सोमवार, मार्च 02, 2009

मर रहे हैं हाथ के लेखे हमारे और हम मदहोश हैं ....







फागुन की मस्ती का रंग चहुँ ओर छाने लगा है। चर्चा के नव-नव प्रयोगों द्वारा गत सप्ताह चर्चाकारों ने आपको खूब सराबोर कियामस्ती का आलम यह कि सब ओर जैसे कविता की बरसात हो रही थी। सब झूमने को मानो तैयार बैठे हैंउत्तर भारत में रंगों की रंगीनी धरती पर अपना जादू बिखेरने लगी होगीउत्तर में होली के साथ ही इन दिनों पतंगबाजी की शुरुआत होती हैलोग घरों से निकल छतों पर आते हैंआप सब भी प्रकृति के कृषि के इस ठेठ भारतीय पर्व पर नव सस्य की प्रतीक्षा में होंगेहोली मेरे देश के किसान के जीवन में खूब वैभव का रंग छितरा दे ! इस कामना के साथ चर्चा आरम्भ की जाती है । उसी अपने पारंपरिक किंतु किंचित परिवर्तित रूप में.




भारतीय
भाषाएँ




मराठी


कल ही मैंने गिरिराज जी के फिलहाल पर कवि केदारनाथ सिंह को भारत - भारती सम्मान देने वाले आयोजन की दुर्दशा की व्यथा कथा पढ़ी। मराठी ब्लॉग जगत से प्राप्त इस समाचार को उक्त समाचार के साथ रखकर देखा जा सकता है -






हा तर महाराष्ट्राचा अपमान॥



स्वरभास्कर पंडीत भीमसेन जॉशी यांच्या आयुष्यातील अत्युच्च सन्मानाच्या क्षणी ज्येष्ठ राजकीय नेत्यांच्या तसेच राष्ट्रपतींच्या अनुपस्थितीबद्दल भारतकुमार राउत यांनी मन:पुवर्क या सदरात घेतलेला आक्षेप योग्यच आहे. 'उरकण्यात' आलेल्या या संमारभाने अख्ख्या महाराष्ट्राचा अपमान केलेला आहे.जणु काही या पंडीतजीना 'भारतरत्न्' देण्याच्या सोह्ळ्यात सहभागी झालो तरी त्याचा राजकिय फायदा काय? असा विचार करुन ज्येष्ठ मराठी नेत्यांनी केलेला दिसतो.पंडीतजीना 'भारतरत्न्' देताना आवश्यक तर सारे राजशिष्टाचार बाजुला ठेवून सर्वच नेत्यांनी त्यांच्या घरी जाणे आवश्य्कच होते.त्यातच महाराष्ट्राची शान राहीली असती.
ही माझी प्रतिक्रिया 'महाराष्ट्र टाइम्स' मघ्ये रोजी २२/२/२००९ प्रसिध्द झालेली आहे.





- महाराष्ट्र नव निर्माण सेना द्वारा मराठीभाषा अकादमी की पुनर्स्थापना का रोचक समाचार भी आप स्वयं बाँच ही लीजिए -




मनसे करणार `मराठी भाषा अकादमी’ची स्थापना


श्री. प्रशांत कोयंडे, मुंबई
मुंबई, २८ फेब्रुवारी - महाराष्ट्रासह मराठी बांधवांच्या उत्कर्षाचे ध्येय समोर ठेवून स्थापन करण्यात आलेल्या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनेने मराठी भाषेची सर्वत्र होणारी अवहेलना थांबवण्यासाठी व मराठीला पुढे नेण्यासाठी `मराठी भाषा अकादमी’ची स्थापना करण्याचा निर्णय घेतला आहे.

(`अकादमी’ हा शब्द `अँकॅडमी’ या इंग्रजी शब्दाचे भ्रष्ट रूप आहे. तरी मराठी भाषाप्रेमी मनसे मराठीच्या उत्कर्षासाठी स्थापन करण्यात आलेल्या संस्थेचे नाव शुद्ध मराठीत करेल काय ? - संपादक) याबाबतची माहिती काल पक्षाने सुरू केलेल्या www.manase.org या संकेतस्थळावर देण्यात आली आहे. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनेच्या संकेतस्थळाचे उद्घाटन पक्षाचे अध्यक्ष श्री. राज ठाकरे यांच्या हस्ते काल वांद्रे येथील रंगशारदा सभागृहात आयोजित करण्यात आलेल्या कार्यक्रमात करण्यात आले. या संकेतस्थळाच्या माध्यमातून महाराष्ट्रातील मराठी माणसांच्या समस्या सोडवण्याचा प्रयत्‍न करणार असल्याचे श्री. ठाकरे यांनी या वेळी सांगितले. या संकेतस्थळाचे काम पुणे येथील श्री. अनिल शिदोरे हे पहात आहेत. मराठी भाषेविषयी कार्य करू इच्छिणार्‍या संस्था व व्यक्‍ती या अकादमीच्या अधिक माहितीविषयी श्री. शिदोरे यांना संपर्क करू शकतात. संपर्क : श्री. अनिल शिदोरे (०२०) २६०५९२८२/८३





