आज की चर्चा की शुरुआत बोल्ड लेखन के जिक्र से। बरेली में अध्यापिका के रूप में कार्यरत अनुजा अपने बेधड़क और बेबाक लेखन के लिये जानी जाती हैं। उनके बारे में दैनिक हिन्दुस्तान के मेरठ संस्करण में लेख प्रकाशित हुआ। यहां दिया हुआ यह लेख मुझे मनविन्दरजी के माध्यम से मिला। अनुजा जी को बधाई। आशा है कि आगे भी उनके लेखन के विविध आयाम दिखते रहेंगे।
कल लिव इन रिलेशनशिप पर काफ़ी पोस्टें आईं। लिवइन रिलेशनशिप में जो बिना विवाह किये पर्याप्त समय तक पत्नी की तरह साथ रहने वाली महिला को पत्नी जैसा दर्जा की बात कही है। यह थोड़े कहा गया है कि लिव इन अपनाओ पत्नी बन जाओ।
साहिल ने लिखा यदि लिव इन रिलेशन जैसे संबंधों को सरकार और समाज में स्वीकृति मिल जाएं, तो भारत का कल्चर तबाह हो जाएगा। इस मसले पर मनीषा खत्री ने लिखा कि लिव इन सम्बन्धों सेब्लैकमेलिंग बढ़ेगी।
अधिवक्ता नवीन माटा का कहना है कि इस तरह के कानून की जरूरत ही नहीं है। इस तरह का कानून भारतीय समाज की पवित्रता को खराब करेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के रिश्ते में रहने वाली महिला गुजारा भत्ता तो घरेलू हिंसा कानून के तहत मांग ही सकती है। वहीं अवैध बच्चे को पिता की संपत्तिमें अधिकार मिल सकता है यह आदेश सुप्रीम कोर्ट दे ही चुका है फिर इस कानून की क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मो को देखते हुए यह कानून विवाद को तो जन्म देगा ही दूसरी तरफ महिलाएं इस कानून का दुरूपयोग करके ब्लैकमेलिंग का काम भी शुरू कर सकती है। वहीं कानूनी तौर पर शादी कर आई पत्नी का अधिकार बांटा जाने का डर हमेशा बना रहेगा।
द्विवेदीजी इसी पोस्ट पर द्विवेदीजी टिपियाते हुये कहते हैं-लिव-इन-रिलेशनशिप लगता है समाज की जड़ता पर सब से बड़ा प्रहार है। शायद वे कहना चाहते हैं- लिव-इन-रिलेशनशिप अपनाओ-समाज की जड़ता भगाओ। द्विवेदीजी का तो मानना है कि लिव-इन-रिलेशनशिप 65% से अधिक भारतीय समाज की वास्तविकता है। इन सम्बन्धों को फ़र्स्ट डिवीजन में पास करने के लिये उन्होंने समाज
के अनुसूचितजाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आंकड़े दिये। प्रथा और चलन तो न जाने क्या-क्या रहे हैं द्विवेदी जी! कृष्णजी की तो बताते हैं सोलह हजार रानियां थीं। वैसे इस रिश्ते पर कुछ हाहा देखना हो तो वो भी मौजूद है जी-अगर सास को साथ रखना होता तो विवाह न करती, लिव-इन किसलिए किया?'
