आज के खास समाचार:
इस समय जबकि रात के एक बजने वाले हैं मैं और मेरी तन्हाई में कुश्ती हो गयी है और हमने तन्हाई को किनारे कर के की-बोर्ड का पल्लू थाम लिया है और आपको आजकी चिट्ठाचर्चा सुनाने जा रहे हैं । आपसे अनुरोध है कि ध्यान लगाकर पढ़ें वर्ना खाली वाह-वाह करते रह जायेंगे माज़रा कुछ समझे में नहीं आयेगा जैसे हमारे प्रख्यात चिट्ठाकार खुदाबंद शुएब के साथ कल हो गया। लेकिन यह क्या? हम पहले आपको आजके मुख्य समाचार तो सुना दें। तो आजके चिट्ठाचर्चा के मुख्य समाचार हैं:-१. नारद जी ने अपनी दूसरी पारी शुरू कर दी।
२.चिट्ठाचर्चा पर राजस्थानी ब्लागों की चर्चा की शुरुआत।
३.चिट्ठाचर्चा की हैकिंग के प्रयास।
४. फुरसतिया के बयान से भ्रम और अफरा-तफरी की स्थिति।
५. ऐसे भी बुरे नहीं हैं हम लोग- वंदेमातरम।
६. अमेरिका में बेशर्मी की इंतहा।
७.सुनील दीपक का चीन में धांसूं डायलाग।
८.माथे पर सुहाग सूरज चमका।
९. चिट्ठाकार गिरिराज जोशी को सांस की तकलीफ।
१०. गांधीजी को नोबले प्राइज न मिलना अच्छा रहा- संजय बेंगाणी।
११. वालमार्ट ने शुरू की फ्लागिंग
अब आप चिट्ठाचर्चा विस्तार से पढ़िये।
आज चिट्ठाजगत की खबरों को इधर-उधर करने वाले नारद्जी ने अपना कार्यभार दुबारा ग्रहण कर लिया है। अक्षरग्राम पर इस आशय की घोषणा करते हुये नारद टीम के उत्साही सद्स्य जीतेंन्द्र चौधरी ने बताया कि सारे पुराने रिकार्ड वापस आ गये हैं। इस शानदार सफलता में तमाम चिट्ठाकारों का हाथ है लेकिन कोई खुलकर किसी का नाम नहीं ले रहा है यह सोचकर कि जिसका नाम छूट गया वहीं मुंह फुला लेगा। मजे की बात यह रही कि नारद के पुनरावतरण की खबर की लिंक गलती संख्या ४०४ पर जाकर ठहर जा रही है। आशा है कि नारद के वापस आने से चिट्ठाजगत में नया उत्साह बनेगा लिखने का और ब्लागर लिखना कम करके नारद के काम में लगे थे वे फिर से ब्लागिंग शुरू करेंगे।
आज ही चिट्ठाचर्चा में संजय बेंगानी ने राजस्थानी चिट्ठों की चर्चा का काम शुरू किया। अपना घर-बाहर साफ करते उनको अपना कंप्यूटर भी साफ करना पडा। राजस्थानी चिट्ठाचर्चा से उत्साहित होकर प्रियंकर, राकेश खंडेलवाल, समीरलाल, गिरिराज जोशी ने अपनी खुशी जाहिर की है। गिरिराज जोशी ने एक बातचीत में अपनी राय जाहिर करते हुये कहा कि आज के दिन गुजराती, हिंदी और राजस्थानी तीन भाषाऒं में चिट्ठाचर्चा होने के कारण आज का दिन ब्लागर दिवस के रूप में मनाया जाये। आपकी जानकारी के लिये बता दें कि आज हिंदी में समीरलाल ने हिंदी और पंकज बेंगाणी ने गुजराती चिट्ठों की चर्चा की। राजस्थानी में चिट्ठाचर्चा करने के साथ-साथ संजय बेंगाणी महात्मा गांधी को नोबल पुरस्कार न मिलने के फायदे बता रहे हैं।
नल का जादू
आज दोपहर के बाद चिट्ठाचर्चा साइट के अपहरण प्रयास हुये। शाम को करीब पांच बजे फुरसतिया ने पूरे होशोहवास में देखा कि कोई चिट्ठाचर्चा की साईट पर अपने कपड़े उतारकर खड़ा गया और वही सीन बार-बार दिखाने लगा बार-बार। कुछ ही देर में वह साइट को हमें वापस करके चला गया। इस बारे में विस्तार से खोजबीन जारी है। आप लोग भी अपनी साईट की सुरक्षा के कुछ उपाय करके जागते रहिये।
