गुरुवार, फ़रवरी 19, 2009

"मैं देखउँ तुम्ह नाहीं गीधहि दृष्टि अपार..."

आज कुछ काम की वजह से चिट्ठाचर्चा करने में बहुत देर हो गई. क्षमाप्रार्थी हूँ. क्षमा की प्रार्थना करने के बाद शुरू करते हैं आज कम समय में जो कुछ भी देख पाया उसके बारे में चर्चा.

गणित की वजह से किन-किन चीजों की उत्पत्ति हो सकती है?

ढेर सारी चीजों की. लगभग तमाम आधुनिक आविष्कारों के लिए गणित को दोषी ठहराया जा सकता है. भौतिकता की सारी चीजें गणित की ही देन हैं.

इन तमाम आविष्कारों के अलावा गणित और क्या कर सकता है?

टीस की उत्पत्ति.

यह बात मैं नहीं कह रहा. यह बात आज मसिजीवी जी ने अपनी पोस्ट में लिखी है. उनकी मानें तो;

"जब गणित के बारे में कोई बात होती है तो हम एक टीस के साथ उसे पढ़ते हैं."

उनकी और मानें तो;

"गणित के साथ हमारा रिश्‍ता एक ऐसी प्रेमिका का सा हे जिससे विवाह न हो पाया हो। (गणित से विवाह करने वाले जानें कि कि पत्नी के रूप में गणित वाकई पत्‍नी जैसा ही
दु:खी करता है या नहीं...) "

मसिजीवी जी 'हिन्दी में सोचने वाले' ब्लॉगर हैं. जाहिर है, गणित में सोचना उनके लिए तो एक दम ही ना ना टाइप बात है. उनका लिखा हुआ पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि गणित की बात पढ़/सुन कर गणितज्ञ जहाँ चहकता होगा वहीँ साहित्यकार/ब्लॉगर/ प्राध्यापक दहलता होगा.

पत्नी के रूप में गणित कितनी कष्टदायी है, ये तो खैर वही बता सकते हैं जिन्होंने न केवल गणित से विवाह किया है बल्कि जो सचमुच विवाहित है.

लेकिन पत्नी क्या हमेशा दुःख ही देती है? इस बात पर बाकी के शादी-शुदा ब्लॉगर प्रकाश डाल सकते हैं. मसिजीवी जी ने तो अपना प्रकाश डाल दिया है....:-)

मसिजीवी जी की हालिया टीस का कारण क्या है? उन्ही से सुनिए. वे लिखते हैं;

"इस बार हमें यह टीस इसलिए उठी कि कुछ अमरीकी भूगोलविदों ने गणितीय पद्धति से
यह खोज की है कि ओसामा बिन लादेन कहॉं छिपा हुआ है।"

ओसामा का पता चल जाना 'टीसदायक' साबित हो सकता है?

मसिजीवी जी आगे लिखते हैं;

"पूरी तकनीक का विवेचन तो कोई भूगोलविद या गणितज्ञ ही कर पाएगा पर गूगल से जो कुछ हमें समझ आया कि यह तकनीक मूलत: लुप्‍तप्राय जानवरों को खोजने के लिए प्रयोग में लाई जाती है.."

बढ़िया तकनीक के ज़रिये खोजने की कोशिश की जा रही है. आख़िर ओसामा के केस में जानवर वाली तकनीक ही सबसे करीबी साबित हो सकती है.

पोस्ट की इति करते हुए मसिजीवी जी ने लिखा;

"काश कोई फार्मूला ये भी गणना कर सके कि और लुप्‍तप्राय चीजें अब कहॉं मिलेंगी मसलन ईमानदारी, मित्रता, निष्‍ठा, सत्‍य....।"

बिल्कुल सही 'टीस' है. लेकिन वही समस्या है. भौतिक चीजों की उत्पत्ति में गणित जितना सहायक है इन सारी चीजों के उत्पत्ति पर उतना ही सहायक सिद्ध होगा, इस बात पर पहाड़ जितनी बड़ी शंका बनी रहेगी.

या फिर भविष्य में ऐसे गणितज्ञ पैदा होने वाले हैं जो इन चीजों के लिए गणित की और शाखाओं की खोज करें. जैसे ईमानदारी के लिए आनेस्टोमेट्री, मित्रता के लिए फ्रेंडो डायनामिक्स....वगैरह-वगैरह.

