रविवार, अक्तूबर 19, 2008

जहाँ विश्वास होता है वहाँ फिर भ्रम नहीं होते



चिट्ठाचर्चा के इस प्रथम सत्र में सर्वप्रथम अनूप जी की सदाशयता के प्रति आभारी हूँ , जिन्होंने आप सभी से इस प्रकार संबोधित होने का अवसर दिया आप सभी किसी न किसी रूप में ज्ञान, कुल, शील, वय, मर्यादा आदि में मुझसे बड़े होंगे, अत: सभी को प्रणाम निवेदित करती हूँ ।



इस बीच एक चिंता यह व्यापती रही है कि जो सद्भावनापूर्ण सहज मैत्री व हास्य का चुटीला वातावरण अनूप जी ने अपने इस चर्चामंच पर निर्मित किया हुआ है, जाने उसे उसी सहजता व आत्मीयता से उसी प्रकार जीवंत बनाए रख पाऊँगी अथवा नहीं। पुनरपि आप सभी की आत्मीयता के भरोसे इस कार्य का दायित्व लेने का साहस बना है ऐसी आशा ( विश्वास) तो निस्संदेह मन में कहीं रमा ही है कि अनूप जी की ही भांति आप सभी भी अब इस चर्चामंडल के एक नए सदस्य के रूप अपनी आत्मीयता से कृतार्थ करेंगे व किसी भी टिप्पणी को व्यक्तिगत अथवा अन्यथा नहीं लेंगें।


कल जब अनूप जी का फोन आया तो अकादमी में काव्यपाठ के लिए आमंत्रित थी, अत: बात न हो सकी, पश्चात उनका सुझाव था कि इस कार्यक्रम पर कुछ लिखूँ। अभी उसमें पढी गयी एक कविता की ही चर्चा करूँगी। शरदपूर्णिमा अभी अभी बीती है, जो इस पूर्णिमा के पारम्परिक रूप से परिचित हैं और वास्तविक कविता का रसास्वादन करना चाहते है उन्हें गीत गोविन्द के एक प्रसंग पर केंद्रित वह कविता अवश्य रुचेगी। प्रिय चारुशीले! शीर्षक उस कविता को आप यहाँ भी देख पढ़ सकते हैं।



इसी भाव में डूबे हुए मैं तो जाऊँ न जमुना किनारे ...का जादू भी देखा जा सकता है


जनहित में काम आने वाली महत्वपूर्ण सहायता के लिए अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराने की इच्छा से लिखी गई प्रविष्टि के रूप में शासकीय कर्मचारी चुनाव हारने के बाद नौकरी में कैसे लौटे? को सहेजा जा सकता है।


देह व्यापार और मानव तस्करी का अड़डा है छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र ....और भटकते हुए जितेन्द्र उसकी चिन्ता में लगे हैं।



कंकर पत्थर की गारंटी नहीं पर मुद्रा के प्रवर्तन से पहले के काल में विचरने का मन हो तो भात का प्रबन्ध पक्का समझें।



हिन्दी चिठ्ठों के ताजा समाचार ले कर आया है - ब्लॉग समाचार

इन सारे समाचारों के बीच समाज पर तमाचा मारने को विवश करती गुमसुम घर की जान
और ऊपर से दुर्भाग्य यह कि जान बची रहने के बावजूद फिर भी जिंदगी लावारिस

इन पीड़ादायक वस्तुस्थितियों में डूबे परिवेश में एक सत्यकथा का सुखद अन्त हुआ और इसी से याद हो आई असल राजकुमारी की असल कथा काश! सबके जीवन के सुमंगल ऐसे ही लौटें।


आज छुट्टी के दिन घर आप को अपने नगर के ट्रैफ़िक से टक्कर नहीं लेनी ऐसे में भला ट्रैफिक रिपोर्ट तक से परहेज करेंगे तो कैसे चलेगा? बताईये तो!
इसमें कोई बहस नहीं सुनी जाएगी वरना ट्रैफ़िक से भरे नगरों में चोटिल हो कर और फिर आईसीयू में भरती होकर भी प्रतिवाद करने से बाज न आने वाले को क्या कहते होंगे भला? बूझो तो जानें। वही आपको कहा जाएगा।



ऐसे में परेशान हो कर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूँढने वाले और वित्तीय संकट के चलते परेशान व निरर्थक घूमते ब्लॊगरों से निवेदन है कि बैगन ....? नहीं खाएँ नहीं ..... व्यावसायिक सहायता के लिए मार्गदर्शन लें।


अन्यथा अपनी जवाबदेही का भरोसा हमें स्वयं नहीं है; तभी तो ऐसे जोड़ तोड़ में जुटना पड़ा कि सारा गुड़ गोबर करने वाली हरकत का अंजाम तक सोचे बिना नकल की लालसा तक को रोका न जा सका।

महिलाओं की जिन्दगी बचाने के प्रयास : लिव इन ....


