ये ऊपर की खबर ३ अक्तूबर के हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान मेरठ की ही। इसमें प्रत्यक्षाजी के ब्लाग का जिक्र हुआ। इसमें उनकी किताब(जंगल का जादू तिल-तिल) का जिक्र करते समय तिल-तिल शायद संपादन की भेंट चढ़ गया। इस खबर के लिये मनविंदरजी का शुक्रिया!
आलोक पुराणिक इतवार को अव्यंग्य मुद्रा में रहते हैं और काम की बात बताते हैं। आज वे कल्पना करते हैं कि राष्ट्रीय संपत्तियों का कारपोरेटाइजेशन होगा तो क्या सीन बनेगा:
यमुना भी राष्ट्रीय संपत्ति है, जो किसी कारपोरेट के पास जा सकती है। देश की जमीन, नदी, समुद्र से निकलने वाली गैस, कच्चा तेल भी राष्ट्रीय संपत्ति है, जो किसी की निजी संपत्ति हो सकती है। हो क्या सकती है, हो गयी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज से जैसे संकेत मिल रहे हैं, उनसे साफ होता है कि यह कंपनी देश की ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण रोल निभायेगी। गैस के मसले में इस कंपनी की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है। पर गैस भी रुकी रह सकती है, भूमिका भी रुकी रह सकती है। बल्कि रुकी ही हुई है।
अनिल पुलस्कर का पोस्ट-शतक पूरा हुआ तो वे कहने लगे-सरकार की ऐसी की तैसी, मंथली देते हैं, जो मर्जी करेंगे। वैसे यह मंथली वाली बात के द्वारा उन्होंने खुले आम शराब बेचने वालों उद्गार पेश किये हैं।
शास्त्रीजी बताते हैं कि चिट्ठों के माध्यम से कमाई के बारे के चलते विज्ञापनों पर क्लिकियाने का आवाहन वि्ज्ञापन बंद भी करा सकता है। जिसे द्विवेदी जी कहते हैं- अंडा देने वाली मुर्गी का पेट चीरना और प्रशान्त कहते हैं -गूगल की तानाशाही।।
रंजना भाटिया ने अर्चना शर्मा से परिचय कराया था जो कि महाप्रयोग अभियान से जुड़ीं रहीं। इस पोस्ट के जबाब में अर्चना वर्मा ने सबकी प्रतिक्रियाओं/शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया कहा है।
अफ़लातूनजी ने अपने साथी सुशील त्रिपाठी के निधन की जानकारी देते हुये उनके बारे में लिखा है:
बतौर विश्वविद्यालय संवाददाता सुशील आज से जुड़े । हर सोमवार छपने वाली ‘विश्वविद्यालय की हलचल’ से सिर्फ़ हलचल नहीं मचती थी । विश्वविद्यालय के कर्मचारियों , अधिकारियों और शिक्षकों द्वारा ‘अवकाश यात्रा छूट ( Leave Travel Concession ) में व्यापक भ्रष्टाचार की खबर सुशील ने छापनी शुरु की । कार्रवाई का आदेश जारी करने के पूर्व तत्कालीन कुलसचिव ने खुद एल.टी.सी. की रकम लौटाई - यह भी खबर बनी ।
सुशील त्रिपाठी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
बस्तर एक सामूहिक ब्लाग है। वहां की पहाड़ी मैना के बारे में जानकारी देते हुये अनिल पुसदकर आशंका व्यक्त करते हैं-
बस्तर के साल वनों में काफी भीतर कभी-कभार पहाड़ी मैना दिख ज़रूर जाती है, लेकिन ये अब लगता है विलुप्त होने की कगार पर है। यही हाल रहा तो बहुत ज़्यादा दिन बाकी नहीं रहे जब लोग कहा करेंगे कि बस्तर में पहाड़ी मैना मिला करती थी। वो हू-बहू इंसानों की तरह बोलती थी। हालाकि राजकीय पक्षी घोषित होने के बाद उसकी सुध ली जा रही है, मगर सरकारी काम कैसा होता है ये सबको पता है।
अजित वडनेरकर आज पुस्तक चर्चा कर रहे हैं। विजय मनोहर तिवारी जिन्होंने जिनकी हरसूद के अनुभवों पर लिखी किताब हरसूद-३० काफ़ी चर्चित रही ने एक उपन्यास लिखा है- एक साध्वी की सत्ता-कथा! इसके बारे में जानकारी देते हुये अजित कहते हैं-साध्वी की चाहे बात न करें उपन्यास में वर्तमान राजनीति का विद्रूपसाफ नज़र आता है..
