रविवार, अक्तूबर 01, 2006

इन रावणों को बक्श दो

विश्व की पहली महिला अंतरिक्ष पर्यटक अनुशेह अंसारी के रोचक चिट्ठे के बारे में उन्मुक्त बता रहे हैं. वैसे, इच्छा तो अपनी भी है अंतरिक्ष पर्यटन की परंतु करोड़ों डालर किराया कहाँ से आएगा यही सोचकर फिलहाल तो हम अपने बगीचे में ही टहल लेते हैं. आगे अपने किसी दूसरे चिट्ठे में वे टोने-टोटके से लेकर ज्योतिष और न जाने क्या क्या के बारे में अपने भविष्य की लेखन योजना के बारे में बता रहे हैं. संगीत में अगर आपको रुचि है तो आप आबिदा परवीन से अनजाने नहीं हो सकते. आबिदा परवीन और सूफ़ी संगीत के बारे में जीतू अपने अनुभवों को संगीत की कुछ कड़ियों के साथ साझा कर रहे हैं, और साथ ही साथ विजयादशमी की बधाई देने के रिश्वत स्वरूप आपको अपना पुराना चिट्ठा पढ़ने का न्योता दे रहे हैं.


लगता है दीपावली पूर्व की झाड़पोंछ में पुरानी जंग खाई रचनाएँ कुछ दिन और निकलती रहेंगी. इस दफ़ा देखा-देखी जोगलिखी संजय पंद्रहसाला पुरानी कविता रावण दहन के बहाने ले आए हैं. अब आप रावण दहन करें या इनकी कविता. मर्जी आपकी है. वैसे, दो पंक्ति उदाहरण के यहीं दिए देते हैं -

रावण कितने बदनसीब हो तुम,

हर वर्ष जलते हो आग मे

क्या अभी भी बाकी हैं प्राश्चीत तुम्हारा.

जो जलते हो रावणों के शहर में,

रावणों के बीच, रावणों के द्वारा.

चिट्ठाचर्चा में हुई चर्चा को लेकर चर्चा में समीर जी लाल-बाल होते दिखाई देते हैं और चिट्ठाचर्चा के नए नामकरण हेतु सुझाव देते हैं. अब, सुझाव तो सुझाव होते हैं, इन्हें सही मान कर आप अपने ब्लडप्रेशर हाई मत करिएगा. वैसे, एक सुझाव तो भई हम भी मानेंगे -

"निंदक अति नियरे राखिये, कान मे फुसफुसाये,
काम भी बनता रहे, औउर कौनों जान ना पाये."..


हिन्दी पखवाड़ा कल समाप्त हो गया. समापन की कवि गोष्ठी में फुरसतिया कुंडलियाँ गजब रहीं-

मजे-मजे में आ गये, सब कविता सुनने आज,
हमें माइक पर देखकर, कोई मत होना नाराज ।

टाइमपास में प्रतीक पाण्डे रजनीकांत को यू ट्यूब में दिखा रहे हैं तो प्रभाकर पाण्डेय (पाण्डे सही है या पाण्डेय ?) बीस दिन पहले दीपावली की बधाई दे रहे हैं. भई, दशहरा तो अमन चैन से गुजर जाने देते! कोई बात नहीं, दीपावली अभी ही मना लेते हैं -

चारों तरफ है लूट-खसोट
हत्या,जातिवाद का बोलबोला
ना मनाएँ हम झूठी दीवाली
ना जपें दिखावटी का माला ।

वैसे भी, हम चिट्ठाकारों की तो रोज होली-दीवाली होते रहती है!

बड़े दिनों बाद लाल्टू प्रकट हुए अपनी पुरानी, धो-पोंछकर निकाली गई कविता - शरत् और दो किशोर के साथ. जया भी जुलाई के बाद सीधे सितम्बर में अवतरित हुईँ हरिवंश राय बच्चन की कविता पथ की पहचान के साथ.

