नमस्कार !
मंगल-चर्चा में सभी गोप-गोपिकाओं का स्वागत है !
आजकल टिप्पणीकार खूब अच्छी अच्छी टिप्पणियाँ कर रहे हैं . आज टिप्पणियों का मज़ा लीजिए , और अगर जिज्ञासा हो तो ब्लॉग पर जाने का रास्ता भी है .
- आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नए अर्थ, नए रूप और विराट संप्रेषण मिलें जिससे वे जन-सरोकारों के समर्थ सार्थवाह बन सकें.......कभी फुर्सत में मेरे ब्लॉग पर भी पधारें... (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- अपने लिखा है कि" हिन्दी कविता में से 'अम्मा' 'बाबूजी' वगैरह के अक्स बिल्कुल गायब ही हो गए हैं।"शायद सही ही है, क्योंकि आज के समय में "अम्मा" जयललिता जी को और "बाबूजी" जगजीवन जी का पर्यायवाची हो चुका है। आपने एक और रिश्ते का ज़िक्र तो किया ही नही, वह है "बहिनजी" जो कि आजकल मायावती जी का पर्यायवाची बन चुका है।आशा हे नही वरन विश्वास है कि अब आप समझ ही गायें होंगे कि हिन्दी जगत के प्रबुद्ध लोग इन शब्दों के प्रयोग क्यों कर नही कर रहे हैं। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- पर भाई सबतै पहलम या देखनी पड़ेगी अक यो पप्पू किसका सै?अगर यो पप्पू किसी ताऊ (मंत्री) का हुया तो कौन मना कर सके इसने नौकरी तैं? के हाड्ड फ़ुडवाणै सैं? :) (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- असल मे आज भी गांव मे ताऊ जिन्दा है. कहीं नही गया है. हम लोग शहरों के ढकोसले और अंधी दौड मे इस ताऊत्व से दूर हो गये हैं और इसी वजह से परेशान हैं.निजी रुप से मैं साल मे १५ दिन आज भी गांव (स्वाभाविक है हरयाणा मे ही है) चला जाता हूं. चूंकी वहा आज भी खेती किसानी और भैसे गाये हैं तो उनके बीच शहर की आपाधापी कहां पीछे छूट जाती है? पता ही नही चलता.(ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- गंभीरपने को 'पना' बना बस पीता जा तू, हे बलोगर गर मज़ा मिल रहा हंसने में गंभीर रहे फिर तू क्योंकर गंभीर बने स्टील ओढ़ हड़काए गर वो कभी तुझे तू इतना हंस और ठट्ठा कर कि भागे वो बस इधर-उधर (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- सबसे बडे बीमार फुरसतिया जी, जिनसे सबको इन्फेक्शन फैला , वो कहाँ गायब हो गए लिस्ट से? ज्ञान जी भी लिस्ट में आने के लिए सफिशिएन्ट बीमार हैं भई !! (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- 'मैंने ग़रीबों को रोटी दी-तुमने मुझे संत कह कर पुकारा। मैंने पूछा ग़रीबों के पास रोटी क्यों नहीं है और तुमने मुझे कम्युनिस्ट कह कर कोसा।' (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- अब तो जो भी 'मुझ पर ताऊ होने का शक कर रहे हैं।उन के लिए दो बातें॥१-न तो मैं हरियाणा गयी, न हरयान्वी जानती.न ही रामपुर कभी देखा.उन के जैसा लिखना अपने बस का नहीं है.वैसे मुझे विवेक सिंह जी पर शक जाता है.क्यूँ विवेक जी-??-उनकी हाज़िर जवाबी और हरयान्वी दोनों ताऊ के लेखन से मैच कर रही हैं.वैसे सीमा जी भी शक के दायरे से बहार नहीं हैं.[समीर जी भी यही कह रहे हैं]२-ताऊ कौन ?--यह अब भी पहेली ही है...जब भी जांच कमीशन बैठे तो एक सदस्य की तरह जांच कमीशन में मुझे भी शामिल कर लेना.
- मुझे तो शुभाम् आर्य और ताऊ पर शक है.. हर बार सबसे पहले सही जवाब कैसे दे रहे हैं.. कोई मैच फिक्सिंग तो नहीं है??
