नमस्कार !
- व्यंग्य - दुनिया में कैसे कैसे लोग होते है जिनका काम है फूट करो और राज करो ?
- व्यंग्य - मै हूँ भाई बिलोरन ब्लॉगर क्या आप मुझे जानते है
- बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामना के साथ चिठ्ठा चर्चा
- मेरी कल की पोस्ट बिलोरन बिलागर और मेरा संकल्प
- "................सज्जनों की अनुपस्थिति से दुर्जनों को बल मिलता है।"
- विष्णु बैरागी जी : "यदि आपको लगता है कि आप सही हैं तो अपनी उपस्थिति बनाए रखिए। सज्जनों की अनुपस्थिति से दुर्जनों को बल मिलता है" यही है बिलोरन ब्लॉगर
एक बात समझ लो बिलोरन तुम्हारे कहने से भड़काने से मुझे की फर्क नही पड़ता है तुम सम्मान के योग्य नही हो । सामने आकर लिखो ईट का जबाब पत्थर से दिया जाएगा । और समझ ले सांच को आंच नही नही होती है . धिकार है आज तुमने अपनी कलम से सबके सामने अपनी भावना व्यक्त कर दी . धिक्कार है .वैसे कडवे बोलने से कुछ फायदा होने वाला नहीं है, इसी लिए तो कहा गया है : ऐसी वाणी बोलिए ,मन का आपा खोय..... पर लोग सुनते कहाँ हैं । अच्छी बातों का मार्केट ही नहीं है । जबकि बुरी बातों को तो बच्चे भी बडी जल्दी कैच कर लेते हैं । ताऊ के उकसाने पर आदित्य ने अपने ही पापा का कान काट लिया । अब बताइए बच्चों को ऐसी बातें सिखानी चाहिए ? आलोक सिंह की तरह कुछ प्रेम की बात क्यों न सिखाएं . ऊपर से साधु जी तो पूरा दोष नन्हें से बच्चे को ही देते पाए गए । कहते हैं :
अरे बबुआ, उड़न तश्तरी अंकल जब बदमाशी सिखाये तो तुरंत सीख गये।
इत्ते दिन से सिखा रहे हैं कि मम्मी पापा को परेशान नहीं करते, वो नहीं
सीखा॥क्यूँ??जोर से तो नहीं काटा?? :)
अब बच्चा ब्लॉगरों की जमात में लविजा अकबर भी शामिल हो गया है ।
बच्चों को तो काबू कर भी लें पर गुण्डों का क्या किया जाय ? सब शासन व्यवस्था की धज्जियाँ उडा रखीं हैं । शास्त्री जी के पास इसका भी तोड है । उन्होंने कहा है : गुण्डे काबू किये जा सकते है!समाज के विभिन्न तबकों में समय समय पर गुण्डों का राज हरेक को दिखता है. कभी यह अनाज की दलाली में होता है तो कभी यह सरकारी दफ्तरों के दलालों में दिखता है. ऐसा कोई नहीं है जो इन से त्रस्त न हो. लेकिन यदि जिम्मेदार लोग कमर कस लें तो गुण्डे काबू में लाये जा सकते हैं.अब बताइए आपको मालूम था यह तरीका ? चलिए अब पता चल गया । अब देश से गुण्डागर्दी का अंत निकट समझिए । पर यह तरीका अगर पहले बता दिया जाता तो देश को कितना नुकसान होने से बच जाता । इस उपाय के लेट होने से देश को हुए घाटे की भरपाई कैसे हो यह बता रहे हैं फुरसतिया । आगए ना शास्त्री जी के बचाव में आगे । कहते हैं : आइये घाटा पूरा करें और सुखी हो जायें । अगर फुरसतिया के मंत्र से लोग सुखी होते तो शायद वे सबको सुखी कर देते । पर दुनियाँ में दुख तो फिर भी हैं । कोई नेताओं की गतिविधियों से दुखी है , कोई इस बात से दुखी है कि भारतीय समाज में पुत्रों की महिमा अभी भी है , कोई बेटी की बढती उम्र से दुखी है , कोई वक्त की कमी से दुखी है , कोई भारतीय संस्कृति का पतन होता देखकर दुखी है , तो कोई भाषाई विवाद से परेशान है । अनिल कान्त को देखिए , कहते हैं : मैं अपनी बात हिन्दी में कहूँगा जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा
मेरी एक दोस्त बताती है कि उसकी अंग्रेजी अच्छी होने के पीछे एक वजह है ...कि वो जिस स्कूल में पढ़ती थी उसमे हार्ड एंड फास्ट रुल था कि अगर कोई बच्चा स्कूल के समय में हिन्दी बोलता हुआ पाया गया तो उसके गले में पूरे दिन "I am a fool " का बोर्ड लटका दिया जाता था .....और किसी में इतनी हिम्मत नही थी कि वो सज़ा झेल पाये .....मसलन अंग्रेजी की तो बल्ले बल्ले ......वैसे हमारी गरज़ नहीं पडी थी फिर भी इनकी बात सुन ली हमने ।
प्रशांत जी किताबों से बढती हुई दूरी से दुखी हैं । इन्होंने दूरी का मात्रक घण्टा बताया है । इस सबसे हमें यह शिक्षा मिली कि लोग दुख के बारे में सोचकर ज्यादा दुखी हैं । सोचने का क्या है कोई यूँ भी सोच सकता है कि : अगर दिल घुटने में होता....
