आज बसंत पंचमी है। न जाने कितनी कवितायें बसंत पंचमी पर लिखी गयीं हैं। मुझे याद है काशी्विश्वविद्यालय की स्थापना बसंत पंचमी के ही दिन हुई थी। यह बात मुझे तीन साल पहले अफ़लातून जी की पोस्ट से मिली थी। राजेन्द्र राजन की कविता इसी बात को याद करती है शायद जब वे लिखते हैं:
यही है वह जगह
जहां नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव
हमउमर की तरह आता है
आंखों में आंखे मिलाते हुए
मगर चला जाता है चुपचाप
जैसे बाज़ार से गुज़र जाता है बेरोजगार
एक दुकानदार की तरह
मुस्कराता रह जाता है
फूलों लदा सिंहद्वार
बसंत निरालाजी बसंत पंचमी को अपना जन्मदिन मनाते थे। डा.कविता वाचक्नवी की निराला काव्य पर केंद्रित पुस्तक समाज भाषाविज्ञान रंग शब्दावली:निराला काव्य का लोकार्पण इलाहाबाद में पिछले दिनों हुआ और उनको सम्मानित किया गया।
कविताजी को एक बार फ़िर से बधाई!
आज ताऊ पत्रिका का शनीचरी अंक निकला। पिछली विजेता सीमा गुप्ताजी का साक्षात्कार भी प्रकाशित हआ। सीमाजी ने एक सवाल के जबाब में कहा:
सवाल है : लोग आपको लेडी गालिब कहते हैं. कैसा लगता है आपको लेडी गालिब कहलाना?
जवाब : इस पर सीमाजी ने बडी विनम्रता पुर्वक कहा- मै तो सपने मे भी ऐसा नही सोच सकती.......इतनी महान हस्ती की पावँ की धूल बराबर भी नही हूँ मै....न ही इस जीवन में कभी हो पाउंगी....इतनी योग्यता और काबलियत नही है मुझमे ....ये मै जानती हूँ....."
दीप्ति ने आज अपने ब्लाग पर साधना गर्ग के बारे में लिखा। साधनाजी के बारे में लिखते हुये उन्होंने लिखा:
साधना दिल्ली में रहती है। वो दिल्ली के सरकारी दफ़्तरों में फ़र्नीचर रिपेयरिंग और ड्रायक्लीनिंग का काम करती हैं। साधना नेत्रहीन हैं। बचपन में एक लंबी बीमारी के चलते उनकी आँखों की रौशनी चली गई। लेकिन, साधना से मिलने पर ये ज़रा भी महसूस नहीं होता है कि वो देख नहीं सकती हैं। अपना हर काम वो खुद करती है। किसी भी बात के लिए वो दूसरों पर निर्भर नहीं।
ब्रेल लिपि में अपना काम करने वाली साधना जी ने कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके बारे में और विस्तार से दीप्ति लिखती हैं:
साधना के पति भी नेत्रहीन हैं। साधना ने प्रेम विवाह किया है। ये उनकी मर्ज़ी ती कि वो नेत्रहीन से शादी करे। उनका कहना हैं कि क्या पता आंखोंवाले को कोई और भा जाती। साधना को व्यवस्थित और अच्छे से रहना पसंद हैं। वो एक से बढ़कर एक साड़ियाँ और ज्वेलैरी की शौकीन हैं। साधना से घर पर बातचीत के बाद जब मैं उनके साथ उनके काम करनेवाली जगहों पर गई तो मुझे और भी आश्चर्य हुआ। साधना पूरे रास्ते मोबाइल पर बातें करती रही। साधना ने दफ़्तर पहुंचते ही मोबाइल पर बात की और उनका एक वर्कर आ गया। वो उन्हें अंगर लेकर गया। उन्होंने ऑफ़िसर से बिल की बात की। हाथों से छूकर वर्कर का किया काम महसूस किया और उसे निर्देश दिए।
मुझे सिर्फ़ एक दोस्त चाहिये कविता में रवीश कुमार अपनी इच्छा बताते हैं:
ऐसे तमाम झूठे मुलाकातियों से हर रोज
हाथ मिलाने का मन नहीं करता
लगता है लात मार कर भगा दूं
और ढूंढ लाऊं अपने उन दोस्तों को
जो फिक्र करते थे कभी मेरी,
कभी मेरे लिए चाय बना देते थे
फिल्म जाने से पहले किचन में
छोड़ जाते थे तसले में थोड़ी सी खिचड़ी
वो तो भला हो उनके दोस्तों का जो रवीश कुमार अपने मन की बात को कार्यरूप में नहीं बदलते वर्ना लफ़ड़ा हो जाता।
अफ़लातून उनको अपनी टिप्पणी में संकेत से बताते हैं कि ये सारे दोस्त मनुष्यता के मोर्चे
पर हैं:एक छोटा-सा टापू है मेरा सुख
जो घिर रहा है हर ओर
उफनती हुई बाढ़ से
जिस समय काँप रही है यह पृथ्वी
मनुष्यो की संख्या के भार से
गायब हो रहे हैं
मनुष्यता के मोर्चे पर लड़ते हुए लोग ।
पता नहीं कि अगर रवीश कुमार को उनके सारे पुराने दोस्त मिल भी जायें तो भी वे वैसे ही आपस में व्यवहार करेंगे कि कुछ अलग होगा मामला। मुझे अखिलेश की कहानी चिट्ठी का अंत याद आता है!:
हम दोस्तों ने अलग होते हुये तय किया कि हममें से जो भी सुखी होगा वो दूसरे दोस्तों को चिट्ठी लिखेगा।
अभी तक मेरे पास कोई चिट्ठी नहीं आई है।
एक लाइना
- यह सब आप ही का किया धरा है : वाह बबुआ, करो तुम भरे हम?
