रविवार, सितंबर 21, 2008

दिल इबादत है मुहब्बत को ख़ुदा हम मानते हैं

 शेर-शेरनी
इतवार की सुबह-सुबह अगर आपको ये कहकर गुडमार्निंग किया जाये तो कैसा लगेगा:
दोस्ती की अनदेखी सूरत है आप,
किसी की जिंदगी की जरुरत हो आप,
खूबसूरत तो फूल भी बहुत है ,
मगर किसी के लिए फूल से भी खूबसूरत है आप !
हमे पता है आपको बहुत अच्छा लगा है लेकिन आप सोच रहे हो कि एक साथ बतायेंगे। है न! आपको चाहे जैसा लगा हो लेकिन ये जो शेर-शेरनी का जोड़ा है उसको जरूर अच्छा लगा होगा तभी ये आराम से बैठे हुये हैं- शान्तमन, शोभायमान। अगर इनकी जगह चि्ठेरा-चिठेरी का जोड़ा होता तो अब तक ब्लागिंग की दुनिया की बातें करते हुये परस्पर फ़िरंट हो जाता।

बहरहाल हियां की बातैं हियनै छ्वाड़ौ और आगे का सुनौ हवाल। लेकिन आगे बढ़ने के पहले आप पोहा-कटलेट खा लीजिये। मजा आ गया न!

अब आपको सुनवाते मतलब पढ़वाते हैं एक गजल। मानोसी की लिखी दो गजलों में से एक के बोल पढ़कर लगा ये तो बड़ी शायरा हो गयी हैं:
आज हमारा नाम है अख़बार की जो सुर्ख़ियों में
हम किसी नामी-गिरामी को नहीं पहचानते हैं

हम नहीं हैं वो जो गिर के, झुक वफ़ा की भीख माँगें
दिल इबादत है मुहब्बत को ख़ुदा हम मानते हैं
हमने उनको सलाह दी कि इस तरह की गजलें एक-एक करके पोस्ट किया करें तो उन्होंने तड़ से हमारी बात मान ली और दूसरी गजल दुबारा इकल्ले पोस्ट कर दी।

आप देखिये दुबारा पोस्ट करने की बात तो उन्होंने झट से मान ली। अगर हम कहते कि ऐसी गजले क्यों पोस्ट करती हो तो उस पर वो बिल्कुल तवज्जो न देतीं। उलटा कहतीं -आपको कविता/गजल के बारे में कुच्छ नहीं आता।

शिवकुमार मिश्र एक बार कान्फ़्रेन्स हाल में धंस गये तो बस वहिऐं जम गये। रपट पर रपट ठेले जा रहे हैं। कोई तो बता रहा था कि गाना भी गा रहे हैं- आज रपट जायें तो हमें न बचैयो।

अगड़म-बगड़म कहते रहने वाले भी काम की बात कहते हुये पाये जा सकते हैं मानना न मानना आप पर है। सो आलोक पुराणिक कहते हैं:
अमेरिकन वित्तीय जगत के लालच और बेवकूफी से भारतीय बैंकिंग जगत यह सबक सीख सकता है कि मुनाफों की रफ्तार भले ही बहुत ज्यादा ना हो, पर धुआंधार मुनाफे कमजोर कारोबार की नींव पर नहीं खड़े होने चाहिए। और कर्ज दिये नहीं लिये जाने चाहिए। रिजर्व बैंक का डंडा चलते समय बुरा जरुर लगता है। पर ऐसे समय में कड़ाई का महत्व समझा जाना चाहिए। बैंकिंग जगत में बहुत उदारता दीर्घकाल में घातक साबित हो सकती है। अमेरिका के उदाहरण से यह बात समझ ली जानी चाहिए।



नये चिट्ठाकार
वेरेश


  1. हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है पता है फ़िर भी बोल रहे हो ,कनपुरिया जो ठहरे


