हमारा परम कर्तब्य बनता है कि वैयक्तिकता से बहुत ऊपर उठकर हम उन्ही बातों को प्रकाशित करें जिसमे सर्वजन हिताय या कम से कम अन्य को रुचने योग्य कुछ तो गंभीर भी हो. हाथ में लोहा आए तो उससे मारक हथियार भी बना सकते हैं और तारक जहाज भी.अब हमारे ही हाथ है कि हम क्या बनाना चाहेंगे.
अगर आप हिन्दी ब्लोगर हैं तो अपना टाइम खोटी कर रहें हैं ..क्योंकि आपके पास करने के लिए काम नही है .खाए पिए अघाये लोगों की जमात से ज्यादा आप कुछ नही हैं.
१. अगर आप ब्लागरों को पहचानते हैं तो फोटॊ देखकर भी पहचान लेंगे।
२.कैमरा ब्लागर की तरह मुंहदेखी नहीं कहता। लेकिन शिवकुमार मिश्र के कम उम्र दिखने की बात से लगता है कि कैमरा चेहरा देखकर व्यवहार करता है!
ब्लोगिंग बेशक कोई आन्दोलन नहीं किंतु वैचारिक दृष्टि का एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म अवश्य बन सकता है....और अब ब्लोगिंग निजी डायरी से ऊपर उठकर एक वैचारिक रूप ले भी रहा है....और देखा-देखी और भी लोग इसके प्रति संजीदा हो रहे है
गुलाब, ख्वाब, दवा, जहर, जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ, बता इंतजाम क्या-क्या है
वहां उनको इंतजाम भी दिख गया। ब्लागिंग स्थल पर अंग्रेजी में लिखा था:"कश्यप आई हॉस्पिटल इन असोसिएशन विद झारखंडी घनश्याम डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम प्रजेंट्स अ कप ऑफ़ काफ़ी विद हेल्दी माइंड्स." अब चूंकि शिवजी ज्ञानजी के साथ ब्लागिंग करते हैं इसलिये इस बात को बूझ नहीं पाये ठीक से कि ऐसा क्यों लिखा है या फ़िर बूझे भी तो गुरुघंटालों की तरह बताये नहीं। अगर हमारा तर्क माना जाये तो हेल्दी माइंड वाली बात इसलिये लिखी थी कि रांची दरअसल ब्लागरों का शहर, धोनी का शहर , झारखंड की राजधानी से पहले अपनी मानसिक आरोग्यशाला के लिये जाना जाता था। वहां परंपरा रही होगी जो ठीक होकर निकला उसका सम्मेलन कर डाला। क्या पता दोनों इंतजाम एक साथ किये गये हों। मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों और ब्लागरों/पत्रकारों को एक साथ बैठाकर काफ़ी -साफ़ी हो गयी।
वैसे रंजना जी ने शिवकुमार मिश्र की लेखन हरकतों पर उनको हड़काते हुये लिखा:
इसलिए कहते हैं,व्यंगकार बड़ा खतरनाक होता है,उसे साथ लेकर कहीं जाना नही चाहिए..अपनी एक्सरे निगाहों से क्या क्या देख डालेगा और फ़िर कागज पर क्या क्या उड़ेलेगा,पता नही.....खैर ,तू अगली खेप डाल कल ही....फ़िर सोचती हूँ आगे से तेरे साथ कहीं जाया जाय या नही....
लेकिन रंजनाजी अब पछताये होत क्या जब गये मीट में साथ!
उन पांच सेकेण्ड में मैंने उसकी कई बातों पर गौर किया.. गर्मजोशी से हाथ मिलाना, हाथों पर सफेद रंग का बैंड, कार्गो जींस, नाईकी के जूते, टी-शर्ट, हाथों में कोई घड़ी नहीं, और भी ना जाने क्या-क्या.
कईयों को रहता है कि जिससे कुछ लेना देना नहीं, उसे भी नापे हुए हैं बेमतलब मगर मेरी ऐसी आदत नहीं.हमने उनसे पूछा कि मानलो अगर कि अगर ऐसे किसी को नापना ही है जिससे कुछ लेना-देना नहीं है तो उसके लिये आप क्या करते हैं? कोई उपाय है क्या?
समीरलालजी बोले- हां है काहे नहीं! अगर ऐसे किसी को नापना है जिससे लेना-देना नहीं है तो उसके लिये हम उससे पहले लेन-देन शुरू करते हैं फ़िर धीरे से नाप देते हैं! उसे पता ही नहीं चलता।
तुम चाहो तो कोरे काग़ज़ पर आडी तिरछी रेखाये खींच दो
कुछ रिश्तो को कभी लफ़्ज़ो की दरकार नही रहती.....