- और हा ब्लॉगर्स के साथ धोखधड़ी नही चलेगी.. जब मेरे नंबर 501 है तो 501 ही दीजिए.. चाहे तो 100 की पाँच किश्तो में दे दीजिए.. (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- "आपके जूते की इस कथा ने आँखें भिगो दीं...उसे कहना हम उसके साथ हैं....वो अकेला नहीं है दुनिया में..."ये कमेन्ट नीरज नाम के प्राणी का जूता ही कर रहा है...जूता एकता जिंदाबाद...हे प्राणी हम कब तुझको पहनेगे?
- जूता जी जिन्दाबाद !
- जूता न हुआ, हमारा जीवन्त चरित्र हो गया। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- बढ़िया आरती गढे हैं, सर. इसका पेटेंट करवा लीजिये नहीं तो गूगल का कोई कर्मचारी अन्तिम किसी लाइन में अपना नाम.....कहत जॉन्सन जेना सुख संपत पावे...टाइप से लगाकर अपने बॉस को सुना डालेगा. प्रमोशन के चक्कर में कर्मचारी कुछ भी कर सकता है....:-) (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- भाई गजल के बारे है कूछ नही पता कहा पंसेरी डालनी है कहा दो शेर। बस भाव समझ मै आ जाये काफ़ी हे। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- इलेक्ट्रानिक मीडिया की आलोचना से बुरा मान गये क्या? लेकिन खुद ही सोचिये कि NDTV या आज तक को कितने लोग देखते हैं और आऊटलुक कितने लोग पढ़ते हैं? यही पैमाना है आलोचना का… घरों में वक्त-बेवक्त धमकने वाले मीडिया चैनलों से अखबारों की तुलना मत कीजिये… अखबार या पत्रिका पूरा परिवार एक साथ बैठकर नहीं पढ़ता… (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- भाई, अपनी हजामत तो रोज सुबह सुबह खुद बना लेते हैं, पर औरों की बनाना नहीं सीख पाए। जब कि वह खास कर धंधे वालों के लिए बहुत जरूरी है। सीखे यूँ नहीं कि डरते रहे कि दूसरे की खाल न कट जाए। जब कि हमारे यहाँ कहावत है,'मूंड मुड़े काहू को, सीखे बेटा नाऊ को। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- आज कल की बकवास फ़िल्मे ही आज के समाज को पसंद आ रही है, ओर हिट जा रही है, वो चाहे गुरू हो,बंटी बबली हो या फ़िर गजनी ओर या डोर... बेकार बतमिजीयो से भरपुर, एक ने तारीफ़ की सभी एक दुसरे को देख कर तारीफ़ करना शुरु कर देते है.. हम नकल क्लरते है विदेशियो की, ओर फ़िर ना घर के रहते है ना घाट के.मेने तो गजनी फ़िल्म देखी नही क्योकि आज जिस फ़िल्म की बात करो सभी हिट बोलते है जब देखो तो..... गन्दगी से भरपुर, ना बाबा ना धन्यवाद (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- उनको देखने से आ जाती है चेहरों पे रौनक,वे समझते हैं कि वोट इसबार हमें ही मिलेगा !!! (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- काहे दूसरे की डायरी के चक्कर में पड़े हैं? एक बार हमने भी एक भाईजान की डायरी पढ़्ने की गुस्ताखी कर डाली थे। वे नये नये बीमार-ए-मुहब्बत थे। हमने सोचा शायद कोई मसालेदार चीज मिले। अव्वल तो सारे मोबाइलों पे बाबा आदम के ज़माने से घूमने वाले शे’अर थे और एक उनकी अपनी अंडर-कंस्ट्रक्शन सो-काल्ड ग़ज़ल थी- (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- आप को लेडी गुलज़ार यूँ ही नहीं कहा जाता...बेहद खूबसूरत एहसास और लफ्ज़...वाह। