गुरुवार, जनवरी 15, 2009

आप फोटू देखने से तो कॉमन नही लगते !...

अनूप जी ने सालों पुरानी चली आ रही कहावत के हवाले से जानकारी दी कि 'लौटी बारात और गुजरे गवाह को कोई नहीं पूछता.'

सही बात है. गवाह जब गुजर ही गया तो कोई कैसे पूछेगा? ऐसा भयानक काम कोई नहीं करना चाहता होगा. गुजरे गवाह को पूछने के लिए कहाँ-कहाँ से गुजरना पड़ेगा? खैर, ये तो गवाह की बात तो कहावत के इस भाग पर प्रकाश डालने का काम द्विवेदी जी बेहतर करेंगे. हम तो अगले भाग पर भाग लेते हैं.

हम तो आते हैं उस पुरानी कहावत के अगले भाग पर.

एक जमाना था जब लौटी बारात को नहीं पूछा जाता था. जब ये सिलसिला कई सालों तक चला तो पुरायट विद्वान टाइप लोगों ने कहावत बना दिया. पहले के विद्वानों को बिजी होने का मौका नहीं मिलता होगा. शायद इसीलिए जब मन में आता था, ट्रेंड देखकर कहावत बना डालते थे. आजकल के विद्वानों को देखिये, गोष्ठी, बहस, शाल और ताम्रपत्र लेने से ही फुरसत नहीं है. लिहाजा अब कहावतें नहीं बन पातीं.

अब ये काम एस एम एस दौड़ाने वाले 'विद्वानों' ने अपने हाथ में ले लिया.

भटक जाते हैं हम. कोई बात नहीं, फिर से कहवत पर आते हैं. हाँ तो मैं कह रहा था कि पुराने ज़माने में लौटी बारात या बाराती को लोग नहीं पूछते थे. अब भी कोई बहुत ज्यादा नहीं पूछते.

लेकिन तब क्या होगा अगर बाराती ब्लॉगर भी हो?

तो क्या? तो वही होगा जो अनूप जी कर रहे हैं. समीर भाई के सुपुत्र के विवाह में बाराती का रोल अदा कर जब से कानपुर लौटे हैं, कथाएँ लिख रहे हैं. कभी बारात कथा तो कभी जज्बात कथा. ब्लॉगरगण भी पढ़-पढ़कर धन्य हुए जा रहे हैं.

उनकी ये कथा सीरीज पढ़कर फिलिम शोले की याद आ गई जो आज के मुंबई और तब के बंबई में दो-ढाई साल चली थी.

तो अपनी इस कथा सीरीज में आज अनूप जी जबलपुर के कुछ और किस्से पढ़वा रहे हैं. पोस्ट की शुरुआत उनकी पिछली पोस्ट पर आए समीर भाई और बवाल भाई की टिप्पणियों से किया है.

बवाल भाई ने अपनी टिप्पणी में लिखा था;

"कहाँ सेहरा और कहाँ मर्सिया पढ़ना है, ये इल्म न होता तो बवाल क़व्वाल न होता महज़
वबाल होता ।"

ये 'इल्म' बड़ी अद्भुत चीज है. बवाल को कव्वाल बनाने में इल्म के न होने का हाथ है. हमें तो इल्म ही नहीं था कि ऐसा हो सकता है.

कथाओं का सबसे बड़ा महत्व यह होता है कि पाठकगण पात्रों के बेहद करीबी (या शायद घरेलू) नाम जान जाते हैं. अब देखिये न, ये कथाएँ नहीं सुनाई सॉरी पढाई गईं होती तो हमें तो पता ही न चलता कि समीर भाई का 'करीबी' नाम पिंटू है और बवाल भाई का टुन्नू है.

