शनीचरी चर्चा का काम निठल्ले तरुण के जिम्मे है। लेकिन आज वे कुछ ज्यादा ही व्यस्त हैं सो हम हाजिर हैं। हमको ही बांच लीजिये। चिंता न करें ज्यादा बोर न करेंगे।
कल एक विवादास्पद च हास्यास्पद घटनाक्रम हुआ। हुआ जे कि नवभारत टाइम्स अखबार में १७ दिसम्बर को सीमा गुप्ता जी की एक कविता छपी थी। कविता ये थी:
ख्वाबों के आंगन ने अपना
कुछ ऐसे फिर विस्तार किया
वर्तमान ने हक़ीकत
का दामन ठुकराया
अस्तित्व ने अपने
सामर्थ्य से मुख फेरा
शीशमहल का निर्माण किया।
विवशता का परित्याग कर
दर्पण मचला जिज्ञासा का
भ्रम की आगोश में
मनमोहक श्रिंगार किया
बहते दरिया की भूमि पर
एक नींव बनी अरमानों की
हर तृष्णा को पा लेने की
निरर्थक एक प्रयास किया
ख्वाबों के आंगन ने अपना
कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया।
इस कविता पर तमाम लोगों के अलावा हमारे अनुपम अग्रवाल जी ने भी कुछ टिपियाया था। अन्य काव्यप्रेमियों की तरह अनुपमजी अक्सर सीमा जी और अन्य कवियों के ब्लाग पर उनकी पोस्ट की हुई कविताओं के ही कुछ अंश दुबारा लिखकर टिपियाते रहते हैं। वही कुछ उन्होंने यहां भी किया और कविता के ये अंश टीप के नवभारत टाइम्स पर सीमाजी की पोस्ट पर टिपिया दिया।
दर्पण मचला जिज्ञासा का
भ्रम की आगोश में
मनमोहक श्रिंगार किया
बहते दरिया की भूमि पर
एक नींव बनी अरमानों की
हर तृष्णा को पा लेने की
निरर्थक एक प्रयास किया
ख्वाबों के आंगन ने अपना
कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया।
अब पता नहीं क्या हुआ कल के दिन उनकी टिप्पणी उनके नाम से कविता के रूप में छप गयी। ऊपर दी गयी कविता छपी और कवि का नाम अनुपम अग्रवाल।
सीमाजी ने इस बात की सूचना नवभारत टाइम्स वालों को दी और नवभारत टाइम्स वालों ने मामला फ़ास्ट ट्रैक अदालत में लेकर अनुपम अग्रवालजी को चोर कवि बता दिया। न सिर्फ़ चोर कवि बताया वरन एक ठो तुकबंदी भी ठेल दी। जिसका लब्बोलुआबन याद से दोहराव नीचे कर रहे हैं हम:
अनुपम अग्रवाल है एक कवि चोर,
उसे नहीं है छंद का कुछ ज्ञान
कविता भेजता है चोरी की
समझ सबको अज्ञान ....
यही नहीं उनके नाम से छपी कविता में टिप्पणी में लिखा भी गया कि यह कविता चोरी की है। अनुपम अग्रवाल ने इसे चुराकर भेजा है। इसे इसलिये यहां प्रकाशित किया गया जा रहा है ताकि सबको पता चल सके कि वो चोर कवि है।
नवभारत टाइम्स में छपे इस तरह के बयान देखकर मुझे किंचित अफ़सोस भी हुआ कि केवल उनकी कविता हटा देने से जो काम हो सकता था उसको मध्ययुगीन न्याय के अन्दाज में सरे आम कोड़े लगाने जैसे अंदाज में किया जा रहा है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि तकनीक मानसिकता में बदलाव नहीं लाती।
बहरहाल,अनुपम अग्रवालजी चोर कवि की उपाधि से विभूषित हुये। उनकी बेइज्जती खराब हो गयी। नवभारत टाइम्स वालों ने उनको चोर की उपाधि प्रदान करने की सूचना और अपनी फ़ास्ट ट्रैक अदालत की कार्यवाही की मेल उनको कर दी।
आपको बताते चलें कि अनुपम अग्रवाल हमारे कालेज के सीनियर हैं। ब्लाग जगत में ही आकर उनसे मुलाकात हुई। वे जिंदगी नाम से अपना ब्लाग लिखते हैं। एक हिंदी में और एक अंग्रेजी में।
हमने उनको फोनियाया और कहा गुरुजी अपने कालेज मोनेरेको का ये अलिखित सिद्धान्त बताया गया है कि मोनेरको वाले चोरी करते हैं इसमें कोई बड़ी बात नहीं लेकिन चोरी करते हुये पकड़े जाना ये तो बड़ी खराब और मोनेरको की शान पर बट्टा लगाने वाली बात है। ई कैसे हुआ?
