इन्दौर का आधुनिक सड़क परिवहन तंत्र किसी भी विकसित देश को टक्कर देता है. अन्य सुविधाओं के अलावा इन्दौर के पास अभी ५० टाटा स्टार बसें हैं, जिनमें उपग्रहों से संचालित जी.पी.एस. के अलावा कम्प्यूटरीकृत टिकट मशीनें भी हैं!
कुंडली किंग समीर लाल जी के कुंडली कला पर एकाधिकार को चुनौती देने एकलव्य रूपी गिरिराज जोशी आ गये। आ क्या गये पसड़ गये, पहले गिरिराज चैटियाये, फिर ईमेलियाये जब देखा कि जीतू भाई की तरह सब एक मेल की दूरी पर नही होते तो खुले आम चि्ठि्ठयाये। अब गुरू चेला संवाद का मजा आप भी ले।
देखा था गुगल चैट पर, कल ही आपको कविराज
पेंडिंग पड़ा निवेदन भी, एक्सेप्ट कर लिया आज.
एक्सेप्ट कर लिया आज कि अब हम लिखेंगे लेख
कुण्ड़ली पर जो अल्प ज्ञान है तुम भी लेना देख
कहे समीर कि हमरा तो सिर्फ़ कुण्ड़लीनुमा लेखा
नियम लगे हैं बहुत से, जब असल कुण्डली देखा
फिल्म इतिहास की एक से एक नायाब जानकारी लाने वाले अवधिया जी को रीमिक्स के तौर तरीके कचोट रहे हैं। खासी पड़ताल की है अवधिया जी ने । वैसे अपना मानना है कि संगीत में या तो मौलिक हिट होता है या वह हिट होता है जो किसी वर्जना को तोड़ दे। अब मौलिकता का रास्ता कठिन है पर किसी नयी वर्जना को तोड़ने में सिर्फ पिछली टूटी वर्जना से ज्यादा हिमम्त चाहिये होती है। इस हिम्मत की हद धुने चुराने, गाने मरोड़ने , के एल सहगल का परिहास बनाने से बढ़ते बढ़ते काँटा लगा की जी स्ट्रिंग तक जा पहुँची है।
जुगाड़ी लिंक्स फिर नायाब मोती लाये हैं। पर हमें सिर्फ चर्चा नही करनी। एक सुझाव है, अगर की तरह इन कड़ियो को टैग या किसी अन्य तरह से श्रेणीबद्ध कर दिया जाये तो यह बहुमूल्य खजाना होगा। अगर जीतू भाई इस पर गँभीरता से विचार करे तो कुछ स्वंयसेवको की आवश्यकता होगी। बंदा पहले से तैयार है।
सतही तौर पर व्यंग्य लगने वाली लखनवी नवाब की चिठ्ठी कुछ कुछ मिड लाईफ क्रिसिस की झाँकी लग रही है। देश में परिवार के साथ रहने वाले दांप्तय जीवन में बहुधा हम दो हमारे दो के अलावा और भी कई चरित्र भूमिका निभाते है, साथ ही जीवन के लटके झटके जीवन में एकरूपता नही आने देते। पर विदेश में मोनोटोनस जीवनशैली, दैनिक संघर्षो का अभाव भयावह एकरूपता से साक्षात्कार कराता है। सब इस दौर से गुजरते हैं, अलग अलग तरह से निपटते हैं , शायद यह चिठ्ठा भी ऐसी ही एक कोशिश है।
भानुमती का पिटारा चाहिये रवि भाई को वह भी ऐसा जो किसी खूबसूरत स्त्री के खूबसूरत हाथों में समाना चाहिए। ऐसा बहुधँधी यँत्र बनाने का मेधावी ख्याल किसी के दिमाग में आये उससे पहले हमें यह ख्याल आ रहा है कि ऐसी जादू की छड़ी रवि भाई खूबसूरत स्त्री के खूबसूरत हाथों में थमाना चाहते हैं? हम्म! मामला गँभीर है, रवि भाई सोच लो जिस खूबसूरत स्त्री की फोटो आप चिपकाऐ हो ब्लाग पर कही भौजी ने पढ़ लिया तो खुदा खैर करे ..
