रविवार, अक्तूबर 15, 2006

बादलों में छिपा तारा

सज्जनों और सज्जनियों,
अब जब आज मेरे ऊपर चिट्ठा चर्चा का रविवारीय भार आन पड़ा है तो मुझे आपके सबके सहयोग की जरुरत पड़ेगी। वो क्या है कि हम इत्ते बड़े समीक्षाकार तो है नही तो सभी के चिट्ठों की जबरदस्त तरीके से समीक्षा करें, अलबत्ता जबरदस्ती तरीके से जरुर कोशिश कर सकते है। तो साथियों ध्यान रखिएगा। तो जनाब शुरु होता है आज की चिट्ठा चर्चा।

दिनांक १४ अक्टूबर २००६, दिन शनिवार के चिट्ठों की विवेचना


दीपावली का मौसम पास है इसलिए शैल भाई ने कुछ खरीददारी करने की सोची। अच्छी सोच है लेकिन पंगा हो गया जब खरीदने के बाद दोस्तों को बताया। तारीफ़ करना तो दूर, दोस्त ने पूछा "डिस्काउन्ट लिया कि नही?" शैल भाई हैरान परेशान, आइए, हम लोग भी उनकी परेशानी (घटाने में यार!) मे उनका साथ दें।

गिरिराज जोशी जी नेताजी के ऊपर कविता लिखें है :
हाय रे नेता
तेरी फूटी किस्मत
दर्द तेरा
अब कौन समझें
बना कठपुतली
तुझे चाहे नचाना
क्या मालुम???
इन हास्य कवियों को
जोड़-तोड़ की
यह सत्ता अनोखी
तु होकर मानव
कैसे चलाये ॰॰॰

अपने हितेन्द्र भाई बैताली पचीसी निबटाने के बाद कविताओं पर उतर आएं है। आप भी सुनिए

अब संजय भाई भी दीपावली के सफाई अभियान को छेड़े हुए है। कहाँ? अपने घर और आफिस में और कहाँ? कहते है:
घर तथा ऑफ़िस के एक एक सामान को धोया-पोछा जा रहा हैं. हर वह कोना जो साफ होने से बचा रहा था उसे साफ किया जा रहा हैं. कहीं जरूरी लगे वहाँ नया रंग-रोगन भी किया जा रहा हैं. इसमें कोई शक नहीं की काम पुरा होने के बाद सब कुछ उजला चमकदार तथा तरोताजा लगने लगेगा और बहुत सारी जगह फिर से साल-भर भरने लायक खाली हो जाएगी. यह हमारी नहीं इन दिनो घर घर की कहानी हैं. सबसे बड़ा त्योंहार सामने हैं और गुजरात में तो इसकी खास धूम रहती हैं. गुजराती नववर्ष की शुरूआत भी दीपावली के दूसरे दिन से होती हैं. यानी हैप्पी दीवाली के साथ साथ नुतनवर्षाभिनंदन भी किया जाता हैं.


संजय भाई जल्दी से सफाई कार्यक्रम निबटाइए, ताकि हम इस ब्लॉगर परिवार के बाकी सदस्यों के भी ब्लॉग पढ सकें और चार टिप्पणी करने वाले भी बढ सकें। सफाई से ध्यान आया कि सभी को घर और आसपास सफाई रखनी चाहिए, वो क्या है कि डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप है। हमारी नही मानिए तो डाकडर बाबू की सुनिए। वादा करिए, आज ही अपने घर के कूलर का पानी बाहर निकाल फेंकेंगे।

रवि रतलामी जी एक तकनीकी लेख मे बता रहे है कि कैसे किसी साइट को पूरा पूरा आफलाइन उतारा जा सकता है। शोएब भाई, दीपावली के दिए ढूंढने गए तो उनको आगरा से कुवैत भेजी गयी लालटेन मिल गयी। आप भी देखिए। आप लोग लालटेन (शमां) जला कर गिलास निकाल लीजिएगा। क्योंकि मस्ताना पिए जा रहा है, आप भी साथ दीजिए ना।

