शनिवार २८ अक्टूबर, २००६
हाँ तो यजमान, आज शनिवार का दिन था, जैसे हिन्दी चिट्ठा संसार मे छुट्टी का दिन। सबसे पहले तो अवधिया जी ने भगवान के विराट रूप के दर्शन कराए, धन्य हो अवधिया जी। जीवन सफल कर दिया हमार। उधर हमारे वरिष्ठ चिट्ठाकार रमण कौल जी टी वी के छोटे नवाब वाले कार्यक्रम सारेगामापा के लिए कहते है:
इस सीज़न में चल रहा है लिट्ल चैंप्स का मुकाबला, और सीज़न के अन्त में बचे हैं तीन फाइनलिस्ट - दिल्ली का दिवाकर, मुंबई का समीर और कोलकाता की संचिता। मुकाबले में इस से पहले के दौर में कई बढ़िया बाल कलाकार बाहर हो गए। शुक्र है कि एक उत्कृष्ट गायिका अभी भी बची हुई है - संचिता।
रमण भाई, आपने खूब पहचाना, अभी अभी ख़बर मिली है कि संचिता ने यह प्रतियोगिता जीत ली है।
उन्मुक्त हरिवंश राय बच्चन आत्मकथा का तीसरा भाग प्रस्तुत कर रहे है। उन्मुक्त जी, देख लीजिएगा, शायद बच्चन साहब की आत्मकथा कापीराइट की श्रेणी मे आती है, कंही लेने के देने ना पड़ जाएं।बच्चन साहब कहते है:
इलाहाबाद की मिटटी में एक खसूसियत है – बाहर से आकर उस पर जमने वालों के लिये वह बहुत अनुकूल पडती है । इलाहाबाद में जितने जाने-माने, नामी-गिरामी लोग हैं, उनमें से ९९% आपको ऐसे मिलेंगे जो बाहर से आकर इलाहाबाद में बस गए, खासकर उसकी सिविल लाइन में - स्यूडो इलाहाबादी । और हां, एक बात और गौर करने के काबिल है कि इलाहाबाद का पौधा तभी पलुहाता है, जब वह इलाहाबाद छोड दे ।
अरे ये क्या? यजमान पंकज बेंगानी छुट्टियां मना रहे है, अकेले नही वो भी पूरे गुजरात के साथ कहते है:
क्या कहुँ... सब सुना सुना है। गुजरात का भी बडा भारी काम है भाई। दिवाली क्या आई... सब भाग गए। छुट्टियाँ जो आ गई। दिवाली के बाद लाभ पंचमी तक सब बन्द। सब बन्द यानि सब बन्द। पुरे हफ्ते ऐसा लगता है जैसे शहर में कर्फ्यु लगा है। सडकें सुनी, दुकानों मे ताले... और जीवन के लाले। सच में लाले पड जाते हैं।
आप कन्फ़यूजिआए नही, ये गुजराती हिन्दी है, इन्हे सब सूना सूना लगता है, ना कि सुना सुना। वो आपको चुटकुला नही पता, एक गुज्जू भाई ने अपने (ड्राइंग)हॉल के लिए इन्टीरियर डेकोरेटर को फोन किया और बोले "जल्दी आ जाइए, हमे अपने 'होल' को डेकोरेट कराना है।"
उधर आगरा मे प्रतीक भाई, हिन्दी भाषा का रोमन लिपि मे भविष्य तलाशने पर बहस कर रहे है। जितेन्दर जी कहते है नैणों की मत सुनना, बहुत ठगी होते है कौन जितेन्दर, अरे नही यार! नैणा। प्रभाकर जी भी शेर सुनाने मे पीछे काहे रहें। गिरिराज जी अपने बिखरे शब्दों की समीक्षा कर रहे है। बिखरी जुल्फें तो सुना था, बिखरे शब्द पहली बार सुन रहे है, समझने के लिए पोस्ट को पढना जरुरी है भई। कालीचरण को फिर कब्ज की शिकायत हो गयी है। टॉयलेट मे लिखते लिखते ये उनकी पोस्ट का सैकड़ा हो गया। प्रतीक एक बहुत ही बेहतरीन दिखाने की चीज दिखा रहे है, जरुर देखिएगा। हिन्दी चिट्ठे और पॉडकास्ट वालो को भी देखिए।
आज का चित्र प्रतीक के ब्लॉग पर देखिए, हमे तो बहुत पसन्द आया, यहाँ इसलिए नही चिपका रहे है कि कंही शुकुल दौड़ा ना ले।
पिछले साल इसी सप्ताह:
हमारी कुवैत डायरी के कुछ अंक , अजनबी देश अन्जाने लोग ये चिट्ठा भी भूले बिसरे मे चला गया है। एक और ब्लॉग है सुधीर शर्मा का, उनकी एक पोस्ट विलय की नीति जरुर देखिएगा। पिछले साल शशि सिंह छठ की धूम धाम दिखाए थे, अब वो भी टहल गए है, कंही पकड़ मे आएं तो पानी मे दुई ठो डुबकी लगवाकर चार ठो, पोस्ट जरुर लिखवाइएगा।
सभी बिहारी साथियों को छठ के त्योहार की शुभकामनाओं के साथ।
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