गुरुवार, नवंबर 30, 2006

कुछ चिराग जलाने होंगे दिन में

जाड़े के दिन शुरू हो गये हैं। रात ठिठुरन भरी और दिन-दोपहर गुनगुनी होने लगी हैं। ये आदर्श दिन हैं जब कोई कोमल कविमना ब्लागर नयी-पुरानी कवितायें दनादन पोस्ट कर दे और हमारे पास सिवा वाह-वाह के कोई चारा न रहे। पता नहीं क्यों इस पर अभी तक समीरलाल जी की न तो कोई कुंडलिया आई और न ही उनके काबिल चेले, गिरिराज जोशी, की कोई त्रिवेणी।

दूसरी तरफ़ भारतीय क्रिकेट टीम से पता नहीं क्यों भारत के उसके प्रशंसक नाराज हैं। एक तो वे बेचारे अपने शानदार प्रदर्शन से मैच-दर-मैच अपनी हार का अंतर कम करने में पसीना बहा रहा हैं वहीं दूसरी तरफ़ लोग उनसे और बढि़या प्रदर्शन की उम्मीद लगाये बैठे हैं।

बहरहाल आज जब हम चिट्ठाचर्चा करने जा रहे हैं तो सबसे पहले गुरुदेव बोले तो मास्साब का जिक्र कर लें। तरकश में सुडोकु, और दूसरे मनभावन खेलों के साथ-साथ अब ई-शिक्षक का भी प्रवेश हो गया है। पहले प्रायोगिक संस्करण में मास्साब ने केवल चिट्ठा लिखना बनाना बताया है। हालांकि जो भी लोग इसे पढ़ेंगे उनमें से अधिकांश इससे परिचित होंगे लेकिन यह उन तमाम लोगों को सहायको होगा जो लोग ब्लाग के बारे में अभी नहीं जानते। आशा है कि ई-शिक्षक जी नियमित रूप से ज्ञान बांटते रहेंगे।

गुरूजी के साथ ही तरकश पर आज शोयेब का लेख है जो ड्राइवरों की स्थिति बयान करता है :

हर किस्म के लोगों को उनकी मंज़िलों तक पहुंचाना , लोगों से गाली सुनना और गुस्से मे दूसरों को गाली देना - टैक्सी मे बैठने वालों के दुःख सुख सुनना। छोटी छोटी बात पर इन बेचारों को पुलिस पकड़ कर ले जाती और ये कोर्ट कचहरी का मुंह देख-देख आदी हो जाते हैं जैसे ये उनका दूसरा घर हो। पूरे दिन भर की थकान लिए घर आए तो फिर पत्नी के ताने-बाने - ये सारी बातें बेचारे टैक्सी ड्राईवरों के अंदर चिड़चिड़ाहट पैदा कर देती है। अब अमीर बाप के बेटा तो टैक्सी चलाएगा नहीं, टैक्सी ड्राईवर अक्सर गरीब होते हैं जो हमें आधी रात को भी हमारी मंज़िल तक पहुंचाते हैं। इनकी चिड़चिड़ाहट को देख कर पैसेंजर को ज़रूर गुस्सा आता है मगर इस पैसेंजर को पता नही होता कि उस से पहले जो पैसेंजर बैठा था उसने सिर्फ दो चार रुपयों के लिए ड्राईवर का मूड ही खराब कर दिया था। हम भी पेट पूजा के लिए कमाते हैं और टैक्सी ड्रायवर भी, ज़रूरत है आपस मे झगडा करने कि बजाए हम एक दूसरे की ज़रूरतों को समझें. खाली गाडी घूमाने की जगह धूप मे बस के इंतजार मे खडे इनसान को थोडा आगे तक ड्राप कर दे तो सच्ची खुशी क्या है खुद-ब-खुद महसूस होगी।


शायद आप शोयेब का यह लेख देखकर उनसे बेहतर ढंग से व्यवहार करने के बारे में सोचें।

कल जब समीरलाल जी ने चिट्ठाचर्चा की तो आम दिनों के विपरीत चर्चा के लिये चिट्ठे कम थे। इससे वे कुछ खिन्न और अनमने थे। ऐसी हालत में कोई भी प्रवासी अपने देश की याद में डूबने-उतराने लगता है। और अगर प्रवासी कहीं कवि हुआ तो मामला करेले में नीम की तरह हो जाता है। समीरलाल जी भी इसी व्यथा का शिकार हुये। बहुत दिन पहले प्रवासियों की स्थिति का वर्णन करते हुये जीतेंन्द्र ने लिखा था:-

हम उस डाल के पन्क्षी है जो चाह कर भी वापस अपने ठिकाने पर नही पहुँच सकते या दूसरी तरह से कहे तो हम पेड़ से गिरे पत्ते की तरह है जिसे हवा अपने साथ उड़ाकर दूसरे चमन मे ले गयी है,हमे भले ही अच्छे फूलो की सुगन्ध मिली हो, या नये पंक्षियो का साथ, लेकिन है तो हम पेड़ से गिरे हुए पत्ते ही, जो वापस अपने पेड़ से नही जुड़ सकता

