नमस्कार ! मंगलमयी, चर्चा का यह काम ।
है अंतिम फिलहाल तो, अब लेंगे विश्राम ॥
है अंतिम फिलहाल तो, अब लेंगे विश्राम ॥
एक म्यान में रह सकीं, कभी न दो तलवार ।
कडवी वाली फेंककर, मीठी रख लो यार ॥
आप सभी के प्यार पर, मैं जाऊँ कुर्बान ।
किन्तु बडों की बात का, लेना है संज्ञान ॥
आप सभी के प्यार पर, मैं जाऊँ कुर्बान ।
किन्तु बडों की बात का, लेना है संज्ञान ॥
कबिरा टंकी चढि गया, ऊपर बैठा जाय ।
बुरा भला इत बैठिके, साफ साफ दिखि जाय ॥
अनूप जी का शाम को, घर आ गया वकील ।
बडा कठिन यह फैसला, हमें कराया फील ॥
"घर की पंचायत नहीं, चिट्ठा चर्चा कार्य ।
पूर्व सूचना दो तभी, त्यागपत्र स्वीकार्य ॥"
बडा कठिन है भूलना, पहला पहला प्यार ।
एक शून्य की बात है, दसवाँ होगा यार ॥
आम चुनावों की यहाँ, बहने लगी बयार ।
आरक्षण का भूत ले, निकले सिंह सियार ॥
गुजराती में लिख रहे, अपना पहला चैक ।
मन करता है ठोक दें, जाकर इनकी बैक ॥
अलग दूसरों से रही, अगर आपकी राय ।
ओबसीन बिल्कुल नहीं , सुरेश जी बतलायँ ॥
इमोशनल तब हो गया, खुद ही अत्याचार ॥
घायल होंगी उँगलियाँ, बोले ऐसे बैन ।
अब ज्यादा मत दाबिए, हुए कुँवर बेचैन ॥
मुसलमान "जय भीम" का, करें बोलना बन्द ।
फतवा जारी कर दिए, सरकार-ए-देववन्द ॥
शकील घर मत आइयो, अम्मा है नाराज़ ।
देख लिए लैटर सभी, आज खुले सब राज ॥
गिरीश बिल्लोरे मुकुल, बना पार्लियामेण्ट ।
कोरम ही पूरा नहीं, कैसा अमेण्डमेण्ट ॥
खबर आरही आजकल, काफी गर्मागर्म ।
अपने मिस्टर कूल को, मिली छोकरी नर्म ॥
सीख लीजिए स्वीटडिश, कैसे बाँटी जाय ।
मीठा सबको मिल सके, बाँट बराबर आय ॥
राजनीति का क्या यहाँ, है असली उद्देश्य ।
नकली चेहरे रह गए, असली हैं अदृश्य ॥
मेरे दु:ख से है नहीं, उसको सारोकार ।
मैं डरती हूँ ठप्प ना, हो यह कारोबार ॥
दिल पर खाओ चोट तो, लगवा लेना मूव ॥
इसी माह बाईस को, मिलकर राँची जाउ ।
दर्शन हाथोंहाथ ही, बिलागरन के पाउ ॥
गांधी गाली खा रहे, आफत कौन उठाय ॥
माँझी नैया ढूँढती, फिरै किनारा आज ।
यूनुस लाए गीत यह, मुकेश की आवाज ॥
वैयक्तिक अधिकार औ' , पब कल्चर के बीच ।
क्या मंदिर क्या मस्जिदें, सब हैं एक समान ।
सारे नेता वोट के, पीछे हैं हलकान ॥
बातें ब्राउन सुगर की, मन मीठा हो जाय ।
ऐसा वैसा कुछ नहीं, नाहक क्यों घबराय ॥
सह पाना मुमकिन जिसे, लेकिन कहा न जाय ।
कठिन पहेली बूझकर, हमको देउ बताय ॥
दरवाजे जब बन्द हैं, क्यों आवाज लगाय ॥
मानस के बदले बिना, बिहार बदला जाय ।
यह बिल्कुल मुमकिन नहीं, यों हरिवंश बताय ॥
बाबूजी का पत्र है, या कि तुम्हारा पत्र ।
पढकर दीखे घूमते, सभी गृह नक्षत्र ॥
था चन्दन चौहान को, देशभक्ति का जोश ।
कुछ ही दिन में आगए, मगर ठिकाने होश ॥
यद्यपि आलोचक रहे, इसके सदा विरुद्ध ।
हुई फजीहत हो गया, जब से तन अनमोल ।
टूट गए वादे सभी, कडवे कडवे बोल ॥
सदा लँगोटी भूत की, क्यों पकडें सब लोग ?
