गत सप्ताह की मेरी चर्चा में पंजाबी के अमर रचनाकार स्व.शिवकुमार बटालवी की एक रचना ( कुज रुख मैंनू पुत लगदे ने कुज लगदे ने माँवाँ - अर्थात् कुछ वृक्ष मुझे पुत्र की भूमिका में दिखाई देते हैं व कुछ माँओं की) पर ऋषभ जी ने उनके स्वर को सुनने की इच्छा व्यक्त की थी, तो आज सब से पहले बटालवी जी को ही देखिए सुनिए -
अन्यभारतीय भाषाओं से
राजस्थानी के ब्लॊग्स की चर्चा कभी संजय जी करते रहे हैं, आज उनके राजस्थानी चिट्ठे (घणी खम्मा) की अन्तिम प्रविष्टि (नवम्बर२००८) का आनन्द लें व उनसे आग्रह करें कि इसे अद्यतन रखा करें व नियमित कुछ न कुछ लिखते -जोड़ते रहें।
राजस्थान स्यूं सम्बन्ध
राजस्थान स्यूं म्हारा कै सम्बन्ध है? गणी बार सोचूं. म्ह तो ठीक से रजस्थानी लिख भी ना सकुं. पण म्हारो राजस्थान स्युं वो ही सम्बन्ध है जको एक जननी स्यूं हुव. या जको एक परणिज्योड़ी बेटी रो मा-बाप र घर स्यूं हुव. जनम री भूमि खिंचे पण कर्मभूमि स्यूं तकदीर जूड़ेडी रेवे, ससरा जियां. हर्याभर्या दरखत नीचे बैठ मरूभूमि न याद करां हां.....
प्रभाकर पांडेय के भोजपुर नगरिया में
भोजपुरी में संखेयन कुली केअंकी में लिखे के होखे तS हिंदी की तरे ही लिखल जाला पर अगर सबदन में लिखे के होखे तS तनी-मनी अंतर हो जाला। आईं सभें ए पाठ में एही संखेयन के हिंदी, भोजपुरी अउरी अंगरेजी में लिखल जाव अउरी देखल जाव की विसेसकर हिंदी अउरी भोजपुरी में का अंतर बा।
को देखना हो तो इसे पूरा पढ़ा जा सकता है। अभी अभी उन्होंने त्रिभाषी गिनती सिखाई है, जिसे सीखना बहुत रोचक व ज्ञानवर्धक है।
आज १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयन्ती है। मराठी में सत्यवाणी (शशि पवार) ने सौ वर्ष पूर्व व्यक्त किए विवेकानन्द के विचारों की मीमांसा की है। साथ ही यह भी बताया है कि आज का दिन विश्वभर में युवक दिवस के रूप में मनाया जाता है।भारत के दुर्भाग्य के साथ सम्पादक की टिप्पणी हेतु यहाँ चटका लगाएँ।
लिखाळ ने गीतांजली के एक गीत का मराठी अनुवाद किया है और उसका अंगेजी रूप भी यथावत् दिया है, किन्तु इन्हें यह नहीं पता कि यह गीत है कौन-सा, अर्थात् इसका शीर्षक क्या है। आप में से कोई सहायता करना चाहेगें? मूल प्रविष्टि का आरम्भिक अंश देखें -
रविंद्रनाथ टागोरांच्या गीतांजली मधल्या मला आवडणार्या एका कवितेचा स्वैर अनुवाद करत आहे.
कवितेचे नाव मला माहित नाही. बहुधा कवितेला स्वतंत्र नावंच नसावे. मी माझ्या समजूतीने एक नाव दिले आहे.
निर्मनुष्य नदीच्या काठी उंच गवतातून जाणार्या तिला मी विचारले,
' मुली, पदराआड दिवा झाकून तू कुठे बरं चालली आहेस?'
माझं घर अगदीच काळोखे आणि एकाकी आहे, तुझा दिवा मलादेतेस का?
क्षणभर काळेभोर डोळे रोखून तिने त्या धूसर प्रकाशात माझ्याकडे पाहिले
आणि म्हणाली, ' मी नदीवर आले आहे ती दिवस मावळताना हा दिवा नदीत सोडून देण्यासाठी'
उंच गवतात स्तब्ध राहून मी पाहिली ती थरथरणारी लहानशी ज्योत
वाहून गेली प्रवाहासोबत कुणालाच उपयोगी न पडता.
