ब्लाग पोस्टों से
- अच्छे घरो के बच्चे अब पार्क में कहाँ खेलते है ?फ़िर हो -हो करके हँसता है ...रंग बिरंगी दीवारों के बीच पान मसाले से रंगे उसके दांत मिल गये लगते है .स्कूल-घर -टूशन ...यही तो है .वो कह रहा है जिंदगी की कोई स्क्रिप्ट नही होती -अनुराग आर्य
- हम कुछ बातों पर बहुत समय से सोचते हैं, पर एक नज (nudge – हल्का धक्का) चाहिये होता है कार्यान्वयन करने के लिये। ब्लॉग पोस्ट प्रमुख है, शेष गौण-ज्ञानदत्त पाण्डे
- जब लोगों का सारा ध्यान एक बडे “दर्द” पर केंद्रित हो तो उसकी आड में काफी सारे छोटे दर्द छुप जाते हैं, या छुपाये जा सकते हैं. यह न केवल शारीरिक स्तर पर बल्कि मानसिक स्तर पर भी एक हकीकत है गैरों के मनोनियंत्रण के लिये अचूक नुस्खे!!-शास्त्रीजी शास्त्रार्थ वाले
- फ़ोन बजता है.. मैं फ़ोन उठाती हु.. एक मेल भेजनी थी.. भूल गयी थी.. फ़ौरन कंप्यूटर पर जाकर.. मेल भेजती हु..याद आता है.. दूध फ़्रिज़ में रखना है..किचन कि तरफ चली जाती हू.. बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही है.. खिड़की को बंद कर दू वरना फर्श गीला हो जाएगा.. घोष बाबू आते है.. मिठाई खिलाओ मैडम.. आपकी किताब बेस्ट सेलर चुनी गयी है..
व्हीलचेयर वाली लड़की..-कुश की कलम से - शायद वो उस दिन मुझसे मिलने के लिये ही अकेली आई थी।मेरी बक़वास सुनकर उसकी आंखो मे आंसू तैरने लगे थे।वो बोली आपने ऐसा क्या किया है जो हम अपने भाई को बुलाते?मैं बके जा रहा था।वो फ़िर बोली काश मेरा कोई भाई होता?अगर होता तो भी मै उसे कालेज नही बुलाती।ये सुनकर मेरे होश ऊड़ गए।मुझे जैसे लकवा मार गया।मै सन्न रह गया था।वो बोले चली जा रही थी हम आपको कभी माफ़ नही करेंगे। उसने कहा मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूंगी और मारे अकड़ के मै माफ़ी भी नही मांग सका -अनिल पुसदकर
- मम्मा ये सब तो मुझे नही जानते ना फ़िर भी सबने मुझे विश किया इतनी प्यारी प्यारी दुआए लिखी , कितने अच्छे हैं न सब और मै ऋणी हो गयी.....सीमा गुप्ता
- महकने लगा है फिर से कोई टेसू का फूल
यह ख़ुश्बू शायद किसी ख़्याल से आई है इश्क़ की महक- रंजना भाटिया - एक हाथ में गंगाजल है
और दूसरे में पिस्टल है.
