बहरहाल हम उधर सोचते रहे और देखते रहे कि चिठेरा-चिठेरी क्या बतिया रहे हैं! आप भी देखियेगा? देख लीजिये न!
चिठेरी:क्यों रे चिठेरे! क्या गुल खिल रहे हैं तेरे ब्लाग जगत में?
चिठेरा:गुल क्या खिलें हैं। सब मामला ढक्कन है। न कोई सनसनी न वनसनी! सब सत्यनारायण की कथा सा माहौल सा बना हुआ?
चिठेरी: ऐसा कैसे? तेरे शीर्षक सनसनी किंग शास्त्री जी क्या कर रहे हैं?
चिठेरा:अरे कुछ न पूछो! वे चढ्ढी कंडोम कांड का आखिरी अध्याय लिख रहे हैं!
चिठेरी: इसके बाद क्या करेंगे शास्त्रीजी?
चिठेरा:ये तो वे भी नहीं जानते। शास्त्रार्थ के अलावा और कुछ तय नहीं जी उनका?
चिठेरी:पूजा का क्या किस्सा है? सुना है उन्होंने घर आसमान पर उठा लिया था?
चिठेरा:अरे कुछ नहीं! वो तो अपने बचपने के किस्से सुना रही हैं! ज्ञान दे रही हैं-चढी नस बड़ी नकचढ़ी होती है :)
चिठेरी:तो क्या नस भी नाक वाली होती है?
चिठेरा:अब ई सवाल का जबाब तो ताऊ को भी नहीं पता वर्ना आज शनीचरी पहेली में यही पूछते!
चिठेरी: अच्छा ई तुम्हारे ज्ञानजी को क्या हो गया है बात-बेबात ताली बजाते रहते हैं?
चिठेरा: अरे ऊ अपनी जलन बता रहे हैं कि भाई समीरलाल दस हजारिया हो रहे हैं। हमसे ई देखा न जायेगा। हम सोने जा रहे हैं।
चिठेरी:जलन कैसे भाई! सबका अपना नींद का टाईम होता है। अब न जाने कब दो ठो और पूरी होती! सो वे सो गये।
चिठेरा: अरे तो उनको समीरलाल के पथ का अनुसरण करके दो ठो टिप्पणी करके सोना चाहिये था।
चिठेरी: अरे तू तो हर जगह बेफ़ालतू बात करता है। क्या लिखते भला उन टिप्पणियों में!
चिठेरा: अरे इसमें क्या? वे लिखते -
९९९९:आप दस लाख टिप्पणी की बधाई!
१००००: पहले की टिप्पणी में दस लाख की जगह दस हजार पढ़े! दस लाख भी जल्द ही होंगे।
चिठेरी: यार तू बोर बहुत करता है। इससे अच्छा तो वे तीन बजिया ब्लागर भाई साहब हैं।
चिठेरा:ये तीन बजिया भाईसाहब कौन हैं तेरे? क्या हर घंटे के तेरे भाई साहब अलग-अलग है! कभी बताया नहीं! बता तो सही!
चिठेरी: अरे तू तो ऐसे जिज्ञासु हो लिया जैसे तेरे नसीब में कोई रकीब फ़ूट पड़ा। ये हमारे डा.अमर कुमार रायबरेली वाले हैं। ये भाई साहब कोई पोस्ट तब्बी लिख पाते हैं जब घड़ी का कांटा तीन पर आ लगे।
चिठेरी:अच्छा, अच्छा। ये तो भले आदमी से दिखते हैं। वर्ना आजकल के डाक्टर तो अपने जज्बात वेंटीलेटर पर रखते हैं!
चिठेरी:इत्ती देर हो गयी कुछ कविता-सविता न हुई! क्या बात है! कुछ सुनायेगा या चलूं?
चिठेरा: अरे सुनो न अलीगढ़ वाले अमर ज्योति कहते हैं:
सिर्फ़ उम्मीद थी; बहाना था;
तुम न आये, तुम्हें न आना था।
दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था
चिठेरी:इसका मतलब क्या हुआ जी? तुम न आये, तुम्हें न आना था?