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- आपकी रचना अच्छी है यह गहरी है और कम शब्दों वाली भी है लेकिन ऐसी मजबूत रचना में मेरे जैसे कमजोर पाठकों को पहली बार में ही समझ नही आती बधाई (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- समीर जी से कहियेगा कि कवितायें एकाध-दो ही सुनायें क्योंकि ब्लॉगर नाम का प्राणी बदला लेने को उधार बैठा ही रहता है, कहीं ऐसा न हो कि अगली ब्लॉगर मीट में कोई और ज्वालामुखी फ़ट पड़े… :) :) :) (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- हरियाणा में मेरे एक प्रिय मित्र ने देवीलाल ओर दूसरी सरकार में अन्तर बताया ....पहले पैसे लेकर केवल जाटो का ही काम वक़्त पर होता था.......अब बाकी लोगो से पैसे भी लिए जाते है पर काम जाटो का भी देरी से होता है..... (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- साहित्यिकों-बुद्धिजीवियों का छिछोरापन कोई नई बात नहीं...सर्वाधिक अहंवादी भी यह लोग हैं, सर्वाधिक चाटूकारिताप्रिय भी। मीठा-मीठा हप्प !!!जैजै-जैजै, वाह॥वाह के कुटैव में फंसे हैं। आलोचना झेली नहीं जाती तो एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी। क्या हिन्दी विश्वविद्यालय और क्या उसके विवाद...टाइम खराब कर दिया अविनाश भाई... (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- बड़ा हड़काऊ माहौल है हिन्दी ब्लॉगरी में।
- भाई इब तो डरणा पडैगा। मामला संगीन दिखै। :) (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- एक बात ओर इस पोस्ट को लिखने के बाद मुझ पर कई मित्रो ने मेल किए की मुझे इस विवादस्पद विषय पर नही लिखना चाहिए था.....मै हैरान हुआ ओर उससे भी ज्यादा इस बात पर की इस सत्य से बहुत से भारतीय अनजान है..इतिहास में बड़ी चतुराई से इस विषय पर परदा डाल रखा है जैसे इस बात पर की नेहरू को सिफलिस था......
- जब किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का चरित्रहनन होता है तो उस व्यक्ति के व्यक्तित्व में तो कोई अंतर नहीं आता पर चरित्रहनन करने वाले को मुफ्त की ख्याति मिल जाती है और इसीलिए कुछ लेखक गढे मुर्दे उखाड कर अपना नाम आगे बढाने की जुगत करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व सुधीश कक्कड ने भी मीरा और बापू को लेकर एक पुस्तक लिखी थी। अब यह पुस्त्क आई है जिसका लाभ निश्चय ही लेखक को मिलेगा। रही बात गांधी की तो उनके महात्म्य को कोई हानि नहीं होगी क्योंकि उनकी जीवनी एक खुली किताब रही है। डो। अनुरागजी, यह ख्याल गलत है कि इन बातों के बारे में अब तक किसी को मालूम नहीं था। इन बातों की चर्चा उनके जीवन काल से ही सुनी जा रही थी। हां, यह ज़रूर है कि नई पीढी इससे अनभिज्ञ हो क्यों कि उन्हें उन बूढों के इतिहास को पढने की आवश्यकता नहीं महसूस हुई।यह भी एक गलत धारणा है कि गांधीजी के कारण देश का विभाजन हुआ। वे तो यह कहते रहे कि देश का विभाजन उनकी लाश पर से होगा। इतिहास को देखने के अपने अपने नज़रिये हैं। शायद हर कोई अपनी जगह यह समझता है कि वह सही है। तो फिर यही कहा जा सकता है - LET US AGREE TO DIFFER!! (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- मैं फिल्म के विषय का कद्यापि भी विरोधी नहीं हूं, लेकिन फिल्म के शीर्षक की आलोचना करता हूं। गरीबी तो तुम्हारे लेख के अनुसार कई फिल्मों का विषय रही है, तो तब किसी ने उंगली क्यों नहीं उठाई, एक दम बात सही है. जहां तक रहमान को पुरस्कार देने की बात है तो इसका कारण उसके संगीत में विदेश टच है,, अगर ये गीत युवराज में होता तो क्या उसको पुरस्कार मिलता…तुम्हारा लेख सही है,,,गरीबी को लेकर आलोचना करना गलत है,, लेकिन नाम पर तो विचार किया जा सकता था॥