अनुपमजी ने बताया कि उन्होंने नवभारत टाइम्स को कोई कविता अपने नाम से नहीं भेजी। हां सीमाजी की कविता पर कमेंट किया था उसी को उन्होंने कविता के रूप में छाप दिया होगा। हम क्यों किसी की कविता अपने नाम से भेजेंगे?
हमने कहा देख के बताइये।
उन्होंने अपनी मेल-वेल देखी और शाम को कन्फ़र्म किया कि उन्होंने सीमाजी की कविता पर कमेंट किया था। उनकी ही कविता के कुछ अंश टीप कर। उसे ही नवभारत टाइम्स वालों ने उनके नाम से कविता के रूप में छाप दिया। अपनी मेल में उन्हॊंने नवभारत टाइम्स को लिखा:
धन्यवाद और साधुवाद आपको इस बात के लिए, कि आपने पूरी पंचायत कर दी और बाद में स्पष्टीकरण मांग रहे हैं .यही काम पहले भी किया जा सकता था .
पता नहीं क्यों आपने मुझे अपराधी मानने और अपना निर्णय जनता की अदालत में देने के पहले मुझे मेल क्यों नहीं किया .जोकि आप बाद में कर रहे हैं .
जो कविता आपने मेरे नाम से छापी है वो रेस्त्रुक्टुरिंग[restructuring] मैंने सीमा जी का मेल आने पर [जिसमें नवभारत टाईम्स का लिंक दिया था] उसपर टिप्पणी के रूप में भावों की तारीफ़ में किया था
और उसे सीमा गुप्ता जी की पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में आपको मेल[ १७ या १८ दिसम्बर को] किया था.[जो आपको मेल की तारीख से स्पष्ट हो जायेगा]टिप्पणी स्वीकार की सूचना आप बाद में देते हैं [जैसा कि आपने लिखा है]
मैंने ऐसा करने के लिए उनकी अनुमति ले रखी है |
मै सीमा जी के ब्लॉग का बहुत बड़ा प्रशंशक हूँ .और उनकी रचनाओं पर और उनके ब्लॉग पर मैंने ढेरों टिप्पणी इस या और किसी तरह से की हैं .
मैंने आपको कोई मेल पाठक पन्ने में आमंत्रण [पाठक पन्ने में] नहीं भेजी है .
अगर आप टिप्पणी को नयी रचना में छाप दें और किसी को भी चोर वगैरह कहें तो आप स्वतंत्र हैं .
क्योंकि भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता निहित है.