जो भी आए हाथ में, लेकर करें प्रयोग ॥
जगन्नाथ है हाथ पर, दोनों में से कौन ?
इसका उत्तर दीजिए, काहे बैठे मौन ?
जाओगी तुम एक दिन, होकर मुझसे दूर ।
तब कोई बन जाएगा, इन आँखों का नूर ॥
बागन में औ' वनन में, बगरयो खूब बसंत ।
चोरी मत कहना इसे, फुरसतिया हैं संत ॥
गंगाजी में ज्ञानजी, रस्ता गए भुलाय ।
नवा कुकुरवा आगया, उसको रहे घुमाय ॥
मुस्लिम तुष्टिकरण कौ, कहा वास्तविक अर्थ ।
या फिर पूरा शब्द ही, गढा गया है व्यर्थ ॥
कबिरा कैसे कहि गए, प्रेम न हाट बिकाय ।
प्रेम बिका बाजार में, अब रोकें वे आय ॥
लौट प्रवासी आरहे, फिर से खींचन गावँ ।
स्यात मुडेंगे इस तरफ, टूरिस्टों के पावँ ॥
करते हो आलोचना, तारीफों पर मौन ?
अब हमको मत पूछना, रहे बिदारी कौन ॥
बैंक कर्मचारी रहे, फायदा खूब कमाय ।
कस्टमरों की बात पर, देखें दाएं बायँ ॥
गोटू पहुँचा जर्मनी, ताऊ पीछे जाय ।
लाइव टेलीकास्ट यह, पी डी रहे सुनाय ॥
वेलेण्टाइन दिवस पर, शादी का प्रस्ताव ।
पर जो हैं शादीशुदा, उनको है किस भाव ?
बचेकुचे सब जोड कर, एक टीम बन जाय ॥
कब होंगी नीलाम ये, सारी चीयर गर्ल्स ।
बोली में झा जी गए, दौड रही है पल्स ॥
हिन्दी ब्लॉगर देखिए, क्या क्या रहे कमाय ।
फिर भी ब्लॉगिंग छोडकर, विवेक सिंह क्यों जाय ?
या तो वो हैं बावले, या पागल हो आप ।
जरा अलग सा लग रहा, इनका अजब प्रलाप ॥
सुनो भिखारिन की कथा, जज्बा करो सलाम ।
साथ न कुछ भी जाएगा, व्यर्थ कमाओ दाम ॥
नैतिकता ने भाड में, किया बसेरा जाय ।
भाड बिचारा रो रहा, जमकर गाली खाय ॥
हिन्दी ब्लॉगिंग रेल में, डिब्बा एक लगाय ।
महिलाएं केवल चढें, दिया बोर्ड लटकाय ॥
मन चंगा जो आपका, गंगा आए द्वार ।
संत श्री रविदास के, ये स्वर्णिम उद्गार ॥
जिन्ना पाकिस्तान में, भारत में श्रीराम ।
अडवानी जी का भला, कैसे होगा काम ॥
अपनी बात
भीष्म पितामह अड गए, कह दी अपनी बात ।
मैं न लिखूँगा ब्लॉग अब, कभी कर्ण के साथ ॥
कभी कर्ण के साथ, टिप्पणी भी न करूँगा ।
खाली करूँ दवात , कलम खूँटी रख दूँगा ॥
विवेक सिंह यों कहें, सुयोधन पिघले जल्दी ।
रंग चोखा आ गया, लगी फिटकरी न हल्दी ॥
चलते-चलते
हम सभी डबलपुरिया ब्लॉगर, यह मिलकर घोषित करते हैं ।
है खास हमारा ही दर्ज़ा, बाकी सब पानी भरते हैं ॥
कुछ पूर्वजन्म में पुण्य किये, इसलिए डबलपुर में जन्मे ।
जो जन्मे हैं अन्यत्र कहीं, है पाप भरा उनके मन में ॥
पापियों करो कुछ पुण्य आज, सुर मिला हमारे ही सुर में ।
तुम साड्डे नाल रहोगे तो, है अगला जन्म डबलपुर में ॥
वन्दे मातरम सुनाते तो, फिर भारतीय ही हम रहते ।
