किशु की पेंटिंग है ये
आज की कुछ टिप्पणियां
- चलिये, यह पता चला कि बीड़ी कहां पीनी चाहिये और कहां नहीं! :)
ज्ञानदत्त पाण्डेय - बुढापे में भी ज्ञानवर्धक लग रहा है. आभार.P.N. Subramanian
- कूकर गोलू पांडे जी कालीन पर बैठे किसी रेलवे मिनिस्टर से कम नही दिख रहे है समयचक्र - महेद्र मिश्रा
- अर ताऊ.. एक सुझाव...सब से अधिक गलत जवाब देने वाले के लिये भी इनाम होना चाहिये...अर सबतै पहला गलत जवाब देने वाले के लिये भी....क्योंकि हमारा प्रतिशत ज्यादा है सर... ये जमाना बहुमत का सै.. Ratan Singh Shekhawat
- भाई योगेन्द्र जी अपनी खडाऊ मुझे भेज दो...रोज पूजा करूँगा...आप क्या लिख देते हो...वाह वा...भाई गज़ब करते हो आप...कोई एक शेर हो तो तारीफ भी करूँ पूरी की पूरी ग़ज़ल उम्दा है....धन्य हैं आप..नीरज गोस्वामी
- हर शब्द के साथ पापा याद आते गए! कविता बहुत ही सुन्दर है!सचमुच मन भारी हो गया!पल्लवी त्रिवेदी
- अब लग रहा है कि संकट मोचन के पास एक दो कमरे का फ्लैट मिल जाये तो देखौवा-छेकौव्वा गेस्ट हाउस खोल दिया जाये! ज्ञानदत्त पाण्डेय
- डॉक्टर साहेब ज़माने को क्यों कोस रहे हैं. दिल है तो दिलदार लोग हैं. दिल है तो दिल की दुकान है. दिल है तो दिल का डॉक्टर है. रत्नेश
- नाउम्मीदी एक साधारण रंग है शुद्ध सफेदडा.अनुराग
- फिर से स्कूल जाने का इरादा है क्या? एड्मिशन में अब बडे पैसे लगते हैं.इष्ट देव सांकृत्यायन
- राज जी ने सिगरेट के बारे में कुछ नही बताया. प्रशान्तप्रियदर्शी बोले तो पीडी
एक लाइना
- गामा पहलवान को याद कीजिये : वेलेंटाईन दिवस के लफ़ड़े से बचिये
- चरित्र को बोओ और भाग्य को काटो ......:खून तो नहीं निकलेगा भाग्य कटने पर
- संकल्प और भावना दो पलड़े हैं :चाहे जिधर से डंडी मार लो
- पान से लदी ट्रक रेलवे के बड़ी लाइन में घुसा : ट्रक के खिलाफ़ छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज
- आभार … धन्यवाद : हिंदी में थैंक्यू को कहते हैं
- वास्तविकता-प्रदर्शन -– जुगुप्सा प्रदर्शन ! :इनमें से कॊई एक चुन सकते हैं, असर समान हैं!
- आफ्टर ट्वंटी ईयर्स आफ योर डिपार्चर आई स्टिल लव यू : रुला के ही मानोगी इस अंग्रेजी से
- फिज़ा अब बस करो क्यों पीट रही हो लकीर:लकीर का रो-रोकर बुरा हाल हो गया है
- गीली हल्दी का अचार :बंसंत की शुभकामनाओं के साथ...
- .बदलेंगे हम?: देखा जायेगा
- मैं और मेरी जिंदगी :आमने सामने आ गयीं
- "सांसे आप की जान है हमारी" : तुम सांस लो मैं जान लूंगा
- हर चौक पर बढ़ गयी है भिखारियों की संख्या : लेकिन चैनलों को तो बस अमेरिका की पड़ी है
- पीड़ा से लिया जोड़ है नाता : ये क्या किया भ्राता?
- हम उसे बावफा समझे थे बेवफा निकला : निकलने पर यही होता है जी!
- अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार :इंतजाम तो पहले से रखना पड़ता है न !
- दीघा में बनेगा डायनासोर पार्क : जगह के लिये शीघ्र आवेदन करें
- भोजन क्या किया, अखबार का स्पेस भी खा गए :खाने के बाद की बाद की प्यास बड़ी जबर होती है
- पूंजीपति भिखारी -पैकेज का भीख कब तक मांगोगे ?:सबको भिखारी बनाने तक
- प्रेम का दो हमको वरदान :हमसे तो हो नहीं पाता प्रेम, वरदान से ही कुछ हो तो हो
- सीधी रपट 'गोरखपुर फ़िल्म फेस्टिवल' से:टेढ़ी रपट के कहां से आयेगी, देवरिया से कि बलिया से?