बाद में नवभारत टाइम्स वालों ने देखा तो पाया कि एक पाठक के रूप में अनुपम अग्रवालजी की टिप्पणी को उन्होंने उनकी कविता के रूप में छाप दिया और कालान्तर में उनको चोर की उपाधि से विभूषित करते हुये उनकी चोर शान में कविता भी लिख मारी। नवभारत टाइम्स वालों ने अपनी इस अक्षम्य भूल के लिये अफ़सोस जाहिर किया है। वो तो कहो अनुपम अग्रवालजी के पास इस बात की मेल-सेल थी कि उन्होंने कमेंट भेजा है कविता नहीं वर्ना तो वे चोर कवि के रूप में ही जाने जाते।
नवभारत टाइम्स ने अनुपमजी के नाम से कविता हटा दी, उनकी शान में लिखी चोर कवि वाली तुकबंदी हटा दी। लेकिन सीमाजी की प्रकाशित कविता पर ये टिप्पणी जस की तस बरकरार है:
sure , ambala का कहना है :इतनी नायाब कविता है चोर तो चुराएगा ही ,चलो चोर को भी धन्यवाद. एक तो एक सुंदर सी रचना को पाठकों के सम्मुख दोबारा लाने को दूसरा किसी के नाम के साथ साथ अपना नाम भी रोशन करने के लिए. वैसे अनुपम जी आपने इस कविता को चोरी करके साहित्यिक रचनाओं की अनमोल छवि को मूल्यवान बना दिया।
इस बात से निम्न शिक्षा मिलती है:
१. इज्जत बचानी है तो ई-मेल बचाओ।
२. कविता पर कविता की कट-पेस्ट करके मत टिपियाओ।
३.अच्छा लिखने से बाज आओ और अपनी लेखन की चोरी बचाओ।
४. बाहर मामला दायर करने के पहले मसले अपने घर में निपटाओ।
इस घटना से रवीश कुमार के इस आवाहन को पूरा करने का मन करता है-आओ मिलकर मीडिया की आलोचना करें । नवभारत टाइम्स के सम्पादक मंडल में इतनी अकल नहीं कि अगर उनको लगा था कि कविता चोरी की है जो कि उन्हीं के यहां छप चुकी है तो उसे मिटा देते और अलग से बता देते। तुकबंदी करना और मामले का रायता फ़ैलाना जरूरी तो नहीं था।
वैसे अगर आप सच में अपने ब्लाग से चोरी बचाना चाहते हैं तो ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय देख लीजिये।
हमें पूरा भरोसा है कि अखबार के कारण हुई गलतफ़हमी दूर हो जाने के बाद अनुपमजी और सीमाजी एक-दूसरे के लिये अच्छे कवि-प्रशंसक बने रहेंगे। अनुपमजी तो हमारे कालेज के लोगों की तरह बिंदास हैं और कल भी ठहाका लगाते हुए कह रहे थे -बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा? लेकिन सीमाजी कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हैं। हमें डर है कि अनजाने उनको जो अपराधबोध सा हो रहा होगा कहीं उससे उनकी आंसू वाली कवितायें और न बढ़ जायें। हमको फ़िर से लिखना पड़ेगा:
आंखे बोलीं आंसू बेटा
निकलो जरा आंख तक जाओ
आंसू बोला-जईबे अम्म्मा
पहिले ये क्रीम का कचरा तो हटवाऒ।
विवेक सिंह अपनी बालसुलभ हरकतों से बात नहीं आते। कवितागीरी करे पड़े हैं:
बहुत मज़ा है, सीमा गुप्ता जी को हँसवाने में ।
बहुत मज़ा है, चर्चा में उल्लेख किए जाने में ॥
बहुत मज़ा है, ज्ञान दत्त पाण्डेय को टिपियाने में ।
बहुत मज़ा है, कुश से दूरभाष पर बतियाने में ॥
अभी हड़काये जायेंगे तो सारी कवितागीरी हवा हो जायेगी।
ज्ञानजी भी कट-कापी पेस्ट करके कमेंट चुराने लगे हैं। किसी नामचीन ब्लागर के कमेंट को चुराकर उन्होंने हमारे ब्लाग कल ये टिपियाया:
आप बहुत अच्छा लिखते हैं। शुभकामनायें।
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आइयेगा।
सागर नाहर ब्लागजगत के पहले वीरू हैं जो टंकी पर चढ़कर उतर आये थे। ब्लाग लिखना बंद किया और जनता की बेहद मांग पर वापस आये। उनके बच्चे ने भी जब ब्लाग लिखना शुरू किया तो सागर ने लिखा:पूत के पाँव पालने में।
मकर संक्रात्रि पर आभाजी ने युनुस और ममताजी को तहरी खिलाई खुद भूखी रहीं मतलब निर्जला व्रत। अब बताइये ये मामला मानवाधिकार आयोग के सामने ले जाने लायक है कि नहीं। आप पूरा देख लीजिये तब बताइये कोई हड़बड़ी नहीं है।
एक लाइना
- कहां गयी जीवन की प्रचुरता? : गूगल सर्च मारिये मिल जायेगी
- दिल्ली का पुराना किला या इन्द्रप्रस्थ: जो मन आये समझ लो जी कोई टोकेगा थोड़ी
- आओ मिलकर मीडिया की आलोचना करें : आते हैं तब तक आप शुरू करो!