फुरसतिया के कल के दिये बयान से चिट्ठाचर्चा में एक उत्साह, एक सनसनी का माहौल व्याप्त हो गया। अपने ब्लाग पर फुरसतिया ने बताया कि कुछ साथी हिंदी में इतना अच्छा लिख रहे हैं कि वे जहां लिखेंगे वहां का स्तर ऊपर उठेगा। सभी ब्लागर्स ने इसे खास तौर पर अपने लिये दिये जारी किया गया बयान बताया। कुछ लोगों ने इस पर दावा भी किया कि वे ही अच्छा लिखते हैं। खासतौर पर उड़नतस्तरी पर विचरण करने वाले समीरलाल और कविराज जोशी जी ने इसकी बाबत बयान जारी किये। कविराज जोशी जी ने अपना दावा मजबूत करने के लिये इतनी मेहनत की कि उनकी सांस फूल गई। इस संबंध में जब फुरसतिया से पूछा गया तो उन्ह्होंने बयान जारी कि अपने बारे में भ्रम पालने का सभी को विशेषाधिकार है।
वंदेमातरम की एक खबर के मुताबिक जितना पिछड़ा हम लोग स्वयं को तथा दूसरे हमें समझते हैं वास्तव में वैसा है नहीं। इसबारे में आगे जानकारी देते हुये बताया गया:
परम्परायें आसमान से उतरकर नहीं आतीं, उन्हें हम बनाते हैं. हम जो आज करते है, कल वह परम्परा बन जाता है. कल्पना कीजिये, मुम्बई से फ़्रेंकफ़र्ट जाने वाले जहाज में कोई भारतीय नवयुवक धोती पहनकर आता है. यह निश्चित है कि उसको विदेशी लोग तो नहीं, पर हम जरूर जोकर कहेंगे. और कोई विदेशी जो बरमूड़ा पहनकर घुसा वह, उसका क्या? जब हम भारत में ही बड़ी-बड़ी दुकानों - वेस्ट साईड, रीबाक, प्लानेट एम इत्यादि में खरीदारी करने जाते हैं तब हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा नहीं बोलते, आखिर क्यों? ऐसा नहीं है कि हमें हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा नहीं आती, घर पर तो दूध वाले और धोबी से हम अंग्रेज़ी में बात नहीं करते ना! हम सोचते हैं कि बड़ी जगहों पर अपनी भाषा बोलने से बाकी लोग हमें पिछड़ा समझेंगें. हमें अपनी छवि की कितनी चिन्ता है, और वह भी अपने ही लोगों के सामने! कैसी विडम्बना है, हम अपने लोग आपस में बात करने के लिये विदेशी भाषा की सहायता लें, और वह भी तब जब सामने वाले को भी अपनी देसी भाषा अच्छी तरह से आती है! हमारा आचरण देखकर ही हमारे बच्चे सीखते हैं, और परम्परायें बस ऐसे ही बनती हैं.
हमारे अमेरिकी संवाददाता के अनुसार कुछ भारतीय विद्यार्थी चैट बोर्ड के जरिये अल्पव्यस्क बच्चों के साथ यौनाचार करने की कोशिश में पकड़े गये।
चीन में हो रही एक भाषण प्रतियोगिता क्षमा करें कुष्ठ रोग निवारण संबंधी सेमिनार में बोलने हुये डाक्टर सुनील दीपक ने अपने भाषण का अंत करते हुये धांसू डायलाग मारा कि लोगों उस डायलाग को नोट करने के लिये अफरा-तफरी मच गयी। डायलाग के बारे में पता चला है:
"कुष्ठ रोग से हुई विकलांगता वाले लोग आसमान के तारों की तरह हैं, हैं पर दिन की रोशनी में किसी को दिखते नहीं और हमें इंतज़ार है उस रात के अँधेरे का जब हम भी दिखाई देंगे और कोई हमारे बारे में भी सोचेगा."