होता है उससे धर्म भृष्ट, इसलिए नर्मदे हर कहते ॥
इस ब्लॉगजगत में शहरवाद, का जहर मिलाया है हमने ।
नर्मदा हमारे ही बल से, बहती न दिया उसको थमने ॥
तुम भारतीय गंगू तेली, हम राजा भोज कहाते हैं ।
हम राज ठाकरे के ताऊ, आमचा डबलपुर गाते हैं ॥
है खास हमारा ही दर्ज़ा, बाकी सब पानी भरते हैं ॥
कुछ पूर्वजन्म में पुण्य किये, इसलिए डबलपुर में जन्मे ।
जो जन्मे हैं अन्यत्र कहीं, है पाप भरा उनके मन में ॥
पापियों करो कुछ पुण्य आज, सुर मिला हमारे ही सुर में ।
तुम साड्डे नाल रहोगे तो, है अगला जन्म डबलपुर में ॥
वन्दे मातरम सुनाते तो, फिर भारतीय ही हम रहते ।
होता है उससे धर्म भृष्ट, इसलिए नर्मदे हर कहते ॥
इस ब्लॉगजगत में शहरवाद, का जहर मिलाया है हमने ।
नर्मदा हमारे ही बल से, बहती न दिया उसको थमने ॥
तुम भारतीय गंगू तेली, हम राजा भोज कहाते हैं ।
हम राज ठाकरे के ताऊ, आमचा डबलपुर गाते हैं ॥
कोष्ठक में : आशा करते हैं कि जल्द ही फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए नमस्कार ! मौज लेते रहिए !
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न कर बाँचते, चर्चा चोखी इतराय
तेयागपत्र अब त्याग दो, हे विवेकी गुरुभाय
लेखन कारज कठिन है सों टमा्टर अँडा खाय
जानो ब्लागिरी आभास है, फिर काहे मुरझाय
यह चिटठा चर्चा गज़ब है, पढ़ अचरज हो जाय
जवाब देंहटाएंक्रोध पितामह भीष्म का, तुरत-फुरत खो जाय
काहे बना पहाड़ राय थी इक छोटी सी
समंझ नहीं हम सके, अक्ल है ये मोटी सी
हट जाने की बात यह हमसे सही न जाय
अग्रज सभी मनाएँ लें, विवेक कहीं न जाय
विवेक वापस बुलाओ भेज सब हर्जा-खर्चा
हम नहीं पढूंगा वरना आगे चिट्ठा-चर्चा.
मंगलवार की चर्चा का कितना खयाल रखते हो(थे) आप.
जवाब देंहटाएंचर्चा में बहुत कुछ सिमट गया.
आशा करते हैं कि जल्द ही फिर मुलाकात होगी तब के लिए नमस्कार !!!!!
जवाब देंहटाएंमंगलवार की चर्चा!!!
बागन में औ' वनन में, बगरयो खूब बसंत ।
जवाब देंहटाएंचोरी मत कहना इसे, फुरसतिया हैं संत ॥
पिछले कवि सम्मेलन में एक कविता सुनी थी-
जो बच गया वो संत है, बाकी तो सब फ़संत है!
ब्लागिंग छोड़ने और चर्चा न करके के लिये बताये गये बहाने बहुत लचर हैं। हर एक को अपनी बात कहने का हक है। पितामह का महत्व इसी में है कि उनका सम्मान किया जाये। जबलपुर की संसद में शिरकत करो ताकि कोरम पूरा हो सके। जबलपुर को डबलपुर
बबलपुर काहे बनाते हो! मस्त रहो, बवाल न काटो!
अगले मंगलवार को चर्चा का इंतजार रहेगा आदतन!
