब्लागिंग करौ चहै ना भाई। मीटिंग के गुण सीखौ भाई॥
टिम टिम तारों के दीप जले। बूझो आप पहेली हम तो चले॥
सपना सोती आग से सब देखत हैं लोग।
जगी आंख से देखने का हमे लगा है रोग॥
एक लाईना
- "जरा नाखून तराशो इन अल्फाजो के " :बढ़िया त्रिवेणी ब्रांड नेलकटर लाना
- आखिरी बार कहे देत हैं की ई हमार बिलोग नाही है :वाह रे मैडम चश्मा उतार दिया तो अपन बिलागौ नहीं दिखा रहा है
- देवता उसने कहा था .... : मतलब हमें बताना पड़ रहा है
- हम भी आ गए अखबार में :अब समोसे लपेट के बेचें जायेंगे दिन दो-चार में
- सपने तो वही हैं, जो रातों को सोने नहीं देते.. : नींद की गोली खायें, चैन से सो जायें।
- बोरियत की गिरफ्त में पाकिस्तान : शिवकुमार मिसिर को जम्हुआता हुआ दिखा!
- द्वापर वहीँ ठहरा है........ : अरे अंदर बुलाइये, बैठाइये द्वापर कौनौ ब्लागर थोड़ी है ....
- ब्लागर्स कितने जिम्मेदार-२, एकपक्षीय लेखन बंद हो...... : यहां लिखता कौन है जी! सब तो चढ़ाते हैं पोस्ट!
- भंवरा और फूल :एक दूजे के लिये
- हँस पडे मुँह खोल पत्ते :खिलखिला पड़ीं सब दिशायें झट से।
- प्यारा धंधा प्यार का : आज से शुरू करें! शुरुआत आहें भरने से करने!
- 'मर्दानगी' पर दो कविताएं : पढ़ें और मर्द बन जायें!
- अंडरडाग मानसिकता के शिकार हैं हमारे फिल्मकार : अरे ब्लागजगत में स्वागत है यार!
- मेरा और तुम्हारा परिचय :भी देना पड़ रहा है! ये भी दिन देखने थे!!
- शेखावाटी में होली के रंग (घूँघट खोल दे ):तो देख लें जरा रंग
- क्या तुमने है कह दिया :नींद में मुस्कराये, और अब खिलखिला दिया
- मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद : फ़ौरन बर्नाल लाओ भाई!
- मुसलमान मुख्यधारा से अलग क्यों? : सोच के बतायेंगे जी!
- हित दिखाकर भी लोग अहित कर देते हैं :ये तो चलन है जी आज का
- झुमका: की कहानी, राशि चतुर्वेदी की जबानी
- कॉलसेन्टरों में अनपढ़ों की भर्ती : अमित पहुंचे आप भी चलिये न!
- नॉल: आईये हिन्दी के लिये कुछ करें — 02: शास्त्रीजी शास्त्रार्थ कब करेंगे?
- कोई दीप जलाया होगा : पतंगा कोई फ़ड़फ़ड़ाया होगा
- लाल धब्बों की कहानी - महिलाओं की जुबानी : एक उन्मुक्त बयानी
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- ख्वाजा मेरे ख्वाजा…: शब्द सफ़र में आ जा!
मेरी पसंद
चरमराती सुखी डाली,
छोड़ उपवन रोये पत्ते|
जब अधर पर पाँव पड़ते,
कड़-कड़ाते बोले पत्ते|
धरा धीर धर अनमने से,
रोये मन टटोल पत्ते|
चिल-चिलाती धुप तपती,
जल गये हर कोर पत्ते|
वृक्ष की अस्थि ठिठुरती,
देख मातम रोए पत्ते|
फिर पथिक है ढूंढ़ता,
विश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
अनुराग रंजन सिंह "यायावर"
चलते-चलते
आए जब अखबार में, फूले नहीं समायँ !
स्वयं तनें यह गर्व से, घरवाले धमकायँ !
घरवाले धमकायँ, गावँ का नाम डुबाया !
लडकी छेडी सही, किंतु क्यों ढोल बजाया ?
फुरसतिया यों कहें, फालतू में इतराए !
घर जाएं या घाट जाट कछु समझि न पाए !
