मंगलवार, दिसंबर 20, 2005
मंगलवार, दिसंबर 13, 2005
ब्लॉगिंग के दौर में हिंदी वाले पीछे क्यों रहें?
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
आशीष ने अपनी चिरपरिचित अंदाज में बचपने को याद किया-वर्तनी की चिरपरिचित लेकिन कम होती अशुद्धियों के साथ। लाल्टू जी एक माह के लिये गये थे लेकिन लिखने का मोह उन्हें वापस फिर खींच लाया की बोर्ड पर । वे लिखते रहे गेट बंद होने तक। अपने जन्मदिन(१० दिसम्बर) के अवसर पर लिखा:-
कविता लिखी जाये तो ऐसा बहुत कम होता है कि प्रत्यक्षा प्रतिकविता न लिखें। फाइलों से समय चुराकर उन्होंने प्रतिकविता लिखी:-
मानसी के हाथ में कैमेरा आया तो कितने आसमान आ गये देखा जाये-अकेला आसमान ,उजला आसमान,जलता आसमान,लजाता आसमान,उलझा आसमान,हमसफ़र आसमान।जीतेंदर तथा पंकज ने अपनी अनुगूंज की पोस्ट लिखीं। बमार्फत रमनकौल पता चला इंडिक ब्लागर अवार्ड के बारे में तथा रविरतलामी का भाषाइंडिया में छपा लेख भी- ब्लॉगिंग के दौर में हिंदी वाले पीछे क्यों रहे?सुनील दीपक लंदन घूमने निकले तो वहां के विवरण अपनी डायरी में दर्ज किये।सुनील दीपक की लंदन डायरी पढ़िये मनमोहक चित्रों के साथ।रविरतलामी दिखा रहे हैं भारतीय राजनीति के दो विरोधाभाषी चित्र।दिल्ली वालों को लगता है कि आज तक का यह खुलासा यह साबित नहीं करता कि सभी सांसद बेईमान हैं और न ही यह कि इस ऑपरेशन में जो नहीं पकड़ाए, वे ईमानदार हैं।देबाशीष का संदेश है:-
उम्र दर उम्र
ढूँढते हैं
बढ़ती उम्र रोकने का जादू
भरे छलकते प्याले हैं
एक-एक टूटता प्याला
लड़खड़ाते सोच सोच कि
टूटने से पहले प्यालों में
रंग कुछ और भी होने थे
कविता लिखी जाये तो ऐसा बहुत कम होता है कि प्रत्यक्षा प्रतिकविता न लिखें। फाइलों से समय चुराकर उन्होंने प्रतिकविता लिखी:-
कई बार
दरकते प्याले भी
सहेजते रहे
छिपाते रहे
टूटे निशान
और ओढते रहे
चेहरे पर
एक नारा
मुस्कुराते रहो
मानसी के हाथ में कैमेरा आया तो कितने आसमान आ गये देखा जाये-अकेला आसमान ,उजला आसमान,जलता आसमान,लजाता आसमान,उलझा आसमान,हमसफ़र आसमान।जीतेंदर तथा पंकज ने अपनी अनुगूंज की पोस्ट लिखीं। बमार्फत रमनकौल पता चला इंडिक ब्लागर अवार्ड के बारे में तथा रविरतलामी का भाषाइंडिया में छपा लेख भी- ब्लॉगिंग के दौर में हिंदी वाले पीछे क्यों रहे?सुनील दीपक लंदन घूमने निकले तो वहां के विवरण अपनी डायरी में दर्ज किये।सुनील दीपक की लंदन डायरी पढ़िये मनमोहक चित्रों के साथ।रविरतलामी दिखा रहे हैं भारतीय राजनीति के दो विरोधाभाषी चित्र।दिल्ली वालों को लगता है कि आज तक का यह खुलासा यह साबित नहीं करता कि सभी सांसद बेईमान हैं और न ही यह कि इस ऑपरेशन में जो नहीं पकड़ाए, वे ईमानदार हैं।देबाशीष का संदेश है:-
१५वीं अनुगूँज में पंकज ने विषय दिया था कि हम फिल्में क्यों देखते है? १५ प्रविष्टियाँ मिली अनूगूँज के एक वर्ष पूर्ण होने पर और घोषणानुसार हमें सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को पुरस्कृत करना है। तो बतायें कि कौन सी प्रविष्टि आप को सब से अच्छी लगी? मतदान करने की अंतिम तिथि है १६ दिसंबर।
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सोमवार, दिसंबर 12, 2005
हार नहीं माने हैं दिएगो गार्सिया के लोग
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
सर्दी आ गई यह तब पता चला जब अनाम के ब्लाग की तस्वीर की बर्फ दिखी। हार नहीं माने दियेगो गार्सिया के लोग। इस लेख में हिंदी ब्लागर ने दिएगो गार्सिया के मूल निवासियों की ब्रितानी सरकार से क़ानूनी लड़ाई के बारे में बताया कि कैसे मुट्ठी भर लोग सबसे बड़े साम्राज्यवादी देश से लड़ाई लड़ रहे हैं, यह एक मिसाल है। हिंदी की हालत के बारे में बताते हुये बताया गया कि हालात ऐसे ही रहे तो जल्द ही लोग अंग्रेज़ी की जगह हिन्दी बोलने की कोचिंग ले रहे होंगे!!रजनीश मंगला हीरो बने हिंदी की वर्ड फाइल छाप के पढ़ा रहे हैं सबको।प्रतीक से अपहरण के बारे में जानिये।अनुगूंज के विषय पर फुरसतिया ने अपना लेख लिखा जिस पर विनय जैन ने टिप्पणी लिखी जो कि उनकी प्रविष्टि बनी।लाल्टूजी चले गये छुट्टी अपनी पुरानी कवितायें छापने का तर्क बताकर।। जीतेन्दर ने शिकायत की कि उनके सुझाव पर अनूप शुक्ला उनको गरिया रहे थे अनूप बोले हम गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे थे।
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शनिवार, दिसंबर 10, 2005
मेरा विश्वास तुमसे मुठ्ठी भर कम है
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
अलकायदा के तीसरे साथी के बारे में जानना हो तो देशदुनिया देखिये।पियक्कड़ मुर्दे का ताबूत देखिये जापानी साथी मत्सु से।लाल्टूजी अपना सारा पुराना स्टाक छापे दे रहे हैं नेट पर भी। मसिजीवी ने सूरज कविता के जवाब में प्रतिकविता लिखी।
मेरा विश्वास तुमसे मुठ्ठी भर कम है
कि सारी दुनिया सूरज सोच सकेगी
पर यकीन मानो मैं इस खयाल से भयभीत नहीं हूँ
मेरी चिंता फर्क है
और वह यह है मेरे दोस्त
कि इसकी राह देखती तुम्हारी ऑंखें
कहीं पथरा न जाए
चिर आसन्न प्रसवा पृथ्वी डरती है
पथराई ऑंखों के सपनों से।
क्या स्वतंत्रतता भी बंधक बन सकती है!- अतुलबतायेंगे।आपका दिमाग कैसे काम करता है बतायेंगे कनिष्क रस्तोगी।
जीतेन्द्र योगाभ्यास दिखाने लगे। उधर स्वामीजी के कहने पर रविरतलामी,आशीष श्रीवास्तव तथा फ़ुरसतिया आदर्शवादी संस्कार के बारे में अपने विचार लिखने को मजबूर हुये।
रचनाकार में रविरतलामीजी ने हितेश व्यास की कवितायें पढ़ाईं। हितेश व्यास का वसन्त कहता है:-
ज़्यादा से ज़्यादा तुम क्या कर सकते हो?
हजामत! कर दो, रुण्ड मुण्ड कर दो
मैं आऊँगा पेड़ों के विग लगाता हुआ
इससे अधिक तुम्हारी औक़ात क्या है
अनूप जी (कौन वाले यह नहीं बताया)का ब्लाग देखकर रति सक्सेना जी भी कविता में गणित ले आईं।
ब्लाग लिखने से हुये फायदे-नुकसान का लेखा-जोखा अतुल सबनीस कर रहे हैं।खेल-खेल में पैसा कमाने के गुर सिखाने में जुटे हैं पंकज।रजनीश मंगला को कुछ गाने चाहिये ।सूची देखें। हों तो भेजें।कविता ,ज्योतिष व हायकू के बाद अब मानसी ने बाल कविताओं पर हाथ आजमाना शुरु किया। बाल कवितायें आप भी पढ़ें-लिखें।
सैन्टा बाबा उनको तोहफ़ा देते
जो मम्मी-पापा का कहा सुनते
आओ हम अच्छे बच्चे बन जायें
क्रिस्मस में मन के तोहफ़े पायें
लक्ष्मी गुप्त जी नये अंदाज में सबअर्ब की गाथा लिख रहे हैं:-
कोमल तन की सुघर मेहरियाँ रहतीं सबै सबर्बिया माँ
चंचल नैनन वाली गोरियाँ चितवत रहैं सबर्बिया माँ
नाचैं, गावैं, भाव बतावैं बारन और किलबिया माँ
मन लागो मेरो यार....
महावीर शर्मा जी विचारोत्तेजक लेख में हिंदी को जानबूझकर गलत अंदाज में उच्चारित किये जाने के बारे में बता रहे हैं।यह देखा जा रहा है कि हर क्षेत्र में व्यक्ति जैसे जैसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करके ख्याति के शिखर के समीप आजाता है, उसे अपनी माँ को माँ कहने में लज्जा आने लगती है।
आज की टिप्पणी:जीतू की पोस्ट में सूर्य नमस्कार करते हुये बालक के आगे-पीछे कोई शब्द नहीं था तब यह टिप्पणी की गई थी-देखो जीतू, तुम जब तक लिख नहीं रहे थे तब तक यह सूर्य नमस्कार करता बालक चुपचाप खड़ा रहा। तुम्हारी पोस्ट देखते ही ये बालक सूर्य दंड पेलने लगा। बेचारा नमस्कार करते करते गिर जायेगा लेकिन देखेगा उधर ही जिधर इस पोस्ट का कोई शब्द नहीं दिखेगा। क्या बात है। बकिया लेख जैसा कि होता है बढ़िया है। बाद में जीतू ने बालक के तीनो तरफ शब्दों की बाड़े-बंदी कर दी।
मेरा विश्वास तुमसे मुठ्ठी भर कम है
कि सारी दुनिया सूरज सोच सकेगी
पर यकीन मानो मैं इस खयाल से भयभीत नहीं हूँ
मेरी चिंता फर्क है
और वह यह है मेरे दोस्त
कि इसकी राह देखती तुम्हारी ऑंखें
कहीं पथरा न जाए
चिर आसन्न प्रसवा पृथ्वी डरती है
पथराई ऑंखों के सपनों से।
क्या स्वतंत्रतता भी बंधक बन सकती है!- अतुलबतायेंगे।आपका दिमाग कैसे काम करता है बतायेंगे कनिष्क रस्तोगी।
जीतेन्द्र योगाभ्यास दिखाने लगे। उधर स्वामीजी के कहने पर रविरतलामी,आशीष श्रीवास्तव तथा फ़ुरसतिया आदर्शवादी संस्कार के बारे में अपने विचार लिखने को मजबूर हुये।
रचनाकार में रविरतलामीजी ने हितेश व्यास की कवितायें पढ़ाईं। हितेश व्यास का वसन्त कहता है:-
ज़्यादा से ज़्यादा तुम क्या कर सकते हो?
हजामत! कर दो, रुण्ड मुण्ड कर दो
मैं आऊँगा पेड़ों के विग लगाता हुआ
इससे अधिक तुम्हारी औक़ात क्या है
अनूप जी (कौन वाले यह नहीं बताया)का ब्लाग देखकर रति सक्सेना जी भी कविता में गणित ले आईं।
ब्लाग लिखने से हुये फायदे-नुकसान का लेखा-जोखा अतुल सबनीस कर रहे हैं।खेल-खेल में पैसा कमाने के गुर सिखाने में जुटे हैं पंकज।रजनीश मंगला को कुछ गाने चाहिये ।सूची देखें। हों तो भेजें।कविता ,ज्योतिष व हायकू के बाद अब मानसी ने बाल कविताओं पर हाथ आजमाना शुरु किया। बाल कवितायें आप भी पढ़ें-लिखें।
सैन्टा बाबा उनको तोहफ़ा देते
जो मम्मी-पापा का कहा सुनते
आओ हम अच्छे बच्चे बन जायें
क्रिस्मस में मन के तोहफ़े पायें
लक्ष्मी गुप्त जी नये अंदाज में सबअर्ब की गाथा लिख रहे हैं:-
कोमल तन की सुघर मेहरियाँ रहतीं सबै सबर्बिया माँ
चंचल नैनन वाली गोरियाँ चितवत रहैं सबर्बिया माँ
नाचैं, गावैं, भाव बतावैं बारन और किलबिया माँ
मन लागो मेरो यार....
महावीर शर्मा जी विचारोत्तेजक लेख में हिंदी को जानबूझकर गलत अंदाज में उच्चारित किये जाने के बारे में बता रहे हैं।यह देखा जा रहा है कि हर क्षेत्र में व्यक्ति जैसे जैसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करके ख्याति के शिखर के समीप आजाता है, उसे अपनी माँ को माँ कहने में लज्जा आने लगती है।
आज की टिप्पणी:जीतू की पोस्ट में सूर्य नमस्कार करते हुये बालक के आगे-पीछे कोई शब्द नहीं था तब यह टिप्पणी की गई थी-देखो जीतू, तुम जब तक लिख नहीं रहे थे तब तक यह सूर्य नमस्कार करता बालक चुपचाप खड़ा रहा। तुम्हारी पोस्ट देखते ही ये बालक सूर्य दंड पेलने लगा। बेचारा नमस्कार करते करते गिर जायेगा लेकिन देखेगा उधर ही जिधर इस पोस्ट का कोई शब्द नहीं दिखेगा। क्या बात है। बकिया लेख जैसा कि होता है बढ़िया है। बाद में जीतू ने बालक के तीनो तरफ शब्दों की बाड़े-बंदी कर दी।
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बुधवार, दिसंबर 07, 2005
लिख चुके प्यार के गीत बहुत
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
प्रेमचंद की १२५ वीं वर्षगांठ पर लाल्टू के लेख से वर्षों पराने दोस्त मिले तथा आह निकली लाल्टू की कविताओं पर। जापान में भारत के बारे में बदलते नजरिये के बारे में जानिये मत्सु से। यूनानी कला के बारे में प्रतीक बता रहे हैं। नेपाल पर भारतीय नेता की गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी के बारे में सालोक्य के विचार तथा सशक्त भारत चर्चा समूह के बारे में अनुनाद सिंह का लेख। जीतेंद्र से जानिये फ़िल्मी पाडकास्टिंग के बारे में तथा आशीष से बदलते रिश्तों के बारे में। टूथब्रश के सफर के बारे जानिये देशदुनिया से. रवि रतलामी रचनाकार में पेश कर रहे हैं शमशेर सिंह की कविता:-
वकील करो-
अपने हक के लिए लड़ो.
नहीं तो जाओ
मरो.
विजय ठाकुर तथा रति सक्सेना काफी दिन बाद फिर से आये चिट्ठाजगत में। रतिजी ने लिखा:-
चोथी बेटी के दिल नहीं होताहै
उसका कोई अपना नहीं होता है
चौथी बेटी उदयपुर की झील है
उसकी आँखें लहराती रहती हैं
चौथी बेटी राजनर्तकी का घुँघरू है
बिन-बात खिलखिला उठती है
आज यही चौथी बेटी
झील के किनारे खड़ी है
अपने पुनर्जन्मों को चुभलाती हुई
रविरतलामीजी ने धनंजय शर्माजी के प्रति सभी चिट्ठाकारों की श्रद्धांजलि दी।महावीर शर्मा की कविता है:-
लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।
आज की टिप्पणी:-अतुल के इसरार पर चुनिंदा टिप्पणियां देने की शुरुआत की जा रही है। आज की टिप्पणी है पंकज के लेख लेख पर रविरतलामी की :-
#$^&@ मैं अपने ब्राउज़र को बाइ डिफ़ॉल्ट चित्र प्रदर्शित न करने के लिए सेट कर रखता हूँ, ताकि बहुत सी झंझटों, और खासकर धीमी गति से मुक्ति मिल सके.आपने कहा चित्र देखिए. जनाब उम्मीद यह थी कि आप कोई बर्फीले मौसम का बढ़िया चित्र दिखाएँगे.पर यहाँ तो आप थर्मामीटर का पारा दिखा रहे हैं - वह भी कोई दिखाने की चीज़ है? हमने पहले ही मान लिया था 9 डिग्री होगा, 7 डिग्री भी हो सकता है.दरअसल, देखना चाहते थे आपका थूक या जमी हुई गा@#!$^लियाँ.. वो दिखाओ तो कुछ बात बने…
आप भी टिप्पणियां लिखने में देर मत करा करें।
वकील करो-
अपने हक के लिए लड़ो.
नहीं तो जाओ
मरो.
