पहला नुस्खा, आप बिस्तर पर मच्छड़दानी लगाने के बाद उसके अंदर सोने के बजाय बिस्तर के नीचे सो जाएँ। मच्छड़ आपको काटने के लिए मच्छड़दानी के अंदर खोजता रहेगा, और आप आराम से सो सकेंगे। दूसरा नुस्खा, सोने से पहले आप दो-तीन बोतल दारू पी लें और उसके बाद सो जाएँ। मच्छड़ भले ही आपको रात भर काटता रहे, लेकिन आप आराम से सोते रह सकते हैं। और तीसरा अचूक नुस्खा, सोने के पहले थोड़ा जहर पी लें और मच्छड़ों को ललकार कर कहें, “आ, हिम्मत है तो अब काट के दिखा।”
जीतेंद्र भाटिया पेश कर रहे हैं भीष्म साहनी की कहानी ऒ हराम जादे और सृजन शिल्पी के सौजन्य से पढ़िये उनके सहयोगी महेन्द्र सिंह की मार्मिक कहानी- दीया बनाम तूफान।
अफजल को फांसी देने ने देने के प्रश्न पर अमिताभ त्रिपाठी अपना मत व्यक्त करते
हैं:-
आतंकियों को सजा दिलाने या उनके प्रति कठोरता से पेश आने के मामले में अमेरिका और यूरोप के देशों की अपेक्षा कहीं अधिक नरम देश की छवि बना चुका भारत यदि मो. अफजल जैसे आतंकवादियों की सजा इस्लामवादियों के दबाव में टालने या क्षमा करने की नई प्रवृत्ति का विकास करता है तो निश्चय ही यह देशवासियों की पराजय और भात पर शरियत और इस्लाम का शासन स्थापित करने की आकांक्षा रखने वाले इस्लामादियों की विजय होगी.
गीतकार गुलजार के गीतों के बारे में मनीषबात करते हैं:-
गुलजार एक ऐसे गीतकार है जिनकी कल्पनाएँ पहले तो सुनने में अजीब लगती हैं पर ऐसा इसलिए होता है कि उनकी सोच के स्तर तक उतरने में थोड़ा वक्त लगता है । पर जब गीत सुनते सुनते मन उस विचार में डूबने लगता है तो वही अनगढ़ी कल्पनाएँ अद्भुत लगने लगती हैं। इसलिये उनके गीत के लिये कुछ ऐसा संगीत होना चाहिए जो उन भावनाओं में डूबने में श्रोता की मदद कर सके । गुलजार के लिये पहले ये काम पंचम दा किया करते थे और इस चलचित्र में बखूबी ये काम विशाल कर रहे हैं।
लक्ष्मी जी काका हाथरसी की कविता,"नाम बड़े और दर्शन छोटे" की बात को आगे बाते हुयेकहते हैं:-
जिनके घर में क्रान्ति सी होती साँझ सवेर
शान्ति उनका नाम है यह कैसी अन्धेर।।
भाग रहे हैं युद्ध से वीरसिंह जी भाय।
औ कुबेरमल सड़क पर झाड़ू रहे लगाय।।
जिनके भीषण कोप से पत्नी जाती काँप।
करुणाशंकर नाम से जाने जाते आप।।
लक्ष्मीगुप्त सुजान अब तुमको देवैं सीख।
भाग्यवान हैं माँगते प्लेटफार्म पर भीख।।
अपने बातचीत के अंदाज के बारे में बताते हुये क्षितज उन लोगों के बारे में बताते हैं जो उनके गले जबरदस्ती पड़ जाते हैं- बिना अपनी स्थिति समझे। चौपाल पर अनुराग श्रीवास्तव आधुनिक गिरगिट के बारे
में लिखते हैं:-
“अब, मैं गिरगिट नहीं मारता!
ये गिरगिट तो सब अपने हैं
इनसे अपना एक नाता है
कोई ताऊ है, कोई चाचा है
कोई पुत्र और कोई भ्राता है
कुछ बाबू हैं, कुछ नेता है
कुछ लेखक, कुछ व्याख्याता है
ये रंग बदलने वाले प्राणी
रक्तबीज सा बढ़ते हैं
अपने रंगों को बदल बदल
अपनों को ठगते रहते हैं
कितने गिरगिट तुम मारोगे?
और कितना ख़ून बढ़ाओगे?
ये गिरगिट तो सब ‘अपने’ हैं,
क्या अपने रक्त नहाओगे?
