शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ

अमेरिका में एक प्रांत है नेब्रास्का, वहाँ के कानून बनाने वालों ने कुछ समय पहले एक कानून बनाया उस वक्त वो बेचारे नही जानते थे कि ये इनके लिये भस्मासुर का वरदान होगा। आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब आज यहाँ क्यों रहा हूँ। दरअसल ये बच्चों से संबन्धित है और आज हम भारत के बाल दिवस पर लिखे चिट्ठों की चर्चा कर रहे हैं इसलिये इस खबर और कानून से आपको दो-चार करा देते हैं। इस कानून के तहत अगर आप अपने बच्चों का पालन पोषण नही कर सकते तो आप उन बच्चों को अस्पताल में जा कर छोड़ सकते हैं। बस लोगों ने इसका गलत फायदा उठाना शुरू किया और ५-६ महीने से लेकर १४-१५ साल के बच्चे (नवयुवक) सब अस्पताल के धोरे पड़े नजर आने लगे। विस्तार से इसे यहाँ पड़े, अमेरिकी पिट्ठू न्यूज चैनल IBN पढ़ रहा था तो एक स्टोरी पर नजर गयी जिसमें अमेरिकी फिल्मों में अभिनय कर चुके उन बच्चों का जिक्र था जो अब बड़े हो गये हैं और सफल हैं उसमें सबसे अंत में सिर्फ एक ही हिन्दुस्तानी बच्चे का जिक्र था और वो था जुगल हंसराज, जबकि बालीवुड में भी ऐसे बहुत हैं जिनका जिक्र हो सकता था।


चूँकि बाल दिवस के दिन लिखे चिट्ठों की चर्चा है इसलिये अधिकांश उन्हीं चिट्ठों पर नजर डालेंगे जो कुछ ना कुछ बच्चों की बात कर रहे हैं। मानोशी सुना रही हैं एक प्यारी सी कहानी -
रात के ठीक बारह बजे बौना प्रकट हुआ। उसने किसान की बेटी से फिर वही सवाल किया, " तुम मुझे इस काम के बदले क्या दोगी?" किसान की बेटी के पास और कुछ बाक़ी नहीं था। उसने कहा." मेरे पास अब और कुछ नहीं"। तब बौने ने कहा," ठीक है, फिर जब तुम्हारी राजा से शादी हो जायेगी, तब तुम मुझे अपना पहला बेटा दे देना।" किसान की बेटी ने झट मान लिया।
कहानी तो अच्छी है लेकिन आकांक्षा का मानना है कि ये बचपन कहीं खो रहा है -
बालश्रम की बात करें तो आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक भारत में फिलहाल लगभग 5 करोड़ बाल श्रमिक हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी भारत में सर्वाधिक बाल श्रमिक होने पर चिन्ता व्यक्त की है। ऐसे बच्चे कहीं बाल-वेश्यावृत्ति में झोंके गये हैं या खतरनाक उद्योगों या सड़क के किनारे किसी ढाबे में जूठे बर्तन धो रहे होते हैं या धार्मिक स्थलों व चौराहों पर भीख माँगते नजर आते हैं अथवा साहब लोगों के घरों में दासता का जीवन जी रहे होते हैं।
अमर कुमार के अचपन पचपन इसी पशोपेश में हैं कि ये लोग बम क्यों छुड़ाते हैं, कैसा कैसा तो कह रहे हैं जाकर देख लीजिये अगर अभी तक नही देखा, ताला तो ऐसा लगा के रखा है जैसे हम कॉपी करके इनका अचपन बचपन दोनों चुरा लेंगे।

बच्चे मन के सच्चे बात थोड़ा पुरानी है लेकिन फिर भी कुछ-कुछ बच्चों पर आज भी लागू होती है, ऐसे ही बच्चों के कुछ गीत बजा रही हैं ममता, सुन लीजिये शायद आपको भी कुछ याद आ जाये।