कथा सुनाने के बहाने अनूप जी इन 'करीबी' नामों को बाहर लाते हुए लिखते हैं;

"टुन्नू (बबाल) की समझ पर तो भरोसा है लेकिन पिंटू(समीरलाल) के हाल न पूछो। कोई
भरोसा नहीं। अब बताओ हमने अपने मोबाइल कैमरे से उनकी इत्ती फ़ोटॊ खैंच दी क्यूट सी
लेकिन पिंटू ने हमारे साथ क्या किया? केवल नेचुरल सी फोटो खींच के धर दी। जरको
स्मार्टनेस का ख्याल नहीं रखा। उनके कैमरे से अच्छा तो हमारे यहां के फ़टाफ़ट स्टूडियो का फोटो होता है। अच्छा न लगे तो कह तो सकते हो कि ये हमारा नहीं, समीरलाल
का फोटो है, लेकिन अच्छा आया है।"

समझ पर ही भरोसा करना चाहिए. फिर वो चाहे अपनी हो या किसी दूसरे की. इंसान पर भरोसा किए नहीं कि पता चलेगा कि सत्यम के शेयर होल्डर्स की तरह मुंह लटकाए कहीं खड़े हैं.

अनूप जी शादी में किए गए बढ़िया इंतजाम को देखकर बहुत पछताए. कहाँ कानपुर से जबलपुर की दूरी ये सोचते हुए तय की थी कि बाराती-धर्म का निर्वाह कर सीना फुला लेंगे और कहाँ समीर भाई का इंतजाम इतना पक्का कि बाराती-धर्म की रक्षा नहीं हो सकी.

लेकिन बाराती अगर ब्लॉगर हो तो बहाने निकालने में पीछे थोड़े न रहेगा. आख़िर ब्लॉगर टिप्पणी न करे तो कहाँ का ब्लॉगर? तो ब्लॉगर-बाराती होने के नाते अनूप जी ने वो लिस्ट पेश की जिसके बहाने बाराती-धर्म का निर्वाह किया जा सकता था. लिस्ट पढिये;

१. जलेबी के साथ दही का इंतजाम काहे नहीं था?
२. सारे बरातियों को खुले आकाश के नीचे बैठा दिया गया ?
३. रायते में पानी ज्यादा मिला दिया गया।
४. खाने का इंतजाम खुले में काहे किया गया?
५. मान्यों का उचित सत्कार नहीं किया गया!
६. मंडप के नीचे उनको बुलाया लेकिन इनको काहे नहीं बुलाया।
७. घर की बहू-बेटियां डांस कर रही थीं (बुजुर्गों को काहे नहीं नचाया
गया)
८. बारात स्थल पर आनलाइन ब्लागिंग की सुविधा काहे नहीं थी?

पढ़ लिया?


देखिये जरा. जलेबी के साथ दही का इंतजाम नहीं था. एक तरफ़ कह रहे हैं कि सर्दी इतनी थी कि जबलपुर में बरफ गिरते-गिरते रह गई और दूसरी तरफ़ जलेबी के साथ दही की फरमाईस.

सरद-गरम धर लेता तो? हमें कथाएँ कौन पढ़वाता?

वैसे पॉइंट नम्बर सात पढ़कर हमें अच्छा लगा कि कोई तो है जो अपनी बुजुर्गीयत को झुठला नहीं रहा. नहीं तो यहाँ ऐसे-ऐसे वीर हैं जो साठ साल के हैं और कोई उन्हें चाचा कह दे तो बाराती-धर्म पर उतर आते हैं. मतलब छईला जाते हैं.

अनूप जी की इस पोस्ट पर विवेक सिंह जी दूल्हा और दुल्हन की जोड़ी को आशीर्वाद और बधाई देना तो भूल गए (शायद बारात कथा में दे चुके थे) और समीर भाई और बवाल भाई की जोड़ी पर कवित्त ठेल दिया. उन्होंने लिखा;

पिण्टू और टुन्नू की है जोडी कमाल !
एक है लाल तो दूजा बवाल !


एक ही बरात में उपस्थिति दो लोग..सॉरी दो ब्लॉगर एक ही मुद्दे पर सहमत नहीं हो सकते. जी हाँ, मैं समीर भाई की बात कर रहा हूँ. जहाँ अनूप जी की शिकायत थी कि बुजुर्गों को नचाया नहीं गया वहीँ समीर भाई का कहना है कि बुजुर्ग तो खूब नाचते हैं.

वो भी, ये देश है वीर जवानों का...अलबेलों का मस्तानों का... गाने पर.