  2. भूतनाथ को चढ़ा ब्लागिंग का बुखार


  3. सुमित के तड़के(गद्य):पहली खत आतंकवादियों को



  4. नो वन फ़ालोस: करेगा भाई चलो तो सही


  5. निखिल की कवितायें: पढ़ रहे हैं जी


  6. जुनून:जारी रहे।


  7. अपनी बात : कहते रहो।


  8. राना रंजन: जारी रहे ब्लाग मनोरंजन


  9. आइना: एक अभिव्यक्ति है
 विवेक


अजित वडनेरकर के सौजन्य से बकलमखुद में आप कई नामचीन ब्लागरों के बारे में जान चुके हैं। अब शुरुआत सिलसिला शुरू हुआ है अपमे मम्मी-पापा की लाड़ली रही और बकौल बुआ शैतान , रंजना भाटिया की यादों का। वे लिखती हैं:
यूँ ही एक बार हमारे घर की परछती पर रहने वाली एक चिडिया पंखे से टकरा मर गई उसको हमारी पूरी टोली ने बाकयदा एक कापी के गत्ते कोपूरी सजा धजा के साथ घर के बगीचे में उसका अन्तिम संस्कार किया था और मन्त्र के नाम पर जिसको जो बाल कविता आती थी वह बोली थी बारी बारी ..:)मैंने बोली थी..चूँ चूँ करती आई चिडिया स्वाहा ..दाल का दाना लायी चिडिया स्वाहा.:)


आप सच मानिये जब सतीश सक्सेना जी की कविता वे नफ़रत बांटे इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं हमने पढ़ी तो हमें लगा कि यह शायद साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये लिखी है। लेकिन जब दुबारा मयटीप पढ़ी तो पाया कि इसमें प्यार-मोहब्बत वाला मामला है। हमें एक बार फ़िर अपनी कविता की समझ पर’तर्श’ आया और हम अर्श से फ़र्श पर आ गये। अभी तक चोट सहला रहे हैं- बाई गाड की कसम!

विजय ठाकुर पुराने लिक्खाड़ रहे हैं। उनकी तत्काल एक्सप्रेस बहुत दिन रुकी रही। उनका लेख पुटुष के फ़ल ब्लाग जगत के बेहतरीन लेखों में से एक था। था इसलिये कह रहे हैं क्योंकि उन्होंने उसके सबसे महत्वपूर्ण अंश को शायद उड़ा दिया है। वे आज प्यार की झप्पी की ले-दे रहे हैं।

घोस्टबस्टर अपनी पीड़ायें व्यक्त करने के लिये गुस्ताख जी को पकड़ के लाये हैं जो कहते हैं:
 साइकिल
सडी सायकिल झनझन करती, घण्टी नहीं बजाये बजती,
दो पुरुषों का भार कभी जो, महासती सा सहन न करती.
घड़ी पुरानी आदम युग की, दिन भार जो चाभी ही खाती,
जिसे देखकर बिना बताये, लोग समझ जाते खैराती.


चवन्नी चैप में आज आप मिलिये महेश भट्ट से जिनको पीड़ा में दिलासा देती है प्रार्थना।

तरकश के नये लेख पढ़ें तरकशी पर- इसमें थ्री डामेन्शनल मसाला भी है जी।

बिहार की बाढ़ की रिपोर्टिंग अगर आपको देखनी हो तो इधर देखिये।

स्वामीजी खुलासा कर रहे हैं कि दुनिया के सारे डॉलर्स दर-असल नकली हैं!
 चेन्नई वेल्लोर
प्रशान्त प्रियदर्शी चेन्नई से वेल्लोर तक बाइक से निकल लिये दोस्तों के साथ। फोटो तो ऊपर रहा है न । यात्रा विवरण भी सुनते चलिये भाई:
. और प्रियंका तो हद की हुई थी.. स्कूटी से ही Pulsar को पीछे छोड़े जा रही थी.. एक जगह हमलोग चाय-कॉफ़ी के लिए रुके और प्रियंका जिद कर के Pulsar ले ली.. किसी तरह हिम्मत कर के अमित उसके पीछे बैठा.. एक तो स्कूटी से पकड़ में नहीं आ रही थी.. अब तो Pulsar मिल गया.. Speedometer का digital reading अमित के चेहरे से साफ़ नज़र आ रहा था.... 70......75......80.......85.....बस बहुत हो गया......