मसिजीवी जी की इस सोच पर कि; "पूरी तकनीक का विवेचन तो कोई भूगोलविद या गणितज्ञ ही कर पाएगा..." पर तरुण जी ने अपनी टिपण्णी में लिखा;

"शायद अभिषेक ओझा कुछ और प्रकाश डाल सकें.."

डाल सकें!

अभिषेक ने प्रकाश डाल क्या दिया, प्रकाश की बरसात कर दी.

जी हाँ, गणितीय सिद्धांतों की बात हो और अभिषेक उसपर कुछ न लिखें, ऐसा हो नहीं सकता. उन्होंने लिखा. जिन सिद्धांतों के सहारे ओसामा की खोज का दावा किया जा रहा है, अभिषेक ने उनपर तफशील से लिखा.

लेकिन यहाँ एक बात बता दूँ. गणित की वजह से मसिजीवी जी के मन में टीस होती है. लेकिन तुलसी दास और रामचरित मानस की वजह से अभिषेक के मन टीस उत्पन्न नहीं होती. मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि अभिषेक ने गणतीय सिद्धांतों पर लिखी गई अपनी पोस्ट की शुरुआत ही तुलसी बाबा के लिखे से की है.

गणितीय सिद्धांतों को अप्लाई करके ओसामा की खोज वाली ख़बर जब अभिषेक ने पढ़ी तो उन्हें तुलसी दास जी की ये चौपाई याद आई;

"मैं देखउँ तुम्ह नाहीं गीधहि दृष्टि अपार । बूढ़ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय
तुम्हार ॥"

मतलब यह कि गणितज्ञ तुसली बाबा को पढ़ सकता है लेकिन उनको पढने वाले गणित नहीं बांच सकते. खैर, अभिषेक ने लिखा;

"सीआईए और ऍफ़बीआई ओसामा बिन लादेन को ढूंढ़ के थक गई, और इन भूगोल के
प्रोफेसरों ने झट से बता दिया की ओसामा कहाँ है ! वैसे ये चौपाई तो बिल्कुल सटीक
बैठती है इस मामले पर. प्रोफेसरों ने कह दिया: 'भाई आप नहीं देख सकते पर हमारे शोध
की दृष्टि अपार है, हमने तो बता दिया ओसामा कहाँ है. अब हम तो प्रोफेसर बन गए नहीं
तो आपकी कुछ और मदद करते'".................

"खैर जहाँ तक सीआईए के थकने की बात है तो जब तक सीआईए थक नहीं जाती तब तक ये प्रोफेसर बताने वाले भी नहीं थे. आख़िर प्रोफेसर हैं भाई... वो तो काम ही तब
करते हैं जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है !"


मतलब यह कि ये प्रोफेसर भाई लोगों ने अपने महत्व को जताने के लिए ओसामा को पहले नहीं ढूंढा. पहले ही ढूढ़ लेते तो उनका महत्व कैसा?

दूरी क्षय सिद्धांत और द्वीप जैविक भूगोल का सिद्धांत लगाकर ओसामा को खोज लिया गया है. इन सिद्धांतों के बारे में आप अभिषेक के ब्लॉग पर पढिये.

अपनी पोस्ट की इति करते हुए अभिषेक ने लिखा;

"कई बार ओसामा टाइप करते हुए ओबामा टाइप हो गया. एक 'एस' की जगह 'बी' हो जाने से कई बार बिलांडर होते-होते रह गया..."

ओबामा से ओसामा की दूरी कितनी है?

इस बात का विश्लेषण जहाँ एक भाषा-विद ये कहकर करेगा कि ओबामा और ओसामा के बीच सत्रह अक्षरों की दूरी है वहीँ एक गणितज्ञ अमेरिका और पकिस्तान के बीच की दूरी नापने चल देगा.
शायद यही फरक है भाषा-विद और गणितज्ञ में.

अभिषेक ने आगे लिखा;

"मुझे नींद आ रही है मैं चला सोने… आप कीजिये पैकिंग. और अगर आपको ५ करोड़
डॉलर मिल गए तो मेरे हिस्से का देने मत भूलियेगा !---"

आप ख़ुद ही देख लीजिये. बेसिक मानवीय कर्म रूपये-पैसे को कोई भाव नहीं देता.

