मंगलवार, जनवरी 13, 2009

चर्चाथेरेपी !

नमस्कार ! मंगलचर्चा में स्वागत आप सभी का ।
धूमधाम से आज मनाएं उत्सव सब लोहडी का ॥

समीर जी की जेब कट गई इनका मगर बडा दिल ।
लाल बवाल मिले दोनों तो खूब सजाई महफिल

फुरसतिया भी गए जबलपुर बहुचर्चित थी शादी ।
किंतु बेवकूफी किसने की यह सवाल बुनियादी ॥

इधर ज्ञानजी फिजियोथेरेपी के ही गुण गाएं ।
उधर मीडिया डाक्टर मैमोग्राफी को समझाएं ॥

गर्म चाय की जन्मपत्री रंजू जी ने खोली ।
ग्रेजुएट को देख भिखारी मेरी तबियत डोली ॥

संत विवेकानंद छा गए अमरीका में जाकर ।
मातृभूमि यह धन्य हो गई स्वामी जी को पाकर ॥

सोमवार कल स्वामी जी का जन्मदिवस जब आया ।
सुधी जनों ने उनकी विचारधारा को समझाया ॥

कहाँ आजकल गुम होता जा रहा देश का बचपन
यहाँ निहायत ही जायज है शास्त्री जी की उलझन

शोषित होने का विकल्प क्या चुनता है खुद कोई ?
जा तन लागे वो ही जाने और न जाने कोई ॥

महिलाओं का शोषण हो यह अच्छी बात नहीं है ।
अबला जीवन आज तुम्हारी लेकिन व्यथा यही है ॥

शुभम आर्य ने आज दिखाया आम नजारा देखो ।
कैसा कैसा अजब गजब है देश हमारा देखो ॥

असंतुष्ट लोगों पर आज भगत जी जमकर बरसे
टीवी ने सब उडा दिये अच्छे रंग कपडों पर से ॥

अंकगणित अब कठिन नहीं है इनका ब्लॉग पढें तो ।
आगे बहुत चले जाएंगे थोडा रोज बढें तो ॥

आशीष खण्डेलवाल ले गए खास ब्लॉग चुन चुनकर ।
हम न किसी श्रेणी में आए बडा दुख हुआ सुनकर ॥

आप सोच रहे होंगे आज तो इसने कविता गाकर बहका दिया । दर असल जब हमने अमर कुमार जी द्वारा प्रस्तुत अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा पढी तो जोश आगया । सरस्वती जी आईं तो थीं शांत करने पर हमने रिक्वेस्ट करके थोडी देर रोक लिया ," माता जब तक आप चाय पिएं । हम एक चर्चा कर डालते हैं । "
कल ज्यादातर बिलागर सुधरे सुधरे से दिखे . कइयों को बचपन की बातें याद आरहीं थीं । और कुछ गावँ को शहर से न्यारा बताते मिले . जैसे पल्लवी त्रिवेदी को देखिए :
शहरों से गांव न्यारेः अपनी देहात की पोस्टिंग के दौरान गावों को बहुत करीब से देखने का मौका मिला और जो बात मुझे बहुत प्रभावित करती है वो ये कि स्वागत सत्कार और अपनेपन में शहर इन गावों से बहुत पीछे हैं!
गावों में जाते ही गाडी के पीछे भागते और हाथ हिलाते बच्चे, एक लड़की को पुलिस यूनीफोर्म में देखने के लिए घूंघट किये अपने घरों से झांकती महिलायें और बैठाने के लिए झटपट अपने घरों के आँगन में खटिया बिछाते लोग...सचमुच बहुत अच्छा लगता था! पहले पहल मैं गाँव में किसी के घर पानी नहीं पीती थी क्योंकि मैं अपना फिल्टर पानी अपने साथ गाडी में रखती थी!और वही पीती थी पता नहीं गाँव का पानी क्या बीमारी लेकर आये! लेकिन बाद में मैंने महसूस किया कि मेरा पानी पीने से इनकार करना उन्हें दुःख पहुंचाता था!
पिछले दिनों एक खबर के अनुसार गूगल सर्च से पर्यावरण को नुकसान होने की बात कही गई थी । लेकिन गूगल ने इसका खण्डन किया है ।
अगर विष्णु जी की मानें तो बिलागर अपने ऊपर गर्व भी कर सकते हैं । क्योंकि उनके अनुसार :
मीडीया से निराश लोग अब ‘ब्लाग जगत’ को आशा, अपेक्षा और विश्‍वास की नजरों से देखने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि ‘ब्लाग जगत’ उनकी ‘अनसुनी’ को जगजाहिर करने मे उनकी सहायता कर सकता है।
इससे पहले कि कवि लोग यह सोचें कि हम अपनी कविता पढवाते हैं , उनकी नहीं , हम उनकी कविताएं पढवा देते हैं । कूद जाइए .
  1. काल रात्रि - कवि कुलवंत
  2. मेरी कलम !! - पारुल
  3. घोटाला वीरों - मकरंद
  4. विमुखता - सीमा गुप्ता
  5. फ़िर सही - लविंग साउल
  6. हर शाख पे उल्लू बैठा है... - अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
  7. मेरे सपनों में आते हैं - डॉ. चन्द्र कुमार जैन
  8. म्यूजिशन रहमान को मिला गोल्डन ग्लोब - दिव्यदृष्टि
  9. मेरे ही हाथों टूटा है दम मेरा - विनय प्रजापति 'नज़र'
  10. बचपन की यादें - परमजीत बाली
  11. चेतना उपेक्षित है... - डॉ. कुँवर बेचैन
  12. जरूरत - रचना सिंह
  13. ( शीर्षक आप सुझाएं ) - हरकीरत हकीर
  14. इस बहाने से देख ली दुनिया हमने - पिण्टू
  15. कुछ अंदाज़ आपके लिए - महेन्द्र मिश्रा

