मंगलवार, फ़रवरी 17, 2009

इस जीवट को देख युवा भी शरमाते हैं

नमस्कार ! मंगलमयी, चर्चा में फिर आज ।
स्वागत है सब पाठको, करते हैं आगाज ॥

राधा प्यारी खो गयीं, खोजत हैं गोपाल ।
होरी खेलन को चले, लेकर रंग गुलाल ॥

वेलेण्टाइन का अभी, उतरा नहीं बुखार ।
उम्र ढली तो क्या हुआ, दिल तो है दिलदार ॥

बनते हैं क्यों, किस तरह, सामाजिक सम्बन्ध
पूछें इण्टरनेट से, आप करें आनन्द ॥

दुआ माँग लेंगे तभी, निकलेगा जब चाँद ।
हमें आप ही मिल सको, रब से है फरियाद ॥

एयर शो बंगलौर में, देखा पहली बार ।
आँखों देखे हाल का, बहुत बहुत आभार ॥

हिन्दी में होने लगे, ई-लव, ई-तकरार ।
लवली, तकरारी सभी, ई पर हुए सवार ॥

जो गुजरा वह भूलकर, ढूँढो नए विकल्प
नव मौसम में आप भी, कर लो कायाकल्प ॥

तांत्रिक की नज़रें बुरी, इसके पास न जाउ ।
मस्त रहो तुम व्यस्त भी, व्यर्थ न समय गँवाउ ॥

अरुंधती के नाम पर, बिदक गए यशवंत
जूता मार वकील को, बाहर किया तुरंत ॥

रुककर थोडा सोच लो, किधर रहे हो जाय ।
व्यर्थ पतन की होड में, खुद को मत उलझाय ॥

आज जरूरी हो गया, है फिल्मों का ज्ञान ।
दो जीके के साथ ही, बीके पर भी ध्यान

गधे न होते तो भला, कैसे चलता काम ।
मूर्ख आदमी को यहाँ, फिर क्या मिलता नाम ॥

भागदौड में हो गया, शादी जैसा काज
बहुत मुबारक आपको, अब खोला है राज ॥

काले हैं तो क्या हुआ, अखबारों में नाम ।
हरिभूमि में छप गए, मिली खबर कल शाम ॥

अब है सिक्का गैलरी, वडोदरा गुजरात ।
इच्छा हो तो जाइए, ले मित्रों को साथ ॥

मिट्टी का बर्तन नहीं, सारंगी का साज
पंछी उडे जहाज से, आवै लौटि जहाज ॥

बाघों के ताबूत में, यही आखिरी कील
ट्राइबल बिल से होरहा, यही सचिन को फील ॥

कौशल हाँ मत बोलिए, फँसने के आसार ।
एक बार ना बोलकर, सुखी रहोगे यार ॥

देखें बिल्लू बारबर, रहा बुदबुदा गाम ।
लोगों ने किसका यहाँ, रखा भयंकर नाम ॥

सन्नाटे में भी सुनें, है अजीब संगीत ।
जरा शांत हों फिर सुनें, यह कुदरत का गीत ॥

याद किसी की आरही, दिल में कुछ कुछ होय ।
गुलशन वीराना लगे, मन सब सुध बुध खोय ॥

छोटे छोटे से लगें, तेरे सब उपहार
है कुदरत के गिफ्ट का, मुझको इंतजार॥

पैसा क्रय बिक्रय करे, पैसे के सब काम
देता है आराम भी, करता नींद हराम ॥

वेलेण्टाइन दिवस पर, किया क्यों नहीं यार ॥

धुआँ यह सिगरेट का, पागल देत बनाय ।
दूर रहो उस शख्स से, धुआँ रहा उडाय ॥

कवि प्रदीप ने जो लिखे, देशभक्ति के गीत ।
फिर न लिखा कोई कभी, होता यही प्रतीत ॥

रात गयी दिन आगया, दिवस गया अब रात ।
ये आते जाते रहें, यही भली है बात ॥

अमर सिंह आ जाएंगे , कभी आपके द्वार ।
अभी मानसिक रूप से , हो जाओ तैयार ॥

अक्सर मैं दिल की लगी, दिल में रही दबाय ।
जानेंगे जो लोग सब, क्या क्या अर्थ लगायँ ॥

सत्यम घोटाला हुआ, नैतिकता की हार ।
राजू के पीछे पडे, मीडिया औ' सरकार ॥

कहीं हुआ टकराव तो, कहीं हो रहा मेल ॥

मसिजीवी की टिप्पणी, का आगया जवाब ।
करें सफाई पेश कुछ, अब बढ रहा दबाब ॥

शुभचिंतक क्यों सुस्त हैं, खूनी क्यों मुस्तैद ।
क्यों मानवता हो गई, अपने घर में कैद ॥