राज आज बच्चे बनने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वो दादी का किस्सा जो याद करके सुना रहे हैं, टैग तो चुटकुला का लगाये हैं -
लेकिन यह क्या दवा डालते ही दादी की चीख निकली ओर दादी बुरी तरह से तडपने लगी, माया ने अब ध्यान से टयुब को पढा तो वो टयुब तो पंचर लगाने वाली थी, अब माया घबरा गई ओर जल्दी से अपने घर से अपने पिता जी कॊ ओर उपर से छोटे भाई को बुला लाई, ओर दादी को झट पट डा के पास ले गये ओर माया ने रोते रोते सारी बात बता दी।
हमने भी इस बाल-दिवस पर बच्चे और इंटरनेट सुरक्षा की अंतिम किश्त ठेल डाली है, वैसे तो काम की जानकारी है आज नही तो कल जरूरत पड़ सकती है

जहाँ सब आज बचपन की तरफ लौटने की बात कर रहे हैं शिवकुमार रिटायरमेंट की बात कर रहे हैं, देखो तो कैसी उलटी बयार चला रखी है -
नेता होते तो भाषण देते समय मन की बात कहकर हलके हो लेते कि; "न तो टायर और न ही रिटायर." नेताओं के सामने तो पत्रकार भी सवाल नहीं उठाते. ऊपर से अनुभव से लबालब होने के बहाने अनुरोध तक लिख डालते हैं कि; "अभी तो आपके दिन शुरू हुए हैं. आप बने रहिये."

वैसे कम ही खिलाड़ियों को रिटायर होने का मौका मिलता है. सौरव बड़े खिलाड़ी थे तो रिटायर हुए. छोटे होते तो रिटायर होने का चांस नहीं मिलता. टीम से निकाल दिए जाते. अब बड़ा खिलाड़ी रिटायर होगा तो तमाम तरह के राग बजने शुरू हो ही जायेंगे.
अनुजा ज्यादातर विमत की बात करती हैं, आज भी उन्हें दुख है कि एक दिन की चांदनी काहे -
आज का दिन बीत जाने के बाद फिर कल क्या होगा? बाल दिवस ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।
इसमें नया कुछ नही, ये तो सभी दिनों की कहानी है, अब वैलेंटाईन का ही दिन ले लें, उस दिन कोई गुलाब का फूल देता है तो कोई चमेली वगैरह लेकिन दिन जाते ही अगले दिन से गोभी का फूल देने की तो छोड़िये फेंक के मारने की नौबत तक आ जाती है कई घरों में।

चुलबुली रश्मी खुबसूरत पेंटिंग के साथ कहती है कि आज तो उनका ही दिन है, सही बात बेटा। पलटूराम को पलटते हुए भी देख सकते हैं, खूब आदित्य बेटा पलट पलट के घर में सब को छकाओ।

बाल दिवस पर एक बुरी खबर भी है, जहरीले दूध पीने से कुछ बच्चों की लीला समाप्त हो गयी, इसी पर प्रभात को रोष है, होना भी स्वाभाविक है।

बस एक जरूरी काम आन पड़ा है इसलिये इतने से ही संतोष कीजिये और भी बहुत चिट्ठे थे जिनका जिक्र रह गया है लेकिन आज के दौर में पहले आफिस का काम फिर काम दूजा।

एक दूजे के लिये
1. अब पंछी क्यों नही आते? कहाँ हवाई जहाज की छत पर

2. मिडलाइफ क्राइसिस और ब्लॉगिंग फिर भी जान दे कर के शान रखते हैं

इनके भी हैं बयाँ कुछ जुदा-जुदा
टिप्पणीकारों के नाम मैने लॉस्ट चर्चा करी थी, तभी सोच लिया था कि अगली बार से कोशिश करूँगा कि थोड़ी बहुत टिप्पणीयों में कही बातों को भी चर्चा में जगह दे सकूँ। इसी क्रम में पेश है पोस्ट के रूप में आयी क्रियाओं पर कुछ प्रतिक्रियायें।