लिखबाड़ हैं विवेक सिंह पोस्टकार हैं फ़ुरसतिया।
आज की टिप्पणी
चिट्ठाचर्चा मस्त बनावा, तब मसिजीवी नाम कहावा
भये प्रसन्न पढी जब चर्चा, कुश ने किया लीक क्यों पर्चा
मसिजीवी मास्साब हमारे, मान लेहु जो भी कहि डारे
स्याही सरिता कलम बहाई, हस्त-लेख कछु कहा न जाई
जय हो जय हो होती जाए, लोग आँकडों में उलझाए
डॉक्टर अमरकुमार कहाँ अब, बिना सूचना कैसे गायब ?
विवेक सिंह
और अंत में
कल मसिजीवी ने बताया कि चर्चा के आठ सौ पोस्ट हो गये। कुश ने कुछ संसोधन किया संख्या में। संख्या तो जो है सो है लेकिन यह देखना वाकई बड़ा सुकून का अनुभव है कि सबके सहयोग से चर्चा का काम नियमित हो रहा है। चाहे अच्छी हो, बुरी हो, छोटी हो ,बड़ी हो। मस्तम-मस्तम हो या लस्टम-पस्टम लेकिन चर्चा का काम नियमित होना अपने आप में एक मजेदार अनुभव है। बिना सब साथी चर्चाकारों के भले ही चाहे मैं हूं या कोई और चर्चा करता भले रहता अपनी धुन में लेकिन जो विविधता है चर्चाकार साथियों के चलते वह दुर्लभ उपलब्धि है। उसे कोई भी अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता। चर्चा की विविधता अपने आप में इसका सबसे आकर्षक पहलू है। है न!
आज सबेरे ही विवेक ने चलते-चलते मेल में भेजा जिसे मैंने अभी देखा और पोस्ट कर दिया। इस तरह के सहयोग के बिना चर्चा हम अकेले करते भी तो क्या करते।
जो साथी चर्चाकार चर्चा करना समय और अन्य कारणों से स्थगित कर चुके हैं वे सब हमारी लिस्ट में हैं। उनका इंतजार है कि वे आयें अपना काम करें। इसमें वे सभी नाम हैं जो यहां दिखते हैं। सभी ने जब चर्चा की है बहुत पसंद किये गये हैं।
फ़िलहाल इत्ता ही। आपका दिन शुभ हो।
फोटो विवरण: सबसे ऊपर पूजा मैडम, फ़िर फ़ूलऔर भौंरा जी भारतीय नागरिक के ब्लाग से और फ़िर मुसाफ़िर जाट
दिन आपका भी शुभ हो, क्या धाँसू फाँसू चर्चा कर डाली सबेरे सबेरे
जवाब देंहटाएंफूल जी तो कपास के हैं किंतु जिन्हें भौंरा जी बताया गया है वो हमें भुनगा जी लग रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंकुश की टिप्पणी : हम तो पहले ही कहे थे इससे दूरी बनाकर रखिए . हो गए ना कवि . अब भुगतो :)
चर्चा रही बहुत ही बढ़िया बस हमनाम का कनफूजन हो गया इस में :) शुक्रिया बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंआईला ये क्या हमसे पहले ही हमारी टिप्पणी पहुच गयी वो भी वाया आशु कवि टंकीरूढ़ श्री श्री विवेक सिंह जी द्वारा.. किंतु ऐसा क्यो प्रतीत हो रहा है कि ये टिप्पणी कुछ पुरानी है...
जवाब देंहटाएंखैर आपकी इस एक लाइना के लिए आपको सौ नंबर दिए जाते है
हम भी आ गए अखबार में :अब समोसे लपेट के बेचें जायेंगे दिन दो-चार में
वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंगजब विविधता ला देते हैं! तकिया ऐंठ कर बैठने से कविता लिखी जा सकती है. अगली चर्चा में मैं भी कविता ही लिखूंगा.
आपने सच कहा. चिट्ठाचर्चा की विविधता इसकी पहचान बन गई है. कल मसिजीवी जी ने और परसों कुश ने अनूठे ढंग से चिट्ठाचर्चा की. बहुत बढ़िया लग रहा है कि चर्चा नियमित हो रही है.
आज तो कमाल की चर्चा हो गई. सबसे उत्तम चर्चा का खिताब आज की चर्चा को.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रणाम
जवाब देंहटाएंकविता में चिठ्ठा -चर्चा पढ़ के बहुत आनंद आया
बेहतर चरचा।
जवाब देंहटाएंइस काव्यमयी चर्चा का धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअक्खाह!! वाहवाह!! क्या बात है!! आज तो प्रभु आप बडे ही मस्त मूड में मालूम पडते हैं. पहले कविता फूट रही है आपके अधर-कमलों से, और उसके बात एक से एक मोती टपक रहे हैं. सुबह उठकर जरूर अपना ही चेहरा देखा होगा फुरसत से (या हमारा देखा होगा) जो आज ऐसी भावभीनी अंदाज में चर्चा कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआज पुन: एक नया अंदाज देखा. अच्छा लगा. लगभग सारे काम के आलेख लपेट लिये हैं आपने इस चर्चा में.