करीना को : मास्टर जी की आई चिट्ठी


डांस में माहिर मुर्गे की टांग तोड़ते : मेरे बच्चे


सूचनाओं के संसार में : मैं कुत्ता


यूँ न खाएँ : आरोग्यवर्धिनी


नींद न आने की बीमारी : आदिवासियों की परम्परा


प्रेत के वशीभूत : हाथी मत दान करो



देशी विदेशी भाषा की कविता के विविध रूपों में हार्दिकता का जुड़े रहना मानव होने की प्रतीति का सबसे अचूक उपाय है।


हिन्दी में कविताओं का संचयन देखना हो तो .... जब चाहें।


पीले पन्नों के काले-काले अक्षरों को बाँचने में लगे महेन ने हेरमान हेस्से से भाषान्तरित होकर आई कविता को कुछ यों प्रस्तुत किया -


कितने कठिन हो गए हैं दिन
कोई आग तपा नहीं पाती मुझे
सूरज हँसता नहीं मेरे साथ
सब कुछ सूना है
सबकुछ ठंडा और कठोर
प्यारे, स्वच्छ तारे भी
देखते हैं मुझे
नीरसता से
जबसे मैनें दिल ही दिल में जाना
कि मर सकता है प्रेम।


पंजाबी के ख्यातिलब्ध कवियों की कुछ रचनाएँ देवनागरी में बाँचना पसन्द करेंगे आप?
उलफ़त बाजवा की एक कविता देखें - 'सारा जहान मेरा' से


करदा है पाठ पूजा संसार उतों उतों।
करदा है रब वी इस ते इतबार उतों उतों।

पाउंदे ने फुट घर घर इह चालबाज़ लीडर
करदे ने एकता दा परचार उतों उतों।

रिशवत मिले तां लईए इमानदार बण के
सिर फेर फेर करीए इनकार उतों उतों।

चड़्हिआ है ताप सानूं इह मारदी ए हूंगाकरदी
करदी ए हाए हाए सरकार उतों उतों।

चंगा सी साध बणदे ते ख़ूब मौजां लुटदे
नाले तिआग छडदे संसार उतों उतों।

ज़रदार हो के करीए मज़दूर दी वकालत
मिहनतकस़ां दे बणीए ग़मखार उतों उतों।

महिलां 'च बहि के लिखीए झुगीआं दा हाल
'उलफ़त'भुख मारिआं दे जाईए बलिहार उतों उतों।



मराठी देख लें


गांधीवाद की परिभाषा


गांधीजी पंचा नेसत होते.
आम्ही बाजारू खादी नेसतो.
ही आमची गांधीवादाची मर्यादा
--नक्राश्रू ढाळू नकोस।


अर्थात


Gandhiji wore loincloth of Khadi
We patronise marketed Khadi
That’s our limit of Gandhism
–Don’t shed crocodile’s tears।


स्त्री लेखन की बात करें तो
बाएँ हाथ से लिखने वाली २ बच्चों की माँ व Fox News Channel से सम्बद्ध Michelle Malkin विश्व की शीर्ष ब्लॊग लेखिका हैं, जो देश व समाज आदि पर जम कर अपनी कलम चलाती हैं। अमेरिका में उपराष्ट्रति पद की प्रबल दावेदार Joe Biden के एक वक्तव्य के सन्दर्भ में इनके विचार कुछ यों रहे।



दूसरी ओर इस क्रम में अगली महिला Heather B. Armstrong हैं जो स्त्री जीवन से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय दिखाई देती हैं। इनकी प्रविष्टि पर टिप्पणियों का आँकड़ा ६३३ है।


अभी गत प्रविष्टि में ही अनूप जी ने टिप्पणियों पर विशद चर्चा की है। ६०० और उस से ऊपर का आँकड़ा छूने की पुरजोर कोशिश में कथ्य से समझौता न करना व ज्वलन्त विषयों पर कलम चलाना जैसे गुर ऐसी पोस्ट को देख कर सम्भवत: किसी किसी को गले उतरते जान पड़ें।


आप सभी की हर प्रविष्टि के लिए ऐसी शुभकामना करती हुई कल रात बाँचे अपने काव्यपाठ का एक मुक्तक आप सभी से बाँट रही हूँ



समय के साथ यादों के घरौंदे कम नहीं होते
हमारे साथ रोई रात तारे नम नहीं होते
किसी झूठी हँसी पर लाख मोती वारने वालो!
जहाँ विश्वास होता है वहाँ फिर भ्रम नहीं होते


नए चिठ्ठे : यथासमय प्रोत्साहन दें

इंडियन फ़ूड कांसेप्ट
(http://mazedarindianfoodconcept.blogspot.com/)

Hindi blog for all
(http://techgurudevhindi.blogspot.com/)

sandhya gupta (http://guptasandhya.blogspot.com/)

parijat (http://parizat.blogspot.com/)

VIKAS PATERIA jabalpur adhartal
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विचारो का मंथन (http://desh2009.blogspot.com/)

चुनावी दंगल (http://chunav2009.blogspot.com/)

Treasure mmmmML (http://ptreasure.blogspot.com/)

१० कोई फर्क नहीं अलबत्ता... (http://maheshliloriya.blogspot.com/)


सभी की अच्छी बुरी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी-
क.वा.