पंजाबी


`
'तनदीप
तमन्ना' के सौजन्य


कुझ हाइकू



अलटरासाउंड कोश

जीवन शबद पुलिंग

मौत इसतरी लिंग

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महांनगर दी रौशनी

खा गी चंन दी चानणी

तारे गए गुआच

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सफ़र आखरी

बेबे झोल़े विच

चली कीरतपुर

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छाउंणी कबरसतान

कबर-शिला ते बैठा

बकरी चारदा बचा

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सुके खूह दीआं टिंडां

पंछीआं पाए आल्हणे

छते लाए भरिंडां


सतिकारत अमरजीत साथी जी दी किताब निमख चों धंनवाद सहित


कविता का मन


भारत में, विशेषतः हिन्दी में, साहित्य के मरने या उसमें भी कविता के मरने की आशंका दिन - प्रतिदिन साहित्य के कुछ आलोचकों को घेरे रही. कविता जिस गति से हाशिए पर धकेल दी गयी, (गत कई दशकों से संभवत वह कभी केन्द्रक में थी ही नहीं) उसने कविता की आसन्न अवगति के संकेत तो दे ही दिए थे। परिणाम के रूप में दिखाई भी पड़ा कि कोई प्रकाशक कविता की पुस्तक को छापने का जोखिम नहीं उठाता; क्योंकि वह बिकती ही नहीं। इधर कवि भी "वादे वादे जायते तत्त्वबोध:" की भाँति विभिन्न कोटियों के हो गए। साहित्य व मंच तो पहले ही अलग हो चुके थे, किंतु मंच की भी कई प्रशाखाएँ बन गईं, जहाँ चुटुकुले से लेकर चोरी के घटिया माल तक को धड़ल्ले से चलाया - गाया गया, गलेबाजों की जोर आजमाईश हुई, फूहड़ व भोंडे हास्य प्रस्तुत किए गए। कुल मिला कर मंच से कविता अंतर्ध्यान हो गई। मंच पर असल कवि रहे ही नहीं। दूसरी और साहित्य में कविता इतनी नखरीली, सुविधाभोगी व परमुखापेक्षी हो गई कि पूरी की पूरी छद्म बन गई। नकली पुरस्कार, गुटबंदी, विश्वविद्यालयीय अध्यापकों द्वारा प्रकाशकों से एवज में पुस्तकें छपवाना, प्रायोजित समीक्षाएँ, सरकारी खरीद, शब्दाडम्बर, गद्य की टुकड़ाबंदी.... .. आदि जाने कितने बाह्याचार, छल व छद्म में वह मारी गई।


इधर जब से नेट पर साहित्य आने लगा तब से साहित्य के चोरों की भी बन आई। पर चोरी की जाने वाली सबसे बड़ी विधा आज भी कविता ही है । विश्वास न हो तो ऑरकुट और कई मनोरंजन केंद्रित समूहों पर जा कर नजारा ले लीजिए। साहित्य के ठेकेदारों ने इस प्रवृत्ति व ( लोकेषणा तथा इसके चलते की जाने वाली चोरी की) सुगमता को सुन जान कर नेट को साहित्य के लिए एकदम सिरे से खारिज भी किया।


किंतु यह सच है कि माध्यम स्वयं में कोई दूषित नहीं होता, प्रयोक्ता पर निर्भर करता है कि वह उक्त संसाधन का प्रयोग किस उद्देश्य की पूर्ति में कैसा करता है । यदि हम अपनी दूषित प्रवृत्ति, छपास व लोकेषणा को एक ओर करते हुए (तिलांजली देते हुए) इस संसाधन का उपयोग करें तो पूरे साहित्य के परिदृश्य को बदल सकते हैं । इसका एक सबल उदाहरण अभी साक्ष्य में आया है। क्योंकि यह विदेशी भाषा के नेट प्रयोक्ताओं से संबंद्ध है अत: इसे विश्व के अंतर्गत नीचे पढ़ें -