तरुण ने कल एक लेख के माध्यम से बताया कि बच्चे और इंटरनेट सुरक्षा के बारे में बताते हुये लिखा-ध्यान रहे बच्चों के लिये या बच्चे के द्वारा अगर ईमेल एकाउंट बनाया जाता है तो उसमें कम से कम सूचनायें भरें, उतनी ही जिनके बिना एकाउंट नही बन सकता।
फ्री में कुछ नही मिलता, बच्चे अक्सर ऐसे गेम और सोफटवेयर डाउनलोड करने के लिये ढूँढते रहते हैं जो फ्री में उपलब्ध हों। इन फ्री के सोफ्टवेयर के साथ अक्सर आते हैं स्पाईवेयर या एडवेयर जो वास्तव में इन सोफ्टवेयर की छुपी हुई कीमत होती हैं।
एक एस.एस.पी. का बेटा एक लूट की साजिश में संलिप्तता के लिये पकड़ा गया। रंजन राजन का मत है कि इसपर उसके एस.एस.पी. पिता को त्यागपत्र दे देना चाहिये लेकिन एक कमजोर बाप की टिप्पणी है-
बेटे की गलती के लिए बाप को क्यों ठोक रहे हो भाई। अपना चिट्ठा है ठोको, कोई थोड़े ही रोकने आ रहा है।.... मेरे विचार से पुलिस ने सराहनीय काम किया है कि एसएसपी के दबाव में न आकर उसके बेटे को दोषी ठहराया है। लेकिन जब तक उसके पिता की संलिप्तता साबित नहीं होती, उसे पद पर बने रहने दिया जाना चाहिए।
टिप्पणी की ही बात चली तो देखिये कि ज्ञानजी के ब्लाग पर विश्वनाथ जी की टिप्पणी ही उनकी आज की पोस्ट बन गयी और नीशू समीरलालजी का निवेदन दोहराते हैं- टिपिया के न चलते बनें। और अगर आप ब्लागजगत की सबसे अच्छी प्रतिक्रिया का जिक्र देखना चाहते हैं तो यहां देखिये।
कामकाजी महिलाओं (मिहलाएं नहीं है जी अशोकजी )की सुरक्षा पर लिखी गयी पोस्ट पर आई प्रतिक्रियायों का जिक्र डा.अशोक प्रियरंजन अपने ब्लाग पर करते हैं।
जबलपुर में कोरियोग्राफ़र रही स्व. भारती सर्राफ़ की याद में यह लेख पढ़ें।
अनिल पुसदकर जी ने राजनैतिक प्रभाव और आर्थिक दबाव में कलम को दम तोड़ते देख पत्रकारिता छोड़ ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा है। पिछले दिनों उनके लेख श्रंखला मोहन चंद शर्मा की तरह शहीद होकर बेईज्जत होना अच्छा है या सेटिंग करके पोस्टिंग करवाना ने ब्लाग जगत में संवेदनशील लोगों के मन में काफ़ी हलचल मचाई। अनिलजी को बस्तर पर केंद्रित संवेदनात्मक लेखन के लिए रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर का शहर की कई संस्थाओं ने मिलकर डीजीपी के हाथों सम्मान किया गया।
इस पर संजीत ने लिखा -जिनके खिलाफ लिखा है वही सम्मान कर रहे हैं अर्थात पुलिस के खिलाफ लिखा और डीजीपी के हाथों ही सम्मान! होशियार रहें अनिल जी !आगे झांसे में आने से बचना। सावधान रहिये वर्ना जिसको खिलाफ़ लिखोगे, पकड़ के सम्मानित कर देगा।
अनिल जी को हमारी बधाई।
घुघुतीजी काफ़ी दिन के बाद वापस आयीं हैं और पूछती हैं
-जब सहारे ही कोमल बेल बन जाएँ
तो बेलें सहारे को कहाँ जाएँ ?
अजितजी बुधराम यादव जी का गीत पेश करते हैं:
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
किसके राम दुवारे जायें लेकर दर्दों की बारात ||
प्रीति बड़्थ्वालजी लिखती हैं:
सिर्फ आंसू ही रह गये थे,मैंने आज कौतूहल वश देखा कि प्रीतिजी की कवितायें बिना आंसुऒं के जिक्र के नहीं होतीं। पिछले दो-तीन महीनों की पोस्टों में एकाध ही पोस्ट बिना आंसुओं के लिखी उन्होंने। कविता में नहीं तो फोटो ही सही! प्रीतिजी को बिन मांगी सलाह और अनुरोध है कि वे कभी-कभी गद्य भी लिखा करें जैसे - ये लिखा!