हमारे समीर भाई आज जिज्ञासा का निराकरण करते हुए बरामद हुए हैं. जिज्ञासा थी अभिषेक ओझा जी की. अभिषेक जी ठहरे नवजवान. लिहाजा उन्होंने हाल ही में जिज्ञासा प्रकट करके नवजवान-धर्म का पालन किया था. उनकी जिज्ञासा थी कि; हर शादी में ये देश है वीर-जवानों का....गाना क्यों बजता है?

उनकी इसी जिज्ञासा का निराकरण समीर भाई ने त्रिलोकी नामक नवजवान की जिज्ञासा और उसके जिज्ञासा समाधान कथा के बहाने किया.

कथा सुनाकर समीर भाई ने उसकी व्याख्या की. उन्होंने लिखा;

"कौन मानता है बड़े बुजुर्गों की सलाह. उनके अनुभव का लाभ उठाना तो दूर, सुनना तक
सदियों से कोई पसंद नहीं करता. सब अपने आप में होशियार फन्ने खां हैं जब तक अपना
जूता सान नहीं लेंगे मानेंगे थोड़े ही न बिना चखे!! "

आज तक तो हम यही देखते आए हैं कि शादी-व्याह के मामले में बड़े-बुजुर्ग नवजवानों को फंसाने का काम ही करते हैं. आजतक कभी नहीं देखा कि कोई नवजवान शादी करने जा रहा हो और कोई बुजुर्ग उसे रोक रहा हो. बल्कि बुजुर्ग तो ये कहते हुए सुने जाते हैं कि; " का ज़रूरत है दिसम्बर में वियाह करने का? अरे जूने में सालता लो. आख़िर करना ही है ता लड़की के बाप को काहे झुलाना?"

और समीर भाई की मानें तो;

"सारे बुजुर्ग नाचते हैं कि चलो, हमारे समझाये तो नहीं समझे. अब मजा चखो, हमारी बात न मानने का. अब समझ में आयेगी बच्चू कि बुजुर्गों के अनुभव को दो कौड़ी का समझने का अंजाम क्या होता है."

चलते-चलते समीर भाई सूक्ति भी छोड़ गए हैं. नवजवानों के लिए. वे लिखते हैं;

"शादी वो लड्डू है जो खाये वो पछताये, जो न खाये वो पछताये.... (पुनः किसी और ने
कही है, हम नहीं कह रहे)अतः अविवाहित वीरों, हमारे समझाने से अपना शहीदाना तेवर न
छोड़ना और बैण्ड वालों, तुम जारी रहो..."

वैसे समीर भाई की पोस्ट पढ़कर डॉक्टर अमरज्योति को लगा कि समीर भाई ने ये पोस्ट अपने पुत्र और पुत्रवधू को डराने के लिए लिखी है. डॉक्टर साहब ने अपनी टिपण्णी में लिखा;

"ये कोई अच्छी बात नहीं है नये-नये ब्याहे बेटे-बहू को डराना।"

आशा की किरण कहिये या फिर 'आईडिया'. जब बहुत सारे लोग ये सोच रहे हैं कि पकिस्तान का इलाज नहीं है (ऐसा मुलुक हो गया है!) तब सुशांत झा बता रहे हैं कि ऐसी बात नहीं है. पाकिस्तान का भी एक इलाज है. क्या इलाज है?

पढिये. सुशांत जी लिखते हैं;

"कुल मिलाकर पाकिस्तान ढ़ीठ बन गया है, उसे ये बखूबी मालूम है कि उसके हाथ में
एटम बम रहते भारत उस पर हमला करने की जुर्रत सात जनम में नहीं जुटा पाएगा।"

उनकी ये बात पढ़कर लगा कि पकिस्तान के पास एटम बम है और हम उससे डर रहे हैं! तो हमारे देश ने एटम बम के नाम पर क्या बनाया? कहीं ऐसा तो नहीं कि लडीबम बनाकर रख लिया और दुनिया को बता डाला कि हमारे पास एटम बम है?

अपनी बात को आगे बढ़ते हुए सुशांत जी प्रश्न पूछते हैं;

"अब सवाल ये है कि पाकिस्तान को काबू में रखने का कोई इलाज हमारे पास है भी या
नहीं...क्या हमारे तरकश के सारे तीर चुक गए हैं ?"

