आर्यपुत्र प्रातः ८ बजे उठ गए। सूर्योदय हो चुका था किंतु उन्होंने कलियुग और रविवार के मेल से यह अनुमान लगाया कि संभवतः आज उन्हें सूर्योदयोपरांत उठने वाला पाप नहीं लगेगा। तदनंतर मक्की की दो तंदूरी रोटियाँ, मिर्ची और लहसुन समेत सरसों के साग, घी-शक्कर और छाछ की लस्सी का रसस्वादन करने के उपरांत काँच के गिलास में इलायची वाली दूधिया चाय का सेवन करके वे फ़टाफ़ट तीन नदियाँ - रावी, सतलुज, और व्यास - पार करके अपने ग्राम ढकोली में चिट्ठा चर्चा करने बैठे।
क्योंकि पेट भरा था, चुनाँचे चर्चा भी भरपेट हुई।
यह आवश्यक तो नहीं कि यदि ससुर का नाम दशरथ हो तो वह अपनी पुत्रवधू को सताए। किंतु यहाँ कुछ ऐसा ही हुआ। यानी कि दशरथ जी को सभी सिर समेत बे-जमानत कारागार में बंद कर दिया गया।
भारतीय दंड विधान की धारा ३०४ बी ,४९८अ , ३४ के तहत जैश्री के पति काशीनाथ , ससुर दशरथ, सास वेनुबाई , चचेरे ससुर गनपत और सास गुलाब बाई को गिरफ्तार कर लिया । इनमे से वेनुबाई को जमानत पर रिहा कर दिया गया जबकि अन्य चार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
इस बीच आमीर खान अपने उन्नत वक्षस्थल को प्रदर्शित करते पकड़े गए। कहने को तो प्रसून जोशी के गानों की चर्चा हो रही थी लेकिन लोग देखने आमीर जी का अंगप्रदर्शन ही आए थे। वैसे गायक थे जावेद अली।
ट्रकवालों, तेल वालों के बाद अब क़ानून वालों का हड़ताल करने का समय है। दिनेशराय जी, जो खुद वकील है, ने इस विषय पर एक खुफ़िया लेख लिखा है जहाँ तक शायद केवल वकील ही पहुँच सकते हैं। शायद तेल वालों को फोड़ लेने के बाद यह ज़रूरी हो गया था ताकि वकीलों की हड़ताल का भी यही हश्र न हो। राजेश कुमार दुबे जी ने कार्टूनी ढंग से ट्रकों की हड़ताल में सुख दुखे समे कृत्वा समझाया है।
अनुवादक अनिल एकलव्य जी बता रहे हैं कि ४०० भारतीय किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अगर ४०० भारतीय कंप्यूटर प्रोग्रामर आत्महत्या कर चुके होते तो हाहाकार मचा हुआ होता चर्चा के बजाय।
दीपक भारतदीप जी ने एक हास्य कविता लिखी है लेकिन उसे कहीं और छापने से मना किया है। इसलिए वहीं जा के पढ़ लें। सुना है कहीं और छपवाने के १०००/- रुप्यक लेते हैं।
इस बीच बाड़मेर का थानेदार सोच रहा है कि आज चार अपराध दर्ज हुए लेकिन एक भी टिप्पणी नहीं आई। लगता है "अब लिखते लिखते थक गया" वाला लेख छापना पड़ेगा या गिरफ़्तारियाँ बढ़ानी पड़ेंगी।
रेडियो जॉकी, आईटी सपोर्ट पर्सन और हिंदी शायर हेमंत पारिख जी ने अपनी शायरी में फिर को फ़िर लिखा है। और लूमड़देव राजेश रंजन जी ने वक़्त को वक्त लिख के नुक्तों का हिसाब बराबर किया। लेकिन अभी नुक्ते घाटे में ही चल रहे हैं क्योंकि राजेश जी ने अपनी वही शायरी दो जगह छापी है। इस बीच ग़ज़ल में दो के दो मोती रूपी नुक्ते छाप के कमल जी ने गद्गद कर दिया, और कुछ ही मिनटों बाद बिना नुक्तों वाला जोड़ीदार मिल गया। लेकिन फिर भी लगता है नुक्तों का घाटा आज तो पूरा होने से रहा। श्री रामबाग मंदिर वृंदावन वालों ने भी कविता पेली है, जिसमें नुक्ते की गुंजाइश ही नहीं है। यही रहे सबसे बढ़िया। आर्जव जी लगते तो इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के खूँखार अफ़सर की तरह हैं लेकिन हैं कोमल हृदयी। नुक्तों का सही इस्तेमाल किया गर्विता जी ने लेकिन अफ़सोस कि उन्हें बड़े ऊ की मात्रा से परहेज़ है।