फ़ौजी की अनपढ़ माँ ख़त को सीने से लगाकर सोयी है
आई आलसी कबाड़ी लाइक्ड दिस पोस्ट..
आई आई वेरी हैप्पी..
दूसरी शल्यक्रिया भी सफ़ल रही और शारिरीक रूप मे उसकी समस्या अब बिल्कुल खत्म हो चुकी थी लेकिन उसके उच्चारण मे सुधार होना अभी बाकी था.. चिकित्सक ने बताया था कि इतनी उम्र तक गुड्डी जिस तरह से बोलती रही उस तरह से उसके मस्तिष्क मे वो अक्षर वैसे ही अन्कित हो चुके हैं और हर अक्षर के लिये जीभ और तालू का सही तालमेल होने मे समय लगेगा…..वे कहती हैं:
परिस्थितीयां सब कुछ सिखा देती है इन्सान को.. उसके लिये उम्र मे बडा होना जरूरी नही..
एक लाइना
- अरे, वाह !! हम तो ब्लागर हैं !!! :ई रांची में पता चला!
- ब्लोगिंग -स्लोगिंग , बेकार की बातें . : यही तो सब कहते हैं
- रांची में संभावनाओं को तलाशने जुटे ब्लागर :संभावनायें फ़रार
- एक दिन ब्लोगरों का.......!! :रात भूतनाथ के लिये आरक्षित
- रांची में ब्लॉगर मीट...कुछ हमसे भी सुन लीजे. : मानोगे नहीं! अच्छा सुनाओ!
- हिंदी में बुद्धिजीवी होना भी कम दुखदायी नहीं.....:इसीलिये यहां अकल पैदलों की चांदी है
- त्रिवेणी महोत्सव सम्पन्न... अब ब्लॉगरी : को ठिकाने लगाना है
- एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग दो) :भाग मत दो बबुआ गुणा करो
- काश!! हर दिन ऐसा ही हो !!! : थोड़ा और लम्बी सांस लीजिये तब कहिये
- हर देशभक्त को दुखी होना चाहिये!!:शास्त्रीजी आप शुरू करो हम तो अभी पोस्ट लिख रहे हैं!
- ये कैसे दिन हैं ???? : बूझो तो जानें
- गर्व है कि हम स्लमडाग से बेहतर फ़िल्में बनाते हैं :जो किसी आस्कर की मोहताज नहीं! है न!
- क्या आपके फोलोवर भी गुम हो गए? : चुनाव के मौसम में और क्या होगा?
- खोए फोलोवर फिर से पाने की जुगत : आजकल फ़ालोवर भी जुगाड़ से बनते हैं
- हमका अईसा वईसा न समझो…:तुम हौ कौन काम की चीज
- ब्लॉगर, आपका वकील कहां है! :टि्पियाने में लगाया है अभी
- आज मेरी मिठी का पहला जन्मदिन है : मुबारक हो
- पाकिस्तान से 1600 करोड़ रुपये से ज्यादा लेना निकलता है…कोई है?:जरा तगादे पर चला जाये
- बच्चन साब...अब तो ऑस्कर भी मिल गया...! :चलिये इसका अचार डाल लें
- हँसना नहीं है तो मुस्कुराईये तो सही : कौनौ पईसा तो पड़ना नहीं
- फोकस नहीं मंगता :फ़ोकट मांगता है
चर्चा की चर्चा
कविताजी ने जब चर्चा की तो अभिलेखागार में समीरलालजी की लिखी २७ सितम्बर २००६ की चर्चा के अंश पेश किये। किसी पाठक ने उस पहेली को बुझाने का प्रयास नहीं किया। :)
गुलजार जी आस्कर इनाम लेने नहीं गये कारण देखिये:गुलजार के अनुसार वे २ कारणों से ऒस्कर में भाग लेने नहीं गए। पहला कारण दाहिने कँधे का लचक जाना ( यद्यपि वे स्वयं कहते हैं कि इसके बावजूद कँधा बाँधकर जाया जा सकता था) और दूसरा कारण ? " वहाँ काला कोट पहनना पड़ता
कविताजी से अनुरोध है कि वे अपना पूरा गीत (जिसका अंश उन्होंने पेश किया था)अपनी अपनी आवाज में पेश करें :
बड़े जतन से बाँध गगरिया जल में छोड़ी
जलपूरित हो उठी, डोर का छोर लपेटा
अपने होंठों से शीतल जल पी पाने को
तब कौशल से सम्हल सम्हल कर पास समेटा
भरे हुए कलशों का पनघट में गिर जाना
क्या जानो तुम, तुम्हें कहाँ अन्तर पड़ता है !!