- देखो भाई ये तो ठीक है कि इसमें भारत के गरीबी के खतरनाक पहलुओं को उजागर किया गया है मगर एक बात तो है कि ये गोरे हिन्दुस्तान से जलते तो हैं इसीलिए तो शायद अंग्रेजों को एक यही फिल्म मिली जिसको वो गोल्डन गलोब दे रहे हैं जिस में भारतीयों को उनके मुकाबले में नीचा दिखाया गया है वरना बालीवुड में और भी कई फिल्में हैं जो गोल्डन गलोब से भी बड़े पुरस्कारों की हकदार हैं।तुमको ना मालुम हो तो मैं एक बात और बता दूँ कि रविन्द्र नाथ टैगोर जिन्हें हम गुरूदेव के नाम से जानते हैं उनको भी साहित्य का नोबेल पुरस्कार उसी समय मिला जब उन्होंने अपनी किताब 'गीतांजली' में गुलाम भारत के अंग्रेज शासक किंग जार्ज पंचम की प्रशंसा में 'जन गण मन अधिनायक' लिखा अन्यथा उनकी बजाए भारत के लिए पहला नोबल पुरस्कार जीतने वाला कोई अन्य शख्स ही होता। (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
- सबसे मुख्य बात यह है कि उन्होंने गुजरात की जनता में आत्मविश्वास और राष्ट्रवाद जागृत किया है, लोग भी देख रहे हैं कि किस तरह से तूफ़ान, चक्रवात, बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाओं से लड़ते हुए भी वे गुजरात को आगे ले जाने में सफ़ल हुए हैं। यदि कांग्रेस राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करती है तो भाजपा को निःसंकोच मोदी को आगे बढ़ाना चाहिये… जनता खुद फ़ैसला कर लेगी… (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
असल में चिट्ठे तो फुरसतिया के कब्जे वाले कश्मीर में चले गए । तो हमारे हाथ लगीं टिप्पणियाँ, वही लाकर परोस दीं । भूखे रहने से तो अच्छा ही है टिप्पणी खालो ! आज हमने जानबूझकर किसी भी चिट्ठे या चिट्ठाकार का नाम नहीं लिखा । देखते हैं लोग क्या प्रतिक्रिया करते हैं .
चलते-चलते :
कोई हमको हडकाता है, कोई सिगरेट पिलाता है ।
कोई हिटलर का नाम देत, कोई ताऊ बतलाता है ॥
जो हडकाते हैं हमें यहाँ , ये कहते हैं आभार उन्हें ।
जब इनके जैसे मित्र मिले , दुश्मन की क्या दरकार हमें ॥
पर हम न आएंगे झाँसों में, हम सीधे-सादे ब्लागर हैं ।
हम तो ग्राम के निवासी हैं, पर आप सभी तो नागर हैं ॥
जो फुरसतिया ने चर्चा की अब डालें उस पर एक नज़र ।
दिन आज आपका शुभ बीते, गारंटी नहीं रात की पर ॥
यह टिप्पणी चर्चा खूब रही. चिट्ठाचर्चा का नया संस्कार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
चिट्ठाचर्चा में टिप्पणीचर्चा देखकर हम जैसे टिप्पणीकारों को और उत्साह मिला. :)
जवाब देंहटाएंबहुत आभार इस ओर नजरें इनायत करने का.
चलो कुछ और बताओ, अभी और हैं इस दौड़ में
जवाब देंहटाएं---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
मजेदार स्टाइल।
जवाब देंहटाएं"blog par jaane kaa raasta "
जवाब देंहटाएंhindi bloging mae yae kisnae shuru kiya haen ??
yaad karey aur bataaye .
aaj ki charcha ka shtyle bhi khuub raha...jaise exams ke notes tayyar kiye hue hon.point wise sab kuchh...fatafat padh li gayee..blog par jaane ke rastey ki jarurat nahin padhi kyon adhiktar tippaniyan kahan se aayi hain ,yaad hai.
जवाब देंहटाएंkavita badiya hai.
aap ko bhi shubh din!
dhnywaad.
जवाब देंहटाएंऒ, अपने हिस्से वाली कश्मीर के चर्चाकार,
लगता है, तू तो फ़ुरसतिया से ज़्यादा घातक निकलने वाला है..
कुछ न मिला तो, हाथ से जाती हुई पोस्ट की दुम ही तबियत से मरोड़ डाली ।
पर नायाब तरीका है, जिज्ञासा बनाये रखने का ..