सम्मान


 भीष्मनारायण सिंह ,रामदरशमिश्र
  • इंडिया हैबिटेट सैंटर के स्टाइन सभागार में 11 सितंबर 2008 को सम्पन्न हुई "जयजयवंती वार्षिकोत्सव" में सुश्री पूर्णिमा वर्मन का सम्मान हुआ। इस समारोह की झलकियां देखने की फुरसत आपके पास हो तो इस लिंक पर क्लिक करें। ये चित्र और उन पर की गई टिप्पणियां पायल की हैं। इसमें हिंदी जगत के तमाम धुरंधरों के चित्र हैं।



  • मनोज पमार को मध्‍यप्रदेश शासन ने रतनलाल जोशी पुरस्‍कार देने का एलान किया है। हमारी बधाइयां।


  • जाकिर अली’रजनीश’ को भाऊराव देवरस सेवा न्यास, लखनऊ द्वारा आयोजित चतुर्दश पं० प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार सम्मान समारोह में बाल साहित्य में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। हमारी बधाइयां।


  • निधन/श्रद्धांजलि: हिंदी की वरिष्ठ कथाकार/लेखिका प्रभा खेतान
    का कल कोलकता में निधन हो गया। आओ पेपे घर चलें, पीली आंधी, अपरिचित उजाले, छिन्नमस्ता, बाजार बीच बाजार के खिलाफ, उपनिवेश में स्त्री, स्त्री उपेक्षिता (अनुवाद) और अन्या से अनन्या (आत्मकथा) जैसी रचनाओं से हिंदी जगत में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाई थी। प्रभाजी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

    एक लाइना


       खाकी पर विश्वास

    1. पूर्वजों को स्मरण करने का अवसर : हाथ से जाने न दें।


    2. प्रवासी जल पक्षियों की प्रजातियां खत्‍म होने के करीब : उनको बचायें।


    3. जहाँ इज्जत घटती देखें वहां से चले जाएँ : ऐसे तो दुनिया में हर जगह से भागना पड़ेगा।


    4. भगतसिंह ने कहा... 'अदालत एक ढकोसला है' : इस बारे में द्विवेदीजी क्या कहते हैं?


    5. विदर्भ के आत्‍महत्‍या कर रहे किसानों को 4825 करोड़ रुपए में मिली सिर्फ दो फीसदी रकम : बकिया किधर गई



    6. ऐसे भी लिखा जाता है-हास्य व्यंग्य : और उसके छपने पर हजार रुपये मिलते हैं।


    7. : परिवर्तन देखा है : सब देखते हैं लेकिन यहां कविता भी लिखी गयी



    8. टारगेट हो-टोटल एलिमिनेशन आफ टेररिज्म। : गपसप में ही होता है ई सब।


    9. आप को भूल जाए इतने तो बेवफा नही,
      आप से क्या गिला करे, आप से कुछ गिला नही। रवि श्रीवास्तव


    10. पोस्ट आफिस दुर्ग मे भर्राशाही का राज : भंडा फ़ोड़



    11. पुलिस पर नहीं आतंकवादियों पर शक करो : जे भली कही भैया आपने, अकेली पुलिस कित्ते दिन शक झेलेगी।



    12. ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई,
      माँ तेरे आँचल ने ही मुझे अपने में छिपाया था रंजना [रंजू भाटिया]

    13. आओ, एक गीत गुनगुनाएँ : आई जंजीर की झंकार खुदा खैर करे- शीतल राजपूत के साथ



    14. कमेंटमेंन्ट: अब कुछ कर ही लो।


    15. कब थमेगा गिरजाघरों पर हमलों का सिलसिला : जब कोई दूसरा नया सिलसिला शुरू हो जायेगा।




    16. तेरे नम्बर को ना रिंग करेंगे सनम, आज के बाद
      तुझे ई-मेल भी ना लिखेंगे सनम, आज के बाद राहुल उपाध्याय

    17. कच्ची तम्बाकू पर भारी छूट : अब पियो दिल जलाकर


    18. आलोचना में असली चेहरा : सामने आता है।



    19. निर्वस्त्र देखने की जिज्ञासा!:पूरी करें उदय की कलम से।


    20. हौसला है जीने का इतनी बुलंदी पर यहाँ
      मौत भी आने से पहले थोड़ा तो घबरायेगी मानसी