विश्व

यह समाचार हम सबके लिए, विशेषतः काव्य से प्रेम करने वालों के लिए अत्यन्त हर्षदायक सिद्ध होगा कि इंटरनेट कविता की हत्या करने की अपेक्षा उसके जीवन संवर्धन में सहाय्य सिद्ध हो रहा है और कवियों के लिए वरदान। अब वे अपनी प्रतिभा द्वारा अधिकाधिक पाठकों तक पहुँच पा रहे हैं। पूरे समाचार के लिए तो आपको स्वयं ही इसे पढ़ना पडेगा


Man reading poetry: Internet 'is causing poetry boom'

इसमें बताया गया कि -
Poetry Archive , which Mr Motion helped set up, now receives 135,000 visitors a month and a million page hits.



दूसरी ओर एक खेदजनक समाचार भी आया कि एक ऐतिहासिक पत्र, जो १५० वर्षों से नियमित निकल रहा था, उसे बंद कर देना पड़ा। हमारे यहाँ कुछेक वर्ष छाप कर जब पत्र - पत्रिका बंद होती है, तो भी क्षोभ से भर उठते हैं हम; फिर यह तो एक इतिहास का वर्त्तमान में उपस्थित होना -जैसी थी।



updated 5:50 a.m. ET Feb. 27, 2009

DENVER - Questions about the future of the Rocky Mountain News had become so common, the newspaper's staff put up a handwritten paper sign on the news desk that said, "We don't know."

On Thursday, someone wrote over it in heavy black marker: "Now we know."

Colorado's oldest newspaper, which launched in Denver in 1859, printed its last edition Friday, leaving The Denver Post as the only daily newspaper in town.



Image: last front page of the Rocky Mountain News
AFP - Getty Images
The last front page of the Denver, Colorado,


पूरे समाचार को स्वत: देखा जाना चाहेंगे।




कुछ कुछ ऐसा ही आगत की आहट देता समाचार एक और भी है -






Lewis Carroll's handwriting
In 1864, Lewis Carroll wrote his most famous work for Alice Liddell.

Jane Austen's handwriting
Jane Austen completed her last novel, Persuasion, in 1816


Winston Churchill's handwriting
Aged 16, Winston Churchill wrote to his mother Lady Randolph Churchill

Jimi Hendrix's handwriting
Jimi Hendrix's lyrics for Machine Gun were written in 1969

King Henry VIII's handwriting
King Henry VIII wrote this love letter to Anne Boleyn (pic: British Library)


If everything we do still had to be done by hand, there would not be enough hours in the day
Registrar Ruth Hodson





अभिलेखागार



गत सप्ताह चर्चा के संग्रहालय से समीर जी की लिखी चर्चा के अंश पहचानने की बात का उत्तर किसी ने नहीं दिया। फिर अनूप जी ने अपनी आगामी चर्चा में पहेली का हल बताया। इस बार ऐसी कोई पहेली नहीं, केवल मूल चर्चा का एक अंश व उसका लिंक। ताकि आप सीधे वहाँ जा कर उसे पूरा पढ़ सकें। इस अभिलेखागार की पुराचर्चा को प्रति सप्ताह पुनर्नवा करने का उद्देश्य रहता है कि -



)-
जो नए ब्लॉगर प्रतिदिन जुड़ रहे हैं इस हिन्दी चिट्ठों के संसार से, वे चिट्ठों के इतिहास, उनके मुद्दे, उनके परिवेश और लेखकों से न्यूनाधिक परिचित हो पाएँ।

)-
जो चर्चाकर कभी न कभी चर्चा से जुड़े रहे हैं, उनके लेखन, शैली, भाषा व वरीयताओं से परिचय हो सके।

)-
इस बहाने पाठकीय चेतना के विकास का यत्न करना ।




[चर्चाकारः पंकज बेंगाणी]