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26 टिप्‍पणियां:

  1. ग्रेट! ओपनिंग इतने धुआंधार अन्दाज में। बहुत मेहनत और बहुत समग्रता से देखा है आपने आज की पोस्टॊं को!

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  2. शानदार शुरुआत
    सबसे अच्छा तो शीर्षक रहा सच जहाँ विश्वास होता है वहां भ्रम नही होते

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  3. बधाई चर्चाकार बनने की . हम भी लाइन में हैं आते हैं . वैसे ओपनिंग ग्रेट रही . फिर से बधाई .

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  4. बहुत सही ।आपका स्वागत है लेखन में बहुत से ब्लाग हैं पर चिट्ठाचर्चा के अपना अलग महत्तव है ।

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  5. बेहतरीन रही चिठ्ठा चर्चा ! शुभकामनाएं !

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  6. .अब क्या टिप्पणी करूँ जी...
    कविता नाम ही ऎसा है,
    कि कीबोर्ड पकड़ने मात्र से ही अन्य भाव तिरोहित हो जाता है
    सो, अब क्या टिप्पणी करूँ जी...
    नाम भी आपका कविता है, लिखती भी आप कविता हैं,
    पढ़ती तो आप कविता हैं ही, पर लगता है जीती भी आप कविता ही हैं
    ज़ाहिर है, कि आपकी चिट्ठाचर्चा भी कविता ही होगी
    सो सत्यवचन, आज की चिट्ठाचर्चा कविता का आनन्द दे रही है, जी
    किस विश्वास से याहूग्रुप्स से ही आपको फ़ालो ( यह गूगल ब्लागर वाला फ़ालो है )करता आया यह नहीं बताऊँगा
    क्योंकि अच्छा पढ़ने का सुख था वह
    और यह भी मेरा भ्रम था कि आप बहुत ही एरोगैन्ट किसिम की विद्वान हैं क्योंकि... खैर छोड़िये
    आज जाकर दोनों को अलग कर पाया हूँ
    आपके विद्वान होने का विश्वास तो पुख़्ता हुआ है, पर..
    आपके एरोगैन्ट का भ्रम टूट गया
    सहज संवाद स्थापित करती हुई सी है यह चिट्ठाचर्चा

    अनूपजी आपको कैसे मनाये यह मेरा विषय नहीं..
    पर जाते जाते थोड़ा छेड़ने का मन कर रहा है, कर लूँ ?
    इतनी कवितामय सोच जीवित रखने को
    और इतनी अच्छी कवितायें उत्सर्जित करने को..
    आखिर आप खाती क्या हैं, कविता जी ?
    मेरा मतलब है, कि खुराक कहाँ से मिलती है जी ?

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  7. कविता जी इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए मुबारकबाद्। पंजाबी कविताएं अगर देवनागरी में लिखी पढ़ने को मिल जाएं तो बहुत ही अच्छा रहेगा। ये कविता भी बहुत अच्छी है। आप की अगली चर्चा का इंतजार रहेगा

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  8. चिट्ठा चर्चा दल में आपका आत्मीय स्वागत है. उम्दा चर्चा रही.

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  9. स्वागत है. बहुत ही बढ़िया रही, चिट्ठाचर्चा. बहुत मेहनत के साथ और विविधता लिए लिए हुए.

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  10. आम हिन्दी भाषा से हटकर साहित्यिक भाषा की चिटठा चर्चा अच्छी लगी कही से ऐसा नही लगा की यह आपकी पहली पोस्ट है यहाँ पर

    वीनस केसरी

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  11. आपका स्वागत है..आते ही आप तो छा गई. मेरी बहुत बधाई स्वीकारें एवं ढ़ेरों शुभकामनाऐं.

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  12. चर्चाकार ने अपनी विहंगम दृष्टि में पूरा चिट्ठा आकाश ही तैर कर पार कर लिया हो जैसे.. ऐसा कुछ और शीर्षक तो भाई वाह।
    नये चिट्ठों की सूची ने मन मुदित किया।

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  13. अब मैं क्या कहूँ!