चर्चा मस्त. जरा पितामह की बात पर ध्यान दिया जाये और टंकी पर वापस ना चढा जाये. कहीं मालुम पडा कि भूख लगी तो नीचे आये और खा पी कर वापस उपर जाकर बैठ गये.:)
जवाब देंहटाएंछोडो विवेक जी, अब बहुत हो गया. आशा है नियमित चर्चा और नियमित ब्लागिंग चलेगी.
रामराम.
चर्चा मस्त, एक म्यान में दो तलवार नही रह सकती लेकिन दूसरी म्यान तो लायी जा सकती है। विवेक भाई दूसरी म्यान लेकर आ जाओ।
जवाब देंहटाएंखेदजनक, आपत्तिजनक, दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक, निन्दनीय है चर्चा का अंतिम दो भाग.
जवाब देंहटाएं*अपनी बात* ओर * चलते चलते* पढ़ा तो लगा कि विवेक सिंग ने अपने ब्लाग के बदले चिट्टा चर्चा मंच को पर्सनल बात करने का ओर जबलपुर को बाकी जगहो से अलग घोषणा करने का, फूट डालने का, अपनी भड़ास निकालने का मंच बना लिया है.
* राज ठाकरे के ताऊ* ओर *आमचा जबलपुर* जैसी बातें देश द्रोही होने की गालियों के समान है ओर वह इस तरह के मंच से बकी जा रही है, धिक्कार है.
ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले पूरे ब्लाग समाज के नाम बदनाम कर रहे हैं. विवेक सिंग जैसों को जबलपुर से कुछ लेना देना नहीं है. बस, एक हंगामा मचाये रखना उनका मकसद है.
टंकी ऊपर बैठ कर, चर्चा जमाई खुब..
जवाब देंहटाएंसब ब्लोगों को जोड़ कर, कविता रचाई खुब..
कवित खुब रचाई, हम सब को रास आई..
इसलिये विवेक भाई, तुम्हारी कमी महसुस हुई..
विवेक भाई.. आपको फिर से देख अच्छा लगा.. कुछ उल्टी सुल्टी तुकबंदी दे मारी है.. जै्सी है वै्सी है....:)
उम्मीद है नियमित रूप से मुलाकात होगी.
मानलो अनूप जी की सटीक बात
जवाब देंहटाएंवरना कही के न रह जाओगे खास .
किसी शहर को निशाना बनाओगे तो आपके शहर पर भी कीचड उछाला जा सकता है.
खेदजनक,आपत्तिजनक,दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक,निन्दनीय है
खेदजनक, आपत्तिजनक, दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक, निन्दनीय है चर्चा का अंतिम दो भाग.
जवाब देंहटाएं*अपनी बात* ओर * चलते चलते* पढ़ा तो लगा कि विवेक सिंग ने अपने ब्लाग के बदले चिट्टा चर्चा मंच को पर्सनल बात करने का ओर जबलपुर को बाकी जगहो से अलग घोषणा करने का, फूट डालने का, अपनी भड़ास निकालने का मंच बना लिया है.
* राज ठाकरे के ताऊ* ओर *आमचा जबलपुर* जैसी बातें देश द्रोही होने की गालियों के समान है ओर वह इस तरह के मंच से बकी जा रही है, धिक्कार है.
ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले पूरे ब्लाग समाज के नाम बदनाम कर रहे हैं. विवेक सिंग जैसों को जबलपुर से कुछ लेना देना नहीं है. बस, एक हंगामा मचाये रखना उनका मकसद है.
अब तो आपका मंच भडासी मंच बन गया है जो एक दिन आपकी छबि को जरुर धूमिल कर देगा . भड़ास निकालने के अलावा अब लोगो के पास रह क्या गया है . आप टीप ले ;इए लिखते है सभी संतुलित भाषा का प्रयोग करे पर आप इसका ख़ुद पालन नही कर रहे है जो शर्मनाक है और चिठ्ठा चर्चा लगता है की गन्दगी से लबरेज मंच बनता जा रहा है .
जवाब देंहटाएंkhud ke shahar ka naam kyo chipaate hai aap vivek ji ?