इसी बात को और महीन काटते हुये समीरलालजी ने, प्रवासी पीड़ा बयान करते हुये, बड़ी खूबसूरत कविता लिखी है और पोस्ट भी कर दी । वे लिखते हैं:-

बहुत खुश हूँ फिर भी न जाने क्यूँ
ऑखों में एक नमीं सी लगे
मेरी हसरतों के महल के नीचे
खिसकती जमीं सी लगे

बात यहीं तक सीमित नहीं रही वो दिल, धड़कन, एहसास, नाराज़गी, अजनबीपन के गलीकूचों से होते हुये उस राजमार्ग पर पहुंच गयी जहां सूरज से दीपक की बराबरी का मुकाबला है:-

कुछ चिराग जलाने होंगे दिन मे
सूरज की रोशनी अब कुछ कम सी लगे
चलो उस पार चलते हैं
जहॉ की हवा कुछ अपनी सी लगे.


इधर जब समीरलाल जी सूरज की कमी को चिराग से पूरी करने की योजना बना रहे थे तभी प्रियंकर जी की पोस्ट के माध्यम से भारतीय पुलिस सेवा के तहत पश्चिम बंगाल में पोस्टेड संवेदनशील युवा कवि, महेन्द्र सिंह पूनिया कीकविता में जीवन की कुछ कमियों की चर्चा की गयी:-
दाल में कम पड़े नमक की तरह
जीवन में कहीं कुछ कम है

क्या कम है ?

सरसों भी फूली हुई है खेतों में
आम पर आ गया है बौर
कूक रही है कोयल भी उस पर
तुम भी बैठी हो पास में


साइबेरिया के सारस लौट रहे हैं
कतार बांध कर अपने घरों को
झबरी कुतिया ने दिये हैं चार-चार पिल्ले

मां भी तो हैं स्वस्थ
पिता गए हैं खेत देखने
कई दिनों के बाद

फिर भी दाल में कम पड़े नमक की तरह
जीवन में कहीं कुछ कम है

इन दोनों कविताऒं के उलट डा. रमा द्विवेदी की कविता में नायक के तेवर कुछ और ही हैं:-
अब तो मेरा जीवन ही मयखाना हो गया है,
इस मयखाने का साकी कहीं खो गया है,
जीने की चाह जगाता है तेरा नाम।
तीनों ही तेरे नाम………..


शैलेश जी की हालत तो और भी माशाअल्लाह हो गयी और उनकी पोस्ट से जो बयान जारी हुआ उसे अगर कोई रिपोर्ट कर दे पुलिस को तो आत्महत्या के प्रयास में मामला बन सकता है। कविता का शीर्हक ही ऐसा है-मैं मरना चाहता हूं:-

मैं मरना चाहता हूँ
हाँ, मैं मरना चाहता हूँ
पर ऐसे नहीं,
तुम्हारे कदमों में सर रख कर।


जहां मरने की बात शुरू हुयी वहीं एक गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया ताकि जीवन प्रक्रिया बाधित न हो। जैसा कि कैलाश चन्द्र दुबे जी कहते है:-

कुदरत की बनाई दुनियां में
मां की ममता
और उत्पीड़ित मात्रत्व का
अनुपम - मजबूत प्रमाण-
पुजारीजी की गैय्या-
"गंगा"-
बड़ी कुशलता के साथ
प्रस्तुत कर रही थी।

ममत्व की परीक्षा में
आखिर वह उत्तीर्ण हो ही गई।


इस बीच और पोस्टों में प्रमुख हैं रेलवे में दिल के मरीजों के हिसाब से खाना पेश जाने की खबर जिसे कि पेश कर रही हैं दिल्ली से मनीषाजी जो कि एक घरेलू महिला हैं और जनहित में काम करती हैं तथा पाठकों से जनहित के सार्थक सहयोग चाहती हैं। इसके अलावा हैं इधर-उधर से आने वाली जंक मेल से बचने की तरकीबें जो कि रमन कौल ने बतायी हैं। रवि रतलामीजी का बनाया कार्टून, आदम और हव्वा/ संसदीय क्रिकेट आप खुद देख लें। कुछ समझने में अड़चन हो अनुनादजी को मोबाइल में हिंदी में संदेश भेजकर बात समझ लें। इन सब से मन उचटे तो आप उर्दू की कुछ बेहतरीन गज़लें पढ़कर मन ताजा कर लें:-
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
एक आईना था टूट गया देखभाल में