राहुल कुंद्रा जी बल्लियों उछल रहे हैं, इतना कि ट्ठा के ट को अधियाना भूल गए।
निशांत मिश्र जी ने खुली छूट देते हुए कहा है,
मेरे द्वारा अनूदित इन ज़ेन कथाओं का जहाँ चाहें, जैसे चाहें उपयोग करें. इनके लिए मुझे धन्यवाद दें तो अच्छा, न दें तो और भी अच्छा
लेकिन उनकी ताज़ी कथा पर, हिंदू कथा की चिप्पी लगी है इसलिए उसका उपयोग नहीं किया जा रहा। वैसे इस कथा से शिक्षा क्या मिली? कृपया आप्त लोग मार्गदर्शन करें। हमें कहानी के अंत में "इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि" वाला वाक्य पढ़ने की आदत है उसके बिना बस कहानी का मज़ा लेते हैं, जैसे सारस ने लोमड़ी को उल्लू बना दिया, कौवे ने पानी पी लिया आदि। जैसे कि देखिए, यूपी सिंह जी ने कहा है -
डरना किसी चीज का हल नही है। आप अन्धेरे में जाने से डरेंगे तो हो सकता है की बिजली की कड़क भी आपको भरी रौशनी में नष्ट करने को तैयार मिले।
(ऊपर पूर्णविराम के पहले का खाली स्थान मैंने हटाया है और अन्धेरें से बिंदु भी।)
रायपुर शहर में १९९५ में तीन महीने रहा था और तभी पता चला कि छत्तीसगढ़ी नाम की भाषा भी होती है। लगता है शहर तरक्की कर रहा है क्योंकि विभाष जी को सड़क म सब्जी बजार पर चिंता हो रही है।
सब्जी वाला मन के सेती ट्राफिक के समस्या घलो बाढ़त जात हे. संगे-संग एखरो उप्पर बिचार करना जरुरी हे.
सुशील जी का बस चले तो गणित की कक्षा में कलम दवात पर ही प्रतिबंध लगा दें। प्रेरणादायक लेख है। अपनी दसवीं के गणित के इम्तिहान की याद कर के अब भी सिहरन दौड़ जाती है।
जबसे सट्टेबाज़ी के किस्से हुए हैं, तब से क्रिकेट से मन ही उचट गया है। गंभीर जी आज ज़बर्दस्त फ़ट्टे पेल रहे हैं -
"... टीम की जीत किसी भी खिलाड़ी से अधिक मायने रखती है”।
आप्त जनों ये बताओ, उद्धरण चिह्न पूर्णविराम के बाद आना चाहिए या पहले?
यदि आर्यपुत्र स्वयं भी इसी श्रेणी में न होते तो निश्चित रूप से झन्नू झारखंडी की तरह ही आज के युवा का वर्णन करते।
... पिचके गाल, आलस्य और प्रमाद में डूबे, नशे के लती, माता-पिता के संचित संस्कारों को पल-पल क्षीण करने को आतुर, स्वाध्याय से कोसों दूर, देह-दिखाऊ वस्त्रों के प्रेमी, रीढ़हीन, तन से अशक्त, फास्ट फूड और अपुष्टिवर्द्धक खाद्य पदार्थों के आदी होने से असमय बूढ़े होते, निर्लज्ज और कुसंस्कारों से ओतप्रोत युवाओं के दर्शन आज सर्वसुलभ हैं। इनमें तेज की कमी दिखती है, पान-सिगरेट की दुकान पर, चौक-चौराहों पर अड्डाबाजी करते, जवानी की ऊर्जा क्षीण करते...