तनातनी के युग में लगती
पूरी दुनिया ही पागल है! योगेन्द्र मोद्गिल - ईश्वर , धर्म ,सही -गलत , विनम्रता ,सहिष्णुता के सबकों को पढाने के लिए स्कूलों के पास तो समय है न ही सामर्थ्य ! पढाई के घंटों अलग -अलग विषयों में बंटा टुकडा -टुकडा सा समय , एक ही कमरे में पैंतालीस -पचास बच्चे , बच्चों की भीड झेलते शिक्षक ...! सिस्टम ही ऎसा है किसको दोष दें ! ले दे के सारा दोष हम अपने ऊपर ही ले लेते हैं ! सही काम का सही नतीजा उर्फ मारे गए गुलफाम -नीलिमा
- हम देखते ही पहचान जाते हैं कि कौन पति पत्नी हैं और कौन प्रेमी प्रेमिका है। पति पत्नी और प्रेमी प्रेमिका के प्यार में बहुत फर्क होता है। पति पत्नी आम तौर पर प्यार को भी ड्यूटी की तरह करते हैं और प्रेमी प्रेमिका सिर्फ प्यार ही को ही अपनी ड्यूटी समझते हैं और चौबीस घंटे हर जगह करने को सन्नद्ध, कटिबद्ध प्रतिबद्ध टाइप रहते हैं। पति का चेहरा बता देता है कि अगला आलू के भावों पर सोच रहा है, प्रेमी का चेहरा बता देता है कि अभी आलू इसके एजेंडा में नहीं हैं। आटोरिक्शाई पति उर्फ मुतालिक सोल्यूशन-आलोक पुराणिक
- सेकुलरवाद का अतिवादी अर्थ लेने वाले भारत में इन मूर्खतापूर्ण आस्थाओं पर सवाल उठाना और कठिन है। जो लेख इंग्लैंड में छपा और अब भी मजे से उपलब्ध है उसे केवल पुनर्प्रस्ततु करने की सजा के रूप में इन्हें गिरफ्तारी सहनी पड़ी। हमेशा की तरह हमारा मानना है कि यदि आस्था या ठेस पहुँचाने से बचने की कोशिश में हम धर्म को आलोचना से परे कर देंगे तो स्वात घाटी की स्थितियॉं चॉंदनीचौक पर आ पसरेंगी। आहती जीवों की बन आई है -मसिजीवी
पोस्ट/टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी:
पोस्ट:एक पुरानी पोस्ट प्रासंगिक जानकर डाल रही हूँ। अविनाश जी को चिंता रहती थी कि चोखेरबालियाँ चुप क्यो है ? चोखेरबालियाँ चुप न थीं , न रहती हैं। लेकिन कोई उनके हलक मे उंगली डालकर अपनी मनचाही बात उगलवाना चाहे यह सम्भव नही है।हम स्त्री के सम्मान पर आघात का विरोध और निन्दा करते रहे हैं , करते रहेंगे॥ खबर आई है और उसकी पुष्टि हो चुकी है सो ,अविनाश जी का कर्तव्य बनता है कि वे इसका जवाब दें। लड़की ने लिखित मे शिकायत की है और अविनाश जी नौकरी गँवा चुके हैं इसलिए अब चुप रहने का कोई फायदा नही है।
खोने को कुछ नही है सो सच बोलना चाहिए।
चोखेरबाली
टिप्पणी: क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।
मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।
मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।
दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।
ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।
मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।
मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।
मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।
एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
अनाम
प्रतिटिप्पणी: (अगर यह अनाम टिप्पणी अविनाश की ही है!)अगर आप गलत नहीं हैं तो आपको अपने पर भरोसा करना आना चाहिये। ऐसा भी क्या आत्मविश्वास की कमी होना कि अनाम नाम से टिप्प्णी करने लगे।
वैसे यह उचित समय है कि विचार करो कि ऐसा कैसे हुआ कि अविनाश इस बात पर विचार करें कि उनके नाम का मतलब विवाद से जुड़ा व्यक्ति हो गया।
मुझे मोहल्ले पर अविनाश द्वारा छापे गये चैट वार्ता का प्रकरण याद आता है। कितने लोग कहते रहे, चैट करने वाली आपकी मित्र ने खुद अनुरोध किया तब भी मोहल्ले से उसके साथ हुये चैट के विवरण मोहल्ले से नहीं हटे। कैसे नारीवादी हो भाई?
तमाम किस्से हैं कित्ते गिनायें?
इस किस्से के पीछे पैसा है, पावर है या क्या है मैं नहीं जानता लेकिन आपकी छवि के पीछे बहुत कुछ सिर्फ़ वही होता है जैसे आप होते हैं।
एक लाईना
- जिंदगी की कोई स्क्रिप्ट नही होती : इधर तो सब मामला फ़ाईनल है!