अपने इस प्रश्न का जवाब भी वे ख़ुद ही देते हैं. वे जवाब में लिखते हैं;

"हमारे पास अभी भी अमोघ अस्त्र मौजूद है।............गुजराल के समय में वहुप्रचारित गुजराल डाक्ट्रिन के तहत भारतीय खुफिया वलों के आक्रामक नेटवर्क को खत्म कर दिया गया था जिसने पाकिस्तान में जिला और ब्लाक स्तर पर अपने एजेंटों का जाल फैला रखा था। इस नेटवर्क को तैयार करने में दसियों साल लगे थे। अब वक्त आ गया है कि उस नेटवर्क को फिर से जिंदा किया जाए।"

मतलब ये कि आतंकवाद का मुकाबला आतंकवाद से ही हो सकता है? सुशांत जी की मानने से तो कुलदीप नैय्यर टाइप लोग बेरोजगार हो जायेंगे. फिर क्या करेंगे ये लोग?

सुशांत जी स्ट्रेटजी बताते हुए लिखते हैं;


"हमारे यहां एक धमाका होने की सूरत में हमें पाकिस्तान में पांच धमाके करवाने चाहिए। तभी जरदारी एंड कंपनी के होश ठिकाने आएंगे। पाकिस्तान में भ्रष्ट लोगों की कोई कमी नहीं-वे इस काम में बखूबी हमारे काम आ सकते हैं,.."

बताईये. पकिस्तान में भ्रष्ट लोगों की कमी नहीं है. और हमारे देश में? यहाँ भी कोई कमी नहीं है. यहाँ के लोग वहां के काम आते रहे और वहां के लोग यहाँ के. पूरे उप महाद्वीप को चलाने के लिए और क्या चाहिए?

ऐसा हो गया तो पूरा 'सहयोग आन्दोलन' हो जायेगा. आप हमें सहयोग करें, बदले में हमारा सहयोग लें.

सुशांत जी की स्ट्रेटजी बताती बातों ने विनय जी को प्रभावित किया. उन्होंने अपनी टिपण्णी में लिखा;

बहुत बढ़िया---
आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?


तिरंगा लगाने से ब्लॉग देशभक्त ब्लॉग हो जायेगा.

आज आर्थिक मंदी के इस दौर में हमारे पास फील-गुड के लिए क्या कुछ भी नहीं है?

राजीव जी की मानें तो है. वो भी;


"केवल खुश होने के लिए ख्याली फीलगुड नहीं, वास्तव में गुड-गुड फील करने के कुछ
वैलिड रीजंस हैं"

राजीव जी के रीजन्स आप भी पढिये. फील-गुड के कुछ बहाने (?) देखिये;


"फील लगुड का एक और बड़ा कारण है- इंडियंस में सेविंग टेंडेंसी के एनकरेजिंग आंकड़े. शेयर मार्केट भले ही क्रैश कर गए हों लेकिन पोस्ट ऑफिसों और बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि आम इंडियंस ने सेविंग ग्राफ को बढ़ाया ही है. ये आंकड़े मेट्रोज के नहीं बल्कि मीडियम साइज और स्मॉल सिटीज के हैं. वे एक तरफ सुरक्षित भविष्य के लिए मनी सेव कर रहे हैं रहे और इस मनी से सेलिब्रेट भी कर रहे हैं."

राजीव जी नए ब्लॉगर हैं. मैंने उनका ब्लॉग आज पहली बार देखा. उन्होंने ब्लॉग पर अपनी फोटो के नीचे जानकारी दी है कि;

I am a common man, still learning and one life is too short for this....

उनकी बात पर विवेक सिंह जी को विश्वास नहीं है. उन्होंने राजीव जी के सीखने की बात और आज की पोस्ट पर टिप्पणी तो नहीं की लेकिन कामन मैन की बात पर टिप्पणी करते हुए लिखा;

आप फोटू देखने से तो कॉमन नही लगते !
खैर छोडिए , आपने कभी सद्दाम हुसैन को देखा था ! ऐसे ही पूछ रहा था :)

विवेक गुनी आदमी कम कवि हैं. फोटू देखकर समझ जाते हैं कि कौन कामन है और कौन नहीं.