आंखों में,
उसकी एक आदत की तरह,
वो जब भी मिला तन्हाई में,
मुझसे,
तो बात हुई,
एक शिकायत की तरह।
मानसी लिखती हैं:
चलो आज फिर लौट जायें
माप लें फिर से समंदर
चलो फिर उड़ कर के छू लें
आसमान के उड़ते पर
डा.प्रवीन चोपड़ा मेडिकल टेस्ट के बारे में बता रहे हैं- शुरुआत कार्डियक ईको टेस्ट से।
एक लाइना
- यह सबसे बड़ी टिप्पणी है! : इसलिये इसको पोस्ट बना लिया गया
- भूतनाथ गया यूनिटी के साथ छुट्टियां मनाने !:आप सर पीटते रहिये
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- दरअसल हम सूअरों को उसी सड़ांध में थूथन मारने में मजा आता है : लागी छूटे न
- पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :शास्त्रीजी से मिलो वो यही सब कराते हैं
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- एक तरफा बात से मुद्दे और उलझते हैं: इसलिये बात बंद
- अब रावण मारना मुश्किल है:क्योंकि दशहरा बीत गया
- नाम नमाज, काम सड़क जाम : मतलब एक पंथ दो काज
- ये मेरे पाँव हैं : अच्छा! हम तो कविता समझे थे
- अजीब सोच : बहुतै अजीब है जी
- बेकार और बेमतलब का हो-हल्ला है, स्त्री विमर्श : वही तो हम भी कह रहे हैं
मेरी पसन्द
मैंने बातों से बातें कातींकई सफ़ेद कपास की बातें
और एक रेशम का धागा जोड़ा
नीला समंदर कातने
छोटी छोटी लहर काढ़ने
और आकाश में उड़ाने पंछी
सूत में रेशमी धागा
कई हज़ार सितारों से जड़ा
महीन मोतियों से गढ़ा
बातें तो सादी थीं
रेशम से उलझ कर
सिरा खो गया कहीं
जो सिरा मिल जाता
पूरा तन ढक जाता
मन छुप जाता
और बातें कात लेतीं
बातों से मन को
पूरा विश्व समा जाता
एक आकृति बन जाती
तुम्हारे जाने से पहले...
मानसी
टिप्पणी चर्चा
- टिप्पणी :भगत :वाकई इत्मिनान से की गई चर्चा। अच्छी लगी।
प्रति टिप्पणी: हां भैया, इत्मिनानै से किये थे। आपको पसंद आई शुक्रिया। - टिप्पणी:दिनेशराय द्विवेदी : अब क्या कहें इस के छपने और पढ़ने के पहले चम्बल में बहुत पानी बह गया।
प्रति टिप्पणी:दिवेदीजी कह तो आप बहुत कुछ चुके। पानी किफ़ायत से इस्तेमाल करें। बहायें नहीं! - टिप्पणी: ज्ञानदत्त पाण्डेय: एक लाइना:इतवारी चर्चा जरा इत्मिनान से - तगड़े ब्रंच के बाद!
प्रति टिप्पणी: ज्ञानजी,ब्रेंच आपको नसीब होता होगा। हम तो ब्रेकफ़ास्ट करके दफ़्तर में लग लिये कल। लंच में पोस्ट किये चर्चा। - टिप्पणी:विनय kahe jaao bhai, achchha hai...
प्रति टिप्पणी:: शुक्रिया, कहे जाओ भाई अच्छा लगता है। - टिप्पणी:शास्त्रीजी: "पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :ताकि उससे लिवइन रिलेशन बना सकूं "
आपका हर एक-लाईना इतना क्लासिक होता है कि जवाब नहीं है.
एक बात बातायेंगे क्या: आपकी क्रियाशीलता का रहस्य क्या है (यकीन रखिये मैं किसी को नहीं बताऊंगा) जिसे मैं भी जरा सेवन कर सकूँ!!!
प्रति टिप्पणी: शास्त्रीजी हमारी क्रियाशीलता का राज आपकी पोस्टों के शीर्षक हैं। - टिप्पणी:नीशू: अनुप जी एक लाइना है लाजवाब । हंसी थमती ही नहीं । बहुत बढिया!
प्रति टिप्पणी: सही है हंसते रहो जी। कौन पैसा लगता है! - टिप्पणी:एस. बी. सिंह: सुंदर और सटीक कमेंट्स
प्रति टिप्पणी: शुक्रिया। - टिप्पणी:हरि जोशी, अरे पंडित जीश्
आपउ रहम नाहें खाए मास्टरन पे
प्रति टिप्पणी: अरे जोशीजी, मास्टर क्या तरस खाने की चीज हो गये? - टिप्पणी:प्रवीण त्रिवेदी"अगले जनम मोहे मास्टर ना कीजो: पढ़े-लिखे हो इसी जनम में छोड़ दो नौकरी"
लगता है की अब ब्लोगरी छोडनी ही पड़ेगी!
इतनी कड़वी गोली ?
फ़िर भी बढ़िया!
प्रति टिप्पणी: कड़वी गोली अक्सर बढ़िया होती है। लेकिन ब्लागरी काहे छोड़ेंगे। ब्लागरी छोड़ें आपके दुश्मन! - टिप्पणी: कविता वाचक्नवी हम भी पूरे इत्मीनान से आए,बाँचे,मुस्काए और कुछ कहे बिना रह न सके। ???????बहुत अच्छा लगा!!