आज युँही बैठा था तभी गुज्जु काका आ गये।
गुज्जु काका : शुं छे? मजा मां?
मैं: अरे काका, किधर चले गए थे आप?
गुज्जु काका : यु.एस. और कहाँ! गुजराती नो एक पग यहाँ ने दुसरा पग ...... सी.....धा....... यु.एस.।
मैं: ह्म्म.. बराबर है। समझ गया। हो आए।
गुज्जु काका : तो पछी शुं! मज्जा नी लाइफ छे।
मैं : ठीक है भाई, हम तो यहीं अच्छे।
गुज्जु काका : कुछ चर्चा वर्चा करी क्या?
मैं: मूड नहीं था।
गुज्जु काका : ओये.... वल्गर बात।
मैं: क्या वल्गर?
गुज्जु काका : मूड्स...
मैं: मैने... यह एक्स्ट्रा स्स्स्स नहीं लगाया ओके! उमर का लियाज करो ना काका।
गुज्जु काका : उर्मीबेन ने कुछ लिखा क्या?
मैं: क्यों, बहुत याद आ रही है?
गुज्जु काका : ही ही ही ही।
मैं: बेशर्म होते जा रहे हो आप। चलो देखते हैं... कुछ तो होगा ही... वही एक सक्रीय है।

लो देख लो है ना...अरे बाप रे इस बार तो मुक्तक लेकर आई हैं:

રે થાક્યું મન,
અટક હવે!
લે, લઇ લે ચરણ
મારા, દઉં છું
હું દાન તને!
*
બોલાઇ ગયુ
કૈંક, પણ શેં
પાછું ખેંચી શકું હું?!
લાવ, બીજો
કો’શબ્દ ઉમેરું!

रे थके मन,
रूक अब
ले ले ले इसे
मैरे, देती हुँ
दान
तुझे

कह दिया
कुछ, पर क्या
ले सकती हुँ फिर से
ला कुछ
और
शब्द मिलाऊँ

गुज्जु काका : खाश पता नहीं चला।
मै: काका वो तो समझ समझ का फेर है।
गुज्जु काका : एम? छोड बीजु क्या है?
मै: उर्मीजी, प्रेम के विषय में भी बता रही हैं।
गुज्जु काका: मन्ने उसमें इंटरेस्ट छे।
मैं : पता है मुझे, देखिए वो एक दोहा पोस्ट करते हुए कहती हैं



आधी आबादी


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गत
सप्ताह सोमवार को ही मैंने अपने आधी आबादी वाले स्तम्भ में किरण बेदी जी की चर्चा की थी। वे २००६ से ब्लॉग लिखती आ रही हैं। नवम्बर २००६ से ब्लॉग पर उनका लेखन बाधित हो गया था, जिसे गत माह ३१ जनवरी से वे पुन: लिखने लगी हैं। भविष्य में उनके नियमित लेखन द्वारा नेट पर उनके विचारों व गतिविधियों से परिचित होने वालों उनके प्रशंसकों को निराश नहीं होना पड़ेगा।

५९ वर्षीय किरण गत दिनों मानवाधिकारों से सम्बंधित एक संगोष्ठी में भाग लेने फ्रांस गयी हुई थीं, जहाँ योरोप व एशिया के आपराधिक न्यायाचारों की समकालिकता पर भी चर्चा हुई। इस संगोष्ठी पर लिखते हुए उन्होंने मूल प्रश्न "किसके मानवाधिकार?" का उठाया है। एक सक्रिय, तज्ञ, ईमानदार व निष्पक्ष एवं मानवीय व्यक्तित्व वाली सुश्री बेदी को पढ़ना स्वयं में अत्यन्त विचारोत्तेजक अनुभव होता है।

वे लिखती हैं --

But the fact is that in every case there are victims and victims. The accused with muscle and money power is open to hire expensive legal support while the victim is dependent on the over worked government prosecutor. Undoubtedly there are issues of rights on both sides. But how can we ignore one at the cost of the other? Who is speaking for the victim created by the accused? The same police who are always under pressure to deliver, despite huge constraints. The accused has a right to be quiet; defended, medically cared for; legally protected; safely lodged; even educated and reformed; to the extent that he can study and take an examination and qualify for the UPSC examination. What about the good cops who are exhausted, tired, ill equipped, most of the time no money to travel and dispose off the corpses.---When we want the maximum out of the police for the protection of human rights of the accused, (which they must), who will address their right to appropriate resources; legal support; forensics, better availability of information technology; laws, training, fitness; departmental support, material support, newer skills; their security; modern weaponry; living conditions; family and their children needs; their future? I am in no way proposing lowering of standards of human rights of the accused. They must have a right to all humane treatment and legal defense for us to remain a civilized society. All I am asking for is for how long will we continue to ignore the hapless victims who are left to themselves, scarred, injured, maimed, orphaned, deprived, impoverished, neglected, isolated, defamed? Who is going to walk the talk, legislate and implement victim’s rights? We need a more comprehensive approach to human rights and human responsibilities. We cannot just begin and end with the accused. We have to address the serious issue with that of the Accused+ Victim. In order to do that we have to dissect all the criminal justice and social processes which are impacting our trust in the justice systems?




