कहीं का पत्थर कहीं का रोड़ा
आज के दौर में जब दस रूपये का भी कुछ नही आता ऐसे में शब्दों के सौदागर बात कर रहे हैं सोलह आने में सच की। आप सोच रहे होंगे जब सच सोलह आने का तो झूठ, वो तो फ्री है जी आजकल। अजित जी लिखते हैं -
एक विरोधाभास देखिये...विज्ञान और अंधविश्वास एक ही मूल से जन्मे हैं। तर्क से ही दोनों में फर्क होता है। सच की कीमत क्या सोलह आने हो सकती है? ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सालह आने सच वाला मुहावरा कह रहा है।दिनेश जी, विराम चिन्हों पर फिलहाल विराम लगाने के मूड में नही दिखते इसलिये फिर से अपने विचार रख रहे हैं -
प्रत्येक विद्यार्थी को हिन्दी तथा अंग्रेजी टंकण में पूर्ण विराम, प्रश्नवाचक चिन्ह, विस्मय बोधक चिन्ह को शब्द के तुरंत बाद लगा कर दो स्पेस छोड़ना चाहिए, अन्यथा आधी गलती मानी जाएगी।रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा लेकर आयें हैं डा. अमर कुमार, काकोरी के शहीद में वो बताते हैं -
इस समय पुलिस का दमन चक्र पूर्ण जोर पर चल रहा था। जो लोग गिरफतार हुए उनका कहना ही क्या, उनके कुटुम्बी बुरी तरह सताये गये। जब्ती के समय न केवल अभियुक्तों के सामान वरन् उनके कुटुम्बियों तक के वस्त्र तक पुलिस अपने साथ ले गई। जो लोग गिरफतार हुए थे वे इतने खतरनाक समझे गये कि उनके पैरों में बेड़ियां डाल दी गईं।आलोक पुराणिक अंखडता की बात कर रहे हैं, वो लिखते हैं -
पाकिस्तान की एकता और अखंडता फ्लैक्सिबल है, अमेरिकन बमों में अखंडित रहती है।अब आप सोच रहे होंगे कि फ्लैक्सिबल कैसे होती है तो उसका जवाब भी उन्हीं की लिखी लाईन को यहाँ चेप कर दे देते हैं - "अगर तुम्हारे पास एक लाख डालर हैं, तो ठीक, वरना मुझे एकदम अखंड सच्चरित्र और शरीफ ही मानो।", यही है फ्लैक्सिबल होना। शास्त्रीजी, अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं, इस पूँजी को बर्बाद न होने दें!! राखी सावंत, मल्लिका शेरावत के जलवे तो आप लोगों ने खूब देखे होंगे लेकिन अरविंद जी दिखा रहे हैं बलिष्ठ बाहों के जलवे, आप भी जाकर देखिये फिर बतायें किस के जलवों में ज्यादा मजे हैं।
जगदीश भाटिया पढ़वा रहे हैं अमृता प्रीतम की कहानी "और नदी बहती रही", थोड़ा आज बह रही है बाकि अगले भाग में बहते हुए देखियेगा। कुछ खास लोगों के लिये ही होता है आम चुनाव क्योंकि एक आम आदमी के लिये आम चुनाव में खड़ा होना इतना आसान नही है जितना संविधान में लिखा गया था। और इसी आम चुनाव के बारे में लिखते हैं प्रसुन वाजपेयी - नये साल में फिर लगाएं नारा – लोकतंत्र ज़िंदाबाद।
अठारह साल की पूजा ने दस साल पहले एक बहुत ही भावुक कर देने वाली चिट्ठी भगवानजी को लिखी थी, उसको ही आज पढ़वा रही हैं प्रीती -
थोड़े दिन पहले मेरी मम्मी सो रही थी ।सबके बुलाने पर भी नहीं जागी .फ़िर सभी रोने लगे .मम्मी को मेरी दुल्हन गुडिया की तरह सजाया गया .फिरभी वह कुछ भी नहीं बोली .फ़िर मुझे रोहित अंकल के घर ले गए . पुरा दिन मैं वहां पर ही रही .दूसरे दिन मैंने सबसे पूछा माँ कहाँ पर गई ?तो सबने कहा वह भगवान के घर गई है.अब जरा इसको बूझिये -