चिठेरा:इसका मतलब कि जो सोचा था वही हुआ। कविता फ़्री-फ़ंड में बन गई!
चिठेरी:अच्छा-अच्छा! समझ गई अब अगली पढ़ कोई कविता!
चिठेरा:अनीता वर्मा कहती हैं:
शीशे के बाहर बैठा है
एक कबूतर और उसका बच्चा
यह अस्पताल बीमारों को जीवन देता है
कबूतर को भी देता है जगह
चिठेरी: अरे तू चुप क्यों हो गया रे! क्या ये सोच रहा है कि काश तू भी कबूतर होता और बिना किराये के रहता गुटरगूं-गुटरगूं करते हुये।
चिठेरा: अरे तेरी अकल अभी गुड्डे-गुड़ियों वाली कविता में अटकी है। इससे आगे सोचना तेरे को न आया।
चिठेरी:अरे इसमें सोचने की क्या बात है रे? क्या तू सोचता है कि मैं भी रेलवे के अफ़सरों की तरह लिये पेन ड्राइव वायरस इधर से उधर करती डोलती फ़िरूं?
चिठेरा:तू कुछ मत कर बस अब चल! मुझे कुछ काम करना है।
चिठेरी:बड़ा आया कही का काम करने वाला। जरा कुछ एक लाईना सुना तब चलूं!
चिठेरा:नहीं मानती तो ले सुन! सुन क्या पढ़!
एक लाईना
- सिर्फ़ उम्मीद थी :उम्मीद अकेले बहुत कुछ होती है जी!
- वेब २.० (Web 2.0) और रेल महकमा : आंकड़ा 36 का है
- समीरलाल का आंकड़ा : ताली पांडेजी की
- चढी नस बड़ी नकचढ़ी होती है :) : दूधवाला!!! भी यही कहता है
- ताकि गुम न हो आपकी आवाज़ :इसलिये रिकार्ड करने का तरीका बता रही हैं राधिका
- आप सबकी खट्टी-मीठी टिप्पणियों की बदौलत ब्लॉग ने पूरे किए दो साल :और पोस्ट कौन लिखता रहा जी!
- क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है? : कहां जी! लोग तो कहते हैं झूठ के पैर ही नहीं होते!
- तामीले-हुक्म (मुकुलजी, समीरलालजी, सीमा गुप्ताजी, और ताऊजी का) ---बवाल :को तो बस बवाल का बहाना चाहिये
- चड्डी-कंडोम कांड — आखिरी अध्याय!! : इसके बाद शास्त्रार्थ शुरू होगा, सर फ़ुड़वाने वाले आमंत्रित हैं
- ब्लागिरी में जरूरी व्यवधान:कितना क्यूट लगता है
- इक हिन्दोस्तानी वो लड़की:अब क्या वो पाकिस्तान चली गई?
- फ़क्कड़ कवि थे निराला : थे कम बना ज्यादा दिये गये
- आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है... :कोई थाने में रपट लिखा देगा।
- खुली आँख से सपना देखा :आंख आपकी सपना आपका कोई क्या कहे?
- फागुन के संग पतझड़ आया बहुत दिनों के बाद .....! : दोनों मिल जायेंगे मिट्टी में, खूब बनेगी खाद!
- मेरी नजर में कुछ बड़े ब्लागर और उनकी लेखनी :नजर उतरवाय लेव भैया अपनी नजर की बड़ी धांसू है!
- स्कूल से भाग कर जहां क्रिकेट खेलते समय पकड़ाया था आज वहां का ……………। : किया धरा भी सुन लो जी!
और अंत में
ममताजी के ब्लागिंग के दो साल पूरे होने पर बधाई। उन्होंने किस्सागोई वाले अंदाज में तमाम संस्मरण लिखे। इलाहाबाद के उनके संस्मरण खासकर याद करने और दुबारा पढ़ने वाले हैं।
वैसे एक बात यह भी है नोट करने वाली कि ममताजी ने अभी तक एक बार भी ब्लागिंग बंद करने की धमकी नहीं दी। इससे उनके रुतबे में अभी वो बात नहीं आयी जो टंकी पर चढ़ चुके लोगों में आ जाती है। दो साल का समय बहुत होता है जी।
ममताजी अपना नियमित सहज लेखन जारी रखें! टिपियाने के लिये तो हम लोग हैही!