मस्ताना पिये जा, यूँही मस्ताना पिये जा
पैमाना तो क्या चीज़ है, मैखाना पिये जा
मैखाने के हँगामें हैं कुछ देर के मेहमाँ
है सुबह क़रीब 'अख्तर' दीवाना पिये जा
-अखतर शिरानी


अब लो, पीने पिलाने के बाद बहकने की बारी, मनीष वन्देमातरम कहते है:
वो अमराईयों की घनी छाँव
जिसमें मैं बेसुध लेटा था
और तुम
मेरे आर-पार अपनी बाँहों से
इन्द्रधनुष बनाती हुई, मेरे ऊपर झुकी थी
नीले चीर में लिपटी तुम....

अरे नही हमने सेन्सर नही किया बाकी का उनके ब्लॉग पर ही जाकर पढिए ना। भाई रीतेश गुप्ता कवि की कल्पना और यथार्थ मे सामन्जस्य प्रस्तुत करती एक सुन्दर कविता इसमे क्या कठिनाई पेश कर रहे है।

भाई आशीष गर्ग, जो सिर्फ़ छुट्टियों मे ही चिट्ठा लिखते है, शहरों के प्रदूषण और उनके समाधान के बारे मे लिखते है:
आज नागरिक को वृक्षारोपण करना चाहिये मसलन नीम, जामुन, आम, पीपल, बरगद, नींबू, अमरूद, शीशम इत्यादि पेड़ लगाने चाहियें जो कि छायादार हैं, पानी भी कम पीते हैं, और फल या औषधिदायक भी हैं और इसके के बारे में जागरूक हो जाये, सफाई के बारे में खुद सोचे, प्लास्टिक का प्रयोग कम से कम करे, खासतौर से पॉलीथीन के बैगों का। वाहनों का प्रदूषण कम करना नागरिक के साथ साथ सरकार की भी ज़िम्मेदारी है। दम घोंटू धुंआ और कान फाड़ू आवाज़ उगलते वाहनों पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है। प्रदूषण फैलाती औद्योगिक इकाइयों को या तो बन्द किया जाना चाहिए या फिर उनको कचरा निस्तारण संयंत्र लगाने को बाध्य करना चाहिये अथवा तगड़े दंड लगाने चाहिये। इन सबको पाने के लिये ज़रूरत है पर्यावरण के प्रति जागरूकता की और उसको फैलाना हम सबका काम है।


उन्मुक्त ने भौतिक विज्ञान के नोबुल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन की किताब ‘Don’t you have time to think’ की चर्चा की है। आप भी पढिए

हिन्दू जागरण वाले गुजरात हाईकोर्ट के बनर्जी कमेटी के खिलाफ आए फैसले पर सेक्यूलरवादियों को आड़े हाथों लेते हुए कहते है:
गोधरा काण्ड के बाद जिस तरह अन्दर से आग लगी अवधारणा विकसित कर उसे प्रचारित किया गया उससे सेकुलरवाद के नाम पर समस्त विश्व में मुसलमानों के समक्ष समर्पण की सामान्य प्रवृत्ति का संकेत मिलता है. बीते कुछ वर्षों में हमें अनेक ऐसे अवसर देखने को मिले हैं जब बड़ी इस्लामी आतंकवादी घटनाओं को वामपंथी-उदारवादी सेकुलर नेताओं और बुद्धिजीवियों ने मुसलमानों को उस घटना से अलग करते हुये विचित्र मिथक विकसित किये हैं.


