यही तो प्यार है
आज की चिट्ठाचर्चा कुछ देरी से काहे से आज हफ्ते का पहला दिन है। सोमवार पर इतवार की खुमारी का कब्जा है। कल रात जब कंप्यूटर को शुभरात्रि बोलने जा रहे थे कि रवि रतलामी जी ने बताया कि आज की चर्चा हम करें या करायें। सो हम जिम्मेदारी वीरता पूर्वक अपने कंधों पर ऒढ़कर सो गये। सबेरे उठे तो अलार्म बज चुका था, सब कुछ बज चुका था सो हम नमस्ते का बोर्ड लगाकर चले गये आफिस और अब जब आये हैं खाना खाने तो वायदा निभाने के लिये लिखने के लिये तैयार
हैं।
शुरुआत भावना कंवर की कविता से जो उन्होंने बाल दिवस के अवसर के लिये लिखी है/थी:-
खुद तो लेकर भाव और के बात सदा ही कहते हैं
ऐसा करने से वो खुद को भावहीन दर्शाते हैं।
हैं कुछ ऐसे उम्र से ज्यादा भी अनुभव पा जाते हैं
और हैं कुछ जो उम्र तो पाते अनुभव न ला पाते हैं।
साथ की फोटो देखकर निदा फाजली का शेर याद आता है:-
यूं जिंदगी से टूटता रहा, जुड़ता रहा मैं,
जैसे कोई मां बच्चा खिलाये उछाल के।
दीक्षा भूमि
लगे हाथ आप महाभारत कथा में यदुवंश का नाश भी देख लें जो दिखा रहे हैं जी के अवधिया जी। इसी क्रम में मिर्ची सेठ ने निहंग सिख के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। शैलेश अपने प्रिया को आते देख कन्फ्यूजिया गये कि उनका स्वागत कैसे करें:-
प्रिये,
कल रात एक सपना देखा
देखा तुम उतर रही हो आसमान से
पंखों के आसन पर बैठी हो तुम
हाथ में केवल आशीर्वाद है
शायद वह 'क्रिसमस' का दिन था
मैं दौड़ने लगा था इधर-उधर
कहाँ से लाऊँ फूल
कहाँ से लाऊँ सुगन्ध
कहाँ से लाऊँ स्वागत-मालिका
किस-किस को बुलाऊँ
किसको ना बुलाऊँ?
समोसे गरम
हितेंद्र बता रहे हैं साइट के बारे में जो हिंदी में विज्ञान प्रसार का काम करती है लेकिन लोग बताते हैं कि उसकी भाषा में कुछ लोचा है और वैज्ञानिकों की की जीवनी के लिये हल्की भाषा का उपयोग किया हुआ है। लेकिन आप वो सब छोड़िये और चलिये सैर पर मनीष के साथ पचमढ़ी के लिये। वहां आप वह जगह भी देखिये जहां भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली थी। समोसे वाले की दुकान देखकर आपका मन करेगा कि पहले खा लें फिर आगे बात करें। और जब आप गर्म समोसे से निपटेंगे तो आपको मल्लिका शेरावत मिलेंगीं जिनकी उमर प्रतीक को भी नहीं पता। लेकिन आप कुछ भी कर लो, कुछ भी दिखा लो निठल्ले यही कहेंगे कि मजा नहीं आया। इस पर नीरज दीवान ने एक जांच बैठा दी और फैसला भी दिया कि असली क्या है नकली क्या है? उधर उन्मुक्त गायब होने का वरदान के बारे में बता रहे हैं।
अब मिसिर जी की दुविधा आप उनके ही मुंह से सुने:-
आजकल कुछ दिनो से लगता है, कुछ तो हुआ है क्योंकि हिन्दी ब्लाग जगत मे कविता लिखने पढ़ने का शौक जोरों पर है, यहाँ तक कि बहुत सारे ब्लागर तो टिप्पणियाँ भी इसी विधा मे करने लगे हैं।
इसी धुन मे मैने अपनी एक मित्र को एक कविता सुना डाली तो अब अक्सर फ़रमाइश हो जाती है :(।
तभी पता चला कि श्वेता जी भी कवितायें लिखती है..तो लगे हाथों हमने भी फ़रमाइश कर डाली, कविता तो आ गयी इस आदेश के साथ कि
Now u have to listen to me. That is I want ur detailed reaction about the poem, even if u dont like it. ok?