प्रति टिप्पणी: हमें भी अच्छा लग रहा है कि कविताजी मुस्करा रही हैं। - टिप्पणी:लवली :इतवारी चर्चा जरा इत्मिनान से -वाकई बहुत अच्छी..
प्रति टिप्पणी: शुक्रिया, वाकई बहुत शुक्रिया। - टिप्पणी:ALOK PURANIK :क्या केने क्या केने
प्रति टिप्पणी: कुछ भी कहो, कुछ तो कहो! - टिप्पणी:सतीश सक्सेना: शास्त्री जी की बात से सहमत हूँ ! एक दम क्लासिक !
प्रति टिप्पणी:सतीशजी, शास्त्रीजी की इस बात सहमत हुये ये तो अच्छा है! लेकिन शास्त्रीजी की सब बातें सहमत होने वाली नहीं होतीं। - टिप्पणी:ताऊ रामपुरिया :शुक्लजी आप जब इत्मीनान से कहते हो मतलब इत्मीनान ! एक लाईना बांचने में पुरी २० मिनट लगती है ! पहले उनको पढ़ कर कही आगे जाने का मन होता है ! पुरी एक पोस्ट के बराबर ! फ़िर भी मन नही भरता ! हमको तो इसकी सोप-ओपेरा जैसी आदत लग गई ! बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
प्रति टिप्पणी:ताऊजी हम आपके आभारी हैं जो आप इसमें सोप-ओपेरा जैसा मजा लेते हैं। इसे लिखते हुये समय लगता है लेकिन जब आपकी टिप्पणी मिलती है तो लगता है मेहनत और समय सार्थक हुआ। - टिप्पणी:Manoshi :मज़ा नहीं आया इस बार। एक एक लाइन में निपटा दिया आपने अधिक से अधिक चिट्ठों को समाने के चक्कर में। कम चिट्ठें हों पर विस्ट्रुत हो तो अच्छा लगता है। ऐसी एक एक लाइन तो हमें ब्लागवाणी पर मिल जाती है।
प्रति टिप्पणी: टिप्पणी का शुक्रिया। यह लफ़ड़ा होता है समय की कमी के चलते। चिट्ठों की चर्चा विस्तार से नहीं हो पाती। वैसे ब्लागवाणी पर ऐसी एकलाइना कहां मिल्ती हैं, लिंक बतायें हम वहीं से टीप लिया करेंगे! - टिप्पणी:Manvinder :sunday is in air.......good
प्रति टिप्पणी:इतवार हुआ चला गया, अब सोमवार की बहार है। - टिप्पणी:PREETI BARTHWAL इत्मिनान चर्चा काफी इत्मिनान से हुई धन्यवाद अनूप जी।
प्रति टिप्पणी: आपका भी शुक्रिया कि आपने बहुत दिन बाद पोस्ट लिखी। लेकिन इत्ते आंसू !! कुछ मुस्कान के भी किस्से लिखिये। - टिप्पणी: anitakumar :आज की वन लाइना तो गजब की हैं…।:)हमेशा की तरह चर्चा बड़िया रही। कौन सी कविताएं सुनवाने वाले हैं। कवि सम्मेलन में सिर्फ़ अस्सी साल का बचपना ही देखा या कोई कविता भी रिकॉर्ड की, सुनाइए न। अरे सिर्फ़ शास्त्री जी को ही क्युं हमें भी बताइए, हम कौनुहु गुनाह किए जी। ये प्रसाद हमें भी चाहिए। कौन आदित्य,इस बच्चे का नाम तो हमारे बेटे के नाम से मिलता ही है, आखों की शरारत भी बिल्कुल वैसी है। GOD BLESS THE CHILD
प्रति टिप्पणी:अनीताजी, शुक्रिया। हम केवल बचपना देख पाये और कविता रिकार्ड नहीं कर पाये। शास्त्री की तरह ज्ञानी सब थोड़े ही हैं जी। उनको जो समझ में आता है वह सबको कहां आयेगा? इसीलिये देखिये उनसे सब लोग कैसी-कैसी बाते पूछते हैं। आपसे किसी ने पूछा आज तक -मैं तलाक लेना चाहता हूं/चाहती हूं जैसे शास्त्रीजी से लोग पूछते हैं? वह भी तब जबकि आप मनोविज्ञान पढ़ाती हैं! आदित्य को आपका आशीर्वाद मिला ये तो अच्छी बात है लेकिन आपको हर जगह शरारत ही क्यों दिखती है?