विजय ठाकुर तथा रति सक्सेना काफी दिन बाद फिर से आये चिट्ठाजगत में। रतिजी ने लिखा:-
चोथी बेटी के दिल नहीं होताहै
उसका कोई अपना नहीं होता है
चौथी बेटी उदयपुर की झील है
उसकी आँखें लहराती रहती हैं
चौथी बेटी राजनर्तकी का घुँघरू है
बिन-बात खिलखिला उठती है
आज यही चौथी बेटी
झील के किनारे खड़ी है
अपने पुनर्जन्मों को चुभलाती हुई
रविरतलामीजी ने धनंजय शर्माजी के प्रति सभी चिट्ठाकारों की श्रद्धांजलि दी।महावीर शर्मा की कविता है:-
लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।
आज की टिप्पणी:-अतुल के इसरार पर चुनिंदा टिप्पणियां देने की शुरुआत की जा रही है। आज की टिप्पणी है पंकज के लेख लेख पर रविरतलामी की :-
#$^&@ मैं अपने ब्राउज़र को बाइ डिफ़ॉल्ट चित्र प्रदर्शित न करने के लिए सेट कर रखता हूँ, ताकि बहुत सी झंझटों, और खासकर धीमी गति से मुक्ति मिल सके.आपने कहा चित्र देखिए. जनाब उम्मीद यह थी कि आप कोई बर्फीले मौसम का बढ़िया चित्र दिखाएँगे.पर यहाँ तो आप थर्मामीटर का पारा दिखा रहे हैं - वह भी कोई दिखाने की चीज़ है? हमने पहले ही मान लिया था 9 डिग्री होगा, 7 डिग्री भी हो सकता है.दरअसल, देखना चाहते थे आपका थूक या जमी हुई गा@#!$^लियाँ.. वो दिखाओ तो कुछ बात बने…
आप भी टिप्पणियां लिखने में देर मत करा करें।
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लिख चुके प्यार के गीत बहुत
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
प्रेमचंद की १२५ वीं वर्षगांठ पर लाल्टू के लेख से वर्षों पराने दोस्त मिले तथा आह निकली लाल्टू की कविताओं पर।जापान में भारत के बारे में बदलते नजरिये के बारे में जानिये मत्सु से। यूनानी कला के बारे में प्रतीक बता रहे हैं।नेपाल पर भारतीय नेता की गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी के बारे में सालोक्य के विचार तथासशक्त भारत चर्चा समूह के बारे में अनुनाद सिंह का लेख।जीतेंद्र से जानिये फ़िल्मी पाडकास्टिंग के बारे में तथा आशीष से बदलते रिश्तों के बारे में।टूथब्रश के सफर के बारे जानिये देशदुनिया से. रवि रतलामी रचनाकार में पेश कर रहे हैं शमशेर सिंह की कविता:-
वकील करो-
अपने हक के लिए लड़ो.
नहीं तो जाओ
मरो.
विजय ठाकुर तथा रति सक्सेना काफी दिन बाद फिर से आये चिट्ठाजगत में। रतिजी ने लिखा:-
चोथी बेटी के दिल नहीं होताहै
उसका कोई अपना नहीं होता है
चौथी बेटी उदयपुर की झील है
उसकी आँखें लहराती रहती हैं
चौथी बेटी राजनर्तकी का घुँघरू है
बिन-बात खिलखिला उठती है
आज यही चौथी बेटी
झील के किनारे खड़ी है
अपने पुनर्जन्मों को चुभलाती हुई
रविरतलामीजी ने धनंजय शर्माजी के प्रति सभी चिट्ठाकारों की श्रद्धांजलि दी।महावीर शर्मा की कविता है:-
लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।
आज की टिप्पणी:-अतुल के इसरार पर चुनिंदा टिप्पणियां देने की शुरुआत की जा रही है। आज की टिप्पणी है पंकज के लेख लेख पर रविरतलामी की :-
#$^&@ मैं अपने ब्राउज़र को बाइ डिफ़ॉल्ट चित्र प्रदर्शित न करने के लिए सेट कर रखता हूँ, ताकि बहुत सी झंझटों, और खासकर धीमी गति से मुक्ति मिल सके.आपने कहा चित्र देखिए. जनाब उम्मीद यह थी कि आप कोई बर्फीले मौसम का बढ़िया चित्र दिखाएँगे.पर यहाँ तो आप थर्मामीटर का पारा दिखा रहे हैं - वह भी कोई दिखाने की चीज़ है? हमने पहले ही मान लिया था 9 डिग्री होगा, 7 डिग्री भी हो सकता है.दरअसल, देखना चाहते थे आपका थूक या जमी हुई गा@#!$^लियाँ.. वो दिखाओ तो कुछ बात बने…
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वकील करो-
अपने हक के लिए लड़ो.
नहीं तो जाओ
मरो.
विजय ठाकुर तथा रति सक्सेना काफी दिन बाद फिर से आये चिट्ठाजगत में। रतिजी ने लिखा:-
चोथी बेटी के दिल नहीं होताहै
उसका कोई अपना नहीं होता है
चौथी बेटी उदयपुर की झील है
उसकी आँखें लहराती रहती हैं
चौथी बेटी राजनर्तकी का घुँघरू है
बिन-बात खिलखिला उठती है
आज यही चौथी बेटी
झील के किनारे खड़ी है
अपने पुनर्जन्मों को चुभलाती हुई
रविरतलामीजी ने धनंजय शर्माजी के प्रति सभी चिट्ठाकारों की श्रद्धांजलि दी।महावीर शर्मा की कविता है:-
लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।
आज की टिप्पणी:-अतुल के इसरार पर चुनिंदा टिप्पणियां देने की शुरुआत की जा रही है। आज की टिप्पणी है पंकज के लेख लेख पर रविरतलामी की :-
#$^&@ मैं अपने ब्राउज़र को बाइ डिफ़ॉल्ट चित्र प्रदर्शित न करने के लिए सेट कर रखता हूँ, ताकि बहुत सी झंझटों, और खासकर धीमी गति से मुक्ति मिल सके.आपने कहा चित्र देखिए. जनाब उम्मीद यह थी कि आप कोई बर्फीले मौसम का बढ़िया चित्र दिखाएँगे.पर यहाँ तो आप थर्मामीटर का पारा दिखा रहे हैं - वह भी कोई दिखाने की चीज़ है? हमने पहले ही मान लिया था 9 डिग्री होगा, 7 डिग्री भी हो सकता है.दरअसल, देखना चाहते थे आपका थूक या जमी हुई गा@#!$^लियाँ.. वो दिखाओ तो कुछ बात बने…
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सोमवार, दिसंबर 05, 2005
नागफनी से भुखमरी का इलाज
चर्चाकारः
debashish
ब्लाग जगत में सिद्ध लेखकों का आगमन शुरु हो गया है। चर्चित व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने अपना चिट्ठा प्रपंचतंत्र शुरु किया। प्रतीक ने भी अपना नया चिट्ठा शुरु किया है नाम है टाइमपास। नरेन्द्र कोहली की रचना रचनाकार पर देखें।
हायकू के मौसम में सारिका ने भी हायकू लिखने की शुरुआत की।चिंडियामाने चीन + इंडिया के भविष्य के बारे में बता रहे हैं सुनील दीपक। फोन पर जब दो पुराने प्रेमी मिलते हैं तो क्या करते हैं जानिये लाल्टू से। ठंड के हायकू देखिये फुरसतिया पर तथा बर्फ देखिये मानसी के ब्लाग पर।हिंदी चिट्ठों का प्रिंट लेकर लोगों को पढ़ाने वाले रजनीश बता रहे हैं कि कंप्यूटर पर संगीत कैसे लाया जाये।
भूख लगे तो नागफनी खाओ । अटपटा लगता है लेकिन नागफनी से भुखमरी का इलाज कैसे होता है बता रहें हिंदी ब्लागर ।पत्र मेल संदेश की चेन का खुलासा कर रहे हैं रमण कौल।
अनुगूंज के अगले आयोजक हैं स्वामी जी। विषय है- (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?इसके पहले पंकज ने अनुगूंज के वर्षगांठ अंक का खूबसूरत अवलोकन किया विषय था -हम फिल्में क्यों देखते हैं?अक्षरग्राम पर ही अतुल की विचारोत्तेजक पोस्ट तथा उस पर विस्तृत टिप्पणियां देखें-क्या लाल रात की कोई सुबह नहीं होती?अपनी पहली (असली )वीडियो प्रविष्ट दिखा रहे हैं अतुल। रूपक अग्रवाल की कविता पढ़िये-प्रियसी।इंडीब्लागीस अवार्ड के बारे में कुछ विचार फुरसतिया के।
हिंदी के ब्लागर धनंजय शर्मा नहीं रहे।उनके असामयिक, दुखद निधन पर उनका परिचय देते हुये जीतेंद्र ने सभी हिंदी चिट्ठाकारों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि दी।
--
Posted by अनूप शुक्ला to gupt at 12/05/2005 01:16:00 PM
हायकू के मौसम में सारिका ने भी हायकू लिखने की शुरुआत की।चिंडियामाने चीन + इंडिया के भविष्य के बारे में बता रहे हैं सुनील दीपक। फोन पर जब दो पुराने प्रेमी मिलते हैं तो क्या करते हैं जानिये लाल्टू से। ठंड के हायकू देखिये फुरसतिया पर तथा बर्फ देखिये मानसी के ब्लाग पर।हिंदी चिट्ठों का प्रिंट लेकर लोगों को पढ़ाने वाले रजनीश बता रहे हैं कि कंप्यूटर पर संगीत कैसे लाया जाये।
भूख लगे तो नागफनी खाओ । अटपटा लगता है लेकिन नागफनी से भुखमरी का इलाज कैसे होता है बता रहें हिंदी ब्लागर ।पत्र मेल संदेश की चेन का खुलासा कर रहे हैं रमण कौल।
अनुगूंज के अगले आयोजक हैं स्वामी जी। विषय है- (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?इसके पहले पंकज ने अनुगूंज के वर्षगांठ अंक का खूबसूरत अवलोकन किया विषय था -हम फिल्में क्यों देखते हैं?अक्षरग्राम पर ही अतुल की विचारोत्तेजक पोस्ट तथा उस पर विस्तृत टिप्पणियां देखें-क्या लाल रात की कोई सुबह नहीं होती?अपनी पहली (असली )वीडियो प्रविष्ट दिखा रहे हैं अतुल। रूपक अग्रवाल की कविता पढ़िये-प्रियसी।इंडीब्लागीस अवार्ड के बारे में कुछ विचार फुरसतिया के।
हिंदी के ब्लागर धनंजय शर्मा नहीं रहे।उनके असामयिक, दुखद निधन पर उनका परिचय देते हुये जीतेंद्र ने सभी हिंदी चिट्ठाकारों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि दी।
--
Posted by अनूप शुक्ला to gupt at 12/05/2005 01:16:00 PM
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धनंजय शर्मा नहीं रहे
चर्चाकारः
debashish
शुक्रवार, नवंबर 25, 2005
बिहार में सत्ता परिवर्तन ब्लागर्स के विचार
चर्चाकारः
debashish
बिहार में सत्ता परिवर्तन पर लोग मुखर हो उठे। आशीष गर्ग , प्रिय रंजन झा तथा प्रतीक ने इस पर अपने चिट्ठे लिखे। आशीष गर्ग तथा नितिन बागला ने बताया की वे फिल्में किस लिये देखते हैं। सन्यास योग के स्वामी आशीष श्रीवास्तव का दिल किसी कन्या ने तोड़ दिया तो बांके बिहारी लाल सुपुत्र अतुल अरोरा कन्या को देख के बोले वाऊ...अनुनाद सिंह कुछ जानकारी दे रहे हैं नेट पर उपलब्ध हिंदी कड़ियों की। बधाई देते हुये शशि सिंह के सीएनबीसी द्वारा लिये इन्टरव्यू की जानकारी लें तथा फुरसतिया की कवितायें फिर से पढ़ें रचनाकार में।
--
Posted by अनूप शुक्ला at 11/25/2005 12:36:00 AM
बदला राज
कुछ नया होगा या
कोढ़ में खाज!
सिनेमा हम
काहे को देखते हैं
हमें का पता!
शशि देते हैं
साक्षात्कार चौकस
टनाटन है!
लड़की देखी
वाया बांकेबिहारी
क्या अदाये हैं!
शादी कर ले
फिर न जाने क्या हो
आशीष भाई!
--
Posted by अनूप शुक्ला at 11/25/2005 12:36:00 AM
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बुधवार, नवंबर 23, 2005
एक बेघर आवारा कण
चर्चाकारः
debashish
आजकल हिंदी चिट्ठाजगत हजामत का दौर सा चल रहा है। फुरसतिया के गुम्मा हेयर कटिंग सैलून को देखकर अतुल भी रंगीला हेयर ड्रेसर में घुस गये तथा वहां से बेआबरू हो के ही निकले तथा सीधे जुड़ गये प्रिंट मीडिया से। इस बीच प्रत्यक्षा ने होशियारी से फुरसतिया से मौज ले ली। इधर सुनीलजी, जीतू, पंकज ने अपने अनुगूंज के लेख लिखे हम फिल्में क्यों देखते हैं? रवि रतलामी ने विज्ञापन जगत में अंग्रेजी के बोलबाले तथा राजनीति में अतार्किकता के फैलते प्रसार के बारे में बताया। सुनीलजी ने रामायण के पात्रों में बहन की जरूरत के बारे में लिखा अपना अतीत और शहर का इतिहास टटोला।
गणित का हल्ला भी रहा ब्लागजगत में। अनूप भार्गव ने सामान्तर रेखाओं के लगाव के बारे में लिखा तो फुरसतिया ने गणितीय कवि सम्मेलन कराया। लक्ष्मी गुप्त जी ने बताया कि राम-रावण दोनों बहुरुपिये थे। लाल्टूजी तथा कन्हैया रस्तोगी लगातार सार्थक पोस्ट कर रहे हैं। प्राचीन भारत की तौल प्रणाली के बारे में लिखा कन्हैया ने। मानसी फिर से कविता के मैदान में आ गईं तथा आवारा कण कविता लिखी
--
Posted by अनूप शुक्ला at 11/23/2005 05:30:00 PM
गणित का हल्ला भी रहा ब्लागजगत में। अनूप भार्गव ने सामान्तर रेखाओं के लगाव के बारे में लिखा तो फुरसतिया ने गणितीय कवि सम्मेलन कराया। लक्ष्मी गुप्त जी ने बताया कि राम-रावण दोनों बहुरुपिये थे। लाल्टूजी तथा कन्हैया रस्तोगी लगातार सार्थक पोस्ट कर रहे हैं। प्राचीन भारत की तौल प्रणाली के बारे में लिखा कन्हैया ने। मानसी फिर से कविता के मैदान में आ गईं तथा आवारा कण कविता लिखी
मैं एक बेघर आवारा कण हूं
सीप की गोद में आ ठहरा हूं
बरसों बाद मोती बन कर
तुम्हारी पलकों में सजूंगा
और किसी शाम को चुपके से
ढुलक पडूंगा तुम्हारे गालों पर
किसी एक भंवर में उलझ कर
तुम्हारी हंसी को छेडूंगा फिर
बज उठती थी बार बार जो
मेरे झांकने पर पलकों से
एक प्रेम की पाति लिख जाऊंगा
सूखा चिह्न एक छोड जाऊंगा
छू के उसको तब हंस लेना
रेत का कण समझ झटक देना
मेरा क्या जो खो भी जाऊं
मैं तो एक आवारा कण हूं
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Posted by अनूप शुक्ला at 11/23/2005 05:30:00 PM
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रविवार, नवंबर 20, 2005
कालीचरण कविता करने लगे
चर्चाकारः
debashish
कुछ दिन से चर्चा ठहरी रही। इस बीच और लोग जुडे़ चिट्ठाकारी जगत से। मूलत: बिहार की रहने वाली जयाझा आई.आई.एम लखनऊ से एम बी ए करते हुये हिंदी में अपनी पसंदीदा कविताओं तथा गज़लों को अपने ब्लाग पर पोस्ट करती हैं। आशा है कि जल्द ही वे अपना लिखा भी पोस्ट करेंगी।इसके पहले लाल्टू जी ,जो मेरे ख्याल से चर्चित कथाकार हैं हिंदी के,ने भी अपने विचारोत्तेजक लेख लिखने लिखने शुरु किये।रमन कौल ने लाल्टूजी के बारे में लिखा है। अपने सुनीलजी तो दिन ब दिन दनादन लिख रहे हैं। वे कुछ छिपाते नहीं ।बताया कि कितने भुलक्कड़ प्रेमी हैं।कमबख्ती(?) से भी वे मुंह नहीं छिपाते। खिंचाई अब फुरसतिया का एकाधिकार नहीं रही। फुरसतिया की खिंचाई को नहला मानते हुये प्रत्यक्षा ने दहला मारा है। मानसी ने सहयोग किया है। अभी तो वो मजा नहीं आया है आगे देखते हैं क्या होगा। पर यह अच्छी बात है कि प्रत्यक्षा,मानसी,सारिका ने कविता के साथ साथ अब गद्य भी लिखना शुरु किया है जो कि उनकी कविताओं से कम बेहतर नहीं हैं। सारिका की बचपन की यादें इसका प्रमाण हैं। जब ये 'मचिकग' कविता से लेख पर आ रहे हैं तब भोला उल्टी गंगा बहा रहे हैं वे कविताईपर उतर आये हैं। उनका जीवन चलायमान हो गया है।
मिर्चीसेठ का मन एक बार फिर बेचैन होकर जहाज के पक्षी में तब्दील हो गया है।
टिप्पणी भी खतरनाक हो सकती हैं यह बता रहे हैं नितिनबागला। फुरसतिया जानकारी दे रहें तेज चैनलों की।
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Posted by अनूप शुक्ला to gupt at 11/20/2005 07:22:00 AM
मिर्चीसेठ का मन एक बार फिर बेचैन होकर जहाज के पक्षी में तब्दील हो गया है।
टिप्पणी भी खतरनाक हो सकती हैं यह बता रहे हैं नितिनबागला। फुरसतिया जानकारी दे रहें तेज चैनलों की।
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Posted by अनूप शुक्ला to gupt at 11/20/2005 07:22:00 AM
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शनिवार, अक्टूबर 29, 2005
सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चर्चाकारः
debashish
कन्हैया रस्तोगी अहा जिंदगी की बातें बताते हुये चुटकुले सुनाने लगे।आशीष तिवारी दुबारा मेट्रो में घुमाने लगे।रवि रतलामी से आर.के.लक्ष्मण के कार्टून लाखों मेंबिकने की बात सुनकर ब्लागर की हालत खराब हो गई लेकिन अपने देबाशीष मुफ्त में टेम्पलेट बांटने लगे। यह देखकर स्वामी पतझड़िया गये।रवि रतलामी मौसम के मिजाज को भांपने की कोशिश करते हुये फ्लाक में संभावनायें तलाशने लगे जिसके बारे में पंकज ने बताया था।
स्वामीजी की समस्या है कि बैठे-बैठे की यही कुछ ख्याल आने लहते हैं लेकिन मजे की बात ख्याल आते ही जीतेन्दर उड़ने लगते हैं।इस बीच उज्जैन से शरद शर्मा का भी आगमन हुआ चिट्ठा जगत में धानी चूनर के साथ। रजनीश मंगला ने गाने सुनाये,जर्मन सिखाना शुरु किया,पतझड़दिखाया तथा अब बता रहे हैं पंजाबी का टूल दिखा रहे हैं।धन के धेले में बदल जाने की कहानी सुनिये हिंदी ब्लागर से तथा दिल्ली में पुलिस की कहानी सुनिये दिल्ली वालों से।
लक्ष्मीगुप्त जी आवाहन कर रहे हैं:-
सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चाँद निकले, न निकले मेरे साथियो
प्रेम की वर्तिका तुम जलाते रहो
प्रिय आयें न आयें, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......