शोएब दिन में तारो की जगह प्लेन गिनते हैं, पर इस चिठ्ठे के साथ साथ राकेश जी की कवितामय टिप्पणी भी चार चाँद लगा रही है
अब जुमेरा बीच इतनी दूर तो नहीं
और बुर्ज अल अरब भी है वहीं कहीं
शुक्र, शारजाह से गये नहीं अजमान
तीन से आगे वरन गिनती बढ़े नहीं
यह बैंगलोर की सरकारी मशीनरी को क्या हो गया है, कभी नारायण मूर्ती से पंजा लड़ाना तो कभी जाजिया लगाना ब्राडबैंड पर।
जीमेल में हिंदी के विज्ञापन देख देख प्रमुदित हिंदी चिठ्ठाकारी के आदिपुरूष आलोक गब्बर साँभा संवाद सुना रहे हैं।
उन्मुक्त की रचना अछूते विषय पर उड़ती सी नजर डाल गयी दिखी। सच में, इससे ज्यादा की उम्मीद थी उन्मुक्त आपसे। वैसे आपने विषय बहुत हृदयस्पर्शी चुना है।
पूँजी बाजार पर भाटिया जी की नजर पैनी है। आर्थिक चिठ्ठाकारी में आप सरीखे कुछ और नियमित लेखकों के जुड़ाव से चिठ्ठाकारी को नया आयाम मिलेगा।
एक बार फिर नीरज ने पत्रकारिता पर गहरी पकड़ सिद्ध की है। वैसे नीरज भाई आपने गाँधीगिरी के अछूते कोण पर ध्यान तो अच्छा दिलाया है पर जनमानस ऐसी सस्ती हरकतो पर क्यों फिदा होता है, और शर्मीला चानू की गाँधीगिरी कैसे सफल हो इसकी पड़ताल करना भी समयक होता।
अँत में समीर भाई फिर से अफजल के फाँसी माफी प्रकरण को कविता के माध्यम से उठा रहे हैं
युवा जाने कहाँ सो गया
देश महान कहाँ खो गया
ऐसा क्यूँ सब मौन धरे हो
देश लगे शमशान हो गया.
आज की टिप्पणियाँ:
जीतू वंदे मातरम के ब्लाग पर
यार तुम्हारे ब्लाग मे दो समस्याये हैं. इसकी फीड बार बार नारद डाउन कर रही है। दूसरे तुम्हारी प्रोफाइल पर कोई नाम क्यो नही है। यार नाम बताने में क्या शर्म, कोई मस्तराम थोड़े लिख रहे हो।
जीतू उन्मुक्त के ब्लाग पर
यार तुम अपनी फीड ठीक करो और प्रोफाइल पर पूरा नाम लिखो. यह गुमनाम किसलिये रहना , इत्ता अच्छा ब्लाग लिखते हो, कौन्हो मस्तराम थोड़े लिखते हो जो छुप्पन मियां बने फिर रहे हो.
जीतू जगदीश भाटिया के ब्लाग पर
अच्छा लिखे हो.पर यार तुम्हारी ढीठ फीड नारद को परेशान किये है.पता है कल इसको ठीक करने के चक्कर में देर तक करने की वजह से पंकजवा घरैतिन से डाँट खा गवा. कल से नारद अप नही हो पा रहा. मेरे को मेल करो. कुछ करते हैं.
यह टिप्पणियाँ देख कर क्या लगता है कि जीतू भाई घूम घूम कर सबकी फीड ठीक करा रहे हैं। ऐसा नही है। यह कोई खुराफाती बिल्कुल जीतू भाई का नकाब लगाकर सबके ब्लाग पर टिप्पणी डाल रहा है हूबहू उन्ही की भाषा में। अब जहाँ उन्मुक्त शरलाक होम्स को खोज रहे हैं इन नकली जीतू को पकड़ने को वही वंदे मातरम की टीम असली और नकली दो दो जीतू की टिप्पणी पाकर निहाल हैं।
फिर वही कहानी - बीस बरस पहले कुंभ के मेले में खोया हुआ हमशक्ल भाई वापस आ गया।
जवाब देंहटाएंलेकिन हालात बदल चुके हैं एक भाई मशहूर ब्लगोड़ा और दूसरा शातिर मुजरिम। अब मुजरिम भाई ने अपने बलगोड़े भाई की पोजीशन का फ़यदा उठाया और उसके नाम से अपना 'दो नम्बर' का धंधा शुरू किया।
जीतेन्द्र चौधरी जी डबल रोल मुबारक हो, अब 'स्पाई वर्सेस स्पाई' में देखना यह है कि अंत में 'सत्यमेव जयते' होता है या 'जाने भी दो यारों'!
जो कोई भी है वह गलत है, गलत बहुत समय तक सही नही रह सकता है। किसी के नाम को इस तरह बदनाम किया जाना सरासर गलत है। जो व्यक्ति है वह अपराधी है। इसका पकडा जाना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंप्रमेन्द्र