अगर दिल घुटने में होता तो और कुछ होता या ना होता घुटने का भाव अवश्य बढ़ जाता। उसकी गिनती शरीर के प्रमुख अंगों में की जाती। बहुत दिनों के बाद मिलने पर लोग एक-दूसरे से पूछते कहो भई, आजकल तुम्हारे घुटने का क्या हालचाल हैं और दोनों रोमैंटिक हो जाते! फिर घुटने में कुछ-कुछ होने लगता। घुटने की धड़कनें बढ़ जातीं और उसका सीधा प्रभाव कोमल कपोलों पर भी साफ़ नज़र आता।आप भी कुछ सोचिए जैसे डॉ. अमर कुमार सोचते हैं :
कुछ भी लिखते वक़्त, कम से कम मैं तो यह ध्यान रखता हूँ, कि यदि इसे आगामी 25-30 वर्षों के बाद की पीढ़ी पढ़ती है, क्योंकि लगभग हर सर्च-इंज़न के डाटाबेस में हिन्दी का अपना स्थान होगा.. .. तो इस सदी और दशक के हिन्दी ब्लागिंग के किशोरावस्था को किस रूप में स्वीकार करेगी ?जिन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है वे अपना फरवरी माह का भविष्य पता कर सकते हैं . पर भविष्यवाणी सही न होने पर चिट्ठा चर्चा मण्डल किसी हर्ज़े खर्चे का उत्तरदायी न होगा . और न्याय क्षेत्र पानीपत स्थित ताऊ की कचहरी ही होगा :
- मासिक राशीफल फरवरी 2009 - Pt।डी।के.शर्मा"वत्स"
बिलागर चर्चा : अजित जी कमाल करते
घर बैठे कर लें सफर, जाना पडे न दूर ।
शब्दों के इस सफर में , रोचकता भरपूर ॥
रोचकता भरपूर, ज्ञान के बीज बो रहे ।
शब्दों के सम्बन्ध देख हम चकित हो रहे ॥
विवेक सिंह यों कहें, अजित जी कमाल करते ।
शब्द-समुद्र विशाल बीच स्वच्छ्न्द विचरते ॥
और अब पढिए कविताएं आपको कवियों की कसम :
- तुम्हे रात-दिन क्यूँ मैं सोचा करूँ ... - अर्श
- आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया....... -Vijay Kumar Sappatti
- कैसौ आयौ नवल बसंत .....(. गीत - रसिया ) - ललितमोहन त्रिवेदी
- इजहार - ओम आर्य
- साँस का बस खेल है जीवन मरण - दिगम्बर नासवा
- भीख माँगता खड़ा भिखारी ('गीतांजलि' का हिन्दी काव्यानुवाद) - पंकिल
अंत में प्रमुख समाचारों पर एक नज़र :
- ताऊ की साप्ताहिक पहेली के विजेताओं की घोषणा हो गई है ।
- अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' की आत्मकथा का प्रकाशन किस्तों में जारी है ।
- जावेद मामू की कहानी पूरी हो गई है ।
चलते-चलते :
गुण्डों को काबू में लाना , इतना है आसान न जाना .
यह पहले क्यों नहीं बताया, अब तक जो नुकसान उठाया .
उसका जिम्मेदार कौन है ? संविधान भी यहाँ मौन है .
अजी छोडिए क्यूँ डरते हैं, हम तो बस मजाक करते हैं .
अच्छा अब आज्ञा चाहेंगे , अगले मंगल फिर आएंगे .
जवाब देंहटाएंमहोदय आपकी चर्चा संज्ञान में ले ली गयी है,
स्थानीय ब्लागर कार्यालय बंद होने के कुख्यात 3.15 हो जाने से
सम्पूर्ण आख्या सहित टिप्पणी प्रातः 9.27 पर प्रकाशित की जायेगी ।
प्रतीक्षा करें
भवदीय
जब डॉ साहब की टिप्पणी की प्रतिक्षा कर ही रहे हो, तो इस साधु की टिप्पणी का भी इन्तजार कर ही लो.