अपने गुर्दों की रक्षा के लिये आप डा.प्रवीन चोपड़ा की यह पोस्ट पढ़ना न भूलें।
पूरे के पुरे मकान को कोई जैक तकनीक के द्वारा जमीन से ११ फ़ुट ऊपर उठा देगा यह देखिये संजय शर्मा की पोस्ट में।
उनके श्रीमुख से
यदि किसी चिट्ठे पर विज्ञापन दिख रहे हों तो धन के लिये उस पर आप में क्लिक न करें. गूगल की नजरें बहुत तेज हैं. शास्त्रीजी
ग्राहम स्टेंस और दो मासूम बच्चे .../और अब यह बेचारी नन...../शर्म से और लिख नही पा रहा ...सतीश सक्सेना
यार दिमाग का दही न करो, तुम साले खुद पिछले तीन माह से बिज़नेस टूर पर हो लेकिन साथ में अपनी गर्लफ्रेन्ड को टाँगे घूम रहे हो ...अमित गुप्ता
ब्लाग हमारे वर्तमान का उजला और अपरिहार्य भविष्य है । आने वाले दिनों में इसके बिना जी पाना असम्भव नहीं तो तनिक कठिन जरूर होगा । विष्णु बैरागी
इनसानियत की दुहाई दे कर आप कितने हिन्दुओ का कत्ल करवाना चाहते है? हमारी कितनी भुमि अक्रांताओ से लुटवाना चाहते है? यह खोखली बाते करना बंद करे मोहल्ले में एक अनाम टिप्पणी
हिंदू या मुसलमान को नहीं, समाज के बुद्धिजीवियों को आत्ममंथन करने की जरुरत है...जो पाखंडी राजनेताओं के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं...उनके ‘वाद’ का ब्रांड चाहे जो हो। विवेक सत्यमित्रम
रंगों की ज़रुरत कभी खत्म नहीं होती... पतंग फटती रहती है। मानव कौल
पहचाने जाने के डर से मैंने एक पहचान बना ली/बालों को छोटा कर लिया और दाढ़ी कटवा ली रवीश कुमार
महिलाओं वाले सेक्शन मे परशुराम की हैल्थ को लेकर काफी चर्चाए हुआ करती थी। वैसे भी परशुराम बनने वाले त्रिपाठी जी,पेशे से तो टीचर थे, लेकिन साथी महिला टीचरों मे काफी पापुलर या कहिए कु-पापुलर थे। जीतेंन्द्र चौधरी
सड़क पर चलते समय मुझे बड़ी कोफ्त होती है, अधिकतर लोग इस काबिल होते ही नहीं कि उन्हें सड़क पर चलने देना चाहिए। आम आदमी
एक कवि/गजलकार की तारीफ़ करना कित्ता खतरनाक हो सकता है यह सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के हवाले से समझा जा सकता है। उनकी गजल की हमने तारीफ़ कर दी तो उन्होंने ये कुंडलिया ठोंक दी:
चिठ्ठा चर्चा बन पड़ी, बढ़िया दस्तावेज। हिन्दी में जो हो रहा, रहे अनूप सहेज॥
रहे अनूप सहेज, यहाँ का गड़बड़झाला। लिख डाला इतिहास,जवाब उन्हें दे डाला॥
सुन‘सिद्धार्थ’ गज़ब-लिखवइया निकला पठ्ठा। चर्चा की चर्चा में लिखता चौचक चिठ्ठा॥
टिप्पणी :मेरा यह विश्वास है कि अच्छे लेखन को किसी सहारे की आवश्यकता नही है और किसी भी लेखन से चिटठा लेखक की मानसिकता साफ़ पता चल जाती है ! पाठकों पर छोड़ दें कि कौन कैसा लिख रहा है, आज जिस तरह नए उदीयमान लेखकों की प्रतिभा सामने आ रही है, यह एक शुभ संकेत है कि एक दूसरे पर कीचड़ फेक कर, अपने को श्रेष्ठ साबित करने में लगे, पुराने लिक्खाड़, जो बेहद घटिया लिख कर भी अपने आपको हिन्दी ब्लाग का करता धरता समझते हैं, के दिन आ गए हैं कि पाठक उन्हें दर किनार कर दे ! सतीश सक्सेना
प्रति टिप्पणी: सतीशजी आप पता नहीं किन करता-धरताओं के बारे में कह रहे हैं लेकिन यह तो शाश्वत सत्य है कि पाठक बादशाह होता है। अपनी मर्जी/मौज का मालिक। जो उसको पसंद आयेगा वह पढ़ेगा। नहीं जमेगा निकल लेगा। बड़े-बड़े करता-धरता अपना भरता समेटते रहते हैं।