और अब उनकी पढ़ी मूल कविता का अंश भी देखें
On the slope of the desolate river among tall grasses I asked her,
'Maiden, where do you go shading your lamp with your mantle?
My house is all dark and lonesome--lend me your light!'
she raised her dark eyes for a moment and looked at my face through the dusk.
'I have come to the river,' she said, 'to float my lamp on the stream
when the daylight wanes in the west.'
I stood alone among tall grasses and watched the timid flame of her lamp
uselessly drifting in the tide.
विश्व से
क्रिसमस के त्यौहार से संबन्धित आयोजन विश्वभर में पूरे हुए। कुछ दुर्लभ व मनोहारी ३० चित्रों का एक संकलन फ़ोटोग्राफ़ी के कमाल दिखाता भव्यरूप में देखा जा सकता है
आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि अमेरिका के १४% बालिग निरक्षर हैं यानि आंकड़ा प्रति ७ में से १ के निरक्षर होने का है। फिर हश्र क्यों न हम तो डूबे हैं सनम तुम को भी ले डूबेंगे का होता?
यदि आप सादी सोच के साथ अपने जीवन को आयडियल के रूप में ढालना और डिज़ायन करना चाहते हैं तो आपके लिए कई जानकारियाँ व योजनाएँ महत्वपूर्ण व काम की हो सकती हैं। सहज व सरल सोच का यह पथ अनुसरण में कैसा प्रतीत होता है, अवश्य बताइयेगा।
Having this picture in front of us, we can clearly see the life areas we need to focus on in order to feel balanced. In reality, we can’t abandon any of these life areas for long without feeling imbalanced and unwell.
Now imagine that this is a wheel. How well will it roll? If it isn’t round, or close to being round, it will tip over, right?
What I love about drawing this picture is that we can capture and visualize the stress and psychological imbalance we’ve been feeling and carrying around with us. Having a visual representation helps to release some of that energy we’ve been grasping onto.
Pick one life area that makes you cringe. Alternatively, pretend you have this picture on the wall for all your friends to see. Which one makes you want to tear the picture off the wall? This is the area you should focus on first.
पुस्तकप्रेमी होना सबसे उत्तम प्रेमी बनना है क्योंकि पुस्तकें सबसे अच्छी मित्र होती हैं। जो लोग इस प्रेम में पड़े हैं उनके लिए ५० से अधिक महत्वपूर्ण साईट की लिस्ट में से अपने चयन की सुविध का लाभ उठाने का भरपूर अवसर है। काश, हिन्दी में भी इस का ऐसा ही उपाय हो।
अंश चर्चा : अभिलेखागार से
धृतराष्ट्र हमेशा की तरह कॉफी के घुँट लेते हुए संजय से मैदान-ए-चिट्ठाजगत का हालचाल पूछ रहे थे.
संजय ने अपने लेपटोप पर संजाल का संचार किया और दृश्य उभरने लगे.
धृतराष्ट्र : क्या बात हैं, संजय? इतने संशय में क्यों हो? नेट नहीं चल रहा क्या?
संजय : नहीं बॉस, सब ठीक हैं पर संजाल का संचार होने पर भी नारदजी के करतालों की ध्वनि क्यों नहीं सुनाई दे रही, इससे हेरान हूँ.
धृतराष्ट्र : जो भी हो, सम्बन्धीत चिकित्सक नारदजी को तत्काल स्वस्थ कर देंगे यह तुम्हारे बस का रोग नहीं, तुम योद्धाओं को टंटोलो.
संजय : जी, मैं देख रहा हूँ... देवी रमा को अनुभूति हो रही हैं कि सच्चे प्रेम का मूल्य कोई नहीं समझ पा रहा वहीं रिश्ते अपना मूल्य मांगते हैं.
और अवधियाजी बिना थके लगातार पौराणीक कथाएं परोस रहे हैं. जहाँ इसके रसिको को आनन्द आ रहा है वही हिन्दू मिथको से अनजान योद्धा सर खुजा रहे हैं. आज आनन्द ले हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष के जन्म की कथा का.
धृतराष्ट्र : तुम फिर से उलझन में दिख रहे हो, संजय...
संजय : हाँ महाराज, हैरान हूँ यह चिट्ठाचर्चा नामक स्थल नहीं है फिर भी यहाँ चिट्ठाचर्चा की गई हैं.धृतराष्ट्र : यह पराक्रमी योद्धा कौन है?