संजय विद्रोही भी झूमने लगे:-
प्रीतम की बात चली
स्वप्न जगा झूम उठा,
अभिलाषा महक उठी
रोम-रोम पुलक उठा.
लेकिन उड़ती चिड़िया का दर्द है :-
बासी हो गए गीत सभी वो
ऊब चुके हैं सब जन सुनकर
तड़प भले अब भी उतनी हो
ताजी नहीं रही वो मन पर।
इस सब से बेखबर निठल्ले लोग सोने की बात कर रहे हैं गज़ल सुनातेहुये।
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Posted by अनूप शुक्ला at 10/29/2005 07:06:00 AM
स्वामीजी की समस्या है कि बैठे-बैठे की यही कुछ ख्याल आने लहते हैं लेकिन मजे की बात ख्याल आते ही जीतेन्दर उड़ने लगते हैं।इस बीच उज्जैन से शरद शर्मा का भी आगमन हुआ चिट्ठा जगत में धानी चूनर के साथ। रजनीश मंगला ने गाने सुनाये,जर्मन सिखाना शुरु किया,पतझड़दिखाया तथा अब बता रहे हैं पंजाबी का टूल दिखा रहे हैं।धन के धेले में बदल जाने की कहानी सुनिये हिंदी ब्लागर से तथा दिल्ली में पुलिस की कहानी सुनिये दिल्ली वालों से।
लक्ष्मीगुप्त जी आवाहन कर रहे हैं:-
सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चाँद निकले, न निकले मेरे साथियो
प्रेम की वर्तिका तुम जलाते रहो
प्रिय आयें न आयें, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......
संजय विद्रोही भी झूमने लगे:-
प्रीतम की बात चली
स्वप्न जगा झूम उठा,
अभिलाषा महक उठी
रोम-रोम पुलक उठा.
लेकिन उड़ती चिड़िया का दर्द है :-
बासी हो गए गीत सभी वो
ऊब चुके हैं सब जन सुनकर
तड़प भले अब भी उतनी हो
ताजी नहीं रही वो मन पर।
इस सब से बेखबर निठल्ले लोग सोने की बात कर रहे हैं गज़ल सुनातेहुये।
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Posted by अनूप शुक्ला at 10/29/2005 07:06:00 AM
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मंगलवार, अक्टूबर 25, 2005
ये अच्छी बात नहीं है
चर्चाकारः
debashish
नींद के मारे सुनीलजी को कुंभकर्ण से सहज सहानुभूति है इसीलिये लंबी गरदन बाली लड़कियों को देखते-देखते कुंभकर्ण के बारे में चिंतित हो गये। आशीष गर्ग कवि सम्मेलन के बारे में बता रहे हैं तो आशीष श्रीवास्तव कन्या पुराण बांच रहे हैं।वहीं अतुल धर्मेन्दर के अंदाज मे फिलाडेल्फिया में हुई नौटंकी के बारे में सुना रहे हैं। उधर काली भाई बकझक करते हुये कालेज के दिनों से होते हुये बाबर्चीखाने में घुस गये।पंकज लाये हैं खुशखबरी कि फ्लाक से सीधे आप चिट्ठाकारी कर सकते हैं। अब कहीं कापी पेस्ट की जरूरत नहीं। करिये तो सहीं हो जायेगा। भाई जी मुद्रा स्थानांतरण के विज्ञापन भी दे रहे हैं। रजनीश के गाने भी सुना रहे हैं।कौन रजनीश? अरे यार नये साथी हैं बच्चे समेत आये हैं। गीत संगीत के दीवाने हैं। स्वागत-सत्कार करो भाई। हनुमानजी एक बार फिर से छा गये बालीवुड में। उधर शशि (सिंह) ने शशि(चन्द्रमा) को बेच दिया। क्या जमाना आ गया गया? देशदुनिया में देखिये रोचक जानकारी कैटरीना ,रीटा से जुड़ी है-एपोफ़िस और तोरिनो पैमाना। प्रेम शंकर झा लगातार दिल्ली के माध्यम से दुनिया को देख रहे हैं।उनका एक और विचारोत्तेजक लेख महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर-फोकस से बाहर इंडियन वुमन। सुमीर शर्मा देख रहे हैं फिर इतिहास को गोद लेने के सिद्धान्त से।जीतेन्दर की कलम कुछ चलने लगी है तो न लिखने वालों के खिलाफ खुली रिपोर्ट दर्ज करा दी।फिर खुद ही कह रहे हैं यह अच्छी बात नहीं है ,ये भी कोई बात हुई कि अपने छुट्टन को भिड़ा दिये बिपाशा बसु से?
प्रत्यक्षा का दुबारा लिखना शुरु हुआ। इस बीच उनको लगा कि तमाम लोग आये होंगे उनके यहां सो पूछ रहीं हैं -वो तुम थे क्या?:-
जब तक मैं हाथ
आगे बढाती
उँगलियों से पर्दे को
जरा सा हटाती
उस निमिष मात्र में
गाडी बढ गयी आगे
कहीं जो पीछे छूटा
वो तुम थे क्या ??
इस पर हिमालय पर खड़े लोग मुस्करा रहे हैं। फुरसतिया अपनी साइकिल मे दुबारा हवा भरवा के बोलते हैं आओ चलें घूमने। राजेश कहते हैं क्या फरक पड़ता है:-
सफर में,
क्या धूप,
कैसी छाँव...?
खेल में,
क्या जीत,
कैसी हार...?
--
Posted by अनूप शुक्ला at 10/25/2005 08:48:00 AM
प्रत्यक्षा का दुबारा लिखना शुरु हुआ। इस बीच उनको लगा कि तमाम लोग आये होंगे उनके यहां सो पूछ रहीं हैं -वो तुम थे क्या?:-
जब तक मैं हाथ
आगे बढाती
उँगलियों से पर्दे को
जरा सा हटाती
उस निमिष मात्र में
गाडी बढ गयी आगे
कहीं जो पीछे छूटा
वो तुम थे क्या ??
इस पर हिमालय पर खड़े लोग मुस्करा रहे हैं। फुरसतिया अपनी साइकिल मे दुबारा हवा भरवा के बोलते हैं आओ चलें घूमने। राजेश कहते हैं क्या फरक पड़ता है:-
सफर में,
क्या धूप,
कैसी छाँव...?
खेल में,
क्या जीत,
कैसी हार...?
--
Posted by अनूप शुक्ला at 10/25/2005 08:48:00 AM
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शुक्रवार, अक्टूबर 21, 2005
दीवाने ने आकर फिर एक दीये की लौ जलाई
चर्चाकारः
debashish
दिल्ली ब्लाग शुरु हुआ, लोग मैराथन दौड़े और हादसा हो गया हादसों के शहर में। यह सब देखकर भोपाली भाई का दूध उबलनेलगा और विद्रोही के यहां जलजला आ गया। इधर लक्ष्मी गुप्त जी ने एक पत्ती देखी, फिर कुछ देर बाद पूछने लगे कहां है तू?मीडिया से जुड़े हिंदी ब्लागर का मानना है कि महामहिम को बचकाना लफड़ों में नहीं पड़ना चाहिये। आशीष तिवारी बकवास के बाद बहस भी करना चाहते हैं। बालेंदु शर्मामीडिया की भाषा के अगड़म-बगड़मपन पर निगाह डाल रहे हैं। अखबारों के बेसिर-पैर शीर्षक और ईश्वर का पक्षपात भी इनकी निगाह में है।
जीतेन्दर पेश कर रहे हैं गड़बड़झाला शायरी बमार्फत निशाजी:
सुनील जी भारत से लौटे साथ में लाये ढेर सारी यादें। कविता सागर के सीने से रोज नये रत्न निकलने बदस्तूर जारी हैं। रविरतलामी जी बीएसएनएल के ब्राडबैंड केअनुभव बता रहे हैं हिंदी में ओपेरा की सहायता से आफलाइन चैट करते हुये। स्वामीजी बता रहे हैं (या पूछ रहे हैं) ये क्या जगह है दोस्तों! नीरज त्रिपाठी यौन शोषणमें लग गये और आशीष मना आये चुपके से अपना जन्मदिन । दूसरे आशीष कहने लगे जीवन भी क्या बला है। रचनाकार में कंप्यूटर गुरु स्टीव जॉब्स की सलाह देखें-भूखे रहो,मूर्ख रहो। छठी मइया के गीत सुने शशि से। फुरसतिया भी कुछ कहे हैं सो देखिये।
अगर आपको भारतीय रेलवे की कार्यशैली जाननी हो तो अनिमेष पाठक की पोस्ट देखें कि कैसे माफ कर देने वाले के लिये कहा जाता है छोड़ दिया उसे बेचारा समझ कर। कुंडली मिलाते-मिलाते मानसी ने अचानक शमा-परवाने की कुंडली मिला दी:
जीतेन्दर पेश कर रहे हैं गड़बड़झाला शायरी बमार्फत निशाजी:
तुमको देखा तो ये ख्याल आयाकार्टून दिखाते हुये पीएचपी सिखाने के लिये जुटे हैं। जीतू के ब्लाग पढ़वाने की साजिशों का जबाब कालीचरन देते हैं-
पागलों के स्टाक में नया माल आया
ये जुगत लगाऊं या वो जुगत लगाऊं,
सोच रहा है लिखने वाला,
कलम घिस तू लिख चला चल,
मिल जायेगा पढ़ने वाला।
सुनील जी भारत से लौटे साथ में लाये ढेर सारी यादें। कविता सागर के सीने से रोज नये रत्न निकलने बदस्तूर जारी हैं। रविरतलामी जी बीएसएनएल के ब्राडबैंड केअनुभव बता रहे हैं हिंदी में ओपेरा की सहायता से आफलाइन चैट करते हुये। स्वामीजी बता रहे हैं (या पूछ रहे हैं) ये क्या जगह है दोस्तों! नीरज त्रिपाठी यौन शोषणमें लग गये और आशीष मना आये चुपके से अपना जन्मदिन । दूसरे आशीष कहने लगे जीवन भी क्या बला है। रचनाकार में कंप्यूटर गुरु स्टीव जॉब्स की सलाह देखें-भूखे रहो,मूर्ख रहो। छठी मइया के गीत सुने शशि से। फुरसतिया भी कुछ कहे हैं सो देखिये।
अगर आपको भारतीय रेलवे की कार्यशैली जाननी हो तो अनिमेष पाठक की पोस्ट देखें कि कैसे माफ कर देने वाले के लिये कहा जाता है छोड़ दिया उसे बेचारा समझ कर। कुंडली मिलाते-मिलाते मानसी ने अचानक शमा-परवाने की कुंडली मिला दी:
एक चराग़ जल रहा था
लौ भी धीमे धडक रही थी
किसी हवा के झोंके से डर
धीर धीरे फ़फ़क रही थी
अंधेरा फिर से जाग उठा और
रात ने फिर से ली अंगडाई
मगर किसी दीवाने ने आकर
फिर एक दीये की लौ जलाई
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सोमवार, अक्टूबर 17, 2005
असम्भव हो हर कार्य जरुरी नही
चर्चाकारः
debashish
देश-दुनिया की ब्लागिंग जेल तक पहुंचा सकती है। एक खिड़की आठ सलाखें पर पंद्रह कवितायें सुनिये रति सक्सेना जी से। नवरात्र गुजर गया लेकिन उसका महत्व भी तो जान लीजिये शशि सिंह से। स्नान-समस्या से ग्रस्त, आशियाना ढूंढते जीतेन्दर परेशान हैं आतंकवादी घटनाओं से, लेकिन इनकी कामेडी में कोई कमी नहीं आई इसीलये रंगदारी व्यवस्था का समाधान बता रहे हैं। उधर इंडियन आयडल पर नेपाल वाले लगा रहे हैं चोरी का आरोप। यह सुनते ही पक्षी उड़ लिये। उड़ते हुये पक्षी सपने देखने लगे। सब तरफ से हिंदी ही हिंदी दिख रही थी। इस पर रविरतलामी पूछने लगे क्या चिड़ियों में सौन्दर्य बोध होता है? फुरसतिया कहने लगे- मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो । इसी पर रवि रतलामी अपना नजरिया बताने लगे कि कम्प्यूटर सामग्री कैसे आपकी जरूरत बनती जा रही है। फिर वे हिंदी संयुक्ताक्षरों की समस्या बताने लगे। मानसी को विभिन्न राशियों की विशेषतायें बताते हुये कुंडली मिलान बिंदु तक आते देखकर अतुल कसमसाने लगे, "जब हम जवां होंगे" कहकर। इस पर धनुष के एक रंग को ताव आ गया। स्वामी बोले ये सब झूठ है। इस पर लक्ष्मी गुप्त जी ने समझाया, नेताओं का चरित्र ऐसा ही होता है।
कुमार मानवेंद्र ने दुबारा लिखना शुरु किया। वरुण सिंह भी व्यायामशाला से लौटकर हिंदी में लिखने के बारे में सफाई देने लगे। देश दुनिया के माध्यम से पढ़िये ईरानी नेता का जो कि ब्लाग भी लिखते हैं का साक्षात्कार। आशीष गर्ग बता रहे हैं पारदर्शी धातु के बारे में। रचनाकार पर रचनाओं की लगातार प्रस्तुति जारी है-अब और नये मनोरम अंदाज में। कविता सागर से कविता मोती बदस्तूर निकल रहे हैं। फुरसतिया बता रहे हैं मौरावां के रावण के बारे में जो कि कभी नहीं मरता। सारिका बता रही हैं:
Posted by अनूप शुक्ला at १०/१७/२००५ १०:३९:०० पूर्वाह्न
कुमार मानवेंद्र ने दुबारा लिखना शुरु किया। वरुण सिंह भी व्यायामशाला से लौटकर हिंदी में लिखने के बारे में सफाई देने लगे। देश दुनिया के माध्यम से पढ़िये ईरानी नेता का जो कि ब्लाग भी लिखते हैं का साक्षात्कार। आशीष गर्ग बता रहे हैं पारदर्शी धातु के बारे में। रचनाकार पर रचनाओं की लगातार प्रस्तुति जारी है-अब और नये मनोरम अंदाज में। कविता सागर से कविता मोती बदस्तूर निकल रहे हैं। फुरसतिया बता रहे हैं मौरावां के रावण के बारे में जो कि कभी नहीं मरता। सारिका बता रही हैं:
खुशबू की तरह तुमको रूह में उतारा है,सूरज देव सिंह कह रहे हैं:
जाओ कहीं भी लेकिन रहता है साया साथ।
सार्थक हो हर प्रयास जरुरी नही
पूरी हो हर आस जरुरी नही
मगर सच है ये भी वही
असम्भव हो हर कार्य जरुरी नही
Posted by अनूप शुक्ला at १०/१७/२००५ १०:३९:०० पूर्वाह्न
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सोमवार, अक्टूबर 10, 2005
पंगा ना लै मेरे नाल!
चर्चाकारः
debashish
यूथ करी की लेखिका रश्मि बंसल ने अपनी पत्रिका जैम में की मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी के संस्थान आई.आई.पी.एम की निंदा, बस फिर क्या था। आई.आई.पी.एम के लोग इनके पीछे पड़ गये, गंदी टिप्पणियों के साथ। रश्मि का साथ देने वाले गौरव सबनिस को मिला कानूनी नोटिस और मानहानी का १२५ करोड़ रुपये हर्जाने का दावा। अपनी तो समझ नहीं आता कि सचाई क्या है पर यह वाकया हमारे सहिष्णु राष्ट्र की छात्र शक्ति के बारे में बहुत कुछ कहता है।
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रविवार, अक्टूबर 09, 2005
चिट्ठाचर्चा में उनका श्रीमुख
चर्चाकारः
debashish
आज का चिट्ठाचर्चा उनके श्रीमुख की तरह। बतायें कैसा लगा?