- मुझे यकीन है : कि भ्रम की दवा हकीम लुकमान के पास होगी
- पूरा माहौल ही 'बेल आऊटीय' हो जायेगा: बेल को आउटै करना होगा काहे से कि इसका शरबत तो गर्मी में पिया जाता है न
मैं भी नही जानता तू भी नही जानता : मतलब अंधै अंधा ठेलिया- कटें मत...डटे रहें !: मुला कईसे?
- आगत की आहट : अभी तो शुरुआत है इतने में ही कंपकपाहट!
- इसीलिये लिखा नहीं गीत नया कोई भी : जे भली करी आपने गीतकार जी!
- इन बच्चों को क्या कहिये : बच्चा ही कहें और क्या कुछ अलग सा कहना चाहते हैं?
- आग की लपटों वाली बेल और मेरा निवास : एकदम आसपास
- इन नजरो का कुसूर है मुलाकात न हो सकी. : किसी अच्छे आंख के डाक्टर को दिखाओ
- संरक्षण जरुरी हैं पर इतना नहीं की हम गुलामी की आदत ही डाल ले : आई बात समझ में?
- जो भी हुआ सोचा न था- ऐसा पहली बार हुआ : अब हमेशा होगा बार-बार लगातार रिन की झनकार की तरह
- पर बात चलनी चाहिए : चलाइये जी कौन रोकता है
- सौ बात की एक बात है: बाकी निन्यानबे किधर गयीं?
- रेप करेने वाले और रेप करवाने वाले दोनों किस्म के लोग पैदा हो गए है : घोर कलयुग है
- उन सारी नियामतों के नाम : चंद फ़ोटो थोड़े शब्द बस हो गया काम
- कब भरेगा पाप का घड़ा : कैसे भरेगा सब चू जा रहा है
- धैर्य:मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र : कैसे मान लें हमारे ब्लाग पर कभी टिपियाता नहीं
- ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो :लुकमान चाचा : भाव तो बताओ। कुछ छूट भी मिलेगी?
- जल पुनर्भरण आज की आवश्यक्ता : फ़िर देखेंगे यार
बहु-हाथी जांच उर्फ अंधों का हाथी : हमारा सबसे पक्का साथी
मेरी पसंद
बचपन में कविता लिखी
तो ऐसा उल्लास छलका
कि कागजों के बाहर आ गया।
यौवन की कविता
बिना शब्दों के भी
सब बुदबुदाती गई ।
उम्र के आखिरी पड़ाव में
मौन शून्यता के दरम्यान
मन की चपलता
कालीन के नीचे सिमट आई।
अब उस पर कविता लिखती औरत के पांव हैं
बुवाइयों भरे।
वर्तिका नंदा
नवभारत टाईम्स के संपादक ने अपनी गलती मांगते हुए अनुपम जी को ये मेल किया है कल जो मै यहाँ पेस्ट क्र रही हूँ.
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुपम जी,
मैं नहीं समझ पा रहा कि किस मुंह से आपसे क्षमा याचना करूं। यह अपराध क्षमा किए जाने लायक है ही नहीं। गलती मेरे विभाग के सदस्य की थी जिसने कॉमेंट में आई कविता को स्वतंत्र रचना समझ लिया। लेकिन संपादक होने के नाते उस गलती की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी ही है।
मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूं। यह अपराध माफी के लायक भी नहीं है इसलिए क्षमा नहीं मांगूगा। शायद यह सही भी है कि मैं इस अपराध के बोझ से जीवन भर दबा रहूं ताकि भविष्य में कभी कोई ऐसी घटना हो तो मैं बिना जांच-परख के कोई कदम नहीं उठाऊं।
इस पूरी घटना से आपके सम्मान और भावना को जो क्षति पहुंची, उसके लिए आप जो भी सज़ा सही समझें, मुझे स्वीकार्य है।
नीरेंद्र नागर
संपादक, नवभारतटाइम्स.कॉम
रचना की चोरी का किस्सा तो काफी रोचक हो गया. चलिए इस बहाने यह भी पता लग गया की किस किसम के काजी लोग अखबार चला रहे हैं.
