शुक्रवार, सितंबर 12, 2008

जुम्‍मे के जुम्‍मे हमारे जिम्‍मे

सुकुलजी ने एक एक कर मुझे, सुजाता व नीलिमा, हम तीनों के ही मेल बाक्स में एक सा तकादा किया कि हफ्ते का अपना दिन खुद संभालों कब तक हम अकेले देखें। फिर देखा कि समीरभाई तक अपनी उड़नतश्‍तरी और टंकी छोड़कर चर्चा करने पहुँच गए हैं। मतलब अब टाला नहीं जा सकता। फिर भी आस थी कि किसी ऑंख की किरकरी से लिखने को कहेंगे शायद मान जाए। पर हमारे इस 'शायद' की भी वो ही गत हुई जो हर शायद की होती है। तो इस जुम्‍मे हमारे जिम्‍मे। रमजान का जुम्‍मा वो भी चुनाव से पहले आखिरी रमजान का जुम्‍मा सरकार के लिए खास है- हज की सब्सिडी बढ़ी जो कम से कम फ़िरदौस साहब को तोहफा लग रहा है, हमें क्‍या लग रहा हम बता चुके हैं। वैसे धर्म का मसला कसाले का होता है पर करने वाले धर्म को भी एडजस्‍ट कर लेते हैं।

... ये नवराते अगर ६ महीने रुक जाये तो शराब कम्पनिया ठप हो जायेगी आधा भारत संतमय हो जाएगा .... हर शख्स अपनी - अपनी जुगाड़ मे लगा है .....ऐसे भी कई लोग है भारी भारी मालाये गले मे डाले भरी भरकम शरीर के साथ उंगलियों में कई अंगूठी फंसाये आयेगे ......बस डॉ साहब मंगलवार को नही पीता हूँ चाहे कुछ हो जाये.....फ़िर माला को हाथ में लेकर चूमते है ...उनकी बीवी सर हिलाकर अपने पति को गर्व से देखते हुए इस बात की तस्दीक़ भी कर देती है ..... ये मंगलवार के संत है ,कोई शनिवार का है........ जैसे की भगवान् पे अहसान कर रहे हो ....अजीब फिलोसफी है लोगो की ..... .

पर टंकी-आरोहण फेम सागर भाई ने गणपति बप्‍पा से ही थोड़ी जगह बनाने को कह दिया है, ताकि हमारे कार्बन फुटप्रिंट कम अज कम धर्म की वजह से तो ज्‍यादा न बढ़ें। धर्म के सांस्‍कृतिक-आनुष्‍ठानिक चेहरे से परिचित करा रहे हैं, पुरोहित वंश के कामरेड दिनेशराय द्विवेदीजी जिन्‍हें सावधान हो जाने की धमकी (अच्‍छा चलो चेतावनी कह लेते हैं :)) दे रहे हैं शास्‍त्रीजी-

दिनेश जी! यह एक चेतावनी है!! आप जो सेवा कर रहे हैं यह हिन्दीजगत के लिये अमूल्य है. लेकिन इसके साथ साथ आप निशाने पर आ गये हैं. कल को आप के पैर के नीचे कोई सुरंग फट जाये तो ताज्जुब न करना.

विवेक की कुजडि़न आजी की दास्‍तॉं की पृष्‍ठभूमि में भी धर्म है पर इंसानियत का।

दास्‍तानों की अगर कहें तो लपूझन्‍नाई दास्‍तान की अगली कड़ी पढें जिसमें फुच्ची कप्तान की आसिकी में लफत्‍तू परेशान है- लभलेठर चल पड़ा है कबूतर ज्‍जा जा -

"दखिये, इतना तो हम समझ लिए कि आप को अच्छा लिखना आती है. मगर आप मने ये क्या आपका अपना ढिम्मक ढमकणा लिखे! अरे जिन्दगानी का बात है. हम तो फैसला किए हैं के आज चिट्ठी और कल सादी. ... अरे तनी कोई सेर-ऊर तो लिखिए न! ... सायरी-दोहा वगेरा ..."