शास्त्रार्थ की याद न दिलायें. कुछ दिन के लिये नॉलिया बन रहे हैं, लेकिन शास्त्रार्थ की याद दिलाते रहेंगे तो अगला शास्त्रार्थ आप के बारे में ही छेड देंगे!!
सस्नेह -- शास्त्री
फिर पथिक है ढूंढ़ता,
जवाब देंहटाएंविश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
" bhut rochak or sundr charcha.."
regards
तीन रोज़ से अंतरजाल को ज़ुकाम था इसलिए हम छींक नहीं सके। क्षमा प्रभो!
जवाब देंहटाएंआज सब से पहले इस ब्लाग को आए। देखा कि -
‘ब्लागन-ब्लागन नजर फ़िराई। सोचा चलौ अब चर्चा निपटाई॥’
लगा-ई का! फुर्सतिया जोगनिया की तरह गा रहे हैं- नगरी-नगरी द्वारे द्वारे ढूंढे रे जोगनिया....:)
पूरे दो सौ नंबर
जवाब देंहटाएंहम भी आ गए अखबार में :अब समोसे लपेट के बेचें जायेंगे दिन दो-चार में
बड़ी मस्ती छाई है सुकुल जी. आंय. फागुन आय गया का?
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रसभरी कवितामयी चर्चा.......पूर्णतः aanand dayak रही....बहुत बहुत sundar lajawaab....
जवाब देंहटाएंman kuch bujha sa tha par aapki charcha padh hamare chehre par bhi muskaan tair gai . bahut achhi charcha ki .
जवाब देंहटाएंहम भी आ गए अखबार में | तुल जायेंगे रद्दी में अगले इतवार में॥
जवाब देंहटाएंक्या पंक्ति है...वाह वाह
काश कोई उन रांची वाले पत्तरकार को सुना पाता। :)
वाह जी वाह!
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जवाब देंहटाएंफ़ुरसतिया काहे रहे पुकार,
हम तो खड़े टँकी की कतार, .हरि गँगा
बहुतै भई मान मनुहार,
भाई विवेक अब तो उतरो यार, हरि गँगा
दुई पोस्ट महिन्ना का दान,
फिर तुम पास करो इम्तिहान, हरि गँगा
भईया हमका दिहौ खिझाय,
ई कौनि भलमँसी आय, हरि गँगा
मित्रों, मैं जीवित हूँ,
अच्छा लग रहा है, इन गुलाबों के मध्य भी काँटें की तलाश हो रही है
अभी अभी अपने ऊ वाले गुरुवर की हेल्प से.. क्या कहवें हैं कि, ई वाले ' थाट-कोमा ' से बाहर आया हूँ
एक कप क़ाफ़ी पी लूँ, फिर मिलता हूँ :)
डा. अनुराग, अखबार का इतना फ़ज़ीता मत कर, देशी समोसाऽऽ.. छिः शिट्
जाट की खबर है, हम तो भजिया खायेंगे बियर बार में
बहुत ही बढ़िया चर्चा .
जवाब देंहटाएंअनूप शुक्ल ऐसेही अनूप शुकुल नाही हैं येनहूँ में बड़ा हुनर देहें हैन भगवान ! घनी गहन चर्चा ! हाँ १००० पोस्ट जल्दी स पूरा कईला त हमहूँ कुछ पत्रं पुष्पम फलं तोयम के साथ नारियल्वौ पटकीं ! शुभकानाएं !
जवाब देंहटाएंअनूप जी नमस्कार।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा को नये रुप में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
यहाँ हम अपने ही होने से इनकार कर रहे हैं और आप चश्मा ढूंढ रहे हैं...ई तो गड़बड़ है अनूप जी...हम तो सोचे की चश्मा हटा देने से कोई पहचान नहीं पायेगा. चर्चा बहुत ही बढ़िया लगी...नीमन बा हो :)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार,शानदार चर्चा।
जवाब देंहटाएंएकदम फुरसतिया मार्का चर्चा ...भगवन आपको ऐसी फुर्सत हमेसा प्रदान करें
जवाब देंहटाएंबहुत खूब देव....किंतु इस बार ऊपर वाला हिस्सा एक लाईना पर भारी पड़ा है
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