संजय : ये नाहर हैं सागरचन्द, जो दहाड़ कर दस्तक दे रहे हैं. इनकी समीक्षा पढ़े तथा नेट प्रेक्टिस का हौसला बढ़ाए.
धृतराष्ट्र : फिर कहाँ खो गए संजय?
संजय : कुछ नहीं महाराज योद्धा रविजी पुस्तचिन्हक लगाने के गुर सिखा रहे हैं उसी का लाभ उठाते हुए पुस्तचिन्हक लगाने की कोशीष कर रहा था.
धृतराष्ट्र : हो जाए तो आगे बढ़ो..
संजय : जितेन्द्र चौधरी फिर एक उपयोगी जानकारी ले कर मैदान में है, इसबार ये सिलसिलेवार बता रहे हैं वर्डप्रेस 2.0.4 से 2.0.5 के अपग्रेड करने का तरीका.
और साथ ही दर्शनो का लाभ ले, पुण्यभूमि भारत अवतरीत हुई जापान के एक कौने टोक्यो में.
तो आज इतना ही महाराज. जय जम्बूद्वीप.
धृतराष्ट्र : यह क्या बला हैं?
संजय : अपना इंडीया महाराज.
धृतराष्ट्र : अच्छा॥अच्छा....
स्त्री-लेखन
"आप कुछ कहें, तो सुनेंगे; सुनेंगे तो बोलेंगे"- गुलज़ार। इस नज़रिए से, हम सोचते क्या हैं? और चाहते क्या? साथ ही पाते क्या हैं? दरअसल इन सबके बाद तथा इस सब के बावजूद हम कहते और करते क्या हैं? 'ताना-बाना' इसी रूप में रूबरू होता रहेगा...
ताना बाना में विधु की डायरी के कुछ पन्ने, नगर के कुछ चित्र, जंगल, नदी- तालाब -समंदर, परिवारी और समाज मिल जाएँगे. भाषा की सहज प्रवाहमयता और सहज अभिव्यक्ति विधु के लेखन की शक्ति है। कम समय में इसी विशेषता के कारण तानाबाना ने अपनी पहचान बना ली है।लेखन की शैली आश्वस्त करती है| आत्ममुग्धता का भाव विधु के लेखन में नहीं है, यह एक बड़ा महत्वपूर्ण व सराहनीय सकारात्मक उपस्थिति दर्जा करवाने वाला गुण है; विशेषत: हिन्दी नेट की आत्मरत दुनिया में.
ताना-बना पर इनकी एक रचना का यहाँ आस्वादन करें -
मेरे शहर मैं २ दिसम्बर १९८४,सूरज पे हमें विशवास है
बोलों पे जड़ दिए तालेसूरज कैद कर लिया था किसीनेसन्नाटा था ,हवाए नाराज ,पेड़ उदास ,मेरे शहर मैं ख़ास अर्थ होता हैधूपऔर हवा के निकलने बिखरने कासिमट गए थे , तालाब,समीक्षित हो गया आकाश,बदल गई थी जिंदगियां हिरोशिमा और नागासाकी के ढेर मैंबीत गए साल दर साल,बदलने- सँवारने-निखारने की तयारियों मैं ,परछाइयां पकडती व्यवस्था घटा टौप अंधेरों मैंरचती हर दिन एक नया षड़यंत्र ......उन दिनों ,मेरे दोस्तसुबह का इन्तजार बेहद जरूरी थाऔर मैं अपने शहर के तालाब पर फैलीसिर्फ स्याह काई देखती रहीसोचती रहीअपनी गोद से उछाल देगा आकाशयकायक पीला सुनहरा सूरजसूरज पे हमें विशवास हैगैस त्रासदी पे लिखने के लिए जो शब्द हो ,मेरे पास नही ,ये उसी वक्त लिखी और प्रकाशित एक लम्बी कविता थी जो थोड़े से बदलाव के साथ है...