फाइल ऐसी कौन सी, चला न पाए आप ।
पहेलियाँ सी पूछते , क्या अनाप शनाप ॥

भारतीय इतिहास का, वह काला अध्याय ।
फिर से पढकर देख लें, शायद कुछ मिल जाय ॥

इसका पारावार ना, लाजबाब है प्यार
बैठ किनारे देखते, धरती का विस्तार ॥

एक बालिका का हुआ, है कुत्ते सँग ब्याह
हे ईश्वर यह आगया, कैसा कलयुग स्याह ॥

मेर मन पिघला गए, वो मटमैले नैन
मैं पानी बनकर बहा, बोले ऐसे बैन ॥
चन्द आँकडे बाँच लें, खुल जाएं यदि आँख ।
इनको जाहिर ना करें, चुप्प दबा लें काँख ॥




ब्लॉगर महिमा


डॉक्टर अमर कुमार

रायबरेली में रहें, डॉक्टर अमर कुमार
खरे खरों की लिस्ट में, इनका नाम शुमार
इनका नाम शुमार, जटिल सच्चे लोगन में ।
जिव्हा पर भी वही बात रहती जो मन में
विवेक सिंह यों कहें, लिखें ये उलझा धागा ।
जो सुलझाने चला, हारकर पानी माँगा ॥



उनकी बात




हलचल


बूढे भी अब स्वयं को, कहने लगे जवान
सुन सुनकर आलाप यह, पक जाएंगे कान ॥
पक जाएंगे कान, मचेगी मन में हलचल ।
उम्र तिरेपन साल, हो रहा है मन बेकल ॥
विवेक सिंह यों कहें, अजी क्यों घबराते हैं ?
इस जीवट को देख, युवा भी शरमाते हैं ॥



चलते-चलते


शास्त्रीजी

आप बडे ब्लॉगर हो माना । हमने जरा देर से जाना ॥
ब्लॉग ब्लॉग विचरण करते थे । टिप्पणियाँ अर्पण करते थे ॥
नारी ब्लॉग जहाँ भी देखा । हुए दण्डवत मत्था टेका ॥
संकट पुरुषों पर था भारी । पर हम पूज रहे थे नारी ॥
स्वकर्तव्य हम निभा न पाए । अब क्या होता पर पछताए ॥
पश्चाताप अनल है मन में । हुआ बोझ सा यह जीवन में ॥
प्रायश्चित करने का मन है । आप बताएं क्या साधन है ॥
आशा है माफी पाएंगे । अगले मंगल फिर आयेंगे ॥

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28 टिप्‍पणियां:

  1. गुरु
    अब बिल्कुल सही
    अच्छी चर्चा की बधाईयाँ

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  2. हर नर्मदेश्वर सदा सहाय
    घणे राम राम राम चोखे कृष्ण कृष्ण कृष्ण
    भक्तवत्सल बजरंगी बालक, चर्चाभक्तन के सुधि लीयन आय गये

    अपणे विवेक का सँभरा देखि कै, हमई मुँहन ते बोल नाय फूटत लला
    तीन से तीन पन्द्रह हुई गये की-बोर्डिया पर अँगुरिया जाम गये लला
    टिप्पणि का लिखैं, वरिष्ठन का गरिष्ठ अब हज़म नाहिं होत है लला
    विश्वामित्र मेनका कूँ ललचाय औ' क्लिष्ट पर भड़कत कनिष्ठ हैं लला

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  3. अगले मंगल फिर आयेंगे ॥

    ye achchca he

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  4. बढ़िया चर्चा। बोल बजरंगबली की जय! ब्लागर महिमा, उनकी बात अच्छी जमी। अगले मंगलवार का इंतजार रहेगा!

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  5. आपका मंगल मय स्वागत है.

    रामराम.

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  6. नारी ब्लॉग जहाँ भी देखा । हुए दण्डवत मत्था टेका ॥

    टिप्पणी: हिन्दी चिट्ठाजगत में एक मजेदार बात यह है कि एक दो नारियां हैं जो किसी पुरुष चिट्ठाकार का विरोध करते हैं तो बचे कई पुरुषों को एकदम मूत्रशंका होने लगती है और वे तुरंत इन नारियों के चिट्ठों पर जाकर मथ्था टेक आते हैं कि “देवी, हम ने गलती नही की, अत: हमारे विरुद्ध कुछ न लिखना”. यही चड्डी-कांड में आज हो रहा है..
    शास्त्री जे सी फिलिप
    _-------
    मत्था टेका कब , मूत्रशंका आयी जब
    नारी लिखे ब्लॉग , महान ब्लॉगर कहे
    महिला का ब्लॉग यानी शौचालय
    गाँधी बाबा कह गये हैं अपनी ही नहीं दूसरो कि गंदगी भी साफ़ करो सो कमेन्ट मोदेरेशन आहे

    चकाचक चर्चा

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  7. चलते चलते तो कमाल कर दिया आपने. बोले तो, एकदम झकास!