पाँच करोड़ डॉलर का मूल्य 'सोने' के आगे कुछ नहीं. वैसे भी सोने का भाव चढ़ता जा रहा है और डॉलर का गिरता जा रहा है.

पहली टिपण्णी आने तक एक ब्लॉगर पॉँच करोड़ डॉलर की प्राप्ति हेतु निकल चुके हैं. जी हाँ, समीर भाई ने अपनी टिपण्णी में लिखा;

"-आप सोईये, हम पैकिंग करके निकलता हूँ."

भारत में रहते हुए अभिषेक 'सोने' को ज्यादा महत्व देते हैं. वहीँ समीर भाई चूंकि कनाडा में रहते हैं और कनाडा अमेरिका के नज़दीक है इसलिए वे डॉलर को महत्व देते हैं. देश देश की बात है जी.

आलोक पुराणिक जी ने आज वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी का वह भाषण अपने ब्लॉग पर छापा है जिसे मुख़र्जी साहब संसद में नहीं पढ़ सके.

यह भाषण तैयार किया गया था लेकिन पढ़ा नहीं जा सका. मुख़र्जी बाबू को समय नहीं मिला होगा. शायद जैसे ही वे भाषण पढने के लिए तैयार हो रहे थे तभी ख़बर आई होगी कि पकिस्तान ने तालिबान के साथ समझौता कर लिया. मुख़र्जी बाबू विदेश मंत्री का चोला पहन वक्तव्य देने निकल गए होंगे.

खैर, आप भाषण के अंश पढिये;

"स्पीकर महोदय
अंतरिम बजट और अपनी सरकार का शुरुआती इश्तिहार पेश करने के लिए मैं खड़ा होता
हूं। वैसे हमारे चुनावी प्रचार की औपचारिक शुरुआत अभी होनी बाकी है, पर इस भाषण को
आप शुरुआत मान लें, तो कोई हर्ज नहीं है। "


भाषण में आगे लिखा गया है;

"सारे मंत्रियों की तरफ से मेरा निवेदन है कि हमारे रोजगार का भी ख्याल रखा जाये,
अगले चुनावों में। मैं तुम्हे रोजगार दे रहा हूं, तुम मुझे रोजगार दो-यह संदेश में इस अंतरिम बजट के जरिये देना चाहता हूं। हमारे रोजगार की गारंटी आप देंगे, ऐसा मैं
मानता हूं, क्योंकि हमने भारत निर्माण कर दिया है। भारत में निर्माण के काम से जो
वाकिफ है, वो जानते हैं, निर्माण को लेकर तरह तरह के विचार चलते हैं।"

भाषण के इस अंश ने अनिल पुसदकर जी को प्रभावित किया. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"ये तो ब्लागरों की तरह का संदेश है,तुम मुझे टिपण्णी दो,मै तुम्हे टिपण्णी दूंगा।"

आज अजीत भाई ने धींगडी और धींगडा जैसे शब्दों के सफर के बारे में लिखा है.

आज ही पता चला कि इन शब्दों का सफर दृढ़ नामक शब्द से शुरू हुआ. वे लिखते हैं;

"हिन्दी का एक शब्द है दृढ़ जिसका मतलब होता है कठोर या मजबूत। मूल रूप से संस्कृत के इस शब्द में पक्का, टिकाऊ, ताकतवर, पकड़, कब्जा, जकडना, थामना, स्थायी, बलिष्ठ, डील-डौल, अडिग रहने के भाव हैं। दृढ़ शब्द बना है दृह धातु से जिसमें स्थिर होना, कसना, समृद्ध होना और विकसित होना-बढ़ाना जैसे भाव हैं। दृढ+अंग से मिलकर बना है दृढ़ांग जो ध्रिड़ांग....."

सफर जारी रहा और दृढ़ धींगडा बन गया. वे आगे लिखते हैं;

"मगर धींगड़ा शब्द में कई सारे भाव शामिल हैं मसलन छैला, रंगीला, साहसी, बलवान, मोटा, हट्टा-कट्टा, कद्दावर, बलिष्ठ आदि। शरारती और नटखट के अर्थ में भी इसके स्त्रीवाची और पुरुषवाची रूपों का चलन है।"

धींगडा के इतने सारे भाव. शायद यही कारण है कि धीन्ग्दों को देखकर लोग कहते हैं; "उसका भाव तो अभी आसमान छू रहा है."