जवाब देंहटाएं"अब इस वाक्य पर रही मेरी बात तो , भी रहा हो जाने अनजाने इस पाप की भागीदार तो मै बन गयी हूँ और एक असहनीय अपराधबोध की पीडा से गुजर रही हूँ....अनजाने मे ही जो कष्ट अनुपम जी को इस वजह से हुआ है और जो मानसिक पीडा उन्हें झेलनी पडी है उसकी लिए मै उनसे क्षमा प्रार्थी हूँ . उम्मीद है वो दिल से मुझे माफ़ करेंगे ...गलती नवभारत टाईम्स के सम्पादक की थी जो उन्होंने बिना जाने परखे कदम उठा लिया और जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक शायद अनुपम जी को पीडा और दुःख का अनुभव हो चुका था. अनुपम जी से फ़िर एक बार क्षमा याचना सहित..."
जवाब देंहटाएंRegards
पूरा किस्सा यादगार हो गया .
जवाब देंहटाएंज्ञान जी को भी बिना रट्टाफिकेशन के याद हो जाएगा :)
जैसे मुझे फुरसतिया पर की गई उनकी टिप्पणी याद हो गई है .
कल इस टिप्पणी को पढकर में ज्ञान जी के कारण अब तक सबसे ज्यादा हँसा !
अनुपम जी का कहना कि "बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?"एकदम मस्त लगा !
जब उनको कोई मलाल ही नहीं तो हम भी क्यों सुहानुभूति लुटाएं . बल्कि हम तो सोच रहे हैं कि हाय हुसैन हम उनकी जगह क्यों न हुए . पर हमें तो सीमा जी की हा हा हा हा के सिवा कुछ समझ में ही नहीं आता . वैसे ब्लॉगिंग से पहले हमने नवभारत पर कमेण्ट करके काफी टाइम पास किया है .
सीमा जी की तो इसमें कोई गलती लगती नहीं . फिर जबरदस्ती का खेद व्यक्त क्यों ?
@ नीरेंद्र नागर
संपादक, नवभारतटाइम्स.कॉम
बहुत मजा है, अनुपम को चोरी में फँसवाने में !
अनुपम जी के साथ जो हुआ वो खेदजनक है. एक प्रतिष्ठित अखबार से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. हालांकि जब क्षमा मांग ली गई है तो आगे कहने को भी कुछ नहीं बचता गर वो भविष्य में सचेत रहने के अपने वादे पर बने रहें.
जवाब देंहटाएंचर्चा बढ़िया रही. आभार.
sharamnaak magar rochak hai
जवाब देंहटाएंबड़े बड़े अख़बारो में ऐसी छोटी छोटी बाते होती रहती है..
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ संपादक महोदय ने ये नही कहा... अब जब क्षमा माँग ली गयी है तो फिर कहने को कुछ बनता नही है..
ज्ञान जी के सेंस ऑफ ह्यूमर के लिए 100 नंबर...
"आओ मिलकर मीडिया की आलोचना करें : आते हैं तब तक आप शुरू करो! "
वैसे ये एक लाइना तो मज़ेदार है .. क्या केने जी क्या केने टाइप
@अखबार से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.
जवाब देंहटाएंसमीरजी को ऐसी उम्मीद टीवी वालों से है :) अखबार वालों से नहीं. हम तो दोनो से ही कोई उम्मीद नहीं रखते.
@अच्छा लिखने से बाज आओ और अपनी लेखन की चोरी बचाओ।
साधू साधू. आज से ही अमल होगा.
ज्ञानवर्धन के लिये धन्यवाद्।मगर चोरो से बचे कैसे ये भी बता देते महाराज तो किरपा होती।
जवाब देंहटाएंनवभारत प्रकण मे जो कुछ हुआ, वो शायद अब निपटा हुआ समझा जाना चाहिये. अब हम हिंदुस्तानी है और क्षमा करना कराना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है तो अनुपमजी से भी निवेदन है कि माफ़ी दे दी जानी चाहिये.