खैर, चलिए अब आपको कुछ कवितायें पढ़वाता हूँ.

आप आप मुंकिर के दोहे पढिये. मैंने आज पहली बार उनका ब्लॉग देखा. बहुत अच्छा लगा. जरा सैम्पल देखिये;

हिन्दू मुस्लिम लड़ मरे, मरे रज़ा और भीम,
सुलभ तमाशा बैठ के, देखें राम रहीम।

घृणा मानव से करे, करे ईश से प्यार,
जैसे छत सुददृढ़ करै, खोद खोद दीवार।

कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान।


साहित्य शिल्पी पर माननीय महावीर जी की कविता पढिये. वे लिखते हैं;


लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।

तू तो सृष्टा है रे पगले कीचड़ में कमल उगाता है,
भूखी नंगी भावना मनुज की भाषा में भर जाता है ।
तेरी हुंकारों से टूटे शत्‌ शत्‌ गगनांचल के तारे,
छिः तुम्हें दासता भाई है चांदी के जूते से हारे।

छोड़ो रम्भा का नृत्य सखे, अब शंकर का विषपान लिखो।।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो

तपस्विनी कुमार आनंद जी की कविता पढिये. वे लिखते हैं;

समंदर से कर दुश्मनी,
मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा

खिचता था लकीरे किनारों पर मैं,
पर साहिल पर मुझको भरोशा ना था
ख्वाब अपने भिंगो करके अश्को से मैं,
काल के गाल मे ही छुपाता रहा

पिछले वृहस्पतिवार को की गई मेरी चर्चा 'खटाई तेरे रूप अनेक' पर शास्त्री जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"हेल्लो शिव भईया ! चर्चा का शीर्षक देख कर पहले तो घिग्गी बंध गई कि आज जरूर खिचाई होती है..."

शास्त्री जी की टिप्पणी पढ़कर मैंने एक बार फिर से चर्चा का शीर्षक देखा. ये जानने के लिए कि शास्त्री जी ने खिचाई की आशंका क्यों जताई? कहीं मैंने चर्चा का शीर्षक ' खिंचाई तेरे रूप अनेक' तो नहीं लिख दिया.

खैर, शीर्षक फिर से देखा तो पता चला कि नहीं ऐसा नहीं है. फिर शास्त्री जी ने खिंचाई की बात क्यों की? शास्त्री जी ही जवाब दे सकते हैं.

आज के लिए बस इतना ही. कल शुक्रवार है. मसिजीवी जी चर्चा करेंगे कल.

चलते-चलते:

आज टीवी पर मायावती जी अपने जन्मदिन के उपलक्ष में प्रेस कांफ्रेंस करते हुई दिखीं. टीवी पर उनकी बातें और उनके बारे में बातें सुनते हुए मुझे लगा कि आज से पचास साल बाद मास्टर-छात्र संवाद कैसा हो सकता है? शायद कुछ ऐसा;

मास्टर जी: सोनू, तुम बताओ, अगर हमारे पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है तो महान नेत्री मायावती का जन्मदिन को कौन से दिवस के रूप में मनाया जाता है?

सोनू: माल-दिवस.

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18 टिप्‍पणियां:

  1. हालाँकि पोस्ट बहुत लम्बी थी लेकिन रोचक होने के कारण सटासट पढ़ गए...समीर जी के बेटे की शादी के इतने चर्चे अलग अलग जगह याने ब्लॉग पर हो चुके हैं की उसे एक पुस्तक के रूप में छापना बहुत जरूरी हो गया है...अनूप जी ये काम बखूबी कर सकते हैं..पुस्तक का नाम सूझा देते हैं..."ससुरा बने समीर " कैसा रहा...खूब लिखा है भाई आपने...
    नीरज

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  2. सोनू: माल-दिवस.
    -----------
    माल का उगाहना खाल के उतारने तक चलता है! :-)

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  3. शानदार चर्चा..पढ़कर मजा आ गया।

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  4. कहावतें और मुहावरे ऐसमेसीय होने के शोक में हम भी भागीदार हैं.
    रोचक व सुदीर्घ चर्चा।

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  5. गुजरे गवाह को पूछने के लिए कहाँ-कहाँ से गुजरना पड़ेगा?