दस्तक में सागर अपनी रूठी पत्नी को मनाने की तरकीबें बयान कर रहे हैं जिसे पढ़ कर संजय फर्माते हैं कि इससे तो रूठना और बढ़ जाएगा. आप पढ़कर बताएँ कि दोनों में कौन सही है.

और, अंत में एक पहेली . बाप रे! निठल्ला चिंतन तो जरूर पहेली हल कर सकते हैं. ये पहेली वहेली अपने बस का नहीं!

विजया दशमी पर देस की जनता रावण दहन की परंपरा से दूर होती जा रही है और वो रावण चुराने लगी है - बता रहे हैं रविरतलामी जो चुंबनों से भरपूर पुस्तक चर्चा भी कर चुके हैं. मानसी को लगता है कि प्रत्येक माह की 29 तारीख को लिखा उनका चिट्ठा शायद न्यूमरोलॉजी के हिसाब से ज्यादा पाठक खींचेगा - ज्योतिषशास्त्री जो ठहरीं. उनकी लिखी जानदार ग़ज़ल मुलाहिजा फ़रमाएं-

हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
कहो भी अब जो छुपा रहे हो

ये आज किस से मिल आये हो तुम
जो नाज़ मेरे उठा रहे हो

जो दिल ने चाहा वो कब हुआ है
फ़ज़ूल सपने सजा रहे हो

सयाना अब हो गया है बेटा
उमीद किस से लगा रहे हो

तुम्हारे संग जो लिपट के रोया
उसी से अब जी चुरा रहे हो

मेरी लकीरें बदल गई हैं
ये हाथ किस से मिला रहे हो

ज़रूर कुछ ग़म है आज तुम को
खु़दा के घर से जो आ रहे हो


इस दफ़ा की टिप्पणी समीर लाल के चिट्ठे से . अंदेशा है कि टिप्पणी से फिर से कईयों का रक्तचाप ऊँचा होगा. मगर सुझाव है कि टिप्पणी को चिट्ठे की टिप्पणी के रूप में पढ़ें.

मै शायद इस पोस्‍ट को देखने वाला प्रथम व्‍यक्ति था क्‍योकि जब मैने प्रात: काल इस लेख को देखा था तो इस पर एक भी टिप्‍पणी नही थी, सोचा था ओपनिग करने उतरूगां किन्‍तु किन्‍ही कारणों से मुझे सेकेड डाउन आना पड रहा है। मेरे पहले मे बल्‍लेबाज अच्‍छी बैटिग किये पर चैपल-द्रविड की आगे तेजी से रन बनाने के चक्‍कर मे अपना विकेट गवां दिया। मै तो गांगुली का समर्थक हुं अपना सवाभाविक खेल खेलूगा पारी भी टेस्‍ट की लारा से बढ कर होगी। अब मै मुद्दे पर आता हूं-

'नियरे निन्‍दक राखिऐ' सही है पर मै उसे कहूंगां कि उसे नियरे ही रहने दे अति नियरे लाने का काम न करे अन्‍यथ अति नियरे लाने पर आत्‍मघाती बम का काम करेगा।


समीर जी के इस बात का मै पुरजोर समर्थन करता हूं कि लेखक पर व्‍यक्तिगत टिप्‍पणी को सर्वजिनिक नही करना चाहिऐ। मै तो साफ कहना चाहूगां व्‍लाग पर टिप्‍पणी का टिप्‍पणी का मंच केवल लेख के लिये होना चाहिऐ न कि लेखक की कमियों के लिय, लेख की अच्‍छाई तथा कमी के लिये ही ब्‍लाग टिप्‍पणी का उत्‍तम मंच है। लेखक तथा अन्‍य बातो के लिये वो क्‍या जुमला को क्‍या कहते है हां याद आ गया- ' एक ईमेल की दूरी पर' हां लेखक की कमियो को बताने वाला सर्वोत्‍तम माध्‍यम ईमेल है। मै किसी पर व्‍यक्तिगत आक्षेप के लिये सर्वजनिक मंच को कद्दापि उचित नही मानता हूं। मेरे साथ भी कुछ इस प्रकार का वाक्‍या घटा तब मेरा इतना ही कहना था-
1. व्‍यक्तिगत शिकायत या किसी अन्‍य बात के लिये ईमेल ही सर्वश्रेष्‍ठ माध्‍यम है न कि किसी प्रकार का सर्वजनिक मंच।

