सुबह हमने लिखा था:
किस्से और भी हैं लेकिन वो फ़िर। शायद शाम को, अगर जल्दी लौट आये। अभी एक काम से तुरंत निकलना है। क्या पता तब तक कुश यहां भी कुछ ठेल दें। आखिर आज उनका दिन है और वे भी तो हैं चर्चा टीम में।
हम जल्दी तो नहीं लेकिन लौट आये। अभी कैलेंडर की तारीख बदलने में कुछ देर है सो आजै की तारीख में कुछ लिख-लिखा देते हैं। कल किसने देखा है?
ये विवेकसिंह हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगेघराने के कलाकार हो रहे हैं जी। देखिये एक अच्छे भले आदमी को ब्लागिंग सिखा रहे हैं। ये भी कोई बात हुयी। वे अपने इरादे छिपाते भी नहीं और कहते हैं:
अब आप सोच रहे होंगे कि इदम् अतुलायणम् किम् प्रयोजनम् ? तो बता दें कि यह सब दर असल बदले की भावना के वशीभूत होकर किया जारहा है । जैसे इन्होंने हमें शेयर मार्केट के पंक में घुसाया वैसे ही हम इन्हें देर सवेर ब्लॉगिंग के पंक में घसीटकर लाने वाले हैं ।
अजित वडनेरकर आपको कागज-कथा सुनाते हैं आज:
यह स्थापित तथ्य है कि काग़ज़ का आविष्कार पश्चिम में नहीं बल्कि पूर्व में हुआ था। ईसा से करीब एक सदी पहले चीन के उत्तर पश्चिमी गांसू प्रांत में त्साई लिन नामक एक उद्यमशील राजकीय कर्मचारी ने किया था। चीन में इस पदार्थ को नाम मिली गू-झी अर्थात Gu zhi । चीनी भाषा में इसका अर्थ हुआ लेखन सामग्री। कई सदियों तक चीनियो की काग़ज़ बनाने की तकनीक गुप्त रही मगर आखिरकार सातवीं आठवीं सदी के आसपास किसी तरह यह तरकीब उज्बेकिस्तान के प्राचीन शहर समरकंद तक पहुंच गई जहां इसका तुर्की नाम हुआ काघिद।
अनामदास इस कथा में और रस घोलते हुये लिखते हैं:
मिस्र गया था तो कई पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियाँ देखने को मिली जो एक पौधे के तने से बनाए गए भोजपत्र नुमा कागज़ पर लिखी गई थीं, नाम था पपायरुस. फराओ के दौर की पांडुलिपियाँ उसी पर लिखी गई थीं, यानी ईसा से एक-डेढ़ हज़ार साल पहले. यह दरअसल अरबी का नहीं बल्कि ग्रीक का शब्द है जो बाद में यूरोप पहुँचा जिससे अँगरेज़ों ने पेपर शब्द बनाया. अरबी में इसे वज़्द और त्वफ़ी (विकीपीडिया) के नाम से जाना जाता रहा. जिस पेपर का इस्तेमाल करके बड़े बड़े शोध अँगरज़ों ने लिखे, जिस कागद को हम सबने काला किया, उसमें सब कुछ हमारा ही था, या हमारा कुछ नहीं था...ये दुनिया ऐसी ही है..शायद इस दुनिया में इंसान के एक होने के सबसे बड़े गवाह शब्द हैं, हालाँकि उनकी अलग-अलग पहचान बताने के लिए भाषाशास्त्रीय विश्लेषण भी एक आम तरीक़ा है, कितनी बड़ी विडंबना है, शायद वैसे ही जैसे हर इंसान का ख़ून एक जैसा है लेकिन अलग-अलग ब्लड ग्रुप हैं
वर्षा मर्फ़ी के माध्यम से जानकारी देती हैं:
आप अगर कुछ ऐसा बनाएंगे जो बेवकूफी से सुरक्षित होगा तो ऐसा व्यक्ति पैदा हो जाएगा जो और बड़ा बेवकूफ होग।
अशोक पाण्डेय की पीड़ा है जिसे व्यक्त करने वे ज्ञानजी से क्षमायाचना करते हुये व्यक्त करते हैं।
धीरू सिंह कहते हैं-दुआ मिलते ही दर्द हवा हो गया । दवा का काम लगभग खत्म हो गया । आप जैसे शुभ चिंतक मिल जाए तो अशुभ किसी का कभी न हो ।
तरुण ने अंग्रेजी फ़िल्म स्लमडाग मिनायर की हिंदी में समीक्षा की है। फ़िल्म को चार स्टार दिये हैं। पीले,चमकते हुये स्टार!