मेरी पसंद
शाम,
जो होने को आती है
ना जाने कहां से हाथों में तेजी आ जाती है
दिनभर सुस्त सा रहना वाला ऑफिस
सिमटने लगता है फुर्ती से
जेबों से निकलने लगती है
मुड़ी-तुड़ी पर्चियाँ
तय होने लगते हैं रूट फटाफट
कंधों पर लटकने लगते है झोले
हैण्ड़बैग से बाहर आ ही जाती है थैलियाँ
किसी को लेने कोई आया है /
किसी को किसी का इंतजार है
और
घर सभी पर सवार होने लगता है
कोई,
रिव्यू नही होना है /
ना कोई प्लान था / ना कोई टारगेट है
सभी जैसे दफ्तर पहली फुर्सत में ही आये हैं
पंच / लंच और फिर पंच की क्रम में
किसे परवाह पड़ी है कि पूछे भी
कहां से चले थे सुबह और
कहां तक पहुँचे है
शाम, रंगीन है और रंगीन बनी रहे
इसलिये कोई किसी से कुछ पूछता भी नही
सरकारी,
दफ्तर है बस चलता ही रहेगा
सरका री का नारा टेबलों पर
दिखाता रहेगा असर
जब तक कुछ सरकेगा नही
कुछ भी नही सरकेगा अपनी जगह से
चाहे देश कितनी ही रफ्तार से बढ रहा हो आगे /
कार्पोरेट कल्चर झलकने लगा हो
इश्तेहारों में
सभी की घड़ियाँ दौड़ती हैं समय से तेज
सिर्फ ऑफिस में
मुकेश कुमार तिवारी
और अंत में
ऐसे ही शाम को देख रहा था तो फ़िर विवेक के ब्लाग पर जाना हुआ। देखा कि विराम घोषणा के बाद उनके दो फ़ालोवर बढ़े और इस पोस्ट पर ६५ टिप्पणियां। टंकी-टिप्पणियों का अभी तक का कीर्तिमान शायद १०० का है। देखिये वे इसके आसपास पहुंच पाते हैं या नहीं।
वैसे ज्यादा दिन नहीं लगते किसी चिट्ठाकार को भुलाने में। कुछ दिन और चर्चा चलेंगे इस बात के। फ़िर धीमे होते-होते खत्म हो जायेंगे। आज १६ नये चिट्ठे जुड़े। एक दिन मुझे याद है ११३ जुड़े थे। इतने में कोई एकाध लिखना बंद कर देता है तो क्या फ़र्क पड़ता है।
मुझे याद है विवेक ने एक दिन मुझसे कहा था कि मैं शाम को भी कुछ ही करूं लेकिन चर्चा करा करूं। उसके बाद ही वे चर्चा से भी जुड़े।
बहरहाल इंतजार है विवेक के दुबारा लिखना शुरु करने का। चलते-चलते अगर विवेक लिखते तो क्या कुछ ऐसा लिखते?
नवा कुकरवा देखिके, सब कुतिया भईं हैरान,
मुआ शरीफ़ सा बन बैठा है, कीन्हे नीचे कान
कीन्हे नीचे कान न जाने, इरादे क्या हैं इसके
ऐसा न हो वेलेईंटाइन में,’आई लव यू’ कह के खिसके,
गर होगा ऐसा तो, पिट जायेगा हमसे ये दहिजरवा,
हाय मुई मैं सोच रही क्या, जबसे देखा नवा कुकरवा।
या फ़िर कुछ इस तरह ठीक रहेगा:
ब्लागर का कुकरवा है, कालीन पे बैठेगा,
कही कोई कुछ टोंक दिहिस, फ़ौरन ऐंठेगा,
खायेगा-पियेगा मुफ़्त का,अपना ब्लाग भी बनवायेगा,
जब तक न सीखा टिपियाना, भौं-भौं कास्ट करवायेगा,
मजा तो तब आयेगा गुरू जब छह महीने में,
दुनिया दर्शन के लिये कौम बढ़ाने में जुट जायेगा!
बहरहाल अब और कुछ कहना ठीक नहीं। ज्ञानजी बुरा मान सकते हैं। हालांकि भाभीजी उनको समझा देंगी और बुरा मानने नहीं देंगी। लेकिन आखिर वे भी तो इंसान हैं। जब जबलपुर के भाई लोग शहर के नाम पर बिदक सकते हैं तो इलाहाबाद के ज्ञानजी अपने नये-नवेले कुत्ते के नाम पर क्यों नहीं?
बिदकना हर एक का पैदाइशी अधिकार है!
फ़िलहाल इत्ता ही। कल की चर्चा आराम से पढियेगा आलोक कुमार के सौजन्य से। शुभरात्रि।
नवा कुकरवा ...बड़ा जानदार रहा .....अच्छी ब्लॉग चर्चा
जवाब देंहटाएंबेलन टाईट डे से पहले कुत्ते खूब चर्चा में आ गए हैं। एक कुत्ते की आंख फोड़क कांड में एक इंसान को सजा हो गई थी नोएडा में, बिग अड्डा में नहीं, नोएडा में। मेनका जी हुई थीं खुश।
जवाब देंहटाएंजान कट लै! वाह!