- ब्लॉग पोस्ट प्रमुख है, शेष गौण :प्रमुख तो खैर क्या सब झुनझुना हैं मन के
- जैसा देश वैसा भेष: क्या इसका उलट भी सही है? कृपया पुष्टि करें
- गैरों के मनोनियंत्रण के लिये अचूक नुस्खे!!:आप तो गैरों के भले में ही जुटे हैं ,कुछ आत्ममनोनियंत्रण के जुगाड़ भी देखिये शास्त्रीजी
- “सत्ता सिर्फ बंदूक की नली से नहीं निकलती” : सत्ता तो कंचनमृग है। न जाने कहां से निकलती है और किधर निकल जाती है
- उसने कहा मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूंगी और मारे अकड़ के मै माफ़ी भी नही मांग सका :असफ़लता यह बताती है कि सफ़लता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया
- क्या आपने कभी चलती ट्रेन या कार से गंगा जी मे सिक्का डाला है ....: हमने तो हाथ से डाले हैं कार या ट्रेन से नहीं
- और मै ऋणी हो गयी.....:कोई नहीं आसान किस्तों में जिंदगी भर चलेगा
- सही काम का सही नतीजा उर्फ मारे गए गुलफाम :तो तीसरी कसम के बाद कहा जाता है!
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और अंत में
कल अविनाश के बारे में खबर आई कि उन्होंने एक लड़की के साथ जबर्दस्ती की कोशिश की और नौकरी से निकाले गये। सच क्या है यह वे ही जानते होंगे! लेकिन इस मुद्दे पर बैरागी जी और एकाध लोगों ने अनाम प्रतिक्रिया ही दी हैं। खुद अविनाश ने अपनी बात अनाम रहकर लिखी। लोगों का तो पता नहीं लेकिन मुझे छुपकर कही जाने वाली सच बात भी अफ़वाह ही लगती है।
आज की चर्चा का तय दिन कुश के नाम था। लेकिन वे पहले ही कर चुके धांसू चर्चा सो उनसे क्या कहें? कल विवेक ने चर्चा की। बहुत अच्छा लगा उनको अपनी जिम्मेदारी निभाते देखकर। विवेक की आशु कविता की क्षमता जबरदस्त है। कल की चर्चा से एक बार फ़िर इसकी पुष्टि हुई।
कविताजी अभी भी ठीक नहीं हुई हैं। समीरलालजी के पिताजी का एक छोटा सा आपरेशन होना था। शीघ्र स्वस्थ ,निरोग होने की मंगलकामना करता हूं।
कल की चर्चा के लिये शिवकुमार मिश्र मिलेंगे आपको। तब तक आप क्या करेंगे टिपिया ही लीजिये!
कविताजी और समीरजी के पिताश्री दोनों के स्वास्थ्य लाभ के लिये मंगल कामनायें
जवाब देंहटाएंचलते चलते ऐं वें ही कह देते हैं "ऐं वें चर्चा पढकर" मजा आया।
आज की चर्चा आप ने एकदम नये अंदाज में की है. आपकी सृजनधर्मिता की दाद देते है.
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी, विषयों में वैविध्य है.
आप ने पूछा "कुछ आत्ममनोनियंत्रण के जुगाड़ भी देखिये शास्त्रीजी "
चक्कर यह है साथी कि आत्ममनोनियंत्रण की कोशिश करेंगे तो सबसे पहले "भडकाऊ शीर्षक" बंद करने पडेंगे!! एक एक करके सब कुछ त्यागना पडेगा. जिन्दगी बेजान हो जायगी. सबसे बडी परेशानी यह होगी कि आप को लिखने के लिये एक विषय कम हो जायगा!!
सस्नेह -- शास्त्री
पुनश्च: आप के एकलाईना जबर्दस्त होते हैं!
मान.कविता जी और समीर जी के मान. पिताजी के स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंब्रेकफ़ास्स्ट करवाने मेरा मतलब ब्रेकफ़ास्ट चर्चा के लिये आपको बहुत धन्यवाद.
रामराम.
कविता जी जल्दी स्वस्थ हों और समीर जी के पिता जी का ऑपरेशन सफल हो ईश्वर से कामना है !