करेजऊ, करेजऊ, करेजऊ, करेजऊ..’, खड़खड़िया हीरो-हौंडा सैकिल पर भिलैनी का खड़खड़ केरीकेच्चर जैनरायन भुइंया. सैकिलिया साला पीछे चल रहा है और जैनरायना का म्यूजिक आगे दौड़ रहा है!कुछ समझे या यूँ ही हाँ हाँ में सिर हिला रहे हो, ये नया साल भी ऐसी ही अनबूझी पहेली है जो जैसे जैसे बितेगा वैसे वैसे समझ आयेगा।
सगरे अंजोर है जवानी फूट रहा है, जबकि जवानी का दहलीच पर- पुरनका बेमतलब साबुन का पाथर में बदल गईल- कीच जइसन ठाड़ा होके निऊनिया आंख में धुंआ अऊर जिन्नगानी में करीखा पोत रही है. तब ले चूल्हा में गुल का गोली सजा रही है, गोईंठा तोर-तोर के गोबर हो रही है, आंख से लहर-लहर बहके गाल पर लोर सेटिल हो गया है, लेकिन बेचलित्तर चुल्हवा का आगी सेटिल नहीं हो रहा..
जन गण और मन में शमरेन्द्र पेश कर रहे हैं ब्रेकिंग न्यूज जो दिखाती है भारतीय न्यूज चैनल की समझ का दिवालापन, खबर है -
बिलासपुर में तीन लड़कियों ने एक युवक का अपहरण कर लिया। जैसा कि खब़र में बताया गया कि लड़कियों ने बंदूक की नोंक पर उसका बलात्कार किया और ब्लू फिल्म भी बनाई। कम से कम छत्तीसगढ़ में संभवत इस तरह की घटना पहली बार हुई होगी। बस क्या था टीवी चैनलों को मौका मिला गया। सब के सब उस पर ऐसे टूटे मानों आलादीन का चिराग मिल गया हो।छत्तीसगढ़ के बहुत पत्रकार ब्लोगर हैं हो सकता है वो आने वाले दिनों में कुछ और इसकी चीर-फाड़ करें।
कहीं सुर-ताल कहीं गीत
हिमाँशु एक स्त्री के प्रति अपने भावों को कुछ यूँ बयाँ करते हैं -
मन के भीतर२१वीं सदी की बेटी कैसी हो, जैसी आकांक्षा कह रही वैसी हो -
सात रंग के सपने
फ़िर उजली चादर क्यों ओढी है तुमने
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी हैमनोशी अड़ने, उड़ने, मुड़ने, लड़ने, जुड़ने की बात कर कर के लिखती हैं -
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है !
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना !!
बहुत रुलाया ज़र्रे नेविजय कुमार, परायों के घर की बात पर कहते हैं -
जो आँख में पड़ा रहा
पुरानी इक क़िताब का
सफ़ा कोई मुड़ा रहा
हवा भी कम लड़ी नहीं
दरख़्त भी अड़ा रहा
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थींयादें अगर पेंसिल से लिखीं होती तो कोई भी जब चाहे इरेजर लेकर उसको मिटा डालता यानि भूला डालता लेकिन ऐसा नही है इसीलिये सीमा कहती हैं, कैसे तुम्हे भुलाऊ -
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए;
एक उम्र भर के लिए
शब्द तुम्हारे ....सुरेश गुप्ता जी ने नये साल में बिजली ना होने का जो रोना रोया है पढ़कर दिल खुश हो गया -
बाँध तोड़ संयम के सारे ,
बीते लम्हों के कालीन बिछाएं ,
मौन स्वरों के गलियारे मे ,
यादो के घाव पग धरते जायें
नए साल का नया सवेरा,रविश, बाबूजी को याद करते हुए बड़ी ही मार्मिक लाईनें लिखे हैं -
लेकर आया गहरा कोहरा,
बिजली वालों का उपहार,
विजली गायब हुआ अँधेरा.