कल स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है। कल से प्रातःकाल व्यायाम शुरू। निश्चित रूप से पाश्चात्य देशों की सफलता का श्रेय भी न केवल युवा अपित सभी नागरिकों के अनुशासन को ही दिया जाना चाहिए। सफलता पाने के लिए कठोरता झेलनी ही होगी, यह बात याद दिलाती है झन्नू जी का छोटा सा लेख। विजयराज चह्वाण जी ने अपने उपन्यास के कुछ अंश पेश किए हैं।
पाठशाला में चार मास्टर थे लेकिन कभी एक आता था तो कभी दो,पूरे तो कभी न आते थे
वैसे चह्वाण जी चाहें तो पाइप(|) के बजाय पूर्णविराम(।) का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सुख, आनंद, और भोग में फ़र्क इंगित कर रहे हैं श्रीकांत मिश्र/ आशुतोष बरेलवी जी
“ ध्यायतो विषयान्पुंस: संगस्तेषुपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ 62
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥ 63”
( श्री0 भ0 गी0 अध्याय 2)
अर्थात विषयों का चिंतन करने वाले पुरूष का इन विषयों में संग बढ़ता जाता है. फिर इस संग से काम उत्पन्न होता है. काम की प्राप्ति में विघ्न होने से क्रोध उत्पन्न होता है. क्रोध से सम्मोह अर्थात अविवेक उत्पन्न होता है. अविवेक से स्मृतिभ्रम और स्मृतिभ्रम से बुद्धिनाश होता है और बुद्धि के नाश से व्यक्ति नष्ट हो जाता है.
आज पुण्य प्रसून बाजपेयी के नाम से अक्षत सक्सेना का एक लेख दिखा। काफ़ी शोध के बाद लिखा लेख दिखता है, बस राजनैतिक को राजनीतिक लिखा है।
इन परिस्थितयों में भारत आतंकवाद के घाव से कैसे बचेगा और आतंकवाद से सही ज्यादा खतरनाक जब देश की संसदीय व्यवस्था में सत्ता का जुगाड़ हो जाये तो पहले किस आतंकवाद से कैसे लड़ा जाये पाकिस्तानी आतंकवाद या देशी राजनीतिक आतंकवाद से।
पूर्णविराम के पहले खाली स्थान गायब करने की आवश्यकता है।
मुम्बई समाचार वालों का कहना है,
इस ब्लॉग से कोई भी व्यक्ति बिना अनुमति के खबरों का व्यावसाईक उपयोग नही करे.
अफ़सोस कि मुंबई के कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्षी की छुटभैय्ये नेताओं की खींचतान संबंधी रसीली, दिलचस्प और कामोत्तेजक जानकारी आपको वहीं जा के पढ़नी पड़ेगी।
मुंबई के और कुछ नीरस समाचार - कैलाश खेर शादी करने जा रहा है -
जी हाँ कैलाश फरवरी के अन्तिम सप्ताह में विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं, इस बाबत पूछे जाने पर कैलाश ने कहा कि वो इसे एक प्राइवेट अफेयर ही रखना चाहते हैं और इस सिलसिले में बहुत ज्यादा खुलासा नही करना चाहते.