जवाब देंहटाएंबहुत से उल्लेखनीय चिट्ठों की यह चर्चा अच्छी लगी. हमारे पास कौशल होता तो हम भी ऐसी टिप्पणियां लिखते कि
जवाब देंहटाएं"यदि इसे आगामी 25-30 वर्षों के बाद की पीढ़ी पढ़ती है, क्योंकि लगभग हर सर्च-इंज़न के डाटाबेस में हिन्दी का अपना स्थान होगा.. ..तो इस सदी और दशक के हिन्दी ब्लागिंग के किशोरावस्था"
को सच्चे मन से टिप्पणीकारी के लिये स्वीकार करेगी ?
वैसे टिप्पणीकारी के नये आयामों में एक आयाम ’अमर-टिप्पणीकारी’ है, बेशक.
शुक्रिया चिठ्ठा चर्चा - युद्ध का बिगुल फूंक दिया गया है और कलम (मिजाइल) भी तैयार है और प्रहार करने के लिए . धन्यवाद जो अपने मेरी राह सुगम कर दी . आभारी हूँ .
जवाब देंहटाएंबडी आनन्द दायी और मंगल मय चर्चा. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
तीसरा विश्व युद्ध इतना दिलचस्प होगा सोचा ना था । हम तो तब पहुंचे ,जब तोप - गोले चलने लगे । बैरागी जी अपने शीतल जल को ही हथियार बना बैठे । तभी तो कहते हैं सज्जनता सबसे घातक हथियार होता है । ये गांधीवादी बडॆ खतरनाक होते हैं । भई हम तो यही कहेंगे शांतम पापम ...शांतम पापम
जवाब देंहटाएंवाह विवेक, आज सुबह तो ऐसा गजब की चर्चा प्रस्तुत की है जैसे फ्रूट-सलाद. सारे मौसमी फल मौजूद हैं एवं स्वाद बढाने के लिये बदाम, काजू आदि के कतरे भी पर्याप्त मात्रा में है. कुल मिला कर एक समग्र चर्चा!!
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
अनूप जी
जवाब देंहटाएंउनकी हिम्मत नही है कि मेरे रहते संस्कार धानी का वह कुछ बिगाड़ नही पायेगा . मुझे पूर्ण विश्वास है चाहे जिसके लिए मुझे कुछ भी कुर्बानी देना पड़े . सर ये पत्थरो का शहर है जो अटल रहते है और अपनी जगह से हिलाते भी नही है . इन्हे शहर का साहित्यकार अच्छी तरह से जनता है कि वो क्या है ?
मित्रो, सबको सम्मान के साथ बता दूँ कि युद्ध जैसी कोई बात नहीं है .सिर्फ़ ध्यान देने वाली बात है . करो या मरो का नारा अब
जवाब देंहटाएंमुझे समझ में आ गया है कि "करो और मरो "
विष्णु बैरागी जी इन्नोसेंट हैं उनका कोई दोष नहीं न ही वे हथियार हैं .
विवेक जी आपका आभार जबलपुर को विश्व कहकर मान बढ़ाया शुक्रिया.
वाह विवेक भाई.. मजा आ गया इसे पढ़कर..
जवाब देंहटाएंशानदार चरचा विवेक भाई....
जवाब देंहटाएंहम तो टिप्पणी कर देते हैं। सम्पूर्ण आख्या कौन करे!
जवाब देंहटाएंगुंडों पर काबू पाने का आसान तरीका पहले न बताने के लिए शास्त्री जी पर मुकदमा चलना चाहिए
जवाब देंहटाएंWaah ! Saras sundar charcha....Padhkar aanand aa gaya.
जवाब देंहटाएंAabhaar.
गुण्डों को काबू में लाना , इतना है आसान न जाना .
जवाब देंहटाएंयह पहले क्यों नहीं बताया, अब तक जो नुकसान उठाया
विवेकजी, शास्त्रीजी ने देर से नुस्का इसलिए बताया कि वे अब तक कमर की ताकत का अंदाज़ा लगा रहे थे। अब आ गई कमर कसने की बारी:)
विवेककृत चिटठा चर्चा में जबलपुर के कुछ ब्लोगेर्स की अंदरूनी बातें ( ये तथा कथित असाहित्यिक बातें) जिन्हें एक साथ प्रस्तुत किया जाना नितांत आवश्यक था , वो आप एवं चिटठा चर्चा के माध्यम से संपन्न हुआ अब बारी है आत्म अवलोकन और संयम की. मुझे उम्मीद है कि संस्कारधानी की गरिमा को बरकरार रखते हुए अब इसकी पुनरावृति नहीं होगी.