नोट : कृपया ऊपर की कविताओं को एक बार में पढना आवश्यक नहीं है . अपनी सामर्थ्य के अनुसार किस्तों में पढें . बाद में चिट्ठाचर्चा मण्डल किसी हर्ज़े खर्चे का जिम्मेदार न होगा !

बच्चों का भी हक बनता है अपनी सामग्री पढने का . कुछ लोग बच्चों को अच्छी अच्छी बातें सिखाने की फिक्र में लगे रहते हैं . जैसे ये :

वहीं दूसरी तरफ बच्चों के बिगाडने वाले लोग भी हैं . जैसे हमारे मित्र प्रियदर्शी कहते हैं , पैर पर पैर रखिये, सॉरी कहिये, आगे बढिए . है न बच्चों को बगाडने वाली बात . खैर है आदित्य छुट्टी पर है .

अब बहस प्रेमियों के लिए प्रस्तुत हैं कुछ बहस योग्य मुद्दे :
इधर रचना जी भी पूछती हैं : अपने विचार लिखे शायद खुल कर पता चले कि क्यों नारी को ही नारी की विरोधी माना जाता हैं . कहती हैं :
औरत ही औरत की दुश्मन हैं । ये बात हमेशा कही जाती हैं । इस पोस्ट के जरिये हम विस्तार से अपने अपने विचार रख कर इस बात को समझ और समझा सकते हैं ।प्रश्न हैंक्या औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं ??अगर आप इस बात को सही मानते हैं तो बताये वो क्या कारण हैं की औरत औरत की दुश्मन बन जाती हैं ?वो क्या परिस्थितियाँ हैं जो औरत को औरत का दुश्मन बनाती हैं ?आप क्या कहते हैं , अपने विचार लिखे शायद खुल कर पता चले कि क्यों नारी को ही नारी की विरोधी माना जाता हैं ?


कार्टून प्रेमी निराश न हों . उन्हें भी जगह मिलेगी . हैं तो कार्टून पर हैं मज़ेदार :

चलते-चलते :

एक जेबकतरे को छोडा ?

सामाजिक खतरे को छोडा ?

हमसे क्या उम्मीद आपकी ?

करें प्रशंसा इस कलाप की ?

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26 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर बुद्धिमत्तापूर्ण चर्चा. ’चलते-चलते’ आपकी चर्चा का स्थायी स्तम्भ बन जाय-ठीक ही होगा.

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  2. बहुत शानदार है आपकी ये काव्यमयी चर्चा. बहुत बधाई.

    रामराम.

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  3. चर्चा मस्त रही.

    चलते चलते:

    यूँ भी खास उम्मीद न थी.. :)

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  4. आप लोग इतनी इतनी बढ़िया चर्चा कर रहे हैं कि भक्तगण बढ़ते ही जा रहे हैं।
    कहीं तिरुपति देवस्थानम की तरह यहां लाइन-टिकट न लगने लगे! :-)

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  5. बहुत गजब चर्चा. भाई विवेक, इतनी बढ़िया चर्चा के लिए बधाई.