डायलाग की सफलता से उत्साहित होकर सुनील दीपक इसी तरह के और धांसू डायलाग खोजने शुरू कर दिये हैं। अंतिम समाचार मिलने तक उनको केवल एक डायलाग मिला था- हम जहां खड़े होते जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है।
सूरज के बहाने दीपावली मुबारकवाद देते हुये प्रत्यक्षा कहती हैं:-
माथे पर सुहाग सूरज चमकता है
नाक के नकबेसर का स्वर्ण सूरज दिपता है
हथेलियों पर सुहाग सूरज दमकता है
इस कविता से उत्साहित होकर राकेश खण्डेलवाल भी कहते हैं:-
हथेलियों पर लिखा हुआ है हिना से तेरा ही नाम प्रियतम
लगी पलक से जरा हथेली, वो बन के सूरज दमक गया है
राष्ट्र्रंग में रची हुयी अपनी पोस्ट में संजय बेंगाणी गांधीजी के बारे में जानकारी देते हुये बताते हैं कि कैसे उनको नोबल पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया। इस घटना के फायदे बताते हुये कहते हैं कि जो हुआ अच्छा हुआ वर्ना अगर इनाम मिल जाता तो उसके भाव बढ़ जाते।
ये तो थे हमारे आज के चिट्ठाचर्चा के मुख्य समाचार । आगे के समाचार जानने के पहले हम ले लेते हैं एक नानकामर्शियल ब्रेक। तब तक आप ऐसा काहे नहीं करते कि कुछ हल्की-फुल्की मौज मजे कि बाते पढ़ डालिये। जैसे कि रचनाकार के चुटकुले, पंकज बेंगानी के कैमरे के तरकश का जादू, कुछ सच्चे मोती, पहला पन्ना, महाभारत कथा। इन सबमें मन न लगे तो भैये आपके लिये खास इंतजाम है गजलों का भी:-
मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।
चलिये आपने इस अनार्थिक समयांतराल को बहुत अच्छी तरह से खेला इससे हमें बहुत खुशी हासिल हुयी और इसी खुशी को आपके साथ बांटने के लिये हम आपके साथ चलते हैं कवितागीरी की तरफ। आपको यह तो पता ही होगा कि हर एक शब्द में 'गीरी' लगाने का चलन अभी हाल ही में लगे रहो मुन्ना भाई से चालू हुआ है। कल तो पटना वाले निलंबित प्रोफेसर मटुकनाथ अपने निलंबन वापसी के लिये गांधीगीरी करते दिखाये गये। मटुकनाथ की गांधीगीरी से ज्यादा बाहियात सबसे तेज चैनेलों की सस्ती विज्ञापनगीरी दिख रही थी। लेकिन छोड़िये उसे और हम आपको ले चलते हैं कविलोक में।
दीपावली नजदीक होने के कारण हर कवि की कविता में उजाला, खुशहाली, फुलझड़ी, रोशनी सुई में धागे की तरह और सोने में सुहागे की तरह सटे हुये हैं। कुछ तेज मिजाज और न्याय प्रेमी कविगणों ने तो तम, अंधकार, अंधेरे का खून-खच्चर ही कर दिया है। जगह से जगह से अंधेरे को बीन-बीन के मार रहे हैं नामोनिशां मिटा देने के अंदाज में। आप भी देखिये न उजाले का जलवा।
रमा द्विवेदी आवाहन करती हैं:-
अगर दीपावली मनाना हो,
