शुभकामनाओं से भरे ब्लॉग क्षितिज में अफलातून ने बताया कि किस प्रकार अखबार माफिया ने पुलिस का इस्तेमाल कर संघर्षरत हॉकरों की हड़ताल तोड़ने में सफलता प्राप्त की। अखबारों की कीमत में एक तिहाई की वृद्धि के एवज में हॉकरों के कमीशन में पॉच पैसे की वृद्धि की गई थी। दिनेशराय द्विवेदी इस पर व्यक्त प्रतिक्रिया में उम्मीद और निराशा दोनों को अभिव्यक्ति देते हैं-
आज कर्मचारी, मजदूर और श्रमजीवी वर्ग चाहे वह सोफ्टवेयर इंजिनियर क्यों न हो? अर्थवाद की सीमा से आगे जा कर राजनैतिक हो गया है।
ये वर्ग अपनी राजनैतिक लड़ाई में अभी आगे नहीं आना चाहते। यही कारण है कि उन का हर संघर्ष पिट रहा है।
बिना राजनैतिक संघर्ष के इन वर्गों के कुछ मिलना नहीं है। अंततः राजनैतिक संघर्ष पर इन्हें विवश होना पड़ेगा। और तब तक देश की राजनीति पूंजीवादी, सामंती और टटपूंजिया वर्गों और उन के प्रतिनिधि दलों के बीच ही घूमती रहेगी।
भविष्य में परिवर्तन अवश्यंभावी है। पर उस के लिए कितनी प्रतीक्षा करनी होगी। नहीं कहा जा सकता।
नए साल में एक शानदार आमने-सामने खुद ही पेश हो गया है। आलोकजी ने बधाई दी तो काकेश जो अरसे से लुप्तप्राय हैं ने प्रतिबधाई दी, दोनों को रविजी ने रचनाकार पर प्रस्तुत किया। हम पुनर्प्रस्तुत कर रहे हैं आमने सामने इश्टाईल-
आलोक पुराणिक आमने | काकेश सामने |
डरना जरुरी है | हँसना जरूरी है |
वैसे गंभीर प्राणियों ने हँसने में आज कमाल किया हुआ है। गुलेरी कि कहानी 'उसने कहा था' में जब सिख सैनिक 'गंदा गाना' गाकर नाचने लगते हैं तो कहानीकार कहता है कि किसे पता था कि घरबारी सिख लुच्चों वाला गाना गाएंगे। अब हमें ही कहॉं पता था कि रवीश जो सामान्यत वैसा लिखते हैं जो प्रमोदजी के शब्दों में -
ओह, सो टचिंग. एंड सैडेनिंग आल्सो. इज़ट देयर इज़ ए सिंगल लार्जर देन लाइफ़ लीडर जो चार दिन में चप्पल मार-मारके पटना को पैरिस में बदल दे? या पहाड़गंजे में बदल दे?
अब किसने सोचा था कि यही टंचिंग व सैडनिंग के लेखक रवीशजी कार्टून कोना ढब्बूजी टाईप बिहार के आर के लक्ष्मण की पूरी शृंखला ही पेश कर देंगे पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कड़ी का आनंद लें और बाकी की प्रतीक्षा करें।
जब ऐसा मीठा मीठा हँसानक वातावरण चल रहा हो तब सच को मुँह पर फेंककर मार नहीं देना चाहिए जैसे कि परमोद भैया ने सोर्ट आफ प्रेमपत्र दे मारा है (अगर हिन्दयुग्मी गुस्सा हो गए तो क्या होगा।)
भाषा के किसी बने-बनाये खांचें में क्यों लटके रहें? जिस हिंदी ने स्कूलों में हमें शिक्षित, व हमारे संस्कारों को दीक्षित किया, उस भाषिक पहचान, राष्ट्रीय अभियान की, बहुत अर्सा हुआ, हवा निकल चुकी है. यह यूं ही नहीं ही है कि नाम लेने लायक एक राष्ट्रीय साप्ताहिक, पाक्षिक पत्रिका तक नहीं है हिंदी के पास. इसीलिए नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे किसी सेतु को खड़ा करनेवाली समझ व समाज हिंदी के पास नहीं है. क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, वह अपनी छोटी फ़ौजें जोड़ते व तोड़ते रहते हैं, मगर मूलत: वह हिंदी से खाया-खिलाया-चलाया जा रहा बाज़ार है, विचार नहीं
वैसे हिन्दयुग्म में अभी रज्जू भैया की चुरुट ही जलाई लगाई बुझाई जा रही है।
अनुराग वत्स साथी चिट्ठाकार प्रत्यक्षा पर बही खाता लेकर प्रस्तुत हुए हैं।