जवाब देंहटाएंपर फ़ुरसर्तिया जी आप भी अनुपम जी से चुहुल करने से बाज नही आ रहे हैं, एक तरफ़ आप उन्हे सीनियर बता रहे हैं और दुसरी तरफ़ आप उनका लिंग परिवर्तन किये दे रहे हैं. अटल जी की स्टाईल मे ये अच्छी बात नही है. :)
आपके द्वारा आज की चर्चा मे रचित इस वाक्य पर गौर किया जाये "आपको बताते चलें कि अनुपम अग्रवाल हमारे कालेज की सीनियर हैं।"
हम इस "कालेज की सीनियर" वाक्य पर घोर आपति प्रकट करते हैं और हमे लगता है कि आप भी नवभारत के साथ मिले हुये हैं.
लिहाजा आप इस गलती पर अनुपम जी से तुरंत क्षमा याचना करें. वर्ना चिठ्ठा चर्चा अदालत मे आपके खिलाफ़ मानहानी का मुकदमा चलाया जायेगा. :)
रामराम.
रामराम.
इस अथश्री महाभारत कथा, नहीं-नहीं, अथश्री नवभारत कथा,में नया कुछ है नहीं, बस इसकी पुष्टि ही हुई कि सारे संसाधनों पर जिन्हें अधिकारनियुक्त किया गया है, वे कैसे आँख के अँधे और गाँठ के पूरे होते हैं। जो न आगा देखते हैं न पीछा। बस कहीं से भी कुछ भी उठाकर छाप दो, हो गया नाम का काम पूरा। अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं पर कमोबेश यही स्थिति आमादा है। इसके अलग अलग तरह के प्रतिफल होते,निकलते हैं। ये प्रतिफल बहुधा साहित्यिक उठापटक या मनचाहे लेखकों को उठाने-गिराने में दक्ष अधिकारयुक्त जन छिपते-दिखाते,करते रहते आए हैं। और उसका खामियाजा भी हमेशा से कईयों को भोगना पड़ता रहा है,आया है। बस,इस बार इसके उजागर होने की दिशा एक अलग-ही विकृत इतिहास रच गई है।
जवाब देंहटाएंआपने मोराल ऒफ़् द स्टोरी में अच्छे सूत्र थमाए हैं।
भगवान् भली करे।
@अनिलजी, आप देखिये हमने ब्लाग चोरों से बचने के सुगम उपाय दिये हैं। लिंक ये रहा- http://hindini.com/fursatiya/?p=238
जवाब देंहटाएं@ ताऊ जी, आपके बताये अनुसार हमने ’की’ का ’के’ कर दिया है। वैसे हम यह भी कर सकते थे कि ठीक करने के बाद कहते -आप ठीक से देखिये हमने सही तो लिखा।
@ गलती होने बाद भी नवभारत टाइम्स के नागरजी की इस बात के लिये तो तारीफ़ करनी चाहिये कि उन्होंने अपने स्टाफ़ की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और गलती मानी। लेकिन जो तुकबंदी की उनके लोगों वो न करते तो अच्छा रहता।
@ सीमाजी, अब इस मामले में और दुखी न हों। आपकी कोई गलती नहीं थी। जो हुआ सो हुआ।
हद है.. ऐसे कैसे नहीं बचा कुछ लिखने के लिये? कल हम दू दू ठो पोस्ट ठेले थे ऊ कहां गया?
जवाब देंहटाएंकम से कम एक बार प्यार से परशन्तवा ही कह कर बुला लेते.. :)
एक लाईना हमेशा की तरह धांसू। वर्तिका जी की कविता तो कल ही पढ ली थी।
जवाब देंहटाएंकवि की कविता का जो ansh पसंद आता है उस को लिख के batatey हैं की यह hissa jyada पसंद आया,\ aksar ऐसा ही tippani kartey समय बहुत से pathak kartey हैं.अनुपम जी के साथ जो हुआ वह सच में durbhagya purn है.एक सबक सभी को मिल गया जो आप ने चार binduon में लिखा है.