पूरी पोस्ट ज्ञानवर्धक है. जैसे अजित भाई की पोस्ट होती है. चलते-चलते ये शब्द वेस्टइंडीज तक जाती है. आप यह पोस्ट ज़रूर पढ़ें.

अजित भाई की पोस्ट पढ़कर सभी ने उन्हें धन्यवाद दिया. समीर भाई ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"धींगड़ा बचपन से सुनते आये..आज जाकर सही मायने में जाना. आपका बहुत आभार."

समीर भाई को कितना अच्छा लगा होगा. बचपन से जिस शब्द को सुनते आए, उसके बारे में पूरी जानकारी आज जाकर मिली. अद्भुत आनंद की प्राप्ति इसे ही कहते हैं.

इसी पोस्ट को पढ़कर अनुराज जी को उनकी गुजराती टीचर याद आ गईं. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"हमें अपनी गुजराती टीचर याद आ गई आज."

ये शोध का विषय है कि टीचर को अनुराग जी धींगडी कहते थे या........:-)

पुरस्कारों की घोषणा होने वाली है. अरे राष्ट्रीय पुरस्कारों की नहीं. बात हो रही है इन्डीब्लागीज २००८ ब्लॉग पुरस्कारों की. रवि रतलामी जी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि वे कमर कस चुके हैं. साथ ही उन्होंने पूछा;

"क्या आप कमर कस कर तैयार हैं?"

कमर को किस चीज से कसना है ये नहीं बताया उन्होंने. भला यही बता देते कि उन्होंने अपनी कमर किस चीज से कसी.

हाँ ये बात ज़रूर है कि उन्होंने अपने ब्लॉग का नामांकन हर श्रेणी में करने के लिए कमर कस ली है. वे लिखते हैं;

"मैंने अपने इस ब्लॉग का नामांकन सभी श्रेणियों में करने के लिए कमर कस ली है. सभी
श्रेणियों में? जी हाँ, सभी श्रेणियों में."

रवि जी को शुभकामनाएं. हम तो केवल शुभकामनाएं दे रहे हैं. समीर भाई ने तो पूरी बधाई ही दे डाली. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"पढ़कर अब लग गया कि सारी खूबियाँ तो हैं इसमें...आप तो जीते जिताये हो..बधाई दे दें
अभी से?? :)"

आज बहुत गहन विचार और चिंतन के बाद नटखट बच्चा इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि;

"हिन्दी ब्लोगिंग लौंडो -लापाडो के लिए नही है."

नटखट बच्चा जी को पता चला कि;

"इलाहाबाद के चतुर्वेदी जी इन दिनों बड़े परेशान है ,सुबह से दो बार चपरासी को बुलाकर हड़का चुके है,बीच बीच में टेबल के नीचे रखी टोकरी में पिल्लो को पुचकार देते है .जब से ब्लोगिंग में आए है एक नियम बना रखा था ,कभी किसी के फटे में टांग न अडायो.."

नटखट बच्चा आगे लिखते हैं;

"कही बम फूटे कही आग लगे बस अपनी ब्लोगिंग ठेलते रहो .ओर समाज का भला करते रहो जब ज्यादा हंगामा हो तो चुप हो जाओ ,पर ये लड़के सब मामला ख़राब करे बैठे है
."

नटखट बच्चा और चिंतन-मग्न हुए तो लिखा;

"बाटला काण्ड हो तो बहस चला देते है ,मुंबई काण्ड हो तो बहसियाने लगते है ,राज ठाकरे को भी गरियाते है ओर अब चड्डी पर उछाल कूद ,कोई करेक्टर नही ,अरे औरतो के
ब्लॉग पे कभी कोई टिपियाता है .ये किसी की नही है कल को किसी को भी घेर लेगी
.हिन्दी ब्लोगिंग कोई मजाक है ?"

सचमुच चिंतित हैं नटखट बच्चा जी.

लेकिन देखा जाय तो इलाहाबाद के चतुर्वेदी जी को बेनेफिट ऑफ़ डाउट दे देना चाहिए. आए दिन कितना कुछ तो फटता रहता है. कोई कहाँ-कहाँ टांग घुसाता फिरेगा? चतुर्वेदी जी बेचारे अपनी दो टांगों को कहाँ-कहाँ घुसाते फिरेंगे?

जिनकी दो से ज्यादा टाँगे होंगी वे घुसा देते हैं. बटला हाउस से लेकर चड्डी तक में.