टिप्पणी पर, इस सबसे आगे के लिये कोई स्पष्ट दिशानिर्देश परिभाषित नहीं हो पा रहा है../ आपकी निष्ठा से किसी किसिम की बू तो नहीं आरही, फिर इतिहास की दुहाई क्यों ?/आगे की सुधि लेय, गुरु/आगे की सुधि लेय ! डा.अमर कुमार
प्रति-टिप्पणी हमने लिखाफ़िलहाल की चिट्ठाचर्चा मेरी नजर में मेरी समझ में बावजूद तमाम कठिनाइयों के आज जिस रूप में चिट्ठाचर्चा है उसी रूप में चलती रहनी चाहिये। अगर संभव हो तो और साथी चर्चाकार जुड़ सकें तो बेहतर। दिशानिर्देश और कितने साफ़ चाहिये डा. साहब? इस जानकारी को दुहाई न समझा जाये भाई। आगे की सुधि लेने के लिये पीछे का इतिहास टटोला गया। यह जो उनके श्रीमुख से लिखा वह कल इतिहास को ही टटोलते हुये मिला। बहुत बार आपका इतिहास आपके आगे का भूगोल तय करता है।
टिप्पणी:सतीश सक्सेना जी की बात से सहमत हो कर बस इतना कहना जरुर चाहूंगी , चर्चा का मंच हैं , अगर स्तर की चर्चा नहीं हैं तो कोई लाभ नहीं हैं . इतिहास को समय से बदलना भी होता हैं वरना किताबो के पन्नो मे कैद हो जाता हैं . मंच की गरिमा मंच पर हो रहे काम से होती हैं ना की उन नामो से जो मंच का संचालन करते हैं . जब तक कमेन्ट पूरा किया डॉ अमर का कमेन्ट आ चुका था सो अपना कमेन्ट दोहराव करता महसूस हुआ फिर भी रचना सिंह प्रति टिप्पणी: चूंकि सतीशजी और डा.अमर कुमार की बात का जबाब दिया जा चुका है अत: कमेंट दोहराना उचित नहीं होगा!
फ़िलहाल इतना ही। आप सबको इतवार मुबारक! ऊपर की टिप्पणियां देखने के लिये कल की पोस्ट देखें। सभी प्रतिक्रियाओं के लिये आभार!
टिप्पणी-प्रति टिप्पणी के चलते चिठ्ठा-चर्चा स्वयं चर्चा का केन्द्र हो गया है! अच्छा है लोग बहुत रस ले रहे हैं। इसकी पिछली पोस्ट का स्टैटकाउण्ट क्या रहा, बताने पर ज्यादा अन्दाज लगेगा कि लोग कितना झांक रहे हैं इस पर!
भाई शुक्ल जी आज भी सुपर हिट चिठ्ठा चर्चा और खासकर मेरी पसंदीदा एक लाइना ! गजब की एनर्जी है आपमे ! कल की व्यस्तम आपाधापी फ़िर रात को एक पोस्ट और अब सुबह फ़िर हाजिर ! बहुत धन्यवाद आपको और शुभकामनाएं !
वास्तव में,एक ऎत्तिहासिक पोस्ट.. ठीक ही है, हम सब मिलकर इतिहास न भी रच रहें हों, तो इतिहास बनते हुये देखने की भागीदारी तो निभा ही रहे हैं ! निःसंदेह, एक आँख खोलने वाली, या फिर, थोड़ा लिखा समझना ज़्यादा.. बल्कि आँखों को ज्योति प्रदान करती पोस्ट ! एक बाल-बच्चेदार पोस्ट, कड़वा कड़वा थू... मीठा मीठा गप्प.. नहीं नहीं, सच कह रहा हूँ ( पढ़ें लिख रहा हूँ ) पोस्ट वाक़ई ऎतिहासिक है, यह कोई मीठा मीठा गप्प नहीं.. मुझे सच महाशय का जिक्र करना चाहिये था क्या ? सच तो एक छलावा है, सच महाशय पहले भी जाँचे जा चुके हैं, उनकी प्रोफ़ाइल उनके छलिया होने का संदेश अनायास नहीं, बल्कि सप्रयास दे रही है एक और घोस्ट बस्टर, माँ भवानी आदि आदि.. यह 'एक दो तीन.. और लो, हो गया' बड़ा भरमाता है, गुरु पर, इनका आई.पी. ऎड्रेस तो सच ही होगा, न गुरु ? फिर तो, चल खुसरो घर आपनो.. बहुत टाइम खोटी हो रहा है
यह अज़दक कहाँ काम लगाये पड़े हैं, हो ? ख़बर मिले तो सूचित करना.. कल फिर आऊँगा, बाय !