जवाब देंहटाएंइस घटना पर घटित व्यंग्य यदि कोई पाठक पढ़ने के इच्छुक हों तो नीचे दिए गए लिंक को कापी करके एड्रेस बार में पेस्ट करके एंटर दबाएं और पढ़ आएं कुत्ते को मारने पर किया गिरफ्तार : न्याय की बढ़ चली रफ्तार। कुत्तों संबंधी आयामों में से एक महत्वपूर्ण आयाम यह संगोष्ठी रपट भी है।
जवाब देंहटाएंhttp://avinashvachaspati.blogspot.com/2009/02/blog-post.html लिंक जो उपर की पोस्ट में आने से बिदक गया।
जवाब देंहटाएंअरे भैया फ़ुर्सतिया जी, कहाँ कहाँ से शब्द तोड़ के लाते हो इतने धाँसू धाँसू ? हा हा। चर्चा तो ग़ज़ब थी ही, लेकिन आज एक लाइना ने अजब ढा दिया। क्या कहना!
जवाब देंहटाएं"औ इ विवेकवा के लिए काहे इत्ते परेसान हो रहे हो ? अरे भाई, मगरमच्छ के आँसू अक्सर जल्द ही सूखते देखे गए हैं। मगर ऊ के आँसू भी तो देखो जौन बहा रहा औ बता भी नहीं रहा। काहे से के लोगों की नज़र में ऊ तो रोता ही नहीं ना, समीरलाल (उड़नतश्तरी) नाम के आदमी को इर्शाद से लेकर विवेकवा तक कौनऊ भी गाली देय सकत है, मगर ऊ लालवा के रोय का अलाऊ नहीं, है ना ? ऊ का जबरन हँसै का परी।
आदरणीय अनूपजी, हम आपकी पीड़ा समझ रहे हैं, पर ये भी सच है के कम-उम्र के अक्खड़पन को अनुभव की तड़ी, हमेशा सुन्दर गुल खिलाती देखी गई है।
लौटेगा, लौटेगा और निखर कर लौटेगा।
हमारे नैन का अँजन है, बन सँवर कर लौटेगा।
मत हलाकान हूजिए। तब तक के लिए हम हूँ ना। हा हा ।
फ़ीअमानल्लाह।
जवाब देंहटाएंब्लागर-चर्चा पर आज कुकुराहट काहे मची है, भाई ?
विवेक हम्मैं भुलायें, तो जानैं !
अउर हमहूँ कहब..हिरदे से जो जाओगे, विवेक मानूँगो तोंहिं :)
नहिं कोऊ अस जनमा जग मांही।
जवाब देंहटाएंटंकी चढ़ जे उतरा नाहीं॥
ब्लागर का कुकरवा है, कालीन पे बैठेगा,
जवाब देंहटाएंकहीं ये कुकरवा ताऊ का बीनू तो नही ?
कूक्कुर चर्चा नीक लागी !!
जवाब देंहटाएंइस कुकुर को देख कर तो मैने एक पोस्ट ही लिख डाली है।मज़ा आ जाता है चर्चा में।
जवाब देंहटाएंजब ब्लागर भौंक रहे हो तो कुकर यदि ब्लागिंग की सीटी बजा दें तो आश्चर्य क्या:)
जवाब देंहटाएंअच्छी ब्लॉग चर्चा...
जवाब देंहटाएंये बिदकना शब्द इससे पहले इतना शायराना कभी नहीं लगा...
जवाब देंहटाएंविवेक स्ताईल मे कुकुर-आल्हा बडा जोरदार लगा. एक लाईना तो हैं ही अपने चरम पर. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी कलम से हमेशा कुछ न कुछ नया मिल जाता है. आज आप ने चुनी टिप्पणिया दे कर चर्चा जीवंत कर दी है. आगे भी यह जारी रहे तो अच्छा होगा!!
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
विवेक सिंह का यूँ शांत हो जाना, जवाब न देना कुछ अच्छा नही लग रहा !
जवाब देंहटाएंसमाज को झेलने में अनुभवहीनता की कमी और भावुकता के साथ अति संवेदनशीलता, ये गुण हैं या अवगुण, अलग अलग मत होंगे यहाँ पर ! यहाँ सामान्य हंसी मजाक में कही हुई बातों को बहुत गंभीर बनाना, आम बात है, बहुत प्यार और सम्मान के साथ कही हुई बात पर भी लोग आसानी से गालीगलौज पर उतर आते हैं, मगर इसका बुरा क्या मानना ! हो सकता है, कुछ लोग हमारा मन न समझ पाये हों या हमसे अनजाने में कोई भूल हुई हो जिसे हम ही न समझ सके और किसी अन्य का दिला दुख दिया हो !
बहुत से तरीके हैं इस अन्धकारमय सुरंग से निकलने के, और सबसे अच्छा और आसान है, कड़वाहट को भुला देना !
अनूप शुक्ला जैसे मस्त मौलाओं से सीखो विवेक सिंह ! बहुत लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविवेकसिंह छाप रचना पसंद आई !
जवाब देंहटाएंअच्छी ब्लॉग चर्चा है।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअसभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी.
जवाब देंहटाएंइसी लिए हम टिप्पणी ही नहीं करते हैं. ;)