रविवार, जनवरी 25, 2009

२६ जनवरी के पहले एक दूरदर्शन समाचारीय चर्चा

ठहरो यार अभी तक कुछ दिलचस्प मिला नहीं है। क्या है न कि लोग गणतन्त्र दिवस की छुट्टी मना रहे हैं तो लिखने वाले कम हैं।
इसलिए शुरू करते हैं दूरदर्शन।

अचरज की बात है न कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया आने से कोई फ़र्क नहीं पड़ा, अनशन अब भी वैसे ही होते हैं जैसे लाट साहब के ज़माने में होते थे? पर पढ़े अनपढ़े सभी को वोट देने दोगे तो यही होगा न।

अक्षत विचार वाले गूढ़ चिंतन कर रहे हैं अपने संविधान पर, यानि की हारा या जीता?

उसी लय में पासपोर्ट का फ़ार्म ऑन्लाइन होने की सूचना भी दी जा रही है।

और राजसमंद में सार्वजनिक पुस्तकालय का शिलान्यास हो गया।

जनसत्ता अखबार की भाषा के बारे में रोचक लेख छापा कारवाँ वालों ने

जयपुर में साहित्य सम्मेलन हुआ। पैमाना पैमाना।

लेकिन लल्ला लल्ली चले गए अमेरिका बसने। जवाहरलाल नेहरू के शरीर पर सिफ़्लिस के चकत्ते पाए गए।

चीनी के भाव कम होने की आशंका है। लेकिन स्थिति गंभीर किंतु नियंत्रण में है।

मुसाफ़िर जी बता रहे हैं कि वे २६ जनवरी कैसे मनाते थे। लेकिन सपने पर हँसे तो खैर नहीं। हाँ सपने में हँस सकते हैं। क्या इतवार के अलावा दारू नहीं पी जा सकती? कंचन पंत जी आपकी बात दिल को छू गई

माउथ ऑर्गन तो अच्छा बज रहा था, अच्छा प्रयासचाँदनी चौक टु चाइना तो पिटी हुई फ़िल्म है, ज़रा राज़ द्वितीय की समीक्षा भी पढ़ लें।

हापुड़ के पास है चीलों का गाँव। पंचायती राज है क्या वहाँ?

सोनीपत के कलट्टर बरी हो गए हैं।

कुछ व्यापार समाचार - बाप सत्यम् तो बेटा मेटास। दुर्योधन और धृतराष्ट्र की याद दिला दी।

अंत में खेल समाचार। हॉकी में भारत आर्जेंटीना से २-० से हार गया।

समाचार समाप्त हुए।
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जय हिंद!

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5 टिप्‍पणियां:

  1. ajee is charchaa ke to ham kaayal hain na jaane kab se maja aa gaya.

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  2. वाह! यह तो ९+२+११ ब्लॉगों की (मैने गिने नहीं, लगभग) चर्चा हो गई!

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  3. शायद चर्चा आज भी कर दी भूखे पेट
    खाते खाते हो गए या फिर इतने लेट ?
    या फिर इतने लेट सुबह से राह निहारें
    बना रखा क्या हाल स्वयं का हाल सुधारें
    विवेक सिंह यों कहें समय का ऐसा टोटा ?
    या तो ज्यादा खरा शख्श या ज्यादा खोटा :)

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  4. नौ तेरह बाईस
    घाल दिया ६
    काढ लिया
    अठ्ठाईस. :)

    रामराम.

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  5. अच्छी माइक्रो चिट्ठाचर्चा . गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना .

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