Posted by अनूप शुक्ला at १०/०९/२००५ ०३:१५:०० अपराह्न
- प्रेमिका के बालिग होने का इंतजार करते करते इतना वक्त बीत गया कि वो एक सिलेंडर बेचने वाले के साथ भाग गई-अपनी ढपली
- मास्टर्स तो रसायन शास्त्र में कर रही थी मगर किताबें ज्योतिष की पढती थी, मम्मी से छुपा कर मानसी
- छोटे हो सपने किसी के, उसे हँसी में मत उडाना-कुछ कहना है
- कम्प्यूटर के जरिए कलाकृतियों के निर्माण की संभावनाएँ अनंत हैंरवि रतलामी
- अपने तो आगे पीछे सब तरफ से धुआँ निकलने लगता है- नितिन बागला
- कुछ तो बचपना था, कुछ समझदारी थी /कुछ तो समझ ख़ुदग़र्ज़ी से हारी थी-एक यात्रा
- हूक उठी दिल में कुछ ऐसी ,दूर क्षितिज तक चलता जाऊं- महावीर शर्मा
- यहां हिंदी के प्रमुख जालघर दिखते हैं-सारिका सक्सेना
- हम यहां वैदिक ज्योतिष की बात कर रहे हैं- मानसी
- तोराजा एक विषेश आदिवासी जन जाति हैसुनील दीपक
- सृष्टि झूमती है सभी,सर्वथा अकारण/मानव ही पूँछता,
क्यों जीवन का कारण?- काव्यालय - कटुक वचन मत बोल रे-योगब्लाग
- ओये देशी तेरी ऐसी की तैसी।हम अपने उत्पाद बनाने के बजाए हरे चारागाहों मे जा कर दोयम काम करते रह जाते हैं-ईस्वामी
- जब औरत आइटम में तब्दील होगी तो उससे व्यवहार का व्याकरण भी उसी तरह बदलेगा।- फुरसतिया
- शिक्षा के नाम पर बेहूदा प्रयोगों की यह इति-अति है-रविरतलामी
- ये अपना गुगलवा क्या क्या करेगा?जीतेन्दरजो है,उसका होना सत्य है,/जो नहीं है, उसका न होना सत्य है -
कविता सागर - आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,/खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं-कविता सागर
- भोजपुरिया और भोजपुरी प्रेमी के स्वागत करे के चाहीं-भोजपुरिया
Posted by अनूप शुक्ला at १०/०९/२००५ ०३:१५:०० अपराह्न
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शुक्रवार, अक्टूबर 07, 2005
उलटफेर जारी
चर्चाकारः
debashish
ब्लॉग की दुनिया के उलटफेर जारी हैं। एओएल की वेब्लॉग्स ईंक की खरीद की खबर अभी बासी भी नहीं हुई कि अब वेरीसाईन ने डेव वाईनर के वेब्लॉग्स डॉट कॉम को खरीद लिया है। वेब्लॉग्स डॉट कॉम खासा प्रसिद्ध पिंग सर्विस है जो ताज़े ब्लॉग्स की खबर रखता रहा है और जिसे लगभग हर ब्लॉगवेयर नई प्रविष्टि करने पर पिंग करता है। वैसे वादा तो यही है कि यह मुफ्त सेवा आगे भी मुफ्त रहेगी।
इन सब के बीच बेहद हवा बनी रही पहले भारतीय ब्लॉग नेटवर्क इंस्टाब्लॉग, जिसमें कथित रूप से ५० चैनल है, यह दीगर बात है कि एक भी चैनल भारतीय पाठकवर्ग को ध्यान में रख नहीं बनाया गया। वैसे इंस्टाब्लॉग अपने कहे अनुसार ५ अक्टुबर को प्रारंभ नहीं हुआ और लोगों ने काफी हल्ला भी मचाया इस पर। अभी यहाँ तकरीबन ४६ चैलन ही अवतरित हुए हैं, कई खाली पड़े हैं और किसी भी प्रविष्टि के साथ लेखक का नाम नहीं है। खैर आगे आगे देखिये होता है क्या!
इन सब के बीच बेहद हवा बनी रही पहले भारतीय ब्लॉग नेटवर्क इंस्टाब्लॉग, जिसमें कथित रूप से ५० चैनल है, यह दीगर बात है कि एक भी चैनल भारतीय पाठकवर्ग को ध्यान में रख नहीं बनाया गया। वैसे इंस्टाब्लॉग अपने कहे अनुसार ५ अक्टुबर को प्रारंभ नहीं हुआ और लोगों ने काफी हल्ला भी मचाया इस पर। अभी यहाँ तकरीबन ४६ चैलन ही अवतरित हुए हैं, कई खाली पड़े हैं और किसी भी प्रविष्टि के साथ लेखक का नाम नहीं है। खैर आगे आगे देखिये होता है क्या!
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गुरुवार, अक्टूबर 06, 2005
हवाएँ राह चलते भी हमें पहचाने लेती हैं
चर्चाकारः
debashish
लोग पूजा कर रहे हैं लताजी की परेशान हैं देबाशीष। खेलों की देशभक्ति के विकेंद्रीकरण के बारे में भी विचार करते को कहते हैं। पड़ोसी के दुख को महसूसते हुये सुनील दीपक का ऐसा कहना है कि दुनिया सिमट रही है लेकिन हम अपने घर में अजनबी हो रहे हैं । पूरे नौ महीने (लिखने) के बाद स्वामीजी स्वामीजी बता रहे हैं वो हिंदी में क्यों लिखते हैं। गाली का भी सामाजिक महत्व होता है कुछ ऐसा कहना है फुरसतिया का। सूरजदेव के बढ़ते कदमों को देखकर मिर्ची सेठ उन्हें अपने यहांले गये। सानिया, समाचार और सनसनी की जानकारी मिलेगी देशदुनिया में। कंकर स्त्रोत पढ़कर चलो कनाडाजीतू के साथ आप भी कहोगे वाहक्या बात है। मयकसी में खुशी देखकर नारदजी भी व्यस्त हो गये।
रविजी ने लिखा निबंध लेकिन किसी ने भाव नहीं दिया । आप पढ़िये बतायें कैसा है। विषय है- धर्मनिरपेक्षता-एक नई सोच। देवेंद्र आर्य नेतूफानी गजल लिखी लेकिन संजय विद्रोही ने आत्मसमर्पण कर दिया इससे अशोक को शोक हुआ कि लोग लंबी कविता कैसे लिख लेते हैं। बाप भी अकेला हो सकता है यह बता रहे हैं शशि सिंह। इंद्रधनुष काफी दिन बाद दिखा लेकिन पता नहीं परदा झीना क्यों है।अनुगूंज १४ को समेटा आलोक ने तथा ए,बी,सी कथा कही। समाचार की दुनिया के कुयें में पड़ी है अंग्रेजी की भांग और दैनिक जागरण जैसे हिंदी दैनिक भी उसी के दीवाने हैं कुछ ऐसा बता रहे हैं आशीष। आपको देवेंद्र आर्य की एक गज़ल तो यहीं पढ़ा दें इसे टाईप करने में रविरतलामीजी का पसीना बहा है।
रविजी ने लिखा निबंध लेकिन किसी ने भाव नहीं दिया । आप पढ़िये बतायें कैसा है। विषय है- धर्मनिरपेक्षता-एक नई सोच। देवेंद्र आर्य नेतूफानी गजल लिखी लेकिन संजय विद्रोही ने आत्मसमर्पण कर दिया इससे अशोक को शोक हुआ कि लोग लंबी कविता कैसे लिख लेते हैं। बाप भी अकेला हो सकता है यह बता रहे हैं शशि सिंह। इंद्रधनुष काफी दिन बाद दिखा लेकिन पता नहीं परदा झीना क्यों है।अनुगूंज १४ को समेटा आलोक ने तथा ए,बी,सी कथा कही। समाचार की दुनिया के कुयें में पड़ी है अंग्रेजी की भांग और दैनिक जागरण जैसे हिंदी दैनिक भी उसी के दीवाने हैं कुछ ऐसा बता रहे हैं आशीष। आपको देवेंद्र आर्य की एक गज़ल तो यहीं पढ़ा दें इसे टाईप करने में रविरतलामीजी का पसीना बहा है।
हवाएँ दो रुपए में एक कप तूफान लेती हैं
फिर उसके बाद राहत की मलाई छान लेती हैं।
कोई मौसम हो, जैसे औरतें जब ठान लेती हैं
ख़ला में भी हवाएँ अपने तम्बू तान लेती हैं।
बंधी तनख़्वाह वाले हम, छिपाना भी जो चाहें तो
हमारी जेब के पैसे हवाएँ जान लेती हैं।
ग़रीबी की तरह कमज़र्फ होती हैं हवाएँ भी
जरा सी सांस क्या मिलती है, सीना तान लेती हैं।
हवा को हम भले पहचानने में भूल कर जाएँ
हवाएँ राह चलते भी हमें पहचाने लेती हैं।
हम अपने घर में हैं, बाज़ार जाते भी नहीं लेकिन
हवाएँ फिर भी हमको अपना ग्राहक मान लेती हैं।
हमारी तरह थोड़े ही कभी तोला, कभी माशा
हवाएँ ठान लेती हैं तो समझो ठान लेती हैं।
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बुधवार, अक्टूबर 05, 2005
उई माँ!
चर्चाकारः
debashish
वैसे इस मलयालम फोटोब्लॉग प्राणीलोकम के कीड़े इतने डरावने भी नहीं। मज़ा नहीं आया, लगता है आप विंडोज़ एक्सपी के बिहारी संस्करण का प्रयोग नहीं कर रहे?
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मंगलवार, अक्टूबर 04, 2005
क्या यही प्यार है?
चर्चाकारः
debashish
बचपन में "उठो लाल अब आंखे खोलो" कविता सुनकर जागने की आदत बना चुके स्वामीजी अब परेशान हैं अलार्म घड़ी की आवाजों से। अतुल कुछ तरीके बता रहे हैं दुल्हिन को बस में रखने के। हिंदिनी पर अपनी पोस्टों का शानदार सैंकड़ा पूरा करते हुये रवि रतलामी ने अपना प्यार का किस्सा जिस जगह लाकर लटकाया है उससे लोग पूछ रहे हैं, क्या यही प्यार है? नीरज और अनुनाद बता रहे हैं जाल के आगे क्या? देबाशीष पर लगता है आलोक का भूत सवार हो गया है, टेलीग्राफिक पोस्ट लिखने लगे हैं।
सुनीलजी जब बाहर जाते हैं पूछने लगते हैं, "हम कहां आ गये हैं?" कहकशां में संगदिल (पत्थर दिल) सनम से एकतरफा बात शुरु हुयी। शशि सुना रहे हैं भोजपुरी कविता और भजन। इधर योगीजी दिखा रहे हैं माया के खेल, उधर तरुण बता रहे हैं एक और चौपाल के बारे में। जब से जीतेन्द्र ने नारद पर कलाकारी शुरु की है नारद का रोज रूप परिवर्तन हो रहा है। कभी तो पोस्ट पूरी की पूरी ही दिख जती है और आज की खबर के अनुसार नारदजी हर पोस्ट के दो विवरण दे रहे हैं - सरकारी अंदाज में; एक मूल प्रति, एक कार्बन कापी। कोई बात नहीं मियां, लगे रहो!
सुनीलजी जब बाहर जाते हैं पूछने लगते हैं, "हम कहां आ गये हैं?" कहकशां में संगदिल (पत्थर दिल) सनम से एकतरफा बात शुरु हुयी। शशि सुना रहे हैं भोजपुरी कविता और भजन। इधर योगीजी दिखा रहे हैं माया के खेल, उधर तरुण बता रहे हैं एक और चौपाल के बारे में। जब से जीतेन्द्र ने नारद पर कलाकारी शुरु की है नारद का रोज रूप परिवर्तन हो रहा है। कभी तो पोस्ट पूरी की पूरी ही दिख जती है और आज की खबर के अनुसार नारदजी हर पोस्ट के दो विवरण दे रहे हैं - सरकारी अंदाज में; एक मूल प्रति, एक कार्बन कापी। कोई बात नहीं मियां, लगे रहो!
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गुरुवार, सितंबर 29, 2005
पहला असमिया चिट्ठा?
चर्चाकारः
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मेरी जानकारी में यह शायद पहला असमिया ब्लॉग है जो असमिया लिपी का प्रयोग करता है। दुख की बात यह कि इस ब्लॉग की कोई फीड प्रकाशित नहीं होती।
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रविवार, सितंबर 25, 2005
नये रंगरूट?
चर्चाकारः
debashish
मेरा मतलब कुछ नये चिट्ठे से था। स्वागत है बंगलौर के वरुण सिंह का जो कहते हैं बाकी सब ठीक है, दिल्ली के पराग कुमार खड़े हैं बीच-बज़ार, दिल्ली की ही शालिनी नारंग से मिलने का माध्यम है झरोखा, पुरू ने शुरु कर दिया है अपना राग अपनी ढपली पर, अहमदबाद के संजय ने प्रारंभ की जोग लिखी तो उसी शहर के कुमार मानवेन्द्र ने रखा है एक मनोविचार। साथ ही पढ़ें निवेदिता की उत्तरा और निशांत उवाच्।
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शुक्रवार, सितंबर 23, 2005
बबुरी का बबुआ - भये प्रकट कृपाला
चर्चाकारः
debashish
बबुरी बालक राजेश कुमार सिंह के जन्मदिन पर आशीष-वर्षा जारी रखी इंद्र कुमार अवस्थी ने। इधर विद्रोही कवि आंसुओं रसायन शास्त्रीय व्याख्या कर रहे हैं। रविरतलामी के गजलों के प्रयोग जारी हैं तथा हृदयेश जी के बारे में संस्मरण की जानकारी दे रहे हैं। सुनील दीपक सच्ची प्रेमकहानी बयान कर रहे हैं तथा लक्ष्मी नारायण गुप्ता जता रहे हैं हिन्दी प्रेम। इधर जीतेन्दर बाबू पूरी तरह से नारद का काम संभाल लिहिन हैं तथा जानकी स्वयंवर के नारदजी की तरह जगह-जगह आशीर्वाद छितरा रहे हैं।
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गुरुवार, सितंबर 22, 2005
आओ बैठें, कुछ देर साथ में
चर्चाकारः
debashish
हिंदी जाल जगत:आगे क्या आलोक द्वारा आयोजित चौदहवीं अनुगूंज विषय है. साथियों के आलेख आना शुरु हो गये हैं. इसके पहले राजेश ने तेहरवीं अनुगूंज का विषय दिया था - संगति की गति. अपने लेख भेजिये अभी भी देर नहीं हुई है. परिचय की कडी में राजेश के जन्मदिन के अवसर पर उनको शुभकामनायें दी गयीं. इस बीच अनुनाद ने हिंदी सुभाषित का काम पूरा किया. जीतेन्द्र नौ महीने (साल के) पूरे होने के बाद कैलेंडर बनाने का तरीका बता रहे हैं. नींद के बारे में बताने के बाद सुनील दीपक जी दोस्तों के बारे में बता रहे हैं. अक्षरग्राम पर आवाजाही के बारे में बताने वाले पंकज अपना सारा काम अपने साथियों को सौंप देने का मन बना चुके हैं. नारद पहले जीतेन्द्र ने झपट लिया अब सर्वज्ञ को थमा रहे हैं ये रमण कौल को. कवितायें भी लिखी गयीं इस बीच. फ़ुरसतिया लिखते है:
संजय विद्रोही कहते हैं:
प्रत्यक्षा सपनों की सोनचिरैया से रूबरू हैं:
आओ बैठें, कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें, सुन लें, बात-बात में।
गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
संजय विद्रोही कहते हैं:
जीने को हैं बहुत जरूरी,
आधे सपने, नींदें पूरी.
चाहा जिसको उसे ना पाया,
साध हमारी रही अधूरी
प्रत्यक्षा सपनों की सोनचिरैया से रूबरू हैं:
सपनों की वह सोनचिरैया
छाती में दुबकी जाती थी
उसकी धडकन मुझसे मिलकर
बरबस मुझे रुलाती थी
सपनो की भर घूँट की प्याली
मन मलंग बन उडती थी
याद को तेरी फिर सिरहाने रख
चैन की नींद सो जाती थी
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गुरुवार, सितंबर 15, 2005
यूजनेट के माध्यम से विचार-विमर्श
चर्चाकारः
debashish
चिट्ठों के बाद क्या हो? यह सवाल आलोक ने उठाया था. विनय ने सुझाया है कि ब्लाग के आगे यूजनेट समूह के माध्यम से विचार-विमर्श के बारे में विचार किया जाना चाहिये. आप भी अपने सुझाव दें. संबंधित कडि़यां हैं गूगल चर्चा और गूगल संवाद.
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सोमवार, सितंबर 12, 2005
मराठी चिट्ठों का नायाब ख़जाना
चर्चाकारः
debashish

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चक्र चलता रहे
चर्चाकारः
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दो चिट्ठे नदारद तो दो नये चिट्ठे हुए अवतरित! मुम्बई के अतुल सबनिस का ठेले पे हिमालय और खड़गपुर के रूपक अग्रवाल का हिन्दी ब्लॉग। स्वागत है!
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शनिवार, सितंबर 10, 2005
विकसित देश के आपदा प्रबंधन
चर्चाकारः
debashish
अमेरिका में आये तूफान से पीडित लोगों के प्रति कैसा संवेदनशून्य रवैया रहा अमेरिकी सरकार के नुमाइंदों का, इसके बारे में पड़ताल कर रहे हैं स्वामीजी. इसके पहले आशीष ने अमेरिका जैसे विकसित देश के आपदा प्रबंधन की भारत जैसे विकासशील देश के शहर मुंबई के आपदा प्रबंधन से तुलना की. जालस्थल को लोकप्रिय बनाने के फंडे पाइये आलोक से. हिंदी के १०० चिट्ठे पूरे होने के बाद की रूपरेखा की कल्पना कर रहे है आलोक. इधर रविरतलामी ने अपने जीवन के छींटेदार अनुभव बताने शुरु किये. दावतें भी कैसे बवाले-जान बन जाती हैं, जानिये सुनीलदीपकजी से. मंगल पर दंगल का आयोजन कर रहे हैं देवाशीष. लालादीन दयाल अमेरिका से भारत क्यों भागना चाहते हैं जानिये लक्ष्मी गुप्ता जी से. हडबडी मत करिये आराम से पढियेगा पूरा कवि सम्मेलन है उधर. आशीष कयास लगा रहे हैं भारत के विकास के बारे में. भारतेन्दु हरिशचन्द्र् की हजलें पढिए रचनाकार में. हनुमानजी संतोष की शिक्षा देते हैं. जब सब लोग जीतेन्द्र को जन्मदिन की शुभकामनायें दे रहे थे तो वे पता नहीं कहां केक काट रहे थे!
