उड़नतस्तरी बैठि घूमत फिरैं, आपने लाल समीर
विनय गुरू से भेंट भई, जो हैं व्याकरण के वीर।
हैं व्याकरण के वीर गलतियां चिट्ठे में बतला दी
हवा बनी थी जो समीर की उसमें से थोड़ी सरका दी।
कह चिट्ठा कवि राय बात बड़ी है इसमें गहरी
ध्यान लगाकर टाइप करें फिर उड़ें कि जैसे उड़नतस्तरी।
समीरेलाल अपनी ब्लागपोस्ट पर गलतियां देखकर घबरा गये और व्याकरण की गलतियां अकेले में बताने के लिये अनुरोध करने लगे:-
"निंदक अति नियरे राखिये, कान मे फुसफुसाये,
काम भी बनता रहे, औउर कौनों जान ना पाये"
इसके पहले अपने पाक-साफ होने की कसमें भी बहाने से खाते रहे:-
हम तो गड्डों से बच कर उछले
निकल गये वो, जो पीकर निकले.
वास्तव में ब्लागपोस्ट में गलतियां तो ठिठौना हैं। ब्लाग पर नजर लगने से बचाने के लिये नीबू-मिर्चा है, जादू-टोना है। कुछ् ब्लाग अगर बिना 'कीया', 'मीला','सूनते' जैसे ठिठौनों के पोस्ट किये जायें तो उनकी असलियत पर सवाल उठने लगें। लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिये कि ठिठौने के बहाने पूरा शरीर काला कर लिया जाये। आशा है कि विनय का प्रयास सही अर्थों में लिया जायेगा और बचा सकने वाली गलतियां बचाई जाने की कोशिश् की जायेगी। कम से कम मात्रा आदि की गलतियां तो दूर की ही जा सकती हैं थोड़ी सावधानी से।
बात जादू टोना की होने लगी तो उन्मुक्त् का जादू-टोना दिखाने की तैयारी देखते चलें साथ में खास चिट्ठा भी।
दुर्गा पूजा
बंगाल की दुर्गा पूजा की याद करती हुयी ध्रुवस्वामिनी देवी दर्शन कराती हैं। उधर अमिताभ त्रिपाठी इस्लाम का नस्लवादी चेहरा दिखाते हैं और् मीडियायुग वाले हफ्ते भर की टीवी रपट:टीवी पर हथौड़े मारते एंकर कुछ त्यौहारी होते नजर आए। अरे भई धूम तो दुर्गापूजा की भी टीवी पर खूब रही। कोलकाता की दुर्गोपूजा के नजारे हर टीवी चैनल पर पसरे रहे। नजारे राम और रावण के भी थे, पर टीवी ने इसे रासलीला से जोड़ दिया इस बार। जमाना रासरंग का जो है। रामलीलाएं हो रही है। शहरों में। भीड़ जोरदार होती है। मर्यादा राम की, रावण का हठ, सीता की शपथ और जनता की आवाज। बोलो सियापति राम चंद्र की जय।
पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ ने अपने सच्चे-झूठे अनुभवों पर किताब लिखी और उस पर अनुभव ने लिख डाली कविता:-
मुशर्रफ नें लिखी किताब, किताब पे कविता सुनो,
करना तो पड़ेगा हिसाब, हिसाब पे कविता सुनो,
हमनें भी दिए हैं जवाब, जवाब पे कविता सुनो।
कविता सुनकर् शायद् सागर चंद् नाहर की घरवाली नाराज हो गयीं तो पत्नी को मनाया उन्होंने और पत्नी को पटाने के तरीके भी सबको बता दिये।
चुम्बन
बात हो रही थी पुस्तक चर्चा की कि लेकिन ये जो रविरतलामी हैं वो सारे काम अपनी मर्जी से करते हैं। वे पुस्तक चर्चा की आड़ में चुम्बन चर्चा करने लगे। क्या कहा जाये कछ कह भी नहीं सकते काहे से कि आज बुजुर्ग दिवस है और ये मानेंगे है नहीं करेंगे अपनी मर्जी की ही। लेकिन् देखो इधर ये चुम्बन लीन रहे उधर इनके शहर का रावण चोरी चला गया लेकिन तब तक हालात का पूर्वानुमान लगाकर जीतेंद्र् अपने मोहल्ले का रावण दहन देख चुके थे और संजय बेंगाणी रावण को काव्यांजलि अर्पित कर चुके थे:-
काश, तुम जन्मे होते इस युग में,
तो तुम्हें जलना न पड़ता शायद यों
क्योंकि आज तुम बौने होते
महा रावणो के बीच.