सुनील भाई ऋत्विक घटक की बाँग्ला फिल्म "मेघे ढाका तारा", यानि "बादलों से ढका तारा" की चर्चा करते हुए कहते है:
आजकल की अधिकतर फ़िल्में अक्सर मैं एक बार में नहीं देख पाता हूँ, मन ऊब जाता है पर "मेघे ढाका तारा" देखते हुए समय कैसे बीता मालूम ही नहीं चला. 46 साल पहले बनी फ़िल्म पुरानी हो कर भी, कहानी सुनाने के ढँग से पुरानी नहीं लगती. यह बात नहीं कि फ़िल्म में कमज़ोरियाँ नहीं, पर पूरी फ़िल्म एक कविता सी लगती है.


लोकप्रिय ब्लॉग रोजनामचा और लाइफ इन एच ओ वी लेन के लेखक अतुल अरोरा, ने अपना कैमरा साफ सूफ करके फोटो खींचने का काम दोबारा शुरु कर दिया है। उन्होने अपनी खींची तस्वीरों को अपने फोटो ब्लॉग "सात समुन्दर पार से" में प्रस्तुत किया है। अच्छी फोटो खींची है, उम्मीद है तस्वीरें तो रोजाना पब्लिश करेंगे।आज की तस्वीरें मे सड़क, कार और स्कूल बस है। आगे उम्मीद है, बच्चें, बूढे और जवान भी देखने को मिलेंगे। आप भी देखिए।


आज का चित्र छायाचित्रकार से



पिछली यादें :
अब मै आया हूँ (या पकड़कर लाया गया हूँ) तो कुछ तो नया करूंगा ही ना, इसलिए हम शुरु करने की कोशिश करते है। भूली बिसरी पोस्ट। यहाँ हम चर्चा करेंगे, पिछले वर्ष इसी हफ़्ते की मेरी मनपसन्द पोस्ट की। उन चिट्ठों की जो अब एक्टिव नही है, क्या पता चिट्ठा चर्चा सुनकर, वो फिर से एक्टिव हो जाएं। इस बार की मेरी मनपसन्द पोस्ट है:

वरूण सिंह के ब्लॉग "बाकी सब ठीक है" से मैं हिन्दी में क्यों लिखता हूँ?

अच्छा भैया, अब हम निकलता हूँ, किसी भाई/बहन की पोस्ट का जिक्र छूट गया हो तो बताइएगा जरुर, मै कोई गुज़रा वक्त नही जो लौट कर ना आ सकूं? (अरे ये तो कविता हो गयी)
खैर... ब्लॉग लिखते रहिएगा और टिप्पणिया (अपने नाम से ही) करते रहिएगा।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया है. ये काम अच्छा किया कि भूली-बिसरी पोस्ट का जिक्र शुरू किया। सिंधी चिट्ठे भी दिखाते रहो समय-समय पर!

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  2. जीतु भाई बधाई स्वीकार करें!!!

    "क्या लिखेला हे बाप!!! एकदम हिल्ला डाला, अपून की तो खोपड़ियाईच घूम गई"

    इस तरह की टिप्पणी की उम्मीद ना कीजियेगा, क्योंकि संभवतया "सर्किट" चिट्ठा-चर्चा नहीं पढ़ता।

    खैर आपका प्रयास उत्तम रहा, चर्चा मेरी पोस्ट से शुरू करने के लिए धन्यवाद!!!

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  3. बहुत बधाई,
    जीतू भाई,
    आप आये,
    बहार आई.

    -कवर करते करते हम नजर अंदाज हो गये, चलो हम ही जिक्र कर देते हैं अब अपनी रचना का:

    चलो आगे बढ़ते हैं

    // http://udantashtari.blogspot.com/2006/10/blog-post_13.html
    //

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  4. यह कालम नित नये नये आयाम यहां पर खोल रहा है
    खूब खूब अंदाज़ आपका, पढ़ने वाला बोल रहा है
    भूली बिसरी यादें ताजा करके किया कलेवर नूतन
    स्वर्ण-सुहागा याकि दूध में शक्कर कोई घोल रहा है

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