मैं जब लिखती हूँ तब शब्द मेरे लिये नदी के किनारे, रेत में चमकते पत्थर होते हैं, उनका अनगढ़पना, उनकी रंगत, उनकी छुअन मेरे लिये कई कई पगडंडियाँ बनाती हैं, उन सुदूर पहाड़ों से पहचान कराती हैं जहाँ से किसी कठिन सफर के बाद वो मुझ तक पहुँची हैं। चाहे वो ठेठ देशज शब्द हों, जैसे 'जंगल का जादू तिल तिल' या 'फुलवरिया मिसराईन' में या फिर 'दिलनवाज़ तुम बहुत अच्छी हो' में अंग्रेज़ी या तेलुगु का इस्तेमाल हो। मुझे ज़रूरत पड़ेगी तो मैं सिर्फ अंगेज़ी क्यों तमिल, बंगला, फ्रेंच, जर्मन या कोई भी दूसरी भाषा के शब्द भी इस्तेमाल करूंगी, किया है, अगर मेरे उस भाव को सिर्फ वही शब्द सही और पूरे समग्र भाव से पकड़ रहे हैं, डिफाईन कर रहे हैं
अब बची हैं ढेर सारी नववर्ष की बधाई पोस्टें सो देने को तो दे रहे हैं ये रहीं-
नववर्ष की नव बेला
नव-वर्ष का विशुद्ध हिन्दीमय उपहार : खांडबहाले ‘विश्व का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी-अंग्रेज़ी ऑनलाइन शब्दकोश’
नव-वर्ष की पहली पोस्ट - शुभकामना
लेकिन साफ बता दें कि अब सेंटी होने की गुजाइशें कम होती जा रही हैं, जैसा कि विनीत ने बताया ही कि शुभकामनाएं सिंथेटिक होने लगी हैं, गनीमत हैं कि चिट्ठों में खुद ही लिखना पड़ता है। तो हमारी ओर से खालिस देसी घी सी मौलिक मुबारकबाद का आनंद लें। बेचारी मधुबाला अब रही नहीं वरना अपणे जाट मुसाफिर तै कोरियोग्राफी सीख सकै थीं-
अब तो आपकी चर्चा का इंतेज़ार लगा रहता है.. चिट्ठा चर्चा में हर चर्चाकार का एक अलग अंदाज़ बनता जा रहा है..
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा आलोक जी और काकेश जी का बधाई का अंदाज पसंद आया कुश जी सही फरमाते हैं हर चर्चाकार का अंदाज अलग सा है और हर अंदाज शानदार है
जवाब देंहटाएंइस चर्चा के लिये धन्यवाद. पवन जी के कार्टून का खयाल करिये, है आंचलिक पर दमदार.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रही जी आपकी चर्चा. बहुत शुभकामनाएं आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर चर्चा और खास कर इस बार का खास आमने-सामने....
जवाब देंहटाएंमार माउस के टिपिया दिए लोग (पवन जी के अंदाज में), नया साल नया साल, अब तो सुनते सुनते (और कहते कहते) कान पाक गया|
जवाब देंहटाएंआमने सामने अविश्वसनीय ! पहला कार्टून मार्मिक !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुतै भूमैटिंग है..
जवाब देंहटाएंयहीये सब आप इस्कूल-गौसाला में परहाते हैं, मस्सीजी?
वाह ! आनंद आ गया. बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकार्टून और जुगलबंदी(आलोकजी और काकेशजी) लाजवाब रही.
गुड है जी। पंकज के कार्टून देख के मजे आ गये। आलोक पुराणिक और काकेश का ’टेबल अनुवाद’ जम गया। वीडियो धांसू। हड़ताल के बारे में क्या कहें? मंदी के मौसम में हड़ताल कैसे चलेगी? चल पायेगी! रज्जू भैया के बारे में अनुनाद जी ने जो लिखा है राजेन्द्र यादव एकतरफा बयानबाजी अच्छी कर लेते है लेकिन जब सवाल-जवाब की बात आती है तो उनकी बोलती बन्द हो जाती है। वह कित्ता सही है यह तो पता नहीं लेकिन तद्भव के नये अंक में नामवरजी से बात करते हुये उनकी हालत ऐसी ही लगी थी।
जवाब देंहटाएंमसिजीवी जी, आज तो आपने मेरे डांस को विश्वप्रसिद्ध बना दिया.
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