1. भाई, मजा आ गया। पहले लोग सीरियल से परेशान थे अब उन के बंद होने से। - दिनेश रॉय

2. आपका कहना एकदम सही है किसी के दिल में उम्मीद जगा दो अथवा किसी के ओठों पर मुस्कान ला दो- इससे बड़ा कार्य कोई नहीं हो सकता। - शोभा

3. यह पुस्‍तक जिन अलग अलग वजहों से अलग अलग पाठकों को झिंझोड़ती है वह मजेदार है। कई पाठक तो वर्षा के उस मौलिक आख्‍यान के परे ही नही जा पाते जो वह नैतिकता को लेकर खड़ा करती है। - मसीजिवी

4. बहुत से शेरू है दुनियाँ में जो झींगा की जूठन पर जिन्दा रहते हैं लेकिन निकम्मे....मेहनत का कोई मूलमंत्र नहीं होता। - रितु रंजन

5. काश लोग समझ पाते कि इंसान की जिंदगी का मकसद प्रेम करना है नफरत करना नहीं. - सुरेश चन्द्र गुप्ता

6. हमला सिर्फ़ अल्पसँख्यकों तक सीमित नहीं है। असली मकसद है फ़ासिज़्म और असली निशाना है लोकतन्त्र। ग़ैर-फ़ासिस्ट हिन्दू भी बचेंगे नहीं। तलिबानों ने क्या मुसलमानों को नहीं मारा। हिटलर ने क्या यहूदियों के अतिरिक्त और किसी को नहीं मारा था। - अमर ज्योति

7. भाई अगली बार मोबईल को बंद कर के, बाहर के दरावाजे पर बाहर से ताला लगा कर, पिछल्र दरवाजे से अन्दर आ कर लाईट बन्द कर के,ओर चांदनी का तेल पहले से खरीद कर, आराम से अपने चांद को देखे, ना कोई मोबाईल की खत्टपट, ना कोई अन्दर आये , ना कॊई तेल बेचे.... मोजा ही मोजा . भाई यह जो फ़ोटो लगा रखी है क्या ६० साल पहले की है - राज भाटिया

8. समझने की कोशिश कर रही हूँ । क्या मैं ठीक समझ रही हूँ ? संभावनाएं तो अनंत हैं परन्तु उन सबके अन्त में केवल 'मैं' ही होता है । यदि दो मैं मिलकर हम बना दें तो संभावनाएं अनंत से भी आगे बढ़ सकती हैं परन्तु क्या यह होता है ? - घुघुती बासूती

9. अबे पलटू यार,अब धीरे धीरे घुटनो के बल चलना भी शुरु कर दो....अरे नही पहले घुटनो ओर हाथो के बल खडे होना शुरु करो...फ़िर भाई पलटन तो हमे देख कर अपने पलटूयो की पलटिया याद आ गई. - राज भाटिया

10. सूमो से सहमत, शंकराचार्य बनकर क्या फ़ायदा जब पुलिस जब चाहे उठा ले चाहे असली वाले कांची कामकोटि के ही क्यों न हों, उसकी बजाय दिल्ली की जामा मस्जिद का इमाम बनना फ़ायदे का सौदा है, चाहे कितने ही गैर-जमानती वारंट पड़े धूल खा रहे हों, कोई हाथ नहीं लगा सकता… और फ़िर साथ देने के लिये बुद्धिजीवी, सेकुलर, पत्रकार, ब्लॉगर सभी हैं… - सुरेश चिपलुनकर

11. आज त गदगदा गे चोला !! मोगेम्बो सहीच्च मा खुश होगे !!खुब मजेदार हे ड्रापर ले दुध पीयाये के स्कीम हा !! दिल खुश होगे !! मियाऊ मियाऊ ...या कि मै आऊ !