विवेक सिंह तो छाये हुये हैं चर्चा में। उनकी मेहनत देखकर बहुत अच्छा लगता है। आशुकविता बेजोड़ लिखते हैं। अब उनको कभी-कभी अपने ब्लाग पर भी चलते-चलते लिखना फ़िर से शुरू कर देना चाहिये।
तरुण ने अभी तक एक बार भी देशी पण्डित स्टाइल में अनियमित चर्चा नहीं की। कब करेंगे? बतायें नहीं करें!
और अंत में
कल विवेक ने लिखा कि वुधवार की चर्चा का दिन कुश का है जिसे करेंगे अनूप शुक्ल। उनके कहे की तामील हो गयी।अब कुश भी कुछ कर बैठें तो हम कुछ नहीं कर सकते।
आपका दिन झकास बीते।
झकास चर्चा रही यह
जवाब देंहटाएंझकास चर्चा पढाने के बाद तो झकास ही जायेगा।
जवाब देंहटाएंघर बैठे रांची का दर्शन , सहज क्रिया से सुख स्पर्शन
जवाब देंहटाएंधन्य धन्य यह पोस्ट तुम्हारी , सभी ब्लोगर की बलिहारी
मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
बडी अच्छी चिट्ठा चर्चा की...रांची के ब्लागर मीट में जो न जा सकें...उनके लिए खुशखबरी है....अगले वर्ष पूरे देश से ब्लागरों का बुलाया जाएगा ...ऐसा मै नहीं ,कश्यप मेमोरियल हास्पिटल की डाक्टर भारती कश्यप जी ने हमारे सामने घोषणा की...इस वर्ष समय कम होने के कारण न हो पाया।
जवाब देंहटाएंरांची ब्लागर मीट का सफ़ल आयोजन प्रेरणा दे रहा है कि हम भी यहां ऐसा कुछ कर डाले.
जवाब देंहटाएंदो मेम्बर तो हम मिल लिये हैं और कोई हो तो उसके लिये विज्ञापन दे रहे हैं कि स्वयम्भू अध्यक्ष महोदय से सम्पर्क करे और साल भर की फ़ीस जमा करवा कर मेम्बर शिप ग्रहण करें.:)बाकी हम देख लेंगे.
रामराम.
प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा , सब पे फोकस मारा .
धन्यवाद
मैं भी चिट्ठा चर्चा के माध्यम से रांची हो आया. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंफलस्वरूप शुक्लाजी को चर्चा करना ही पडा़:)
जवाब देंहटाएं> यह सही है कि-एक दिन ब्लागर का......तो सौ दिन टिपियानों का। खुली छूट है जी:) ब्लागर तो द्स-दस साल छोटे होते जा रहे हैं। यकीन न हो तो शिव कुमार भाई से पूछ लो:)
>‘वहां काला कोट पहनना पड़ता था- गुलज़ार
यह क्या बात हुई। मि लार्ड,द्विवेदी नोट कर लें॥
>आशुकवि का ब्लाग देख-देख आसू बहा रहे है। आशा है ये आँसू के बादल जल्दी छट जाएंगे॥ तो चल....शुरू हो जा...on popular demand:)
अच्छी चर्चा. ब्लोगर मीट की रपट की रपट पढ़ ली.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ब्लॉगर मीट के बारे में जानकारी अच्छी रही.
जवाब देंहटाएंहमारे चिट्ठे को शामिल करने के लिए आपको साधुवाद.
हेल्दी माइंड्स की पहेली सुलझाने के लिए धन्यवाद.
हमारे चिट्ठे पर पुनः पधारने का कष्ट करें. आशा है आपका स्नेह बना रहेगा.
चर्चा समग्र!सम्पूर्ण! स्फूर्त!
जवाब देंहटाएंcmpershad said ....>‘वहां काला कोट पहनना पड़ता था- गुलज़ार
यह क्या बात हुई। मि लार्ड,द्विवेदी नोट कर लें॥
यह प्रमाणित करता है कि या तो बिना पढ़े ही टिप्पणी के टोकरे का बोझ उतार दिया जाता है
या
चर्चा में पढ़ने लायक चीज तभी होती है, जब अनूप जी उसे कोट करें, अब अनूप जी न कोट करते तो मुझ जैसे निराश करने वाले चर्चाकार को भला कौन पढ़ता है जी!!सही है न मिस्टर परशाद?
अगर हमारा तर्क माना जाये तो हेल्दी माइंड वाली बात इसलिये लिखी थी कि रांची दरअसल ब्लागरों का शहर, धोनी का शहर , झारखंड की राजधानी से पहले (Ranchi)अपनी मानसिक आरोग्यशाला के लिये जाना जाता था। वहां परंपरा रही होगी जो ठीक होकर निकला उसका सम्मेलन कर डाला। क्या पता दोनों इंतजाम एक साथ किये गये हों। मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों और ब्लागरों/पत्रकारों को एक साथ बैठाकर काफ़ी -साफ़ी हो गयी।
जवाब देंहटाएंAapne pakdi asli baat....
