रह रह कर हलवाई की याद आ रही है तो क्यों न एक हवालेदार चर्चा की जाए।
आखिर जब उजड़े गाँव में ऊँट पहुँचता है तो वहाँ उसे बलबल ही कहा जाता है। वैसे मैंने तो कभी किसी ऊँट को बलबल बोलते नहीं सुना। शायद भूख लगने पर करता हो।
इत्ता ज़रूर पता चल गया कि कैश और किसान में बहुत पुराना वास्ता रहा होगा, भले ही अब भूख के मारे सुसाइड करता हो। पता नहीं अजित जी कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा कैसे बिठाते जाते हैं।
लेकिन ये ऍमर्सन जी प्रतिभाशली लोगों के बारे में कब से बताने लगे? शायद उन्हें भी पाकशाला से कुछ आने की प्रतीक्षा थी। जो आ को खा गए।
पुरुषसूक्तम्। सायणाचार्य के वेदभाष्य से कई लोगों को आपत्ति हो सकती है लेकिन सामने आना तो आवश्यक ही है।
विद्वान लोग दुर्लभ वस्तु को पाने की कामना नहीं करते उन्हें पता है कि सुलभ वस्तु प्राप्त करने का संभावना अधिक होगी। और खाना हमेशा समय पर खाते हैं।
पर जहाँ भी कुछ मुफ़्त का माल दिखे, चाणक्य का अर्थशास्त्र याद रखियो। मुफ़्त का माल मुफ़्त इसीलिए होता है कि कोई दाम देने को तैयार नहीं।
उड़ीसा के कंधमाल बारे में संस्कृतनिष्ठ जानकारी चाहिए तो यही है वह जगह, अन्योनास्ति। वैसे नाम से तो कुछ कंधहार जैसा लगता है।
प्रेम और भक्ति में हिसाब नहीं चलता। मतलब लड़का पटाना हो तो उसे खूब दूध पिलाओ।
लेकिन हमें पाकिस्तान से नफ़रत है। साथ ही चिंता अपनी कवरेज की है।
क्योंकि भूखे बजन न होय गोपाला।
भूख,वस्तु,माल,दूध,खाना,चाय,हलवाई,पकौड़े,वड़ा,पाकशाला और पेट वाली शब्दावली पता देती है कि स्थिति कितनी नाजुक रही होगी।
जवाब देंहटाएंअनूप जी के खाते में दंडनीय अपराध दर्ज़ कराया जाए।
कृपया अच्छे से भोजन खाकर ही चर्चा किया कीजिए। यूँ छोटी से चर्चा से कैसे चलेगा?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
कृपया अच्छे से भोजन खाकर ही चर्चा किया कीजिए। यूँ छोटी सी* चर्चा से कैसे चलेगा?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
वैसे कहा जाता है "भूखे भजन न होय गोपाला " आपने एक वड़ा और दो पकौड़े खाए हैं, और एक गिलास चाय पी है इसीलिए आपने पंडित जी इसीलिए चर्चा कम की है अतः .कृपया पूर्ण आहार प्राप्त कर मनन के साथ चर्चा करे . वैसे आप बधाई के पात्र है जो सत्यता के साथ अपनी बात सबके सामने रख दे .
जवाब देंहटाएंमहेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
ठीक है जी. अब रात को डिनर लेके एक चर्चा और कर लिजियेगा. सबका मलाल दूर हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
छोटी से चर्चा
जवाब देंहटाएंआलोक जी ' 'शुभ कामनाओं सहित '', ' चिट्ठा-अन्योनास्ति ' के उल्लेख के लिए धन्यवाद | भविष्य में भोजन कर 'भरपेट डकाराने '' के बाद के बाद ही चिट्ठा चर्चियावा करें , नही तो उसी तरह से दो शीर्षकों पर एक ही लिंक दे बैठेगें जैसे यहाँ दी है यथा बलबल और पुराना वास्ता ; अगर मै सही समझा हूँ तो पुराना वास्ता पर अजित जी के लेख का लिंक देना चाह रहे थे | चिंता न करें आप की ' 'हलवा दार " चर्चा से लोगोने पढ़ लिया होगा | लागत बा हमहिं भुखाये गयेन है |छोटी सी चर्चा ,लंबी सी पूंछ [ मूँछ भी चलेगा ''छोटा सा मुँह लंबी सी मूँछ ] बच्चे की भुडिकिया मा नदिया |
जवाब देंहटाएंयह तो सीधे सीधे मानवाधिकारों का हनन है ! भूखे आदमी से चिट्ठाचर्चा करवाई जा रही है . हो गई ना बदनामी ! अब ये पाठक लोग अपने अपने घर बताएंगे . बात स्त्रियों और बच्चों में होती हुई स्कूल कॉलेजों तक में पहुँच जाएगी . साथ साथ रास्तों में अफवाहें भी जुडती जाएंगी . जितने मुँह उतनी बातें होंगी . सारे देश में चर्चा होगी .
जवाब देंहटाएंअरे चर्चा होगी ? वही तो लक्ष्य है . तो होने दो चर्चा !
तो ठीक है . अब से सभी चर्चाकार चर्चा करके ही खाना खाया करेंगे . यह रवि रतलामी जी वाले गब्बर सिंह का हुक्म है :)
अन्योनास्ति जी, आपने सही कहा, कड़ी ठीक कर ली है, अजित जी को खेद सहित।
जवाब देंहटाएं