और अंत में
इत्ता लिखने के बाद और कुछ लिखने को बचता नहीं है। ज्यादा इंतहान लेना नहीं चाहिये पाठक का।
मजेदार है यह देखना कि कोई कहता है एकलाइना क्यों नहीं? कोई कहता है केवल एकलाइना ही क्यों?
हमारे मजे हैं। जो मन आये लिखें और कहें इन्होंने कहा था। अच्छा हमसे कोई ई-मेल करके कभी कुछ कहता भी नहीं! जैसे शास्त्रीजी से लोग पूछते हैं- तलाक लेना चाहता हूं।
उनकी पोस्ट पढ़कर मुझे इस्माइल मेरठी का शेर याद आया था-
कब्र खोदना है पेशा मेरा/ मैं तेरे काम आना चाहता हूं।
उनको लिखना चाहिये था- तुझे परेशान देखना है शौक मेरा/ मैं तेरा घर बचाना चाहता हूं।
शास्त्रीजी ने मेरी क्रियाशीलता का रहस्य जानना चाहा है। कोई रहस्य हो तो बतायें। हम तो अपने आलस्य से हलकान हैं हमारे ऊपर तोहमत क्रियाशीलता की। क्या जबाब दें। क्रियाशील होते तो दोपहर को ये पोस्ट न ठेलते। सब्रेरे गजरदम ठेल देते।
रही बात एकलाइना में मजे की तो ये हमारा मैन्युफ़ैक्टरिंग डिफ़ेक्ट दिखता है। हर जगह मौज लेने का मन करता है। लेते भी रहते हैं जब तक हड़काये न जायें -क्या हर समय हाहा,हीही करते रहते हो!
फ़िलहाल इतना ही। बकिया फ़िर।
इतना सुन्दर लिखा है कि आपको सम्मानित करने का मन हो रहा है।
जवाब देंहटाएं(आपके शीर्षक से प्रेरित नहीं! :-) )
कितना धैर्य चाहिए इतनी विषद चर्चा के लिए!
जवाब देंहटाएंआप भी कमाल हैं।
और इन प्रतिटिप्पणियों ने तो एक नया ही सद्भावनापूर्ण माहौल ब्लॊगजगत् में रचने की भूमिका का सूत्रपात कर डाला है।
एन्ड क्रेडिट गोज़ टू यू
असली सम्मान तो आपने दिया है अनूप जी। कल मिले सम्मान से ज्यादा आपका दिया हुआ सम्मान मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है और आपको आश्वस्त करता हूं कि मैं अपना काम जारी रखूंगा। ईनाम मिले ना मिले,आपका और आप जैसे प्यारे लोगों का प्यार मिलता रहना चाहिए तो हौसला बना रहेगा। आज का दिन ब्लॉग की दुनिया में कदम रखने के बाद सबसे सुनहरा दिन है। ये सब संभव हुआ अनुज संजीत त्रिपाठी की वजह से। धन्यवाद आपको जो आपने मूझे इस सम्मान के लायक समझा।
जवाब देंहटाएंbhai is baar to sagar se moti dhhondhh laane wali baat ho gayi...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी प्रति-टिप्पणी का सिलसिला ....
जवाब देंहटाएंजारी रहे जारी रहे .
बेहतरीन अन्दाजे बयाँ .
अजी हम क्या कहे सब तो आप ने कह दिया !! आपकी मैनुफ़ेचरिंग डिफ़ेक्ट सबसे पसंदीदा है!!
जवाब देंहटाएंभगवान से प्रार्थना है कि ये मैन्युफ़ैक्टरिंग डिफ़ेक्ट स्टेंडर्ड डिजाइन बन जाए। आज के वन लाइना भी गजब के, और अब ये प्रति टिप्पणी का स्तंभ चर्चा में चार चांद लगाता है। हम ज्ञान जी की टिप्पणी से सहमत्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और मेहनत से कि गई चर्चा है यह
जवाब देंहटाएंशुकल जी आज की करीब आधी चिठ्ठा चर्चा तो "लिव-इन-रिलेशनशिप" की हुई ! पिछले हफ्ते से इसकी सब तरफ़ चर्चा चल रही है ! सामयीक जानकारी के हिसाब से आपने आज ये अति उत्तम काम किया ! क्योंकि कल के टाइम्स आफ इंडिया में इसकी जबरदस्त चर्चा थी ! हमने ताई के डर से इस पर पोस्ट लिखने का विचार टाल दिया है ! :) अब आराम से एक लाइना यानी सोप-ओपेरा का मजा ले रहे हैं ! लाजवाब एपीसोड है ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंअनूप भाई !