जवाब देंहटाएंdhnywaad.
पहले पूरा आलेख पढ़कर दुःख हुआ .पर ये भी अच्छा है की नवभारत टाईम्स वालो ने सदाशयता दिखाते हुए अपनी गलती स्वीकार की.....अनुपम जी आदरणीय व्यक्ति है वे जरूर व्यथित हुए होगे .
जवाब देंहटाएंआपका चिट्ठा चरचा करने का अलग ही अंदाज है । और एक लाईना का तो जवाब ही नही ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबड़ी दुखद घटना है, चलो जो हुआ सो हुआ, भूल जाओ
जवाब देंहटाएं---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम । तकनीक दृष्टा/Tech Prevue । आनंद बक्षी
chittha chracha ka anand
जवाब देंहटाएंhi kuch or he
नवभारत टाईम्स के किसी जोशीले पत्रकार ने आदरणीय अनुपम अग्रवाल का जो बेवजह जो अपमान किया उसकी भरपाई तो नही हो सकती ! व्यथित ह्रदय की वेदना सिर्फ़ संवेदन शील ही महसूस कर सकते हैं ! मगर फिर भी नीरेंद्र नागर का पत्र सराहनीय है !
जवाब देंहटाएंयही तो कारण है कि वकील लोग लिक्खाड़ों को पसंद नहीं करते। सारा मामला खुदई बैठ कर निपटा लिए। जरा कोरट कचहरी होती। दुई चार वकीलों को काम मिलता। अखबारों में खबरें छपती। तो अऊर नाम होता।
जवाब देंहटाएंखैर, अबकी बार तो जो हुआ सो हुआ। आइंदा ध्यान रखियो।
"बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?" इ बात में दम है, तनिक हमको भी कोई बदनाम करा दे भाई ! मेल क्या फाइल फोल्डर डिलीट करने में भी हम उस्ताद हैं :-)
जवाब देंहटाएंआप सब ने दिल से घटना को महसूस किया ,मेरे पास कई दोस्तों के फोन भी आए.
जवाब देंहटाएंमेरी समझ में किसी ने भी जान कर यह नहीं किया.और अनजाने में किसी से भी हो सकता है.
अनूप जी की सिखाने की शैली का वैसे भी कोई जवाब नहीं है .
आदरणीय सीमा जी का मै पहले भी प्रशंशक था और आगे भी रहूँगा .
उनके ब्लॉग पर कविता और साथ की तस्वीरें बहुत अच्छी होती हैं .
नागर जी एक अच्छे इंसान होने के साथ एक अच्छे टीम लीडर भी हैं .
मै सभी का धन्यवाद देना चाहता हूँ .
आज सुबह चिट्ठा चर्चा पढ़ कर ही यह प्रकरण पता चला....तुरंत अनुपम जी को फ़ोन लगाकर घटना को खूब रस ले कर सुना....वैसे ये घटना अपनी तरह की पहली है और हम ब्लॉगियों की बढ़ती ताकत का सबूत है
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही. आभार.
जवाब देंहटाएंनमस्ते, इस सारे कांड का गुनहगार आपके सामने है। मैंने अनुपम जी के प्रति जो अन्याय किया है, उसका प्रतिकार तो हो नहीं सकता। लेकिन उम्मीद है, यह घटना मुझे भविष्य में और सतर्क रहने और अपनी ज़िम्मेदारी को न्यायपूर्ण तरीके से निभाने में मदद करेगी।
जवाब देंहटाएं@ नीरेंद्र नागर , जो भी हो आपने अपने विनम्र व्यवहार से सबको अपना प्रशंसक बना लिया . चिट्ठाचर्चा में इसी बहाने आप आए . स्वागत है !
जवाब देंहटाएंआप हमारे ब्लॉग पर आये और हमारा उत्साह वर्धन किया। कोटिश: धन्यवाद। इस लिये हम यात्रा में भी पूअर नेट कनेक्शन के बावजूद आपको धन्यवादात्मक टीप दे रहे हैं।
जवाब देंहटाएंथेंक्स अ लॉट!