शनिवार, मार्च 28, 2009

व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है!

एक लाईना


  1. तेरी किताब की ऐसी तैसी करने के बाद :ही अब तुमसे निपटने की सोचूंगा

  2. क्यों मिटे भारत से पोलियो..... : कोई जरूरत नहीं बने रहन दो तमाम दूसरी कमियों की तरह

  3. लो भई हम भी बाबा बन गए - "ब्लॉग-बाबा" : दादी को किधर छोड़ आये?

  4. "मैंने सिर्फ और सिर्फ तुमसे मोहब्बत की है" :तुमने किस-किस से की है?

  5. लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं : कोई एतराज है क्या? हो आइये आजकल तो लोग गाजे-बाजे के साथ जा रहे हैं

  6. आ गया, आ गया, आ गया! गूगल एडसेंस आ गया!!: हजारवीं पोस्ट लिखते ही!

  7. व्यंग्य भी होता है एक तरह से विज्ञापन : लेकिन उसमें हमेशा पैसे नहीं मिलते

  8. कंप्यूटर पर हिंदी प्रयोग की बाधाएँ अतीत की बात:आपको पता ही है अतीत हमेशा सुहाना लगता है

  9. आडवानी का नया पैंतरा, अमेरिका का तरीका अपनाओ !!! : मतलब एक ठो ओबामा और एक ठो हिलेरीजी लाओ

  10. अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करते-करवाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :बस ध्यान ही रखना है या अमल भी करना है?

  11. उम्र.....: छोटे पैकेट में बड़ा धमाका

  12. खच्चरीय कर्म-योग:में रमे ज्ञानजी

  13. यूँ ही :बता दिया बहुत सारा कुछ

  14. कल तक देशी गद्दारों में... : शामिल हैं अब सरदारों में

  15. हिजडा योनि में जन्म 001 : पर शास्त्रीजी बेचैन

  16. पोस्ट के आखिर में अपने हस्ताक्षर लगाए :अंगूठा टेक के लिये संभावनायें बतायें

  17. हवाई अडडों की रोचक दास्‍तान :हवाई यात्रा से पहले पढ़ लो भाई जान!

  18. मैंने कविता लिखी :मैंने पढ़ ली अब क्या करें?

  19. हंसना मना है : हम तो हंस लिये अब का करें?

  20. *किस करवट बैठेगी ब्लॉगिंग की दुनिया **! :अभी कहां बैठा रहे हो भाई ? अभी तो सरपट भागने दो!

  21. सजन रे झूठ मत बोलो ....... : झूठ तो हमें ही बोलने दो! तुम्हारे मुंह से अच्छा नहीं लगता

  22. ब्लोगरो क्या चाहते हो चुनाव मे तुम : बस कोई फ़ोकट में अप्रैल फ़ूल न बनाये

  23. मैं बेरोजगार हूं मुझे नौकरी दे दो :क्या फ़ायदा नौकरी तो फ़िर छूटनी ही है, बेरोजगारी स्थायी है!

  24. क्या आपको 25 करोड़ रुपये चाहिये?:का करेंगे? आठ करोड़ तो ससुर टैक्स में निकल जायेंगे!

  25. क्या आप कंजूस है ? समवेदना और सहानुभूति बॉटने मे ? :घबराइये नहीं हम पूछ रहे हैं, बता नहीं रहे!

  26. तुम्हारा और मेरा द्वंद्व: तो रोज का राजकाज है!

  27. हिंदी में तकनीकी सर्वे भी आने लग गये अब : एक और बवाल

  28. वह मूर्ख फिर नाच रहा है... : और खुश भी हो रहा है, कमाल है!