जो गूढ़-गंभीर हाईब्रो जन इन दास्‍तानों की उपेक्षा कर रहे हों वे इन दास्‍तानों में दर्ज शब्दों के भंडार भर पर नजर डालें, हिन्‍दी को चिट्ठाकारी का शानदार अवदान हैं ये। और अगर किसी को लगता है कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी तो बस ऐंदे- पैंदों का ढिम्‍मक-ढिमकणा भर है... तो भई है..बरोबर है..क्‍या कल्‍लोगे। वैसे मनोज वाजपेयी रामगोपाल वर्मा को गल्‍लम गल्‍ला करने के लिए भी इस्‍तेमाल करते हैं इसका-

मेरा रामगोपाल वर्मा से मतभेद यही रहा है कि वो झूठ बोलते रहे हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन को ही झूठ पर आधारित कर रखा है।....

....हमारे वर्मा साहब की दिक्कत रही है कि वो एक ऐसा अभिनेता मनोज बाजपेयी चाहते थे,जो 24 घंटे उनके तलवे चाट सके। जिसका अपना कोई वजूद न हो।.....

अगर आपको मेरी बहुत याद आती है तो एकाध फोटो पड़े होंगे, अपने सिराहने रख लीजिए और रोज सुबह देख लिया कीजिए। लेकिन झूठ बोलना छोड़िए।
वैसे, मैं जानता हूं कि आप छोडेंगे नहीं क्योंकि आपका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

देबूदा फिर एक साल बड़े हो गए हैं इस अवसर पर उनसे भी बड़े सुकुलजी जन्‍मदिन के बहाने बतिया रहे हैं। खुद देबूदा बड़े बाबा गूगल के क्रोम को बड़े प्रतिष्‍ठान बीबीसी द्वारा माइक्रोसॉफ्ट का बताए जाने पर माथा पीट रहे हैं। बड़े लोग बड़ी बातें :) हमारी तो बस जन्‍मदिन की शुभकामनाएं, इस शिकायत के साथ कि कोई बताता क्‍यों नहीं कि कितने साल के हो गए देबूदा।

इस तस्‍वीर से गंध आए या दुर्गंध पर कलदार देकर इस्तेमाल कर चुके मुनीश भाई का कहना है कि इस मौका-ए-वारदात पर खुश्‍बू थी-

munish urinal

चलते चलते चिट्ठाजगत के सौजन्‍य से कुछ नए चिट्ठों पर एक नजर-

1. दिल-ए-नादाँ- चिट्ठाकार: संदीप पाण्डेय

2. निर्विकार - चिट्ठाकार: सुभाष दवे

3. थोड़ा सा आसमान - चिट्ठाकार: अर्श

4. दहलीज -चिट्ठाकार: दहलीज

5. ब्लोग विद्रोही आया.....चिट्ठाकार: कुन्नू सिंह

6. गुलाबी कोंपलें - चिट्ठाकार: विनय प्रजापति 'नज़र'

7. जय भारत! जय उत्तराखण्ड!! - चिट्ठाकार: धौंसिया.....!

8. बहरहाल... चिट्ठाकार: विवेक

9. अमित दर्देदिल - चिट्ठाकार: अमित

10. आवारा हूँ ... - चिट्ठाकार: मिहिर

11. युवा - चिट्ठाकार: कुलवंत हैप्पी

12. सच - चिट्ठाकार: मोहन

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16 टिप्‍पणियां:

  1. (पहली टिप्पडी लिखने का लालच भी अजीब है सो टिपिया रहें है वरना हमको का पड़ी है:) :) )

    अच्छी चिटठा चर्चा
    अनवरत जारी रहें

    हर जुम्मा आपको एक चुम्मा :) :)

    वीनस केसरी

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  2. arey waah aaj to dil khush hokar ga raha hai..
    jumma chumma de de..

    badi dhansu charcha ki hai aapne...

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  3. चलिए जुम्मे के दिन शुकुलजी को आराम मिला... जुम्मे के जुम्मे जमाते रहिये !

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  4. बढि़या है। शानदार जानदार चर्चा! ऐसे करो हर जुम्में को थोड़ा टाइम खर्चा और करते रहो जुम्मे के जुम्मे चर्चा। इसमें फ़ायदाइच फ़ायदा है। जुम्मे को चर्चा करी चुम्मा मिला। टिप्पणी चुम्मा ही सही। ऊ भी दुर्लभ चीज है।

    बात केवल हमारे या किसी और के आराम की नहीं है। विविधता चर्चा में जो होती है अलग-अलग लोगों के द्वारा करने से वो किसी एक के करने से न होगी। इसलिये हे आर्यपुत्र अपने शुक्रवारी आलस्य का परित्याग कर और नियमित चर्चा में मन लगा। सहयोग के घर-परिवार के लोग हैं हीं।

    ये जो लप्पूझन्ना के बारे में बात कही जो गूढ़-गंभीर हाईब्रो जन इन दास्‍तानों की उपेक्षा कर रहे हों वे इन दास्‍तानों में दर्ज शब्दों के भंडार भर पर नजर डालें, हिन्‍दी को चिट्ठाकारी का शानदार अवदान हैं ये। और अगर किसी को लगता है कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी तो बस ऐंदे- पैंदों का ढिम्‍मक-ढिमकणा भर है... तो भई है..बरोबर है..क्‍या कल्‍लोगे। वो एक हिंदी अध्यापक ही कह सकता है और जितने असरदार तरीके से चर्चा करते हुये कह सकता है उत्ते असरदार तरीके से अपने ब्लाग पर भी कह सकता है लेकिन उसमें आलस्य और’टू डू आर नाट टू डू’ का झमेला होगा। नये चिट्ठों के बारे में लिख के अच्छा किया। एक तो नये लोगों को उत्साहित करने का कल्लिया और दूसरा इन लोगों में कोई तुमको मठाधीश नहीं कह सकता। कहे तो थमा दो लिंक इस पोस्ट का। है न!

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  5. बहुत सुंदर चर्चा है भाई ! शुभकामनाएं !

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  6. परिवारवाद बबुआ जल्‍दी जल्‍दी आई।
    नीलिमा से आई सुजाता से आई।।
    और चमचों की गलियन जनसत्ता से आई।
    परिवारवाद बबुआ जल्‍दी जल्‍दी आई।।

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  7. सुंदर चर्चा, अपने लिए नया विशेषण पसंद आया।

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  8. गर्व के साथ अपने को ठेठ हिन्‍दीवाला कहनेवाले मसिजीवी जी की कलम से चिट्ठा चर्चा पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा। अलग-अलग लोगों द्वारा चर्चा करने से इसमें विविधता तो आएगी ही, रोचकता भी बढ़ेगी।

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  9. जब जब हिन्दी चिट्ठों की चर्चा होगी, टंकी आरोहण का भी जिक्र होगा। हम भले ही अच्छे ब्लॉगर ना बन पायें हों फिर भी ब्लॉग इतिहास जब भी लिखा जायेगा हमारा नाम भी उसमें दर्ज होगा।
    यह क्या मामूली बात है? एक नई प्रथा को जन्म देना, और उसका कॉपीराईट लेकर टंकी पर चढ़ने वाले ब्लॉगर को धमकाना, जैसे परसों समीरजी को भी धमका दिये थे।
    :)
    संक्षिप्त सही पर मजेदार चर्चा। धन्यवाद

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  10. जुम्मे का ये जिम्मा "सरप्राइज़ पॅकेज" की तरह शाम को हमारी टेबल पर आया ...फुच्ची कप्तान की आसिकी पढ़के जी खुस हो गया ...पर जल्बाजी में आपसे एक असली लेख छूट गया .....असली ओर भी काम है जमाने में ...ब्लोग्वानी में ये ब्लॉग पता नही मुझे क्यों नही दिखायी देता ?डॉ अमर कुमार जी कृपया ध्यान दे ......
    फोटो झकास है....

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  11. jab chittha charcha main mere darvaar ki charca huai to aisa laga ki school se ek prashansa patr mila ho .aur seena phula kar hum apne ko aur baccho se alag mahsoos kar rahe ho .

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  12. ek baar phir se swagat hai, bus jumme ke din aise hi medaan me date rahen. Achhi rahi charcha...

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  13. प्रिय मसिजीवी, यदि आप चिट्ठाचर्चा को कुछ अधिक समय दे सकें (हफ्ते में कम से कम एक चर्चा) तो पाठकों को काफी अच्छी एवं चुनी हुई सामग्री मिलने लगेगी.

    अनूप को छोड और कोई भी पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखा रहा है!!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  14. Masijivi, naye bloggers ke link thik kar dijye, jyadatar links me extra ) laga hua hai

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  15. ये हुई न बात!!!! अब चिट्ठाचर्चा के लिए साधुवाद देने का मजा आयेगा. :)

    बहुत बेहतरीन चर्चा की है, साधुवाद!!!

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  16. शुक्रिया तरुण,

    लिंक्‍स की मरम्‍मत कर दी है।

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