आप
यदि सामाजिक सरोकारों से वास्ता रखते हैं तो इस ब्लॉग को बुकमार्क अवश्य करेंगे ऐसा मेरा अनुमान है।




अनंत


परीक्षाओं और होली के विरोधाभासी तेवरों से अधिकाँश परिवार जूझ रहे होंगे। जिनके बच्चे परीक्षाओं की तैयारी में संलिप्त होते हैं, वहाँ माता-पिता व परिवार भी उन्हें सहयोग दते हुए मनोबल बढाए रखने में एकाग्र रहता है। आपके परिवारों के बचे सफल-सुखी हों, माता पिता का यश बढाएं।


चर्चा मंडली व ब्लॉग -जगत को होली की अग्रिम शुभकामनाएँ ।

आपका आने वाला प्रत्येक दिन शुभ हो, सुखदाई हो!!

इत्यलं........


पुनश्च : चर्चा का शीर्षक मेरी एक काव्य पंक्ति है।



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22 टिप्‍पणियां:

  1. भिन्न-भिन्न भाषाओं के चिट्ठों के उल्लेख से सजी इस चर्चा के लिये धन्यवाद. बहुत दिनों बाद आपकी ऐसी चर्चा पढ़ने का सुख प्राप्त हो रहा है. विश्व के अंतर्गत पोएट्री आरकाइव की पेज-हिट्स देखकर इस माध्यम और कविता दोनों की स्वीकार्यता का भान हो रहा है.

    आप को भी होली की हार्दिक शुभकामनायें .

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  2. चर्चा के शीर्षक में आपकी कविता की पंक्ति देख पूरी कविता पढ़ने का मन हो आया है.

    बेहतरीन वहृद चर्चा रही, बधाई.

    आपको भी होली की अग्रिम बधाई.

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  3. हिन्दी ब्लोग्गेत्तेर जानकारियों के लिए आभार.

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  4. kaafi mehanat se tyaar ki gai hai ye post.....jaankari se bharpoor .....

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  5. आपने कई विषयों को एक साथ सम्मलित कर चर्चा की। पढ़कर अच्छआ लगा । साहित्य को चुराना, मंच पर कुछ भी सुनाना आजकल ऐसा ही चल रहा है । अच्छे लेखक या कवि कम नहीं हुए हैं । पर सामने सही रास्ते नहीं आ पाते हैं । इस चर्चा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  6. `मर रहे हैं हाथ के लेखे...’ सच है, मशीनी युग में तो हस्तलेखन को कौन पूछता है। अब तो पत्र-पत्रिकाएं भी टंकित सामग्री की मांग करते है। आज के बच्चों को सुलेखन के लिए न होमवर्क मिलता है और न व्याकरण की सही शिक्षा। भाषा का अर्थ केवल सम्पेषण मात्र हो गया है। केलिग्राफी का युग तो कब का बीत चुका!
    >पतंगबाज़ी का सुंदर चित्र और उससे जुडे मूड को ही तो देखकर लोग कनाडा से आ रहे हैं कनकव्वा उडाने:)
    >आपने इस चर्चा के माध्यम से सारे वैष्विक साहित्यिक गतिविधियों से परिचित करा दिया है- आपको साधुवाद!

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  7. চর্চাটা ভাল চিলো, কৱিতা দী,
    কিন্তু, এঈটা অন্য ভারতীয ভাষা মধ্য আমাকে ইগ্নোরে ( ignore )করবেন না |
    অন্যথা লিবেন না, কিন্তু একটু তুচ্ছ নিৱেদন করেছি |

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  8. भिन्न-भिन्न भाषाओं के चिट्ठों से सजी एक बेहतरीन और शानदार चर्चा के लिये धन्यवाद
    आपको भी होली की अग्रिम बधाई.
    regards

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  9. निसंदेह पढ्ने से ज्ञात हो गया था की आप ने आज चर्चा की है ..किरण बेदी जी के ब्लॉग का पता देने के लिए आपका आभार ..ओर पञ्जाबी की कविता वाकई दिलचस्प है

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  10. इतनी सारी भाषाओँ के चिट्ठों को देख कर सुखद अनुभूति हुयी. हार्दिक बधाई.