सुरेंद जी कस कहती जब दिल ले बात निकल्थे तब मेहर छ्त्तीसगढी मा लिखथव जब दिमाग ले निकलथे तब हिन्दी मा लिखथव अऊ जब झुठ बोलना रथे तब अंग्रेजी मा लिखथव !! अब आप जान गे होहु मेहर काबर छ्त्त्तीसगढी मा टिप्पा दे हो !! - दीपक

12. जिंदगी को हमने ठेके पर दे दिया है। न अपने लिए समय है न अपने बच्चों के लिए। - अनुजा

13. हालाँकि मैं केफे कॉफी डे में भी खुशी ढूँढ लेता हू.. और सड़क पर खड़े होकर गोल गप्पे खाते हुए भी... जगह.. वक़्त.. हालत अलग हो पर आपने वो खुशनुमा ज़ज्बात हर पल होने चाहिए - कुश

14. खुशी ढूढने की ज़रूरत सी पड़ने लगी है लोगों को. ऐसे में बच्चे हमारी खुशी ढूढ़ कर ला सकते हैं - शिव कुमार मिश्रा

15. चलचित्र की दुनियाँ असली दुनियाँ पर भारी पड़ ही रही है. तारे ज़मीन पर देखकर थियेटर से रोते हुए निकलने वाले लोग अपने बच्चों को कम्पीटीशन की दौड़ में सोंटे मारकर दौड़ा रहे हैं. ठीक वैसे ही अपनी सास से बात तक न करने वाली बहू टीवी पर 'प्रेरणा' की सास की दुर्गति देखकर रोती है. - शिव कुमार मिश्रा

16. बिना डण्डा खाए हम काम कर ही नहीं सकते. खास कर जब नौकरी पक्की हो. - संजय बैंगाणी
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चलते-चलते
चूँकि चर्चा उस दिन लिखे चिट्ठों की हो रही है जो बाल-दिवस के रूप में भी जाना जाता है, इसलिये चलते-चलते आपके घरों में किलकारियाँ मारते नन्हें मुन्नों के लिये कुछ पहेलियाँ। आप भी बूझें और उनको भी लगायें सुलझाने में -

1. स्पाईडर कंप्यूटर में क्या करता है?
2. लंच के टाईम पर कंप्यूटर क्या करता हैं?
3. एक बेबी कंप्यूटर अपने पिता को किस नाम से पुकारेगा?
4. कंप्यूटर को कोल्ड क्यों लग गया था?
5. कंप्यूटर में बग क्यों आ गया था?
6. एक लड़की गाने के लिये सीढ़ियों में क्यों जा खड़ी हुई?

ये वाला मेरे बेटे ने मुझ से पूछा था?
7. आप दांतों के डॉक्टर के पास किस वक्त जाते हो?
8. एक खाली बैकपैक में आप कितनी किताबें रख सकते हो?

ये अंतिम दो अंग्रेजी में ही पूछने सही रहेंगे -
9. What starts with a P and ends with an E and has a million letters in it?
10. How many letters are in The Alphabet?

आज के लिये इत्ता ही कल कविताजी आपके साथ होंगी, हमें दीजिये ईजाजत आपका दिन हँसी खुशी बीते।

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17 टिप्‍पणियां:

  1. तरुण भाई चर्चा आनंदमयी है और उपयोगी भी। पर मुझे कतई अंदाज नहीं था कि मेरी टिप्पणी इस चर्चा का अंग बन जाएगी।

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  2. आपकी चर्चा तो खैर फन्ने खाँ रहती ही है . पर ये neeshoo कहाँ गायब है कोई जानता है ?

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  3. मेहनत से की गयी रोचक चर्चा। साधुवाद।

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  4. टिप्पणी चर्चा पर विशेष रूप से टिप्पणी: अच्छा सिलसिला शुरू हुआ है . जारी रहे....जारी रहे .

    बोलो टिप्पणी देवी की..........