Ekdam sahi..sou feesadi.
majedaar lajjatdaar charcha ke liye aabhaar....
एक लाइना मजेदार रही,,,
जवाब देंहटाएंजमाये रहियेजी।
जवाब देंहटाएंझकास चर्चा :)
जवाब देंहटाएं"हर देशभक्त को दुखी होना चाहिये!!:शास्त्रीजी आप शुरू करो हम तो अभी पोस्ट लिख रहे हैं! "
जवाब देंहटाएंहम तो रोज सर पीट रहे हैं, बस अब आप भी आ जाईये!!
चर्चा अच्छी लगी. ब्लागर मीट का चित्र और संबंधित कडियों के लिये आभार. इन कडियों के सहारे सब जगह चिट्ठाभ्रमण कर लिया और अब वापस "चर्चा" पर आये हैं -- यह देखने कि आप साथ देगे या नहीं. मेरा मतलब देशी की हालात पर सर पीटने के मामले में.
सस्नेह -- शास्त्री
आज की झकास लाइन ...टि्पियाने में लगाया है अभी ....
जवाब देंहटाएंखुदा करे एक वो दिन भी आये जब किसी एक जगह देश भर के ब्लोगर्स का मेला हो.....खैर गुलज़ार साहब को किसी ओस्कर की किसी मूरत की जरुरत नहीं हम जैसे कई दीवाने उन्हें बरसो से दिल में लिए घूम रहे है...
@ कविता जी, हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि आप निराश करने वाली चर्चाकार हैं . एक चर्चाकार होने के नाते मुझे आपके साथ इस मंच से चर्चा करते हुए गर्व है !
जवाब देंहटाएंचन्द्रमौलेश्वर जी की टिप्पणियों का प्रशंसक होने के नाते उनकी ओर से सफाई देना चाहता हूँ . वे टिप्पणी के टोकरे का बोझ उतारने वाले टिप्पणीकार हरगिज नहीं हैं . बल्कि टिप्पणी की क्वालिटी में उनके सामने दो डॉक्टरों के अलावा कोई तीसरा ठहरता ही नहीं ! वे शायद सिस्टम की बगावत की वजह से टिप्पणी में पूरा मन चाहते हुए भी न लगा सके आप स्वयं देख लें !
cmpershad said... @ February 23, 2009 8:58 PM
यह हमारी तीसरी ट्राई है। देखते हैं कि टिपिया पाते हैं या नहीं:)
अच्छी चर्चा और अच्छॆ स्वास्थ के लिए बधाई। आज थोडे लिखे को बहुत समझना क्योंकि सिस्टम बगावत पर तुला है।
cmpershad said... @ February 23, 2009 9:00 PM
यूरेका...........यूरेका.........
.................................................
वैसे फुरसतिया का किसी चीज को बोल्ड में लिखना भी टिप्पणीकार के लिए एक निर्देश ही होता है कि : ए ! इसी को टिपियाने का नईं तो... :)
भुनगत्व का अहसास कराती चिठ्ठाचर्चा!
जवाब देंहटाएंअच्छी चरचा देव...हमेशा की तरह आपका वही निराला अंदाज़.......
जवाब देंहटाएंवाह हम तो इस चर्चा में मौनवत शामिल हुए । अब जा रहे हैं। कल फिर आएंगे। नमस्कार।
जवाब देंहटाएंAbhi to jabalpur se bahar aise atka hun ki hindi me type karna bhi naseb nahi...kankowwe to lout kar 1 taarikh ko udayenge. :)
जवाब देंहटाएंजिस स्टाईल का कोई खरीददार ना हो उसकी इस मंदी के दौर में दुकान खोल के बैठना अक्लमंदी नही है ;), तबियत दुरूस्त होने दीजिये कुछ अलग सा बेचने आयेंगे
जवाब देंहटाएंअंतरजाल के नज़ले के कारण देर से टिपिया रहे हैं- वैसे विवेक भाई ने सहीं सफाई दे ही दी है। घायल की गति घायल ही जाने:)
जवाब देंहटाएं>डॊ. कविता वाचक्नवी जी, आज का दौर ऐसा ही है, जब तक वज़न न रखें , कार्रवाई आगे नहीं बढ़ती। यकीन न हो तो शुक्लाजी से पूछ ली जिए- आखिर वो भी तो सरकारी अफ्सर हैं जी।:) वैसे हम ने तो आपकी चर्चा पर लम्बा-चौडा लेख लिख डाला था पर अंतरजाल की मकडी को यह मंज़ूर नहीं था- बस यूरेका..यूरेका से काम चला लिया:)