ज्ञानजी ने कल कट-पेस्ट तकनीक पर जरूरत से ज्यादा निर्भर रहने वालों को सावधान करते हुये लिखा:
लोग मौलिक लिखें। अपने ब्लॉग पर यातायात बढ़ाने के लिये अपने ब्लॉग से कुछ ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर अच्छी टिप्पणियां करें। उनपर गेस्ट पोस्ट लिखने का यत्न करें। अपना नेटवर्क बढ़ायें। यह तो करना होगा ही। किसी अन्य क्षेत्र में वे सेलिब्रिटी हैं तो दूसरी बात है; अन्यथा ब्लॉगरी का कोई शॉर्टकट है – ऐसा नहीं लगता।
विष्णु बैरागी जी ने ज्ञानजी की बात की व्याख्या करते हुये लिखा:
‘संघर्ष और प्रयत्न’ जीवन के वे अपरिहार्य अंग हैं जो जीवन को सार्थक बनाते हैं। अनुकूलताएँ और प्रतिकूलताएँ, सुविधाएँ और असुविधाएँ, अभाव और समृध्दि आदि भाव और स्थितियाँ ही जीवन को सार्थकता देती हैं।
देबाशीष फ़िलहाल ब्लागिंग में कम सक्रिय से दिखते हैं लेकिन हिंदी ब्लागिंग के शुरुआती दिनों में सबसे सक्रिय लोगों में रहे। हिंदी ब्लागिंग के लिये तमाम सुविधायें मुहैया कराने के प्रयास किये। रवि रतलामी ने उनको पकड़के तमाम सवाल पूछ डाले। बंद नल के पास कुर्सी पर पांव हिलाते हुये देबू ने तमाम सवालों के जबाब दिये। आपखुद सुन लें। जो मुख्य बातें देबू ने कहीं उनमें से हैं:
चिट्ठों की संख्या ६०० से ६००० होना एक बड़ी २००८ की उपलब्धि हैं! कई ब्लागर को मिलकर राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर लिखना चाहिये। हिंदी ब्लागिंग में गंभीर मुद्दों पर चर्चा, मीमांशा और विमर्श का अभाव है। हिंदी ब्लागिंग को प्रेस की प्रतिकृति बनने से बचना चाहिये! बढ़ते चिट्ठों के साथ अपना ब्लाग पढ़वाने के लिये ब्लाग पोस्ट का शीर्षक सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है अगले पांच साल तक ब्लागिंग से कमाई का सपना नहीं देखना चाहिये। ब्लागिंग के लिहाज से तकनीकी सुविधाओं का अब कोई रोना नहीं है। टिप्पणियॊं में पाठक लेखक से अलग राय या विषय को आगे बढ़ाने वाली टिप्पणियां करने के बजाय वाह,वाह अधिक करते हैं। खेल, शिक्षा, कानून और अन्य सामान्य सामाजिक विषयों पर ब्लाग कम हैं।
देबाशीष ने इस सवाल का जबाब नहीं दिया कि २००८ में हिंदी ब्लागिंग की क्या कमियां रहीं। लेकिन २००८ का सबसे बड़ा अभाव यह रहा कि इस साल इंडीब्लागीस का आयोजन नहीं हुआ जिसके पीर,बाबर्ची,भिस्ती,खर देबाशीष ही हैं।
सुखदेवजी पानमहिमा सुना रहे हैं:
पान के शागिर्द
चूना-कत्था नहीं
तो अकेले पान क्या रंग दिखा पाता
पान की गिलौरी
जो एक पैसा में मिलती थी
बारे आम अब एक टका की हो गयी है
कीमती गिलोरियां खाने वाले शौकीन
बिरले होते हैं
वह सर्वसुलभ नहीं है
किसी को मीठा पान भाता है
ज्यादा लोग पान के ऊपर
काला, पीला जाने क्या-क्या
मांगते हैं
पान की डंटी में चूना चाहिए
पनहेरी तबाह रहता है।
आधी आपकी आधी हमारी मतलब एक लाइना
- कृषि क्षेत्र में पड़ोसियों से भी पिछड़ गया भारत: अरे नहीं भाई पिछड़ा नहीं, पछियाये है दौड़ा रहा है!