जवाब देंहटाएं-विजय
विवेक जी
जवाब देंहटाएंकम से कम इस शहर को हम लोगो की आपसी तकरार वो ब्लागिंग के माध्यम से हो रही है पर खेद का विषय है कि आप जबलपुर को डबलपुर लिख रहे है . शायद आप जबलपुर शहर को जानते नही है इस शहर को विनोबा भावे ने संस्कारधानी के नाम से संबोधित किया था तो एक बार नेहरू जी ने जबलपुर की एक सभा में गुस्से में भाषण में "गुंडों का शहर" संबोधित किया था . जबलपुर में एक से एक व्यंगकार कवि साहित्याकार हुए है जिनका नाम सारे भारत में आदर से लिया जाता है . ब्लागिंग जगत में यह तो कुछ नही है इससे भी ज्यादा गली गलौज माँ बहिन की गलियो का प्रयोग हुआ है यह मै अच्छी तरह से जानता हूँ . यदि आप मेरे शहर को हम लोगो के मतभेद को लेकार ग़लत ढंग से संबोधित किया जाए तो यह उचित नही है . आप मेरे भाई है इसीलिए इतना लिख गया हूँ . यदि शहर को ग़लत ढंग से लिया जाता है तो कल दूसरे के शहरों को भी निशाना बनाया जा सकता है जिससे ब्लॉग जगत में गन्दगी फैलेगी .मुझे दुख है कि ग़लत ढंग से शहर को प्रस्तुत किया जाना उचित नही है . यदि शहर को इस तरह से निशाना बनाया जाता है तो भाई मै इस शहर के सम्मान की खातिर ब्लागिंग छोड़ने तैयार हूँ
सप्रेम
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
विवेक भाई, आपकी चर्चा वाकई चर्चा के लायक है।
जवाब देंहटाएं...जिस जबलपुर ने ब्लॉग की दुनिया को एक ऐसी अनूठी ‘उड़न तश्तरी’ भेंट कर रखी हो जो मुक्त आकाश में उड़ते हुए अखिल विश्व के समस्त हिन्दी ब्लॉगर्स को नयी ऊर्जा और प्रेरणा देती है, उसी शहर के चिठ्ठाकारों में यह क्या घमासान शुरू हो गया? मुझे तो बड़ा बेतुका लग रहा है यह सब।
आप सभी ने अपने विचार रखे . धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@ अमर कुमार जी ,समीर जी , यह वादाखिलाफी हुई है :)
@ महेन्द्र मिश्र जी , मैंने पूरी चर्चा में एकबार भी डबलपुर शब्द का प्रयोग नहीं किया है . कृपया मिथ्या आरोप न लगाएं . और हाँ आपके जैसे नगर भक्त की तरह दो चार देश भक्त भी भारत में पैदा हो जायँ तो देश का कल्याण पक्का है जैसे आपके हाथों जबल पुर का नाम रोशन होरहा है . आपको मेरा नमन !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसंबन्धित पक्ष ई-मेल के आदान प्रदान से शक्ति-परीक्षण करें, तत्पश्चात अपने वर्चस्व का दावा पेश करें ।
उनसे अपेक्षित है, कि संस्कार-धानी कि गरिमा को ब्लाग पर लाकर उसे संस्कार-स्याह न बनायें
एवं ब्लागजगत में शांति-व्यवस्था बनाये रखें । साथ ही आग्रह है, कि इसके कवरेज़ में लिप्त चर्चाकार पर भी किसी प्रकार के प्रहार का प्रयास न करें ।
साथ ही, वर्तमान में उड़न-तश्तरी के नाम से किन्हीं प्रवासी समीर लाल की
डबलपुर में उपस्थिति पर भी विचार किया जाना चाहिये ।
डबलपने के खेल के चलते, सामान्य स्थिति कायम होने तक
उल्लिखित शहर के डबलपुर नाम की यथास्थिति बनाये रखने की संस्तुति की जा सकती है ।
आज्ञा से - क्षुभित चर्चा-पाठक समाज
मैं हत्भाग, नर्मदा में इतना पानी बह गया और मुझे अब पता चला। इतने घण्टों बाद।
जवाब देंहटाएंpandit ji mujhe batayea mai 12th mai pass ho jaunge. mera birthday date hai 25/08/1992 and time hai 9:28pm
जवाब देंहटाएं