नवागत
(चिट्ठाजगत् के सौजन्य से)
1. रीतेश की पसंद... (http://reeteshkipasand.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Reetesh Gupta
2. Plzzzzzz Hasna Mat........ (http://crazzyhumrousnitin.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: NєёTєёή
3. KAMSUTRA (http://vatsayan-kamsutra.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Vatsayan
4. कुछ फुटकर विचार, कुछ आवारा अरमान (http://sunleyar.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: santosh kushwaha
5. school day (http://jhunjhunuschooldays.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: kirti
6. Magic (http://pranavgaurav.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Magic
7. Siddhivinayakashish (http://shriashishdimri.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Sri Siddhivinayak ashish
8. नेतरहाट (http://netarhat2001-05.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Awanish
9. विचार के लिए कुछ विचार (http://kaushalshukla.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Kaushal
10. som-ras (http://som-ras.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Dew
11. महावीर (http://mahavirsharma.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: महावीर
12. Desuri News (http://desurinews.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Desuri News
13. क्या होगा..... (http://armaan07.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: क्या होगा....
14. कर लो दुनिया मुठ्ठी में ( बिहारी ) (http://krishnabihari.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: krishnade kumar (bihari)
15. aahuti (http://ekkhab.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: shelley
16. गुफ़्तगू (http://ankitjoshisafar.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: अंकित "सफ़र"
17. मेरे लफ्ज़ (http://shamikhfaraz.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Shamikh Faraz
18. कथा चक्र (http://katha-chakra.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: अखिलेश शुक्ल
अंत में
१३ जनवरी को लोहिड़ी (पंजाब) का उल्लास भरा त्यौहार है, जब भारतीय कृषक मन सूर्य के ताप की गर्मी की रुत आरम्भ होने का उछाह भरकर पाले को विदा कहता मिलजुल अग्नि बाल कर झूमता है।
साथ ही १४ जनवरी को मकर संक्रान्ति है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण में आ जाता है। सूर्य के उपासक देश में इस त्यौहार का अति महत्व है। उत्तर भारत में तो इस से सम्बन्धित सांस्कृतिक आयोजन उतने नहीं होते किन्तु सम्पूर्ण दक्षिण व पूर्व में इसकी बहुत महत्ता है। सबसे प्रमुख त्यौहार के रूप में इसे मनाया जाता है। अभी अभी कल ही नैशनल बुक ट्रस्ट के आमन्त्रण पर उनके द्वारा आयोजित साहित्यिक सारस्वत कार्यक्रम में भाग ले विजयवाड़ा से लौटी हूँ, जहाँ कृष्णा नदी के तट पर पारम्परिक रूप में प्रतिवर्ष माघ स्नान के लिए हजारों की भीड़ जुटती है । इस वर्ष वहाँ ३० हज़ार से अधिक देशी-विदेशी पर्यटक आ चुके थे। नैशनल बुक ट्रस्ट ने इस आयोजन को और भी सार्थकता देने की दृष्टि से २० वर्ष पूर्व वहाँ अखिलभारतीय पुस्तक मेला आरम्भ किया था, जो निरन्तर चला आ रहा है और अब तो लगभग छह आठ सौ स्टाल लगते हैं। इनमें हिन्दी की कुल जमा १००/२०० पुस्तकें भी नहीं थीं। अंग्रेज़ी की भरपूर थीं, कई हज़ार या लाख। समझ नहीं आता कि हिन्दी को सेतुभाषा या सम्पर्क भाषा तक के रूप में हम क्यों नहीं स्वीकार पाते, अपना पाते !!
अस्तु , इस पर्वप्रमुख पर जाने कितने शुभकार्य किए जाते हैं दक्षिण में। महाराष्ट्र में अन्य भागों की भाँति इस दिन तिल व गुड़ खाने का विधान है। मराठी में परस्पर बाँट खाने-खिलाने के समय एक दूसरे को तिळगुळ घ्या अन गोड गोड बोला उचारा जाता है अर्थात् तिल गुड़ ग्रहण कीजिए और इसी तरह सदा मीठामीठा बोलिए। तो यही शुभकामना आप सभी के प्रति करती हूँ। आन्ध्रप्रदेश व देश के अनेकानेक भागों में इस दिन पतंग उड़ाने की परम्परा है, बहुत शुभ माना जाता है। कई स्थानों पर देश में इस दिन पतंगबाजी के अन्तर्राष्ट्रीय उत्सव के लिए लोग जुटते हैं। तो आप सभी को लोहिड़ी, संक्रान्ति व पोंगल की अनेकानेक शुभकामनाएँ। आप के जीवन में सूर्य का उजाला फैले, सारा अन्धेरा हर ले व नए उल्लास से आप सभी का जीवन ओतप्रोत कर दे।
एक मराठी कविता के साथ आप सभी से विदा लेती हूँ --मनात असते आपुलकी,
म्हणुन स्वर होतो ओला..