जवाब देंहटाएंकबिरा टंकी चढि गया, ऊपर बैठा जाय ।
जवाब देंहटाएंबुरा भला इत बैठिके, साफ साफ दिखि जाय ॥
"ऐसी कौन टंकी है जरा नाम बताओ..."
regards
ऊँची सोच बैठ टंकी पै,पाई फ़िर आ ब्लॉग बनाय
जवाब देंहटाएंदबलपूर की टीस गुरु के दिल निकल नाय दिखाय
भैया, बोझ उतारो इब तो बात सुनो अब कान लगाए
जैसो आप सोच रए हो , बैसी बात नहीं है भाय ...
चार ठों बासन-भगना हूँ हैं - सोर करेंगे सबकी राय
छोटो मुद्दा खींचत खींचत भैया आप कितै ले आए !!
बधाई
भैया मुद्दे भी रबर बैंड की तरह होते हैं
अगर ज़्यादा खीचिए तो भाई बीच से टूट जाएंगे
और टूटी रबर जब अपने स्थान पे वापस आती है तो............?
अच्छा लगा की विवेक सिंह बापस आगये हैं ! बहुत बढ़िया ! आपकी भावनाओं का स्वागत करते हुए क्षेत्रीय वाद , शहरवाद, और संकीर्णता के खिलाफ आपका स्वागत है !इस प्रकार के लेख की बहुत आवश्यकता थी ! जबलपुर या दिल्ली को डबलपुर या गिल्ली कहना मेरे ख़याल से विशुद्ध सांकेतिक हास्य है ! उसको तोड़ मरोड़कर, पूरे शहर का अपमान बताना, सिवाय अपनी और ध्यान आकर्षित करने के अलावा और कुछ नही कहा जा सकता !
जवाब देंहटाएंहर शहर में एक से एक महा विद्वान् और महा मूर्ख पैदा होते हैं और होते रहेंगे ! इनके नाम के कारण शहर और देश का अपमान नही हो सकता, इसी प्रकार किसी शहर या गाँव का नाम मज़ाक में बदलने पर, उस शहर के समस्त निवासिओं के अपमान की कल्पना करना मात्र मूर्खता ही हो सकती है और कुछ नहीं !
आशा है लोग बड़प्पन का परिचय देते हुए अपनी गलती महसूस करेंगे !
अच्छा, टन्की से उतरने का रास्ता वाया चिठ्ठा चर्चा है!
जवाब देंहटाएंविवेक, भाई इतनी मेहनत से की गई चर्चा पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. कविताई पर इतनी बढ़िया पकड़ बहुत कम लोगों की होती है. और आगे समाचार यह है कि हम इस मंगलवारीय चर्चा को तुम्हारी अन्तिम चर्चा मानने के लिए तैयार नहीं हैं. लिहाजा अगले मंगलवार को भी इंतजार रहेगा.
जवाब देंहटाएंबिल्ला‘गर लिखे तो रंगा खुश हुआ हा हा हा.......
जवाब देंहटाएं>विवेक जी को धन्यवाद कि उन्होंने अपने फालोअर और वेलविशरों का मान रख लिया। चर्चा के बारे तो कुछ नहीं कहना है क्यों कि वह टेप की तरह बजता ही रहता है.....बहुत बढिया..:)
विवेक जी, आपको फुरसतिया के मुखपत्र की मुख्य पंक्ति याद रखना चाहिए - हम तो लिखेंगे कोई हमार क्या बिगाड लेगा। सही भी है, लिखने की स्वतंत्रता तो मिलनी ही चाहिए। गला घोटू ब्लागिंग से किसी का भला होने वाला नहीं है। यदि पढे-लिखे लोग स्वतंत्र विचार नहीं व्यक्त करेंगे तो क्या डॉन करेंगे? एक बार पुनः अच्छी चर्चा के लिए बधाई और हमारी पुकार सुनने के लिए धन्यवाद॥
badi jaandaar aur shaandaar charcha rahi ....
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा अच्छा रहा पर अन्तिम दो प्रसंगो पर मुझे दुःख लगा .
जवाब देंहटाएंतुम भारतीय गंगू तेली, हम राजा भोज कहाते हैं ।
हम राज ठाकरे के ताऊ, आमचा डबलपुर गाते हैं ॥
कोई बात नही आप आ गए यही अच्छी बात है हमारे लिए . धन्यवाद .