- एनी थिंग कैन गो रॉन्ग, विल गो रॉन्ग :मतलब होइहै सोई जो मर्फ़ी रचि राखा
- मै कोसती हूँ आदिम स्त्री के चुनाव को :सही है! कुछ न कुछ होते रहते चाहिये!
- गोटू सुनार ने ताऊ को पहनाई टोपी :कहते हुये कि जाड़ा है, उछलने तक पहने रहो!
- भावी ब्लॉगर !:की रगड़ाई शुरू
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है : बैरंग है। लें कि लौटा दें!!- दरख्वास्त: दे दी अब कभी न कभी तो कार्यवाही होगी ही!
- अरब की रद्दी, चीन का काग़ज़: दुनिया भर में फ़ैला पड़ा है!
- 18वीं सदी के लोगों का क्या करें? :गिनती सीखें, उन्नीसवीं सदी में आ जायें!
- आजा ज़री वाले नीले आसमाने के तले : उसके गोटे भी लगवा दें!
- पटना के सिनेमाघरों में मैं फिल्म क्यों नहीं देखूंगी ... अंजलि सिंह :क्योंकि वहां ऐसे घूरते हैं, जैसे हम आयटम गर्ल हों
- मकर संक्रांति पर : पतंगवा लडाई ले जिगर में बड़ी बात है :अरे पहिले बिपासाजी को तो बुलाइये!
- शादी में जाना भी एक आफ़त!! :ऊ त हैये है तबही न मैरिज एज बढ़ता जा रहा आफ़त से बचने के लिये!
- 2009 की हिन्दी चिट्ठाकारी के दिशा-मैदान पर देबाशीष चक्रवर्ती की पैनी नज़र : काट के धर दिया अगले ने!
- मीडिया बिल पर प्रधानमंत्री ने लगाई रोक : मतलब बिल, बिल में चला गया!
- भूलना मत : तलाक की बात
- कैसे रहें टैंशन फ्री : अपना टेंशन दूसरों को दान कर दें!
- थे जब तक दिल मे तुम मेरे........... : एक्को पैसा किराये का नहीं दिये हो
- अंधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है ?:थक गया हो तो पैर फ़ैला के लेट जाये
- इजरायल न हुए तो क्या हुए?: इंडिया त हैइऐं हैं न!
- पागल सी एक लड़की है :इसका इलाज तो आगरा या फ़िर रांची में ही होगा!
और अंत में
नीरज गोस्वामी जो लिखते हैं उसमें अपना पूरा का पूरा ससुरा दिल उड़ेल कर धर देते हैं!
नीरज जी ने तुकबंदी में जबाब लिखते हुये कहा:
अनूप जी जब आप हमें इतना मान देते हैं तो लगता है वास्तव में फुरसत में हैं.....हम अपना दिल ससुरा तो बरसों पहले एक ससुरी को दे फारिग हो लिए.
हड़बड़ी में लिखी अपनी पोस्ट में सखेद-संसोधन करके लिखते हैं:
नीरज गोस्वामी जो लिखते हैं उसमें अपना पूरा का पूरा प्य्रारा सा दिल उड़ेल कर धर देते हैं!
तदनुरूप नीरज जी का जबाब संसोधित जबाब होगा:
अनूप जी जब आप हमें इतना मान देते हैं तो लगता है वास्तव में फुरसत में हैं.....हम अपना दिल ससुरा तो बरसों पहले एक प्यारी को दे फारिग हो लिए.