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  6. hamesha ki tarah ek achchi charcha bindas aur zhkaas thanks vivek itna samay is charcha par aapne diya

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  7. बहुत शानदार है ये काव्यमयी चर्चा शुभकामनाये

    regards

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  8. is manmohak kaavyacharcha ke liye aabhaar.Lajawaab kavita kee hai aapne.
    Sundar aur saarthak charcha hai.

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  9. छंदमयी चर्चा दिल को भा गई|

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  10. प्रिय विवेक,

    आज तो पूरा "रस" मिल गया. जम कर पान किया. बहुत सुंदर.

    यह देखकर अच्छा लगा कि तुम ने काफी सारे आलेखों को इस चर्चा में शामिल कर दिया है. इस तरह अधिकतम चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करना हर चर्चाकार का धर्म है.

    हां, तुम से एक गलती जरूर हो गई:

    "सरस्वती जी आईं तो थीं शांत करने पर हमने रिक्वेस्ट करके थोडी देर रोक लिया ," माता जब तक आप चाय पिएं । हम एक चर्चा कर डालते है।"

    माता ने चाय पीने के बदले तुम्हारे मन एवं टाईप करते हाथों को नियंत्रित करना बेहतर समझा. तभी तो ऐसे सुंदर एवं रसमय चर्चा की रचना कर सके !!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  11. बहुत बढ़िया ! बड़ा मेहनत भरा काम करते है आप.

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  12. ऊड़ी बाबा :)
    आपनी एतना टाइम चीठा पोड़ने आउर एतो भालो चोर्चा
    लीखने को कईसे सोकता.. बिबेक मोशाय ?

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  13. बहुत बढ़िया चर्चा काव्यमय ..बहुत अच्छी लगी

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  14. भाई साहब, आपतो कमाल के आदमी (सॉरी! चर्चाकार) हो जी। इतना लम्बा, विस्तृत और फिर भी मजेदार। क्या गजब बाँधते हो आप? पूरे दो-तीन घंटे का काम बढ़ा दिया आपने। क्या छोड़ूँ, समझ नहीं पा रहा हूँ?

    वाह!!!

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  15. चर्चा मण्डली के कवि ह्रदय विवेक जी छा ही रहे हो . निखर रहे हो दिन प्रतिदिन . लगे रहो विवेक भाई

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  16. चलते चलते बढ़िया है बीडू !
    आईला !
    बीडू असभ्य तो नही हो गया......

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  17. चिट्ठों की काव्यमयी चर्चा !!
    पढ़ लिया बिना कोई खर्चा!!


    बधाई!!

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  18. मजेदार काव्यात्मक चर्चा

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  19. लगे रहो भैय्या जी चर्चा में ब्लॉग काहे के लाने होत है कछु अपनी कछु दूसरो की भी ..कुल मिलकर सबकी अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया है जैसे के चट्ठा चर्चा में सबहु को समेत के सबकी अभिव्यक्ति कर दई . ठीक है जी चर्चा कमसे एक जगह सबको पढ़ने मिल जात है .

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  20. चर्चाथेरेपी ! और औरत ही औरत की दुश्मन हैं जैसी रचनाएं अच्छी लगीं
    - विजय

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  21. बहुत ख़ूब विवेक भाई बहुत ख़ूब ! बाद आप कुछ भी बोलो पर आज गर्व महसूस कर रहा हूँ आपके लिए । निश्चित अब आप तुक्बन्द नहीं नव छन्द बन चुके हो । तीखी से मीठी छुरी में तब्दील होना कितना सुखद है, महसूस करते होंगे आप भी । एक सधी हुई काव्यात्मक चिट्ठाचर्चा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आभार और बधाई ।

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  22. आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं !

    @ हिमांशु जी, अब आप चलते चलते को स्थाई ही समझिए !

    @ ज्ञान जी , अभी तो लाइन लगने के आसार नहीं दिखते !

    @ शास्त्री जी , कोई गलती हुई है तो माफी चाहता हूँ !

    @ डा. अमर कुमार जी, हाँ साहब समय तो देना ही पडता है !

    @ सिद्धार्थ जी , अरे आप भी क्या साहब चर्चाकार को आदमी कह दिया :)

    @ अनुराग जी , नहीं जी 'बीडू' पहले असभ्य नहीं हुआ तो आज क्यों होगा :)

    @ बवाल जी , साहब हमें तो अब तक तुकबन्दी और छन्द में अंतर ही मालूम न हुआ :)

    बाकी सब का धन्यवाद !

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