फोन किया जब बिजली दफ्तर,
बिजली वाला बोला हंस कर,
कैसा लगा हमारा तोहफा?
ऐसे कई अनोखे तोहफे,
तुमको पूरे साल मिलेंगे,
दिल्ली वालों को खुश करके,
हमारे ह्रदय कमल खिलेंगे.
गर्मी में जब बिजली जाए,
तुमको रोना न आ जाए,
इसीलिए हम सब ने सोचा,
जाड़ों में भी बिजली जाए,
सारे साल बिना बिजली के,
रहने की आदत पड़ जाए.
अपने मकान का हर फ्रेम जोड़ने के बाद
अपने बाद अपने ही मकान में
एक कोने में पड़े थे
एक फ्रेम में बंद हो कर
बाबूजी
सिर्फ एक तस्वीर बन जायेंगे
एक ही कमीज़ में नज़र आयेंगे
वही चश्मा अब दिखेगा बार बार
सिर्फ सीध में ही देखते मिलेंगे
देखा तो लगा नहीं कि यही हैं
बाबूजी
...
सोफे पर बैठे होने का अहसास
दरवाज़े से निकल कर आते हुए
सब्ज़ियों का थैला रखते हुए
मछली का कांटा छुड़ाते हुए
रमेसर को चिल्लाकर पुकारते हुए
वो सारी हलचलें अब भी दिखाई देती हैं
फिर क्यों फ्रेम में दिखाई देते हैं
बाबूजी
नीरज कि रचना उन्हीं के स्वर में रेडियोवाणी में सुनिये - चांदनी में घोला जाय फूलों का शवाब और कवि प्रदीप की रचना सुनिये गीत गाता चल में सुनिये - आज के इस इंसान को ये क्या हो गया। इंस्टेंट म्यूजिक की तकलीफ बयान करते हुए अपना राग आलाप रही हैं राधिका जी वीणापाणी में, आप भी सुनिये। मनीष सुना रहे हैं तू है तो टेढ़ी मेढ़ी राहें। विनय भड़का रहे हैं चिंगारी, सुना रहे हैं चिन्गारी कोई भड़के।
ज्ञान-विज्ञान के गलियारे
क्या आप जानते हैं गांजा-भांग, रेशम और असबेस्टस में क्या समानता है, अगर नही तो खुद पढ़कर जान लीजिये, बता रहे हैं प्रवीण शर्मा। अगर आप HTML की मदद से तालिका बनाना चाहते हैं तो इस आलेख पर एक नजर दौड़ा सकते हैं।
रब ने बना दी जोड़ी
1. मेरा पहला और आखिरी प्रेम पत्र जाहिर है एक स्त्री के प्रति
2. तू क्या है? एक तमाशबीन
3. भूलना चाहता हूँ अब नये वर्ष का धूम धडाका और फोन की घंटी
4. मिलेगा कर्ज का घी, और सुनहरे मौके भी क्योंकि मेरा भारत महान
5. थोड़ा ठहरें, एक बार पीछे मुड़ कर भी देखें हमारे एक रिपोर्टर की डायरी के पन्ने
6. चिन्गारी कोई भड़के तो उसे शुद्ध पानी और ज़िम्मेदारी से बूझायें
अब अगले शनिवार तक के लिये दीजिये ईजाजत आपके दिन हँसते हुए बीते और ये नया साल हो इन बच्चों के नाम -
नया साल.....
उन बच्चो के नाम
जिनके पास
न ही है रोटी
न ही है ,
कोई खेल खिलोने
न ही कोई बुलाए
उन्हें प्यार से
न कोई सुनाये कहानी
पर बसे हैं ,
उनकी आंखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछोना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छ्त है
और घर है धरती का एक कोना
पर ....