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  11. बहुत शानदार चर्चा. कैसे कहूं कि कविता का मन पढ़कर अच्छा लगा? लेकिन कविता के वर्तमान स्वरुप पर की गई आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा.

    हाइकू एक से बढ़कर एक लगे.

    आपको होली की शुभकानाएं.

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  12. बहुत बेहतरीन चर्चा ..पंजाबी हाइकु बहुत पसंद आये

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  13. @
    अमर जी
    आपकी भाषा-लिपि अनपढ़ के लिए फ़ारसी वाली कहावत सिद्ध करती मेरे सिर के ऊपर से गुजर गई है।
    क्या किया जाए?

    कोई तकनीकीज्ञाता मुझे कन्वर्टर उपलब्ध करवाओ भाई!!

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  14. @ कविता वाचक्नवी
    असुविधा के लिये क्षमा करें :
    हर भाषा को एक मंच पर समेटने का आपका प्रयास सराहनीय से भी बहुत आगे है ।
    अपने स्वयं के लेखन के विकास के लिये यह जानना ज़रूरी भी है कि, उनके स्तर पर सोच की दिशा क्या है ?
    मुझे लग रहा था कि, हम वैश्विक स्तर या अखिल भारतीय स्तर के हर भाषा के लेखन को हिन्दी याकि देवनागरी में ही समेटा जाना चाहिये,
    क्योंकि मेरे विचार से मलेच्छों :) की उर्दू भी खड़ी बोली का ही रूप है,.. जो कि तत्कालीन मज़बूरियों के चलते सम्पर्क भाषा व राजभाषा के पद पर रही ।
    बाद में, अपनी विदेशी लिपि व संस्कृत शब्दों को फ़ारसी से स्थानाच्युत किये जाने पर उठे विवाद ने ही इसे अनायास एक अलग भाषा होने का स्थान दिला दिया ! लिपि के प्रति यह मेरा निजी संदर्भ है ।

    आज गुज़राती लिपि की कुछ लाइनों, ( जिनको मैं भली भाँति पढ़ सकता हूँ, फिर भी.. ) को देख एक शरारत सूझी,
    यह भी शायद कनपुरिया बयार का ही प्रभाव हो :)
    यह टिप्पणी बाँगला में है, जिसका अविकल अनुवाद है कि,
    " चर्चा तो सुंदर है, कविता दी,
    किन्तु इतने सारे अन्य भारतीय भाषाओं के मध्य मुझे उपेक्षित न करें,
    अन्यथा न लें, परन्तु एक तुच्छ निवेदन ही किया है "


    प्रयास करें, यह आपको भी समझ में आयेगा ।
    और, मेरी टिप्पणियों को सहन करने का आपका आभार ।

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  15. और हाँ,
    "
    अलटरासाउंड कोश
    जीवन शबद पुलिंग
    मौत इसतरी लिंग "

    के निहितार्थ विद्रूप मुझे अरसे तक सालते रहेंगे,
    मुझे शर्म है कि, यह एक उभरती हुई महाशक्ति का नंगा सच भी है !

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  16. बहुत कुछ समेटे सुंदर चर्चा की आपने ...

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  17. वाह.....
    शीर्षक पंक्ति के लिये विशेष बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  18. मर्मस्पर्शी चर्चा के लिए साधुवाद.

    कविता का मन टटोलने के बहाने आज की विविध कविताधाराओं की अच्छी पड़ताल की गई है.

    इंटरनेट अगर कविता -सृजन को प्रोत्साहित कर रहा है तो यह वाकई हर्ष का विषय है.लेकिन हस्तलिपि का गायब होना कोई सुखद घटना नहीं है.हस्तलेख तो व्यक्तित्व की पहचान माना जाता रहा है!

    अत्यंत शोधपूर्ण सामग्री संजोने के साथ-साथ सुन्दर सृजनात्मक गद्य प्रस्तुत करने का आपका सफल प्रयास अभिनंदनीय है.

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  19. Yaden sataye apno ki to yu kiya karo/Aansoo ko itra janke khushboo liya karo

    जवाब देंहटाएं
  20. Shahron ki bhir-Bhar me jab ghut raha ho dam/Gaon ke gareebon se kabhi mil liya karo./Botal ke pani pe kabhi karna na bharosa/apne kuen ke pani ko chhak kar piya karo.....Charcha keliye badhaiyan.

    जवाब देंहटाएं
  21. भावपूर्ण रचना।
    करवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
    ----------
    बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

    जवाब देंहटाएं

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