सोमवार, अक्तूबर 16, 2006

तब कविता कविता होती थी

सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहें गणेश
पहली चर्चा पर मिले पूरे नौ सन्देश
पूरे नौ संदेश, दिखाया पथ समीर ने
वरना हम खोते चिट्ठों की भरी भीड़ में
सुन समीर, तुम लिखते हो कुण्डली सर्वदा
एक लिखूंगा चर्चा में, मैं ज्ञात हो, सदा

कुण्डलियों की नगरी के तुम एकछत्र धारी नरेश हो
इसीलिये अब और विधा, मुझको कविता की लेनी होगी
अमॄत-ध्वनि लूँ, घनाक्षरी या कोई सवैया ही लिख डालूँ
लिखूँ कवित्त याकि मुक्तक को ही कर लूँ अपना सहयोगी

लेकिन सबसे पहले लिखता, क्योंकि दिवाली खड़ी सामने
चन्द पन्क्तियाँ सादर सारे चिट्ठाकारों की सेवा में
जो उद्गार ह्रदय से निकले ज्योति पर्व के इस अवसर पर
उनको लिखता हूँ जैसे का तैसा अब अगली पंक्ति में:-

दीवाली के दीप प्रज्वलित यों प्रकाश बिखरायें
अँगनाई के साथ ज़िन्दगी के आँगन में फैले
वैभव व समॄद्धि निरन्तर बढ़ें प्रगति के पथ पर
निशा स्वर्णमय हों, दिन सारे ही होंवे रोपहले
शक्तिआद्य बन मधुर प्रेरणा संबल देवे हर पल
आशीषों के सुमन हमेशा बरसें शीश तुम्हारे
जिस पथ चलें वही नंदन कानन की राहें बन ले
खड़े राह में रहें नित्य ही पूनम के उजियारे


अब पहले चिट्ठे की जब करता तलाश मैं निकला
रचनाकार लिये बैठे थे नागार्जुन की कविता
चन्दू का सपना था, घुच्ची आँखों की जिज्ञासा
और मीडियायुग कहता टीवी पर बीता हफ़्ता

शत शत नमन कर रहे लेकर कविताक्षरी खड़े गिरिराज
रत्नाजी, रचना, मनीष का दिखा रहे अद्भुत अंदाज़
और बैठ चौपाल कर रहे कर देकर फिर कर की बातें
नेताजी के किस्से लेकर श्रीवास्तव श्री अनुराग

फिर रस्ते में मिली मोड़ पर आगे तिरछी एक नजरिया
संस्कॄतियों की हुई संपदा लेखागॄह में, लिये खबरिया
लोककथा, इतिहास, शिल्पकॄति और धर्म की पूर्ण धरोहर
एक जगह है, डाल सकें तो आप डालिये एक नजरिया

एक मेरा हिन्दी चिट्ठा भी, लगा ताकने मुझको
जो कि वर्ल्ड में कुछ लोगों की टाईप ढूँढ़ रहा था
और मीडियायुग फिर आया लौट दुबारा पथ पर
किस शासन में रहते हैं हम सबसे पूछ रहा था


कचराघर में मिला चित्र मुझको जिज्ञासा वाला
जो कि नहीं कचरे की पेटी से था गया निकाला
एक टिप्पणी मिली आज जिसका उल्लेख करूँ मैं
चित्र डाल कर चलें आज का चर्चा बन्द करूँ मैं.

आज की टिप्पणी:-

अच्छा लिखे हो. लेकिन बरखुरदार यह बाबा आदम के जमाने के टेम्पलेट काहे नही बदलते. इसे बदलो कौन्हो अच्छा टेम्पलेट चेंपो और सबसे जरूरी काम यह कि नारद का लोगो चिपका दो वहाँ. अब मियाँ तुम्हारे जइसन लोकप्रिय ब्लाग नारद को लिंक नही करेंगे तो कौन करेगा, जुम्मन मियाँ?
By जीतू, at 11:09 PM


आज का चित्र:-



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1 टिप्पणी:

  1. चिठ्ठा चर्चा कर छंद बद्ध सन्मुख लेकर आये
    पढ़ कर हम पुलकित हुये, मन ही मन मुस्काये

    आप जैसा अद्भुत कवि ही कर सकता ऐसा काम
    ऐसी प्रस्तुति के लिये स्वीकारें मेरा प्रणाम

    जवाब देंहटाएं

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