सामयिकी का जनवरी 2009 का प्रिंट अंक उपलब्ध है। आप इसे खरीदेंगे तो अच्छा लगेगा। देखिये तो सही।
फ़िलहाल इत्ता ही। बकिया कल आर्यपुत्र आलोक कुमार चर्चा करेंगे। कविता जी स्वस्थ हो रही हैं। संभवत: सोमवार को आप उनकी चर्चा देखें।
आप सभी को शुभकामनायें।
वाह! आज की चर्चा पढ़ कर एकदम दिल खुश हो गया. ये चिठेरा शब्द कहाँ से लाये हैं? एकदम ठेठ भाषा में ठाठ से बातें कर रहे हैं चिठेरा चिठेरी. एक लाइना भी मस्त है, हमें खास तौर से १५ नम्बर ज्यादा पसंद आई.
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंचिठेरी: चिठेरा
चिठ्ठाचर्चा में दोनों को पढ़कर आनंद आ गया जी
"Indibloggies contest is limited to blogs written in English language only. We are considering holding Indibloggies for Indian language blogs in latter part of the year. "
जवाब देंहटाएंअब चिट्ठा चर्चा का फार्मेट यही डाय्लोग वाला होगा क्या, मसिजीवी वाले कल के फार्मेट में। अच्छा है चलो कुछ तो नया हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंचिठेरी: चिठेरा
जवाब देंहटाएं" ha ha ha ha ha ha "
Regards
ग़ज़ब की चिठेरी-चिठेरा कर डाली गुरूजी आपने तो हा हा हा । अब इनको ही आपकी चिट्ठा चर्चा का ब्राण्ड-एम्बेसडर बना लीजिए सर, मज़ा आया इनका संवाद सुनने में, सच।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा काफ़ी क्यूट है।
जवाब देंहटाएंक्योंकि आपने शीर्षक में दो दो चिठेरी आमने सामने तैनात कर दी हैं; तिस पर भी मामला निभता जा रहा है।
वैसे पंडित देसी हो या बिदेसी फ़र्क इतना ही पड़ता है कि असल पंडित हो, नाम का या ज़ात-भर का नहीं। कर्म भी खरे हों।लिंक वाले देसी को तो देखना बचा है..सो क्लिकाते हैं।
चिठेरी : और अपने ई जो अनूप सुकुल हैं, ई का कर रहे हैं आजकल. ई तो बताया ही नहीं तैंने रे चिठेरे.
जवाब देंहटाएंचिठेरा : अरे इसमें बताना क्या है?
चिठेरी : क्यों?
चिठेरा : ऊ आजकल कुछ नया नहीं लिख पा रहे हैं. तो पुराना माल है पहले ठेल चुके हैं उसी को फिर से ठेलमठेल कर के काम चला रहे हैं.
समीर लाल के लिये ताली बजवाने से चिठेरा-चिठेरी के का परेसानी है जी!
जवाब देंहटाएंहम तो सांकृत्यायन जी की बात का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। टटका माल लायें फुरसतिया।
वाह ! पता नहीं क्यों मन किया. लिख दें... 'जियो मेरे लाल' ! लेकिन बडो को ऐसा नहीं कहते तो फिर ये सही: 'आपका जवाब नहीं'
जवाब देंहटाएंbatao ji aajkal to baato baato mein charcha hone lagi.. ye bhi khoob hai ji... kash hame bhi koi mil jaye.. jo baat karte hue charcha kar le..
जवाब देंहटाएंwaah ....maza aa gaya
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत बढ़िया रही ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आप की हर चर्चा एकदम से तजगी लिये होती है. यह चर्चा भी इस का अपवाद नहीं है. बल्कि लगता है कि आज कुछ अधिक ताजगी दिख रही है. हास्य का पुट भी जम कर है.