- मुझे सिर्फ एक दोस्त चाहिए : बनावटी बता के लिये लतियाने के लिये
- ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है : मर्जी है जी!क्या कल्लोगे आप कविता सुनाकर!
- धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी :शब्द सफ़र की आज की सवारी
- देश का क्या होगा..? : हमारी सोच सुरक्षित है
- नेताओं की डगर पे चमचों, दिखाओ चल के :यह देश है तुम्हारा खा जाओ इसको तल के
- ...पब....अब.... : .....नहीं तो कब?
- मोलभाव या विश्वास ? :का चाहिये जी?
- वसन्त की गुमशुदगी:की रपट थाने में लिखाऒ
- हौले से चढ़ता सा एक नशा :आराम से ही उतरेगा
- लो बसंत आया...! : चाय बना के लाओ,इसको पिलाओ
- अब न अरमान हैं न सपने हैं : एक बार करवट बदल लेव भैया अरमान भी दिखेंगे और सपने भी !
- कल्चर के नाम पर गुण्डागर्दी ही तो है :तब क्या यही तो कल्चर है जी!
- ख़ाब सब ख़ाब हैं आँखों में बिखरे हुए:सब समेट के एक जगह धरो जी
- दुलारी के बहाने एक अतिथि पोस्ट...!: बहानेबाजी नहीं चलेगी,रागिनी-रचना नियमित लिखेंगी
- डामेन खरीद लीये हैं तो क्या करें की खूब चले : कुछ लिखा जाये उस डोमेन पर। मिठाई सिठाई खिलायी जाये।
- बस जागरण का इंतजार है : इसके बाद सोयेंगे दबाकर
और अंत में
आज विवेक ने अपनी सौंवी पोस्ट लिखी। अगस्त माह में शुरू करके पांच महीने में सौ पोस्ट लिखी। बीस का औसत बनता है। बीच में इम्तहान और दिन-रात पाली में बदलती नौकरी। इसके अलावा मंगली चर्चा जिसका कि सबको इंतजार रहता है।
आशु कविता विवेक की खासियत है। चलते-चलते में चुटकी लेते हुये अपनी बात कहने का अंदाज शानदार है। एक खासियत विवेक की है जो उनकॊ दूसरे लोगों से जरा अलग करती है। वे मुंहदेखी टिप्पणी कम करते हैं। कम शब्दों में मौज लेने की कला घणी आती है। जित्ती भोली शक्ल के दिखते हैं लेखन उत्ता भोला नहीं है। नटखटपन और चुहलबाजी का मजेदार घालमेल रहना है विवेक में।
स्वाभाविकता और सहजता विवेक की खासियत है। अपने इस अपराध को वे कुबूल भी करते हैं:
ब्लॉगिंग में मैंने हमेशा अपना स्वाभाविक खेल खेलने का प्रयास किया है । शायद इसीलिए यहाँ भी निजी जिन्दगी जैसे अनुभव हो रहे हैं । गलतफहमियाँ हुईं । रूठना मनाना हुआ । कभी हम रूठे आपने मनाया । कभी आप रूठे हमने मनाया । बडों ने हडकाई भी की और प्यार भी बरसाया ।
यहाँ पर बहुत सारे लोगों से जान पहचान भी हुई । फोन पर बात हुई पर आमने सामने मिलने का अवसर अभी नहीं मिला । मुझे लगता है कि मिझे जो नए लोग मिलते हैं उन्हें मेरा स्वभाव कुछ अजीब लगता होगा । मगर समय बीतते बीतते मुझे हमेशा स्वीकार किया गया है । और अच्छे अच्छे मित्र भी मिले हैं । ऐसा ही ब्लॉगिंग में हुआ । यहाँ भी मुझे सब लोगों का आशातीत प्यार मिला ।
चिट्ठा चर्चा करने के लिए मिला आमंत्रण पाकर मैंने बहुत सम्मानित अनुभव किया ।
इस मौके पर विवेक को मेरी शुभकामनायें। आशा है कि वे अपना अंदाज बनाये रखेंगे और इसी रफ़्तार से लिखते रहेंगे।