जवाब देंहटाएंजब लोगों ने हमें आशु कवि कहना शुरू किया तो हम पशोपेश में थे कि यह तारीफ है या खिंचाई ! भागे भागे गए , हिन्दी का शब्दकोश लेकर आए तब तसल्ली से आशुकवि का मतलब देखा !शुक्रिया !
एक वार्ता :
" ऐं-वैं टाइप चर्चा अच्छी लगी !"
"ऐं जी !"
" अजी मैंने कहा ऐं-वैं टाइप चर्चा अच्छी लगी ! "
" क्या ? पर्चा लीक हो गया ? ये पर्चे तो लीक होते ही रहते हैं .
छोडिए ना , आप टिपियाइए बस्स ! "
कविताजी और समीरजी के पिताश्री दोनों के स्वास्थ्य लाभ के लिये मंगल कामनायें चर्चा अच्छी लगी"
जवाब देंहटाएंRegards
,
कविताजी और समीरजी के पिता जी दोनों के स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनाये ..यह ऐं-वैं टाइप चर्चा भी बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंऎं वैं ईं !
ये एकलाईना आप बहुत बढिया लिखते हैं
जवाब देंहटाएंआज की शिक्षा पद्धति पर जितना कम कहें उतना ही अच्छा। साथ ही आजकल के बच्चों के लिए मां-बाप के पास समय नहीं जो बच्चों को अपने संस्कार दे सकें। अब किस-किस को दोष दें :)
जवाब देंहटाएं>केरेक्टर-एसासिनेशन कितना सरल है! अब ब्लाग जगत से और तेज़ हो जाएगा- हवा की तरह फैलेगा। कोई सफाई दे भी तो किस पर विश्वास करें किस पर नहीं ? पाठक तो दो-राहे पर ही रहेगा!
>कविताजी और समीरलालजी के पिताश्री शीघ्र स्वास्थलाभ करे, यही प्रार्थना है।
क्या कहे ? बेबाक दलीले भी कभी कभी मुश्किलें लाती है ,पर खामोशी भी हर मसले का हल नही होती ....cmpershad भी ठीक कहते है
जवाब देंहटाएंइस शहर में जीने के अंदाज निराले है
होठो पे लतीफे है आवाजो में छाले है - जावेद अख्तर
ऐं-वैं टाइप चर्चा/संयमित और अच्छी लगी .समीरजी के पिताश्री के स्वास्थ्य लाभ के लिये मंगल कामनायें आभार.
जवाब देंहटाएंचर्चा को नाम चाहे
जवाब देंहटाएंएक ऐं-वैं टाइप चर्चा
दें दें पर इतने भर से
सार्थक कभी निर्थक
नहीं हुआ करता
और मेरे हमनाम
अविनाश के साथ
घातक हुआ है
यह घात लगाकर
किया गया है या
घातक होने के बाद
लगाई गई है घात
न जाने कौन बताएगा
और कैसे पता चलेगा।
'पोस्ट/टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी:' इ सब के चल रिया है..? अपना तो उस गली में आना जाना ही नहीं है ! देख के आते हैं.
जवाब देंहटाएंआप कहते हैं तो टिपिया लेते हैं :) सही है और क्या करेंगे...
जवाब देंहटाएंआज कि चर्चा का शीर्षक चर्चा से बाजी मार ले गया...एकदम झकास है.
अविनाश को सजा तो मिल ही गयी है ! अब शायद दिमाग ठिकाने आ जाय -और लो प्रोफाईल में शेष जीवन बिताएं !
जवाब देंहटाएंआपने ऐं-वें चर्चा में हमारी पोस्ट का लिंक दिया। बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकविताजी और समीरलाल के पिताजी के लिये मंगल कामनायें।
समीर जी के पिताजी व कविता जी के शिघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ आपको को बधाई बढिया चर्चा के लिये।
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों का और अनूप जी का बहुत बहुत आभार शुभकामना संदेशों के लिए.
जवाब देंहटाएंऎं वैं ???
जवाब देंहटाएं