जवाब देंहटाएं"चड्डी-कंडोम कांड — आखिरी अध्याय!! : इसके बाद शास्त्रार्थ शुरू होगा, सर फ़ुड़वाने वाले आमंत्रित हैं"
फिकर न करें, अगले शास्त्रार्थ के पहले हम आपकी टांग खीचने की सोच रहे है. लेकिन समझ में नही आ रहा कि विषय क्या हो.
हां इस बार सरफुटौवल की नौबत नहीं आई. रिंग में सिर्फ वे उतरे जो कायदे के अनुसार वार कर रहे थे!!
सस्नेह -- शास्त्री
वाह जी, एकदम झकास स्टाईल के चिठेरी और चिठेरा चर्चा है. एक लाईना तो चकाचक मस्त जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रणाम
जवाब देंहटाएंचिठेरा - चिठेरी का संवाद पढ़ के मज़ा आ गया .
धन्यवाद
झाड़े रहो कलेक्टर गंज में बैठ कर चिठेरा चिठेरी संवाद, इनके संवाद तो हमेशा ही मस्त रहते हैं लेकिन चिट्ठाचर्चा में आकर सवांदों में और चार चाँद लग गये। शनिवारी चर्चा के लिये धनबाद, बिहार जाकर ले सकते हैं तो ले लें ;)
जवाब देंहटाएंममताजी को बधाई और शुभकामनायें
मैं बिल्कुल देसीपंडित स्टाईल की बात नही कर रहा, उस फार्मेट की बात कर रहा हूँ यानि कि कोई भी चर्चा के लायक लगी पोस्ट पकड़ उस पर इसी तरह अपनी बात कहके ठेल दो। इससे नियमित एक वक्त पर होने के बजाय ज्यादा चर्चायें हो सकती हैं और ज्यादा और अच्छा लिखा चिट्ठों पर चर्चा हो पायेगी वरना मैने नोट किया है ज्यादातर वो ही पोस्ट का जिक्र होता है जो या तो अलसुबह लिखी गयी हों और या बहुत शाम में।
जवाब देंहटाएंजिस तरह से चिट्ठे बढ़ रहे हैं उनको देखकर मुझे लगता है, वर्तमान फार्मेट को बदलने का सोचना होगा क्योंकि इस तरह के चर्चा फार्मेट में सभी को एक समान आंख से देखा नामुमकिन होता जायेगा, थोड़ा दूरदर्शी होने के जरूरत लग रही है। बकिया ये बहस का विषय है लेकिन कह नही सकता इसमें बहस होगी क्योंकि कोई सनसनी टाईप टॉपिक नही ना है जी ;)।
चिट्ठा चर्चा का यह अंदाज भी मजेदार रहा |
जवाब देंहटाएंफुरसतिया कौन ?सच पूछिए तो हमें भी जानने में वक़्त लगा था की अनूप शुक्ल ओर फुरसतिया एक ही चीज है..खैर तरुण जी ने एक वाजिब सवाल उठाया है ..ओर गौर करने के लिए आपके अलावा किससे कहेगे .....क्यों नही अतिथि संपादक की तरह अतिथि चर्चा का दौर शुरू किया जाये .....बस निष्पक्षता की डोर हाथ में बंधी हो......
जवाब देंहटाएंचिठेरा चिठेरी- चलिए एक और अध्याय शुरू हुआ . फुर्सत मे इसका स्रजन किया होगा . तरुण भाई की बात मे दम है
जवाब देंहटाएंमास्साब-ई चोकरबाली इश्टाइल है। आप तो बढिया चर्चा चितेरे हैं ही, तो इस इश्टाइल में भी निखार आ गया। बधाई॥
जवाब देंहटाएं>तरुण जी, ये ‘झाडा’ शब्द बडा खतरनाक है। हमारे इहां टोयलेट को कहते हैं- तो ज़रा सम्भल के:)
चिठेरी: चिठेरा चोंचा चांची खूब रही. काफी बातचीत करते हैं, अच्छा लगता है. जारी रखिये इस फार्मेट का संवाद. शुभकामनाऐं.
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