    21. मोहिनी के पैर नशे में लड़खड़ा रहे थे :उधर से मिसिज टंडन बोल रही थी।



    22. क्‍या आप ‘अपनेराम’ को जानते हैं? : नहीं जानते तो जान लो भाई इनाम पाये हैं।


    23. दिल्ली घेट्टो के एनकाउंटर की एक साइड लाइन रिपोर्ट : मसिजीवी की कलम से।



    24. आतंक पर अभिनय बंद हो : और एक्शन चालू हो।


    25. साजिश है आग लगाने की
      कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
      वह रंज लिए, बैठे दिल में
      हम प्यार, बांटने निकले हैं! सतीश सक्सेना

    26. क्या आप अरुंधती राय को जानते हैं?: हम तो उनको जानते हैं लेकिन ऊ हमें न जानती हैं।



    27. आभासी दुनिया के दीवाने:ब्लागर्स : की दीवानगी बढ़ती जा रही है।


    28. किसी को कुर्बानी देनी होगी : बताओ कौन शुरू करेगा। चलो आगे आओ।



    29. उसे रवि शंकर का कैसेट चाहिए: लेकिन देने वाली तो चली गयीं अब!


    30. अब हूँ मैं अंधकूप से बाहर
      जिसके आकर्षण से आबद्ध
      असहाय सा अप्रतिरोध्य ,
      खिंचा था सहसा ही उस ओर
      उस गहन गुम्फित क्रोड़ में अरविन्द मिश्र

    31. वोट की राजनीति यह :बनी है नाशनीति यह।



    32. कल की बात : ही कर सकते हैं भूतनाथ


    33. गांधीजी चले चे ग्वेरा की राह : चलो ये कमी भी पूरी हुई गांधीजी की।



    34. सुनहरा अनुपात और स्थापत्यकला : बहुत याराना लगता है।


    35. गरजपाल की चिट्ठी: के लिये अगली कड़ी का इंतजार करना पड़ेगा जी!



    36. आजकल इंसान के ज़मीर में खमीर नहीं उठता : वर्ना इन्सान का भटूरा बन जाता।


    37. प्रसिद्ध लेखकों के अजब टोटके: पढ़ के ही तो लोग लिखना छोड़ के टोटके करने लगते हैं!


    मेरी पसंद


     कन्हैयालालनंदन

    हम जहाँ हैं,
    वहीं से, आगे बढ़ेंगे।
    हैं अगर यदि भीड़ में भी, हम खड़े तो,
    है यकीं कि, हम नहीं,
    पीछें हटेंगे।
    देश के, बंजर समय के, बाँझपन में,
    या कि, अपनी लालसाओं के,
    अंधेरे सघन वन मे,
    पंथ, खुद अपना चुनेंगे।
    या, अगर हैं हम,
    परिस्थितियों की तलहटी में,
    तो, वहीं से,
    बादलों के रूप में, ऊपर उठेंगे।

    राजेश कुमार सिंह

    और अंत में



    पूर्णिमा वर्मन जी ने अपने सम्मान समारोह में हिंदी विकिपीडिया को समृद्ध करने के बात कही। उनका कहना है कि हिंदीविकिपीडिया की फ़िलहाल हालत एक दम हिंदी की तरह हैं। इसमें केवल पच्चीस हजार लेख हैं और उनमें से भी ज्यादातर एक-एक , दो-दो लाइनों के हैं। लेखों के मामले में इसका स्थान पचास से भी नीचे है। डेप्थ बोले तो गहराई लेखों की पांच के स्तर पर है। अंग्रेजी के लेख पिछले साल तक चौदह लाख थे। अब न जाने कित्ते हो गये होंगे। इस बारे में मैंने एक लेख भी लिखा था और कसम भी खायी थी कि विकिपीडिया को समृद्ध करेंगे। लेकिन वो सब धरा रह गया।

    इस लेख को पढिये और देखिये विकिपीडिया में काम करना कित्ता आसान है। एक बार शुरू तो करें। तमाम ब्लागरोचित काम करने से कहीं बेहतर इस दुनिया में हाथ-पांव मारना।

    आपका इतवार मजेदार गुजरे।

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    23 टिप्‍पणियां:

    1. शुक्ल जी हमेशा की तरह चाल्हे काट राखें सें !
      बहुत बढिया ! शुभकामनाएं !

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    2. good morning ji.....sher dekh kar to dar gai lekin charcha mai dam hai

      जवाब देंहटाएं
    3. .