उनके नाम से बनेगी
अभी कागज पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी यह आशाएं ...
इसलिए ,उम्मीद की एक किरण पर .
नया साल उन बच्चो के नाम
[जिन चिट्ठों से कॉपी नही कर सकते उनकी चर्चा चाह कर भी नही कर रहे हैं।]
नया साल आपको भी मुबारक हो ! नए जोश से की गई चर्चा बेहतरीन रही . पूजा की भगवान को लिखी चिट्ठी अतिमार्मिक है !
जवाब देंहटाएंजिन से कापी नहीं कर सके
जवाब देंहटाएंकर लेते उनसे किताब
या कीबोर्ड कर लेते जनाब।
छोड़ कर कर दिया न बरबाद
अब जा जाकर सभी पोस्टों पर पड़ेगा
कौन सी कापी नहीं हुईं और
कौन सी कापी तो हो सकीं पर
नहीं आईं पसंद
वहां पर बैठा कौन लगा कर मसनद।
खैर ... जिन तक नहीं पहुंची
उन तक पहुंच जायें हमारी भी
शुभकामनायें और क्या ?
वैसे अविनाश वाचस्पति और
नुक्कड़ पर भी आते तो खूब मजा पाते
सबको दिलाते या दिल आते
दिल भी आते।
बहु आयामी चर्चा -शुक्रिया तरुण !
जवाब देंहटाएंनये साल की आपको रामराम. लाजवाब चरचा रही.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नये साल में चर्चा की शुरुआत करते हुये फ़िर से देखना बहुत अच्छा लगा। सब स्तम्भ शानदार। बहुत मेहनत से की गयी चर्चा।
जवाब देंहटाएंलड़कियां एक लड़के को कैद करके उसकी फ़िल्म बनायें यह सनसनीखेज खबर है।
और भी विवरण चकाचक रहे।
नया तरीक़ा पसंद आया।
जवाब देंहटाएंनए साल की चर्चा भी लाजबाब रही !
जवाब देंहटाएंबहुत रुलाया ज़र्रे ने
जवाब देंहटाएंजो आँख में पड़ा रहा
पुरानी इक क़िताब का
सफ़ा कोई मुड़ा रहा
हवा भी कम लड़ी नहीं
"नये साल की चर्चा नये ही अंदाज मे, खुबसुरत , नया साल आपको भी मुबारक हो "
regards
beete dino ki kasak ko chunauti ke roop me savikaar kare naya saal mubarak shukria
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ...बढ़िया अंदाज ..नए साल में उम्मीद की एक किरण को इस में शामिल करने के लिए शुक्रिया ..इन बच्चो के साथ कुछ पल बीता के देखे ,कुछ तो खुशी हम इनको दे ही पायेंगे ..जो जितना कर सके उतना ही अच्छा ..नव वर्ष की ढेरों बधाई सबको ..
जवाब देंहटाएंशानदार है रब ने बना दी जोड़ी
जवाब देंहटाएंकॉपी करने के गुर कुश जी से पूछ लीजिये गुरु बनने में उन्हें परेशानी भी नही होगी
नया साल आपको भी मुबारक हो!!!
जवाब देंहटाएं@रौशन, उस ताले को तोड़ना तो बहुत आसान है लेकिन किसी के बंद दरवाजे से माल उठाना ये अच्छी बात नही है (वाजपेयी स्टाईल में पढ़ें)
जवाब देंहटाएंआप ने 4 विभागों मे विभाजित करके चर्चा की जो परंपरा चालू की है वह बहुत उपयोगी रहेगा.
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा तो गजब की रही !!
हां यदि "उभरते चिट्ठाकार" नामक एक और विभाग जोड कर यदि एकदम नयेनवेले मित्रों को प्रोत्साहित और कर दें तो बहुत अच्छा होगा.
सस्नेह -- शास्त्री
बहुत ख़ूब किसी को नहीं छोड़ा, ख़ूब रही चर्चा, वाह-2
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