तो प्रेम के दीप जलाओ तुम।
पी जाओ तमस विश्व का तुम,
ऐसी दीपावली मनाओ तुम॥
लोग बताते हैं कि प्रेम का दिया होता तो टिकाऊ है लेकिन टिकता तभी है जब अभिमान, स्वार्थ से आप कुट्टी कर लें। प्रेमेंद्र त्योहार को मलहम की तरह इस्तेमाल करते हैं:-
पर्व भेद भाव मिटाते हैं,
बडे छोटों को भी गले लगाते हैं।
भाई चारे की टूटी खाई में,
ये उत्सव मलहम बन जाते हैं।
है न नया अंदाज। आपने घाव में मलहम लगाया होगा लेकिन आजतक किसी ने खाई में मलहम नहीं लगाया होगा लेकिन प्रेमेंद्र ने लगा दिया। इसीलिये कहते हैं- जहां न पहुंचे कवि, वहां पहुंचे कवि। और यह राजेश रंजन के दिये की ही हिम्मत है जो ललकार सके अंधेरे को:-
वो एक दीया,
जिसने ललकारा है, अँधेरे को ।
वो एक दीया,
जिसने हिम्मत की है, तेज़ आँधियों से लड़ने की ।
अँधेरे को ललकारने के पहले राजेश सुनामी बनकर ,महलों को भी मिट्टी में परिणत करने का जौहर दिखा चुके हैं। लेकिन इस अंधेरे उजाले की टक्कर से अलग शिल्पा अग्रवाल मक्खी-मच्छर गठबंधन की त्रासदी बता रही हैं। फैशनबल मक्खी आडोमास लगाकर मच्छर से इलू-इलू करती है:-
डिओडोरेंट ना मिला तो मक्खीजी ने ओडोमास क्रीम लगाई बार-बार|
और महकने के लिये,बेचारे मच्छरजी पर कर दिया अनजाने में वार|
इसलिये कहत हैं बछुवा ,काहू को ना चढे ऐसन प्रीत का बुखार|
बेचारे मच्छरवा की खातिर रोवत है दिल बार-बार, ज़ार-ज़ार हमार|
अनुराग श्रीवास्तव नये चिट्ठाकारों में सबसे ज्यादा आकर्षित करने वालों में हैं। आज वे हायकू सुना रहे हैं:-
आइना टूटा
मेरा अक्स फिर
सबने लूटा
बात गुम है
भीड़ में मित्र का भी
हाथ गुम है
इधर आप कविता सुनने में मस्त हैं और उधर रविरतलामी को लग रहा है चूना है, गोया वे भी कोई अनपुती दीवार हों। यह चूना कैसे लगा यह उनके यहां जाकर ही जानिये लेकिन हम आपको हिंट दे दें कि वे सृजनशिल्पी से मिले नये मंत्र का जाप कर रहे थे जब उनको चूना लगा। अरविंद दास गरीबों को मिले सम्मान के बारे में बता रहे हैं। उधर प्रियदर्शिनी मट्टू कांड में आरोपी संतोष सिंह को आख़िरकार सज़ा मिल ही गई लेकिन यह किसकी जीत है इस बारे में सवाल उठा गपशप करते हुये। लगे हाथ आप थोड़ा इंडिया गेट तक चले चलिये जहां बराक मिसाइल का हल्ला हो रहा है।
शरद जोशी के शब्दों में 'आलस्य और अकर्मण्यता का मधुर सम्मिश्रण कलात्मक अनुपात में' बने-ठने भारत भूषण तिवारी बहुत दिन बाद फिर ईद के चांद की तरह आये हैं मैनहट्टन पर कविता लेकर :-
शायद पता हो उसे
'वर्ल्ड ट्रेड सेंटर'के सामने
अखबार की प्रतियाँ बाँटने वाली
अश्वेत महिला की आँखों से टपकती
लाचारी का कारण.