मिसिरजी को लगता है बात समझ में आ गयी और उन्होंने कविता पेश कर दी:-
कविता की तारीफ समीरलाल जी ने कर दी और अपनी कुंडलिया भी सुना दी:-
चैंम्पियन ट्राफी में हुआ, यह कैसा अत्याचार
पाकिस्तान पहले गया, फिर भारत का बंटाधार
फिर भारत का बंटाधार कि अब खेलो गुल्ली डंडा
ग्रेग गुरु ही बतलायेंगे,जीत का फिर से हथकंडा.
कहे समीर कवि कि बैठ कर अब पियो शेम्पियन
गुल्ली डंडे के खेल में,बनना तुम विश्व चैंम्पियन.
कुंडलिया से निपटे से हायकू का रन भी चुरा लिया:-
खेलें क्रिकेट
गुरु ग्रेग हों संग
रंग में भंग.
अब इसके बाद सारे चिट्ठे आउट हो गये और हमारी पारी घोषित। कल की बागडोर रहेगी राकेश खंडेलवाल के हाथ। आप और कुछ पढ़ें तब तक यह देख लें कि पिछले साल इसी हफ्ते क्या छपा था चिट्ठों में।
आज की टिप्पणी:-
इस पत्रिका के जीवनी वाले विभाग में जाकर वैज्ञानिकों की की जीवनी पढिये किस तरह की घटिया भाषा का उपयोग किया हुआ है। उदाहरण देखिये ये जगदीश चन्द्र बोस के लिये लिखे लेख में किन शब्दों का प्रयोग हुआ है-
बोस अपनी छुट्टियां सुरम्य सुन्दर एतिहासिक स्थानों की यात्रा करने और चित्र लेने में बिताता था और पूर्ण-साइज़ कैमरा से सुसज्जित रहता था। अपने कुछ अनुभवों को उसने सुन्दर बंगाली गद्य में लिपिबद्ध किया।
अपने पिता के उदाहरण का अनुसरण करते हुए उसके सामने सहज विकल्प प्रसिद्ध भारतीय सिविल सेवा में भरती होना था। तथापि उसका बाप नहीं चाहता था कि वह सरकारी नौकर बने जिसके बारे में उसने सोचा कि उसका बेटा आम जनता से परे चला जाएगा।
इसके फलस्वरूप उसकी नियुक्ति को पूर्वव्याप्ति से स्थायी बना दिया। उसे गत तीन वर्ष का वेतन एकमुश्त दे दिया गया जिसका इस्तेमाल उसने अपने बाप का ऋण उतारने के लिए किया।
इस के बारे में मैने पहले भी जुगाड़ वाली पोस्ट में लिखा है। देखिये
भारत सरकार के इस जाल स्थल में डॉ ए पी जे कलाम के लिये शब्दों का प्रयोग देखिये, मानों यह लेख एक देश के राष्ट्र्पति के बारे नहीं किसी ऐरे गैरे इन्सान के लिये लिखा गया हो। इस लेख को तो पढ़ा भी नहीं जाता
http://nahar.wordpress.com/2006/10/26/abtakkejugad/
आज की फोटो:-
आज की फोटो घुमक्कड़ के कैमरे से जो रामचंद्र मिश्र जी को सबसे ज्यादा पसंद आयीं।क्या खूबसूरती है
क्या खूबसूरती है
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकर पारी की घोषणा, बल्ला दिया उछाल
जवाब देंहटाएंकल की चर्चा को करें, मिस्टर खंडेलवाल
मिस्टर खंडेलवाल, न जाने बल्लेबाजी
लगा आपकी चाल उलट देगी ये बाजी
शत शत शतक लगाते हो चर्चा लिख लिख कर
कलम छूटती है हाथॊं से अब डर डर कर