आदर्श प्रधानमंत्री के दस असंभव मापदंड पैदा हो गए हैं और पुलिस कह रही है कि चोरी के बजाय खोना लिखवाइए। इससे अच्छा मुंडेती वाले से थोड़ी भाषा न सीख लेवें?
जो इंसान मछली जल की रानी है के आगे बढ़ा ही नहीं उससे उर्दू और हिंदी गज़ल के फ़र्क से क्या मतलब?
जलानेविवि की दीवारें बोल रही हैं, ससुराल, गेंदा फूल। बात सही है, आदमियों को क्यों छोड़ दिया, पर इसी बहाने मेंगलूर की बिटिया की उत्तेजक तस्वीर ही सही। नुक्ताचीनी की पराकाष्ठा तो तब हुई जब चपाती और फुलके में फ़र्क के ऊपर शोधात्मक लेख लिखे गए। और फिर कह रहे हैं कि मैं अब कोई टिप्पणी नहीं लिखूँगा।
सवाल आया, हम कहाँ जा रहे हैं? और जवाब भी शीघ्र मिल गया। और राहुल गाँधी के अब तक कुँवारे रहने का राज़ भी।
मज़बूत कूटशब्द चुनें वरना पतंगे अपने अज्ञान की वजह से भस्म हो जाते हैं।
और अंत में, प्रेम चौदस मुबारक हो।
कार्टून
यूनियन बैंक की शाखा खुल गई है इस शुभ उपलक्ष्य पर दें ताली।
आज की चिटठा चर्चा का अंदाज भी निराला रहा !
जवाब देंहटाएंक्या 'शीघ्र मिल गया ' की कड़ी सही है ? या आपका विनोद हमारे सिर के ऊपर से गया ?
जवाब देंहटाएंनिराला- सही है ? :)
जवाब देंहटाएंअफ़लू साहब कड़ी सही थी लेकिन मेरा निशाना चूक गया लगता है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी छोटी सटिक चर्चा। आज हास्य-विनोद के त्योहार - चाहे वो वेलाइंटाइन डे हो या होली, जानलेवा बन गए हैं क्योंकि आज आदमी हंसना भूल गया है। आज तो कमेंट में भी ध्यान रखना पडता है कि कहीं किसी ब्लागर तो गलत न समझ लें। असहिष्णुता का दौर चल रहा है। जितना कम कहे उतना अच्छा। अरे, मैं तो बहुत कुछ लिख गया:)
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह.. आप ने भी छोटी बहर काम चला लिया.. वाह..
जवाब देंहटाएंहास्य और हास्यापद मे अन्तर करना भूल गये हैं . जैसे जिस पोस्ट पर अफलातून जी ने कहा हैं वो घुघूती जी की एक बहुत सीरीयस पोस्ट हैं लेकिन आलोक ने हेडिंग मिलान करने के चक्कर में उस पोस्ट की गरिमा को हास्य पद बना दिया .
जवाब देंहटाएंहँसना कौन नहीं चाहता पर बेवक्त हँसना और मुद्दों पर बात ना करना किसी भी समाज को शोभा नहीं देता . कभी न कभी हम को ये जरुर तय करना होगा हम किस तरफ़ हैं , मूक दर्शक बने रहना वक्त पर और बेवक्त की ठिठोली दोनों ही हमारे समाज को नुक्सान पंहुचा रही हैं . बेवक्त का विनोद सर के ऊपर से ही जाता हैं .
रचना जी कह तो सही ही रही हैं.
जवाब देंहटाएंरचना जी सही शब्द हास्यास्पद है।
जवाब देंहटाएंमैंने दोनो लेखों की चर्चा की है, उनका उल्लेख किया है। किसी की विचारधारा या सिद्धांत पर कोई टिप्पणी नहीं की है। अनावश्यक रूप से "विवाद" न खड़ा करें। मैं टिप्पणियों का इतना भूखा नहीं हूँ :)
aalok
जवाब देंहटाएंaap maere kament ko upar aaaye aflatoon ji kae kament aur cmpershad ji kae kament sae jod kar daekhae
tippni na karey blogger iskae liyae option haen aap uska istaemaal kar lae . comment karney ki suvidha ko band kiya jaa saktaa haen . kament hataya jaa saktaa so on so forth
sahii shabd bataaney kae thanks aagey dhayaan rakhuki ki hasyaspad baato par kament naa nahin karu
जवाब देंहटाएंमैं भी ' शीघ्र मिल गया ' के लिंक को टटोल कर अचंभित था,
सहसा ध्यानाकर्षण का साहस भी न हुआ,
सोचा कि, पुराने चिट्ठाकार हैं,
सो यह भी कोई 'लीला ' होगी..
मूढ़ भक्तगण बस भजन गाने से मतलब रखे और क्या ?
अफ़लातून जी को धन्यवाद, कि निवारण के निमित्त बने ।
पर, कृतघ्न भी नहीं हूँ, कि ' टिप्पणियों के नुस्खे ' का लिंक देने पर आपको धन्यवाद भी न दूँ ।
स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें,छोटन के उत्पात को सहते रहें, लिखते रहें, यदा कदा मार्गदर्शन देते रहें ।
ये चिट्ठाचर्चा भी टविटर का ही कमाल दिख रही है-आज की कारस्तानियाँ टाईप. :)
जवाब देंहटाएंनिराली चर्चा !!
जवाब देंहटाएंनिराली चर्चा !!
जवाब देंहटाएंवाह! प्रेम चौदस। अब भला किसे आपत्ति हो सकती है इस दिन के साथ? यार आलोक, आप कहाँ से यह शब्द पकड़ लाते हैं? मानना पड़ेगा। "भला फुसला कर बगा" लेने वाले को भी अच्छा पकड़ा। पारखी नज़र है।
जवाब देंहटाएंरमण जी प्रेम चौदस का नामकरण किन्ही पंडित ओम् व्यास ने किया है। वैसे इस बहाने लेख की एक कड़ी भी ठीक हो गई, धन्यवाद।
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