हलवा - तिळगुळ घ्या अन्
गोड गोड बोला...!
मांजा, चक्री...
पतंगाची काटाकाटी...
हलवा, तिळगुळ, गुळपोळी...
संक्रांतीची लज्ज्त न्यारी...
पतंग उडवायला चला रे....!!
तिळगुळ घ्या गोड गोड बोला...!!
हलव्याचे दागिने, काळी साडी...
अखंड राहो तुमची जोडी
हीच शिभेच्छा, संक्रांत वर्ष दिनी...!
तिळगुळ घ्या गोड गोड बोला...!!
नाते तुमचे आमचे
हळुवार जपायचे...
तिळगुळ हलव्यासंगे
अधिक दॄढ करायचे....
तिळगुळ घ्या गोड गोड बोला...!!
साजरे करु मकर संक्रमण
करुण संकटावर मात
हास्याचे हलवे फुटुन
तिळगुळांची करु खैरात...
तिळगुळ घ्या गोड गोड बोला...!!
काळ्या रात्रीच्या पटलावर
चांदण्यांची नक्षी चमचमते
काळुआ पोतीची चंद्रकळा
तुला फारच शोभुन दिसते
तिळगुळ घ्या गोड गोड बोला...!!
संक्रांतीच्या अनेक शुभेच्छा...!
bahut khoob, do stambh khaskar pasand aaye, abhilekhagar aur stri-lekhan jisme aapne ek stri blogger ki charcha kari.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, दुनिया भर से सब कुछ एक पेज पे उतार लाये
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
सुन्दर चर्चा। आपकी चर्चा के माध्यम से चिट्ठाचर्चा का उद्देश्य दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास। पूरा होता दिखता है। संजय बेंगाणी कभी हमारे नियमित चर्चाकार थे। अब फ़िर कब सक्रिय होंगे! स्त्री चिट्ठाकार के बारे में लिखने की शुरुआत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा की खासियत इसका बहुसन्दर्भित होना है. अभिलेखागार से प्रस्तुत चर्चा स्थायी महत्व की चर्चा मालूम पड़ती है. कारण उसका विधान है.
जवाब देंहटाएंअन्य भाषाओं के चिट्ठों की चर्चा ने मुग्ध तो किया, पर काश! पूरे-पूरे सम्बन्धित भाषा के उद्धरणों के साथ हिन्दी में उनकी अर्थ-प्रतीति हो पाती!
जैसे, आपने मराठी कि जिस कविता से समापन किया है, उसका अर्थ मैं नहीं समझ पा रहा, क्योंकि मराठी मुझे नहीं आती.
तो यह विभिन्न भाषा के चिट्ठों की चर्चा क्या सम्बन्धित भाषा के जानकारों या पाठकों के लिये ही है?
हिन्दी यदि सेतु-भाषा बन जाय तो कितना कल्याण हो ?
कुल मिलाकर मैने इस चर्चा में विधु जी की कविता का प्रभाव महसूस किया- अपने स्तर पर, और आपकी बहुपठनीयता और बहुज्ञता से चमत्कृत भी होता रहा. धन्यवाद.
आप सभी को लोहिड़ी, संक्रान्ति व पोंगल की अनेकानेक शुभकामनाएँ!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। आपकी चर्चा के माध्यम से चिट्ठाचर्चा का उद्देश्य दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास.....पूरा होता दिखता है।
bahut khoob kavita ji.....
जवाब देंहटाएंपंजाबी के अमर रचनाकार स्व.शिवकुमार बटालवी जी ने ठीक कहा...
जवाब देंहटाएंहम एक आराम मौत ही मर रहें हैं....कमाल के कवि से मिलवाया आपने ....धन्यवाद
विधु जी से परिचय कराने के लिए आभार, उनकी कविता काफी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंशिवकुमार बटालवी के वीडियो के लिये धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएंख़ुश आमदीद मोहतरमा कविता जी !
बेशक ताज़गी और इन्तेहाई से लबरेज़ ज़िक्र-ए-ब्लागरान..
ग़र ज़ाँ की सलामती बख़्शें तो,
इस बिरादरी में औरत मर्द का तक्सीम औ' अलग ज़िक्र मेरी निगाह में वाज़िब नहीं !
