गुजराती चिट्ठाजगत धीरे धीरे बढ रहा है, अभी फिलहाल 20 से 25 चिट्ठे हैं। कहना ना होगा इसमे से 95% चिट्ठों में आपको गुजराती कविताएँ, दोहे तथा गज़लें ही पढने को मिलेगी।
एक बार मैने अपने गुजराती चिट्ठे पर इसकी शिकायत भी की थी कि भई लिखने को और भी बहुत कुछ है, सिर्फ कविताएँ ही क्यों?
इसबार गुजराती चिट्ठाजगत में चक्कर काटकर आया तो कविताओं के साथ साथ कुछ और भी पढने को मिला।
निलमजी 21 सदी में आए बदलाव से व्यथित कनैया की मनःस्थिति का वर्णन करती है एक नाटिका के रूप में। इस लघु नाटिका में कनैया 21 सदी में आ गया है और शुद्ध मक्खन तलाश रहा है, जो उसे नही मिल रहा है।
नाटिका के अंत में कृष्ण का पात्र कहता है:
મને લાગે છે યુગેયુગે ..સમય ની માંગ પ્રમાણે હું હવે બદ્લીશ યુગધર્મ…માનવધર્મ..જયાં સ્વચ્છતા નથી ..ત્યાં પ્રભુતા નથી ને આરોગ્ય કે માનસિક શાંતિ હોઇ જ ન શકે.
(मुझे लगता है समय की मांग के अनुसार मैं बदलुंगा युगधर्म... मानवधर्म। जहाँ स्वच्छता नही है, प्रभुता नही है, आरोग्य नही है तो वहाँ मानसिक शांति कैसे हो सकती है?)
जयश्रीजी ने बेदार लाजपुरी की गज़ल रखी।
શબ્દના એવા ગુના પણ હોય છેમૌન રહેવામાં ડહાપણ હોય છે
વહેંચવાનો થાય જ્યારે વારસોવારસોના દૂર સગપણ હોય છે
હર સમય કર્ફ્યુના ટાણે શહેરમાંમાર ખાતી એ ભિખારણ હોય છે
હોય છે માઠી દશામાં દૂર સૌલાગણીને કેવી સમઝણ હોય છે
હોય છે બેદાર ક્યારે એકલા‘આપણી અંદર ઘણા જણ હોય છે’
अंतिम चार पंक्तियों का भावार्थ देखिए:
होते हैं अवदशा में सब दूर
भावनाओं की भी कैसी समझ होती है
बेदार कब अकेले हम होते हैं
अपने अन्दर भी कई लोग होते हैं
जयश्री अपने अन्य चिट्ठे टहुको में कव्वाली के बारे में बताती दिखीं। इसमें उन्होने कई महारथीयों को याद किया जैसे कि नुसरत फतह अली खान, साजन मिश्रा, और साबरी बन्धु। वे एक ओडियो भी रखती हैं जो कर्णप्रिय है।
अंत में उनके चिट्ठे पर दिखी यह बेहतरीन शायरी:
तेरा इश्क है मेरी आरज़ु,
तेरा इश्क है मेरी आबरु..
तेरा इश्क मैं कैसे छोड दुं,
मेरी उम्रभर की तलाश है..
पंकज भाई
जवाब देंहटाएंआपको चिट्ठा चर्चा पर देख कर बडा अच्छा लगा. गुजराती चिट्ठों पर बातचीत एक बहुत अच्छी पहल है. इसे जारी रखिये.
शुभकामनायें एवं बधाई.
समीर लाल
पंकज भाई, बधाई!!!
जवाब देंहटाएंThank you, Pankajbhai.
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