ओह, गलती हो गई। ये मुंबई वाले अचानक से इतने गोपनीय और वर्जित क्यों हो गए पता नहीं।
हाथ थक गए पर अभी तो और चर्चा बाकी है। अतः आर्यपुत्र ने उष्ण जल से स्नान कर लिया और पुनः चिट्ठा चर्चा करने बैठे। इस बार त्वचा के लिए नीम का साबुन और केशों के लिए गार्नियर फ़्रुक्टिस का प्रयोग किया गया। ऐसे अवसर सप्ताह में कुछ ही दिन आते हैं।
हाँ तो आगे।
अरे बधाई हो! आज से माघ मास शुरू हुआ। सोच रहा था कि अगर मैं अपने चिट्ठे में ग्रेगोरियन के बजाय विक्रमी संवत में तारीख छापना चाहूँ तो कैसे हो सकता है। आप्तजनों को पता हो तो बताएँ।
दिल पर तीर चला, और लाल लाल अक्षर से लिखा गया,
अब यही बेहतर है कि मुझे भी गैरों में शामिल करो
फिर शायद मुझसे बातें करने में शर्मिंदगी न हो
बेजी जी का पैंतरा यह है कि बच्चों के सवालों का जवाब न दे पाओ तो उस पर लेख लिख डालो, शायद टिप्पणियों से पता चल जाए कि क्या जवाब देना चाहिए।
आज की चर्चा यहीं समाप्त करता हूँ। आज वास्तव में यह लगा कि चर्चा करने कि लिए इतना है समझ नहीं आया कि कहाँ रुकें। अंततः जब आलू बोंडे खाने का समय आया तभी रुका हूँ। लोगों ने कई विचार लिखे हैं, अपने दिल की अंदरूनी दास्तान, कुछ ऐसे विषयों पर जिन्हें वे बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। उन तक पहुँचने का मुझे मौका मिला। उन्हें अपने दिल की बात सबके सामने रखने के लिए मेरी ओर से हार्दिक आभार।
एक बात वर्तनी और व्याकरण के बारे में। मैं नुक्ताचीनी मूलतः इसलिए ही करता हूँ कि मुझे लगता है कि मानव को तो समझ आ जाएगा कि क्या लिखा है लेकिन अमानव - यंत्र - को कैसे पता चलेगा कि क्या लिखा है? कितनी जानकारी हमें अमानव ही पहुँचाते हैं। इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि मैं लिखने वाले का मज़ाक उड़ा रहा हूँ। एक तरह से समझ लीजिए कि अगर लिखा गलत हो तो गलती पर ध्यान जाता है, और सही लिखा हो तो भाव पर ध्यान जाता है। और शायद एक दिन ऐसा ईज़ाद(या ईजाद?) हो जाए जो अपने आप से सब कुछ ठीक ठाक लिख के सामने परोसे?
अलमिति कोलाहलेन। कल सुबह व्यायाम करना है। आप भी करें। आर्यावर्त को अनुशासित नागरिकों की आवश्यकता है।
भरे पेट के परिणाम स्वरूप चर्चा का लम्बोदर होना नेक काम है। ब्लॊगिए दुआ देंगे। पर दुआ तभी तक जब तक अलमिति कोलाहलेन का ..... पचे।
जवाब देंहटाएंचर्चा मुबारक।
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जवाब देंहटाएंमक्की की दो तंदूरी रोटियाँ, घी-शक्कर और छाछ की लस्सी का रसस्वादन करने के उपरांत काँच के गिलास में इलायची वाली दूधिया चाय का सेवन (-) मिर्ची और लहसुन समेत सरसों के साग
आज की भरपेट चर्चा में मक्की की रोटी का स्वाद आया। आप ने खूब अदालत में पकड़ दिखाया। अदालत के संचालक यात्रा अवकाश पर हैं और ऐवजी का काम मुझे करना पड़ रहा है।
जवाब देंहटाएंवाह्! बहुत खूब......
जवाब देंहटाएंलगता है कि पूरी तरह से फुर्सत में बैठ चर्चा की गई है........
क्यों बदनाम करते हो यार, इस ब्लाग पर तो डेढ़ साल से ऐसे ही चल रहा है। उसमें चेतावनी अन्य प्रकाशकों के लिये है पर ब्लाग लेखकों के लिये कोई बंधन नहीं हैं क्या यह नहीं पढ़ा? यह सूचना इसलिये लिखी गयी था कि आपके इस चिट्ठा चर्चा में पाठ के चोरों की चर्चा की जाती है और उनसे सचेत रहने का आग्रह किया जाता है। फिर इतने समय से आप चिट्ठा चर्चा पर इस ब्लाग से मेरे पाठ संबद्ध कर लेते हो तब क्या ध्यान नही गया था? खैर आपका पाठ अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
सुन्दर चर्चा . कविताओं के बहुत से सुन्दर चिट्ठों की नुक्ताचीनी ने मोहित किया. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखाये जा खाये जा, चिट्ठा चर्चा के गुण गये जा
जवाब देंहटाएंभरे पेट चर्चा शानदार करी। वर्तनी पर चर्चा जरूरी और मनोरंजक है।
जवाब देंहटाएंचलिए पेट भरा तो :)
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