  29. चूमते हैं कभी लब को, कभी रुखसारों को तुम्हारे: जो मन आये करो लेकिन एक समय में एक काम करना

  30. अपने रक्त की जांच के समय ज़रा ध्यान रखियेगा : हमेशा डिस्पोजेबल सिरिंज से खून चुसवाना

  31. एड्सेन्स Today’s Earning – आपके हिन्दी ब्लॉग्स पर आज की कमाई : जीरो बटा सन्नाटा


और अंत में:



ब्लागजगत में विविधता काफ़ी आ रही है। इतनी कि लोग आपस में व्यंग्य-व्यंग्य खेलते रहते हैं लोगों को हवा नहीं लगती।
जबलपुर परसाई जी का शहर है। परसाई जी प्रख्यात व्यंग्यकार थे। उन्ही के शहर के ब्लागर आजकल दनादना व्यंग्य लिख रहे हैं। महेन्द्र मिश्रजी और गिरीश बिल्लौरे जी की व्यंग्य जुगलबंदी चल रही है। पहले इशारों-इशारों में हुआ और फ़िर आज मामला खुला खेल फ़र्रक्खाबादी हुआ।

व्यंग्य के इस स्तर को देखकर मैं अभिभूत हूं। परसाई जी होते तो न जाने क्या कहते? समीरजी पूर्वोत्तर में टहल रहे हैं। बवाल जी वाह-वाह कह ही चुके हैं।

ज्यादा दिन नहीं हुये जब जबलपुर के ब्लागर साथी विवेक सिंह द्वारा जबलपुर को डबलपुर कहने पर एकजुट होकर फ़िरंट हो लिये थे। फ़िर जबलपुर ब्लागर एकता के नारे लगाते हुये एक नाव पर सवार दिखे। लगता है नाव में छेद हो गया। नाविक फ़ूट लिये और नाव के हाल बेहाल हैं।

दूसरे के मामले में कुछ कहना अपनी सीमा का अतिक्रमण करना है लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि जिसे भाई लोग व्यंग्य कहकर एक दूसरे की इशारों में छीछालेदर करने की को्शिश कर रहे हैं वह न व्यंग्य है न हास्य बस सिर्फ़ लेखन है। हास्यास्पद लेखन!

लिंक भले ही न दिये हों लेकिन जबलपुर ब्लागरों से परिचित लोगों के लिये मुश्किल कदापि नहीं है कि वे पोस्टों में किसके लिये क्या कहा गया है यह न कयास लगा सकें।

बहरहाल दूसरे के फ़टे में टांग अड़ाने की गुस्ताखी की माफ़ी चाहते हुये महेन्द्र मिश्र और गिरीश बिल्लौरे से अनुरोध करना चाहता हूं कि एक दूसरे की ऐसे खिंचाई करने की बजाय और बेहतर काम करें और अपनी क्षमताओं का सार्थक उपयोग करें।

परसाईजी ने व्यंग्य के बारे में अनेकानेक लेख लिखे हैं। उनमें एक है-व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है! देखिये व्यंग्य क्या होता है? इस कसौटी पर कसिये अपने लेखों को और आगे रियाज करिये।

किसी विकलांग को बैसाखी ब्लागर कहना और किसी ब्लागर को छोटा हाथी कहना और कुछ हो सकता है कम से कम मेरी समझ में व्यंग्य तो नहीं हो सकता।

संभव है मेरी समझ कम हो और लेखक लोग बेहतर समझते हों। लेकिन जैसा मुझे लगा मैंने लिखा। बाकी आप की मर्जा।

फ़िलहाल इत्ता ही कल सुबह सागर की चर्चा देखियेगा।

Post Comment

Post Comment

22 टिप्‍पणियां:

  1. हंसी हंसी में गहरी बात कह जाना आप की विशेषता है , गुरु जी, आशा है जबलपुरिये आप की बात से सहमत होगें। एक लाइना तो हैं ही जबरदस्त
    मैं बेरोजगार हूं मुझे नौकरी दे दो :क्या फ़ायदा नौकरी तो फ़िर छूटनी ही है, बेरोजगारी स्थायी है!