और आज की सबसे खास खबर अंत में। नारद जी के दुबारा अवतरित होने की संभावना इसी हफ्ते है। लेकिन नारदजी अब उसी तरह काम करेंगे जिस तरह बाईपास सर्जरी के बाद दिल का मरीज काम करता है। मतलब आराम-आराम से और बिना अपने स्वास्थ्य को कोई नुकसान पहुंचाये। जान है तो जहान तो जहान है। जीतेंद्र ने अपनी बात साफ करते हुये कहा है:-
यहाँ मै एक बार फिर क्लियर कर देना चाहता हूँ कि नारद पर बनायी गयी श्रेणियाँ चिट्ठो के लिखने की फ्रिक्वेन्सी पर निर्धारित है ना कि चिट्ठों की गुणवत्ता पर।
चिट्ठों की श्रेणियों के बारे में बताते हुये जीतेंद्र ने बतायाहै:
1. सक्रिय चिट्ठे : जो चिट्ठे पन्द्रह दिनों मे कम से कम एक बार जरुर लिखे जाते है। ( इन चिट्ठों को हम दिन मे १२ बार, यानि हर घन्टे मे अपडेट करेंगे)
2. कम सक्रिय चिट्ठे : जो चिट्ठे पंद्रह दिनो से लेकर एक महीने मे जरुर लिखे जाते है। (इन चिट्ठों को हम हफ़्ते मे एक बार अपडेट करेंगे)
3. असक्रिय चिट्ठे : जो चिट्ठे एक महीने से तीन महीने जरुर लिखे जाते है। ( इन चिट्ठों को हम १५ दिन मे एक बार अपडेट करेंगे)
4. सुप्त चिट्ठे : जो चिट्ठे तीन महीने से ज्यादा समय से बन्द पड़े है। (इन चिट्ठों को महीने मे एक बार अपडेट करेंगे)
5. हटाए गये चिट्ठे : वो चिट्ठे जो अपडेट नही हो रहे या जिनके फीड मे कुछ परेशानी आ रही है। ( ये मैनूअली अपडेट होंगे और चिट्ठा लेखक से नारद जी सम्पर्क करके, समस्या सुलझाने का प्रयत्न करेंगे)
भाई हमसे पूछा जाये तो हम तकनीकी समस्या के बारे में कुछ नहीं जानते लेकिन मेरा तो साफ मत है कि आज अगर कोई चिट्ठा लिखा गया है तो वो आज दिखना चाहिये अगर ऐसा नहीं होता श्रेणी १ के अलावा नारद की उपादेयता बेकार है। यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि नारदजी चिट्ठों के लिये हैं न कि चिट्ठे नारदजी के लिये।
आज की टिप्पणी
१.जो चिट्ठे पंद्रह दिनो से लेकर एक महीने मे जरुर लिखे जाते है। (इन चिट्ठों को हम हफ़्ते मे एक बार अपडेट करेंगे)मुझे लगता हैं यह तीन दिन हो तो अच्छा
हैं. सोचिये किसी ने आज लिखा वह सात दिन बाद नारद पर आए यह सही होगा?
बाकी जैसा सब उचित समझे.
संजय बेंगाणी
आज की फोटो
आज की फोटो चौपाल से
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अनूप जी, कभी मेरे चिट्ठे की भी सुध लीजिए।
जवाब देंहटाएंये देखो अनूप जी, या तो आप जीतू भाई से बहुत प्यार करते हैं या उनसे डरते हैं, मेरी जगह उनका नाम लिख गये:)
जवाब देंहटाएं'ओ हरामजादे' जगदीश भाटिया जी ने पहुँचाई है, जीतेन्द्र भाटिया जी ने नही..
जवाब देंहटाएं:)
..,.भाई हमसे पूछा जाये तो हम तकनीकी समस्या के बारे में कुछ नहीं जानते लेकिन मेरा तो साफ मत है कि आज अगर कोई चिट्ठा लिखा गया है तो वो आज दिखना चाहिये अगर ऐसा नहीं होता श्रेणी १ के अलावा नारद की उपादेयता बेकार है। यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि नारदजी चिट्ठों के लिये हैं न कि चिट्ठे नारदजी के लिये। ...
जवाब देंहटाएंयही बात मैं भी कहना चाहता था, परंतु मेरे पिछले सुझाव पर लोगों को खासी आपत्तियां हुई थीं, तो मैंने मुँह बन्द रखा था. मेरा विचार है कि जो नित्य लिखते हैं, जैसे कि मैं या सुनील या फुरसतिया, उनके भी ब्लॉग को दिन में 12 बार जाँचने में कोई तुक नहीं है. दिन में दो बार सुबह व शाम बहुत होगा. बाकी के 10 क्रॉन जॉब्स का इस्तेमाल अन्य श्रेणियों की नई प्रविष्टियाँ जांचने में किया जा सकता है.
सार यही कि सभी हिन्दी चिट्ठे 24 घंटे के भीतर जाँच लिए जाएँ, ताकि उस अंतराल पर प्रविष्ट चिट्ठा हर हाल में नारद पर आ ही जाए.
अब इस विचार को भी सुझाव ही माना जाए यही विनय है.
अभी कुछ दिन पहले अशुद्ध वर्तनी की बात उठी था, तो आज यहां देवनागरी लिपि में भी वो हो गया जो मेरे साथ कई लोग अक्सर लैटिन लिपि में करते हैं, कि मेरे नाम की वर्तनी गलत लिखी दें।
जवाब देंहटाएंरवि जी की बात से सहमत हूँ, चिट्ठे की हर घंटे में खबर लेना तो कुछ ऐसी बात हो गई कि चिट्ठा नहीं कोई Severity 1 , की समस्या हो गई जिस का निदान एक घंटे में करना ज़रूरी है ।
जवाब देंहटाएंप्रयास यह हो कि हर चिट्ठे की प्रविष्टी एक दिन के अन्दर दिखाई दे जाये ।