स्वप्नलोक पर से ध्यान हटा कर अच्छी चिटठा चर्चा की . एक बात और भाई विवेक ,मान भी जाओ प्यारे जिन्दा कौमे ज्यादा इंतज़ार नही करती .
जवाब देंहटाएंकिसी अच्छे मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। इस अंक पर नो कमेण्ट... :(
जवाब देंहटाएंसभी भक्तगणों को बाबा का आशीर्वाद !
जवाब देंहटाएंसूचना मिली है कि आज की चर्चा को पढकर हमारे कुछ भक्तों की भावनाएं आहत हुई हैं . महाभारत से जो काल्पनिक प्रसंग लिया गया उसके बारे में आपत्तियाँ पाकर बाबा को पूरा विश्वास हो गया है कि कहीं कुछ गडबड है . अन्यथा उस प्रसंग पर आपत्ति लायक कुछ है नहीं . रही बात 'डबलपुर' के विषय पर लिखी गई कविता की, तो उसको कवि ने एक काल्पनिक शहर 'डबलपुर' के बारे में लिखा है . यदि ध्वनिसाम्य के कारण हमारे 'जबलपुर' निवासी कुछ भक्तों को ठेस पहुँची तो उसके लिए हमें खेद है . इस बारे में हो सकता है कि धवलपुर , नवलपुर , और सबलपुर आदि अन्य ध्वनिसाम्य वाले शहरों के निवासियों को भी आपत्ति हो उनके लिए भी एडवांस में खेद है .
बाकी तो गुसाईं जी लिख ही गए हैं : " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी "
फिर भी एक बात पर तो सभी सहमत होंगे कि कोई शहर छोटा या बडा नहीं सभी का अपना महत्व है . और किसी शहर में पैदा होना चूँकि किसी के हाथ में नहीं इसलिए यह कोई घमण्ड करने लायक बात नहीं .
जिन लोगों ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखे वे बधाई के पात्र हैं .
मेरी पूजा का समय हो रहा है .
इब राम राम !
आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है विवेकजी, आपकी पूजा का समय हो रहा है। क्या पता कौन कौन अब आपकी पूजा करेगा, मिस्टर ध्वनिसाम्य ? हा हा ।
जवाब देंहटाएंये आपका खेद इन एड्वांस, महाभारत का काल्पनिक प्रसंग, डबलपुर- धवलपुर, नवलपुर, और सबलपुर की बातें बड़ी ही उत्साहजनक हैं। हमें खुशी है कि आपकी खीज और तिलमिलाहट का प्रमोशन अब बौखलाहट के पद पर हो गया।
गोस्वामी का लिखा बताय तो रहे हैं आप, मगर खु़द भी तो पढ़िए ठीक से-"प्रभू मूरत" कहा है भाई उन्होंने, आप अपनी समझ बैठे थे का ? कोई बात नहीं समझ भी लिए तो कोई आपका का करिहै ?
हाँ और ये भी बड़ी खुशी की बात है कि अब आप अत्यंत उच्च स्तर की हरकतें करते हुए अपने आपको रामराम बाबा और बाक़ी सभी ब्ला॓गरों को अपना भक्तगण बता रहे हैं। सच है कि अनूपजी जैसे आलादर्जे के चिट्ठाकर तक को आपने अपने इस महान छुकड़पन के माध्यम से अपना भक्तगण बना लिया है पढ़िए- आपकी इस चर्चा पर उनकी टिप्पणी और आपके दिव्य मगरमच्छी अवकाश के दिनों में उनका आपको कातर स्वर में लगातार पुकारना। देखिए कितना दर्द है उनके फाटत अंगों का। तमाम ब्ला॓गजगत ने महसूस किया है भाई! हम सही कह रहे हैं, और आप हैं के अपने ही रस में डोल डोल के उनकी सुन्दर चिट्ठाचर्चा को रसातल में ब्याह लिए जाते हैं। फिर भी हमारी दुआ है आप कामयाब हों।
और आदरणीय अनूपजी, आपको भी आपके खुंदकबाबा राम राम जी की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए, है ना ?