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गुरुवार, सितंबर 08, 2005
अस्सी नब्बे पूरे सौ!
चर्चाकारः
debashish
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मंगलवार, सितंबर 06, 2005
अमर सिंह का ब्लॉग सन्यास?
चर्चाकारः
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यह कदम राजनैतिक या नहीं कहा नहीं जा सकता पर कथित एकलौते सेलिब्रिटी ब्लॉगर अमर सिंह ने अपना खेमा गिरा दिया है ऐसा प्रतीत होता है।
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रविवार, सितंबर 04, 2005
कैटरीना का कहर-दरकती चुप्पी
चर्चाकारः
debashish
अमेरिका के कैटरीना के कहर के नजारे सुनिये आशीष से तथा आपदा प्रबन्धन में हुई उदासीनता का गणित जानिये स्वामीजी से. मदर टेरेसा क्या वास्तव में संत थीं इस पर विचार कर रहें हैं रमन कौल. शास्त्रीय संगीत की समझ आते-आते आती है कुछ ऐसा मानना है सुनील दीपक का. अगर आदमी अमर हो जाये तो क्या समस्यायें होंगी उनकी कल्पनायें रवि करते हैं. निठल्ले तरुन गैस की कमी, ड्रेस कोड से जूझते हुये अंत में सुभाषित सहस्र में अपना योगदान देते पाये गये. भोलाराम कहते हैं उनको लिखने में 'डिस्टर्ब' न किया जाये. काली की खिचडी का स्वाद खुद चखिये. हिंदी ब्लाग जगत की सक्रिय चिट्ठाकार प्रत्यक्षा के बारे में पढिये फुरसतिया में.
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शुक्रवार, सितंबर 02, 2005
इंडिब्लॉग रिव्यू
चर्चाकारः
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गुरुवार, सितंबर 01, 2005
हिंदी सुभाषित सहस्र
चर्चाकारः
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अनुगूंज के बारहवें आयोजन का अवलोकन करते हुये अनुनाद सिंह ने सारे हिंदी चिट्ठाकारों द्वारा भेजे गये सुभाषितों के संकलन का उल्लेखनीय काम किया। आशीष कुमार को यह विक्रम ने बताया कि केनेडी क्यों मुस्कराये थे। सुनील दीपक जी यादों के रंग में डूब गये। लक्ष्मी नारायण गुप्ता नयी गज़ल के साथ हाजिर हैं। वहीं रवि रतलामी बता रहे हैं कि ज्यादा वजन की चिंता नहीं करनी चाहिये।
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बिपाशा का अपहरण
चर्चाकारः
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सड़क पर शुतुरमुर्ग नाचा
चर्चाकारः
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अतुल का ध्यान आजकल उछलकूद् नाच-गाने देखेने में लगा है। कहीं बालाओं के कन्धों पर सवार, बालक-स्पर्श हेतु, उचकती बालिका को दिखाकर पूछते हैं ये क्या (तमाशा) हो रहा है। कहीं सड़क के शुतुरमुर्ग या घर के जानवर। नितित बागला ने अपने शौक बताने शुरु किये। भोलाराम मीणा बहुत दिन बाद दिखे। आते ही किसी बीमारी के शिकार हो गये। बीमारी का एक इलाज मिला तो किसी ने इनका मेल बाक्स फाड़ दिया। इनके ब्लॉग-परिचय में लिखा है कि "हम फोटो में सबसे लम्बे लडके हैं" लेकिन फोटो अकेले की है वह भी बैठी।
उधर रवि रतलामीजी बता रहे हैं कि ब्लॉग इतिहास की बात हो गई - पाडकास्ट की बात करो। आनलाइन उपन्यास का बाहरवां भाग भी पढ़ा जाये। आशीष ने हिंदिनी पर अपनी पहली पोस्ट में कार्बन उत्सर्जन के बारे में बताया। रविरतलामी जी ने रचनाकार पर अजय जैन की व्यंग्य कविता लिखी जो कि पढ़ी नहीं जा रही है कुछ समस्या है शायद रचनाकार में। लक्ष्मीनारायण गुप्त भरी जवानी में 'प्रौढ़ प्रणय निवेदन' कर रहे हैं। जीतेन्दर को लगता है उनको लोग सुने पर वो हमेशा की तरह खजूर पर लटकना पसन्द करते हैं। फुरसतिया में कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता पढ़ें।
उधर रवि रतलामीजी बता रहे हैं कि ब्लॉग इतिहास की बात हो गई - पाडकास्ट की बात करो। आनलाइन उपन्यास का बाहरवां भाग भी पढ़ा जाये। आशीष ने हिंदिनी पर अपनी पहली पोस्ट में कार्बन उत्सर्जन के बारे में बताया। रविरतलामी जी ने रचनाकार पर अजय जैन की व्यंग्य कविता लिखी जो कि पढ़ी नहीं जा रही है कुछ समस्या है शायद रचनाकार में। लक्ष्मीनारायण गुप्त भरी जवानी में 'प्रौढ़ प्रणय निवेदन' कर रहे हैं। जीतेन्दर को लगता है उनको लोग सुने पर वो हमेशा की तरह खजूर पर लटकना पसन्द करते हैं। फुरसतिया में कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता पढ़ें।
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बुधवार, अगस्त 31, 2005
रवि रतलामी का इन्टरव्यू
चर्चाकारः
debashish
मेल एण्ड गार्जीयन में रवि रतलामी से बातचीत की आधार पर क्षेत्रीय भाषाऒं के लिये की उन्नति के लिये जुगत की बारे में सूचना उत्साह वर्धक है। मजहब और शोर में रिश्ता तलाश रहे हैं लक्ष्मीं गुप्ता। सुनील दीपक रुपये-पैसे की कहानी बता रहे हैं उधर जीतेन्द्र को सबकुछ मुफ्त में चाहिये। बारहा के बारे में जानकर उड़ने लगे। इधर सालोक्य साइबर ठगी के शिकार हुये उधर कालीचरन कह रहे हैं कैंसर से बचना है तो आलू छोड़ो। स्वामी जी ने बताया कि तूफानों के नाम कैसे रखे जाते हैं। इस बीच आशीष ज्ञानविज्ञान चिट्ठे को हिंदिनी पर ले आये।
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सोमवार, अगस्त 29, 2005
नये हस्ताक्षर
चर्चाकारः
debashish
रविवार, अगस्त 28, 2005
मनोरंजन से भजन की ओर
चर्चाकारः
debashish
देश दुनिया में जब होम्योपैथी पर सवाल उठ रहे हैं तब पंकज का यह पूछना कि 'मैं कौन हूं' सोचने को मजबूर करता है। एक ओर जहां सुनील दीपक सड़क के कलाकारों से मिलवाते हैं वहीं संकेत गोयल मिलवाते हैं सैनी जी से जो शहर में बिजली की मांग करते हुये आत्महत्या की धमकी देते हुये पकड़े गये। स्वामीजी धमाका करने के बाद अण्ड-सण्ड-प्रचण्ड की याद में डूब गये जब यादों से उबरे तो मनोरंजन से भजन की तरफ रुख किया जहां कि आलोक कुमार तमाम ४०४ की झड़ियां लिये बैठे थे, शायद इनकम टैक्स रिटर्न का मामला हो।
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शनिवार, अगस्त 27, 2005
चाय की चुस्की के साथ ब्लागिंग के सूत्र
चर्चाकारः
debashish
ऐसा भी कहीं होता है कि आप सुनील दीपक की बनाई चाय की चुस्कियां लेते हुये फुरसतिया के ब्लागिंग के सूत्र घोंट रहे हों। अतुल तो कहते हैं कि ऐसा केवल भारत में ही संभव है। उधर स्वामीजी अपनी चुनरी का दाग दिखा रहे हैं, उसी के बगल में खड़े लक्ष्मीगुप्त पर किसी महाकवि की आत्मा सवार हो गई जिसका इलाज शायद यही है कि रवि रतलामी से भारतीय भाषाओं में काम करने का तरीका सीखा जाये तथा प्यार का इम्तहान दिया जाय।
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गुरुवार, अगस्त 25, 2005
विकलांगता का यौन जीवन पर असर
चर्चाकारः
debashish
विकलांगता का यौन जीवन पर असर क्या असर पड़ता है यह जानने के लिये सुनील दीपक ने अपने अध्ययन में विकलांग लोगों से बात की। नतीजे शायद आप भी जानना चाहें। ए.टी.एम केवल पैसा ही नहीं निकालता है। यह खोये हुये घरवालों को भी खोज सकता है। कैसे? यह तो रवि रतलामी से पूछिये। इष्टदेव से प्रत्यक्षा क्या मांग रहीं हैं देखिये। चिट्ठों की तारीफ में क्या कहते हैं अमरसिंह, पढ़िये।
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स्वागत है!
चर्चाकारः
debashish
क्योंकि चौबेजी आये हैं...
चर्चाकारः
debashish
लोग पिक्चरें देख रहे हैं, पिक्चरें जो न करायें। नये-नये अनुभव हो रहे हैं। किसी के कपड़े खराब हो रहे हैं, कोई दस नंबरी बनकर सरकार बनवा रहा है। कोई यहूदियों के खतने देख रहा है, किसी को बचपन की छलिया दुबारा याद आ रही है। अखबार भी बुद्धू बनाने पर तुले हैं। लोग भी खाली कविता लिखने का प्लान बनाकर सोचते हैं कि कविता लिख गई। बात यहीं तक रहती तो कोई बात थी। अब तो लोगों को अंधरे में भी दिख रहा है साफ। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि लोग नालायकियों तक को तलाक देने पर तुल गये हैं। वो तो कहो बहुत दिन बाद चौबेजी दिख गये। आते ही शंका-समाधान में जुट गये - कुछ हालात संभले।
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सोमवार, अगस्त 22, 2005
जब जागो तब सबेरा
चर्चाकारः
debashish
अनुनाद सिंह की सुभाषित-वर्षा में भीगते हुये अगर आपको कोई ऐसा दोस्त दिख जाये जो क्विकस्टार की बात शुरु कर दे तो भागने में ही आपकी भलाई है। भले ही आपको गुजरा जमाना याद हो लेकिन आप अपने ब्लाग का जन्मदिन भूल सकते हैं। याद भी आये तो तब जब दूसरे लोग केक काट चुके हों। लेकिन देर कहीं नहीं होती, जब जागो तब सबेरा। देर करने से दंगा भी हो सकता है। इसलिये उचित यही है कि किसी कमाल का इंतजार करने की बजाय टिप्पणी धर्म निभाया जाये।
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शुक्रवार, अगस्त 19, 2005
बदलाव तो होता ही है
चर्चाकारः
debashish
- सभ्यता के नशेड़ी: निठल्ला होंगे तो नशा लाजिमी है। अपने निठल्ले भी शिकार हो गये -नशे के। नशा है सभ्यता का। देखें शायद आप भी इसमें डूबना चाहें।
- बदलाव तो होता ही है: यात्रा में कुछ तो बदलेगा ही
लगता है कि बहुत हुआ
कुछ करने को अब नहीं बचा
पर जब भी मिलते हो फिर से
बंधन एक और खुल जाता है
कुछ हर बार बदल जाता है।
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बुधवार, अगस्त 17, 2005
अपना-अपना धंधा है
चर्चाकारः
debashish
अपना-अपना धंधा है। भीख मांगना अगर पेशा है तो कुछ अंदाज भी पेशेवराना होगा ही। मजबूरी हो या अलाली भीख मांगने में भी कम मेहनत नहीं लगती। इसके आगे का सच जानने की उत्सुकता है तो सुनीलजी के ब्लाग तक चलना पड़ेगा ।
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मंगलवार, अगस्त 16, 2005
ऐसी आजादी और कहां?
चर्चाकारः
debashish
- ऐसी आजादी और कहां?: जो मिल जाता है वह नाकाफी लगता है। रवि रतलामी आजादी की ५९वीं वर्षगांठ पर पूछते हैं क्या ये सचमुच आजाद हैं।
- गीत बनाओ सुर मिलाओ: रमण कौल का मन है कि भारत की हर भाषा में 'मिले सुर मेरा तुम्हारा'को उपलब्ध करा सकें। आप अपनी भाषा में यह गीत लिखकर हाथ बंटा सकते हैं।
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सोमवार, अगस्त 15, 2005
आजादी का घालमेल
चर्चाकारः
debashish
आजादी का घालमेल: नीरज दीवान आज के भारतीय समाज तथा राजनीति के घालमेल को देखने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीति की मंडी बड़ी नशीली है
इस मंडी ने सारी मदिरा पी ली है।
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रविवार, अगस्त 14, 2005
उगता हुआ सूरज
चर्चाकारः
debashish
- मंगल पांडे-उगता हुआ सूरज: मंगल पांडे के बारे में तफसील से पढ़ें की बोर्ड के सिपाही में।
- अथः कालेज पुराणे संजय कथा: आशीष श्रीवास्तव के कालेजिएट किस्से सुनकर आप अपने को तलाशने लगेंगे कि इनमें मैं कहां हूं!
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शुक्रवार, अगस्त 12, 2005
कपड़े आपका परिचय देते हैं
चर्चाकारः
debashish
- आपके व्यक्तित्व की झलक देते हैं आपके कपड़े। कैसे? ये बता रहे हैं- प्रतीक।
- हैरी पाटर हवा हवाई है: हैरी पाटर आज का 'आइकन' है। इसका सच क्या है जानने की कोशिश की गयी है । सवाल-जवाब भी दिलचस्प हैं।
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शुक्रवार, अगस्त 05, 2005
शहरों के गाइड
चर्चाकारः
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अगर आप किसी शहर में भटक गये हों तो परेशान न हों। किसी कैफे में जाकर नेट पर रोजनामचा पढ़ें। आपको पता चल जायेगा आप कहां हैं। अतुल ने खास प्रोग्राम बनाया है इसके लिये।अभी कुछ खास शहर से बात शुरु की गयी है। बाकी बाद में जुड़ेंगे।
लेकिन किसी भी शहर में घुसने के पहले वंदना के सुरों में कुछ सुर जरूर मिला लें। लक्ष्मी गुप्ता जी सुना रहे हैं वंदना।
जीतेंद्र चौधरी लगता है सबको भारत दर्शन करा के ही मानेंगे। फन वैली तथा पहाड़ी रास्तों के खूबसूरत नजारे देखिये। हां अगर कहीं देश की
बात चली तो भ्रष्टाचार तो आयेगा ही रवि रतलामी के साथ।
जो डरता है वही डराता है। आजका सबसे भयभीत समाज है वह जिसके पास सबसे ज्यादा ताकत है। यह मैं नहीं खाली-पीली वाले आशीष श्रीवास्तव कह रहे हैं:-
कहा जाता है की इस देश का इतिहास ही हिंसा से भरा हुआ है. वो रेड इंडियनों से संघर्ष हो, या उसके बाद का खूनी स्वतंत्रता संग्राम. विश्व युद्ध और उसके बाद शीत युद्ध्. और आंतक के खिलाफ युद्ध. ये सभी कारण है इस भय का.
लेकिन क्या ये सच है ? पता नही. नियति कि विडंबना दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र और सबसे ज्यादा भयभीत जनता !
लेकिन किसी भी शहर में घुसने के पहले वंदना के सुरों में कुछ सुर जरूर मिला लें। लक्ष्मी गुप्ता जी सुना रहे हैं वंदना।
जीतेंद्र चौधरी लगता है सबको भारत दर्शन करा के ही मानेंगे। फन वैली तथा पहाड़ी रास्तों के खूबसूरत नजारे देखिये। हां अगर कहीं देश की
बात चली तो भ्रष्टाचार तो आयेगा ही रवि रतलामी के साथ।
जो डरता है वही डराता है। आजका सबसे भयभीत समाज है वह जिसके पास सबसे ज्यादा ताकत है। यह मैं नहीं खाली-पीली वाले आशीष श्रीवास्तव कह रहे हैं:-
कहा जाता है की इस देश का इतिहास ही हिंसा से भरा हुआ है. वो रेड इंडियनों से संघर्ष हो, या उसके बाद का खूनी स्वतंत्रता संग्राम. विश्व युद्ध और उसके बाद शीत युद्ध्. और आंतक के खिलाफ युद्ध. ये सभी कारण है इस भय का.
लेकिन क्या ये सच है ? पता नही. नियति कि विडंबना दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र और सबसे ज्यादा भयभीत जनता !