      बहुत अच्छा कवरेज़, बधाई लें..
      पर आज थके से लग रहे हैं,
      पर हमें क्या, होगा कुछ ?

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    4. बहूत बढ़िया।
      जमाये रहिये जी।
      विकट शेर बाज हैं आप तो।
      ऐसे शेर भी हैं, आप पे, और वैसे शेर भी हैं आप पे।

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    5. आप सब गड़बड़ कर देते हो.... मामला तो प्यार मोहब्बत का ही है बशर्ते लोगों की समझ में आए ....
      कुर्बान जाऊं आपकी मासूमियत पर ....
      बहुत हंसाया अनूप भाई आपने ...ध्यान देने के लिए आभार !

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    6. बहुत बढ़या।
      जहां तक विकीपीडिया वाली बात है , बेहद सार्थक हस्तक्षेप है । इस पर मैं भी फिक्रमंद हूं । नेट पर हिन्दी संदर्भ क्या चंद हजार हिन्दी ब्लाग्स के होने मात्र तक सीमित रहने चाहिए ? हिन्दी ब्लागों पर बिखरी संदर्भ संपदा अभी बहुविध नहीं है। ज्यादातर पर कविता और समसामयिक विमर्श ही है। इतिहास, कला, साहित्य,भूगोल,ब्रह्मांड, विज्ञान,व्यक्तित्व आदि कई विषयों पर अभी शुरुआत होनी है। सभी ब्लागर यदि ठान लें कि रोज़ एक संदर्भ ज़रूर विकीपीडिया में डालेंगे तो काफी महत्वपूर्ण काम होगा।
      इसके लिए किसी महान नेता के आह्वान की राह देखने की ज़रूरत नहीं हैं। हम सब तय कर लें। अनूपजी से अनुरोध है कि एक विस्तृत पोस्ट इस पर लिखें और अपने ब्लाग पर लगाएं। हम भी ऐसा ही करेंगे । एक मुहिम छेड़ दी जाए।
      इंटरनेट पर कोई भी भाषा तभी प्रभुत्व पाएगी जब उस भाषा में वैश्विक संदर्भ पर्याप्त होंगे। सिर्फ गूगल अनुवाद के भरोसे कुछ नहीं होगा। वो एक उपकरण है , समाधान नहीं। हिन्दी तभी राज करेगी जब सारे ब्लागर विकीपीडिया को समृद्ध करने की जिम्मेदारी उठा लें।
      अब विकीपीडिया के बारे में मुझे भी खुद ज्यादा नहीं पता है। मसलन ये संगठन किसका है। कौन इसे चलाते हैं। आर्थिक पक्ष क्या है। मसलन कोई इसके लिए क्यो लिखे । सो अनूप जी से अनुरोध है कि वे एक लेख ज़रूर लिखें।

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    7. अजितजी, विकिपीडिया के बारे में मितुल ने एक लेख लिखा था- विकिपीडिया: हिन्दी की समृद्धि की राह | उसी से जानकारी लेकर मैंने एक लेख लिखा था- विकिपीडिया - साथी हाथ बढ़ाना…
      इन लेखों में कामभर की जानकारी है। देखिये और शुरू हो जाइये।

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    8. कल की तरुण जी की चर्चा भी जबरदस्त थी, मगर इतनी वाइड स्क्रीन चर्चा तो अनूप जी ही कर सकते हैं. शानदार. यहाँ से लिंक पाकर कई ऐसी पोस्ट्स पढ़ लीं, जो कल नहीं पढीं थीं.

      और एक बात और. ये कमेन्ट लेखकों के नाम के साथ, 'कहते हैं' क्यों? 'कहती हैं' क्लब से कोई आपत्ति नहीं आयी अब तक?