    सत्य वचन महाराज आज कल तो बहुत से आप से सहमत होगें

    जवाब देंहटाएं
  2. एक लाइना ...बहुत जबरजस्त है ...मजेदार

    जवाब देंहटाएं
  3. सही कहा आपने। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के खेल से, फेंकने वाला और पाने वाला, दोनों की ही भद्द तो होती ही है, अन्य लोगों की सहज ही ऐसे मामलों में दोनों पक्षों से अरुचि भी हो जाती है। यह एक सर्वसामान्य सामाजिक नियम है, जो अमूमन मामलों में देखा गया है।
    चर्चा के मंच से की गई इस अपील पर आशा है सभी ध्यान देंगे।

    एक लाईना की पूर्तियाँ रोचक और लज्जतदार हैं। लिज्जत पापड़ वाले कहीं दावा न ठोंक दें।

    जवाब देंहटाएं
  4. जो भी हो आपने चर्चा में बिलकुल सही और ज़रूरी बिंदु अंकित किये हैं
    जहां तक मसला नाव का है सो सारे प्रयास इस लिए थे कि समझदारी से काम लिया जाए
    न तो नाव में छेद था न ही नाविक गायब है वास्तव में उस नाव पर सवार लोगों में
    जो नहीं थे वो आज भी रचनात्मकता के लिए समर्पित बिरादरी में नहीं हैं .
    आज मैंने मामले को बिना दबाए सभी को मेल भेजकर किसी के संकेतों का खुलासा
    किया जो ज़रूरी उस समय भी था आज भी . न्याय और सच के साथ देने वाले
    चर्चाकार शुक्ल जी को साधुवाद आज समस्या का स्थाई हल निकलता दिखाई दे रहा है
    सटायर के सहारे ही सही

    जवाब देंहटाएं
  5. कविता जी
    मामला साहित्यिक आलोचना का नहीं अगर आपने ज़रा सा भी ध्यान दिया हो तो
    मेरा स्पष्ट मत था कि आलेख/पोस्ट पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ आलोचनाएं सिरोधार्य हैं किन्तु
    शारीरिक विकृति पर टिप्पणी उस ईश्वर की आलोचना है जो शरीर का रचना कार है
    एक बात और उजागर करनी ज़रूरी है कि विक्टिम को अपराधी मन लेने के पूर्व
    तथ्य को समझने की ज़रुरत होती है . आपका पुन: आभारी हूँ कि संवेदनशीलता से
    इस पर विचार किया यह सार्वकालिक सार्वभौमिक विचार योग्य था जिसे चर्चाबद्ध
    होना ही था एक न एक दिन

    जवाब देंहटाएं
  6. @ "मुकुल:प्रस्तोता:बावरे फकीरा "

    आपसे सहमत।

    जवाब देंहटाएं
  7. यदि कटु हो तो वह व्यंग्य नहीं रह जाता। एक लाइना गजब हैं।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं

  8. यह क्या है .. यह आदि है या अंत है ?
    इसके आगे भी कुछ हो सकता है, क्या ?
    परस्पर परिहास एवं व्यंग्य के बीच की बारीक सीमारेखा को अनायास लाँघ जाने का मतलब ?
    क्या इसी तरह अपनी हिन्दी हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों को एक सूत्र में पिरो रही है ?
    यहाँ तो स्वस्थ बहस का टोटा है..
    मुद्दे पर बहस मायने व्यक्तित्व पर विवाद..
    विज्ञजनों को तो सनातन से तर माल ही भाता रहा है, अरुचि तो होनी ही है..
    मेरे एक घनिष्ट मित्र.. छोड़िये

    यह इतवार सबका एतबार लौटाये, इन्हीं कामनाओं के साथ
    ( ? ) प्रभात !

    जवाब देंहटाएं
  9. hamesha ki tarah 'Jankariyo' ki JAANKARI.
    'Vyang' ke upar 'VYANG'

    & Chitton ke upar ek 'CHITTA'.

    Apki posts se hi to pata lagat hai hi aaj kaun so rachnaiyen padhni chahiye ayr kyun?