खुल्रे नज़रिये से देखें, महज़ ज़िस्मानी तफ़रके की बिना पर यह दकियानूसी औ' ग़ैर-ज़रूरी है !
vidhu ji ka parichay kaafi achchha raha ..unki kavitayein bhi
जवाब देंहटाएंshukriya
बहुत विस्तृत चर्चा. एक अलग ही रंग है, मजा आया. सक्रांति की सबको घणी रामराम.
जवाब देंहटाएंएक नई हवा की तरह ताजगी भरी चर्चा ,विधु जी का तो खैर मै शुरू से ही फेन रहा हूँ ...उन्हें यहाँ देखकर अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंशानदार!
जवाब देंहटाएंबटालवी जी के विडियो के अलावा बाकी के भाषाओँ के चिट्ठों की चर्चा बहुत खूब रही. मराठी कविता को एक बार पढ़ा है. शायद एक बार और पढ़ने से कुछ और समझ में आए.
प्रतीक्षा है सूर्ये के उत्तरायण होने की..
जवाब देंहटाएंअस्थियों में पैठा मरणान्तक अवसाद तब शायद कुछ पिघले.
अशुभ जो अभी अभी छूकर गुज़र गया .
उसकी छायाओं पर
संक्रांति की शुभ कामना की धूप........
जी हाँ,
सुबह का इन्तज़ार बेहद ज़रूरी है
हमें भी है.
बटालवी के चित्र और स्वर ......
अवाक् करने के लिए काफी हैं.
राजस्थानी, भोजपुरी और मराठी की
प्रविष्टियों की चर्चा स्वागतेय है.
यह क्रम बना रहे तो बेहतर होगा.
देवनागरी में यदि अन्य भी भाषाओं की सामग्री
पढने का अवसर मिलता रहे
तो भी भाषाओं के सांस्कृतिक नाभि नाल सम्बन्ध का
अहसास होता रहेगा.
नेशनल बुक ट्रस्ट के विजयवाडा मेले की
और चर्चा अपेक्षित थी.[प्रसंगवश ही सही].
तानाबाना पर टिप्पणी सार गर्भित और सार्थक है.
स्त्री लेखन की विशेष चर्चा को
अलग खांचा बनाने के रूप में नहीं,
चर्चाकार की प्राथमिकता के रूप में
ग्रहण किया जाना उचित होगा.
फिलहाल इतना ही.
\\इति विदा पुनर्मिलनाय \\
ऐसा वहृद विस्तार चर्चा का देख अभिभूत हूँ-अद्भुत!! वाकई, गजब कवरेज और गजब की मौलिकता. वाह!!
जवाब देंहटाएंऐसे ही बनाये रहें, शुभकामनाऐं.
अमर कुमार जी की टिप्पणी के शेयर खरीदना चाहता हूँ :)
जवाब देंहटाएंचन्द्रमौलेश्वर जी की कमी महसूस कर रहा हूँ !
शानदार!
जवाब देंहटाएंवाह ...आपकी चरचा हर बार इतना कुछ समेटे आती है कि उलझ जाता हूं किसे देखूं किसे छोड़ूं
जवाब देंहटाएंएक विस्तृत फलक को समेटती हुई यह चर्चा बेहद परिश्रम और उत्साह से की गयी है। हम इसका स्वागत करते हैं। अलग-अलग स्तम्भों के माध्यम से विषयों का प्रस्तुतिकरण अच्छा बन पड़ा है। चर्चाकार को यह छूट तो देनी ही चाहिए कि वह अपनी समझ से जिसे उपयुक्त समझे उसे इस मंच पर लाकर हमसे परिचित कराए।
जवाब देंहटाएंवैसे डॉ.अमर कुमार जी का एतराज इस चर्चा में एक सार्थक तत्व जोड़ता है। इस एतराज पर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।
कविता जी के ही इन शब्दों में मेरी भी शुभकामनाएं आप सभी के लिए- “आप सभी को लोहिड़ी, संक्रान्ति व पोंगल की अनेकानेक शुभकामनाएँ। आप के जीवन में सूर्य का उजाला फैले, सारा अन्धेरा हर ले व नए उल्लास से आप सभी का जीवन ओतप्रोत कर दे।”
विवेकजी, आपने याद किया- आभारी हूं। सौभाग्य कि सभी का स्नेहपात्र बना।
जवाब देंहटाएंसुंदर जानकारी | मकर संक्रांति की शुभकामनाएं |
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