    ये 'इल्म' बड़ी अद्भुत चीज है. बवाल को कव्वाल बनाने में इल्म के न होने का हाथ है. हमें तो इल्म ही नहीं था कि ऐसा हो सकता है.

    इसी जिज्ञासा का निराकरण समीर भाई ने त्रिलोकी नामक नवजवान की जिज्ञासा और उसके जिज्ञासा समाधान कथा के बहाने किया.

    पकिस्तान में भ्रष्ट लोगों की कमी नहीं है. और हमारे देश में? यहाँ भी कोई कमी नहीं है. यहाँ के लोग वहां के काम आते रहे और वहां के लोग यहाँ के. पूरे उप महाद्वीप को चलाने के लिए और क्या चाहिए?

    माल-दिवस.

    आज तो हर एक शब्द के लिए ही 100 नंबर दे देता हू.. ऊपर जो लाइन मैने लिखी है.. उन्हे पढ़ते ही पता चल जाता है की आज की चर्चा मिश्रा जी ने की है.. आपकी अद्भुत शैली ही है जो चर्चा में रोचकता बरकरार रखती है... मुझे पहले पता होता तो कबका ही कट लेता चर्चा से..

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  6. माल दिवस के आगे सब फीका पड़ गया :-)

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  7. "लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
    लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।"

    इस कविता के लिये धन्यवाद, यदि गीत लिखे जा रहे हों तो यह ही काफ़ी है मानवता की विजय-घोषणा के लिए. इस कठिन समय में गीत-सर्जना अपने आप में संवेदना को जिलाये रखने की एक नायाब कोशिश है. मेरे इलाके के एक कवि डा० अशोक सिंह की कविता की एक पंक्ति की याद हो आयी-
    "आज के इस दौर में भी गीत ही मैं लिख रहा हूं."
    ................................................................
    हार कर हर मोर्चे पर जीत ही मैं लिख रहा हूं."

    इस बड़ी-सी चर्चा में इतने थोड़े से चिट्ठों का उल्लेख? कुल दस भी नहीं आये.

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  8. पुस्तक छपते ही सूचना दे. व् हमें मुफ्त भिजवाने की व्यब्वस्था करे....हम तो सुबह से यही गाना अपने लेप टॉप पे लगा दिए है.......

    ये देश है वीर जवानो का....
    अलबेलों का ..मस्तानो का .....
    इस देश के यारों क्या कहनें...

    ऊं ऊं ऊं ऊं...टैं ए ए टैं ए ए....

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  9. मायावती जी की कृपा रही तो अभी चाल, माल न जाने कितने दिवस देखने को मिलेंगे| चलिए अच्छा है| चर्चा भी अच्छी थी|

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  10. बहुत लाजवाब चरचा है जी. किताब " ससुरा बने समीर" के लिये हम भी लाईण मे हैं. जरा ख्याल रखा जाये.

    रामराम.

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  11. चुनींदा बेहरीन चर्चाओं मे से एक : आभार शिवभाई

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  12. बेहरीन को बेहतरीन पढ़ा जाये..

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  13. ससुरा बने समीर-इसका इन्तजार सा लग गया है भाई...माल दिवस से धासूं क्या हो सकता है पूरे जग में. बहुत उम्दा सोच. जय हो!!!

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  14. यहां शीर्षक के मुताबिक कोई फोटो त हैइऐ नहीं! ई क्या बात है जी खाली धांसू चर्चा कर दिये। फोटॊ लगाये नहीं!

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  15. कोई बात नहीं !

    समझूँगा कल मेरा खिंचाई दिवस था !

    जहाँ गया खिंचाई पहले से ही खडी मिली ! :)

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  16. ऐसी चर्चा करेंगे तो हमें कम रन बनाने के चक्कर में रिटायरमेंट लेना पड़ेगा, टनाटान रही, ये लाईनें देकर मजा दुगना हो गया -

    समंदर से कर दुश्मनी,
    मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा
    हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
    वो मिटाती रही मैं बनाता रहा

    जवाब देंहटाएं

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