पुराने हिन्दी ब्लॉग लेखकों को उनके किए कार्य का सम्मान मिलना ही चाहिए ! मैंने आपके और तरुण जी के पुराने लेख पढ़े हैं आप लोगों का कार्य सराहनीय है ! " हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ... इस देश को रखना मेरे बच्चों संभल के .." नाविक को इज्ज़त हर हाल में मिलनी चाहिए मगर खेद है जब आपसी मतभेदों की चर्चा खुले में की जाए ... इतिहास के जानकार होने के नाते आप लोगों की, बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं, मगर वह आपलोग संकेतों में ही कहें और आप लोगों की मेहनत से बनें, इस जबदस्त मंच को ! खेमों में न बाँटें ! यह मेरी विनती है, आशा है बुरा न मानेंगे !
सतीशजी, आपकी सदाशयता के लिये मैं आपका आभारी हूं। आपकी सलाह का बुरा मानने की कोई बात ही नहीं है। लेकिन यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों की आपस में कॊई समस्या नहीं। न कॊई आपसी मतभेद। कम से कम हम चर्चाकारों में ऐसे कोई खेमे नहीं हैं! न जाने कैसे आपको यह लगा! और जहां तक रही बात सम्मान की तो ऐसे कोई क्रांतिकारी काम नहीं किये हमने जिसके लिये जिसके लिये हमें सम्मानित किया जाये। यह मात्र संयोग है कि हम यहां पहले आ गये बस्स!
प्रत्यक्षाजी के ब्लाग की चर्चा पेपर में बधाई उनको। ये चर्चा अच्छी लगी कुछ कुछ ऐसी ही होती रहे तो बेहतर। वन लाइनर और टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी अच्छे रहे। अपनी पोस्ट पर लेकिन आपका ये कमेंट समझ में नहीं आया जरा रोशनी डालेंगे क्या आप।
चिट्ठा-चर्चा" के बहाने :एक चर्चा और ! http://sanskaardhani.blogspot.com/2008/10/blog-post_05.html aapakee post se prerit hokar taiyaa hai aabhaaree hoon
टिप्पणी-प्रति टिप्पणी के चलते चिठ्ठा-चर्चा स्वयं चर्चा का केन्द्र हो गया है! एक लाइना ...क्या बात कही है आपने........बढ़िया..... प्रत्यक्षा जी को बधाई!! चिट्ठा चर्चा के संचालकों और समस्त पाठकों को नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें। यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...
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जवाब देंहटाएंअच्छा है लोग बहुत रस ले रहे हैं। इसकी पिछली पोस्ट का स्टैटकाउण्ट क्या रहा, बताने पर ज्यादा अन्दाज लगेगा कि लोग कितना झांक रहे हैं इस पर!
एक लाइना का जवाब नहीं । बहुत अच्छा लगा पढ़कर
जवाब देंहटाएंहर इतवार ऐसी ही फुरसतिया चर्चा होती रहे। आज की चर्चा बहुत सुंदर है, और शिवम् भी।
जवाब देंहटाएंभाई शुक्ल जी आज भी सुपर हिट चिठ्ठा चर्चा और खासकर मेरी पसंदीदा एक लाइना ! गजब की एनर्जी है आपमे ! कल की व्यस्तम आपाधापी फ़िर रात को एक पोस्ट और अब सुबह फ़िर हाजिर ! बहुत धन्यवाद आपको और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंवास्तव में,एक ऎत्तिहासिक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंठीक ही है,
हम सब मिलकर इतिहास न भी रच रहें हों,
तो इतिहास बनते हुये देखने की भागीदारी तो निभा ही रहे हैं !
निःसंदेह, एक आँख खोलने वाली,
या फिर, थोड़ा लिखा समझना ज़्यादा..
बल्कि आँखों को ज्योति प्रदान करती पोस्ट !