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सोमवार, अगस्त 01, 2005
हम जहाँ हैं, वहीं से आगे बढेंगे
चर्चाकारः
debashish
खबर लिखे जाने तक हिंदी चिट्ठों की संख्या ७७ हो गई। इस बीच हिंदी चिट्ठाजगत में निम्नलिखित नये चिट्ठे जुड़े :
सभी चिट्ठाकारों का हिंदी चिट्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है इन चिट्ठाकारों को नियमित रूप से अपने विचार प्रकट करने का पर्याप्त समय मिलेगा जो कि हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा।
चर्चा की शुरुआत अक्षरग्राम से। ग्याहरवीं अनुगूंज का विषय था - "माजरा क्या है?"। अवलोकनी चिट्ठा लिखते समय पाया गया कि चौदह लोगों ने कुल सोलह पोस्ट लिखीं। यह संख्या अनुगूंज में अभी तक की सर्वाधिक है। अगली अनुगूंज की घोषणा होना अभी बाकी है। लाइव जर्नल की शुरुआत की सूचना भी अक्षरग्राम का आकर्षण रही। अतुल ने लगता है अपनी तारीफ का हिस्सा दुनिया को दिखाना जरूरी समझा सो चौपाल पर आ गये धन्यवाद ज्ञापन करने। स्वामीजी ने हालांकि बताया कि तारीफ उनके लेखन की की गई थी, उनकी नहीं।
सारिका सक्सेना बताती हैं:
एक नज़र का ही तो कमाल है कि:
मन तितली की चाहत है :
इधर-उधर की बताते हुये रमण ने बताया कि वर्डप्रेस का नया संस्करण आ गया। रघुबीर टालमटोल के माध्यम से असहज सवाल टालने का तरीका बताया । लोग किस-किस रास्ते चिट्ठे पर पहुँचते हैं यह बताना भी नहीं भूले।
इन्द्रधनुषी छटा बिखेरते हुये नितिन बागला ने लिखा :
जीवन से जो मिला सो स्वीकार किया :
विचारोत्तेजक "माजरा क्या है?" लिखने के बाद स्वामी खुश हुये पहली ब्लागर मीट पर। कला के ध्येय से शुरु हुई बात बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चालाकियों तक पहुंची। अनुराग जैन के विचार पठनीय है इस मुद्दे पर। नंगई में कला की संभावनायें भी हैं
कुछ ऐसा ही लगता है यह पोस्ट पढ़कर। भारत के विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की खबर पर शंका करते हुये चचा गालिब के पास चले गये कुछ सलाह लेने।
राजेश के कल्पवृक्ष से अब तक की सबसे अच्छी कविता उपजी। संकल्प आशावादी है, नमोहक है :
माजरा बयान करते-करते आशीष श्रीवास्तव पता नहीं कैसे अपनी व्यथा-कथा कहने लगे पता ही नहीं चला।
रवि रतलामी के लेख में भ्रष्टाचार मुख्य विषय रहा । कम्प्यूटर, सड़क, बाबू-अधिकारी, देश, सब जगह भ्रष्टाचार फैला है। इन हालात का मुकाबला बहुआयामी दिमाग से ही किया जा सकता है।
सुनील दीपक जो कह न सके उसे सहज भाषा खूबसूरत, बोलते चित्रों से बताते हैं। @ का हिंदी अनुवाद, लंदन का बांगलादेश लिखने के बाद मनमोहनसिंह की ब्रिटिशप्रशंसा पर अपना विचार व्यक्त किया। विदेश मेंगंगा उत्सव मनाते ही विरह का दुख झेलना पड़ा।
देश-दुनिया की रोजमर्रा की खबरों को अपनी नजरों से हिंदी ब्लागर ने पेश करना शुरु किया। कुछ प्रमुख खबरे हैं - खेल ओलंपिक मेज़बानी का, ओपन-सोर्स जर्नलिज़्म या जनपत्रकारिता, आख़िरकार झुका अमरीका, स्टीव जॉब्स की ज़िंदगी के तीन पड़ाव। आशा है कि हिंदी ब्लागर का नाम भी जल्द ही पता चल जायेगा।
निठल्ले तरूण सिर्फ एक लेख लिख कर रह गये - माजरा क्या है?
देबाशीष आजकल शायद समय की कमी के कारण सिद्धों की भाषा मे बात करने लगे हैं। लिख दिया, मतलब आपनिकालें।
अनुनाद सिंह ने बहुत मेहनत करके इंटरनेट पर मौजूद हिंदी से संबंधित कड़ियों को इकट्ठा करने का सराहनीय काम किया है।
संजय विद्रोही ने अपना चिट्ठा शुरु किया - प्रतिमांजली। कई पुस्तकें प्रकाशित हैं, कई प्रकाश्य हैं। "कभी यूँ भी तो हो" नयी पुस्तक है। बिटिया जब घर से चली, काजल, ...रेत पर हादसा कवितायें लिखीं। मन के दोहे तीन बार पोस्ट किये - कहां तक बचेगा पढ़ने वाला।
प्रत्यक्षा ने मोगरे की खुशबू से बात शुरू की :
बेसाख्ता हंसी से चेहरे पर नूर बिखर गया:
तय नहीं कर पातीं कि खामोशी का सुकून है सुकून की खामोशी :
प्रेम पीयूष ने बचपन की हायकू कविता नानी-माँ
को समर्पित करते हुये लिखी :
लघु कहानी के बाद कविता की अर्थी निकाल दी :
जिंदा बची नज्म के साथ चिट्ठाकार मंडली को नमो नमः किया :
ब्रज से दूर ब्रजवासियों - अमित अग्रवाल तथा संकेत गोयल
ने संयुक्त चिट्ठा शुरु किया। अमीम सयानी से शुरु हुयी बात मंगल पाण्डेय से होते हुये शोध के लड्डुओं तक पहुंची। लंदन के विस्फोट अमेरिकी नीति की पड़ताल करने की कोशिश की गयी।
महावीर शर्मा जी ने मिर्जा पर पहले अपना हाथ तथा फिरबात साफकी।
मनोज ने बताया :
भारत के आने वाले कल पर नजर डालते हुये कहते हैं मनोज :
अनूप भार्गव निवेदन करते हैं:-
जिंदगी की जटिल गणित आसान बनाने के तरीके
अनूठे हैं :
शशिसिंह गुजरात पुलिस के नजारे दिखा के गालिब की आबरू के बारे में बताने लगे। फिर भोजपुरी लिखने का मन किया तो किनारे में फंस गये :
प्रेमचंद के बारे में बताते डर इनकी जेब में कब घुस गया ये जान ही न पाये।
आशीष कानपुर की गंदगी से परेशान हैं। मनमोहन सिंह जी ने ब्रितानी शासन की तारीफ करके और परेशान कर दिया। लाल रत्नाकरजी की कलाकृतियों से कुछ सुकून मिला कि उत्तरप्रदेश की हालत ने नाक में दम कर दिया।
रति सक्सेना ने असमय साथ छोड़ जाने वाले साथी चित्रकार के बारे में मार्मिक संस्मरण लिखा :
रोजनामचा में अतुल ने भैंस के दर्द की कहानी आगे बढ़ाई। वहीं अमेरिकी संस्मरणों की किस्त की अगली कड़ी पेश की :
केडीगुरू ने मजेदार आपबीती सुनायी। केडीगुरू आफिस से घर का रास्ता लोकल ट्रेन से तय करते हैं। एक दिन स्टेशन जाते समय केडीगुरू फुटपाथ पर चल रहे थे। कुछ सोचते सोचते केडीगुरू का सूक्ष्म शरीर चाँदनी चौक पहुँच गया और स्थूल शरीर टेनेसी के फुटपाथ पर चलता रहा। रास्ते में एक भीमकाय अश्वेत झाड़ू लगा रहा था और अमेरिकन सभ्यतानुसार केडीगुरू से "हाई मैन, हाऊ यू डूईंग" बोला। केडी गुरू बेखुदी में सोचने लगे कि क्या जमाना आ गया है जो पढे लिखे अँग्रेजी दाँ लोगो को भी झाड़ू लगानी पड़ रही है। केडीगुरू उसके हालत पर अफसोस प्रकट कर सरकार को कोसने जा ही रहे थे कि उन्हे ख्याल आया कि वे चाँदनी चौक में नही अमेरिका में हैं जहाँ अनपढ भी अँग्रेजी ही बोलते हैं।"
अमरसिंहजी ने लिखा मूँछे हों तो राजीव शुक्ल जैसी ।इस पर रविरतलामी ने पूछा है - और तोंद हो तो..। जबाब तो नहीं दिया पर चाहा है कि भारत का हर रेलवे स्टेशन भोपाल जैसा साफ-सुथरा हो तो कितना अच्छा हो।
सुधीर शर्मा ने बड़ी मेहनत से अपना ब्लाग यूनीकोड में शुरु किया तथा बाज़ार का दौरा किया :
पंकज माजरे की चिकाई करके चुपचाप बैठ गये।
कालीचरण भोपाली अंग्रेजी में भी चिट्ठा शुरु कर दिये। कम्प्यूटर श्रमिकों की कुछ समानतायें बतायीं :
कौन बनेगा करोड़पति की बात करते हुये हनुमान जी बताते हैं :
पुरू ने सनसनीखेज तहलका पत्रकारिता के अंदाज में १-२-३ शुरु किया। पांचवी पोस्ट तक पहुंचते-पहुंचते भंडाफोड़ का माहौल बन गया।
फुरसतिया में ऐतिहासिक हिंदी-अंग्रेजी ब्लागर-(परिवार)कथाकार-पाठक-संयोजक मीट का विवरण दिया गया। इसका ठेलुहा संस्करण होना अभी बाकी है। इस विवरण के बाद ही बादलराग शुरु गया । महिलाओं की समाज में क्या स्थिति है यह पता चलता है तब जब किसी अड़ियल ससुराल वाले से पाला पड़ता है। एक दूसरी ब्लागरमीट जो कि रेलवे प्लेटफार्म पर हुयी उसका विवरण भी दिया गया।
अमित वर्मा भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की कल्पना करते हैं।
भविष्य की योजनायें कैसे बनायें बताते हैं अतानु डे। शिक्षा व्यवस्था पर भी नजर डालते हैं अतानु। गौतम घोष तरीका बताते हैं सफल मैनेजर बनने का।
दहेज का भूत समाज का पीछा नहीं छोड़ रहा है। सुनील लक्ष्मण बता रहे हैं कुछ किस्से।
मोहे गोरा रंग दई दे के बाद फेयर एंड लवली के बहाने गोरे रंग की महिमा बता रहे हैं विक्रम। देशी पंडित आपको बतायेगा कुछ चुनिंदा पठनीय ब्लाग पोस्ट के बारे में। रागदरबारी में श्रीलाल शुक्ल ट्रक महिमा बताते हुये कहते हैं - उसे (ट्रक को) देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों से बलात्कार करने के लिये हुआ है। ट्रक से शहरों की पीड़ा की बानगी दे रहे हैं -सुनील। औरत होने की परेशानियों पर नजर डालती हैं चारु तथा उमा। कुछ किस्से बताती हैं कि कितना कठिन है महिलाओं के लिये रोजमर्रा का जीवन जहां पुरुष की नजर बहानों से उनके शरीर पर लगी रहती है।
- इन्द्रधनुष - नितिन बागला
- जो न कह सके - सुनील दीपक
- देश-दुनिया - हिंदी ब्लागर
- सुमीर शर्मा हिन्दी में - सुमीर शर्मा
- पेज १-२-३ - पारु
- प्रतिमांजली - संजय विद्रोही
- ब्रज से दूर ब्रजवासी की चिट्ठियाँ - अमित अग्रवाल/संकेत गोयल
- हिन्दी - अमित अग्रवाल
- अभिप्राय - राजेश कुमार सिंह
सभी चिट्ठाकारों का हिंदी चिट्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है इन चिट्ठाकारों को नियमित रूप से अपने विचार प्रकट करने का पर्याप्त समय मिलेगा जो कि हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा।
चर्चा की शुरुआत अक्षरग्राम से। ग्याहरवीं अनुगूंज का विषय था - "माजरा क्या है?"। अवलोकनी चिट्ठा लिखते समय पाया गया कि चौदह लोगों ने कुल सोलह पोस्ट लिखीं। यह संख्या अनुगूंज में अभी तक की सर्वाधिक है। अगली अनुगूंज की घोषणा होना अभी बाकी है। लाइव जर्नल की शुरुआत की सूचना भी अक्षरग्राम का आकर्षण रही। अतुल ने लगता है अपनी तारीफ का हिस्सा दुनिया को दिखाना जरूरी समझा सो चौपाल पर आ गये धन्यवाद ज्ञापन करने। स्वामीजी ने हालांकि बताया कि तारीफ उनके लेखन की की गई थी, उनकी नहीं।
सारिका सक्सेना बताती हैं:
उदासी और मन का जरूर
कविता से कुछ गहरा नाता है;
जहां घिरे कुछ बादल गम के,
गीत नया बन जाता है!
एक नज़र का ही तो कमाल है कि:
मांग मेरी मोती, सितारों से भर गई।
माथे पे मेरे आज महताब जगमागाया है।
मन तितली की चाहत है :
संग तुम्हारे निकले घर से;
बढ के कोई नज़र उतारे।
इधर-उधर की बताते हुये रमण ने बताया कि वर्डप्रेस का नया संस्करण आ गया। रघुबीर टालमटोल के माध्यम से असहज सवाल टालने का तरीका बताया । लोग किस-किस रास्ते चिट्ठे पर पहुँचते हैं यह बताना भी नहीं भूले।
इन्द्रधनुषी छटा बिखेरते हुये नितिन बागला ने लिखा :
बहुत दिनो से सोच रहे लिखना हिन्दी ब्लोग,
ठहरे पक्के आलसी, लगा नही सन्योग।
लगा नही सन्योग आज शुभ दिन यह आया,
"इन्द्रधनुषी" चिट्ठा यह अस्तित्व मे आया।
जीवन से जो मिला सो स्वीकार किया :
मैने,
हर हाल मे जीवन को जिया है।
जिस-जिस ने मुझको जो दिया,
मृदु पुष्प भी, कटु शूल भी,
मन से या फिर मन मार कर,
स्वीकार किया है।
विचारोत्तेजक "माजरा क्या है?" लिखने के बाद स्वामी खुश हुये पहली ब्लागर मीट पर। कला के ध्येय से शुरु हुई बात बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चालाकियों तक पहुंची। अनुराग जैन के विचार पठनीय है इस मुद्दे पर। नंगई में कला की संभावनायें भी हैं
कुछ ऐसा ही लगता है यह पोस्ट पढ़कर। भारत के विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की खबर पर शंका करते हुये चचा गालिब के पास चले गये कुछ सलाह लेने।
राजेश के कल्पवृक्ष से अब तक की सबसे अच्छी कविता उपजी। संकल्प आशावादी है, नमोहक है :
हम जहाँ हैं,
वहीं से, गे बढेंगे।
हैं अगर यदि भीड़ में भी, हम खड़े तो,
है यकीं कि, हम नहीं,
पीछे हटेगे।
देश के, बंजर समय के, बाँझपन में,
या कि, अपनी लालसाओं के,
अंधेरे सघन वन में,
पंथ, खुद अपना चुनेंगे ।
या , अगर हैं हम,
परिस्थितियों की तलहटी में,
तो ,
वहीं से , बादलों कॆ रूप में , ऊपर उठेंगे।
माजरा बयान करते-करते आशीष श्रीवास्तव पता नहीं कैसे अपनी व्यथा-कथा कहने लगे पता ही नहीं चला।
रवि रतलामी के लेख में भ्रष्टाचार मुख्य विषय रहा । कम्प्यूटर, सड़क, बाबू-अधिकारी, देश, सब जगह भ्रष्टाचार फैला है। इन हालात का मुकाबला बहुआयामी दिमाग से ही किया जा सकता है।
सुनील दीपक जो कह न सके उसे सहज भाषा खूबसूरत, बोलते चित्रों से बताते हैं। @ का हिंदी अनुवाद, लंदन का बांगलादेश लिखने के बाद मनमोहनसिंह की ब्रिटिशप्रशंसा पर अपना विचार व्यक्त किया। विदेश मेंगंगा उत्सव मनाते ही विरह का दुख झेलना पड़ा।
देश-दुनिया की रोजमर्रा की खबरों को अपनी नजरों से हिंदी ब्लागर ने पेश करना शुरु किया। कुछ प्रमुख खबरे हैं - खेल ओलंपिक मेज़बानी का, ओपन-सोर्स जर्नलिज़्म या जनपत्रकारिता, आख़िरकार झुका अमरीका, स्टीव जॉब्स की ज़िंदगी के तीन पड़ाव। आशा है कि हिंदी ब्लागर का नाम भी जल्द ही पता चल जायेगा।
निठल्ले तरूण सिर्फ एक लेख लिख कर रह गये - माजरा क्या है?
देबाशीष आजकल शायद समय की कमी के कारण सिद्धों की भाषा मे बात करने लगे हैं। लिख दिया, मतलब आपनिकालें।
अनुनाद सिंह ने बहुत मेहनत करके इंटरनेट पर मौजूद हिंदी से संबंधित कड़ियों को इकट्ठा करने का सराहनीय काम किया है।
संजय विद्रोही ने अपना चिट्ठा शुरु किया - प्रतिमांजली। कई पुस्तकें प्रकाशित हैं, कई प्रकाश्य हैं। "कभी यूँ भी तो हो" नयी पुस्तक है। बिटिया जब घर से चली, काजल, ...रेत पर हादसा कवितायें लिखीं। मन के दोहे तीन बार पोस्ट किये - कहां तक बचेगा पढ़ने वाला।
प्रत्यक्षा ने मोगरे की खुशबू से बात शुरू की :
रात भर ये मोगरे की
खुशबू कैसी थी
अच्छा ! तो तुम आये थे
नींदों में मेरे ?
बेसाख्ता हंसी से चेहरे पर नूर बिखर गया:
इक नूर बरसता है
चेहरे पे क्यों हरदम
इसका कुछ तो सबाब
मुझको भी जाता है यकीनन
तय नहीं कर पातीं कि खामोशी का सुकून है सुकून की खामोशी :
आँखें मून्दे लेट जाती हूँ
चारों ओर से लपेट लेती हूँ
समन्दर की लहरें लौट जाती हैं वापस
ये सुकून की खामोशी है
या खामोशी का सुकून ??