और फिर क्या फर्क पड़ता जो
तुम उठा ले जाते किसी एक सीता को
यहाँ तो रोज जलती हैं, लूटती हैं कई सीताएं.
सच, तुम बदनसीब हो जो जन्मे नहीं इस युग में
बल्की जले हो युगो-युगो से
आज तक
आज भी जले हो तुम
रावण, कितने बदनसीब हो तुम.
लाल्टूजी बहुत दिन बाद कविता सुना रहे हैं और जीतेंद्र बता रहे हैं आबिदा परवीन के बारे में।
दीपावली के अवसर पर प्रभाकर पाण्डेय शुभकामनायें व्यक्त करते हैं:-
दिल से मनानी है दीवाली
तो हर घर को रोशन करना होगा
ये है मेरा राष्ट्र सब अपने भाई
सोचकर,कोई कार्य करना होगा ।
दीवाली के इस शुभ अवसर पर
आइए, एक साथ खाएँ कसम
हर दिल में ज्योति जलाएँगे
प्रेम,एकता,सत्य का हम ।
जया अपने ब्लाग पर हरिवंश राय बच्चन की कविता सुनाती हैं:-
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
इसी को ध्यान में रखकर काम करने के चक्कर में प्रत्यक्षाजी कन्फ्यूजिया गयीं हैं, टोटल वाला कन्फ्यूज, और हर एक से पूछ रही हैं कि कैमरे की खरीद कैसे की जाये। इसमें समय नष्ट हो रहा है प्रतीक पांडेय का।
रचना बजाज अपने चिठ्ठे के अनुभव बताती हैं और् साथ् में अपने जिले, ‘खरगोन’ को याद करती हैं:-
कितना सहनशील ये शहर ‘खरगोन’ है!
बारिश मे सडकों पर तालाब बन जातें हैं,
सँकरी- सी सडकों पर लोग टकराते हैं,
यहाँ वहाँ गाय- भैंस आराम फरमाते हैं,
छोटे-छोटे बच्चे यहाँ बाइक दौडाते हैं,
पोलिस की सीटी को सुनता यहाँ कौन है?
कितना सहनशील ये शहर ‘खरगोन’ है!
हर कोई कहता है,जो बात मैने कही है,
बरसों पुरानी,ये बातें ना नई हैं,
लोग यहाँ पढे-लिखे,नेता भी कई हैं,
यूँ ही बस रहने की आदत बन गई है,
चाय और पान मिले, बाकी सब गौण है!
कितना सहनशील ये शहर ‘खरगोन’ है!
रचनाजी से यही कहना है कि और सब करें लेकिन मेहनत पर पानी फिरने की बात से घबडा़यें न वे अकेली नहीं हैं जिनके साथ ऐसा होता है। कल सबेरे हमसे पूरा लिखा हुआ चिट्ठाचर्चा मिट गया था और आज तो सुबह से हो गयी शाम।
अफलातून देसाई प्रख्यात समाजवादी विचारक स्व.किशन पटनायक की किताब विकल्पहीन नहीं है दुनिया के बारे में जानकारी देते हैं। किशन पटनायक गुलामी का दर्शन बताते हुये कहते हैं:-
“गुलामी में एक सुरक्षा है.अनुकरण और निर्भरता में एक सुरक्षा है -खासकर बौद्धिक निर्भरता में.इसलिए इसकी लत लग जाती है.जो लोग,व्यक्ति या समूह लम्बे समय तक गुलाम बने रहते हैं,उनके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आ जाता है.ज्यादा समय तक गुलाम रहने वाले देशों और कम समय तक या न के बराबर गुलाम रहने वाले देशों के चरित्र में एक भिन्नता होती है.पहली किस्म के लोग अपने निर्णय से कठिन काम नहीं कर सकते.गुलाम व्यक्ति आदेश मिलने पर कठिन काम करता है,अनिच्छा से करता है,उसमें रस नहीं मिलता.इस तरह कठिन काम के प्रति उसका स्वभाव बन जाती है.बाद में जब वह आज़ाद होता है,तब भी वह कठिन काम,कठोर निर्णय से भागता है.कठिन काम करने में जो रस है ,जो तृप्ती है, उसे वह समझ नही पाता.जो कठिन है वह संभव है,दीर्घकालीन हित के लिये हरेक के लिये आवश्यक है -यह भाव उसके आचरण से गायब हो जाता है.”