जवाब देंहटाएंलाजवाब और लाइलाज भी ;-),
सबसे पहले अनिल जी को बधाई .इतने दिनों से उन को पढ़ कर यही जाना की जो उनके मन में वही लिखते है ,कागजो में कुछ ओर नजर नही आते ....
जवाब देंहटाएंआप की मेहनत साफ़ नजर आ रही है....चर्चा में .मानसी की कविता बहुत अच्छी है......ओर अनुजा जी भी बिंदास अंदाज में अपने मत-विमत दे ही देती है
एक लाइना और एकाधिक लाइना, आप कुछ भी कहें, कहें जरूर। सब की यह इच्छा बनी रहती है।
जवाब देंहटाएंफिर सब को समेटना संभव नहीं। सब को समेटने लगें तो चाह ही समाप्त हो जाए।
हाँ,जिस तरह आप ने लिव-इन के बारे में मेरी धारणा को व्यक्त किया, लगता है मेरी प्रस्तुति में ही कोई त्रुटि रह गई है।
आज की चर्चा तो कुछ ज्यादा ही मूड में की गई लगती है। खासकर एकलाइना में तो आपने नई जान डाल दी है। जोश बनाए रहें...
जवाब देंहटाएंकोई अच्छा सम्मान करने वाला दिखे तो बताइए हम भी सम्मानित हो लें
जवाब देंहटाएंआप अपने कार्य के प्रति बेहद समर्पित इंसान हैं, मेहनत देखकर हैरान हो जाता हूँ। इतना कुछ कहने के लिए कितना कुछ पढ़ना पड़ता होगा। यह सबके बस की बात नहीं।
जवाब देंहटाएंअनिल जी को मेरी ओर से भी बधाई।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअनूप जी आपकी सलाह और अनुरोध दोनों ही सर आंखों पर। कोशिश करुंगी की आगे से आंसुओं को रचनाओँ से दूर रखुं और रचनाओं के साथ साथ लेख भी लिखूं।
जवाब देंहटाएंइस बार आपने टिप्पणी की प्रति टिप्पणी लिखी है तो लगा चिट्ठा चर्चा का नया रंग आ गया है। अच्छा लगा।
"पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :शास्त्रीजी से मिलो वो यही सब कराते हैं "
जवाब देंहटाएंअरे भैइया, मरवाओगे हमको. हम तो जोडते हैं तोडते नहीं!! कल को यदि कोई हमारे द्वारे आ गया तो हम तुरंत उसे आपके ठिये पर भेज देंगे!!!
आप ने दो वाक्यों मे अपनी क्रियाशीलता को छुपा दिया है, लेकिन जो है वह है एवं छुप नहीं सकता.
लिखते रहें क्योंकि आपकी "चर्चा" एवं एक-लाईना का कोई जोड नहीं है.
आज रात 1 बजे यह टिप्पणी दे रहा हूँ क्योंकि दिन भर भागदौड कर रहे थे -- न तो तलाक देने के लिए, न दिलवाने के लिये -- पापी पेट की खातिर!!
सस्नेह, शास्त्री
हम इतने दिन गायब रहे और इधर टिपण्णी चर्चा भी चल्लू हो गई... सलाम है आपके लगन को !
जवाब देंहटाएंइसबारकी चर्चा बहुत विस्तृत रही, विवरण के साथ और मुझे पता है कि ये आसान नहीं। एक लाइना भी सीमित संयोजित, बहुत अच्छी चिट्ठा चर्चा। और मेरी कविता को अपनी पसंद बनाने का भी शुक्रिया। टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी बहुत अच्छी रही।
जवाब देंहटाएंधांसू है जी, आज तो एक लाईना भी कंट्रोल में है, निकल लूँ इससे पहले सब मुझे गलियाने लगे एक लाईना के ऊपर ;)
जवाब देंहटाएंवैसे अब कोई आयेगा नही क्योंकि हम सबसे लास्ट होते हैं।