एक बाल-बच्चेदार पोस्ट, कड़वा कड़वा थू... मीठा मीठा गप्प..
नहीं नहीं, सच कह रहा हूँ ( पढ़ें लिख रहा हूँ )
पोस्ट वाक़ई ऎतिहासिक है,
यह कोई मीठा मीठा गप्प नहीं..
मुझे सच महाशय का जिक्र करना चाहिये था क्या ?
सच तो एक छलावा है,
सच महाशय पहले भी जाँचे जा चुके हैं,
उनकी प्रोफ़ाइल उनके छलिया होने का संदेश अनायास नहीं, बल्कि सप्रयास दे रही है
एक और घोस्ट बस्टर, माँ भवानी आदि आदि..
यह 'एक दो तीन.. और लो, हो गया' बड़ा भरमाता है, गुरु
पर, इनका आई.पी. ऎड्रेस तो सच ही होगा, न गुरु ?
फिर तो, चल खुसरो घर आपनो..
बहुत टाइम खोटी हो रहा है
यह अज़दक कहाँ काम लगाये पड़े हैं, हो ?
ख़बर मिले तो सूचित करना..
कल फिर आऊँगा, बाय !
पुराने हिन्दी ब्लॉग लेखकों को उनके किए कार्य का सम्मान मिलना ही चाहिए ! मैंने आपके और तरुण जी के पुराने लेख पढ़े हैं आप लोगों का कार्य सराहनीय है !
जवाब देंहटाएं" हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ...
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभल के .."
नाविक को इज्ज़त हर हाल में मिलनी चाहिए मगर खेद है जब आपसी मतभेदों की चर्चा खुले में की जाए ... इतिहास के जानकार होने के नाते आप लोगों की, बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं, मगर वह आपलोग संकेतों में ही कहें और आप लोगों की मेहनत से बनें, इस जबदस्त मंच को ! खेमों में न बाँटें !
यह मेरी विनती है, आशा है बुरा न मानेंगे !
सतीशजी, आपकी सदाशयता के लिये मैं आपका आभारी हूं। आपकी सलाह का बुरा मानने की कोई बात ही नहीं है। लेकिन यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों की आपस में कॊई समस्या नहीं। न कॊई आपसी मतभेद। कम से कम हम चर्चाकारों में ऐसे कोई खेमे नहीं हैं! न जाने कैसे आपको यह लगा! और जहां तक रही बात सम्मान की तो ऐसे कोई क्रांतिकारी काम नहीं किये हमने जिसके लिये जिसके लिये हमें सम्मानित किया जाये। यह मात्र संयोग है कि हम यहां पहले आ गये बस्स!
जवाब देंहटाएंप्रत्यक्षाजी के ब्लाग की चर्चा पेपर में बधाई उनको। ये चर्चा अच्छी लगी कुछ कुछ ऐसी ही होती रहे तो बेहतर। वन लाइनर और टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी अच्छे रहे। अपनी पोस्ट पर लेकिन आपका ये कमेंट समझ में नहीं आया जरा रोशनी डालेंगे क्या आप।
जवाब देंहटाएंएक लाइना पसंद आयी!!प्रत्यक्षा जी को बधाई!!
जवाब देंहटाएंआपको आभार ॥हमारा प्यार॥चिठ्ठा परिवार!!
और अब नमस्कार
दीपक
चिट्ठा-चर्चा" के बहाने :एक चर्चा और !
जवाब देंहटाएंhttp://sanskaardhani.blogspot.com/2008/10/blog-post_05.html
aapakee post se prerit hokar taiyaa hai
aabhaaree hoon
टिप्पणी-प्रति टिप्पणी के चलते चिठ्ठा-चर्चा स्वयं चर्चा का केन्द्र हो गया है!
जवाब देंहटाएंएक लाइना ...क्या बात कही है आपने........बढ़िया.....
प्रत्यक्षा जी को बधाई!!
चिट्ठा चर्चा के संचालकों और समस्त पाठकों को नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें।
यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...
प्रत्यक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा, संतुलित जबाब.
बधाई वं शुभकामनाऐं.
चौचक चर्चा के लिए शुक्रिया...।
जवाब देंहटाएंखतरा तो आप मोल ले ही चुके हैं।
प्रत्यक्षा को बधाई ...
जवाब देंहटाएंप्रति टिप्पणिया बहुत धारधार रही.. आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएंजानलेवा! क्या बात है अगली कविता कुछ इसी पर दूँ तो शायद बेहतर हो।
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