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  8. जय हो मंगलवार की चर्चा जय जय कार |
    मन तो पुलकित हो गया , चढ़ा ब्लॉग बुखार ||

    धन्य हैं आप विवेक जी
    महिमा सिंह विवेक की , शब्दों वरनी ना जाय
    इस ब्लॉग को वांच कर , अब कुछ पढा ना जाय

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  9. भाई वाह क्या खूब चिट्ठा चर्चा की है ...मजेदार

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  10. बेहद मंगलमय एवं मंगलदायी चिट्ठा चर्चा रही........

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  11. चलें टॉयलेट हो आयें। अन्यथा टिप्पणी की गुणवत्ता प्रभावित होगी!
    चर्चा बढ़िया है।

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  12. अब हम ठहरे युवा... तो हम भी शरमा रहे है..

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  13. बढ़िया रही यह चर्चा
    अगले मंगल फिर आयेंगे ...."पढ़ने"

    Regards

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  14. बहुत मेहनत से की गई चर्चा- बहुत सार्थक और रोचक। अब हम का बधाई दें आपका!:)

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  15. अद्भुत और अविस्मरणीय चिट्ठाचर्चा.

    चर्चा को कविता में ढालने का ऐसा अद्भुत कार्य आप ही कर सकते हैं, हे चर्चाकारश्रेष्ठ. आपके मंगलवारीय चर्चा करने से चिट्ठाचर्चा नामक मंच धन्य हुआ.

    आगामी मंगलवार आप पुनः चर्चा करेंगे ऐसा हमारा विश्वास है, हे कविश्रेष्ठ.

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  16. और तो सब ठीक ठाक है.. विवेक भईया ।
    आप बड़ों का समुचित सम्मान करना जानते हैं ।
    पर, टँकी से उतरते ही मुझ ग़रीब को टँगे पर चढ़ा दिया ?

    चित्र लगा दिया, वह अलग से ।
    असली होती तो मेरी निजता का उल्लघंन हो जाता कि, नहीं ?
    मुझे तो यह तस्वीर निगोड़ी
    पहेलियों के ताऊ ने अपनी तस्वीर के बदले पकड़ायी थी ।

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  17. आमद सुखद है ....पर हमारी उम्मीदे कविता से भी इतर कुछ गध लेखन में भी है भैय्ये ...

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  18. बहुत मेहनत की गई है यह चर्चा बहुत सार्थक और रोचक है ।

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  19. प्रिय विवेक, जैसे ही "चलते-चलते" पर नजर पडी तो तुमारे स्वस्थ एवं मौलिक हास्य को देख आस्वादन में मैं ने जो ठहाका लगाया तो घर वाले दौड कर आ गये कि क्या हुआ.

    मैं ने सब को शांत किया और बोला विवेक के "मास्टरपीस" का अवलोकन/आस्वादन कर रहा था.

    अब आते हैं चर्चा की ओर -- पद्यात्मक चर्चा करना बहुत कम लोगों के बूते की बात है. इस मामले में तुम अव्वल हो!!

    चर्चा में जो क्रियाशीलता दिखती है उसके साथ साथ अथक परिश्रम भी साफ दिखता है.

    सस्नेह -- शास्त्री

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  20. बोल बजरंगबली की जय,सियापति रामचन्द्र की जय,आप आए,बहार आई,साथ मे गर्मी(मई-जून वाली)भी।

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  21. बहुत बढिया चर्चा की है।बहुत अच्छी लगी।बधाई स्वीकारें।

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  22. दुबारा पुराने मूड में देख कर अच्छा लगा, स्वागत है !
    जिंदगी जिन्दादिली का नाम है ,
    मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं

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  23. त्वरित टिप्पणी:
    मान गये उस्ताद...। झमाझम चर्चा।

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  24. आप सभी का धन्यवाद !

    @ ज्ञानदत्त । GD Pandey जी , टॉयलेट से आए नहीं अभी तक !

    @ कुश , आप भी युवा हो तो धीरू सिंह जी क्या हैं !

    @ अनुराग जी , शुक्रिया ! गधे के बारे में भी कुछ लिख देंगे :)

    @ शास्त्री जी , तभी तो आप शास्त्री जी हैं कोई और होता तो ब्लॉगाकाश सिर पर उठा लेता !

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  25. धड़ धड़ धड़ धड़ टीपते, अजब किए तुम यार
    इसीलिए तो सब तुम्हें करते हैं यूँ प्यार
    करते हैं यूँ प्यार, ज़माना अश अश करता
    "नूरे-ब्ला॓गिस्तान" ग़ज़ब की चर्चा करता

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  26. विवेक जी मेरे चिट्ठे को अपनी कविता में शामिल करने के लिए धन्यवाद, मैं सम्मानित हुआ ! 'मटमैले नैन' मेरी प्रिया रचनाओं में से एक है.

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