सतीश सक्सेना की बात मानिए और बड़प्पन दिखलाइए। इंतज़ार में।
भाई बबाल जी की पढ़ लो . पास में होते तो हम आपको पूजा पाठ सहित बैंड बाजे के साथ धूमधाम के साथ सम्मानित करते पर आप जो दूर है इसीलिए हमारा बस नही चल पा रहा था . ब्लॉग में ही निपटा देते है . अब ब्लागिंग जगत के आप रघुनाथ बन गए हो रघुनाथ . एक बार हमारे शहर में आओ . आप तो बहुत बड़े ब्लॉगर बन गए है . कभी हमारे शहर आइये आपको यहाँ इतना सम्मानित किया जावेगा कि हमेशा याद रखोगे कि यह शहर भी क्या है ?......... . ब्लॉग में कोराकल्पित सब लिखने से कुछ नही होता है . आओ यहाँ की फिजां का आनंद लो और चाय पानी के साथ पुरजोर सम्मान लीजिये और फ़िर सत्यता का बखान ब्लॉग में कीजिए अपनी यात्रा को यादगार बनाए .
जवाब देंहटाएंअनूप जी का शाम को, घर आ गया वकील|
जवाब देंहटाएं** यह स्टेटमेन्ट सब कह देता है. बवाल भाई, जिस अनूप शुक्ला को आप बुरा मत मानने को कह रहे हैं. वो शांति कहाँ चाहते हैं. इसलिए फिर बुला लाये इन महाशय जी को, जो अब खेद जता रहे हैं. इनका काम हमेशा से ये ही रहा है कि आग लगाओ, ऐसा मैने किस्सों में सुना है. मैं तो नया हूँ मगर किस्से तो सुनता आया हूँ. कल ये फिर नया आईटम लायेंगे. इन्हें चैन कहाँ. इन दोनो की पूँछ कभी सीधी नहीं होगी.
संजय जी आप सही कह रहे है इनकी पूँछ पुगारिया में डालो वह फ़िर टेढी की टेढी हो जायेगी .
जवाब देंहटाएंवाह भई वाह विवेक !! तुम्हारी कलम से आज तक जितनी चर्चायें पेश हुई हैं यह उन में सर्वश्रेष्ठ है. कविता का बहाव, आलेखों का चुनाव, इन सब के बीच तालमेल -- गजब का काम किया है. मेराथन चर्चा!!
जवाब देंहटाएंलिखने का अंदाज ऐसा प्रवाहमय है कि पढने वाले को एक दम छू जाता है. लिखते रहो!!
सस्नेह -- शास्त्री
ओह! ये सब क्या हो रहा है?
जवाब देंहटाएंअजब तमाशा है...
हमारी ओर जिसे नंगई कहते हैं उसकी झलक यहाँ देखने को मिल रही है।
जवाब देंहटाएंहिन्दी से हिन्दुस्तान को एक सूत्र में
पिरोने की उल्टी गिनती कहीं ठहर गयी है, क्या ?
शहर के नाम को मुद्दा बना कर हवा देते रहना
एक अलगाववादी सोच क्यों नहीं ?
अपने भारत- महान तो पानी की बाल्टी लिये कतार में लगे हैं
वह तो सदियों से अपने ही वासियों से पानी माँगते पाये गये हैं,
सो उनकी छोड़ो, लगे हाथ धर्म..भाषा..प्रदेश..जाति...इत्यादि
को पहले सुलटा लो न पँचों ?
आयेगा, आयेगा.. जब वह समय आयेगा कि
लखनऊ कानपुर, आगरा बरेली, खँडवा मँडवा एण्ड सो एण्ड सो सिटीज़
में महासंग्राम चल रहा हो, तभी धवलपुर , नवलपुर , सबलपुर भी निपट लेना !
यह प्रीमैच्योर लफ़ड़ा अभी से काहे ?
पँचों... अब वितृष्णा रोके ना रूक रही है..
क्या यह बुद्धिजीवियों के मंच से
चल रही स्वस्थ बहस है ?
उनकी तो मौज़ हुई गयी, अउर ईहाँ फ़ौज़ खड़ी है !
ये चर्चा देखनी रह गई थी कल। विवेक, क्या बात है। आप तो गुणी हैं भई, दोहे, कुंडली गज़ल सब यूँ लिख डाला जैसे कि कोई खेल हो। हतप्रभ हूँ।
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