लगता है फुरसतिया कवियों के दबाव में कुछ ज्यादा ही आ गये हैं तभी तो उन्होंने लिखा:-
कहा भी गया है एक कविता को अपने मन में मारने से अच्छा है कि पचास लोगों को उसके वार से मारा जाये। नारा प्रधान देश में अगर इस बात को सजा संवारकर नारे के कपड़े पहनायें जायें तो कह सकते हैं- एक कविता की भ्रूणहत्या पचास जीव हत्याऒं के बराबर हैं।
चलते-चलते बिहारी बाबू के यहां घी के जलते हुये दिये भी
देखें और भारत की दीवार का छेद भी जो कि प्रेमेंन्द्र ने अभी सबेरे-सबेरे दिखाया भगवान ऐसा तत्पर निगाहबाज सबको दे।
आज का चिट्ठाचर्चा आपको कैसा लगा बताने में संकोच न करें ताकि कल अतुल आपकी फरमाइश पूरी कर सकें अपने चिट्ठों की चर्चा के लिये लिखें chitthadak@gmail.com पर।
आज की टिप्पणी:
१.क्या सोच रहा हैं बालक? यही की काश वो भी खेलते कुदते आइस्क्रिम की मांग करता. पर यहाँ वह स्वयं बेच रहा हैं. जिद किससे करें.
भुखो मरने से तथा भीख मांगने से अच्छा हैं बच्चे काम करे. पर कितना?
संजय बेंगाणी
२.फ़िर्फ़ कानून से कुछ नहीं होने वाला . समस्या बहुत बड़ी है . उपाय भी वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ा और सर्वसमावेशी होना चाहिए . बच्चे सम्पूर्ण मानवता का बीज हैं . रवीन्द्रनाथ ने तो कहा भी है,'हर बच्चा यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है'.
प्रियंकर
३.भाई मेरे ,
बाज़ार जो न करवा दे सो थोड़ा . अब यह पूरी दुनिया ही महामंडी है . इस मंडी में खरीद-बिक्री की मार-काट है . इस मार-काट को रोकने के लिए न तो कोई नियम हैं और न ही कोई नियामक . जब देश की सरकार कुछ करने की स्थिति में नहीं है तो ये जो छोटे-छोटे राज्य बन रहे है इन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियां ही चलाएंगी (बाज़ार की शब्दावली में स्पॉन्सर करेंगी). सिर्फ़ साधारण जनता — यानी आम आदमी की अंतर्निहित शक्ति और समझदारी पर ही भरोसा बचता है . क्या करें!
प्रियंकर
आज की फोटो:-
आज की पहली फोटो सुनाल दीपक के ब्लाग से
खोया बचपन
और दूसरी फोटो तरुन के यहां से
जल बिच मीन पिया सी
समाचारों का अंदाज बहुत अच्छा है। हर सुबह चिट्ठाचर्चा का इन्तजार बेसब्री से रहता है।
जवाब देंहटाएंभाई हमारी 'शुभकामनाएँ' पोस्ट ?
जवाब देंहटाएंसभी को शुभ दीपावली ।
यह पोस्ट पढकर मन को महसुस हुआ कि हाँ बस इसलिए ही चिट्ठाचर्चा पढना अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंख़बरें बढ़िया थी।
जवाब देंहटाएंबकौल फुरसतिया "कुछ साथी हिंदी में इतना अच्छा लिख रहे हैं कि वे जहां लिखेंगे वहां का स्तर ऊपर उठेगा। "
इसी तरह आप समाचार लिखेंगे तो उसका स्तर भी ऊपर उठेगा।
आज के खास समाचार के वाचन का अंदाज बेहतरीन रहा. नित नया आयाम आ रहा है. बधाई.
जवाब देंहटाएंसभी का शुक्रिया.प्रेमलताजी आपकी पोस्ट पता नहीं कैसे रह गयी. आज अतुल कवर कर लेंगे.
जवाब देंहटाएंआपने अपनी 'इसटाइल' से हट कर लिखा हैं, फिर भी मजेदार रहा.
जवाब देंहटाएंसंध्याचर्चा का सुझाव सर-आँखो पर. बस शुरूआत करने के लिए थोड़ासा समय दिजीये.