फुरसतिया को अपनी कविता सुनाने का बहाना चाहिये था सो उन्होंने बहाने से सुनाया:-
वक्त के पांव अनायास ठहर जायेंगे,
गौर से देखो तो कुछ और नजर आयेंगे।
डूब के सुनोगे जो रफ़्ता - रफ़्ता,
कान से होकर कलेजे से उतर जायेंगे।
और फिर बहाने से अपनी कुंडलिया झेला दी।
सूचना:-आज विश्व बुजुर्ग दिवस है। आप सभी अपने आस-पास के बुजुर्गों की सेवा का मौका हाथ से जाने मत दीजिये। जिनके आसपास बुजुर्ग नहीं हैं वे जीवन से निराश न हों। देखें ब्लाग जगत में कोई ने कोई उनसे बुजुर्ग होगा। उनके ब्लाग पर जाकर उनकी टिप्पणी सेवा करें। इससे उनको शर्तिया शुकून मिलेगा और आपको भी।
आज की टिप्पणी
1.“रूठी सजनी को मनाना चाहते हैं? हमारे अनुभवों का लाभ यहाँ से लें।”
और प्रयोग अपनी रिश्क पर करे, हो सकता हैं अच्छी भली सजनी रूठ जाए.
संजय बेंगाणी
2.अच्छा है.मुझे खुशी है कि हमारे कारण बाकी लोग भी अपनी शरम त्यागकर पुराने को सामने ला रहे हैं.अब
इंतजार करो आते होंगे व्याकरणाचार्य गलतियां बताने.तब तक जो बने ठीक कर लो.
अनूप शुक्ला
आज की फोटो
आज की फोटो सुनील दीपक के ब्लाग से.यह तस्वीर इस मायने में खास है कि आज बुजुर्ग दिवस है और सुनील दीपक हमारे ऐसे बुजुर्ग ब्लागर हैं जिनका मन युवा है और तन ऐसा है कि शारीरिक चुस्ती में युवाओं को भी मात करते हैं.
"हवा बनी थी जो समीर की उसमें से थोड़ी सरका दी।"
जवाब देंहटाएंअब तो वाकई सरकती नजर आ रही है..:)
... रवि रतलामीजी आज की चिट्ठाचर्चा लिख चुके हैं (जबकि उसे लिखना हमें था लेकिन हम भूल गये और रवि रतलामी जी ने सन्नाटा देख लिख मारा उसे )....
जवाब देंहटाएंअरे नहीं. आपने अपने 30 सितम्बर के चिट्ठे के अंत में लिखा था कि अगला चिट्ठा मैं लिखूं. आपकी आज्ञा कोई कैसे नकार सकता है भला?
पर, देखिए, पाठकों को उन्हीं चिट्ठों के बारे में बताने के दो अलग अंदाज से कितना मजा आया होगा :)
यह तो दिवाली बोनस हो गया चिट्ठाचर्चा की तरफ से.
जवाब देंहटाएंकेवल मन ही युवा है? आप तो हमारा दिल तोड़ रहे हैं! :-)
जवाब देंहटाएंलीजिये सुनील जी आपके टूटे दिल को शारीरिक चुस्ती के फ़ेवीकोल के मजबूत जोड़ से जोड़ दिया.
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