जिसे, वो क्या बोलते हैं, ट्रैफ़िक ! हाँ, ट्रैफ़िक यदि चर्चा से डाइवर्ट हो तो,
ज़्यादा बेहतर है, आप क्या कहते हैं गुरु ज्ञानदत्त जी ?
ब्लाग का शीर्षक न देना बिल्कुलै उचित है,
रास्ता दिखाने का लिंक कुछेक अंतिम शब्दों पर ठहरायी जा सकती हैं ।
ताज़ातरीन और बेहतरीन चर्चा !
भई वाह, भई वाह !
अच्छा है। नये नये प्रयोग होते रहने चहिये। मजेदार रही चर्चा।
जवाब देंहटाएंयह नया अंदाज बहुत भाया दिल को ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंधोखाधडी समझ में नही आई
जवाब देंहटाएंफिलहाल गारंटी न लें पर विश तो कर दें
कहते हैं कि दुआओं में असर होता है
"आज टिप्पणियाँ ही टिप दीं आपने ...ये हड़काई का असर खत्म हो गया क्या...हा हा हा हा लाजवाब "
जवाब देंहटाएंRegards
thanks
जवाब देंहटाएंدردشة
شات
دردشه
ये बढ़िया तरीका है.. नाम नही देने का..
जवाब देंहटाएंनये नये आइडियास आ रहे है.. चिट्ठा चर्चा में.. देखकर खुशी हो रही है.. आज की चर्चा को 100 नंबर..
इसे कहते है अपने अपने हिस्से का सच .......
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा में टिप्पणीचर्चा देखकर हम जैसे टिप्पणीकारों को और उत्साह मिला. :)
जवाब देंहटाएंबहुत आभार इस ओर नजरें इनायत करने का.- उडन तश्तरी
>विवेक जी, मैं भी -:)
ये रात की गारंटी किधर मिलेगी?
जवाब देंहटाएंआपने अच्छी टिप्पणी चर्चा की. आपको साधुवाद और बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी शामिल करने के लिए धन्यवाद.
ऐसे ही चर्चा करते रहे.
कुश की तरह विवेक भी अब आयडिया वालों के एम्बैसेडर होने की राह पर हैं।
जवाब देंहटाएंबड़ा कठिन है टिप्पणी-अरण्य में अपनी टिप्पणी पहचानना!
जवाब देंहटाएंWaah ! ekdam alhada style....
जवाब देंहटाएंkahte hain ke galib ka hai andaje bayan aour
जवाब देंहटाएंबधाई, कुछ अलग सा है यह अंदाज़ चर्चा का! (ब्लॉग पर जाने का रास्ता)
जवाब देंहटाएंटिप्पणी चर्चा खूब है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब भाई, आपका यह प्रयोग सफ़लतम कहा जायेगा. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जबरदस्त है विवेक..एकदम से जायका बदल के रख दिया आपने इस चिट्ठा-चरचा का
जवाब देंहटाएंहम तो बस वाह-वाह किये जा रहे हैं
bahut achhe
जवाब देंहटाएंab log naam se naheen ,achhee tippanee se padha karenge.
ab achhe tipaneekaron ko dhoondhnaa padegaa.
आज दूसरी बार चर्चा में टिप्पणी चर्चा देख मजा आ गया, पहली बार याद है जब हमने टिप्पणीकार का नाम guess करने के लिये बोला था। विवेक भाई आपको सौ में से सौ इस चर्चा के लिये।
जवाब देंहटाएंआप सभी का शुक्रिया !
जवाब देंहटाएं@ रचना जी , मुझे तो आपके सवाल का उत्तर नहीं मालुम . कृपया आप स्वयं बताकर हमारा ज्ञान बढाएं !
@ अमर जी , सोच लीजिए आप फुरसतिया को घातक कह रहे हैं :)
@रौशन जी , धोखाधडी से सम्बन्धित एक टिप्पणी है . उसी से शीर्षक ले लिया बस ! बाकी विश तो एक साल के लिए साल के शुरू में ही कर चुके हैं :)
@ अभिषेक जी , रात की गारण्टी रात में ही मिलेगी :)
अनुपस्थित
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