प्रेम पीयूष ने बचपन की हायकू कविता नानी-माँ
को समर्पित करते हुये लिखी :
कैसे कहूँ मैं
बचपन छिपा है
मेरा अभी भी ।
खेलता रहा
यौवन के घर भी
छोरा मुझमें ।
लघु कहानी के बाद कविता की अर्थी निकाल दी :
नून-तेल के दायरे से
निकली जब जिन्दगी ।
माल असबाब भरे पङे थे
भविष्य के गोदामों में ।
जिंदा बची नज्म के साथ चिट्ठाकार मंडली को नमो नमः किया :
ब्लाग कहो या चिट्ठा ,खट्टा हो या मीठा
सुलेख हो या कुलेख, मिले तालियाँ या गालियाँ ।
जो मन में आये लिखो, सीखो या सिखाओ
मुफ्त़ में मेरे जैसा कवि-लेखक बन जाओ ।
देशी बोली में कुछ सुनाओ, हम सब दोपाया जन्तु हैं
यहाँ भी कई दल हैं, अच्छे-भले और चपल तन्तु हैं ।
जय रामजी की, अपनी तो एक ही तसल्ली है
अनिर्मित सेतु बनाने को, हमारी एक बानर टोली है ।
ब्रज से दूर ब्रजवासियों - अमित अग्रवाल तथा संकेत गोयल
ने संयुक्त चिट्ठा शुरु किया। अमीम सयानी से शुरु हुयी बात मंगल पाण्डेय से होते हुये शोध के लड्डुओं तक पहुंची। लंदन के विस्फोट अमेरिकी नीति की पड़ताल करने की कोशिश की गयी।
महावीर शर्मा जी ने मिर्जा पर पहले अपना हाथ तथा फिरबात साफकी।
मनोज ने बताया :
ज्ञान एक ऐसी सम्पत्ति है जिसे चोर नहीं चुरा सकता,लुटेरा नहीं लुट सकता और यह एक ऐसी सम्पत्ति है जो बाँटने से घटती नहीं बढ़ती है।
भारत के आने वाले कल पर नजर डालते हुये कहते हैं मनोज :
सो खुदरा दुकानदारी के क्षेत्र में 'वालमार्ट' और 'कैरिफोर' के प्रवेश को लेकर मुझको भी 'फील-गुड' हो रहा है। जरा कल्पना कीजिए कितना सुंदर दृश्य होगा। गला-लंगोट पहनकर 'एक्सप्रेस-बिल्डिंग' के सामने पान-बीड़ी-सिगरेट बेचेगें 'वालमार्ट' वाले और अपने अशोक मल्लिक शेखर गुप्ता के साथ पान खाते हुए एक्सप्रेस के बढ़ते विज्ञापन बढ़ते रेवेन्यू पर चर्चा करेंगे। ये क्या कि भैया अखबार-नवीसों की तरह पान की गुमटी पर पान खाया और जहाँ-तहाँ पीक फेकते हुए जो-सो अखबार में बकते रहे!
अनूप भार्गव निवेदन करते हैं:-
आरती का दिया है तुम्हारे लिये
ज़िन्दगी को जिया है तुम्हारे लिये
एक अरसा हुआ इस को रिसते हुए
ज़ख्म फ़िर भी सिया है तुम्हारे लिये
पाप की गठरियाँ तो हैं सर पे मेरे
पुण्य जो भी किया है तुम्हारे लिये
मैनें थक के कभी हार मानी नहीं
हौसला फ़िर किया है तुम्हारे लिये
जिन्दगी को हसीं एक मकसद मिला
साँस हर इक लिया है तुम्हारे लिये
जिंदगी की जटिल गणित आसान बनाने के तरीके
अनूठे हैं :
शशिसिंह गुजरात पुलिस के नजारे दिखा के गालिब की आबरू के बारे में बताने लगे। फिर भोजपुरी लिखने का मन किया तो किनारे में फंस गये :
मौजें भी शर्मसार हो जाएंगी
बनकर खुद साहिल
साहिल की आशिकी को अंजाम तक पहुंचाएंगी
प्रेमचंद के बारे में बताते डर इनकी जेब में कब घुस गया ये जान ही न पाये।
आशीष कानपुर की गंदगी से परेशान हैं। मनमोहन सिंह जी ने ब्रितानी शासन की तारीफ करके और परेशान कर दिया। लाल रत्नाकरजी की कलाकृतियों से कुछ सुकून मिला कि उत्तरप्रदेश की हालत ने नाक में दम कर दिया।
रति सक्सेना ने असमय साथ छोड़ जाने वाले साथी चित्रकार के बारे में मार्मिक संस्मरण लिखा :
रोजाना सुबह एक चिड़िया
आकर बैठ जाती है मेरी मेज पर
गौर से देखती है
मेरे बनाए चित्रों को, फिर
उनमें से एक चुन
चौंच में दबा कर उड़ जाती है
चित्र को मिल जाता है
नीला रंग आसमान का
जब वह बैठती है दरख्त पर
मेरा चित्र हो जाता है हरा
चित्रकार ने लिखा था
रोजनामचा में अतुल ने भैंस के दर्द की कहानी आगे बढ़ाई। वहीं अमेरिकी संस्मरणों की किस्त की अगली कड़ी पेश की :
पढे लिखे भी झाड़ू लगाते हैं
केडीगुरू ने मजेदार आपबीती सुनायी। केडीगुरू आफिस से घर का रास्ता लोकल ट्रेन से तय करते हैं। एक दिन स्टेशन जाते समय केडीगुरू फुटपाथ पर चल रहे थे। कुछ सोचते सोचते केडीगुरू का सूक्ष्म शरीर चाँदनी चौक पहुँच गया और स्थूल शरीर टेनेसी के फुटपाथ पर चलता रहा। रास्ते में एक भीमकाय अश्वेत झाड़ू लगा रहा था और अमेरिकन सभ्यतानुसार केडीगुरू से "हाई मैन, हाऊ यू डूईंग" बोला। केडी गुरू बेखुदी में सोचने लगे कि क्या जमाना आ गया है जो पढे लिखे अँग्रेजी दाँ लोगो को भी झाड़ू लगानी पड़ रही है। केडीगुरू उसके हालत पर अफसोस प्रकट कर सरकार को कोसने जा ही रहे थे कि उन्हे ख्याल आया कि वे चाँदनी चौक में नही अमेरिका में हैं जहाँ अनपढ भी अँग्रेजी ही बोलते हैं।"
अमरसिंहजी ने लिखा मूँछे हों तो राजीव शुक्ल जैसी ।इस पर रविरतलामी ने पूछा है - और तोंद हो तो..। जबाब तो नहीं दिया पर चाहा है कि भारत का हर रेलवे स्टेशन भोपाल जैसा साफ-सुथरा हो तो कितना अच्छा हो।
सुधीर शर्मा ने बड़ी मेहनत से अपना ब्लाग यूनीकोड में शुरु किया तथा बाज़ार का दौरा किया :
हम ने फिर बाज़ार का दौरा किया।
हर एक ख्वाब पर फिर से नज़र दौडाई।
अब तक इस पशोपेश मेँ हैँ कि किस ख्वाब को चुने।।
पंकज माजरे की चिकाई करके चुपचाप बैठ गये।
कालीचरण भोपाली अंग्रेजी में भी चिट्ठा शुरु कर दिये। कम्प्यूटर श्रमिकों की कुछ समानतायें बतायीं :
टिप्पणी देख सीना फुलाते
जीतु भैया और हम,
प्रोत्साहन के भूखे हैं सभी,
चाहे हों देवगण या यम
कौन बनेगा करोड़पति की बात करते हुये हनुमान जी बताते हैं :
यदि खुशी से जीवन जीना चाहते हो तो दूसरे के लिए जीओ। दूसरे को खुश करोगे तभी असली खुशी मिलेगी।
पुरू ने सनसनीखेज तहलका पत्रकारिता के अंदाज में १-२-३ शुरु किया। पांचवी पोस्ट तक पहुंचते-पहुंचते भंडाफोड़ का माहौल बन गया।
फुरसतिया में ऐतिहासिक हिंदी-अंग्रेजी ब्लागर-(परिवार)कथाकार-पाठक-संयोजक मीट का विवरण दिया गया। इसका ठेलुहा संस्करण होना अभी बाकी है। इस विवरण के बाद ही बादलराग शुरु गया । महिलाओं की समाज में क्या स्थिति है यह पता चलता है तब जब किसी अड़ियल ससुराल वाले से पाला पड़ता है। एक दूसरी ब्लागरमीट जो कि रेलवे प्लेटफार्म पर हुयी उसका विवरण भी दिया गया।
अमित वर्मा भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की कल्पना करते हैं।
भविष्य की योजनायें कैसे बनायें बताते हैं अतानु डे। शिक्षा व्यवस्था पर भी नजर डालते हैं अतानु। गौतम घोष तरीका बताते हैं सफल मैनेजर बनने का।
दहेज का भूत समाज का पीछा नहीं छोड़ रहा है। सुनील लक्ष्मण बता रहे हैं कुछ किस्से।
मोहे गोरा रंग दई दे के बाद फेयर एंड लवली के बहाने गोरे रंग की महिमा बता रहे हैं विक्रम। देशी पंडित आपको बतायेगा कुछ चुनिंदा पठनीय ब्लाग पोस्ट के बारे में। रागदरबारी में श्रीलाल शुक्ल ट्रक महिमा बताते हुये कहते हैं - उसे (ट्रक को) देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों से बलात्कार करने के लिये हुआ है। ट्रक से शहरों की पीड़ा की बानगी दे रहे हैं -सुनील। औरत होने की परेशानियों पर नजर डालती हैं चारु तथा उमा। कुछ किस्से बताती हैं कि कितना कठिन है महिलाओं के लिये रोजमर्रा का जीवन जहां पुरुष की नजर बहानों से उनके शरीर पर लगी रहती है।
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शुक्रवार, जुलाई 01, 2005
मित्र तुम कितने भले हो!
चर्चाकारः
debashish
हिंदी चिट्ठाजगत दिन-प्रतिदिन समृद्ध हो रहा है। इस बीच हिंदी चिट्ठाजगत में निम्नलिखित नये चिट्ठे जुड़े -
सभी चिट्ठाकारों का हिंदी चिट्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है इन चिट्ठाकारों को नियमित रूप से अपने विचार प्रकट करने का पर्याप्त समय मिलेगा जो कि हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा।
चर्चा की शुरुआत अक्षरग्राम से। दसवीं अनुगूँज का विषय था - चिट्ठी। आयोजक रवि रतलामी ने बड़ी खूबसूरती से अवलोकनी चिट्ठा लिखा। ग्याहरवी अनुगूँज का विषय दिया गया है - माजरा क्या है? खबर लिखे जाने तक केवल चार लोगों ने पोस्ट लिखी थी। अक्षरग्राम पर दूसरी प्रमुख खबर रही हिंदी के पहले चिट्ठाकार सम्मेलन की खबर। अतुल-रमणकौल मिलन के साथ-साथ स्वामीजी के साथ टेलीसम्मेलन हुआ। बाद में इसकी खबर इधर-उधर भी छपी। भारत सरकार द्वारा हिंदी के फॉण्ट जारी करने की खबर भी मुख्य आकर्षण रही ।
सारिका सक्सेना ने अनकही बातें कहनी शुरु की। परिचय दिया - दो कविताओं के बाद। अपने बारे में लिखने के बाद मित्र को याद किया :
रमन को लगता है कि अप्रेजल के बाद कुछ अर्थलाभ हुआ है तभी ये बंटी और बबली देख के आये तथा बताये कि कुल मिला के सब कुछ बहुतै बढ़िया... एकदम टोटल टाईमपास।
शैल ने नाटक होने की सूचना तो दी लेकिन यह नहीं बताया कि नाटक कैसा हुआ था। "माजरा क्या है?" पर लेख भी लिखा।
रमण कौल ने अपना अड्डा बदला तो उन्हें दिखे तूफान के बच्चे तो ये भाग के पहुंचे अतुल के पास मुलाकात करने के लिये। वहीं बात भी हुई स्वामीजी से। अमेरिकी जीवन में सामाजिक सुरक्षा नंबर की क्या अहमियत होती है यह रमण बताते हैं।
स्वामी जी ने इजाद किया है हग दो। क्रांतिकारी अविष्कार है यह हिंदी चिठ्ठाकारी के लिए। लगता है जल्द ही सारे वर्डप्रेस से चलने वाले चिठ्ठो पर अब टिप्पणियाँ काट के नही चिपकानी पड़ेंगी। स्वामीजी कहानी लिखते भले न हों पर समझ काफी रखते हैं यह बताया इन्होंने चिट्ठी कहानी की समीक्षा करके । अनुगूँज पर स्वामीजी ने सारगर्भित लेख लिखे ।
धनंजय शर्मा ने अपना परिचय देते हुये कविता-प्रतिकविता लिखी।
गुरु गोविंद में माँ पर लंबी कविता पढ़ने को मिली।
रवि रतलामी से ज्ञानवर्धक यशोगान सुनिए ऑपेरा का। सुर मिलाएँ ऑपेरा के साथ। चौंकिए नही अपने रवि भाई ऑपेरा ब्राऊजर की बात कर रहे हैं, उस नाट्य कला की नही जिसका मजाक दिल चाहता है में आमिर खान ने उड़ाया था।
ज्ञान-विज्ञान में हरीश अग्रवाल का विज्ञान से जुड़ा एक लंबा लेख छपा। प्राचीन विज्ञान के बारे में बताने के बाद यह जानकारी कि प्रेट्रोल के संभावित विकल्प की जानकारी दी गई।
एक धुँआधार लेखक हैं तरूण। थोड़ा सा गड़बड़झाला हो गया वरना बुनो कहानी की कड़ी इन्होने अच्छी बढायी थी। खैर अगली कहानी शायद तरूण ही शुरू करें। वैसे तब आप कुमाउंनी होली के रंग देखिए।
देवाशीष ने काफी दिन बाद लिखना शुरु किया तो शुरुआत में ही चापलूसी की हद कर दी। सृजनात्तमकता और गुणता नियंत्रण में बताया "जब आत्ममुग्धता सृजनात्मकता पर हावी हो जाये तो गुणवत्ता की तो वाट लगनी ही है"। परिवारवाद चलाने के लिये इमेज बिल्डिंग की प्रकिया की जानकारी भी मुहैय्या कराई।
प्रत्यक्षा सिन्हा को मौन की बोली अच्छी लगती है जो उन्हें भीने लम्हों तक पहुँचाती है -
तथा उनकाहृदय भर आता है -
राजेश ने कल्पवृक्ष के अलावा छाया ब्लाग शुरु किया ।शायद वह गद्य-पद्य के लिये अलग-अलग ब्लाग रखना चाहते हैं। शुरुआत में बंदरलैम्पंग का विवरण दिया है -
कुत्ते चले फिल्म की ओर लिखकर न जाने कहाँ चले गये विपिन श्रीवास्तव।
बुनो कहानी एक बार फिर कनपुरिया कहानी हो गयी। पहला भाग लिखा अतुल ने दूसरा गोविंद उपाध्याय ने। अब यह तय नहीं हो पा रहा है कि कहानी खत्म हो गयी या अभी तीसरा भाग लिखेगा कोई!
यह समाचार महावीर शर्मा ने बताया तथा पूछा - क्या हम चुप रहें? अन्ततोगत्वा फ्रैंच कम्पनी ‘मिनैली’ ने अपने जूतों की बिक्री पर रोक लगा दी। "माजरा क्या है" के अंतर्गत महावीर शर्मा ने दूसरी पोस्ट भी लिख दी - जाने अजाने गीत के बाद ।
श्रीकांत वर्मा की कविताओं से अपने ब्लाग लेखन की शुरुआत करने वाले मनोजने अभी तक दूसरों के उद्धरण देकर अपनी सोच को साफ करने की शुरुआत की है। आशा है आगे कुछ मामला और साफ होगा।
मानसी की प्रेम की व्यथा किसी के आने पर खतम हो गयी और रोशनी दिखी उन्हें -
अनूप भार्गव अपने सबसे पसंदीदा शेर से बात शुरु करते हैं -
फिर वे गीतिका लिखते हैं -
परिधि तथा केन्द्र से कुछ ज्यादा ही लगाव है अनूप भार्गव को यह इनकी कविताओं से लगता है।
शशि सिंह पर्दे पर कश की कशमकश की बात करते हुये, विक्षिप्त वर्तमान की बात करते हुये बताते हैं कि कानून आम तथा खास के लिये कैसे अलग है।
आशीष आजकल काफी लिख-पढ़ रहे हैं। श्रद्धा के पात्र बाबू में वे लिखते हैं:-
राष्ट्रीय स्मारकों के साथ हम कैसा सलूक करते हैं यह भी बताते हैं आशीष। शैम्पू की उत्पत्ति के बारे में सुने । उपेन्द्र प्रसाद के सौजन्य से फान्ट समस्या पर भी विचार किया गया।
"जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं" के बुलंद नारे तथा "अगर आज नहीं तो कल हमारा होगा के विश्वास के साथ" खाली-पीली की सुनाने के लिये आ गये आशीष कुमार श्रीवास्तव तथा शुरुआत की अपनी बचपन की यादों से।
जो न कह सके वह कहने के लिये सुनील दीपक ने शुरुआत की है। सुंदर नियमित चित्रमय चिट्ठे देखकर यह आशा जगती है कि जल्द ही हिंदी चिट्ठाजगत में नियमित न लिखने का रोना खत्म हो जायेगा। सुनील अंग्रेजी में अरे क्या बात है? तथा इतालवी में आवारगी नाम से भी ब्लाग लिखते हैं।
ब्लाग एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर स्वतंत्रता का जश्न चल रहा है। शेरो शायरी, नेट मटरगश्ती से लेकर भिखारियों की गिनती तक सब हो रहा है पर न जाने क्यों मिर्जा, छुट्टन, शर्माजी, कल्लू पहलवान इत्यादि के किस्से गायब है। जीतू भाई ने कई वायदे कर रखे हैं जिनमे अपनी जीवनी, बारात के किस्से और न जाने क्या क्या सुनाना शामिल है। इन आश्वासनो मे हर बार पुछल्ला लगा रहता था कि "कभी समय मिलने पर लिखूँगा।" अब मिल गया है तो देर किस बात की?