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    9. अत्यन्त सार्थक काम करते हैं आप। धन्यवाद।

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    10. यह पढ़ना तो अब नियमित हो गया है ..बहुत मेहनत करते हैं इस पोस्ट पर सभी लिखने वाले ..बढ़िया है यह

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    11. महाराज काहे बदनाम कर रहे हो, यहां लीखने का एक पैसा भी नहिं मिल्ता फ़ोकट में लिख रहे हैं उल्टे जेब से इंटरनेट का साढे छ:सौ रुपये हर महीने जेब से दे रहे हैं। हजार रुपये मिल्ते इतना रद्दी नहिंं लिखते।
      दीपक भारतदीप

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    12. महाराज काहे बदनाम कर रहे हो, यहां लीखने का एक पैसा भी नहिं मिल्ता फ़ोकट में लिख रहे हैं उल्टे जेब से इंटरनेट का साढे छ:सौ रुपये हर महीने जेब से दे रहे हैं। हजार रुपये मिल्ते इतना रद्दी नहिंं लिखते।
      दीपक भारतदीप

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    13. चिट्ठा चर्चा का अब हर अंक पहले से बेहतर लगता है। हर अंक ताजगी लिए हुए रहता है। यह अंक तो मनभावन है ही।

      हिन्‍दी विकिपीडिया को समृद्ध करना बहुत जरूरी है। जीवन स्थितियां इसके अनुकूल हुईं तो शायद मैं भी अंशदान करने की कोशिश जरूर करूंगा।
      लेकिन पूरी विनम्रता के साथ कहना चाहूंगा कि हिन्‍दी तब तक राज नहीं करेगी, जब तक हमारा संविधान इसे इस बात की छूट नहीं देगा।

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    14. chaliye aap ki nazar hum jaiso par bhi padhti hai .accha lagta hai .bado ke beach mai choto par bhi charcha .dhanybad

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    15. आपने हर जगह नजर फिरा कर जो चर्चा की है उसके लिये आभार!!

      हिन्दी विकीपीडिया की बात उठा कर आपने अच्छा किया. समस्या न केवल हिन्दी की है, लेकिन विकीपीडिया की भी है.

      एक आलेख आज ही लिखता हूँ इस विषय पर!!

      सस्नेह

      -- शास्त्री

      -- जहां सहयोग है वहां उन्नति है, जहां असहयोग है वहां पतन निश्चत है. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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    16. विकिपीडिया के लिए हमारी भी योजना कुछ थी पर अभी तक धरी की धरी ही है.
      कोशिश करनी पड़ेगी !

      जवाब देंहटाएं
    17. शुक्रिया शुक्रिया हमारी गज़ल को इतनी अहमियत देने का। हाँ एक बात तो है इतने विस्तार से, वाइड कवरेज तो अनूप जी ही दे सकते हैं।

      जवाब देंहटाएं
    18. बहुत मन लगाकर चर्चा किए हो महाराज..चौतरफा घूम घूम कर. बहुत बढ़िया...विकिपिडिया वाली बात से सहमत हूँ..समय निकालना होगा.

      जवाब देंहटाएं
    19. सार्थक चर्चा। विकिपीडिया को और समृद्ध करने के लिए हमसे जो बन पड़ेगा करेंगे, थोड़ा विस्तार से समझाने की आवश्यकता है।

      जवाब देंहटाएं
    20. .



      अभी फिर से पढ़ा,
      मन लगा कर पढ़ा और समझ समझ कर पढ़ा,
      अपनी पिछली टिप्पणी वापस लेता हूँ, शायद मैं ही थका था ।
      वाईकेपीडिया पर गत मार्च से कुछ न कुछ कर ही रहा हूँ, पर नियमित नहीं !
      ब्लागिंग ही नियमित नहीं कर पा रहा हूँ, ’ जहाँ थोथा चना बाजै घणा ’ का अनोखा अवसर है । फिर भी...
      अब अपनी प्राथमिकताओं को पुनर्निर्धारित करना चाहिये, ऎसा सोचा है ।
      आभार, फिर से चर्चा पढ़ने को विवश करने का !

      जवाब देंहटाएं
    21. अनुपजी, सही चर्चा रही ये और सही बात है कि चार-पांच हजार ब्लोगस के होने का मतलन हिन्दी का विकास नही होता।

      जवाब देंहटाएं
    22. संडे की चर्चा पर मंडे को टिप्पणी दे रहा हू.. चर्चा हमेशा की तरह बहुत सारी पोस्ट साथ लिए हुए थी.. ये मेहनत का काम सिर्फ़ आप ही कर सकते है अनूप जी.. बहुत बधाई इस मेहनत से लिखी गयी पोस्ट के लिए..

      जवाब देंहटाएं

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