2. गूगल व याहू समूह तथा परिचर्चा कोई कोतवाली नही न वहां के मठाधीश कोतवाल की जो हर बात की रिर्पाट लिखाने पहुत जाते है कि मेरा लेख चोरी हो गया है और शुरू हो जाना अर्नगल प्रलाप जैसे औरतो की पंचाइत होती किनती भी चले कोई हल नही निकलता है।

3. किसी खुले मंच पर आप किसी को नंगा करोगे तो निश्चित है कि अगर सामने वाले कि नाक उची है तो आपकी ऐसी तैसी करने मे कही कमी नही छोडेगा। फिर यह न कहना कि नंगा नहायेगा क्या निचोड़ेगा क्या। किसी की भद्द करने से पहले कुछ सोचना चाहिये।

4. मैने छद्म नाम अथवा बगैर नाम के टिप्‍पणी करने का विरोध किया था, सबके सब मुझ पर ही पिल पडे, कैसे आ गया? क्‍यो आ गया? इसको भगाओ? ये तो अपनी बिरादरी का है ही नही? क्‍या करे सब के सब अपनी आदत से मजबूर किसी महा ब्‍लागर को यह जानने की जस्‍रत नही हुयी कि इसने ऐसा लिखा क्‍यो?

बात यह थी- मैने परिचर्चा पर एक राष्‍ट्रीय ध्‍वज के अपमान से सम्‍बन्धित एक विषय रखा था और मुझे इस बात की जानकारी नही थी कि चित्र को कैसे वहां ले जाया जाये तो मुझे लगा कि मै लिख वहां दू, और चित्र आपने व्‍लाग पर दे दूं, और मैने ऐसा ही किया। उसी झण्‍डे के नीचे बिना नाम की टिप्‍पणी मे मुझे गाली दी गई थी। जिसका पता मुझे तीन चार दिन बाद चला क्‍योकि मेरा अधिकतर समय परिचर्चा पर ही बितता था। जब मैने देख तो मुझे बुरा लगा क्‍योकि मेरे साथ मेरे परिवार के लोग भी टिप्‍पणी का आनंद लेते है अत: मैने उसे हटा दिया। और मुझे अन्‍य लेखक के लेख ने अल्प ब्लाग जीवन के फटे में पैबँद लिखने के लिये प्रेरित किया। क्योकि गाली हिन्दी मे लिखी थी तब मुझे एक महाब्लागर की बात याद आई तब उनहोने कहा था कि हिन्दी मे लिखते ही कितने लोग है कुल 200 ही न, तो गाली देने वाला भी हिन्‍ही मे से एक था। जो नाम छिपा कर सफेद पोस मे बैठा है।

5. मैने एक अन्‍य मसले पर यहां भी कुछ कहा था http://groups.google.com/group/Chithakar/browse_thread/thread/7370ebf1484903d1/#


मै समीर जी के विषय से कहीं भी नही हटा हूं और अपने माध्‍यम से बात को रख रहा हूं। और मै पुन: समीर जी की बात पर आता हूं, मै आपकी प्रत्‍येक बात का अक्षरस: समर्थन करता हूं आप कही भी गलत नही है। लेखक की बात की काट सदैव लेखनी से होनी चाहिये जग पंचाइत से नही। वैसे तो मात्रिक व व्‍याकरण की गलती सभी से होती रहती है अगर गलतियो पर कमेण्‍ट किया जायेगा तो किसी को कमेन्‍ट की कमी नही होगी। एक स्‍वस्‍थ परम्‍परा होनी चाहिये चाटु परम्‍परा नही।


समीर जी आप एक लेखक एक लेखक को कभी क्षमा शब्‍द शोभा नही देता है अगर दिनकर भारतेन्‍दू जैसे लेखक लेखनी छोड कर क्षमा मागते तो हो चुका होता हिन्‍दी का विकास तथा सत्‍ता पर चोट। जिसको बुरा लगे लगता रहे वह आपनी लेखनी से उत्‍तर देगा। अन्‍यथा कही जाकर पचरा गयेगा।

- महाशक्ति

. चिट्ठाचर्चा दल की ओर से पाठकों को विजयादशमी की शुभकामनाएँ.