देबाशीष की शिकायत है और जायज शिकायत है कि सामयिकी की पोस्टों का जिक्र चिट्ठाचर्चा में कम होता है। सब बिसर सा जाता है जी। आज सामयिकी में देखिये श्रीलंकाई अखबार द संडे लीडर के दिवंगत संपादक का अंतिम संपादकीय जिसे उन्होंने अपनी हत्या किये जाने पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था मरने से पहले लिखे संपादकीय में जाबांज संपादक लिखता है:
जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे यह सन्तुष्टि है कि मैं सीना तान कर चला और किसी के सामने झुका नहीं। और इस सफर पर मैं अकेला नहीं चला। मीडिया की अन्य शाखाओं में मेरे सह-पत्रकार मेरे साथ चले हैं - उन में से अधिकांश अब या तो मृत है, बिना मुकदमे के कारावास में हैं, या कहीं दूर देश-निकाले पर हैं। कुछ और हैं जो मौत की उस छाया में जी रहे हैं जो तुम्हारी हुकूमत ने उन आज़ादियों पर डाली है जिन के लिए कभी तुम स्वयं लड़े थे। तुम्हें यह भूलने नहीं दिया जाएगा कि मेरी मौत तुम्हारे रहते हुई।
कविता जी, सीमा जी और तरुण जी के साथ साथ सम्पूर्ण चर्चा पठनीय एवं ज्ञानप्रद है.
जवाब देंहटाएं- विजय
वाह जी, आज तो दिन मे दो दो चिठ्ठा चर्चा और वो भी दो दो चर्चाकारों द्वारा. मान. कविता जी,मान. सीमाजी और श्री विवेक सिंह जी को घणी बधाई. आज बसन्त पंचमी को इस वासंती चर्चा के लिये बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस चर्चा की प्रतीक्षा थी. विवेक जी को इस मंच से भी सौवीं पोस्ट की बधाई.
जवाब देंहटाएंदीप्ति का ब्लाग नहीं पढ़ा था, उसे पढ़्कर प्रसन्नता हुई. धन्यवाद.
बड़िया चर्चा, कविता जी को मेरी तरफ़ से भी बधाई। शुभरात्री
जवाब देंहटाएंविवेक जी की सौंवी पोस्ट..........साधू साधू.......!
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जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात जी !
गब्बर सिंह का कोई हुक्म आया है का :)
जवाब देंहटाएंडॉ.कविता वाचक्नवीजी को ढेर सारी बधाइयां। उनके लेखन को और रवानी मिले और उन्हें ढेर सारे सम्मान। विवेकजी को सेंचुरी मारने पर बधाई। भविष्य में भी बिना आउट हुए खेलते-ठेलते रहेंगे, यही कामना है।
जवाब देंहटाएंडॉ वाचक्नवी जैसी विदुषी हमारे लिये अभिमान की बात हैं. ईश्वर उनकी कलम को सक्रिय रखें.
जवाब देंहटाएंविवेक को सौंवी पोस्ट के लिये बधाई. अब हजारवीं एवं दस हजारवीं का इंतजार रहेगा !!
एक और अच्छे/पठनीय चर्चा के लिये आभार.
डॉ वाचक्नवी जैसी विदुषी हमारे लिये अभिमान की बात हैं. ईश्वर उनकी कलम को सक्रिय रखें.
जवाब देंहटाएंविवेक को सौंवी पोस्ट के लिये बधाई. अब हजारवीं एवं दस हजारवीं का इंतजार रहेगा !!
एक और अच्छे/पठनीय चर्चा के लिये आभार.
सस्नेह -- शास्त्री
अनूप जी,शास्त्री जी,प्रसाद जी,अनीता जी, विजय जी, हिमांशु जी व ताऊ जी!आपके स्नेह के प्रति आभारी हूँ। स्नेह बनाए रखें। धन्यवाद।
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