पिछले तीन दिन से लोग कहाँ-कहाँ टांग घुसाए बैठे हैं?

हाल ही में नटखट जी का कमेन्ट चिट्ठाचर्चा पर भी देखा था. चतुर्वेदी जी को २५ शब्दों से ज्यादा की टिप्पणी न देने का उलाहना देने वाले नटखट जी ने एक पेज की टिप्पणी की थी.

उन्हें तमाम 'नामचीन' ब्लागरों से शिकायत थी कि कोई चड्डी में क्यों नहीं घुसा? ये नामचीन ब्लॉगर शब्द भी बड़ा मजेदार है. सुनकर लगता है जैसे चीन के किसी ब्लॉगर की बात हो रही है.

इसे आप क्या कहेंगे? इसे आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कह सकते हैं?

किसके अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता? जाहिर है नटखट जी के.

लेकिन उन्हें एक बात सोचने की ज़रूरत है. जैसे सबको लताड़ देना उनके अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है वैसे ही तमाम विषयों पर नहीं लिखना दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है.

चलते-चलते:

एक 'अति नामचीन ब्लॉगर' ने 'नामचीन' ब्लॉगर से पूछा; " चड्डी पर आपने कुछ नहीं लिखा. ऐसा क्यों?"

'नामचीन ब्लॉगर' बोले; " असल में चड्डी पर लिखने के लिए जिस प्रिंटिंग मशीन की ज़रूरत होती है, वो हमारे पास नहीं है."

मेरी भी पसंद:

कल चाँद गिर रहा था, भाग कर पकड़ा मैने!
डरा सहमा सा, शायद सितारों के साथ खेलते फिसला था!
शुक्रिया कह बातें छेड़ डी उसने!
कभी बताया नही तुमने, के तुम उसे जानते थे!

पूछ रहा था तुम्हारे बारे में!
कितना कुछ जानता था मेरे बारे में भी वो!!!
कभी बताया नही तुमने, तुम मेरी बातें करते थे!

सितारों की पुकार सुन कर वापस चला गया जब,
चाँदनी ठहरी थी कुछ देर मेरे पास!
बता रही थी, एक अंगूठी खरीदी थी तुमने मेरे लिए!
कैसे मन ललचाया था उसका भी, देख कर अंगूठी!
कभी बताया नही तुमने, तुम कितना प्यार करते थे!

नींद मेरी आखों से जाने लगी तो चाँदनी की आँखें मुन्दने लगी!
बैठ कर पलकों पर उसकी मुझसे बातें करने लगी!
शिकायत थी, कितनी रातें तुमने उसको आँखों में जगह नही दी!
खुली रख कर आखें ख्वाब बुनते थे तुम मेरे साथ !
कभी बताया नही तुमने, कितने सपने बुने थे तुमने!!

रात जाने लगी तो सब पूछते थे तुम्हारे बारे में,
कुछ बताया नही मैने, कैसे चले गये थे तुम!

----मनीषा शर्मा जी की आज की पोस्ट से साभार

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24 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, बहुते बेहतरीन चर्चा कर गये इत्ते कम समय में. :)

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  2. चुनिन्दा पोस्ट लेकर विस्तार से (टिप्पणी भी ्मिलाते हुऐ) की गई आपकी चर्चा इस इन्द्रधनुष को नया रंग देती है.. हमेशा की ही तरह बेहतरीन..

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  3. सुबह से चर्चा का इंतजार करते करते जब थक गए तो सोचा आज गुरु जी चर्चा करने वाले नहीं . आज तो कोई नामचीन चर्चाकार ही चर्चा करेगा !

    पर ये तो गुरु ही हैं !

    रही क्षमा वाली बात ! हम तो आपके चेले ठहरे !

    पर देखेंगे जरूर कि कितने लोग क्षमादान देते हैं आज . अब तक तो किसी ने विचार नहीं किया आपकी जनहित याचिका पर :)

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  4. आज की दो ओर पसंदीदा पोस्ट जो मुझे लगी .



    घुघूती बासूती

    ताना बाना

    मिश्रा की .काहे हमारे नाम की स्पेलिंग बिगाड़ते है भाई ?

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  5. विवेक सही कहते हैं, चर्चा का इंतजार करते करते आज अपना चरखा बन गया. लेकिन अंत में जो मिला (चर्चा), उसके कारण तबियत एकदम फडका फाईट हो गई.