    जवाब देंहटाएं
  10. एक लाइना रोचक है । विवाद पर आपने यहां लिखा, जरूरी था । मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूं इसे ।

    जवाब देंहटाएं
  11. अनूप जी
    जैसा किसी ने टीप दी है कि मै ही उस नाव में सवार नहीं था न ही पहले से उस नाव में मुझे सवार माना गया था . इन महोदय द्वारा पहले से ही मेरी छबी खराब करने कि पुरजोर कोशिश की गई है . हमेशा ये जनाब हर बात को अपने ऊपर ले लेते है यही इनकी खराबी है जबकि मैंने कभी इनके नाक का प्रयोग नहीं किया है .. आज निरंतर देखे जिसमे जबलपुर के ब्लागरो से सम्बन्ध समाप्त करने की घोषणा कर दी है और संभव हुआ तो ब्लागिंग भी छोड़ दूंगा मै किसी को नीचा दिखने के लिए या पैसे कमाने के लिए या प्रभुत्व ज़माने के लिए ब्लागिंग नहीं कर रहा हूँ .

    जवाब देंहटाएं
  12. अब और लुक्की न लगायें और आप अलग रहे ! प्लीज !

    जवाब देंहटाएं
  13. चर्चा सचमुच बहुत बढिया रही,,,,,,एक दूसरे पर कीचड उछालने की अपेक्षा मिल बैठ कर मसला सुलझा लिया जाए तो ही बेहतर है...

    जवाब देंहटाएं
  14. आदरणीय अनूपजी,
    पिछले बार तो हमने नाविक बनकर नाव चला दी थी, मगर बार बार यह संभव नहीं है, इसीलिए दुखते-दिल से वाह वाह कर रहे हैं, और हम कर ही क्या सकते हैं ? आप तो पहले ही बता चुके हैं कि आचार संहिता लगी हुई है और उसी का फ़ायदा तो उठाया करते हैं लोग ।
    आप बुरा मत मानियेगा, मगर आज हमको आपकी चिट्ठाचर्चा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक और बहुत ही वाजिब लग रही है।
    और अंत में:- जो आपने लिखा है ना, आज हम उससे शब्दश: सहमत हैं। समीरलाल जी के पूर्वोत्तर से लौटने के पश्चात और हमारे पूना और दक्कन प्रवास के पूर्व इन प्रकरणों पर अब ठीक से ही निर्णय ले लिये जाने की प्रबल संभावना है। कल रात से ही सीने में कुछ तकलीफ़ महसूस हो रही है ये सब वाहियात नज़ारे देखकर।
    डा॓. साहब के यहाँ जाने के लिए ड्रायवर को छुट्टी के दिन भी बुलवाया है, अभी निकल रहे हैं उन्हें दिखाने। बाद में संपर्क में आते हैं आपके।

    --भवदीय

    जवाब देंहटाएं
  15. बढ़िया चर्चा रही. एक लाइना तो गजब रहती ही हैं. उसके बारे में नया क्या कहें? हम कहते बोर होंगे और आप सुनते.

    बाकी, रही बात आपसी तू-तड़ाक की, तो यही कहना है कि ऐसा करने से लेखन का स्तर गिरेगा. और वैसे भी इस तरह की बातों से कुछ मिलने वाला नहीं. एक-दो दिन के लिए खुद को बड़ा साबित कर लेंगे. यह सोचते हुए संतुष्ट हो लेंगे कि; "मैंने पिछली पोस्ट में सामनेवाले को पटक दिया."

    लेकिन ऐसा करने से एक दिन के लिए ही चित्त शांत होगा. अगले दिन फिर वही व्याकुलता. फिर से 'व्यंग' लिखना पड़ेगा. इसलिए अब 'व्यंग-लेखन' को रोका जाय.

    जवाब देंहटाएं
  16. आज तो एक लाईना ने बाजी मार ली जी. हर हर नर्मदे.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  17. अब इस मन्थन से अमृत और विष दोनो निकलने लगे हैं। लगे रहिए। जितना ही विरेचन हो जाय ठीक रहेगा। हाँ, निर्जलीकरण से बचने के लिए ओआर‍एस का घोल जरूरी है । सो आप दे ही रहे हैं।

    हर-हर गंगे।

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative