गुरुवार, सितंबर 18, 2008

मैडम आपको क्या परेशानी है??

शीर्षक देखकर भागे चले आये मानो कि बम फूटा हो. अरे महाराज, संदर्भ तो समझ लो कि दौड़ते ही रहोगे? यह ब्रह्म वाक्य नीलिमा जी की उस पोस्ट का हिस्सा है जिसमें वो बुजुर्गों के और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती संवादहीनता की वजह से बुजुर्गों की हालत पर दुखी हैं एवं कहती हैं कि :

पीढियों के बीच बढती संवादहीनता हमारे अतीत और जडों को सुखा रही है !! अपनी वृद्ध पीढी के प्रति हमारा यह रवैया बना रहा तो वह दिन दूर नहीं जब विद्यालयों में बच्चे "वृद्धों की उपयोगिता" पर निबंध लिख रहे होंगे !


-वाकई, बहुत अहम मुद्दा उठाया है. पठनीय पोस्ट. हमारी खास रेकमेन्डेशन इसलिए भी कि हम खुद उसी बुजुर्गियत की दिशा में अग्रसर हैं.

वैसे बम फूटा की बात पर एक बात याद आई. जब न्यूयार्क में ९/११ अटैक हुआ या लन्दन में बम फटा और उसकी तस्वीर टीवी पर देखी, लोगों को घटना स्थल से उल्टी दिशा में भागते देखा मगर जब दिल्ली की तस्वीरें देखी तो लोग उसी दिशा में भाग रहे थे जहाँ बम फूटा..देखने कि क्या फूटा?? जैसे, सब टिप्पणी पर चली चर्चा जब खत्म हो गई. शांति छा गई तब राज भाटिया जी निकले आजादी की लड़ाई का बिगुल सधाते:

आप सब से निवेदन हे की इस जगह ऎसी बाते करके किसी का अपमान ना करे, क्योकि यहां हम ने किसी को नही देखा ना ही किसी के बारे जानते हे फ़िर क्यो दुशमनी करे, अगर दोस्ती नही कर सकते तो चुप रहॊ, उन से दुर रहो, आप भी मस्त रहो , दुसरो को भी मस्त रहने दो, मैं भी ९०% टिपण्णीयो मे बहुत कम शव्द लिखता हु, और कभी कभी सिर्फ़ :) से ही काम चलता है,
आप सब आजाद हैं ओर दुसरो को भी आजाद रहने दो यही मेरी शिकायत है और आप सब से प्राथना भी कि अब और नही, सब अपनी अपनी मस्ती मे रहॊ.


वैसे बात तो १०० टके सही है..आभार भाटिया जी.


आज शायदा जी ने कहा:

चुप के बियाबान में आवाज़ का बूटा रोप भी दें, तो सुबहोशाम उसे पानी कौन देगा? अनमनी उदारता के किसी क्षण में ईश्‍वर ने अगर अधर में लटकी दुआ को ज़मीन पर जाने का हुक्‍म भी दे दिया, तो तारे की तरह टूटकर गिरती उस दुआ को हथेलियां फैलाकर लोकेगा कौन?


शुरुवात में कहती हैं:.

"टूटी पलक को यूं ही ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता... रोक लिया जाता है गाल पर ही। उल्टी हथेली पर रख, आंख बंद करके एक दुआ मांगी जाती है और कभी किसी को बताया नहीं जाता कि मांगा क्या गया। "


यही मंतर कालेज के समय हमारे एक मित्र भी हमें दे गये थे. विश्वास मानिये, पूरी पलक के बाल गिरा गिरा कर हथेली पर उल्टी धर के उड़ा दिये मगर बात नहीं बनी. उसकी तो शादी भी हो गई और हम बिना बाल की पलक लिये बहुत दिनों तक डोलते रहे बिना किसी को बताये, इसमें मंतर में बताना मना है. :) मगर यहाँ मसला दूसरा है. एक बेहतरीन लेखन का नमूना है, पढ़िये और आनन्द उठाईये.


वैसे, न जाने क्यूँ, क्या लफड़ा हुआ है कि भाई शिव कुमार मिश्र अपनी ईमेज बनाने के गुर सीखने में लग लिए हैं. लिखते तो हमेशा से क्लासिक व्यंग्य हैं, आज जरा अल्ट्रा क्लासिक टाईप लिख गये- और अपने मित्र कम गुरु से जिनकी ईमेज कबीर की है (गुमान ही होगा- वरना डॉ अनुराग ने उनके पोस्ट पर टीपते हुए कही दिया: सिर्फ़ गरियाने से अगर कोई कबीर बन जाता तो देखना यहाँ....इत्ते कबीर होते की उनके सरनेम से पहचानना पड़ता....) जितना गुरु से मूँह बाये सीखे, सब बता मारे.

ये गुरु को सुनने के चक्कर में लगे हैं और उधर सचिन मिश्रा बता रहे हैं कि गुरु कैसे कैसे!! ..

वैसे अनिल पुसडकर जी ने जैसे ही सचिन मिश्रा जी से शब्द पुष्टिकरण (वर्ड वेरीफिकेशन) हटाने की मांग की उन्होंने तुरंत उसे हटा कर टिप्पणी की कि :

"आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है. आगे से आपको यह दिक्कत नहीं होगी, आभार. " (लगा कहीं टेलीफोन लग गया है)

काश, सभी वर्ड वेरीफिकेशन धारी इस भावना को समझ हम टिप्पणीकारों पर रहम करते. :) कई ईमेल आते हैं कि वर्ड वेरीफिकेशन गुगल के साथ आया है, कैसे हटाये. बात तो सही है. डिफॉल्ट सेटिंग यही है और गुगल है भी दमदार आईटम. अब कोई उसके साथ आये तो हटायें कैसे-मगर उसने इसकी सुविधा दी है:

डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!


गुगल बुरा नहीं मानेगा, हमने कह दिया है. :)

आज एक विशेष चिट्ठे ’ओशो चिन्तन’ के बारे में जानकारी देना चाहूँगा जिसकी की कम ही चर्चा होती है. यह चिट्ठा नियमित रुप से राजेन्द्र त्यागी जी द्वारा संचालित है एवं इस पर रोज आचार्य रजनीश जो कि बाद में ओशो के नाम से जाने गये, का एक प्रवचन रहता है. जीवन के विभिन्न आयामों पर उनके चिन्तन और दर्शन पर उनके प्रवचन अति प्रभावी हैं.

आज एस बी सिंह जी ने रंग-ए-सुखन पर ब्रज का लोक गीत पंडित जसराज की आवाज में सुनवाया : मृगनयनी के यार. आनन्द आ गया.

मग्गा बाबा के प्रवचन सुन हमेशा की तरह मन प्रसन्न हुआ. आज उन्होंने गौतमबुद्ध और यशोधरा के मिलन की कथा सुनाई. हम मग्गा बाबा की जयकारा लगा आये. आप भी सुन आईये, अच्छा लगेगा.


आज कविताओं में:

आज कविताओं में स्वाति जी की प्रस्तुति उस त्वेष का योवन गजब की रही. वहाँ कट पेस्ट की सुविधा नहीं है वरना कुछ हिस्सा तो आपको यहीं पढ़वा देते.

कभी भाई वीनस केसरी स्कूल के दिनों में खीज उतारते एक कविता डायरी में लिख लिए थे. कुछ नया विचार दिमाग में नहीं आया तो वहीं खिजियाई कविता चिपका दिये, कुकडू कू $$$$$$$ -के नाम से. मस्त है!!!

आजकल पर ओमकार चौधरी जी को पढ़ें ’तेरे मेरे बीच की ये दीवार’ :

कई दिन की बारिश में
दरकी हैं कई दीवारें
भरे पड़े हैं पानी से रास्ते
भरी पड़ी हैं गलियां सारी
.... आगे पढ़िये ..


आज आये नये चिट्ठे:

आप सभी का हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं:


1. आवाज़


2. कालापानी


3. मेरी कलम


4. श्री प्रह्लाद नारायण मित्तल (स्वर्गीय)


5. The S60 Blog


6. आपका दोस्त


7. Homoeopathy....Beyond Horizons


8. समीर

चिट्ठाकार: FIGHT AGAINST TERRORISM ...एक सालह- महाराज-ब्लॉग का नाम फाईट अगेन्सट टेरोरिज़म कर लो और चिट्ठाकार समीर.. सलाह बस है-हमारी नाम राशि हो, इसलिए स्नेह फूट पड़ा, मानना, न मानना, तुम्हारी इच्छा. :)

9. जाहिर है...


10. रंगीला मित्र मंडल


11. News36


12. गुरुवाणी


13. महाकौशल


14. MEDIA STUDENTS OF INDIA


15. चेतन पंचाल



------

और भी ढ़ेर सारा लिखे थे, पता नहीं कैसे उड़ गया...यही लफड़ा है उड़न तश्तरी का. कब न उड़ जाये..चलते चलते बवाल के दो शेर:

कौन कहता के, मौत आई तो मर जाऊंगा ?
मैं तो दरिया हूँ, समंदर में उतर जाऊंगा !!

ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल, तो ठहर जाऊंगा !
वरना खु़द्दार मुसाफ़िर हूँ, गुज़र जाऊँगा !!


-बहुत खूब (छोटी टिप्पणी-जबकि पढ़े भी हैं दोनों शेर और कंठस्थ भी कर लिए हैं, फिर भी)

आज की तस्वीर: (चित्र एवं पंक्तियाँ दोनों समीर लाल द्वारा) :)

(निम्न पंक्तियाँ वीनस केसरी की कविता में कुकडू कू और ओमकार चौधरी जी कविता में टर्र-टर्र टुर्र-टुर्र के प्रयोग से उत्साहित होकर)

जिन्दगी की कांव कांव,
कहीं धूप तो कहीं छांव!!


p1

अब चलते हैं-जय हो!!!

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16 टिप्‍पणियां:

  1. अमेरिका की तरह घर बसाये हैं दूर दूर, इत्ती जगह मत छोड़िये, खाली जगह देखकर मन यही करता है कि हाय इस छूटी जगह में अपना झोपड़ा भी आ जाता। सही जमाये रहे चर्चा।

    आदत से बाज नही आये हम भी, सोचा था लिखेंगे - बेहतरीन, उम्दा यूँ ही लिखते रहिये

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  2. चिट्ठाचर्चा के लिये आभार. थोडीबहुत टांगखिचाई एवं एकलाईना और जोड देंगे तो रंग और भी चोखा आयगा.

    सस्नेह

    -- शास्त्री

    -- समय पर दिया गया प्रोत्साहन हर मानव में छुपे अतिमानव को सबके समक्ष ला सकता है, अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  3. दस में से ग्यारह नंबर दे रहे है जी.. धांसु चर्चा जमाई है आपने..

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  4. कैची टाइटिल वाली धांसू च फांसू चर्चा की है आपने ! साधुवाद !!

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  5. ऐऐऐऐऐसेसेसेसे हीीीीीीीीीीी लिखते रहिए। आज केवल बधाई। बाकी फिर कभी।

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  6. .भई, बहुत देर से आते हो समीर भाई !
    हिन्दी चिट्ठा है, इंडियन टाइम से आना ज़रूरी तो नहीं ?

    लो सुनो...
    हर इक तमन्ना करता है, टिप्पणी के वास्ते
    ब्लागर की फ़ितरत का इम्फ़ान ये देखिये.. कि,

    भाई लोग, जय हो.. जय हो , कहके फूटे जा रहे हैं !

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  7. सुन्दरतम चर्चा ! बहुत मजा आया ! डाइलाग बहुत चुटीले रहे !
    आपकी बादलों की छाँव वाली फोटो बड़ी पसंद आयी !
    उसको हमने उड़ा लिया है ! प्रणाम !

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  8. हमेशा की तरह बहुत मजा आया पढ़ कर...आप तो गुरु नहीं गुरु घंटाल हैं...जय हो प्रभु आप की सदा ही जय हो...
    नीरज

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  9. आप की महिमा आप ही जानो जाने न दूजा कोय
    बेहतरीन प्रस्तुति

    वीनस केसरी

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  10. श्री प्रह्लाद नारायण मित्तल (स्वर्गीय) से परिचय कराया
    धन्यवाद

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  11. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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