रति जी ने चप्पलों के नाम एक अत्यंत खूबसूरत ऋचा लिखी है। इसको पढ़कर लगता है कि चप्पलें वह तोता हैं जिसमें उनकी जान बसती है:-
लालू खिलौना, नरेन्द्र चंचल के बाद अतुलने लिखा माजरा क्या है?
अतुल श्रीवास्तव भगवान को उलाहना देते हैं।
समाजवाद नाम से अमरसिंहजी ने अपने व्यक्तिगत विचारों के सम्प्रेषण के लिये चिट्ठा शुरु किया है। समय बतायेगा कि कितने ईमानदार रहते हैं प्रयास व्यक्तिगत विचार प्रकट करने के। सेवाभाव मे जनसेवकों की मनोवृत्ति का खुलासा करते हैं तथा मियांदाद के दाऊद से संभावित संबंध पर अपनी राय रखते हैं।
डा जगदीश व्योम आजकल सरल चेतना के निर्माण में लगे है तो भाई लोग स्वर्ग-दर्शन में लगे हैं।
हनुमानजी खुश(!) होकर बता रहे हैं - साला मैं तो साहब बन गया।
फुरसतिया में कहानी के आगे की कहानी की बात की गयी।
गुगल की छोटी सी गफलत ने कैसे दो कुट्टियों को मिलाया, बताते है वर्नम। इधर वर्नम ने कम्युनिस्टो की खूब खबर ली है। काटो , चिपकाओ और भूल जाओ
चुग्स जो प्रति शनिवार रोचक कड़ियाँ अपने ब्लाग पर छापते हैं, अखबारो की कटिंग चाय परोसने वालो की खबर ले रहे हैं। जब कि पैट्रिक्स खुद चुग्स की खबर ले रहे हैं यह बताते हुए कि सारे चिठ्ठाकार खबरचोर नही।
मशहूर अखबार हिंदू ने चिठ्ठाकार सम्लेलन की रिपोर्ट छापी है।
क्रिकेट के शौकीनो के लिए खुशखबरी। रेडिफ के मशहूर क्रिकेट लेखक प्रेम पनिक्कर का चौथा अँपायर मैदान में आ गया है।
अमित वर्मा अंग्रेजी के धुंआधार लिखने वाले चिट्ठाकारों में है। कुछ दिन पहले रोहित पिंटो की दुकान बंद करा चुके हैं। अब लोग अमित वर्मा की पोल खोलने में लगे हैं। इस काम के लिये बाकायदा लोगों का सहयोग मांगा गया है। कुछ लफड़ा तो इस बात का है कि अमित ने अपनी खुली बुराई सुनने के सारे रास्ते बंद कर दिये हैं। जबकि दूसरे चिट्ठाकार अपने ब्लाग पर टिप्पणी स्वीकार करते हैं वहीं अमित ने आलोचना का रास्ता बंद कर रखा है। जो हो यह ब्लाग नहा धोकर अमित वर्मा के पीछे पढ़ा है और अमित हैं कि बोलते नहीं।
- समाजवाद - अमरसिंह
- अनकही बातें - सारिका सक्सेना
- छाया - राजेश कुमार सिंह
- कटिंग चाय - चौथास्तम्भ
- गुरुगोविन्द - प्रदीप ममगाईं
- मुक्तजनपद - मनोज
- मुम्बईब्लाग - शशि सिंह
- जो न कह सके - सुनील दीपक
- खाली-पीली - आशीष कुमार श्रीवास्तव
- सरल चेतना - डा.व्योम
सभी चिट्ठाकारों का हिंदी चिट्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है इन चिट्ठाकारों को नियमित रूप से अपने विचार प्रकट करने का पर्याप्त समय मिलेगा जो कि हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा।
चर्चा की शुरुआत अक्षरग्राम से। दसवीं अनुगूँज का विषय था - चिट्ठी। आयोजक रवि रतलामी ने बड़ी खूबसूरती से अवलोकनी चिट्ठा लिखा। ग्याहरवी अनुगूँज का विषय दिया गया है - माजरा क्या है? खबर लिखे जाने तक केवल चार लोगों ने पोस्ट लिखी थी। अक्षरग्राम पर दूसरी प्रमुख खबर रही हिंदी के पहले चिट्ठाकार सम्मेलन की खबर। अतुल-रमणकौल मिलन के साथ-साथ स्वामीजी के साथ टेलीसम्मेलन हुआ। बाद में इसकी खबर इधर-उधर भी छपी। भारत सरकार द्वारा हिंदी के फॉण्ट जारी करने की खबर भी मुख्य आकर्षण रही ।
सारिका सक्सेना ने अनकही बातें कहनी शुरु की। परिचय दिया - दो कविताओं के बाद। अपने बारे में लिखने के बाद मित्र को याद किया :
तुम वो नहीं जो साथ छोड़ो;
या मुश्किलों में मुंह को मोड़ो।
राह के हर मील पर तुम,
निर्देश से बनकर खड़े हो।
मित्र तुम कितने भले हो!
रमन को लगता है कि अप्रेजल के बाद कुछ अर्थलाभ हुआ है तभी ये बंटी और बबली देख के आये तथा बताये कि कुल मिला के सब कुछ बहुतै बढ़िया... एकदम टोटल टाईमपास।
शैल ने नाटक होने की सूचना तो दी लेकिन यह नहीं बताया कि नाटक कैसा हुआ था। "माजरा क्या है?" पर लेख भी लिखा।
रमण कौल ने अपना अड्डा बदला तो उन्हें दिखे तूफान के बच्चे तो ये भाग के पहुंचे अतुल के पास मुलाकात करने के लिये। वहीं बात भी हुई स्वामीजी से। अमेरिकी जीवन में सामाजिक सुरक्षा नंबर की क्या अहमियत होती है यह रमण बताते हैं।
स्वामी जी ने इजाद किया है हग दो। क्रांतिकारी अविष्कार है यह हिंदी चिठ्ठाकारी के लिए। लगता है जल्द ही सारे वर्डप्रेस से चलने वाले चिठ्ठो पर अब टिप्पणियाँ काट के नही चिपकानी पड़ेंगी। स्वामीजी कहानी लिखते भले न हों पर समझ काफी रखते हैं यह बताया इन्होंने चिट्ठी कहानी की समीक्षा करके । अनुगूँज पर स्वामीजी ने सारगर्भित लेख लिखे ।
धनंजय शर्मा ने अपना परिचय देते हुये कविता-प्रतिकविता लिखी।
गुरु गोविंद में माँ पर लंबी कविता पढ़ने को मिली।
रवि रतलामी से ज्ञानवर्धक यशोगान सुनिए ऑपेरा का। सुर मिलाएँ ऑपेरा के साथ। चौंकिए नही अपने रवि भाई ऑपेरा ब्राऊजर की बात कर रहे हैं, उस नाट्य कला की नही जिसका मजाक दिल चाहता है में आमिर खान ने उड़ाया था।
ज्ञान-विज्ञान में हरीश अग्रवाल का विज्ञान से जुड़ा एक लंबा लेख छपा। प्राचीन विज्ञान के बारे में बताने के बाद यह जानकारी कि प्रेट्रोल के संभावित विकल्प की जानकारी दी गई।
एक धुँआधार लेखक हैं तरूण। थोड़ा सा गड़बड़झाला हो गया वरना बुनो कहानी की कड़ी इन्होने अच्छी बढायी थी। खैर अगली कहानी शायद तरूण ही शुरू करें। वैसे तब आप कुमाउंनी होली के रंग देखिए।
देवाशीष ने काफी दिन बाद लिखना शुरु किया तो शुरुआत में ही चापलूसी की हद कर दी। सृजनात्तमकता और गुणता नियंत्रण में बताया "जब आत्ममुग्धता सृजनात्मकता पर हावी हो जाये तो गुणवत्ता की तो वाट लगनी ही है"। परिवारवाद चलाने के लिये इमेज बिल्डिंग की प्रकिया की जानकारी भी मुहैय्या कराई।
प्रत्यक्षा सिन्हा को मौन की बोली अच्छी लगती है जो उन्हें भीने लम्हों तक पहुँचाती है -
तुम्हारे खत में ताज़ा है अभी भी प्यार की खुशबू
इन भीने लम्हों से अब भी कहाँ बोलो रिहाई है
तथा उनकाहृदय भर आता है -
लिया जब नाम प्रियतम का
हृदय कुछ और भर आया
राजेश ने कल्पवृक्ष के अलावा छाया ब्लाग शुरु किया ।शायद वह गद्य-पद्य के लिये अलग-अलग ब्लाग रखना चाहते हैं। शुरुआत में बंदरलैम्पंग का विवरण दिया है -
इस शहर में, हर शख्स, हमसे अन्जान क्यों है ?
कुत्ते चले फिल्म की ओर लिखकर न जाने कहाँ चले गये विपिन श्रीवास्तव।
बुनो कहानी एक बार फिर कनपुरिया कहानी हो गयी। पहला भाग लिखा अतुल ने दूसरा गोविंद उपाध्याय ने। अब यह तय नहीं हो पा रहा है कि कहानी खत्म हो गयी या अभी तीसरा भाग लिखेगा कोई!
"फ्रैंच फ़ैशन ग्रुप मिनैली" कम्पनी श्री राम के चित्र को जूतों पर अंकित कर बाज़ार में बेच रहा है।
यह समाचार महावीर शर्मा ने बताया तथा पूछा - क्या हम चुप रहें? अन्ततोगत्वा फ्रैंच कम्पनी ‘मिनैली’ ने अपने जूतों की बिक्री पर रोक लगा दी। "माजरा क्या है" के अंतर्गत महावीर शर्मा ने दूसरी पोस्ट भी लिख दी - जाने अजाने गीत के बाद ।
कोशल अधिक दिन टिक नहीं सकता
कोशल में विचारों की कमी है।
श्रीकांत वर्मा की कविताओं से अपने ब्लाग लेखन की शुरुआत करने वाले मनोजने अभी तक दूसरों के उद्धरण देकर अपनी सोच को साफ करने की शुरुआत की है। आशा है आगे कुछ मामला और साफ होगा।
मानसी की प्रेम की व्यथा किसी के आने पर खतम हो गयी और रोशनी दिखी उन्हें -
तेरे आने से ज़िन्दगी देखी
अंधेरों में कहीं रोशनी देखी
अनूप भार्गव अपने सबसे पसंदीदा शेर से बात शुरु करते हैं -
कल रात एक अनहोनी बात हो गई
मैं तो जागता रहा खुद रात सो गई ।
फिर वे गीतिका लिखते हैं -
परिधि के उस पार देखो
इक नया विस्तार देखो ।
तूलिकायें हाथ में हैं
चित्र का आकार देखो ।
परिधि तथा केन्द्र से कुछ ज्यादा ही लगाव है अनूप भार्गव को यह इनकी कविताओं से लगता है।
शशि सिंह पर्दे पर कश की कशमकश की बात करते हुये, विक्षिप्त वर्तमान की बात करते हुये बताते हैं कि कानून आम तथा खास के लिये कैसे अलग है।
आशीष आजकल काफी लिख-पढ़ रहे हैं। श्रद्धा के पात्र बाबू में वे लिखते हैं:-
ज़्यादातर दफ़्तरी बाबुओं का नाम सुनकर डर सा ही लगता है या फिर एक चिढ़ सी होती है और किसी भ्रष्ट बाबू का चेहरा सामने आ जाता है। लेकिन महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के गरीब स्कूली बच्चों के लिये ये बाबू किसी देवदूत के समान हैं जो कि उन बच्चों की हर संभव मदद करते हैं। इसके लिये बाबुओं ने एक संस्था भी बनाई है जिसका नाम है 'लांजा राजापुर संघमेश्वर तालुका उत्कर्ष मण्डल '।
राष्ट्रीय स्मारकों के साथ हम कैसा सलूक करते हैं यह भी बताते हैं आशीष। शैम्पू की उत्पत्ति के बारे में सुने । उपेन्द्र प्रसाद के सौजन्य से फान्ट समस्या पर भी विचार किया गया।
"जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं" के बुलंद नारे तथा "अगर आज नहीं तो कल हमारा होगा के विश्वास के साथ" खाली-पीली की सुनाने के लिये आ गये आशीष कुमार श्रीवास्तव तथा शुरुआत की अपनी बचपन की यादों से।
जो न कह सके वह कहने के लिये सुनील दीपक ने शुरुआत की है। सुंदर नियमित चित्रमय चिट्ठे देखकर यह आशा जगती है कि जल्द ही हिंदी चिट्ठाजगत में नियमित न लिखने का रोना खत्म हो जायेगा। सुनील अंग्रेजी में अरे क्या बात है? तथा इतालवी में आवारगी नाम से भी ब्लाग लिखते हैं।
ब्लाग एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर स्वतंत्रता का जश्न चल रहा है। शेरो शायरी, नेट मटरगश्ती से लेकर भिखारियों की गिनती तक सब हो रहा है पर न जाने क्यों मिर्जा, छुट्टन, शर्माजी, कल्लू पहलवान इत्यादि के किस्से गायब है। जीतू भाई ने कई वायदे कर रखे हैं जिनमे अपनी जीवनी, बारात के किस्से और न जाने क्या क्या सुनाना शामिल है। इन आश्वासनो मे हर बार पुछल्ला लगा रहता था कि "कभी समय मिलने पर लिखूँगा।" अब मिल गया है तो देर किस बात की?
रति जी ने चप्पलों के नाम एक अत्यंत खूबसूरत ऋचा लिखी है। इसको पढ़कर लगता है कि चप्पलें वह तोता हैं जिसमें उनकी जान बसती है:-
चप्पले मेरा व्यक्तित्व हैं, चप्पलें मेरा वजूद हैं
चप्पलें मेरी ऊँचाईँ हैं जिसकी सीढ़ी से मैं आसमान छू सकती हूँ
चप्पले मेरा वर्तमान और भविष्य है।
चप्पले मेरे परिधान की खूबसूरती हैं।
एक जेवर कम हुआ तो कोई ध्यान नहीं देगा किंतु
चप्पल की एड़ी टूटी हो तो सारी दुनिया की नजर गढ़ जाएगी
लालू खिलौना, नरेन्द्र चंचल के बाद अतुलने लिखा माजरा क्या है?
भूखी डाँस बार बालाऐं मचाती गुहार
हवलदार फाड़े सबकी सलवार
कान मे डाल के तेल है बैठी
जनता की सरकार
भईये आखिर माजरा क्या है?
कहीं गुड़िया कहीं इमराना कहीं भँवरी कहीं अनारा
कठमुल्लों की अदालतो के चैनल कराते दीदार
भईये आखिर माजरा क्या है?
सूखी धरती सिकुड़े दरिया खाली बाल्टी सूनी नजरिया
फिर भी मल्टीप्लेक्स में बहती पेप्सी की धार
भईये आखिर माजरा क्या है?
अतुल श्रीवास्तव भगवान को उलाहना देते हैं।
समाजवाद नाम से अमरसिंहजी ने अपने व्यक्तिगत विचारों के सम्प्रेषण के लिये चिट्ठा शुरु किया है। समय बतायेगा कि कितने ईमानदार रहते हैं प्रयास व्यक्तिगत विचार प्रकट करने के। सेवाभाव मे जनसेवकों की मनोवृत्ति का खुलासा करते हैं तथा मियांदाद के दाऊद से संभावित संबंध पर अपनी राय रखते हैं।
डा जगदीश व्योम आजकल सरल चेतना के निर्माण में लगे है तो भाई लोग स्वर्ग-दर्शन में लगे हैं।
हनुमानजी खुश(!) होकर बता रहे हैं - साला मैं तो साहब बन गया।
फुरसतिया में कहानी के आगे की कहानी की बात की गयी।
गुगल की छोटी सी गफलत ने कैसे दो कुट्टियों को मिलाया, बताते है वर्नम। इधर वर्नम ने कम्युनिस्टो की खूब खबर ली है। काटो , चिपकाओ और भूल जाओ
चुग्स जो प्रति शनिवार रोचक कड़ियाँ अपने ब्लाग पर छापते हैं, अखबारो की कटिंग चाय परोसने वालो की खबर ले रहे हैं। जब कि पैट्रिक्स खुद चुग्स की खबर ले रहे हैं यह बताते हुए कि सारे चिठ्ठाकार खबरचोर नही।
मशहूर अखबार हिंदू ने चिठ्ठाकार सम्लेलन की रिपोर्ट छापी है।
क्रिकेट के शौकीनो के लिए खुशखबरी। रेडिफ के मशहूर क्रिकेट लेखक प्रेम पनिक्कर का चौथा अँपायर मैदान में आ गया है।
अमित वर्मा अंग्रेजी के धुंआधार लिखने वाले चिट्ठाकारों में है। कुछ दिन पहले रोहित पिंटो की दुकान बंद करा चुके हैं। अब लोग अमित वर्मा की पोल खोलने में लगे हैं। इस काम के लिये बाकायदा लोगों का सहयोग मांगा गया है। कुछ लफड़ा तो इस बात का है कि अमित ने अपनी खुली बुराई सुनने के सारे रास्ते बंद कर दिये हैं। जबकि दूसरे चिट्ठाकार अपने ब्लाग पर टिप्पणी स्वीकार करते हैं वहीं अमित ने आलोचना का रास्ता बंद कर रखा है। जो हो यह ब्लाग नहा धोकर अमित वर्मा के पीछे पढ़ा है और अमित हैं कि बोलते नहीं।
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