पूर्ण विश्वास तो नहीं, पर आशा है, कि
उपरोक्त टिप्पणी व्यक्तिगत आक्षेप की श्रेणी में किंवा न आती हो !
आक्षेप और मौज़ के बीच की LOC अभी निर्धारित नहीं हुई है,भईय्यू !
डा. साहब आप मस्त रहें। हमारी LOC कित्ती दूर तक पसरी है हमें खुदै पता नहीं। लेकिन वह जहां तक भी है कि इत्ती चिरकुट नहीं कि मौज को आक्षेप के रूप में ले।
बाकी सबकी प्रतिक्रियाओं का शुक्रिया। कल सुबह फ़िर आपको मिलेंगे शिवकुमार मिश्र। परसों मसिजीवी। ऊपर के कार्टून बामुलाहिजा और झरोखा ब्लाग से साभार लिये गये हैं।
अब चलें? सोये? गुड नाइट बोल देते हैं फ़िर तो। सब कुछ शुभ हो होना ही है!
चर्चा कुश कैसे ठेल पाते...उन्हें तो ताउ ने अपने साथ ठगी के संयुक्त उपक्रम में लगा रखा है :)
जवाब देंहटाएंडर तो इस बात का है कि कहीं आपको भी ताउ ने लपेटे में ले लिया तो फिर चिट्ठा चर्चा का क्या होगा :)
अद्भुत है सर जी...
जवाब देंहटाएंकैसे करते हैं इतनी मेहनत आप ?
सुन्दर चर्चा. ’आधी आपकी, आधी हमारी’ अच्छी लगी. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअपने ब्लॉग पर यातायात बढ़ाने के लिये अपने ब्लॉग से कुछ ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगों पर अच्छी टिप्पणियां करें।
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे, फिर तो अपनी सारी जिंदगी टिप्पणी करते ही कटेगी, हम से ज्यादा पढ़े जाने वाले चिट्ठे बढ़ते ही चले जा रहे हैं ;)
अनूपजी, जब तक आप जैसे फुरसतिया बैठे हैं जो एक ही राउंड में दो-दो बार काटने में तूले हों तो इनकी तो आये दिन कटती ही रहेगी। देबू दा का इंटरव्यू शानदार रहा, मुद्दों पर चर्चा के अभाव की बात एक दम सही है।
मैं दुनिया मे हर काम कर सकता हूँ सिवाय चिटठा चर्चा के . असाध्य परिश्रम व धन्यबाद रहित कार्य
जवाब देंहटाएंहमारा एक लाइना :
जवाब देंहटाएंसबेरे की चर्चा जरा हड़बड़ी में की। : और रात की नींद में :)
... बहुत ही अच्छा लगा ब्लाग पर पहुँच कर, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंइत्ती बड़ी भीड़ में खो गया मैं...। चलो अब अगले दिन ढूँढते हैं। :)
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति पर
जवाब देंहटाएंकर से नहीं
कर की ऊंगलियों से
क्रांति करने का
संकल्प लिया है
कीबोर्ड के वीरों ने।
बहुत लाजवाब चर्चा रही जी. एक लाइना तो बिल्कुल धांसू है जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
लाजवाब चर्चा...
जवाब देंहटाएंएकदम मस्त ।
जवाब देंहटाएंBahut bharee kaam hai itne saare blogon ko padh uspar istarah charcha likhna........aaplogon ka prayaas atyant sarahneey hai.
जवाब देंहटाएंज़रा हम भी रस्म निभा ले....
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.. कैसे कर लेते है ये आप?
टिप्पणियॊं में पाठक लेखक से अलग राय या विषय को आगे बढ़ाने वाली टिप्पणियां करने के बजाय वाह,वाह अधिक करते हैं।
जवाब देंहटाएं------
मैं सहमत नहीं हो पा रहा। मेरी पोस्टों से उनपर आई टिप्पणियां कहीं ज्यादा दमदार हैं।
आज आप की चर्चा पर नहीं ज्ञान जी की टिप्पणी पर वाह! वाह!
जवाब देंहटाएं