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  5. बहुत बढ़िया रही चिट्ठाचर्चा. टिपण्णी चर्चा भी खूब रही. इस तरह के नए-नए प्रयोग चिट्ठाचर्चा को रोचक बनाते हैं.

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  6. तरुण भाई , बहुत परिश्रम और सामयिकता को ध्यान में रख कर आज की चर्चा की आपने ! और आपको प्रयोगवादी चर्चाकार का खिताब भी देना पडेगा ! बहुत शुभकामनाएं !

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  7. Hmmmmmmmm Aacha post Good Work


    Shyari Is Here Visit Jauru Karo Ji

    http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/

    Etc...........

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  8. ऐसी धाँसु चर्चा होती रही तो सब अपना ब्लाग लिखना छोडकर चिठ्ठा चर्चा करने को ही ललचायेंगे लगता है !!

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  9. बहुत खूब रही चर्चा इस बार भी... टिप्पणी चर्चा बढ़िया रही ..

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  10. बाल कलाकारों का ज़िक्र आया तो याद आया कि बेबी नाज़ [अब परलोक में] को पहला अंतरराष्ट्रीय बाल पुरस्कार मिला था...रतन कुमार्की फिल्में दो बीघा ज़मीन, बूट पालिश, जागृति आदि आज भी याद की जाती हैं जो पाकिस्तान चले गए और अब अल्लाह को प्यारे हो गए...बेबी तब्बसुम अब बुढापे में भी चुटकुले सुनाती फिर रही है----
    कोई लौटा दे मेरे बिते हुए दिन.........

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  11. वाकई काफी मेहनत करते है आपलोग इस चिटठा चर्चा में.

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  12. अले वाह, मेला वाला बचपन याँ पे दुबाला दिक्ख लाऎअ !
    थैन्तू तलून मामा, थैन्तू !


    तरूण भाई,यह वैभव जी कह रहे हैं.. मामा भांजे के बीच में हम क्या कह सकते हैं ?
    कल नीलिमा जी ने इन बच्चों के आह की चर्चा कर दी थी,
    सो मैं धिक्क ता तिक्की तिकी होकर फूट लिया ।
    बहुत जज़मानी बाकी थी, इस बीच लिखे गये पुराने चिट्ठों में माल तलाश रहा था कि,
    पीके सिंह ( वास्तविक चरित्र रिशी के पापा ) का फोन आया,
    "सर, आपने तो इन बच्चों को फ़ेमस कर दिया" सो, अभी देखा !
    पीके को बीड़ी पीना सिखा रहा हूँ,
    लत पड़ने पर जब अपना बंडल खरीद लेंगे ( ब्लाग बना लेंगे ) तो, पेश करूँगा !

    टिप्पणी को लेकर आपका यह प्रयोग नायाब है,
    इससे कुछ टिप्पणीचूसों को अपनी अंटी ढीली करने का हौसला मिलेगा !
    थैन्तू तलूनदी !

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  13. tarun ji, चि‍टठा चर्चा का स्‍तर काफी अच्छा होता जा रहा है, आप और बाकी चि‍ट्ठाकार कि‍तनी मेहनत करते हैं इसके लि‍ए, वह वाकई अमूल्‍य है।
    आज टि‍प्‍पणी चर्चा से इस चर्चा में एक और आयाम जोड़ दि‍या आपने।

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  14. कमाल है किसी ने पहेली का जवाब ही नहीं दिया ! राम-राम और साधू-साधू कह के कट लिए :-)
    मैं कोशिश करता हूँ:
    १. वेबसाइट बनाता है.
    २. will have a byte !
    ३. डाटा
    ४. वायरस आया होगा/या फ़िर 'विन्डोज़' खुली रह गई होगी.
    ५. It was looking for a byte to eat.
    ६. to reach high notes.
    ७. Tooth-Hurty!
    ८. १
    ९. पोस्ट ऑफिस
    १०. 18 because ET left in UFO and CIA chased :-)

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