    आप सभी के स्नेह ने तो मुझे भाव विगलित ही कर दिया है। सारा श्रम और जागरण जैसे तिरोहित ही हो गया है। पाण्डे जी के पहले कमेण्ट के साथ आरम्भ हुआ यह आशीषों का सिलसिला जैसे पाथेय है मेरे लिए। नाम परिगणन किए बिना कहूँ तो सभी की कृतज्ञ हूँ।

    और हाँ, अमर कुमार जी! आप ऐसे ही अपनी जबरदस्त टिप्पणी से फुलाय देंगे तो कुछ भी खाने की नौबत भला कैसे आएगी? डायटिंग वालों के जमाने में वैसे भी कतई जमाने के साथ न चलने वाली किस्म की जीव हूँ मैं।

    अब रही खुराक की बात तो .....
    जाने दीजिए सारे खुलासे पहली ही सिटिंग में कर देंगे तो आगे क्या कहेंगे?
    सर्वश्री-
    ज्ञानदत्त जी,रौशन जी, विवेकजी, ताऊ जी,निशू जी, रतनजी, रविभाई,अनीता जी,मिश्राजी,उन्मुक्त जी,केसरीजी,वशिष्ठ जी,समीर भाई, आशीष जी व संभावित सभी पधारने वालों के प्रति हार्दिक विनम्रता से पुन: धन्यवाद कहती हूँ।

    सद्भाव बनाए रखें।

    सादर!

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  14. आपकी सद्भावपूर्ण चर्चाएँ ''चिट्ठाचर्चा'' को नया आयाम देंगी -----इसके सूत्र इस पहली प्रविष्टि से ही प्राप्त हो गए हैं.


    हिन्दी के साथ साथ अन्य भाषाओं के चिट्ठालेखन का भी झरोखा-दर्शन इस स्तम्भ को और भी रोचकता प्रदान करेगा --खासकर भारतेतर भाषाओं का सन्दर्भ.


    इस प्रविष्टि में आपकी सर्जनात्मक शक्ति का संस्पर्श जिस तरह सारी चर्चा को सहजता के साथ विशिष्ट बनाने में सफल रहा है , आशा है कि आगे उसमें और-और निखार आएगा.


    ''प्रिये चारुशीले'' का उल्लेख करके आपने जो सम्मान दिया है. उसके लिए आभारी हूँ.



    शुभास्ते पन्थानः .

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  15. कविता जी धन्‍यवाद तो आपने
    मेरी टिप्‍पणी के लिए पहले ही
    दिया है दे
    पर आपने मेहनत खूब की है
    मानना पड़ेगा।
    अच्‍छा लगा, स्‍वागत है
    जारी रहियेगा।
    और शरद पूर्णिमा की खीर
    का आनंद नीचे के लिंक में
    भी लीजिएगा

    http://tetalaa.blogspot.com/2008/10/blog-post_14.html शरद पूर्णिमा की खीर

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  16. Charcha dal me swagat hai aapka, pehli hi ball me chakka, bahut sundar aur vistrit charcha.

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  17. वाह! बहुत अच्छी चर्चा। पहली बार में बहुत अच्छी विस्तृत चर्चा। आगे भी आपके चर्चाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

    जवाब देंहटाएं
  18. आप का चिटठा दूसरे चिट्ठों के बारे में कुछ कहता है, पर मुझे चिट्ठे के शीर्षक ने आकर्षित किया.

    यह बात बिल्कुल सही है कि जहाँ विश्वास होता है वहाँ फिर भ्रम नहीं होते. विश्वास जीवन का आधार है. विश्वास रहित जीवन मरूस्थल की रेत जैसा रूखा होता है. हमारे जीवन में विश्वास की बहुलता हो इस के लिए हमें पहले ख़ुद पर विश्वास करना सीखना होगा. एक गीत है - दूसरों की जय से पहले ख़ुद को जय करें.

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  19. स्वागत डॉ वाचक्नवी !! मुझे पूरा यकीन है कि जिस तरह से एक और टुकडा आ जुडने पर एक चित्रपहेली और अधिक स्पष्ट हो जाती है उसी तरह आपके योगदान के कारण चिट्ठा चर्चा और अधिक विविधता से भर जायगा.

    आपकी पहली चर्चा एकदम पठनीय एवं चिंतनीय बन गई है. ऐसा लगता है कि आप काफी समय से यह कार्य करती रही हैं -- मेरा अनुमान है कि यह आपके अनुसंधान-पृष्ठभूमि का असर है.

    लिखती रहें, बहुत से लोग आपके आलेखों का इंतजार कर रहे हैं!

    -- शास्त्री

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  20. कविता जी चर्चा बहुत बढ़िया रही.. पहली ही चर्चा में आपने पूरी मेहनत व लगान डाल दी है... बहुत ही बधाई

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

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