लक्ष्मी शंकर गुप्त जी ने अपनी याददाश्त के आधार पर भक्त कवि नरोत्तम दास का संक्षेप में परिचय और उनकी प्रसिद्ध रचना सुदामा चरित पेश की है। जो अंश छूट गये या याद नहीं आये मैं उनको जल्द ही विकीपीडिया पर डाल दूंगा। सुदामा चरित को विकीपीडिया पर डालने का काम सागर चंद नाहर ने शुरू भी कर दिया है। सुदामाचरित की कुछ पंक्तियां हैं:-
ऐसे बिहाल बिवाँइन सो पग कंटक जाल गड़े पुनि जोये।
हाय महा दुख पायो सखा तुम आये इतै न कितै दिन खोये।
देखि सुदामा की दीनदशा करुणा करि कै करुणानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोये।


और इसके बाद आज की शायद सबसे उल्लेखनीय पोस्ट जिसे मुन्ने की मां ने लिखा है। इस लेख में मुन्ने के बापू, उन्मुक्त जी के कार्यों, सोच, रुचि आदि का परिचय दिया है। मुन्ने की मां ने अपने बारे में भी लिखा है और टेलीग्राफ़ अखबार में छपी खबर के बारे में भी बताया है। सरल भाषा में लिखी यह पोस्ट पूरी की पूरी पठनीय है। मुन्ने के बापू और अपनी सोच के बारे में बताते हुये मुन्ने की मां लिखती हैं:-


मेरे पास तो नहीं, पर इनके पास अक्सर इमेल आता है जिस पर लोग इनसे इनका परिचय पूछते हैं, लिखते हैं कि क्या मिल चुके हैं, या मिलने की बात करते हैं। इनका हमेशा यही जवाब रहता है कि:-

'मैं भारत के एक छोटे शहर से, एक साधारण व्यक्ति हूं। मेरा चिट्ठा ही मेरा परिचय है। मैं अपने विचारों के लिये पहचाने जाना पसन्द करता हूं न कि नाम या परिचय के कारण।'

कई लोग इस पर, इनको गलत भी समझ लेते हैं। चूंकि यह अपने विचार और जो इन्हें पसन्द है - लोगो को बताना चाहते हैं, इसलिये इनकी सारी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं। इन्हें किसी को भी कॉपी करने, संशोधन करने, की स्वतंत्रता है - इन्हें (उन्मुक्त जी को) श्रेय देंगे तो अच्छा है, न देंगे तो भी चलता है।





आज की टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी:-


टिप्पणी1.बहुत खूब मास्साब! बहुत मजेदार प्रेजेंटेशन बनाई है। क्या फ्लैश पर काम सीखना आसान है? क्या मैं अपने काम के लिये इस तरह के प्रेजेंटेशन बनाना आसानी से सीख सकता हूं?

जगदीश भाटिया-ई शिक्षक पर
प्रतिटिप्पणी:
भाटियाजी आप सीखने का ट्राई मारिये क्या पता सीख ही जायें लेकिन फैशन के दौर में (सीखने की) कोई गारन्टी नहीं होती।

टिप्पणी2.कभी मरना चाहता हूँ, कभी सँवरना चाहता हूँ....
पहले एक मत होईये. :)
और मरने मारने की बाते छोड़ दे अभी उमर नहीं हुई है.
अगली बार कुछ जीने तथा प्रेम मोहब्बत की कविता लिखें. ;)
संजय बेंगाणी मेरे कवि मित्र पर

प्रति टिप्पणी:- उमर किसकी नहीं हुई है? मेरी या आपकी? सवाल साफ पूछा जाये। वैसे हम मरने की बात कहां कर रहे हैं, हम तो कविता लिख रहे हैं। और ये बताइये कि मोहब्बत करना और जीना एकसाथ कैसे होता है। आपको तो प्रेम का अनुभव है ई शंका समाधान करिये ज़रा ताकि आगे का प्लान बनाया जा सके।

3. टिप्पणी:-काश कोई अच्छी आवाज़ वाला इसे सुर में गाए। :)

पंकज बेंगाणी उड़न तश्तरी पर
प्रति टिप्पणी: काश आपकी बात सच हो जाये। कोई आवाज अच्छी हो जाये, उसके सुर भी अच्छे बन जायें, और वह कविता गाने को तैयार भी जाये और हम चाहे सुर में चाहे बेसुरे होकर गायें- आप जैसा कोई मेरी जिंद़गी में आये तो बात बन जाये।

आज की फोटो:-


आज की पहली फोटो मुन्ने की मां के लेख से तथा दूसरी फोटो रविरतलामी के देशी कार्टूनसे है।

उन्मुक्त घर
उन्मुक्त घर


आदम और हव्वा / संसदीय क्रिकेट
आदम और हव्वा / संसदीय क्रिकेट

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4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह, यह मौसम और चर्चा का प्रवाह, क्या कहने. बहुत बढ़ियां....

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  2. मास्साब ने धन्यवाद प्रेषित किया है. :)

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  3. सुबह सवेरे इस मौसम में, एक कप गरम चाय और साथ में चिट्ठाचर्चा. भई वाह! मजा आगया.

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  4. मेरी पोस्ट का जिक्र आज फिर छूट गया चिट्ठा चर्चामें। अगले दिन के चर्चाकार इसे नोटिस में रख लें।

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