    चर्चा के लिये आभार !!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  6. आपलोग इतना बढ़िया कैसे लिख लेते हैं ? वैसे सम्पादन में त्रुटि है ."टिप्पणी" की जगह "टिपण्णी" छप गया है . ये ग़लती कंप्यूटर जी की भी हो सकती है .

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  7. इस विलम्बित पत्र-विवेचना...
    में उपरोक्त कड़ियाँ नई न रह गयीं हों,
    पर आपकी पत्र-निष्ठा एवं श्रम का परिचायक बन
    इसने प्रेमी्जनों को निराश होने से उबार लिया भातृश्री !

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  8. देर सी की गई चर्चा हमारे लिए राहत की चीज है, आखिर कल हमारा नंबर है...अब हम भी कुछ देरी कर बैठे तो चलेगा, अभी तो चर्चा पढ़ी है लोगों ने।

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  9. चर्चा में च शब्‍द का
    कई बार प्रयोग किया है
    फिर भी चम्‍मच, चमचा, चाची, चांदी, चकोर
    को नहीं छुआ है
    छुआ है चांद को, चतुर्वेदी को
    और तलाशी है मशीन
    च पर प्रिंटिंग की
    नई तलाशी सिंगिंग की
    जोगिंग की, स्‍वीमिंग की
    जोकिंग की
    उसे भी तलाश लो।

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  10. बढ़िया चर्चा ! कम समय में आप ज्यादा अच्छा कर लेते हैं. किसी दिन ज्यादा समय दे दिया तो क़यामत न आ जाय :-)

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  11. वहा चर्चा!!! क्या चर्चा!!! किसकी चर्चा!!!!! क्यो चर्चा!!!!

    चर्चा मे जरुरत है, विस्तार कि चर्चा!!!!!!

    घणी खमा- घणी क्षमा!!!!!!

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  12. अच्छी चर्चा. इतना ही कह सकता हूं. देर से आया हूं इसलिये कोई मनोदशा नहीं बन पा रही .

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  13. ससुरी चर्चा ना हुई.. मानी ऑर्डर हो गयी.. बैठके बस इंतेज़ार ही कर रहे है.. अब आए की तब आए.. हार कर मन ही मन चार बात बोलकर घर की ओर निकल लिए.. अब सुबह आते ही सबसे पहले चेक किया की मिश्रा जी चर्चा लाए है या फिर वो भी टंकी पर जा बैठे... पर शुक्र है.. (आईला आज तो सचमुच शुक्र है) पर शुक्र है.. सब सही सलामत है..

    चर्चा सही मायनो में तो यही होती है.. संख्या कम सही ब्लॉग्स की पर चर्चा की गुणवत्ता में कोई कमी नही जी.. आपकी मेहनत आपके लिखे एक एक शब्द में होती है.. कमर कसने वाली लाइन सिर्फ़ आप ही लिख सकते है..

    ये तो थी जी हमारी पर्सनल टिप्पणी..

    अब चलते है ब्लॉग जगत की मान्यता प्राप्त टिप्पणी की तरफ

    बढ़िया चर्चा!

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  14. इन्डीब्लागीज २००८ ब्लॉग पुरस्कारों

    aasha haen ki nomination kewal unka hii accept hoga to blog likhtey haen website nahin chalaatey hindi ki

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  15. देर से चर्चा मे शामिल हुआ,मगर आनंद उतना ही आया।शानदार चर्चा।

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  16. अभी तक के सारे चिठ्ठा चर्चाओं में मुझे ये पोस्ट बहुत उल्लेखनीय लगी...ब्लॉग पोस्ट पर भी इतनी मजेदार चर्चा की जा सकती है हमने कभी सोचा ही नहीं था... शिव की पीठ जरा जोर से थपथपाने का मन हो रहा है....क्या करें? उन्हें खोपोली फ़िर से बुलाएँ या स्वयं कलकत्ता चले जायें?...अभी ये ही सोच रहे हैं...

    नीरज

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  17. हर एक के फटे में टांग अड़ाने के लिये बहु-पैरीय व्यक्ति होना चाहिये। अब आदमी तो वैसे होते नहीं, सेण्टीपीड या केटरपिलर होते हैं। यह प्रजाति ब्लॉगिंग करती है क्या?

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