इस हफ़्ते का चित्र - ध्रुवस्वामिनी के चिट्ठे से. बंगाल की दुर्गा पूजा का जीवंत चित्रण


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3 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे नही लगता कि आज की सबसे अच्छी टिप्पणी पसन्द करते समय क्या देखा जाता है। आज महाशक्ति की टिप्पणी समीर लाल के ब्लॉग से ली गयी है, जिसमे उसने फिर से वही पुरानी बातें उठायी है, बिना किसी मुद्दे के। चिट्ठा चर्चा के संपादकों से अनुरोध है कि टिप्पणी पसन्द करते समय विवादास्पद टिप्पणियों को दरकिनार करें।

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  2. जीतेंद्र,यह टिप्पणी सबसे अच्छी टिप्पणी नहीं है।
    बस एक टिप्पणी है। जो टिप्पणी के ही रूप में ली जानी चाहिये इससे ज्यादा नहीं।
    प्रेमेंन्द्र(महाशक्ति) से जरूर मुझे कहना है कि अपनी
    ऊर्जा का सदुपयोग करना सीखें। गाहे-बगाहे अपने घावों की प्रदर्शनी करने से घाव पूजनीय नहीं हो जाते। आप अपनी बात को जब अपने निजी दुख से
    जोड़कर देखते और उसी पैमाने पर अपना मत रखते हैं तो न केवल मत का महत्व घटता है,बल्कि
    बात भी हल्की लगती है। अतीत में क्या हुआ इसका दुख मनाने के बजाय आगे भविष्य में कुछ सार्थक करने का प्रयास करना चाहिये। अपने साथ हुयी महीने भर पहले की बात के बावजूद इतनी तीखी भाषा से यही लगता है कि वे सारी बातें मन-संग्रहालय में सहेज कर रखी गयी हैं यदा-कदा प्रदर्शन के लिये।
    रही बात चिट्ठों पर गलतियां बताने की तो भाई आपका टिप्पणी का कालम खुला है,जिसको जो मन करेगा लिखेगा। अगर पसंद नहीं है तो आप उसे मत
    'अप्रूव' करें। वर्तनी की कमियां किसी के न बताने से अपने आप खतम तो नहीं हो जायेंगी। और ऐसी कौन सी इज्जत लुटी जा रही है अगर कोई टोंकता है आपको सबके सामने। कोई टोंके नहीं,कोई बोले नहीं यह बड़ी खतरनाक बात है,जिसका शिकार पहले भी तुम हो चुके हो। सारत:प्रेमेंद्र की टिप्पणी में की हुई बात से ज्यादा उनकी भाषा और उसके तेवर मुझे खटके। यह मेरा मत है। ठीक समझ में आये तो बढिया न आये तो और बढि़या।
    हमारे चिट्ठे और टिप्पणियों पर विनय भाई और हर एक उस व्यक्ति का स्वागत है जो उसकी कमियां
    बता सके ताकि हम उसमें सुधार कर सकें। हम इतने छुई-मुई भी नहीं हैं कि गलती बताने से मुरझा जायेंगे। छुई-मुई तो समीरलालजी भी नहीं हैं और यह लेख भी उन्होंने मौज-मजे के लिये लिखा था और लिखने के बाद पोस्ट करने के पहले मुझे दिखाया भी था।

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  3. ...बस एक टिप्पणी है। जो टिप्पणी के ही रूप में ली जानी चाहिये इससे ज्यादा नहीं।...


    इसी विचार से यह टिप्पणी यहाँ टीपी गई थी.

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